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काव्य सागर-5

जय माँ जगदम्बा

माँ जिसे बुलाती जाता माँ दरबार ,माँ कीज्योति जली है ,जग में है उजियार बोलोजय मात दी ।।

बोले जाओ कदम कदम से बढ़ते जाओ माता ने बुलाया है चलते जाओ।।

मिल जाएगा माँ वैष्णव देवी का द्वार माँ वैष्णव देवी का आशिर्बाद माँ की ममता का दुलार !!

तू घट घट बसी घट घट में तेरा रूप तू अम्बे जगदम्बे तेरे चरणों में संसार .!!

शिव ,ब्रह्मा, विष्णु माँ की स्तुति गावे भाग्य पे इतरावे माँ शेर पे सवार ।।

जग हुआ निहाल जग करता दर्शन माँ का अद्भुत श्रृंगार !!

माँ के हाथों शंख, चक्र, गदा ,पद्म त्रिशूल ,तलवार देवो का अश्त्र शत्र शास्त्र जग करता दर्शन माँ का अद्भुत श्रृंगार !!

माँ का रूप देख सूरज चाँद लजाएँ देवन करे बखान का जग करता दर्शन माँ अद्भुत श्रृंगार !!

माँ की चुनरी लाल माथे मुकुट सोहे रतन जड़े हज़ार जग करता दर्शन माँ का अद्भुत श्रृंगार !!

माँ पैरों की पैजानिया जग आँगन में लक्ष्मी का व्यवहार जग करता दर्शन माँ का अद्भुत श्रृंगार !!

माँ गले बैजंती माला नाक में नथिया कान की बाली जग जननी का अद्भुत विग्रह बहार जग करता दर्शन माँ अद्भुत शृंगार !!

नन्द लाल मणि त्रिपाठी (पीताम्बर ) गोरखपुर उत्तर प्रदेश




काव्य सागर-4

5–

माँ तेरे चरणों मे

जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!

तेरे आँखो का दुलार माँ तेरी संतान,
तेरे आँचल का प्यार माँ तेरी संतान
जग आया लेकर अपनी मुराद माँ तेरे द्वार!!

जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!

माँ सबकी भर दे झोली, कोई खाली ना जाये, कोई सवाली ना जाये खाली,
तू जग जननी, तू जग कल्याणी,जग तारणी माँ , नव दुर्गा माता रानी!!

जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!

तू भय भव भंजक निर्भय कारी दुष्ट संघारी छमा, दया, करुणा कि सागर जग तेरी करुणा, कृपा तरस कि दरश में आया मेरी माँ!!

जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!

तू भक्ति कि शक्ति,तू मंगलकारी, शुभ संचारी, अमंगल हारी जग तेरे दर पे दर्शन को आया मेरी माँ!!

जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ,
जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!!

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश




काव्य धारा -3

जै जै जग जननी माँ—

जग जननी ,सकल जगत संसार माँ
दुःख हरणी ,मंगल करनी ,तू तारण
हार माँ जग जननी, सकल जगत संसार माँ।।

दुष्ट विनासक, भय भव भंजक
पल, प्रहर अविरल युग प्रवाह माँ
जग जननी, सकल जगत संसार माँ।।

पाप विनासनी मोक्ष दायनी जगत कल्याण माँ जग जननी ,सकल जगत संसार माँ।।

अपराध क्षामं करती, चाहे जो भी हो गलती तेरी ही संतान युग संसार माँ।।

माँ तेरी महिमा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर गाये तेरी महिमा अपरंपार माँ।।

जग जननी ,सकल जगत संसार माँ देवोँ की देवी स्वर्ग, नर्क, उद्धार माँ।।।

माँ धन ,बैभव, शुख, संपत्ति दाता तेरी महिमा जो नित गावे सकल मनोरथ पावे भव सागर से तू ही करती बेड़ा पार माँ।।

स्वांस प्राण आधार माँ जग जननी ,सकल जगत आधार माँ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




काव्य सागर -2

जै मां काली

जै जगदंबै जै माँ काली, जै जगदंबै जै माँ काली ,वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

जै जगदंबै जै माँ काली, जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

पारिजात का पुष्प और पल्लव प्रणव ध्यान कि धन्य तूं न्यारी!! जै जगदंबै जै माँ काली जै जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

समनिष्ठा कि जागृति ज्योति आत्म बोध कि साहस शक्ति विघ्न विनासक मंगल कारी!! जै जगदंबै जै माँ काली जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

आदि मध्य अवसान अनंत तुम्हीं युग जीवन कि संचारी!!

