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रिहाई कि इमरती

रिहाई कि इमरती –

स्वतंत्रता किसी भी प्राणि का जन्म सिद्ध अधिकार है जिसे कभी छीना नहीं जा सकता हां कभी कभी प्राणि विशेष कर मनुष्य अपने अहंकार शक्ति दंभ के उत्कर्ष में एक दूसरे को परतंत्र अवश्य बनाते है कभी वर्चस्व के लिए कभी सर्वस्व के लिए युद्ध लड़ कर एक दूसरे को परतंत्र बनाने कि होड़ लगी रहती है तो कभी कभी व्यक्ति खुद के बुने के जाल का परतंत्र हो जाता है तो कभी कभी धोखे फरेब के चाल का शिकार बन परतंत्रता से भयाक्रांत रहता है।

प्रस्तुत कहानी सत्य घटना पर आधारित ऐसे ही एक गुसाग्र छात्र के परतंत्रता के भय को दर्शाती वर्तमान समय को सत्य का दर्पण दिखाती है।

कानपुर में नगरपालिका कानपुर द्वारा कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई कॉलोनी के ब्लाक नंबर 33/1 के मकान में रहता साधारण परिवार जिसके मुखिया बैंक ऑफ बड़ौदा में वॉचमैन बोले तो चौकीदार पद पर कार्यरत बासुदेव मणि त्रिपाठी मगर उन्हें कोई नाम से नही जानता था अधिकतर लोग उन्हें देवता के ही नाम से जानते थे देवता सम्बोधन देने वालों ने उन्हें ऐसे ही नहीं देवता बना दिया था दान वीर कर्न एवं शिवी भी कलयुग में शायद उनके स्तर के होते साफ़गोई क्रोध दुर्वासा जैसा लेकिन पल भर में करुणा के सागर जैसा उछाह भरा ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे कहा जाय तो जथा नाम तथा गुण बासुदेव उर्फ देवता।

परिवार में पत्नी के अलावा तीन बेटे एव एक पुत्री थी परिवार अक्सर गांव ही रहता गांव उत्तर प्रदेश पूर्वांचल का अंतिम जनपद देवरिया का अंतिम गांव था रतनपुरा ।

परिवार रहे या ना रहे भीड़ भाड़ सदा बना रहता था कोई न कोई रहता ही था बहुत दिनों तक भाई के दामाद के भाई भगवान मिश्र साथ रहते थे लेकिन ऐसी परिस्थितियों ने जन्म लिया जिसके कारण बड़े बेटे को गांव से कानपुर लाना पड़ा और परिवार भी रखना विवसता बन गयी ।

वर्ष उन्नीस सौ बहत्तर में देवता अपना परिवार कानपुर अपने साथ रहने के लिए बुलाया देवता नाम के ही देवता नही थे स्वभाव के देवता ही थे एक तो उनके पास सदा बेवजह कि खाने पीने वालो कि भीड़ लगी रहती थी कोई नौकरी के लिए आता कोई किसी मदद लिए आता स्वंय बहुत छोटे पद पर कार्य करते थे देवता लेकीन उनसे लोंगो को ऊम्मीदे बहुत थी बहुत कम वेतन मिलता पैसे के लिए परेशान रहते मगर परिवार के अलावा खाने वालों की भीड़ लगी रहती आलम ये था की अक्सर भीड़ के कारण फर्श पर लोंगो को सोना पड़ता लगता ये था की किसी विगड़े रईस या राजनेता का परिवार ही 33/1 में रहता है ।

ऊपर नेक राम गुप्ता एव प्रभुदयाल शुक्ल रहते थे गुप्ता जी तो कभी कभार आते मगर प्रभुदयाल शुक्ला जी बराबर आते जाते रहते उन्होंने ही बासुदेव मणि त्रिपाठी का नाम देवता रखा था जिस नाम से चर्चित थे ।

सामने एक राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल में कार्यरत बलिया जनपद कि मिडवाइफ रहती थी जिससे देवता एव प्रभुदयाल शुक्ल का छत्तीस का आंकड़ा था।

एका एक एक दिन शाम को देवता अपने साथ अट्ठाइस तीस वर्ष के ठिनगे कद काठी के व्यक्ति को साथ लेकर आये घर मे पहले से ही भीड़ थी माँ ने पूछा ये कौन है पति देवता ने बताय ये है चंद्रेदेखर शर्मा जौनपुर लवाईन खुटहन के निवासी है पत्थर कालेज में डॉ गोविंदा के अंडर दाल पर पी एच डी करते है बहुत कुशाग्र स्कॉलर है समय समाज में युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।

आजाद नगर के में द्विवेदी जी के मकान में किराए पर रहते थे द्विवेदी जी कि लड़की इनके पास पढ़ने लिखने अक्सर इनके पास आती थी मकान मालिक कि लड़की होने के कारण ये बहुत गम्भीरता एवं लगन से उसे पढ़ाते वह बहुत दिनों से लापता है।

द्विवेदी जी ने इन्हें अपनी पुत्री भगाने के आरोप में इन्हे नामजद किया है ये बेचारा भागा भागा फिर रहा है इसकी जान आफत में पड़ी है जमानत हो नही पा रही है अब ये यही रहेंगे जब तक जमानत नही हो जाती एव इनकी व्यवस्था उचित नही हो जाती।
वास्तव में देखने सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा भय दहसत से भयाक्रांत एवं स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक कि फरेब एवं भरोसा टूटने कि गुलामी को अपने ही देश कि कानून व्यवस्था से थी वास्तव में चंद्रशेखर शर्मा अपने समय काल के सर्वश्रेष्ठ एवं होनहार युवा छात्र थे और अपने काल में आदर्श अनुकरणीय थे।

देवता के सामने किसी कि नही चलती कोई कर भी क्या सकता था चंद्रेदेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा देवता के परिवार के अंग बन गए।

देवता उनके जमानत के लिए सी एस शर्मा के साथ दौड़ने लगे धीरे धीरे चंद्रशेखर शर्मा एव देवता का परिवार एक दूसरे परिवार के लग भग अंग बन गए जिसके कारण सी एस शर्मा के ससुराल गांव के सदस्यों का देवता के परिवार में लगभग पारिवारिक सदस्य कि तरह आना जाना शुरू हो गया सी एस शर्मा का विवाह निशा नाम कि लड़की से हुआ था जो मार्कण्डेय शर्मा कि पुत्री थी और उनका परिवार बंगला नंबर चालीस कैंट वाराणसी में रहता में रहता था एवं दो साले थे सी एस शर्मा के जिसमें नरेंद्र शर्मा पी टी टीचर् सीतापुर में कार्यरत थे दूसरा बेटा अध्ययनरत था अपने कार्य के दौरान बहुत दिनों तक वाराणसी रहने का शुभअवसर प्राप्त हुआ है आर्कण्डे शर्मा के परिवार को बहुत खोजने कि बहुत कोशिश कि किंतु कोई पता नही चल सका ।

चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा के जमानत के लिए भाग दौड़ जारी थी मगर इतना चर्चित केश था कि कोई जज या वकील जल्दी इस केश में हाथ डालने को तैयार नही था ।

बड़ी मुश्किल से उस दौर के सबसे बड़े तेज तर्रार वकील जिनके बारे में मशहूर था कि जजों कि खाट खड़ी कर देते है अपनी कुशाग्रता से और उलझे एवं संगीन पेचीदा मामलों में भी निश्चित कोई न कोई राह निकाल देते है ने सी एस शर्मा के जमानत के लिए बातौर वकील पैरबी करने के लिए हांमी भरी।

खास बात सी एस शर्मा के केश में इतनी ही थी कि उनको द्विवेदी जी एवं उनके परिवार को छोड़कर जिनके किराएदार थे सी एस शर्मा को छोड़कर सी एस शर्मा को कोई पहचानता नही था सी एस शर्मा ने होशियारी इतनी अवश्य किया था कि अपना कोई फ़ोटो नही रखा द्विवेदी जी के घर किरायेदार के रूप में नहीं छोड़ रखा था ।

पुलिस के पास सिर्फ लड़की भगाने वाले की हुलिया के रूप में सी एस शर्मा कि हुलिया थी जैसे लंबाई कद काठी रंग आदि।

पुलिस के पास उस दौर में अपराधी का स्केच बनाने कि बहुत सुविधा भी नही थी अतः सी एस शर्मा थोड़ी बहुत सावधानी से बचते रहे ।

वकील नन्दलाल जायसवाल ने जमानत कि फूलप्रूफ योजना बनाई जिसके अंतर्गत किसी भी सुविधा जनक दिन पर सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा को कानपुर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में आत्मसमर्पण करना था ।

जिस उचित दिन को नन्दलाल जैसवाल ने निर्धारित किया था उस दिन देवता कानपुर जिला सत्र न्यायाधीश के न्यायलय में हाजिर हुये और स्वंय को सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा बताया जज ने उन्हें पुलिस कस्टडी में दे दिया और पुलिश ने रिमांड पर लेने हेतु प्रार्थना पत्र दिया।

जज ने सुनवाई व्यस्तता के कारण लंच के बाद करने के लिए समय दिया जिला जज को अन्य विवादों कि सुनवाई में बिलम्ब हो गया और शाम हो गयी न्यायालय समाप्त हो उठने वाला था तब जिला जज के सज्ञान में पुलिस ने सी एस शर्मा के रिमांड पर सुनवाई हेतु आवेदन विचारार्थ प्रस्तुत किया विद्वान न्यायाधीश ने सी एस शर्मा को रिमांड पर दे दिया जब विद्वान न्यायाधीश उठने लगे तब एडवोकेट नन्दलाल जयसवाल ने जज साहब से निवेदन किया कि उनकी बात सिर्फ सुन ले बाद में जो निर्णय लेना हो ले।

नन्दलाल जायसवाल ने कहा योर आनर जिस चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा को रिमांड पर देने हेतु आप द्वारा आदेशित किया गया है वह तो न्यायलय में कभी हाज़िर ही नही हुआ पुलिस कि कस्टडी में जो व्यक्ति है वह है बासुदेव मणि त्रिपाठी उर्फ देवता बैंक ऑफ बड़ौदा में वॉचमैन पद पर कार्यरत और बासुदेव मणि त्रिपाठी उर्फ देवता के पहचान के सारे उपलब्ध दस्तावेज प्रस्तुत कर दिया ।

अब प्रश्न यह था माननीय विद्वान न्यायाधीश के समक्ष कि वह क्या करे क्या न करे चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा के केश कि सुनवाई होती रही उन्हें न्यायलत में हाज़िर मानकर एव रिमांड पर भी देने का आदेश दे दिया कड़ाके कि ठंठ में विद्वान न्यायाधीश महोदय पशीने से नहा गए नन्दलाल जायसवाल के विषय मे मशहूर था कि किसी भी बिगड़े से विगड़े केश को चुटकी में हल कर देते है सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा के केश में भी उनके दिमागी कसरत ने चमत्कार कर दिया विद्वान न्यायाधीश के पास दो ही विकल्प बचे थे एक कि वह पुलिस से कहे कि असली सी एस शर्मा को पकड़ कर न्यायालय में तत्काल हाज़िर करे जो पुलिस के लिए लगभग असंभव था क्योकि लगभग एक वर्ष में पुलिस चंद्रशेखर शर्मा को पहचान तक नही पाई थी हाज़िर करना तो बहुत बड़ी बात थी दूसरा चंद्रशेखर शर्मा कि बेल ग्रांट करे विद्वान न्यायाधीश ने सी एस शर्मा कि बेल ग्रांट कर दी ।

शाम को देवता मूंग कि इमरती चंद्रेदेखर शर्मा को जमानत मिलने कि खुशी में लेकर आये जिसे सब ने छक कर खाया मैंने जीवन मे पहली बार मूंग कि इमरती का स्वाद लिया ।

सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा को पुलिस के दहसत खौफ कि गुलामी से आज़ादी मिली और स्वतन्त्र होकर आजादी से रहने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ और उनकी सामान्य जीवन चर्या शुरू हुई और धीरे धीरे वो देवता के परिवार के अभिन्न अंग बन गए और देवता के परिवार के हर छोटे बड़े विचारों एव व्यवहारों में साझीदार हो गए ।

इसी दौरान आसाम से एक व्यक्ति जो असम में किसी सेठ के यहॉ नौकरी करता था सेठ का आठ हजार रुपया लेकर भागा और कानपुर देवता के घर पहुंचा रहने वाला वह बिहार के दर्जी पट्टी या कही वही का रहने वाला था उसने अपना आठ हजार रुपया देवता को दिया की नही इस तथ्य कि जानकारी मुझे भलीभाँति नही है किंतु सी एस शर्मा अवश्य उस पैसे के लिए बी डी तिवारी जो नेशनल सुगर इंस्टीट्यूट कानपुर में काम करते थे के साथ मिलकर देवता पर कुछ दबाव बनाया यह सोची समझी साजिश थी या खुराफात मैं अब तक नही समझ पाया।

कुछ दिन बाद वह व्यक्ति पुनः पता नही कहा चला गया
सी एस शर्मा न्यायालय से जमानत मिलने के बाद अपनी पत्नी निशा शर्मा को लेकर आये और देवता के परिवार के साथ रहने लगे कुछ दिनों उपरांत उनकी पत्नी ने एक खूबसूरत कन्या रत्न को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से दीपा रखा ।

सन उन्नीस सौ चौहत्तर लगभग दो वर्षों के बाद मेरे यज्ञों पवित सांस्कार में शर्मा जी एव उनकी पत्नी निशा शर्मा मेरे गांव रतनपुरा देवरिया भी आये एकदम पारिवारिक सदस्य की तरह ।

सी एस शर्मा के चाचा बीमार हुये और कानपुर इलाज के लिए आये तब उन्हें उरसिला अस्पताल में एडमिट कराया गया उनकी सेवा मैंने भी बहुत किया ।

सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा के साथ मुझे बहराई च मक्का अनुसंधान फार्म पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ शर्मा जी को अपने रिसर्च के कार्य से जाना था बहराई च मक्का फार्म पर कुछ शोध से संबंधित कार्य था सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा का शोध विषय था जेनेटिक्स और विषय था डाले दालो के प्रजाति को जेनेटिकली अत्यधिक उत्पादक बनाना था एवं उनके एक्सपर्ट थे भारत के मूर्धन्य कृषि विज्ञानी डॉ गोविंदा जो कानपुर पत्थर कालेज में प्लांट पैथोलॉजी पढ़ाते थे सन उन्नीस सौ चौहत्तर में पत्थर कालेज को उत्तर प्रदेश का संभवतः पहला पंडित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय बनाया गया और उसके पहले कुलपति डॉ कैलाश नाथ कौल उर्फ के एन कौल जो तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा जी के मामा लगते थे को बनाया गया उनकी विशेषता ये थी कि वे सिर्फ कुकुरमुत्ता एवं दही है खाते यानी मशरूम एवं दही उस जमाने में उनका दैनिक भोजन भी चर्चा का विषय था।

सी एस शर्मा सन उन्नीस सौ पछत्तर में 33/1 छोड़कर गोविंद नगर किराए के अलग मकान में रहने लगे उसके बाद देवता के परिवार से उनका संबंध टूट गया
मै अपने सेवा के दौरान वाराणसी और फैजाबाद पदस्थापित रहा एवं जौनपुर से भी घनिष्ठ संबंध था उस समय बहुत से ऐसे मेरे मित्रो ने चंद्रशेखर शर्मा से मिलवाने के लिए दबाव बनाया लेकिन संयोग शायद नहीं बन पाया लेकिन यह अवश्य स्पष्ट हो गया कि सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा द्विवेदी जी कि लड़की भगाने के केश से बरी हुए और भारतीय स्टेट बैंक में कृषि अधिकारी नियुक्त हुए और उच्च पद से सेवा निवृत्त हुए साथ ही साथ उनके बचपन के बहुत से मित्रो ने इस बात कि तस्दीक किया कि चंद्रशेखर शर्मा अपने समय काल के बहुत मेधावी प्रदेश स्तरीय छात्र थे जिसके कारण जौनपुर और शाहगंज खुटहन लवाईन का नाम रौशन था।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।




शुभारंभ है इस्वी सन शुभारम्भ 2023

नव वर्ष 2023 कि शुभकामनाएं-

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
लुका छिपी सूरज की बहुत ठंड है।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
शहरों गलियों फुटपाथों पर सोया भूखा जीवन ठिठुर ठिठुर कर तंग है।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
भोर कोहरे कि चादर ओढ़े
आकाश शीत लहर है।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
किसान गावं का संसय में
श्रम व्यर्थ का भय हैं ।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
बीते वर्ष के शुख दुःख हर्ष विषाद
याद संग है।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
वैश्विक मनवावता कही भुखमरी
कुपोषण संक्रमण से लडती कही
यर्थ का जंग है ।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ है
आने वाला पल प्रहर नई चुनौती अवसर उपलब्धि का आगमन शुभ आशा अभिलाषा
अंत नहीं अनंत पथ हैं।।

शुभारम्भ है शुभारम्भ हैं
जाने कितनो को खोया बीते वर्ष ने आने वाला शुख़ शांति वैभव कि आशाओं का अंतर्मन है।।

शुभारम्भ को शुभ बनाए घृणा द्वेष जंगो के मैदानों को त्यागे मानवता कि अलख जगाए बैर भाव में करुणा क्षमा दया कि
अलख जगाए ।।

शुभ आगमन को शुभारम्भ
बनाए मन से गाए शुभारम्भ है शुभारम्भ है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।




हिंदी

 

अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस –

अंतर्मन अभिव्यक्ति है
हृदय भाव कि धारा है
पल प्रहर बहने
और निखरने दो
हिंदी तो अपनी बोली है
इसे जन जन मन से ही
निकलने दो।।

पग अवनी के साथ
मां हिंदी जैसी
आत्म साथ
ममता जननी जैसी है।।

रुदन और मुस्कान
वात्सल्य का स्नेह नेह
जन्म जीवन के
संग साथ साथ ही
चलने दो।।
हिंदी अपनी इसे
जन मन से ही निकलने दो।।

हिंदी आ अह क़ से ज्ञ जन्म जीवन अनुभूति
हिंदी धन्य धरोहर है
पल प्रहर प्रभा
दिवस संध्या निशा
नित्य निरंतर
उदय उजियार को बढ़ने दो।।

स्वर व्यंजन
शब्द अक्षर
साहस करुणा
प्रेम रौद्र
रस छंद अलंकार
गीत काव्य
नाटक कहानी
अतीत वर्तमान
इतिहास वर्णनकरती है
हिंदी तो अम्बर अवनी हैं।।

अटल भाष्य भाव
अंतरराष्ट्र वैश्विक मानवता
प्रवाह
युग चेतना जागरण
जागृति भाव
गौरव गरिमा अपनी है।।

माथे कि बिंदिया
मां भारती श्रृंगार
आचार व्यवहार
मन भावो कि
धारा नित्य निरंतर
बहती हैं।।

काल समय वक़्त
साक्ष्य गवाह
हिंदी मानवता
कि शाहोदरी भगिनी हैं ।।

जनपद क्षेत्र कि
बोली भाषा
कि आत्म प्रभाव
सम्मोहनी हैं।।

प्रस्फुटित
निखार प्रखर है
राष्ट्र भाव
हिंदी खोजती पहचान
राष्ट्र भाषा की
गौरव गरिमा कि
चाहत मिलनी और संवरनी हैं।।

संस्कृत से जन्मी
व्याकरण
समास कहावत
और मुहावरों से
सुसज्जित बोली
भाषा बोली
भाषाओं कि
अलबेली धरणी है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।




आराज पन्नक

-आराच पन्नक-

कहानी अतीत कि घटित सत्य घटनाएं जो वर्तमान एव भविष्य के लिए दिशा दृष्टिकोण का मार्ग प्रदान करते हुए शिक्षा एव संवेदनाओ के लिए प्रेरणा परक होते है ।

रामायण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन ऐश्वर्य का सत्यार्थ ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा प्रस्तुत करते हुए युगों युगों के लिए जीवन एव उसके मौलीक मुल्यों को मर्यदा पुरुषोत्तम के आदर्शों परिपेक्ष में प्रेरित करता है जिसे बाद में गोस्वामी तुलसी दास ने भव्यता प्रदान किया।

महाभारत के परिपेक्ष्य में भी यही सत्य है वेदव्यास जी महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी थे जिनके द्वारा चंद्रवंशियों के जीवन बैभव पराक्रम एवं राजनीति कला आदि का वर्णन महाभारत पुराण के माध्यम से प्रस्तुत किया है जैसे कि ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण के माध्यम से किया है दोनों ने अपने समकालीन घटनाओं को श्लोकों के माध्यम से प्रस्तुत कर अपने वर्तमान से भावी पीढ़ियों युगों को जीवन कि व्यवहारिकता नैतिक आचरण संस्कृति सांस्कार के लिए संदेश एव मार्ग दर्शन दिया है जो तत्कालीन घटनाएं थी आज इतिहास एव कहानियों के रूप में प्रेरित करती मानव समाज को दिशा दृष्टिकोण प्रदान करती है।

रामायण एव महाभारत को धर्म ग्रंथो का दर्जा प्राप्त है इसी प्रकार पंचतंत्र एव अरीबन नाईट काल्पनिकता एव वास्तविकता के समन्वय के रूप में प्रस्तुत है जो प्रासंगिक बन वर्तमान एव युगों युगों कि पीढ़ियों का मार्ग दर्शन करती रहेंगी।

प्रस्तुत कहानी आराच पन्नक जिसका स्पष्ट मतलब होता है विषधर बाण जो समय के साथ नीमा के जीवन बक्ष में प्रहार करता पूरे जीवन कि खुशियों को उलट कर रख देता है और देता है विपत्तियों का पहाड़ भय भयानक जीवन एवं अग्निपथ जिसमें अपनी अग्नि परीक्षा जीवन भर नीमा देती रहती है साथ ही साथ उसकी दो मासूम बेटियों को भी मां के जीवन के अग्नि पथ की तपिश में झुलसना एवं शीतलता कि तलाश का संघर्ष करना होता है ।

कहानी में दो अलग अलग पीढ़ियों कि बेटी नारी के संघर्षों उसके शांत स्वर में हुक वेदना एवं सामाजिक प्रहार कि मार से आहत मर्माहत मूक सिसकियों की वास्तविकता कहता वर्तमान कि बेटियों नारी समाज को प्यापक दिशा दृष्टि कोण प्रदान करता प्रासंगिक सत्यार्थ यथार्थ वर्तमान को प्रेरणा देती है अाराच पन्नक।

कहानी सत्य घटना का साक्ष है जो वर्तमान के शासन समाज को जीवन संघर्षो षड्यंत्रों का आराच पन्नक की तरह उसके परिणाम को प्रस्तुत कर सोचने को विवश करती है ।

कहानी एक ऐसी माँ की है जिसका जन्म सभी भौतिक सुख सुविधाओं के बीच होता है और जीवन संघर्षो एवं संवेदनाओं कि वेदना से नित्य आहत होता रहता है ।

यह कहानी दो बेटियों कि है जिन्होंने अपने पिता को खोया और बचपन से ही समाज के उस विकृत स्वरूप को देखा जिया जो हर पल उनके स्वाभिमान को आहत करता रहा फिर भी हिम्मत नही हारी और माँ बेटियों ने अपने संघर्षो से समय समाज के लिए आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत करते हुए जीवन पथ कि कठिनाईयों चुनौतियों से लड़ने एव जितने के लिए प्रेरित किया है इसी सत्य का साकार करती कहानी हैं आराच पन्नक।

राम रतन सिंह नेपाल से सटे भारत नेपाल सीमा के गांव गेरमा के बहुत प्रतिष्ठित जमींदार थे ईश्वर की कृपा से उनके पास कोई कमी नही थी दो पुत्र रिपुदमन सिंह एव चंद्रमौलि सिंह राम रतन सिंह एवअच्युता के प्रिय संतानों में थे दोनों होनहार एव भारतीय परम्पराओं के अनुरूप थे ।

अच्युता एव राम रतन सिंह को एक बेटी की कमी बहुत अखरती अच्युता के बहुत कहने पर राम रतन सिंह ने कुल पुरोहित पण्डित श्यामा चरण शास्त्री को बुलाया और पत्नी अच्युता की पुत्री कि इच्छा बताई पण्डित श्यामाचरण ने राम रतन सिंह को बताया कि उन्हें एक कन्या का योग बनता है लेकिन इसके लिए अच्युता को माँ दुर्गा की नियमित उपासना एक वर्ष तक करनी होगी जिसके लिए उन्होंने विधि विधान बताया और चले गए।

अच्युता ने पण्डित जी के बताए विधि विधान से माँ दुर्गा की आराधना शुरू किया एक वर्ष बाद उन्होंने राम रतन सिंह को घर मे नए मेहमान के आने की सूचना दी ।

नौ महीने बाद अच्युता ने एक सुंदर कन्या रत्न को जन्म दिया राम रतन सिंह कि वर्षो कि मुराद पूरी हुई राम रतन सिंह के परिवार में खुशियों का कोई ठिकाना नही रहा।

कन्या की आने की खुशी में सर्वत्र ख़ुशनुमा वातावरण था भाई रिपुदमन एव चंद्र मौली नन्ही परी सी छोटी बहन को बहुत प्यार करते बड़े नाज़ से माँ अच्युता ने पण्डित श्याम चरण शात्री को बुलाकर घर कि नन्ही परी का नामाकरण सांस्कार सम्पन्न कराया गया और नाम रखा गया नीमा ।

बेटी लक्ष्मी प्यारी न्यारी
दुलारी खुशियों की किलकारी
बेटी ।
चाहत और प्रतीक्षा मां दुर्गा
साक्षात हैं बेटी अभिलाषा आकांक्षा अवनी आकाश हैं
बेटी ।
नीमा रतन अच्युता की जीवन
प्राण जीवन स्वांस भाग्य भगवान हैं बेटी।।

नीमा बेहद खूबसूरत थी विल्कुल ठाकुर राम रतन सिंह एव अच्युता कि कल्पनाओं के अनुरूप जैसे साक्षात परी उतर आई हो।

नीमा का जन्म भारत की स्वतंत्रता के चौदह पंद्रह वर्ष बाद ही हुआ था देश आजादी के बाद अपने पुनर्निर्माण एव विकास में व्यस्त था उस दौर में लड़कियों कि शिक्षा के प्रति जागरूकता नही थी फिर भी राम रतन सिंह ने बेटी नीमा को बेटो की तरह ही शिक्षा दीक्षा देने का निर्णय ही नही किया बल्कि सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जिससे कि बेटी नीमा की शिक्षा निर्वाध जारी रह सके ।

बेटी नीमा ने भी माँ बाप के अरमानों को पंख लगा दिएऔर बहुत परिश्रम करती अध्ययन में जी जान से जुट गई अपने कक्षा में सदैव अव्वल आकर अपने माँ बाप का नाम रौशन करती रही हाई स्कूल ,इंटरमीडिएट फिर स्नातक स्नातकोत्तर कि शिक्षा पूर्ण कर चुकी नीमा ।

रतन सिंह को एव माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी लेकिन नीमा कोई साधारण लड़की नही थी ईश्वर ने उसे जन्म ही दिया था बेटी नारी की अलग मर्यदा पहचान समय समाज मे स्थापित करने के लिये उसने अपने माँ बाप से प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी के लिए समय मांगा उस समय इलाहाबाद बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था आई ए एस ,पी सी एस कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ।

नीमा ने इलाहाबाद जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी शुरू कर दिया यह वह दौर था जब बालिकाओं कि शिक्षा दर बहुत न्यूनतम थी नौकरी की बात तो बहुत असंभव सी बात थी फिर भी नीमा ने बहुत मेहनत किया और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से उसका चयन जिला कोषागार अधिकारी के रूप में हुआ और पूरे क्षेत्र में नीमा कि सफलता के डंके बजने लगे वर्ष वर्ष उन्नीस सौ उन्यासी अस्सी का दौर था ।

अब राम रतन सिंह और माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी तब नीमा के योग्य वर मिलना भी बहुत कठिन चुनौती थी ।

नीमा संस्कारो में पली समाज के लिए अनुकरणीय लड़की थी अतः वह अपने विवाह के विषय मे सारे नीर्णय अपने माँ बाप एव भाईयों के जिम्मे ही छोड़ रखा था।

बहुत खोज बिन के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित बलिया निवासी जयेंद्र पाल सिंह के सुपत्र धर्मपाल सिंह से नीमा के विवाह तय हुआ ।

पिता राम रतन सिंह एव भाई रिपुदमन एव चंद्रमौलि नीमा के विवाह में कोई कोर कसर नही रखना चाहते थे एक तो पारिवारिक परम्परा एव सम्मान कि मर्यदा के निर्वहन का प्रश्न था तो दूसरी तरफ नीमा के द्वारा लड़की के रूप में स्थापित सामयिक गौरवशाली उपलब्धियों के अनुरूप वैवाहिक स्तर को बनाये रखना दोनों ही मानदंडों पर राम रतन सिंह कमी नही रखना चाहते थे और उन्होंने किया भी ऐसा की सारे जवार में नीमा के वैवाहिक उत्सव के चर्चे थे धर्म पाल सिंह के पिता जयेंद्र पाल सिंह भी बेटे के वैवाहिक समंध से बहुत खुश एव अभिमान कि अनुभूति कर रहे थे आखिर धर्मपाल सिंह एव नीमा के पाणिग्रहण का समय लम्बी प्रतीक्षा के बाद आ ही गया जयेंद्र पाल सिंह बेटे धर्मपाल की बारात लेकर राम रतन सिंह के दरवाजे पहुंचे रतन पाल सिंह ने अपनी क्षमता एव समर्थ में कुछ भी कमी बारात के स्वागत एव जयेंद्र सिंह के बेटे के विवाह कि आकांक्षा नही उठा रखी ।

नीमा और धर्मपाल सिंह का विवाह बड़े धुम धाम के साथ सम्पन्न हुआ नीमा विदा होकर ससुराल गयी बेटी की विदाई के बाद रतन सिंह अच्युता एव भाई रिपुदमन तथा चंद्रमौलि सिंह कि दुनियां में खालीपन सूनापन था जिसकी भरपाई मुश्किल थी क्योकि उस दौर समय मे नीमा जैसी बेटी बहन विरलों को ही नसीब थी ।

पूरे परिवार कि खुशियाँ ही उनसे रूठ कर नीमा के साथ चली गयी हों आखिर नीमा लक्ष्मी का स्वरूप ही थी पूरे घर परिवार में नीमा के विदाई का दर्द साफ झलक रहा था ।

दुनियां का दस्तूर बेटी पराया धन होती है के आगे परिवार के सभी सदस्य मन मार स्वंय को समझाने कि कोशिश करते रहे ।

दिन बिताता गया इधर नीमा के दुल्हन बन घर आने से जयेंद्र पाल सिंह के घर मे जैसे खुशियो की श्रृंखला के रूप में साक्षात लक्ष्मी का ही शुभागमन हुआ हो बहुत लोंगो को जयेंद्र सिंह की किस्मत से ही रस्क होने लगा ।

कहते है ना कि भगवान एव भाग्य कब किसके साथ खड़े हो जाय किससे रूठ जाय कोई नही जानता कोई कर भी क्या सकता था यह तो जयेंद्र पाल सिंह के भाग्य की बात थी।

दिन बीतते गए परिवार की खुशियाँ बढ़ती गयी लेकिन नीमा और धर्मपाल को तो अपनी अपनी जिम्मेदयों को निभाने जाना ही था एक को जिला कोषागार अधिकारी की तो दुसरे को पुलिस उपाधीक्षक कि दोनों की ही नियुक्ति जालौन में थी इधर बेटी की बिदाई से रतन पाल सिंह के परिवार में सूनापन खालीपन था तो बेटे एव लक्ष्मी जैसी बहु के जाने से जयेंद्र पाल सिंह के परिवार में वियोग की उदासी थी।

आखिर नीमा दोनों ही परिवारो के लिए खुशियों कि अनिवार्यता बन गयी थी उसका सबके प्रति व्यवहार भी सबको उसकी तरफ आकर्षित करता लेकिन कोई कर भी क्या सकता था सभी सिर्फ नीमा और धर्मपाल कि खुशियो के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल ईमानदार एव कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी थे आम जनता में बहुत लोकप्रिय एव अपराधियों के लिए काल के समान थे उनका नाम सुनते ही अपराधियो के पसीने छूटने लगते हर अपराधी की यही इच्छा रहती की उसका सामना कभी भी धर्मपाल सिंह से ना हो ।

धीरे धीरे विवाह के तीन चार वर्ष बीत चुके थे नीमा ने बेहद खूबसूरत बेटी को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से नीमा और धर्मपाल ने कावेरी रखा था कावेरी कि किलकारियों से नीमा एव धर्मपाल के घर मे रौनक तो थी ही बाबा जयेंद्रपाल एव नाना रतन सिंह के घर मे भी खुशियों ने दामन फैला रखा था कावेरी कि एक मुस्कान सभी के लिए दुनियां कि सबसे बड़ी नेमत थी ।

धीरे धीरे कावेरी ढाई तीन वर्ष की हो गयी और नीमा दूसरी संतान को जन्म देने वाली थी बहुत पुरानी कहावत है कि भगवान अपने ही चाहने वालो कि परीक्षा लेता है यही सत्य चरितार्थ नीमा के जीवन हुई ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह की शक्तियों के कारण अपराधियों पर कानून का शिकंजा कसता गया अपराधियों के हौसले पस्त होते चले गए जनता को पुलिस के अच्छे आचरण का सत्यार्थ धर्मपाल के रूप में था लेकिन अपराधियों एव पुलिस विभाग के ही कुछ लोंगों को धर्मपाल की कार्यशैली पसंद नही आ रही थी नतीजन पहले तो धर्मपाल सिंह को येन केन प्रकारेण तोड़ने के लिए प्रलोभन आदि का हथकंडा अपनाया जब बात नही बनी तब खतनाक साजिश रच डाली।

साजिश में मोहकमे के ही कुछ लोंगो को शामिल किया जिनके रसूख एव आमदनी समाप्त सिर्फ धर्मपाल की जनपप्रिय कार्य शैली से हुये थी अतः उनके पास धर्मपाल से निपटने का कोई न्यायप्रिय संवैधानिक रास्ता तो था नही अतः धूर्तता कुटिलता की साजिश षड्यंत्र को अपना हथियार बनाया जिसमे मोहकमे के लोगो ने भी साथ दिया जिससे पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह बेखबर अपना कार्य करते रहे ।

एक दिन पुलिस कप्तान के कार्यालय में फोन कि घँटी बजी और सूचना दी गयी कि शातिर अपराधी चौक के पास छुपे है पुलिस कप्तान ने तुरंत धर्मपाल को मौके पर पहुँचने का निर्देश दिया धर्मपाल सिंह पूरे दल बल के साथ मौके पर पहुंचे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नही था कि जिस पुलिस टीम का वह नेतृत्व कर रहे है उनमें साजिश कर्ता भी सम्मिलित है वह सीधे खुफिया सूचना के बताए स्थान पर पहुँचे पता लगा कि अपराधी गुमटी में छिपे हुए है गुमटी बन्द थी पुलिस टीम जिसका नेतृत्व धर्मपाल कर रहे थे उन्हें लगभग सत्यता की जानकारी थी अतः उन्होंने स्वंय गुमटी का दरवाजा खुलवाने के बजाय धर्मपाल सिंह को ही आगे कर दिया जबकि किसी भी अभियान का नेतृत्व दिशा दृष्टिकोण एव टीम कि ऊर्जा का नेतृत्व करता है और सभी विकल्पों कि समाप्ति पर स्वयं मोर्चे पर खड़ा होता है ।

धर्मपाल के साथ उल्टा हो रहा था टीम के सदस्य साजिश कर्ता जिन पर वो गलती से भरोसा कर बैठे थे ने उन्हें आगे कर गुमटी खुलवाने के लिए कहा और पीछे पूरी टीम ज्यो ही धर्मपाल सिंह ने गुमटी पर जोर जोर पीटना शुरू किया अंदर बैठे अपराधियो ने गुमटी खोलने के साथ अंधा धुंध फायरिंग कर दी धर्मपाल सिंह भी तैयार अवश्य थे किंतु उन्हें इतने भयानक अपराधियों के मूव का अंदाज़ा नही था ।

तबातोड़ फायरिंग से सबसे पहले सामने धर्मपाल सिंह एव उनके पीछे खड़े मुश्तैद सिपाहियो पर मौत का कहर बनकर टूट पड़ा धर्मपाल सिंह तो मौके पर घायल अवस्था मे जमीन पर तड़फड़ा ही रहे थे साथ ही साथ उनके पीछे खड़े सिपाही जो जिम्मेदार एव ईमानदार थे एव जिन्हें साजिश की भनक तक नही थी बारह पंद्रह की संख्या में घायलावस्था में जमीन पर तड़फड़ाता रहे थे।

उस दौर में सांचार सुविधाएं आज की तरह बहुत व्यपक नही थी सिर्फ रेडियो एव प्रिंट मीडिया तथा संभ्रांत घरों में ही दूरदर्शन वह भी सिर्फ राष्ट्रीय चैनल ही था जब भी किसी समाचार घटना कि जानकारी प्राप्त करनी होती लोंगो को रेडियो या समाचार पत्रों पर निर्भर रहना पड़ता ।

इतनी बड़ी घटना के घटित होने के बाद एक ही शहर के एक कोने कि खबर दुसरे कोने तक पहुंचते पहुंचते अनेक भ्रम भ्रांतियों की शिकार हो जाती नीमा को जब इस दुर्घटना कि जानकारी हुई उस पर तो जैसे वज्रपात हो गया ।

उंसे समझ मे ही नही आ रहा था कि क्या कैसे क्यूं इस तरह कि घटना ने उसके खुशहाल जीवन मे बिपत्तिया लेकर अाई।

कुछ भी समझ नही आ रहा था आनन फानन वह घटना स्थल फिर अस्पताल की तरफ गयी जहां डॉक्टरों द्वारा धर्मपाल सिंह को मृत घोषित कर दिया गया उसके जीवन मे पलक झपकते ही अकल्पनीय तूफान ने सब कुछ समाप्त कर दिया।

कभी कभार पति धर्मपाल अपने कार्यो के संदर्भ में जिक्र अवश्य करते लेकिन नीमा को ऐसे हादसे की उम्मीद तक नही थी ।

पुलिस मोहकमे में मुड़भेड़ की चर्चा जोरों पर चल पड़ी सर्वत्र यही चर्चा होने लगी कि पुलिस एव अपराधियों के मुठभेड़ में पुलिस कर्मचारी एव अधिकारी शहीद हुए ।

किसी को यह नही समझ आ रहा था कि शहर एव बस्तियों में पुलिस मुठभेड़ नही होती ना तो घटना स्थल जंगल या वीरान बीहड़ था जहाँ अपराधियों के लिए पनाहगाह हो घटना स्थल जनपद का रिहाईसी इलाका था जहां शहरीकरण एव ग्रामीण दोनों का संयुक्त परिवेश था लेकिन अब कुछ भी संम्भवः नही था।

नीमा की दुनियां उजड़ चुकी थी जयेंद्र सिंह एव रतन सिंह को घटना कि जानकारी हुये तो हतप्रद निःशब्द वेदना में डूब गए सभी के समक्ष एक ही यक्ष प्रश्न था आखिर इतनी बड़ी घटना जनपद मुख्यालय पर कैसे घटित हो गयी इसी प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाह रहे थे लेकिन उत्तर किसी के पास नही था ।

इधर पुलिस विभाग ने जांच के आदेश दिए स्थानीय थाने के प्रभारी ने पूरे प्रकरण को पुलिस अपराधियों के मुठभेड़ मानकर किसी भी साजिश से इनकार कर दिया और अपनी आख्या प्रस्तुत कर दी।

नीमा बिल्कुल टूट चुकी थी उसके समक्ष पहाड़ जैसी जिंदगी का कोई उद्देश्य नही नजर आ रहा था इस हादसे के समय नीमा गर्भवस्था में थी कावेरी मात्र ढाई तीन वर्ष की थी नीमा को यह समझ मे ही नही आ रहा था कि अब उसके जीवन का भविष्य एव उद्देश्य क्या होगा आंखों के आंसू सुख गए थे वह सिर्फ देखती जैसे उसकी सुनी आंखे उसके अंतर्मन कि पीड़ा वेदना का दर्पण हो पिता रतन सिंह एव परिवार के लोंगो के पास भी नीमा को दिलाशा देने के लिए कोई ठोस वर्तमान या भविष्य नही प्रतीत हो रहा था।

जयेंद्र सिंह ने बेटा खोया ही था लक्ष्मी बेटी जैसी बहु कि सुनी मांग एव उसका भविष्य सोच कर उनका कलेजा जुबान को आ जाता कावेरी को तो यही नही समझ मे आता कि उसका बचपन कैसे उससे रूठ गया प्रतिदिन पापा का प्यार माँ का दुलार जाने कहाँ खो गया दुःखों के प्रवाह का कोई रास्ता किसी को नही सूझ रहा था सब एक दूसरे को दिलाशा ही देते यह जानते हुए कि कोई रास्ता है ही नही वर्वाद गुलिस्तां को सजाने के लिए।

कहते है वक्त काल समय ही उन समस्याओं प्रश्नों का हल उत्तर दे देता है जो मनुषयः के बस से परे होती है और अपने द्वारा दिये गए जख्मो को मरहम भी वही देता है किसी तरह धर्मपाल सिंह कि अन्त्येष्टि एव अन्य कार्य पूर्ण हुये।

नीमा के जीवन के संघर्ष एव समाज के विकट स्वरूप से लड़ने एव बची जिंदगी में पति के लिए न्याय ही मात्र उद्देश्य था ।

नीमा कि नियुक्ति वाराणसी हुई और पति कि मृत्यु के पांच छ माह बाद उसने दूसरी कन्या को जन्म दिया जिसने अपने आने से पूर्व ही पिता को खो दिया था ।

नीमा के पास धर्मपाल की अमानत दो बेटियाँ थी जिन्हें वह स्वर्गीय पति धर्मपाल के सपनो कि संतान बनाने के लिए संकल्प के साथ जुट गई साथ ही साथ पति को न्याय दिलाने के लिए स्वंय सत्य असत्य न्याय के जंग में कूद पड़ी ।

दूसरी बेटी के जन्म के बाद नीमा जैसे साक्षात नारी शक्ति कि नौ रूपों को स्वंय में आत्मसाथ कर समाज एव वर्त्तमान से अकेले अघोषित संग्राम लड़ रही थी बेटी कल्पना एव कावेरी का लालन पालन अन्य जिम्मेदारियों के साथ एक महिला के लिए बहुत कठिन चुनौती थी जबकि मैके एवं ससुराल पक्ष का नैतिक , भवनात्मक सहयोग नीमा को मिलता रहता फिर भी उसे अपने दुख क्लेश अंतर्मन कि पीड़ा को स्वंय झेलते हुए अपनी लड़ाई पति के लिए न्याय के लिए महत्वपूर्ण एव आवश्यक था ।

छोटी छोटी बेटियों को लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटना भारतीय न्याय प्रक्रिया कि जटिल बोझिल प्रक्रियाओं के झंझावतों से रूबरू होना साथ ही साथ समाज के वेधते व्यवहार से छलनी होते अपने मन मस्तिष्क को संतुलित रखना कहते है –

“नारी ज्वाला नारी अंगारा नारी शीतल शौम्य नारी नैतिकता मर्यदा नारी भाव संवेदना नारी कोमल नारी कठोर नारी माता नारी काली युग संसारी।।

नीमा को नारी के सभी अध्यायों आयामो से गुरजना पड़ रहा था सौम्यता विनम्रता बाबुल एव ससुराल के संस्कारो कि मर्यदा कि ड्योढ़ी नही लांघी।

कावेरी एव कल्पना को अच्छी शिक्षा सांस्कार देने के लिए सारे संम्भवः उपलब्ध प्रायास किये समय के साथ हिम्मत हौसलों से अपने वीरान जिंदगी के चमन को गुलजार करने एव न्याय के लिए हर संघर्ष संग्राम से जूझती रही।

समय कि हर परीक्षा से गुजरती रही समय अपनी गति चाल से चलता रहा और नीमा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश जिसे पिछड़ा कहा जाता है विशेष कर महिलाओं के संदर्भ में के लिए संघर्ष के अध्याय आयाम से नारी शक्ति के समक्ष एक अविस्मरणीय अनुकरणीय आचरण प्रस्तुत करती रही ।

बुलंद हौसलों का दामन समंदर कि लहरों का सानी पत्थरो के सिनो को चीर निर्झर निकलती।।

मरुस्थल को भी समंदर का पुरष्कार देती कठिन चुनौतियों से लड़ती नीमा दुनियां इतिहास बदलती।।

नीमा पति को न्याय दिलाने के लिए निरंतर प्रयत्न शील रहती ईश्वरीय विधान कुछ और ही सोच रहा था एकाकी जीवन का सुना पन अंतर्मन कि वेदना फूटी और एक नई बिपत्ति को लेकर आई नीमा कैंसर जैसे असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गयी वैसे भी उंसका खुशियो और सुखों से बहुत कम दिनों का साथ था।

विवाह एव पति के साथ छूटने तक चार पांच वर्ष बामुश्किल पूरा जीवन दूरुह एव शूलों से भरे रास्तों का संघर्ष बन कर रह गया अब बची खुची कसर कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने का संघर्ष जीवन संघर्षो कि पराकाष्ठा कि असह वेदना सम्भवतः ईश्वर ने भी कठिन से कठिन परीक्षाओं कि अति कर दी ।

पति कि मृत्यु के लगभग बाईस वर्षो बाद वर्ष 2004 में कैंशर की पीड़ा जीवन के संघर्षो के जख्म एव देश के बिभन्न न्यायालयों के चक्कर काटती पति के लिए न्याय कि अधूरी आशा लेकर दो बेटियों को छोड़ जाने कहा चली गयी यदि जीवन सत्य है तो मृत्यु उसका आवरण लेकिन नीमा का जीवन भी मृत्य पीड़ा के समान ही था नीमा चली गयी लेकिन बहुत से अनुत्तरित प्रश्नों को समय समाज के समक्ष छोड़ गई जिसका जबाब समय एव समाज ने कभी जानने कि कोशिश नही की नीमा के नारी अंतर्मन की व्यथा वेदना उसके सुखी आंखे छटपटाहट पति धर्मपाल कि आवनी पर अंतिम छटपटाहट को ही संदर्भित वर्णित करते प्रश्न करते रहे न्याय मांगते रहे।

माँ कि मृत्यु के बाद कावेरी एव कल्पना के समक्ष माँ के अधूरे सपने एव पिता के लिए न्याय महत्त्वपूर्ण थे कावेरी ने दिल्ली के श्रीराम लेडी कालेज से स्नातक कि शिक्षा प्राप्त किया था कावेरी एव कल्पना ने माँ नीमा की अन्तर्रात्मा के भवों के घांवो को बहुत करीब से महसूस किया एवं जिया था।

बेतिया माँ के प्रत्येक पल प्रहर कि साक्ष्य स्वंय थी अतः उनका नैतिक कर्तव्य भी था कि कम से कम माँ एव पिता को उनके कर्मों कि उपलब्धियों से शांति मीले एव उनका नाम उनके भौतिक शरीर मे ना रहते हुए भी समाज के लिए आदर्श प्रेरणा बने ।

कावेरी एव कल्पना एक साथ दिल्ली में रहकर अपने माँ बाप के सपनो की वास्तविकता के लिए संघर्ष का शुभरम्भ किया सारे सुख दुख भूल कर एक मात्र लक्ष्य स्वंय को माँ बाप के अभिलाषाओं एव आकांक्षाओ कि कसौटी पर प्रमाणित प्रस्तुत करना।

ईमानदार सोच निष्काम कर्म किसी भी उद्देश पथ के भयंकर अंधकार को समाप्त कर उजियार का मार्ग प्रसस्त करते है –

उद्देश्यों के उत्साह का पथिक तूफानों भवरों लहरों कि नाव का नाविक।।

उद्देश्य पथ को मोड़ देता समय संसार मे नव अध्याय आयाम सृजन करता काल समय स्वंय स्वागत कर चिराग रौशन करता।।

कावेरी एव कल्पना ने प्रमाणित कर दिया कि असम्भव कुछ भी नही नीति नियत को भी बदलने की क्षमता मानव में ही होती है नारी मानव समाज कि मूल अवयव अवधारणा कि शक्ति समर्थ है अतः उसके लिए काल समय को नई पहचान देना असम्भव नही है ।

हुआ भी यही कावेरी ने वर्ष 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मान जनक स्थान पाकर माँ बाप को गौरवान्वित किया तो कल्पना ने भरतीय राजस्व सेवा में चयनित होकर दोनों बहनों ने अपने दृढ़ संकल्प परिश्रम से जन्म देने वालो को तो महिमा मंडित किया ही अपने जन्म स्थान एव समाज को गौरवशाली एव गरिमा प्रदान किया ।

2013 में तीस वर्षों कि लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायलय द्वारा पिता धर्मपाल के कथित मुठभेड़ के मामले में न्यायलय का निर्णय आया जिसमें आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा न्यायालय द्वारा सुनाई गई जिनको सजा सुनाई गई उनमें कुछ तो मर चुके थे ।

इस न्याय का कोई बहुत महत्व कावेरी कल्पना के लिए नही था क्योकि निर्णय में न्याय ऊबाऊ लंबी प्रक्रिया के बाद आया था जो न्याय नही कहा जा सकता सिवा इसके की माँ नीमा कि आत्मा को शांति मिली होगी ।

आज कावेरी कल्पना को हर व्यक्ति बड़े अभिमान से अपने गांव क्षेत्र परिवार का बता कर अभिमानित महसूस करता है।
कल्पना कि नियुक्ति सहायक आयकर आयुक्त पद पर हरियाणा में ही है ।

प्रति दिन सूरज उसी तरह निकलता है जिस तरह धर्मपाल की मृत्यु के दिन एव नीमा के अंतिम सांस के दिन निकला था फर्क सिर्फ है तो यही की अब सूरज निकलता है तो नीमा धर्मपाल के ब्रह्मांड में विलीन अस्तित्व कि प्रत्यक्ष आभा कि किरणों काबेरी एव कल्पना कि चमक तेज के साथ।।

कहानीकार –
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




अपकर्म

शीर्षक – अपकर्म

भारत के महत्पूर्ण नगरी काशी वाराणसी बनारस कि सांस्कृतिक शैक्षिक प्रवृति से विधिवत परिचित हूं अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास में बहुत से मित्र एवं शत्रुओं को बनाया सिर्फ वाराणसी ही नहीं वाराणसी के आस पास जनपद जौनपुर ,संत रविदास नगर, सोनभद्र ,मिर्ज़ापुर आदि जनपदों में भी मित्रो का अच्छा खासा स्नेह सम्मान मिलता रहता है ।

अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास के दौरान अनेक सूख दुःख के अवसरों पर उपस्थिति रहने एवं भागीदारी का अवसर प्राप्त हुआ है ।

वाराणसी वर्ष 2008 में मेरे एक मित्र के पिता जी कि मृत्यु हो गई जिनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ मै हरिश्चंद घाट पर पहुंचा जहां मेरे मित्र अपने पिता जी के अंतिम संस्कार के लिए लेकर गए थे ।

श्मसान घाटों में मर्णकर्निका का ही धार्मिक महत्व है लेकिन साथ ही साथ यह भी कहावत मशहूर है कि मोक्ष के लिए लोग काशी आते है और शायद विश्व में काशी वाराणसी बनारस इकलौता शहर है जहा मोमुक्षु भवन जीवित लोगों जो मृत्यु कि प्रतीक्षा कर रहे होते है उनके लिए बना है।

यह कुछ अजीब नहीं लगता विश्व में चिल्ड्रेन हाऊस ,ओल्डेन हाऊस मिलेंगे लेकिन डेथ होम नहीं मिलेगा ।

मान्यता है कि अंतिम समय में काशी में शरीर त्याग करने वाले को मोक्ष मिलता है यह बात दीगर है कि काशी में जन्मे महान सूफी संत कबीर दास जी जान बुझ कर अपने जीवन के अंतिम समय में काशी त्याग दिया इस मिथक को तोड़ने के लिए कि काशी में ही मरने वालो को मोक्ष मिलता है और उन्होंने मगहर में आकर शरीर का त्याग किया कहावत यह भी प्रचलित है कि मगहर में शरीर त्यागने वाले को भूनकर नरक कि यतना से गुजरना पड़ता है और आत्मा जन्मों तक मोक्ष के लिए भटकती रहती है ।

खैर बात काशी के श्मसान हरिश्चन्द्र घाट कि कर रहा हूं जहा मेरे मित्र अपने स्वर्गीय पिता के शव को लेकर अंतिम संस्कार के लिए आए थे मेरे मित्र पिता के अंतिम संस्कार कि तैयारी ही कर रहे थे कि चार पांच या अधिक से अधिक दस लोग एक सौ को लेकर आए आए हुए लोगों में चार मरने वाले के पुत्र थे चारों को देखने से लगता है कि भारत के किसी रजवाड़े या किसी बड़े आद्योगिक घराने से है और मृतक उनका बाप हैं ।

हरिश्चंद घाट का अजीब नज़ारा था मै अपने मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में ही व्यस्त था लेकिन नज़ारा कुछ ऐसा था की ध्यान खींचना स्वाभाविक था मृतक के चारो बेटों प्रत्येक के शरीर पर इतने महंगे आभूषण थे जितना किसी आम भारतीय कि कुल जीवन कि कमाई या सम्पत्ति नहीं होती चारो में मृत पिता के अंतिम संस्कार के लिए तू तू मै मै चल रही थी ।

चारो बेटे पहले मृतक पिता को लेकर मर्णकर्णीका ही गए थे लेकिन वहां डोम राजा द्वारा मृतक के पुत्रों के नक्शे एवं पहनावे को देखकर लखो रुपए कि मांग की गई जिसके कारण चारो बेटे मरहूम पिता कि अर्थी लेकर हरिश्न्द्र घाट चले आए यहां आलम और भी वीभत्स था चारो आपस में भिड़ गए कि पिता के अंतिम संस्कार में होने वाला व्यय कौन करेगा चारो एक दूसरे से कहते तुम्हारे लिए पिता जी ने बहुत कुछ किया मेरे लिए कुछ नहीं किया मृतक पिता अर्थी पर भयंकर धूप में अपने भौतिक शरीर कि मुक्ति का तमाशा देख रहे थे।

भीड़ लग गई और भी अर्थियो के साथ आए लोगों ने अपने अपने दुखो को भुलाकर मृतक के चारो बेटों को समझने कि भरपूर कोशिश किया मगर मजाल क्या कोई किसी कि बात सुन तक ले मानना तो बहुत बड़ी बात है।

खैर मामले को बहुत बिगड़ता देख छोटे छोटे बच्चे डोम परिवारों के जिनका एक मात्र कार्य शवों को जलाना ही है और बची लकड़ी कफन आदि बाज़ार मे इकठ्ठा कर बेचना है डोम परिवार के बच्चों के साथ मल्लाहों के बच्चे भी शव जलाने का कार्य करते है एवं आर्थियो कि बची सामग्रियों को बाज़ार में बेचते है यह अच्छा खासा कारोबार है जो जाने कितने परिवारों को दो वक़्त कि रोटी देता है और सरकार पर बोझ कुछ कम करता है एक बात का विशेष ख्याल रखिए वाराणसी में यदि भुट्टे या मूंगफली खाने का सौक रखते है तो कोशिश करे वाराणसी प्रवास के दौरान ये सौक़ त्याग दे क्योंकि भुट्टा एवं मूंगफली या अन्य कोई भी भूजी जाने वाली सामग्री श्मसान के बचे कोयले से भूनी जाती है यदि यदि आप सनातन धर्म के वाम मार्गिय है तो कोई बात नहीं।

खैर बच्चो ने एकत्र होकर पिता के अंतिम संस्कार के लिए लड़ते भाईयों को कहा बाबूजी आप लोग आपस में क्यो लड़ते हैं जो भी खर्च करना हो लकड़ी आदि मंगा दीजिए हम लोग मुफ्त में इनका अंतिम संस्कार कर देंगे किसी तरह चारो भाइयों ने आपस में मिलकर कुछ मन लकड़ियां एवं बेमन से अंतिम संस्कार का सामान खरीदा सामान इतना ही था कि मृतक का सिर्फ एक पैर ही जल सकता था जल्दी जल्दी बच्चो ने चिता सजाए चारो में से एक ने मुखाग्नि दी और अपनी अपनी गाड़ियों में बैठे और चल दिए ।

जाते जाते मरहूम पिता कि अर्थी जलाने के लिए पांच लीटर मिट्टी के तेल का डिब्बा दे गए ।

बच्चो ने आर्थी को वैसे ही निष्ठा से जलाया जैसे वे किसी भी अर्थी को जलाते आस पास के चिताओ कि बची लकड़ी एवं अन्य सामान मांग कर उस बदनसीब बाप के शव को उन बच्चो ने सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जिनका उससे दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था।

मेरे साथ आए मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में लोग अंतिम संस्कार के बाद घरो को लौटने लगे मेरे दिमाग में एक यक्ष प्रश्न बार बार उठता परेशान कर रहा था कि आखिर इस व्यक्ति ने ऐसा क्या कर दिया हैं ?

बेटे बाप कि अर्थी को लावारिस कि तरह छोड़ कर चले गए मै शाम को लगभग छःबजे घर लौटा मगर हरिश्चंद घाट का वह दृश्य बार बार मुझे परेशान कर रहा था सोने कि कोशिश करता रहा मगर नीद जैसे कहीं खो गई हो।

शमशान कि खास बात यह है कि वहां जाने के बाद भले कुछ न करना पड़े थकान बहुत लगती है मुझे सिर्फ यही चिंता सता रही थी कि क्यो बेटों द्वारा मृत्यु के बाद भी अपमानित होता रहा बाप?

लेकिन मेरे प्रश्न या जिज्ञासा का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि मै या कोई भी मरने वाले एवं उसके बेटों के बारे में नहीं जानता था कि कहां से आए हैं कौन है ?

मेरे मन में बार बार यही सवाल उठ रहे थे जो हमें परेशान कर रहे थे जिसका कोई उत्तर मिलने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।
तभी हमारे बहुत पुराने मित्र कमल नयन जी आए रात लगभग बारह बजे अवतरित हुए जबकि प्रति दिन वह मेरे सोने के साथ आते है और दो घंटे साथ रहते हुए देश विदेश कि तमाम घटनाओं बातो पर अपने अनुभवों विचारों को बता कर चले जाते है और मै पुनः घोर निद्रा में सो जाता हूं ।

मैंने एक बार कमल नयन जी से सवाल किया महोदय मैं ही आपको भरत भारत कि एक सौ तीस करोड़ कि आबादी में सबसे बड़ा सियाप मिला आपका भरा पूरा परिवार है जो आपके अवतरण एवं परिनिर्माण को संवेदन शीलता के साथ मनाते हैं कमल नयन बोले मिस्टर त्रिपाठी रिश्ते नाते स्थूल शरीर के होते है स्थूल शरीर कि जीवन परछाई ही उसके सगे संबंधियों के लिए महत्वपूर्ण होता है मै परछाई नहीं हूं मै सत्य हू मैंने कहा मिस्टर आपके कारण लोग मुझे पागल कहते थे मुझे विशेषज्ञ चिकित्सको से परामर्श लेना पड़ा कभी कभी मुझे खुद लगता कि वास्तव में मै पागल तो नहीं हो गया हू मगर चिकित्सको द्वारा क्लीन चीट दिए जाने के बाद मुझे कुछ संतोष हुआ और ब्रेन मैपिंग एवं नार्को टेस्ट नहीं कराना पड़ा।

फिर भी मेरी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा कमल नयन जी का प्रतिदिन सानिध्य किसी आश्चर्य से कम नहीं है जबकि मै भूत प्रेत में विल्कुल विश्वास नहीं करता तब भी कमल नयन जी का सानिध्य मेरे लिए प्रेरणा उत्साह प्रदान करता है अब मेरे जीवन कि शैली में कमल नयन शामिल है और मै कुछ भी प्रयास कर लू अब यह साथ छूटना ना मुमकिन है।

जब कमल नयन आए बोले मिस्टर त्रिपाठी आप परेशान हो शमशान के घटना से क्यो ?
यह दुनिया है मतलब कि बाकी औपचारिकताओं कि बची खुची दौलत अभिमान अहंकार एवं दैहिक इन्द्रिय तृप्ति कि इसके अलावा कुछ नहीं।

कमल नयन ने बताना शुरू किया मेरा भाई बहुत उत्साही एवं आक्रामक स्वभाव का इंसान हवा में ही शरीर त्यागना उसकी विवशता बन गई मै अपने स्थूल शरीर से हवा में उड़ता था मां के मरने के साथ ही न चाहते हुए भी मुझे पारिवारिक विरासत संभालनी पड़ी ।

भरत भारत कि प्रतिष्ठा को चार चांद लगाने के लिए त्रेता कि स्वर्ण नगरी में अपनी शक्ति कि सेना भेजी माल द्वीप जैसे छोटे से राष्ट्र कि अक्षुण्ण सत्ता के लिए अपनी शक्ति भेजी बहुत ऐसे कार्य किए जिससे राष्ट्र समाज आज गौरवशाली और मजबूत हुआ मगर दखिए शांति का दूत बनकर त्रेता कि स्वर्ण नगरी गया था वहीं के उग्र संवेदनाओं के खतरनाक इरादों ने मुझे ही बारूद से उड़ा दिया मैंने ईश्वर अल्ला जीजुस गुरु कि सत्य ईश्वरीय सत्ता का सम्मान किया मुझे अपरिपक्व स्वीकार करने में कोताही हुई क्या कहूं षडयंत्र या प्रारब्ध तो मिस्टर त्रिपाठी जिस के लिए आप परेशान और जानना चाहते है तो सुने।

चारो बेटे मरने वाले के ना तो प्रारब्ध थे ना ही समय काल परिस्थितियों कि देंन सिर्फ क्षुद्र मानसिकता के स्वार्थ तुष्टि के पुतलों जो मृतक के पुत्र थे उनका स्वाभाविक जीवन मूल्य आचरण था।

परेशान होने की कोई बात नहीं मै जब स्थूल शरीर से दुनिया में था तब इतनी व्यस्तताएं थी कि कुछ भी जानने सुनने का समय नहीं मिलता था स्थूल शरीर के छुटने के बाद ब्रह्माण्ड में विचरण करता हूं अतः मरने वाले एवं उसके पुत्रो को भली भांति जानता हू ।

