

प्रेम-काव्य प्रतियोगिता
तुमने ही हृदय बिछाया…. तुम धूप हो, तुम छाँव होपसरी हुई निस्तब्धता मेंजीवंत हुआ-सा ठाँव हो ।घिर-घिरकर जब
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
तुमने ही हृदय बिछाया…. तुम धूप हो, तुम छाँव होपसरी हुई निस्तब्धता मेंजीवंत हुआ-सा ठाँव हो ।घिर-घिरकर जब
प्रेम-काव्य प्रतियोगिता हेतु रचना तुमने ही हृदय बिछाया…. तुम धूप हो, तुम छाँव होपसरी हुई निस्तब्धता मेंजीवंत
उड़ान… सुनो! भारी हो गए हैं तुम्हारे पंख झटक दो इन्हें एक बार उड़ान से पहले इनका हल्का
महामारी का समय …. यह महामारी का अपना समय हैसमय सबका होता हैसबका ‘नितांत ‘अपनाकभी पूर्ण पाश्विकता काकभी
होली उसे कहो….! जब रंग रमे रस अंग-अंग भींगेतब होली उसे कहोजब हृदय हरित-हरित हो फिर तब होली
लगभग तीन वर्षों के बाद मैं रीवगंज गई थी। रीवगंज से मेरा परिचय हमारे विवाहोपरांत पतिदेव ने ही