1

किसान

सभी व्यवसायी चाहते हैं, उनका बेटा बड़ा होकर
यदि कुछ नहीं तो उनका ही रोज़गार संभाले।
परन्तु एक किसान कभी स्वप्न में भी नहीं सोचता
कि उनका बेटा बड़ा होकर किसान बने।
ये पंक्तियाँ हमारे कृषिप्रधान देश के किसानों की
बदहाली को बयां करती है।।




प्रेम

प्रेम…

ये वो प्यारा नाम है जो प्यार, स्नेह, मोह, प्रीत, आनन्द, हर्ष का एक अद्भुत संयोग है। जो ह्रदय में ममत्व की भावनाओं को उत्पन्न करता हैं। जहाँ इसमें, जुड़ाव है, खिंचाव हैं, लगाव हैं और अपनत्व हैं तो जलन का एक प्यारा सा मिश्रण हैं।

 




लड़के जब रोतें हैं

  • लड़के जब रोते हैं,
    प्रकृति में असंतुलन बढ़ जाता है।
    सूर्य अपने तीव्र वेग पर आ जाते हैं।
    समंदर में वाष्पोत्सर्जन चरम पर होता है।
    पृथ्वी का जलस्तर तेजी से घटता है।
    वनस्पतियाँ कुम्हलाने लगती हैं।
    सुनों लड़कों! प्रकृति में संतुलन
    बनाये रखने के लिए ही सही,
    तुम आसानी से मत रोना…।



तुम्हारा सौंदर्य

अत्यंत कठिन है
तुम्हारे सौंदर्य का वर्णन
तुम्हारे सौंदर्य को देखना ठीक वैसा ही है,
जैसे बारिश के बाद इंद्रधनुष को ढूंढना!
तुम्हारे सुंदरता का उत्कर्ष है तुम्हारे चेहरे की लालिमा
जैसे उदय होता सूर्य है प्राकृत का!
तुम्हारी ध्वनि हृदय को आमोद करती है
जैसे तपती ऊष्मा में मेंह का आगमन!
तुम्हारी सौंदर्य के साथ तुम्हारी सादगी
ऐसी शोभित होती है मानो
किसी वीरांगना के शरीर पर लगे हों
युद्ध के गहरे घाव!!




अंतरराष्ट्रीय अटल काव्य प्रतियोगिता – 2021

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं सुप्रसिद्ध कवि भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती 25 दिसंबर 2021 के अवसर पर विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस,  न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में “अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता – 2021” का आयोजन किया जा रहा है ।

इस प्रतियोगिता में विश्व के सभी देशों के रचनाकारों से उपरोक्त प्रतियोगिता हेतु स्वरचित हिन्दी काव्य रचनाएँ आमंत्रित हैं । 

अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता – 2021 हेतु स्वरचित कविता भेजने की अंतिम तिथि : 20 सितंबर 2021  

  • प्राप्त हुई रचनाओं पर निर्णयक मण्डल के निर्णय अनुसार घोषित श्रेष्ठ रचनाकारों को अटल जयंती (25 दिसंबर 2021) पर आयोजित किए जाने वाले “अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन” में चयनित रचना का पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा ।
  • निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित उत्कृष्ट रचनाओं की संख्या अधिक होने पर शेष रचनाकारों को हमारे किसी अन्य आगामी “अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन” में चयनित रचना का पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा ।
  • प्राप्त रचनाओं की संख्या के आधार पर चयनित श्रेष्ठ रचनाकारों की संख्या 21/51/101/151/251 निर्धारित की जाएगी।
  • पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण रचनाएँ प्राप्त होने पर उन्हें संकलित करके आईएसबीएन युक्त काव्य संग्रह के रूप में प्रकाशित किया जाएगा जिसकी पीडीएफ़ प्रति सभी चयनित रचनाकारों को निशुल्क उपलब्ध करवाई जाएगी ।
  • काव्य पाठ में सम्मिलित होने वाले सभी कवियों को प्रतिभागिता प्रमाणपत्र दिया जाएगा ।

प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु नियम एवं  शर्तें :

  1. कविता किसी भी विषय पर, मौलिक एवं स्वरचित एवं किसी भी तरह के कॉपीराइट मामले से स्वतंत्र हो ।
  2. कविता में किसी भी व्यक्ति/समूह/संस्था/धर्म/जाति/स्थान के लिए अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग न हो ।   
  3.   प्रतिभागी अपनी एक से अधिक कविताएँ प्रतियोगिता हेतु भी भेज सकते है ।
  4. हमारे निर्णायक मण्डल का निर्णय अंतिम एवं सर्वमान्य होगा ।

प्रतियोगिता हेतु काव्य रचनाएँ कैसे भेजें ?

