नीरू सिंह की कविता – ‘श्राप’

जिस आँगन उठनी थी डोली
उस आँगन उठ न पाई अर्थी भी।
क्या अपराध था मेरा?
बस लड़की होना !
अर्थी भी न सजी इस आँगन !
कैसे सजाते? कैसे सजाते?
बटोरा होगा मेरा अंग अंग धरती से !
कफ़न में समेटा होगा मेरी आबरू को !