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चाँदनी समर की कहानी – ‘अपना-अपना चाँद’

उस बड़े से बँगले के बाहर वो रोड लैम्प। जिसके नीचे रोज़ ही झोपड़पट्टी का एक बच्चा आ बैठता है। मगर आज वहाँ एक और बच्चा है। पहले बच्चे ने उसे आश्चर्य से देखा- आह! कितना सुंदर है ये। लगता है किसी दूसरी दुनिया से आया है। उसने सुंदर कपड़े पहन रखे थे। आँखों में सम्पन्नता और चेहरे पर थोड़ा सा क्रोध। झोपड़पट्टी का बच्चा उसे यूँ ही ताकता रहा, कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई। पता नहीं वो उसकी भाषा समझ भी पायेगा या नहीं। सुंदर बालक भी उसे आश्चर्य से देख रहा था। फटे कपड़े, नंगे पांव, आँखों मे दरिद्रता । कुछ देर गौर से उसे देखते हुए पूछा कौन हो तुम??
जी, मैं विकास हूँ। ग़रीब लड़के ने थोड़ा झिझकते हुए कहा
कहाँ रहते हों? सुंदर बालक ने पुनः पूछा
जी, मैं सड़कों पे रहता हूँ। मेरा मतलब है सड़क किनारे झोपड़पट्टी में । तुम कौन हो? कहाँ रहते हो?  ग़रीब लड़के ने भी पूछा
मैं, मैं स्वप्न हूँ। बंगले में रहता हूँ।
अच्छा .. तुम्हें पहले कभी यहाँ नहीं देखा। विकास ने पूछा
मैं यूँही सड़को पर नहीं निकलता। अपने बँगले में ही रहता हूँ। स्वप्न ने उत्तर दिया।
अच्छा तो आज यहाँ कैसे??
बस छुप के भाग आया हूँ। मम्मी खाने के पीछे पड़ी रहती है। भला कितना खाउँ । स्वप्न ने मुँह फुलाते हुए कहा।
अच्छा ! तुम्हें बहुत खाने को मिलता है? विकास चकित होकर पूछा
हाँ, बहुत….
क्या क्या…
ब्रेड, बटर, पिज़्ज़ा, पास्ता, मिल्क, फ्रूट, चिकन, बिरयानी
विकास आश्चर्य से उसका मुँह ताक रहा था। कुछ ना समझ कर उसने सीधे पूछा-रोटी मिलती है क्या?
रोटी? हाँ। मगर मैं रोटी नहीं खाता। मुझे पसंद नहीं।
क्या.. विकास की आँखें आश्चर्य से फटी रह गई।
हाँ। इतना खाना भला कौन खा सकता है… मोटा हो जाऊँगा । मेरे स्कूल में वो बंटी है ना, बहुत मोटा है वो। वैसा नहीं बनना चाहता। सोचता हूँ चाचू के साथ जिम ज्वाइन कर लूँ। कुछ बॉडी बन जाएगी।
स्वप्न अपनी धुन में अपने मन की बात सुनता रहा जबकि विकास का ध्यान तो अब भी रोटी पर थ| सुबह से एक भी जो न मिली थी। कुछ देर बाद जब स्वप्न चुप हुआ तो विकास सन्न था
उसे तो उसकी कोई बात समझ न आई सो वो कुछ न बोला।
फिर दोनोंबच्चे चाँद की ओर देखने लगे ।
मम्मी कहती है मुझे चाँद को पाना है। मुझे भी चाँद बहुत पसंद है। एकदिन मैं चाँद को पा के रहूँगा।। स्वप्न ने प्रसन्नता भरे स्वर में कहा।
विकास भी चाँद को देख रहा था खोये स्वर में बोला
हाँ मुझे भी चाँद चाहिए। पर आधा नहीं पूरा। मां जब तवे पर पकाती है तो कितना सुंदर लगता है ना। फूली- फूली ,गोल-गोल। मगर आधा ही देती है। आधा छुटकी को दे देती है।
कितना सुंदर है ना ये चाँद।
एक दिन मैं ऐस्ट्रोनेट बनूँगा और तब इसे पा लूंगा। स्वप्न ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा
हाँ,मुझे भी चाँद चाहिए। फूली फूली गोल गोल। विकास खोए खोए स्वर में बोला ।
दोनों अपने-अपने चाँद को देख रहे थे | सामने के बँगले से चौकीदार निकला
बाबा, आप यहाँ बैठे हैं। मैडम जी आपको कबसे ढूंढ रही हैं। चलिए घर चलिए।
स्वप्न उठा। उसने विकास को अपने साथ चलने को कहा तो वाचमैन ने टोका
नहीं बाबा, ये आपके साथ नहीं चल सकता। आप दोनों के रास्ते अलग हैं।
फिर दोनों अपने-अपने रास्ते निकल गए। स्वप्न बँगले की ओर, और विकास सड़कों की ओर।

-चाँदनी समर