नीरू सिंह की कविता – ‘श्राप’ Leave a Comment / अनूदित कविता / By nirusingh84 जिस आँगन उठनी थी डोली उस आँगन उठ न पाई अर्थी भी। क्या अपराध था मेरा? बस लड़की होना ! अर्थी भी न सजी इस आँगन ! कैसे सजाते? कैसे सजाते? बटोरा होगा मेरा अंग अंग धरती से ! कफ़न में समेटा होगा मेरी आबरू को ! TweetSharePinShare