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कृत्रिम मेधा के दौर में हिंदी पत्रकारिता प्रशिक्षण विषयक विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन 27 जून को

फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की 18वीं पुण्यतिथि पर आयोजन संबंधित विशेष समाचार
कृत्रिम मेधा के दौर में हिंदी पत्रकारिता प्रशिक्षण विषयक विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन 27 जून को

हिंदी पत्रकारिता के 200वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता माह 2025’ के अंतर्गत कृत्रिम मेधा के दौर में हिंदी पत्रकारिता प्रशिक्षण विषय पर एक महत्वपूर्ण विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन 27 जून 2025 को शाम 7:30 बजे किया जाएगा।

यह आयोजन ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें हिंदी पत्रकारिता के साथ-साथ सैन्य इतिहास और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतीक रहे फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की 18वीं पुण्यतिथि को भी श्रद्धांजलि दी जाएगी।

इस विशेष कार्यक्रम का आयोजन त्रिपुरा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. आंबेडकर चेयर, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (बठिंडा), आशा पारस फॉर पीस एंड हार्मनी फाउंडेशन, एकलव्य विश्वविद्यालय (दमोह, मध्य प्रदेश), अमरावती ग्रुप ऑफ इन्स्टिच्यूशन, थाईलैंड हिंदी परिषद, जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय तथा सृजन ऑस्ट्रेलिया, सृजन मॉरीशस, सृजन कतर, सृजन मलेशिया, सृजन अमेरिका, सृजन थाईलैंड, सृजन यूरोप, मधुराक्षर आदि अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के सहयोग से किया जा रहा है।

यह आयोजन हिंदी पत्रकारिता में कृत्रिम मेधा (Artificial Intelligence) के बढ़ते उपयोग और उसके प्रभावों पर गहन संवाद को समर्पित होगा, जिसमें विषय-विशेषज्ञ प्रो. संजीव भानावत (प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ, पूर्व अध्यक्ष, जनसंचार केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय और संपादक, कम्युनिकेशन टुडे) अपने विचार साझा करेंगे।

फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की 18वीं पुण्यतिथि के अवसर पर उनके अदम्य साहस, नेतृत्व और भारतीय सैन्य इतिहास में उनके अतुलनीय योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी।

फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिन्हें प्यार से ‘सैम बहादुर’ कहा जाता है, 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व करते हुए देश को ऐतिहासिक विजय दिलाने वाले भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल थे। 27 जून 2008 को उनका निधन हुआ था, और इस आयोजन में उनके योगदान को विशेष रूप से रेखांकित किया जाएगा।

कार्यक्रम में वार्ताकार एवं मंच संचालक की भूमिका वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और ‘सृजन संसार’ अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह के वैश्विक प्रधान संपादक डॉ. शैलेश शुक्ला निभाएंगे।

डॉ. शुक्ला के अनुभव और संवाद शैली इस कार्यक्रम को और भी ज्ञानवर्धक और संवादपरक बनाएगी। इस कार्यक्रम में हिंदी पत्रकारिता के 200 वर्षों के सफर को याद करते हुए डिजिटल युग में पत्रकारिता के बदलते स्वरूप और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रभाव पर चर्चा होगी। इसके साथ ही न्यू मीडिया के माध्यम से हिंदी पत्रकारिता के प्रशिक्षण में आने वाली संभावनाओं, चुनौतियों और नई तकनीकी दिशा पर भी विचार-विमर्श होगा।

इस कार्यक्रम के आयोजन में डॉ. कल्पना लालजी (राष्ट्रीय संयोजक, सृजन मॉरीशस), डॉ. बृजेन्द्र अग्निहोत्री (संस्थापक-संपादक, मधुराक्षर), प्रो. रतन कुमारी वर्मा (जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज), डॉ. हृदय नारायण तिवारी (एकलव्य विश्वविद्यालय), श्री कपिल कुमार (वरिष्ठ पत्रकार, सृजन यूरोप), डॉ. सोमदत्त काशीनाथ (राष्ट्रीय संपादक, सृजन मॉरीशस), श्री अरुण नामदेव (राष्ट्रीय संपादक, सृजन अमेरिका), शालिनी गर्ग (राष्ट्रीय संपादक, सृजन कतर), प्रो. आशा शुक्ला (संरक्षक) और प्रो. विनोद कुमार मिश्रा (मार्गदर्शक) सहित अनेक विद्वानों का योगदान सुनिश्चित किया गया है।

कार्यक्रम की सफलता के लिए श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला (मुख्य संयोजक एवं संस्थापक-निदेशक, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन, लखनऊ) और श्री प्रशांत चौबे (संयोजक, अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन, लखनऊ) का विशेष सहयोग उल्लेखनीय है। यह आयोजन न केवल हिंदी पत्रकारिता में तकनीकी बदलाव और प्रशिक्षण के नए दृष्टिकोण पर विमर्श करेगा, बल्कि भारत के गौरवशाली सैन्य इतिहास के प्रति भी नई पीढ़ी को जागरूक करेगा।

आयोजकों ने हिंदी पत्रकारिता, मीडिया शिक्षण, तकनीकी शिक्षा, रक्षा अध्ययन, अभिलेख विज्ञान और सामाजिक विज्ञान से जुड़े सभी विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों, पत्रकारों और भाषा प्रेमियों से इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में सहभागी बनने का आग्रह किया है।

आयोजन की समस्त जानकारी, पंजीकरण और कार्यक्रम लिंक ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता माह – 2025’ के आधिकारिक लिंक https://tinyurl.com/IHJM2025DetailsLinksQRCodes पर उपलब्ध हैं।

इस महोत्सव में भाग लेने हेतु सभी प्रतिभागियों को पूर्व पंजीकरण आवश्यक है। पंजीकरण लिंक :-  https://tinyurl.com/IHJM2025ForAllPrograms और क्यू आर कोड :- 

कार्यक्रम से जुड़ने के लिए गूगल मीट लिंक – https://tinyurl.com/IHJM2025 और क्यू आर कोड उपलब्ध कराया गया है :-

आयोजन से जुड़ी ताज़ा जानकारी के लिए टेलीग्राम चैनल लिंक : https://t.me/SrijanAustraliaIEJournaL  और क्यू आर कोड :- 

व्हाट्सएप चैनल लिंक : https://whatsapp.com/channel/0029Vakop6x0lwgge8FkKy1v और क्यू आर कोड :- 

और व्हाट्सएप समूह लिंक : https://chat.whatsapp.com/KCXWeRI0jUYEhbcywcxyMa और क्यू आर कोड :- 

आयोजकों का विश्वास है कि यह आयोजन हिंदी पत्रकारिता को नई ऊँचाइयाँ देने के साथ-साथ फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बलिदान और उनकी नेतृत्वगुणों की गौरवगाथा को भी नई पीढ़ी तक पहुँचाएगा।




ऑस्ट्रेलिया में हिंदी : विविध आयाम’ विषयक विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन 9 जून 2025 को

विशेष रिपोर्ट

ऑस्ट्रेलिया में हिंदी : विविध आयाम विषयक विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन

हिंदी पत्रकारिता के 200वें वर्ष के सुअवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता माह 2025’ के अंतर्गत ऑस्ट्रेलिया में हिंदी: विविध आयाम विषय पर एक विशेष विशेषज्ञ वार्ता का आयोजन 9 जून 2025, रविवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 1:00 बजे किया जाएगा। यह कार्यक्रम ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है। इस विशेष वार्ता का आयोजन 16वें अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस के अवसर पर किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिंदी भाषा के वैश्विक परिदृश्य में संरक्षण, अभिलेखीय दृष्टिकोण और डिजिटल प्रौद्योगिकी के माध्यम से अभिलेखागार की नई संभावनाओं को उजागर करना है।

कार्यक्रम का आयोजन त्रिपुरा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. आंबेडकर चेयर, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय (बठिंडा), आशा पारस फॉर पीस एंड हार्मनी फाउंडेशन, एकलव्य विश्वविद्यालय (दमोह, मध्य प्रदेश), अमरावती ग्रुप ऑफ इन्स्टिच्यूशन, थाईलैंड हिंदी परिषद, जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय तथा सृजन ऑस्ट्रेलिया, सृजन मॉरीशस, सृजन कतर, सृजन मलेशिया, सृजन अमेरिका, सृजन थाईलैंड, सृजन यूरोप और मधुराक्षर जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सहयोग से किया जा रहा है। यह आयोजन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा, जो हिंदी पत्रकारिता की विविधता और वैश्विक आयामों को नई दिशा देने का कार्य करेगा।

कार्यक्रम में विषय-विशेषज्ञ के रूप में श्रीमती रेखा राजवंशी को आमंत्रित किया गया है, जो वरिष्ठ लेखिका, साहित्यकार एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय पत्रिका की राष्ट्रीय संयोजक हैं। श्रीमती राजवंशी का हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है।

ऑस्ट्रेलिया में हिंदी के प्रचार-प्रसार, भाषा संरक्षण और सांस्कृतिक समन्वय में उनकी भूमिका को विशेष रूप से सराहा जाता है। उन्होंने हिंदी भाषा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के लिए साहित्यिक रचनाओं, पत्रकारिता और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से निरंतर कार्य किया है।

इस कार्यक्रम में वार्ताकार एवं मंच संचालक की भूमिका डॉ. शैलेश शुक्ला निभाएंगे, जो स्वयं वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, साहित्यकार एवं ‘सृजन संसार’ अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह के वैश्विक प्रधान संपादक हैं।

डॉ. शुक्ला के अनुभव और कुशल संचालन में यह संवाद और भी अधिक विचारोत्तेजक एवं संवादात्मक बन जाएगा।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार, पत्रकारिता, साहित्यिक गतिविधियों और सांस्कृतिक समन्वय के ऐतिहासिक, वर्तमान और भविष्य के परिदृश्य पर विस्तार से विचार-विमर्श करना है। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस के संदर्भ में हिंदी भाषा और पत्रकारिता के अभिलेखीय दस्तावेजों के महत्व, संरक्षण और डिजिटलीकरण पर भी विशेष चर्चा की जाएगी। यह आयोजन डिजिटल युग में हिंदी पत्रकारिता और भाषा के अभिलेखीय संदर्भ में चुनौतियों एवं संभावनाओं का विश्लेषण करने में भी सहायक होगा।

कार्यक्रम के आयोजन में डॉ. कल्पना लालजी (राष्ट्रीय संयोजक, सृजन मॉरीशस), डॉ. बृजेन्द्र अग्निहोत्री (संस्थापक-संपादक, मधुराक्षर), प्रो. रतन कुमारी वर्मा (जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज), डॉ. हृदय नारायण तिवारी (एकलव्य विश्वविद्यालय), श्री कपिल कुमार (वरिष्ठ पत्रकार, सृजन यूरोप), डॉ. सोमदत्त काशीनाथ (राष्ट्रीय संपादक, सृजन मॉरीशस), श्री अरुण नामदेव (राष्ट्रीय संपादक, सृजन अमेरिका), शालिनी गर्ग (राष्ट्रीय संपादक, सृजन कतर), प्रो. आशा शुक्ला (संरक्षक) और प्रो. विनोद कुमार मिश्रा (मार्गदर्शक) सहित अनेक विद्वानों का योगदान सुनिश्चित किया गया है।

कार्यक्रम की सफलता के लिए श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला (मुख्य संयोजक एवं संस्थापक-निदेशक, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन, लखनऊ) और श्री प्रशांत चौबे (संयोजक, अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन, लखनऊ) का सक्रिय योगदान उल्लेखनीय है। यह आयोजन हिंदी भाषा, पत्रकारिता और अभिलेख संरक्षण के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की भूमिका को सशक्त बनाने में मील का पत्थर साबित होगा।

इस महोत्सव में भाग लेने हेतु सभी प्रतिभागियों को पूर्व पंजीकरण आवश्यक है। पंजीकरण लिंक :-  https://tinyurl.com/IHJM2025ForAllPrograms और क्यू आर कोड :- 

कार्यक्रम से जुड़ने के लिए गूगल मीट लिंक – https://tinyurl.com/IHJM2025 और क्यू आर कोड उपलब्ध कराया गया है :-

आयोजन से जुड़ी ताज़ा जानकारी के लिए टेलीग्राम चैनल लिंक : https://t.me/SrijanAustraliaIEJournaL  और क्यू आर कोड :- 

व्हाट्सएप चैनल लिंक : https://whatsapp.com/channel/0029Vakop6x0lwgge8FkKy1v और क्यू आर कोड :- 

और व्हाट्सएप समूह लिंक : https://chat.whatsapp.com/KCXWeRI0jUYEhbcywcxyMa और क्यू आर कोड :- 

आयोजकों ने हिंदी भाषा, पत्रकारिता, अभिलेख विज्ञान और सामाजिक विज्ञान से जुड़े विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों, पत्रकारों और भाषा प्रेमियों से इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में सहभागी बनने का अनुरोध किया है। आयोजन से संबंधित सभी विवरण, पंजीकरण और कार्यक्रम लिंक ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता माह – 2025’ के आधिकारिक लिंक https://tinyurl.com/IHJM2025DetailsLinksQRCodes पर उपलब्ध हैं। आयोजकों का विश्वास है कि यह आयोजन ऑस्ट्रेलिया में हिंदी भाषा, पत्रकारिता और अभिलेख संरक्षण के क्षेत्र में सार्थक संवाद स्थापित करेगा और हिंदी के वैश्विक विस्तार को नई दिशा प्रदान करेगा।




खाद्य पदार्थों का खेत से थाली तक हो सुरक्षित सफ़र

7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर विशेष लेख

खाद्य पदार्थों का खेत से थाली तक हो सुरक्षित सफ़र

डॉ. शैलेश शुक्ला

वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार एवं

वैश्विक समूह संपादक, सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह 

हर साल 7 जून को मनाया जाने वाला विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस न केवल उपभोक्ताओं को सुरक्षित भोजन के प्रति जागरूक करने का अवसर है, बल्कि यह पूरी वैश्विक खाद्य प्रणाली की समीक्षा करने का भी क्षण है। आज जब विज्ञान और तकनीक का स्तर चाँद तक पहुँच गया है, तब भी करोड़ों लोग या तो दूषित भोजन के कारण बीमार पड़ रहे हैं या असुरक्षित खाद्य उत्पादों का शिकार बन रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लगभग 42 लाख लोग असुरक्षित खाद्य के सेवन से मर जाते हैं, जिसमें से बच्चों की संख्या चिंताजनक रूप से अधिक है। ऐसे में यह दिवस सिर्फ सूचना देने या कार्यक्रम आयोजित करने का दिन नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर ठोस नीति निर्माण का दिन बनना चाहिए। भारत जैसे विकासशील देशों में जहां जनसंख्या घनत्व अधिक है और खाद्य श्रृंखला की निगरानी सीमित है, वहाँ यह मुद्दा और भी गंभीर हो जाता है।

भोजन की गुणवत्ता केवल स्वाद और पोषण का मामला नहीं, बल्कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है। आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले पैक्ड फूड, स्ट्रीट फूड और प्रोसेस्ड सामग्री में भारी मात्रा में कीटनाशकों, रसायनों, प्रिज़र्वेटिव्स और मिलावट का प्रयोग हो रहा है। फलों पर वैक्सिंग, दूध में डिटर्जेंट, मावा में सिंथेटिक पदार्थ और तेल में खतरनाक रसायनों की मिलावट आम होती जा रही है। खाद्य सुरक्षा केवल बड़ी कंपनियों की ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती, इसके लिए स्थानीय विक्रेताओं से लेकर रेस्तरां मालिकों, होटलों और यहां तक कि आम गृहणियों तक को जागरूक करना होगा। उपभोक्ता को भी यह जानने का अधिकार है कि उसके भोजन में क्या मिलाया गया है और किस प्रक्रिया से वह उनके घर तक पहुँचा है। यह पारदर्शिता तभी संभव है जब खाद्य सुरक्षा के नियम सख्त हों और उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र और जवाबदेह व्यवस्था स्थापित की जाए।

भारत में FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) इस दिशा में कई सकारात्मक कदम उठा रहा है, जैसे ‘ईट राइट इंडिया’, ‘फूड लाइसेंसिंग’ और ‘स्वच्छ भारत मिशन’ से जोड़कर खाद्य मानकों को बेहतर करना। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि गाँवों, कस्बों और यहां तक कि बड़े शहरों में भी खाद्य निरीक्षण तंत्र बेहद कमजोर है। कई रेस्तराँ बिना लाइसेंस के कार्यरत हैं, खुलेआम अस्वास्थ्यकर खाना परोसा जा रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो खाद्य प्रयोगशालाएं ही उपलब्ध नहीं हैं। यही कारण है कि हर साल फूड पॉइज़निंग, डायरिया, हेपेटाइटिस और अन्य बीमारियों के हज़ारों मामले सामने आते हैं। यह सवाल पूछना ज़रूरी है कि जब भोजन जीवन की पहली आवश्यकता है, तो उसके सुरक्षित होने की गारंटी क्यों नहीं है? क्या यह समय नहीं है कि खाद्य सुरक्षा को भी स्वास्थ्य सेवा की तरह एक मौलिक अधिकार घोषित किया जाए?

खाद्य सुरक्षा केवल स्वच्छता और रसायन मुक्त भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खाद्य श्रृंखला के हर चरण – उत्पादन, संग्रहण, परिवहन, प्रसंस्करण, बिक्री और उपभोग – में गुणवत्ता की निगरानी से जुड़ी है। उदाहरण के लिए, यदि कोई किसान कीटनाशक का अत्यधिक प्रयोग कर रहा है या अनाज को प्लास्टिक में खुले में रख रहा है, तो वह खाद्य असुरक्षा की शुरुआत है। उसी प्रकार, यदि गोदाम में रखे अनाज में नमी के कारण फफूंदी लग रही है या ट्रांसपोर्टेशन के दौरान खुले ट्रकों में खाद्य सामग्री धूल और धूप में प्रभावित हो रही है, तो वह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। इसलिए यह ज़रूरी है कि खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर प्रशिक्षण, लाइसेंसिंग और सतत निगरानी की व्यवस्था हो। डिजिटल ट्रैकिंग, QR कोड आधारित खाद्य ट्रेसिंग और उपभोक्ता फीडबैक जैसे तकनीकी उपायों को अनिवार्य किया जाना चाहिए।

खाद्य सुरक्षा की बात करते समय हमें स्कूलों, आंगनवाड़ियों और सामुदायिक भोजन केंद्रों को भी नहीं भूलना चाहिए। ये वे स्थान हैं जहाँ लाखों बच्चे और महिलाएं प्रतिदिन खाना खाते हैं और यदि यहां की गुणवत्ता खराब हो, तो इसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। मिड डे मील योजना में अक्सर ख़बरें आती हैं कि बच्चों को कीड़े लगे भोजन दिए गए, या रसोईघर में स्वच्छता का अभाव है। यह महज़ लापरवाही नहीं, बल्कि अपराध है। इसके अलावा, सरकारी अस्पतालों, जेलों और वृद्धाश्रमों में दिया जाने वाला भोजन भी गुणवत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। ये संस्थागत स्थान सरकार की सीधी ज़िम्मेदारी हैं और यदि यहाँ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य की बातें खोखली लगती हैं। खाद्य निरीक्षण दलों को इन जगहों पर नियमित और औचक जांच करने का अधिकार तथा संसाधन मिलना चाहिए।

आज की वैश्विक परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा का संबंध केवल स्वास्थ्य से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक न्याय से भी जुड़ गया है। जलवायु परिवर्तन, असंतुलित कृषि नीति, जल संकट और जैव विविधता की क्षति भी अब खाद्य गुणवत्ता को प्रभावित कर रही हैं। यदि मछलियों में पारा की मात्रा बढ़ रही है, तो वह समुद्र की गंदगी का परिणाम है। यदि सब्जियों में नाइट्रेट की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुँच रही है, तो वह ज़मीन की रासायनिक थकावट का संकेत है। इन समस्याओं से निपटने के लिए केवल खाद्य मंत्रालय नहीं, बल्कि पर्यावरण, जल संसाधन, ग्रामीण विकास और शहरी नियोजन विभागों को मिलकर काम करना होगा। बहुस्तरीय नीति और क्रॉस सेक्टोरल प्लानिंग के बिना खाद्य सुरक्षा एक सपना ही बनी रहेगी।

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2025 का विषय है “Safe Food Now for a Healthy Tomorrow” – यानी ‘आज का सुरक्षित भोजन ही कल का स्वस्थ भविष्य तय करेगा’। यह नारा अपने आप में एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। यदि हम आज बच्चों को दूषित खाना खिलाते हैं, तो हम एक बीमार और कमजोर पीढ़ी की नींव रख रहे हैं। यदि हम आज किसानों को केवल रासायनिक खेती की ओर धकेलते हैं, तो हम कल की ज़मीन को बंजर बना रहे हैं। यह समय है जब सरकार, उद्योग, किसान, उपभोक्ता और शिक्षा जगत – सभी मिलकर खाद्य सुरक्षा को एक राष्ट्र-निर्माण की प्राथमिकता बनाएं। केवल विज्ञापन, पोस्टर और एक दिन के उत्सव से कुछ नहीं बदलेगा। बदलाव तभी आएगा जब हर थाली में आने वाले कौर के पीछे एक ईमानदार और पारदर्शी प्रक्रिया होगी।

आख़िर में, खाद्य सुरक्षा केवल ‘क्या खा रहे हैं’ का सवाल नहीं, बल्कि ‘कैसे, कहाँ और किसके माध्यम से खा रहे हैं’ – इसका भी उत्तर मांगता है। जब तक समाज का हर व्यक्ति इस जिम्मेदारी को साझा नहीं करता, तब तक लाखों लोगों की सेहत, भविष्य और ज़िन्दगी असुरक्षित बनी रहेगी। विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2025 हमें यही याद दिलाने आया है कि सुरक्षित भोजन कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक मानवीय अधिकार है। और यह अधिकार तब तक अधूरा है जब तक उसे समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति तक सुनिश्चित न किया जाए।

(लेखक डॉ. शैलेश शुक्ला वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, भाषाकर्मी होने के साथ-साथ ‘सृजन अमेरिका’, ‘सृजन ऑस्ट्रेलिया’, ‘सृजन मॉरीशस’, ‘सृजन मलेशिया’, ‘सृजन कतर’, ‘सृजन यूरोप’ जैसी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के वैश्विक प्रधान संपादक हैं। डॉ. शुक्ला द्वारा लिखित एवं संपादित 25 पुस्तकें प्रकाशित हैं। डॉ. शैलेश शुक्ला भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार (2019-20)’  और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा ‘नवोदित लेखक पुरस्कार (2004)’ सहित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मनो एवं पुरस्कारों से सम्मानित हैं।)