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ठाडे कै सब यार, बोदे सदा ए खावैं मार

सुशील कुमार ‘नवीन’

प्रकृति का नियम है हर बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। जंगल में वही शेर राजा कहलाएगा,जिसके आने भर की आहट से दूसरे शेर रास्ता बदल लेते हों। गली में वही कुत्ते सरदार होते हैं जो दूसरे कुत्तों के मुंह से रोटी छीनने का मादा रखते हों । और तो और गांव में भी वही सांड रह पाता है जिसके सींगों में दूसरे सांड को उठा फैंकने का साहस होता है। पूंछ दबा पीछे हटते कुत्तों, लड़ना छोड़ भागने वाले सांड सदा मार ही खाते हैं। रणक्षेत्र में वही वीर टिकते हैं जिनमें लड़ने के साहस के साथ मौत से दो हाथ करने का जज्बा हो। कायरता किसी के खून में नहीं होती, कायरता मन में उमड़े कमजोरी के भावों से होती है। कहते हैं ना, जो डर गया समझो मर गया।

आप भी सोच रहे होंगे कि आज ये भगवत ज्ञान कैसे मुखरित हो रहा है। तो सुनिए, ज्ञान भी तभी मुखरित होता है जब उस ज्ञान को आत्मसात किया हुआ हो। हमारे एक मित्र वैचारिक रूप से बड़े ज्ञानी है। नाम है अनोखे लाल। नाम की तरह वे अपने विचारों से भी अनोखे हैं। बोलते समय सामने वाले को ऐसा सम्मोहित कर देते हैं कि उनके कहे को अस्वीकारना असंभव हो जाता है। लास्ट में आप ही सही,कहकर उठना पड़ता है। तो अनोखे लाल जी आज सुबह पार्क में गुनगुनी धूप का आनन्द ले रहे थे। इसी दौरान हमारा भी वहां जाना हो गया। राम रमी के बाद चर्चा चलते-चलते अमेरिका के नए राजनीतिक घटनाक्रम पर चल पड़ी। मैंने भी जिज्ञासावश उनके आगे एक प्रश्न छोड़ दिया कि भारत-अमेरिका सम्बन्धों पर क्या इससे फर्क पड़ेगा।

आदतन पहले गांभीर्यता को अपने अंदर धारण किया फिर बोले-शर्मा जी! आपने कभी सांड लड़ते देखे हैं। मैंने कहा-ये संयोग तो होता ही रहता है। बोले-सांडों की लड़ाई का परिणाम क्या होता है, ये भी आप जानते ही है। सांडों का कुछ बिगड़ता नहीं, उसका खामियाजा दूसरे भुगतते हैं। बाजार में लड़े तो रेहड़ीवाले, सड़क पर लड़े तो बाइक सवार, गली में लड़े तो लोहे के दरवाजे, खुले में लड़े तो झाड़-बोझड़े इसके शिकार बनते हैं। मैंने कहा-ये उदाहरण तो समझ से परे है। बोले-अमेरिका में कोई राष्ट्रपति बने, भारत पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हमारे लिए ट्रम्प जितना सहयोगी रहा है उतना ही बाइडेन को रहना होगा। हमारा साथ उन्हें भी जरूरी है। मैंने कहा-राजा बदलने से सम्बन्धों पर क्या कोई असर नहीं पड़ता है।

बोले-चेहरा बदलने से सारा स्वरूप थोड़े ही बदल जाता है। गीदड़ शेर का मुखौटा धारण कर शेर नहीं बन सकता। वो चेहरा तो बदल सकता है पर शेर जैसी हिम्मत और ताकत मुखौटा धारण करने से नहीं आ सकती। मैंने फिर टोका कि बात अभी भी समझ नहीं आई। वो फिर बोले-भाई, दुनिया की फितरत है। साथ हमेशा मजबूत लोगों का दिया और लिया जाता है।

कमजोर का न कोई साथ लेता है और न उसका साथ देता है। कोई साथ देता भी तो उसकी अपनी गर्ज होती है। चीन का साथ पाकर नेपाल की बदली जुबान हम देख ही चुके हैं। हम मजबूत हैं तभी हमसे दोस्ती करने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है। हम मजबूत रहेंगे तो ट्रम्प-बाइडेन ज्यों साथ मिलता रहेगा। हम कमजोर पड़ते दिखे तो ओली जैसे नेता मुखर होते साफ दिख जाएंगे। बोले-बावले भाई, दो टूक की यही बात है। ठाडे कै सब यार, बोदे(कमजोर) सदा ए खावैं मार।उनके बेबाक सम्बोधन को विराम देना सहज नहीं है। औरों की तरह लास्ट में मुझे भी यही कहकर चर्चा खत्म करनी पड़ी कि आपकी बात बिल्कुल सही है। सोचा जाए तो अनोखेलाल जी की बात गलत भी नहीं है। आप भी जरा इस पर विचार करें।

(नोट:लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है)

लेखक:

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

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