जै जगदंबै जै माँ काली ,जै जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

सौम्य, साधना ,भाग्य ,भविष्य ,निर्भय निर्झर जीवन कल्याणी!!

जै जगदंबै जै माँ काली जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

उत्कर्ष ,उत्सर्ग, निश्चय, निष्कर्ष विश्व पुरुष कि प्रगति प्रतिष्ठा शुभ ही शुभ कि लक्ष्मी हो तुम दुष्ट दलन कि दुर्गा काली!!

जै जगदंबै जै माँ काली जै जै जगदंबै जै माँ काली वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!!

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




भक्ति सागर

 

शिवोहं शिवोहं शिवोहं चिता भस्म भूषित श्मसाना बसे हंम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

अशुभ देवता मृत्यु उत्सव हमारा शुभोंह शुभोंह शुभोंह शुभोंह शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।।

भूत पिचास स्वान सृगाल कपाल कपाली संग साथ हमारे स्वरों हम
स्वरों हम, स्वरों हम ,शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।।

गले सर्प माला जटा गंग धारा मुकुट मुंड माला देवों हंम, देवों हम,
देवोँ हम ,देवोँ हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

डमरू त्रिशूल शीश चंद्र धरे हम पहने मृग छाला कैलाशम बसेंह
शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

देवता दानव सब शरण हमारे जगत कल्याण धैर्य ध्यान त्रिनेत्र धरे हम देव तत्व की शक्ति अक्षुण सृष्टि रहे सुरक्षित विषपान करें हम विषपान करे हम विष पान शिवोहं शिवोहं
शिवोहं ।।

अकाल का काल महामृत्युंजओ हम
दुख क्लेश हर्ता विघ्न विनाशक हम
पार्वती अर्ध अर्धागिनी अर्ध नारीश्वरों हम अर्धनारीश्वरों हम अर्ध नारीश्वरों हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

वसहा बैल नंदी है वाहन हमारा
रौद्र रुद्र तांडव दुष्ट संघार कारक
औघड़ रूप धरे हम औघड़ रूप धरे हम औघड़ रूप धरें हम शिवोहं शिवोहं
शिवोहं शिवोहं।।

पकवान मिष्टान्न नही प्रिय मुझको
भांग धतूर बेल पत्रम प्रिये हम
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

महादेव ,शिव शंकर, भोला ,गङ्गाधर
आशुतोष पंचाछरी मंत्र ॐ नमः
शिवायः से रीझे हम शिवोहं शिवोहं
शिवोहं शिवोहं।।

पाप शाप विनाशक मोक्ष मुक्ति
प्रदायक कलयुग जीव उपकार
में हम द्वादस ज्योतिर्मय ज्योतिर्लिंग
बसे हम बसे हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




तपोवन

तपोवन

शौर्य प्रखर निखर सूरज पूर्णिमा चन्द्र
हलाहल विष भरा जहां मधुर मिठास अमृत जैसा।।

ऊंचाई गौरी शंकर पर्वत गहराई समुद्र अंतर मन प्रशांत प्रतिदिन मंथन सागर जैसा।।

राष्ट्र समाज दृष्टि दिशा दृष्टिकोण
शाश्वत पुरस्कार वर्तमान में यत्नो रत्नों जैसा।।

प्रतिदिन सत्संग नकारात्मक सकारात्मक के प्रतिकर्षण का
नव चमत्कार उजियार जैसा।।

विश्वाश आश आशाओं आकाश जन चकोर की अभिलाषा जीवन मार्ग उत्सर्ग उत्कर्ष जैसा।।

जीवन तप तपोवन की गमक गन ग्राम जैसा शिव नारायण ब्रह्म त्रिदेव
संपूर्णता की साहस शक्ति जैसा।।

