सपना की नई कविता ‘ मैं हूं भी बेरोजगार’
कितना मुश्किल करना है स्वीकार
कि, हूँ मैं भी बेरोजगार।
सत्य झुठलाया भी नहीं जा सकता
न ही इससे मुँह मोड़ सकती मैं
परम् सत्य तो यही है
लाखों लोगों की तरह
मैं भी हूँ बेरोजगार।
कभी-कभी मन होता भारी
डिग्री पाकर, क्या हासिल किया मैंने
अच्छा होता, कम होती पढ़ी-लिखी
मन को तसल्ली तो दे पाती
तब इतना दर्द भी नहीं होता शायद
अपनी इस बीमारी का
दर्द भरी बेरोजगारी का।
पड़ोसी भी अब उड़ाने लगे मज़ाक
क्या सारी उम्र करनी है पढ़ाई ?
नौकरी का इरादा है भी या नहीं?
जवाब नहीं कोई उनके सवाल का
पर सच तो यही है, हूँ मैं बेरोजगार।
पापा ने भी वैकेंसी के बारे में
बात करना छोड़ दिया
माँ का भी उठने लगा भरोसा
सभी साथी आगे निकल गए।
जीवन के इस संघर्ष में
सपने अभी नहीं हुए साकार
इज़लिये तो आज भी हूँ, बेरोजगार ।
सोचती हूँ किसे कोसू अब मैं
अपनी किस्मत को या उस सरकार को
जिसके शासन में,
भर्ती निकले तो इम्तहान नहीं होते
परीक्षा हो तो, परिणाम नहीं होते
परिणाम निकल भी गया गर
बिना पॉवर इंटरव्यू से होते बाहर।
कहने को तो युवा है देश का आधार
फिर क्यों युवाओं का मान नहीं।
सरकारें आती हैं जाती हैं
रोजगार के लंबे-लंबे होते दावे
फिर भी बढ़ती जाती बेरोजगारी
मिलती हर बार बस निराशा।
बहुत सहन कर लिया
अब और नहीं।
समय आ गया है
जवाब माँगने का
युवा शक्ति क्या है, बतलाने का
न रुकना, न झुकना, न हार मानना,
कदम से कदम मिलाकर चलना है
हकों को पाकर ही अब दम लेना है
हकों को पाकर ही अब दम लेना है…।
– सपना, शोधार्थी, हिंदी-विभाग ,पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़-160014
ई-मेल : [email protected]