उपरोक्त प्रतियोगिता हेतु काव्य रचनाएँ इस लिंक पर उपलब्ध गूगल फॉर्म के माध्यम से ही स्वीकार की जाएंगी : https://forms.gle/FEjQkogFWBmgGvqu9

अंतिम तिथि : 20 सितंबर 2021 

 




तथाकथित बुद्धिजीवी और स्त्री सशक्तिकरण

मैं अपने गांव का सबसे पढ़ा लिखा लड़का हूं , अच्छी सरकारी नौकरी है , शहर में घर भी है जो मेरे पिता जी ने बनवाई है, और मैं 10 लाख सालाना तक कमा भी लेता हूं ।

गांव और मेरे समाज के लोग अपने बेटे को मुझ जैसा बनने की सलाह देते है । और मुझे बुद्धजीवी कहते है , जो असल में मै मेरी सोशल मीडिया और अखबार में लिखे जाने वाले विचारों को पढ़ कर उनको लगता है ।

मेरी कुछ साल पहले शादी हुई खूब धूमधाम से शादी की पूरी पंचायत में इस बात कि चर्चा थी , और होती भी क्यों नहीं दहेज में बहुत सारे रुपए , चार चक्के की गाड़ी , सोने जेवरात और संसाधन के सभी चीजें मेरे पत्नी के पिता यानी मेरे ससुर ने मुझे दिया । और वो उनकी पूरी जीवन के कमाई से भी अधिक का था ।

मै पढ़ा लिखा बुद्धजीवी शादी के बाद पत्नी को महिला सशक्तिकरण के कई पाठ पढ़ाए , लड़का और लड़की के गैर बराबरी के किस्से सुनाए । भाई बहन के बराबरी के लेख पढ़ाए , पिता के संपति में पुत्र के बराबर पुत्री का अधिकार के मार्ग दिखाएं । 

मेरी पत्नी अपनी हक की लड़ाई लडी और हिस्सा ले आई । अब मै छोटे शहर में नहीं रहता बड़े महानगर में घर ले लिया हूं , मेरे पिता जी अब भी वही छोटे शहर के पुराने घर में है और उनका फोन आया था बता रहें थे मेरी बहन अपना हिस्सा लेने आई है , मै विवश हूं क्या करूं उसकी ( मेरी बहन ) शादी के वक्त मैंने जमीन और घर गिरवी रख दिया ताकि उसकी शादी पढ़े लिखे और सरकारी नौकरी वाले लड़के से हो अगर ये जमीन और घर तुम दोनों में बाट के उसका हिस्सा दे भी देता हूं तो ये कर्ज कैसे भरूंगा ( रोते हुए ) । अब मेरे चिंतन में एक तरह मेरी पत्नी एवं उसके पिता और एक तरफ मेरी बहन एवं मेरे पिता और बीच में मै कल के अखबार के लिए महिला सशक्तिकरण पर लेख लिखने की सोच रहा था ।

ताकि कल जब ये छप कर आए तो मेरे गांव मेरे पंचायत के लोग अपने बच्चे को बोल सकें  इसके जैसा बनो ” 

 

रजनीश तिवारी

दिल्ली विश्वविद्यालय 

(एक छोटी सी लेख महिला सशक्तिकरण के अधीन)

 

 




कर्णधार तनय ( महिला सशक्तिकरण के अधीन एक लेख )

मैं गांव का सबसे पढ़ा लिखा लड़का हूं , अच्छी सरकारी नौकरी है , शहर में घर भी है जो मेरे पिता जी ने बनवाई है, और मैं 10 लाख सालाना तक कमा भी लेता हूं ।

गांव और मेरे समाज के लोग अपने बेटे को मुझ जैसा बनने की सलाह देते है । और मुझे बुद्धजीवी कहते है , जो असल में मै मेरी सोशल मीडिया और अखबार में लिखे जाने वाले विचारों को पढ़ कर उनको लगता है ।

मेरी कुछ साल पहले शादी हुई खूब धूमधाम से शादी की पूरी पंचायत में इस बात कि चर्चा थी , और होती भी क्यों नहीं दहेज में बहुत सारे रुपए , चार चक्के की गाड़ी , सोने जेवरात और संसाधन के सभी चीजें मेरे पत्नी के पिता यानी मेरे ससुर ने मुझे दिया । और वो उनकी पूरी जीवन के कमाई से भी अधिक का था ।

मै पढ़ा लिखा बुद्धजीवी शादी के बाद पत्नी को महिला सशक्तिकरण के कई पाठ पढ़ाए , लड़का और लड़की के गैर बराबरी के किस्से सुनाए । भाई बहन के बराबरी के लेख पढ़ाए , पिता के संपति में पुत्र के बराबर पुत्री का अधिकार के मार्ग दिखाएं । 