ईश्वर से यही प्रार्थन ना विराम थके ना हारे जब तक पहुंच ना जाये भारत के
जन जन मन द्वारे जीवन के मौलिक
मूल्यों जैसा।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




अनुष्ठान

अनुष्ठान

अनुष्ठान जीवन का चलता रहे
शौम्य शांत संचारित संस्कार
करता रहे।।

भ्रम अनिश्चय का अँधेरा हटे
राष्ट्र समाज गौरव मान प्रकाशित
होता रहे।।

जीवन कि तपस्या का पुण्य प्रताप
प्रसाद युग युवा पीढ़ी का धन्य धरोहर
बनता रहे।।

अनमोल अनूठा पल परम्परा नई परंपरा संपत्ति समय राष्ट्र समाज सत्य
सिद्धान्त फलता फूलता रहे।।

जीवन समय समाज नित नव संग्राम के महारथी सार शात्र शत्र का मार्ग दर्शन करते रहे।।

सौभाग्य अभिमान का समय
काल नित्यका वर्तमान भविष्य
मार्ग दर्शन करता रहे ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




जीवन संग्राम

जीवन का मौलिक मूल्य राष्ट्र

जीवन यात्रा का एक अहम पड़ाव अविरल निर्मल निश्छल निरपेक्ष निर्विकार समाज राष्ट्र हित अनुष्ठान।।

त्याग तपस्या सोच कर्म धर्म दायित्व बोध प्रखर निखर परिणाम।पल प्रति पल वर्तमान पीढ़ी युग की संस्कृति सांस्कार प्रेरक पुरस्कार।।

उद्घोष हर हृदय आल्लादित भाव बोध कर्म क्रांति का संबाद सांचार नित निरंतर नव युग मर्यादा मुल्यों
के नैतिकता पथ का दिग्दर्शक प्रकाश।।

युवा युग चेतना जागरण राष्ट्र निर्माण
सांस्कृतिक पूंजी धन्य धरोहर चल मनोहर मनुहार।।

आभा मंडल से दैदीप्यमान शब्द स्वर समन्वय साहित्य वास्तव वास्तविकता की अतीत वर्तमान का दर्पण भाव।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




जीवन का मौलिक मूल्य

जीवन का मौलिक मूल्य राष्ट्र

जीवन यात्रा का एक अहम पड़ाव अविरल निर्मल निश्छल निरपेक्ष निर्विकार समाज राष्ट्र हित अनुष्ठान।।

त्याग तपस्या सोच कर्म धर्म दायित्व बोध प्रखर निखर परिणाम।पल प्रति पल वर्तमान पीढ़ी युग की संस्कृति सांस्कार प्रेरक पुरस्कार।।

उद्घोष हर हृदय आल्लादित भाव बोध कर्म क्रांति का संबाद सांचार नित निरंतर नव युग मर्यादा मुल्यों
के नैतिकता पथ का दिग्दर्शक प्रकाश।।

युवा युग चेतना जागरण राष्ट्र निर्माण
सांस्कृतिक पूंजी धन्य धरोहर चल मनोहर मनुहार।।

आभा मंडल से दैदीप्यमान शब्द स्वर समन्वय साहित्य वास्तव वास्तविकता की अतीत वर्तमान का दर्पण भाव।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




साहित्य और समय

साहित्य और समय

समय प्रबाह परिस्थिति परिवेश वर्त्तमान की दृष्टि दिशा मार्ग है।।

साहित्य भाव झरना झील नदियां
सिंधु समागम नित्य निरंतता अक्षुण अक्षय उजियार है।।

शब्द ओजस्वी ओज जन जन
मन का आनंद अनुराग राष्ट्र चेतना
क्रांति है।।

संगठित वैचारिक मंथन का अमृतपान
भाँवो की अभिव्यक्ति जन जन का
आवाहन नित्य निरंतर संस्कृति सांस्कार है।।

वर्तमान जन मन की अभिव्यक्ति नित्य निरंतर जीवन मे कल्पना का याथार्त संसार है।।

युग सृष्टि दृष्टि सत्यार्थ महायज्ञ पल
पल जीवन अनंत ईश्वर सत्य प्रदत्त
का आचरण व्यवहार प्रतिविम्ब उजियार है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।