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प्रेम

प्रेम

 ​​​​​​​​     डा. रतन कुमारी वर्मा

प्रेम की सरिता बहाते चलो,

गले से गले मिलाते चलो।

प्रेम-सुधा रस बरसाते चलो,

जाति-पाति, वर्ग-भेद मिटाते चलो

प्रेम की ऊर्जा जगाते चलो।

साम्प्रदायिकता को मिटाते चलो,

सूफी प्रेम का दीपक जलाते चलो।

अमीर-गरीब का भेद-भाव मिटाते चलो,

सद्भाव की गंगा बहाते चलो।

दीन-जनों पर दया करते चलो,

प्रेमवाणी से पुचकारते चलो।

क्षमा-दया का भाव भरते चलो,

सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते चलो।

अशक्त हैं जो जन उनकी शक्ति बनो,

उनको सहारा देकर आगे बढ़ाते चलो।

भाव के भूखे हैं जो जन उन्हें,

सम्मान की सरिता में नहलाते चलो।

प्रेम की सरिता बहाते चलो।

         

                           एसोशिएट प्रोफेसर – हिन्दी विभाग

                                जगत तारन गर्ल्स पी.जी.कालेज,

                                     इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।

 

 

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