भारत
मीनाक्षी डबास ‘मन’ की कविता – ‘स्त्रियों के बाल’
स्त्रियों के बाल कविता है स्वयं जब सुलझाती उनको मानो चुने जा रहे शब्द एक-एक लट की तरह। लहराते हैं जब खुले बाल हवा के संग मानो बहे जाते शब्द …
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सपना की कविता – ‘बेरोजगार’
बेरोजगार कितना मुश्किल यह स्वीकार हूँ, मैं भी बेरोजगार। सत्य को झुठलाया भी नहीं जा सकता न ही इससे मुँह मोड़ सकती हूँ मैं परम् सत्य तो यही है लाखों …
आदित्य तिवारी की कविता – ‘समर्पण’
ये जीवन जितनी बार मिले माता तुझको अर्पण है इस जीवन का हर क्षण ,हर पल माता तुझको अर्पण है। यही जन्म नहीं, सौ जन्म भी माता तुझ वारूँ मैं …
सबकुछ नम्बर वन तो जीरो नम्बर क्यों लें जनाब !
सामयिक व्यंग्य: पावर ऑफ टाइम सुशील कुमार ‘नवीन’ राजा नम्बर वन, मंत्री-सभासद नम्बर वन। प्रजा नम्बर वन,प्रजातन्त्र नम्बर वन। प्रचार नम्बर वन, प्रचारक नम्बर वन। प्रोजेक्ट नम्बर वन, प्रोजेक्टर नम्बर …
डॉ. नानासाहेब जावळे की कविता – “समाज और व्यक्ति”
व्यक्ति और समाज का संबंध है पेड़ और भूमि जैसा व्यक्तित्व रूपी पेड़ समाज रूपी भूमि पर खूब फूलता-फलता हो जैसा। व्यक्ति और समाज हैं दोनों पारस्परिक एक दूसरे के …
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