मेरी पत्नी अपनी हक की लड़ाई लडी और हिस्सा ले आई । अब मै छोटे शहर में नहीं रहता बड़े महानगर में घर ले लिया हूं , मेरे पिता जी अब भी वही छोटे शहर के पुराने घर में है और उनका फोन आया था बता रहें थे मेरी बहन अपना हिस्सा लेने आई है , मै विवश हूं क्या करूं उसकी ( मेरी बहन ) शादी के वक्त मैंने जमीन और घर गिरवी रख दिया ताकि उसकी शादी पढ़े लिखे और सरकारी नौकरी वाले लड़के से हो अगर ये जमीन और घर तुम दोनों में बाट के उसका हिस्सा दे भी देता हूं तो ये कर्ज कैसे भरूंगा ( रोते हुए ) । अब मेरे चिंतन में एक तरह मेरी पत्नी एवं उसके पिता और एक तरफ मेरी बहन एवं मेरे पिता और बीच में मै कल के अखबार के लिए महिला सशक्तिकरण पर लेख लिखने की सोच रहा था ।

ताकि कल जब ये छप कर आए तो मेरे गांव मेरे पंचायत के लोग अपने बच्चे को बोल सकें ” इसके जैसा बनो ” ।

 

रजनीश तिवारी

 दिल्ली विशवविद्यालय




शक्तिहीन

वह मीठे पानी की नदी थी। अपने रास्ते पर प्रवाहित होकर दूसरी नदियों की तरह ही वह भी समुद्र से जा मिलती थी। एक बार उस नदी की एक मछली भी पानी के साथ-साथ बहते हुए समुद्र में पहुँच गई। वहां जाकर वह परेशान हो गई, समुद्र की एक दूसरी मछली ने उसे देखा तो वह उसके पास गई और पूछा, “क्या बात है, परेशान सी क्यों लग रही हो?”

नदी की मछली ने उत्तर दिया, “हाँ! मैं परेशान हूँ क्योंकि यह पानी कितना खारा है, मैं इसमें कैसे जियूंगी?”

समुद्र की मछली ने हँसते हुए कहा, “पानी का स्वाद तो ऐसा ही होता है।”

“नहीं-नहीं!” नदी की मछली ने बात काटते हुए उत्तर दिया, “पानी तो मीठा भी होता है।“

“पानी और मीठा! कहाँ पर?” समुद्र की मछली आश्चर्यचकित थी।

“वहाँ, उस तरफ। वहीं से मैं आई हूँ।“ कहते हुए नदी की मछली ने नदी की दिशा की ओर इशारा किया।

“अच्छा! चलो चल कर देखते हैं।“ समुद्र की मछली ने उत्सुकता से कहा।

“हाँ-हाँ चलो, मैं वहीं ज़िंदा रह पाऊंगी, लेकिन क्या तुम मुझे वहां तक ले चलोगी?“

“हाँ ज़रूर, लेकिन तुम क्यों नहीं तैर पा रही?”

नदी की मछली ने समुद्र की मछली को थामते हुए उत्तर दिया,

“क्योंकि नदी की धारा के साथ बहते-बहते मुझमें अब विपरीत धारा में तैरने की शक्ति नहीं बची।“




मंदिर मस्जिद का बनना

मंदिर मस्जिद का बनना।
दुनियां में सरेआम हुआ।।

आदमी बन न सका बंदा।
रब्ब यूं ही बदनाम हुआ।।

जात पांत का चक्कर बड़ा।
भक्ति का मार्ग ताम हुआ।।

जंगल जंगल भटकता क्यूं?
मन अपना न धाम हुआ।।

खुदा का घर बना ही नहीं।
ईंट गारा जोड़ना काम हुआ।।

रब्ब को कहां ढूंढे रे बंदे।
संग तेरे सुबह शाम हुआ।

दुआ कर मानसिकता बदल।
वही अल्लाह वही राम हुआ।

दुआ कर कही वैद्य भी मिले।
दवा ला जिससे आराम हुआ।।

वो घर भी तो इक मंदिर ही है।
जहां ज्ञान लिया और नाम हुआ।।

भोला पंछी कहीं भला है।
मंदिर मस्जिद में न जाम हुआ।।

गुरदीप सिंह सोहल
Retd AAO PWD
हनुमानगढ़ जंक्शन
(राजस्थान)




तोटक छंद “विरह”

तोटक छंद “विरह”

सब ओर छटा मनभावन है।
अति मौसम आज सुहावन है।।
चहुँ ओर नये सब रंग सजे।
दृग देख उन्हें सकुचाय लजे।।

सखि आज पिया मन माँहि बसे।
सब आतुर होयहु अंग लसे।।
कछु सोच उपाय करो सखिया।
पिय से किस भी विध हो बतिया।।

मन मोर बड़ा अकुलाय रहा।
विरहा अब और न जाय सहा।।
तन निश्चल सा बस श्वांस चले।
हर आहट को सुन ये दहले ।।

जलती यह शीत बयार लगे।
मचले मचले कुछ भाव जगे।।
बदली नभ की न जरा बदली।
पर मैं बदली अब हो पगली।।
=============
तोटक छंद विधान –

जब द्वादश वर्ण “ससासस” हो।
तब ‘तोटक’ पावन छंदस हो।।

“ससासस” = चार सगण
112 112 112 112 = 12 वर्ण
******************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया