1

बुद्धि सागर गौतम के दोहे

अभिमान

जीवन में अभिमान तुम, कभी न करना भाय।
अभिमानी इस जगत में, चैन कभी ना पाय।

मानव का अभिमान ही, बहुत बड़ा है दोष।
अभिमानी मानव सदा, दे दूजे का दोष।

अहंकार अभिमान है, दोनों एक समान।
मानव जो इसको तजे, मिले उसी को मान।

अभिमानी जो होत है, करें बुरा ही काम।
करता अनहित देश का, सदा बिगाड़े काम।

अभिमान करें किस चीज का, तन है राख समान।
क्षण भर में उड़ जाएगा, सुगना हवा समान।

रचनाकार ✍️ – बुद्धि सागर गौतम
( मौलिक व स्वरचित रचना )
💐 🙏🏻🙏🏻 💐✍️✍️✍️✍️✍️
स्थायी पता – ग्राम इटहर, पोस्ट सोनखर,
जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश, भारत – 272178.

वर्तमान पता – नौसढ़, जनपद – गोरखपुर,
उत्तर प्रदेश, भारत – 273016.
दूरभाष संख्या – 9412646123.




डॉ. नानासाहेब जावळे की कविता – “समाज और व्यक्ति”

व्यक्ति और समाज का संबंध

है पेड़ और भूमि जैसा 

व्यक्तित्व रूपी पेड़ समाज रूपी भूमि पर

खूब फूलता-फलता हो जैसा। 

व्यक्ति और समाज 

हैं दोनों पारस्परिक 

एक दूसरे के बिना 

हैं दोनों का अस्तित्व मुश्किल। 

नहीं होता व्यक्ति के बिना 

समाज का कोई अस्तित्व अपना 

और नहीं रह सकता है व्यक्ति 

समाज के बिना कभी सुरक्षित। 

व्यक्ति के अपने दो हाथों के सिवा 

होते हैं उसके पीछे खड़े हजारों हाथ 

वे व्यक्ति का जीवन हैं संवारते

उसका जीवन स्वस्थ बनाते। 

सुबह से लेकर देर रात तक 

करते हैं जो हमारी आवश्यकता पूर्ति 

वही समाज के देनदार 

सही मायने में हमारे समधी। 

होगा कोई डॉक्टर, पुलिस या सैनिक 

अथवा होगा दूधवाला, सब्जीवाला या दुकानदार 

अगर बंद कर दे यह सारे अपना काम

इनके बिना जीवन होगा दुश्वार। 

जीवन एक शास्त्र, कला और धर्म है 

उसे जीते-जीते हम सीख जाते हैं 

जियो और जीने दो के तत्वानुसार 

हम सुखी-समृद्ध जीवन बनाते हैं। 

व्यक्ति बना रहे इंसान 

अन्यों से बनाए रखे सुसंवाद 

जनहित देखे स्वांत सुख के परे 

तब कहलाए वह नर का नारायण। 

लेकिन व्यक्ति, खोकर अपनी विवेक शक्ति 

हो धर्मांध या घिनौनी राजनीति से प्रभावित 

कार्य करें मानवता विरोधी 

तब कहलाए वह स्वार्थी-पाखंडी। 

अनेक बार निष्ठा के नाम पर व्यक्ति 

गिरवी रखकर अपनी प्रज्ञा शक्ति 

छोड़ दे राह इंसानियत की 

खूब हानि होती है मानवता की। 

निश्चित ही व्यक्ति 

इकाई है, समाज की 

फिर भी स्वाभाविक विशेषताएं उसकी 

बनाती है पहचान उसके अस्तित्व की। 

भूल न जाए व्यक्ति अपना स्वत्व 

खो न दे वह अपना अस्तित्व 

कर जीवन मूल्यों का स्वीकार 

करता रहे मानवता का प्रचार-प्रसार।

लेकिन आज समाज में 

व्यक्ति का आदर होता है तब तक 

उसके पास बहुत सारा 

पैसा होता है जब तक। 

अतः अब व्यक्ति का लक्ष्य 

बन गया है मात्र पैसा 

भौतिक संपन्नता के पीछे 

देखो भाग रहा है, वह कैसा? 

आज पैसा ही समाज का 

ईश्वर बन जाने के कारण 

सच्चे समाज हितैषी, जीवन मूल्यों के निर्माता 

उपेक्षित बन गए हैं, यह सब जन।

समाज जिसे आदर्श मानेगा 

व्यक्ति उसका अनुसरण करेगा 

मानवता की भलाई के लिए 

दोनों को ही बदलना होगा।

अतः स्वार्थ, धर्मांध, कूटनीतिज्ञों से बचकर 

हमें मानव बने रहना होगा 

व्यक्तिगत लाभ-हानि का त्यागकर 

मानवता को महत्व देना होगा।

सहयोगी प्राध्यापक, सुभाष बाबुराव कुल कला, वाणिज्य व विज्ञान महाविद्यालय केडगांव, तहसील – दौंड, जिला – पुणे, महाराष्ट्र, भारत

संपर्क : E-mail- [email protected]दूरभाष 7588952404




नरेश शांडिल्य के दोहे

जागा  लाखों करवटें, भीगा अश्क हज़ार
तब जा कर मैंने किए, काग़ज काले चार।

छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक
सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख।

मैं खुश हूँ औज़ार बन, तू ही बन हथियार
वक़्त करेगा फ़ैसला, कौन हुआ बेकार।

तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच
तेरी अपनी सोच है, मेरी अपनी सोच।

मैं ही मैं का आर है, मैं ही मैं का पार
मैं को पाना है अगर, तो इस मैं को मार।

ख़ुद में ही जब है ख़ुदा, यहाँ-वहाँ क्यों जाय
अपनी पत्तल छोड़ कर, तू जूठन क्यों खाय।

पाप न धोने जाउँगा, मैं गंगा के तीर
मजहब अगर लकीर है, मैं क्यों बनूँ फ़क़ीर।

सब-सा दिखना छोड़कर, ख़ुद-सा दिखना सीख
संभव है सब हों ग़लत, बस तू ही हो ठीक।

ख़ाक जिया तू ज़िंदगी, अगर न छानी ख़ाक
काँटे बिना गुलाब की, क्या शेखी क्या धाक।

बुझा-बुझा सीना लिए, जीना है बेकार
लोहा केवल भार है, अगर नहीं है धार।

सोने-चाँदी से मढ़ी, रख अपनी ठकुरात
मेरे देवी-देवता, काग़ज-क़लम-दवात।

अपनी-अपनी पीर का, अपना-अपना पीर
तुलसी की अपनी जगह, अपनी जगह कबीर।

वो निखरा जिसने सहा, पत्थर-पानी-घाम
वन-वन अगर न छानते, राम न बनते राम।

पिंजरे से लड़ते हुए, टूटे हैं जो पंख
यही बनेंगे एक दिन, आज़ादी के शंख।

जुगनू बोला चाँद से, उलझ न यूँ बेकार
मैंने अपनी रौशनी, पाई नहीं उधार।

बस मौला ज़्यादा नहीं, कर इतनी औक़ात
सर ऊँचा कर कह सकूँ, मैं मानुष की ज़ात।

पानी में उतरें चलो, हो जाएगी माप
किस मिट्टी के हम बने, किस मिट्टी के आप।

अपने में ज़िंदा रखो, कुछ पानी कुछ आग
बिन पानी बिन आग के, क्या जीवन का राग।

शबरी जैसी आस रख, शबरी जैसी प्यास
चल कर आएगा कुआँ, ख़ुद ही तेरे पास।

जो निकला परवाज़ पर, उस पर तनी गुलेल
यही जगत का क़ायदा, यही जगत का खेल।

कटे हुए हर पेड़ से, चीखा एक कबीर
मूरख कल को आज की, आरी से मत चीर।

भूखी-नंगी झोंपड़ी, मन ही मन हैरान
पिछवाड़े किसने लिखा, मेरा देश महान।

हर झंडा कपड़ा फ़क़त, हर नारा इक शोर
जिसको भी परखा वही, औना-पौना चोर।

सब कुछ पलड़े पर चढ़ा, क्या नाता क्या प्यार
घर का आँगन भी लगे, अब तो इक बाज़ार।

हम भी औरों की तरह, अगर रहेंगे मौन
जलते प्रश्नों के कहो, उत्तर देगा कौन।

भोगा उसको भूल जा, होगा उसे विचार
गया-गया क्या रोय है, ढूँढ नया आधार।

लौ से लौ को जोड़कर, लौ को बना मशाल
क्या होता है देख फिर, अंधियारों का हाल।

 – नरेश शांडिल्य,  9868303565

*********************

नरेश शांडिल्य : संक्षिप्त साहित्यिक परिचय
——————————————-

कवि नाम : नरेश शांडिल्य

शिक्षा : एम ए (हिंदी साहित्य)

कवि-दोहाकार-रंगकर्मी-संपादक-समीक्षक

प्रकाशन :
—————
7 कविता संग्रह प्रकाशित।
3 पुस्तकों का सम्पादन।

सम्मान :
————–
* हिंदी अकादमी , दिल्ली सरकार का साहित्यिक कृति सम्मान (1996)
* वातायन ( लंदन ) का अंतरराष्ट्रीय कविता सम्मान (2005)
* कविता का प्रतिष्ठित ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’ (2010)

काव्य पाठ :
——————-
दिल्ली के प्रतिष्ठित लालकिला कवि सम्मेलन , श्रीराम कविसम्मेलन आदि में काव्यपाठ। इसके अतिरिक्त भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में काव्यपाठ।

आकाशवाणी और दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर काव्यपाठ। बी बी सी और कई विदेशी रेडियो चैनलों पर काव्यपाठ।

भोपाल में आयोजित 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भागीदारी।

विदेश यात्रा :
——————-
इंग्लैंड के सभी प्रमुख शहरों में सन् 2000 और सन् 2005 में काव्यपाठ।

जोहान्सबर्ग ( साउथ अफ्रीका ) के 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में काव्यपाठ।

10 जनवरी 2017 विश्व हिंदी दिवस पर बैंकॉक ( थाईलैंड ) में मुख्य अतिथि के नाते भागीदारी।

नुक्कड़ नाटकों में फैलोशिप :
————————————–
20 नुक्कड़ नाटकों की 500 से अधिक प्रस्तुतियों में अभिनय और 100 से अधिक नुक्कड़-गीतों का लेखन।
नुक्कड़ नाटकों में भारत सरकार के संस्कृति विभाग से सीनियर फैलोशिप।

संपादन :
————–
साहित्य की अंतरराष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अक्षरम संगोष्ठी’ का 12 वर्षों तक संपादन

सलाहकार :
—————–
सलाहकार सदस्य : फ़िल्म सेंसर बोर्ड , सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।

संपर्क : सत्य सदन , ए 5 , मनसा राम पार्क, संडे बाज़ार लेन, उत्तम नगर, नई दिल्ली 110059
9711714960
9868303565 (whatsapp)
Email :
[email protected]

[email protected]