बड़ी विनम्रता पूर्वक कमल नयन जी से अनुरोध किया कि आप मृतक एवं उसके परिवार एवं श्मसान पर उसके पुत्रो के आचरण बताने कि कृपा करे।

बहुत अनुनय विनय करने के बाद कमल नयन जी ने बताना स्वीकार किया और बताना शुरू किया।

कमल नयन ने बताया कि जिस मृतक के विषय में चितित हूं वह बिहार का रहने वाला है एवं उसके पिता धीरेन्द्र सिंह बहुत गरीब थे और अपने जमाने में किसी तरह परिवार के गुजारे के लिए छोटे मोटे कार्य किया करते थे।

उन दिनों देश अंग्रेजो का गुलाम था और स्वतंत्रता आंदोलन का जोर गांव गांव तक फैला था बड़ा बुजुर्ग नौजवान हर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कि लड़ाई लड़ रहा था उस दौर में धीरेंद्र सिंह ( कलपनिक नाम)ब्रिटिश हुकूमत कि मुखबिरी करता था जिसके कारण उसे कुछ पैसा मिल जाता था मगर स्वतंत्रता आंदोलन के आंदोलन कारियो को धीरेन्द्र सिंह ने अपनी मुखबिरी से पकड़वाया जिससे आंदोलनकारियों को बहुत प्रताड़ना झेलनी पड़ी देश जब आजाद हुआ जाते जाते अंग्रेजो ने धीरेन्द्र सिंह को बहुत बड़ा फार्म हाउस मुफ्त में दे दिया ।

धीरेन्द्र सिंह ने अंग्रेजो के जाने के बाद मीले फार्म हाउस के बदौलत इलाके का बड़ा रसूखदार व्यक्ति बन गया और उसने अपने परिवार को समाज एवं क्षेत्र में प्रतिष्ठा दिलाने हेतु कुछ नेक कार्य भी किए गए लेकिन उसकी पीढ़ी के लोग उसे देश द्रोही के रूप में ही देखते थे धीरेन्द्र का परिवार बहुत फला फुला लेकिन उसके वर्तमान एवं समाज ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया उसका एक ही बेटा था हुकुम सिंह (काल्पनिक नाम) उसके चार बेटे हिम्मत सिंह ,हरमन सिंह ,हौसला सिंह एवं हिमांशु सिंह जो (काल्पनिक नाम)उसे लेकर श्मसान तक आए थे जीवन काल में हुकुम सिंह ने बेटों को उच्च शिक्षा दिया और सभी के भविष्य कि बेहतरी के लिए अलग अलग व्यवसाय कराए हुकुम सिंह का परिवार दो चार जिले में प्रतिष्ठत एवं रसूखदार परिवार मात्र दो पीढ़ी धीरेन्द्र सिंह एवं हुकुम सिंह तक बन गया कहते है धन दौलत तो मिल सकता है मगर संस्कार खून से ही मिलता है जो धीरेन्द्र सिंह के कुनबे के साथ सत्य प्रतीत हो रहा था।

शिक्षित बेटों ने अपने अपने व्यवसायों में बहुत प्रगति कि धीरेन्द्र सिंह के पोतो ने उनके जीवन कि दरिद्रता के नामो निशान मिटा दिया लेकिन दौलत का यह महल धीरेन्द्र सिंह कि देशद्रोह एवं देश भक्तो कि आह कि बुनियाद पर खड़ी थी तो बाप हुकुम सिंह के क्रूर एवं अमानवीय अहंकार के अरमानों पर बनी थी।

धीरेन्द्र सिंह अंग्रेजो कि दलाली करता देश भक्तो को प्रताड़ित करवाता तो हुकुम सिंह स्वतंत्र देश के विकसित हो रहे समाज पर जुल्म कि सारे हदे तोड़ देता देश कि आजादी के बाद एवं अंग्रेजो से मिले फार्म हाउस एवं दौलत कि बुनियाद पर हुकुम सिंह को जन्म के साथ ही दौलत का दरबार मिला हुआ था जिसके सिंघासन पर बैठकर वह अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता रहता जब हुकुम सिंह जवान हुआ और उसका बाप धीरेन्द्र सिंह जीवित था तब हुकुम का व्यवहार समाज लोगों के प्रति बेहद बहसियाना हुआ करता किसी भी नवयौवना पर उसकी नज़र पड़ने भर कि देर थी वह ऐंन
केन प्रकारेन हासिल करता धीरेन्द्र सिंह के पास शिकायत आने पर कुछ मामलों में ले दे कर समझौता कर लेता तो कुछ मामलों में दबंगई से दबा देता।

धीरेन्द्र सिंह के मरने के बाद हुकुम सिंह का जब जमाना कायम हुआ तब उसने लगभग दस कोस के आस पास के सभी गांवों में लौड़ी या यूं कहे कि बिना काम के दासी पाल रखा था जिसका काम था गांव में जवान कुंवारी कन्याओं के बारे में जानकारी देना एवं हुकुम सिंह के लिए उसे प्रस्तुत करना अपने इस विशेष शौख के लिए हुकुम सिंह ने घर से अलग कुछ दूरी पर एक डेरा गोठा बनवा रखा था जहां वह अपने शौख को अंजाम देता उसके इस शौक के कारण कितनी ही लड़कियों ने दम तोड दिया जिनके शवों को हुकुम सिंह के बेटे ठिकाने लगाते थे पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती क्योंकि हुकुम सिंह का कद बहुत ऊंचा था मरने वाली लड़कियों के मां बाप को हुकुम सिंह कुछ नगद दे देता कुछ दिन कि वेदना के बाद मां बाप को सब भूलना पड़ता।

मैंने कमल नयन जी से यह पूछना उचित नहीं समझा कि क्या स्वतंत्र राष्ट्र में भी ऐसी क्रूरता के का तांडव संभव हैं क्योंकि मैंने स्वयं अपने गांव में हुकुम सिंह के हज़ारांश व्यक्ति का आचरण भी हुकुम सिंह कि ही तरह था वह भी ईश्वर द्वारा दिए समय काल कि शक्ति का अपने शौख के लिए सदुपयोग करता था तब भी पूरा गांव जनता था लेकिन कुछ नहीं बोलता इसीलिए कमल नयन कि किसी भी बात पर मुझे कत्तई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि भारत में जीवित नर भक्षी इंसानों के एक बड़े समाज कि वास्तविकता के सत्यार्थ से परिचित करवाया।

हुकुम सिंह के चारो बेटे अपने पिता कि कार गुजारियों से परिचित थे बल्कि सहयोगी थे अतः हुकुम सिंह के जीवित रहते ही बेटों का आचरण बिल्कुल बेटों कि तरह न होकर पट्टीदार भाईयों कि तरह हो गया जो बूढ़े होने पर हुकुम सिंह को बहुत अंखरता लेकिन उसके कर्मों के परिणाम का दर्पण उसकी खुद कि संताने ही थी जब हुकुम सिंह शरीर से कमजोर एवं हो गया एवं पारिवारिक मामलों में उसकी पकड़ कमजोर हो गई तब बच्चे ही उसे प्रताड़ित करते पीटते वह यह सब बर्दास्त करने को विवश था क्योंकि उसने अपने जीवन काल में यही बोया था जो विष वाण कि फसल बन उसके जीवन में ही उसके कर्मों को धीरे धीरे लौटा रही थी ।

कमल नयन जी ने बताया कि हुकुम सिंह के चारो बेटे इसे गांव के गड़ही के किनारे ही जलाने वाले थे वो तो हुकुम के पुरोहित पण्डित चतुअरानान मिश्र(काल्पनिक नाम) ने समझाया कि यदि बाप कि अर्थी को लेकर चारो बेटे काशी के पावन परिक्षेत्र में लेकर चले गए और वहा दाह हुआ तो पिता के कुकर्मों कि छाया बेटों पर नहीं पड़ेगी या कम हो जाएगी पण्डित चतुरान एक तो अपने यजमान हुकुम सिंह के प्रति अपने पुरोहित धर्म के दायित्व को निभाने के लिए एवं हुकुम कि सद्गति के लिए उसके चारो बेटों को हुकुम कि अर्थी को काशी ले जाने का सुझाव दिया साथ ही साथ उनको यह तथ्य भी मालूम था कि हुकुम सिंह कि जो संताने उसे जीवित रहते पिटती थी प्रताड़ित करती थी वह उसके शव को काशी तक लेकर एक साथ पहुंच पाएंगी संदेह है यदि एक साथ पहुंच भी गई तो शव दाह तक एक साथ नहीं रह पाएंगी और आपस में लड़ झगड़ कर हुकुम के अंतिम संस्कार को ही उसके पापों के प्रश्चित का प्रमाण बना कर दुनियां के सामने प्रस्तुत कर देंगे।

वैसा ही हुआ हुकुम सिंह के चारो बेटे हुकुम कि अर्थी लेकर पहले मर्ण कर्णिका लेकर गए वहा डोम राजा के यहां बवाल काटा फिर हरिश्चन्द्र घाट पर भयंकर धूप में हुकुम सिंह के शव को भूनने के लिए रख आपस मै लड़ते रहे दुनियां तमाशा देखती यही अंदाज़ा लगाती रही कि इतने बड़े आदमी कि मृत्यु के बाद इतनी दुर्गति क्यो अपने बेटे ही उसके साथ पल भर नहीं ठहरना चाहते
कहावत है कि जीवन के कुकृत्यो एवं पापो का हिसाब व्याज के साथ बढ़ता रहता है यदि कोई ईश्वर को मानता है या नहीं मानता है दोनों ही स्थिति में कर्मो का हिसाब तो किसी ना किसी रूप में चुकाना होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पठान का कर्ज़ा यदि किसी ने पठान से सूध पर कर्ज ले लिया और जीवित रहते वापस नहीं कर सका तो मरने के बाद पठान आता है और घर वालो से मृतक द्वारा लिए कर्जे कि मांग करता है कर्ज़ा अदा हो जाने पर चला जाता है कर्ज़ा अदा न हो होने कि स्थिति में मृतक कर्जदार के परिजनों के सामने मृतक के मुंह में पेशाब कर यह कहते हुए चला जाता है कि कर्ज अदा हो गया यही इसी सत्य का साक्षी था मृतक हुकुम सिंह का शव एवं दाह चिंतित मत हो मिस्टर त्रिपाठी यह दुनिया हैं ।

कमल नयन का खूबसूरत अंदाज मुस्कुराता चेहरा जिंदा दिल अंदाज बोले टूमारो अगैन मिस्टर त्रिपाठी और प्रतिदिन कि तरह स्नेह नेह कि बारिश कि घोर निद्रा का चादर ओढ़ा गए।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश




प्लेटफार्म

प्लेटफार्म –

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी कभी कुछ ऐसे पल प्रहर आते है जो बिना प्रभावित किए नहीं रहते है एवं जिनका प्रभाव व्यक्तित्व पर जीवन भर लिए पड़ता है ।

ऐसे ही अविस्मरणीय पल प्रहर का सत्यार्थ मेरे साथ जुड़ा है जो बरबस मेरे व्यक्तित्व को प्रभावित किए बिना नहीं रह पाता एक दिन की मुलाकात जीवन में उत्साह ऊर्जा एवं उद्देश्य पथ के सफलता के लिए अनुराग का शुभारम्भ कर गई।

जिसने मुझे जीवन में सदैव दिशा दृष्टिकोण प्रदान किया जो मेरे लिए जीवन कि अनमोल धरोहर है जिसे शायद ही मै भूल पाऊ ।

कहानी वास्तविकता के
भावनात्मक कि पृष्ठ भूमि पर एक सकारात्मक अनुभूति है जिसमें संकल्पों संघर्षों कि वास्तविकता का सत्यार्थ है तो जीवन एवं संस्थागत मौलिक मूल्यों कि वास्तविकता का वर्तमान तथा भविष्य के लिए संदेश को प्रवाहित करता रिश्तों एवं संवेदनाओं को झकझोरते हुए हृदय स्पंदित करता है।

भूपेंद्र दीक्षित जी व्यक्ति ही नहीं संपूर्णता के व्यक्तित्व थे जो विश्वाश कि विराटता का शिखर तो पराक्रम प्रेरणा का पथ प्रकाश कहा जा सकता है दीक्षित जी ने जन्म के साथ जीवन यात्रा के अनेकों अध्याय आयामों के शुभारम्भ के प्रायोजक पुरुषार्थ के साथ साथ समापन कि खूबसूरती के खास सार्थक सत्यार्थ भी है।

मेरी क्या किसी भी व्यक्ति की जिज्ञासा उनसे मिलने के बाद उनके शुभ मंगल सानिध्य के शुभारम्भ से लाभान्वित एवं स्वयं के जीवन के शुभ शुभारम्भ के मानदंडों को स्थापित करना चाहेगा।

बात सन उन्नीस सौ अस्सी कि है
देवरिया रेलवे का प्लेट फार्म मेरे साथ भूपेंद्र दीक्षित बहुत योग्य विनम्र प्रतिष्ठित एवं ख्याति लब्ध व्यक्ति थे जिन्हें मै रेलवे स्टेशन छोड़ने गया था ।

क्या गजब व्यक्तित्व लम्बी काया श्याम वर्ण में आकर्षक प्रभावी व्यक्तित्व मुस्कुराता चेहरा धोती कुर्ता गले में सोने का चेन बात चीत कि अपनी अद्भुत शैली निश्चित रूप से किसी को भी प्रभावित करने के लिए पर्याप्त ।

ट्रेन लगभग चार घंटे बिलंब थी उस समय इतना तेज संचार माध्यम नहीं था अतः प्लेटफॉर्म पर पहुंचने पर जानकारी हुई कि ट्रेन चार घंटे बिलंब से आएगी मैंने ही कुछ ऐसी बातों को छेड़ना उचित समझा जो हम दोनों कि उम्र में बाप बेटे का अंतर होने के बावजूद सकारात्मक एवं ज्ञान वर्धक हो।

देवरिया रेलवे स्टेशन का नवीनीरण मीटर गेज से ब्राड गेज में परिवर्तन के कारण चल रहा था और कुछ दिन पूर्व ही वहां एक दुर्घटना जानकारी के अभाव में घटित हुई थी प्लेट फॉर्म को ऊंचा किया गया था और ट्रेन अभी मीटर गेज कि ही चल रही थी लोकल पैसेंजर ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी ज्यो ही प्लेट फार्म में दाखिल हुई बहुत से यात्री जो आदतन कहे या भीड़ के कारण या जल्दी उतरने के लिए किसी भी कारण से ट्रेन के दरवाजे के समीप खड़े थे या लटके थे उनको अंदाज़ा नहीं था कि प्लेटफॉर्म को ऊंचा किया जा चुका है जिसके कारण जल्दी उतरने के चक्कर में यात्रियों के पैर कट गए यह दुर्घटना दुर्भाग्य पूर्ण अवश्य थी।

जब मैंने दीक्षित जी को घटना का वृतांत बताया तब हतप्रद रह गए और फिर उन्होंने बात बदलते हुए मेरी शिक्षा अध्ययन के विषय में जानकारी चाही जब मैंने उन्हें बताया और उनको पता लगा कि मेरे अध्ययन के विषयों में भौतिक विज्ञान भी है तब उन्होंने भौतिक विज्ञान का मेकेनिक्स ही पढ़ाना शुरू कर दिया उन्होंने रेल इंजन कि डिजाईन एवं निर्माण कार्य प्रणाली को ही पढ़ा दिया उनके द्वारा कुछ घंटो पर प्लेटफॉर्म पर दी गई जानकारी इतनी स्पष्ट है की आज भी मै लगभग बयालीस वर्षों बाद भी रेल इंजन को पूरा एसेंबल कर सकता हूं।

सिर्फ याद को ताज़ा करने के लिए कुछ समय लग सकता है इतना ग्राह व्यक्तित्व था भूपेंद्र दीक्षित जी का रेल इंजन कि पूरी मेकेनिक्स बताने के बाद उन्होंने पुनः केंद्रीयकृत यातायात नियंत्रण प्रक्रिया बताना शुरू किया जो सम्पूर्ण भारत में छपरा बिहार से गोरखपुर उत्तर प्रदेश तक ही सिर्फ पूर्वोत्तर रेलवे में प्रयोगातमक लागू थी।

यह तकनीकी देवरिया जनपद के रोपन छपरा निवासी स्वर्गीय लाल जी सिंह जी द्वारा रेल में सेवा के दौरान जापान लाकर प्रयोगात्मक रूप से छपरा से गोरखपुर के बीच लगाया गया था ।

दीक्षित जी ने सी टी सी सेंट्रालाईज ट्राफिक कंट्रोल सिस्टम को बताना शुरू किया और पूरा सी टी सी सिस्टम ही स्पष्ट कर दिया मुझे यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि उनकी जानकारियों ज्ञान कि कोई सीमा भी है या नहीं धीरे धीरे ट्रेन सात बजे शाम आने वाली पांच घंटे बिलंब हो गई।

मै बार बार उनसे अनुरोध करता रहा कि घर लौट चलते हैं पुनः ट्रेन के समय पर लौट आएंगे लेकिन उन्होंने कहा प्लेटफार्म है इंतज़ार के लिए क्या बुरा हैं साथ ही साथ उनको यह अनुभव होने लगा कि मेरा किशोर मन अब ज्ञान के बोझ से बोझिल हो गया है तब उन्होंने विषय बदल दिया और मुझे दिशा दृष्टि दृष्टि
कोण देने के लिए अपने जीवन के मौलिक मूल्यों एवं संघर्षों के विषय में बतलाना शुरू किया और अतीत कि यादों में खो गए।

अपने जीवन के महत्वपर्ण पल प्रहर अनुभवों को साझा करने लगे उन्होंने बताया कि पिता श्री जानकी दीक्षित गाव हरपुर दीक्षित बिहार सिवान जिले का एक परंपरागत गांव के किसान थे छ भाई थे पिता जी के पास खेती के अतिरिक्त कोई आय का साधन नहीं था लेकिन उन्होंने अपने सभी बेटों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया और सबके लिए शिक्षा कि उचित व्यवस्था करते हुए हर संभव सुविधाओं को उपलब्ध कराया बड़े भाई ने कानून कि पढ़ाई पूरी किया उनका विवाह हुआ और एक पुत्र के पिता बनने के बाद बहुत कम आयु में ही निधन हो गया ।

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद टाटा जैसे प्रतिष्ठत संस्थान टाटा स्टील में बतौर इंजिनियर अपना कैरियर प्रारम्भ किया उन्होंने अपने जीवन के नैतिक मूल्यों एवं सिद्धांतो पर मुझे गौर कर जीवन में चलने के लिए शिक्षा दी।

भूपेंद्र दीक्षित वास्तव में कर्मठ समर्पित योग्य इंजिनियर थे और टाटा जैसे विश्व प्रतिष्ठत संस्थान के महत्पूर्ण एसेट थे जिसे उन्होंने अपने कार्यों से प्रमाणित किया ।

दीक्षित जी ने लौह कचरा आयरन मड को परिष्कृत कर उससे पुनः स्टील के उत्पादन का विधिवत शोध टाटा समूह के समक्ष प्रस्तुत किया जो समूह के लिए महत्पूर्ण एवं आर्थिक रूप से बहुत फायदे मंद था।

टाटा समूह के द्वारा वर्ष उन्नीस सौ सत्तर में दीक्षित जी के महत्पूर्ण शोध के लिए बीस हज़ार कि नगद धनराशि एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया एवं उनके कार्यों को अपने सभी स्तरो पर आदर्श कार्य के रूप में प्रचारित एवं प्रसारित किया गया जिससे कि समूह के अन्य कर्मचारियों एवं अधिकारियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े ।

दीक्षित जी कि इस महत्वपूर्ण उपलब्धि से टाटा समूह को भी अभिमान था टाटा समूह भारत ही नहीं वल्कि सम्पूर्ण विश्व में उद्योग जगत के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय हैं कि टाटा समूह द्वारा अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों कि सुविधाओं का विशेष ध्यान दिया जाता है कहावत है टाटा समूह व्यवसाई कम मनविय मूल्यों कि गुणवत्ता का सम्मान करने वाला उद्योग समूह है जिसके कारण बहुत से उच्च पदों के सरकारी अधिकारी सरकारी सेवा छोड़ कर टाटा समूह को अधिक पसंद करते हैं इस कड़ी में अजय सिंह भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी का जिक्र करना चाहूंगा जिन्होंने भारत सरकार के सम्मानित उच्च पद को छोड़कर टाटा समूह जाना बेहतर समझा यह टाटा समूह के उच्च मानवीय मूल्यों के संरक्षण एवं संवर्धन का एक उदाहण मात्र हो सकता है।

टाटा समूह कि उच्च मानवीय मूल्य परम्पराओं एवं भूपेंद्र दीक्षित जी के टाटा के लिए ईमानदारी समर्पण के बीच कुछ समय का संसय बन कर दीक्षित जी कि सफलताओं के प्रतिपर्धी लोगों ने कुछ ऐसा कुचक्र रच डाला कि भूपेंद्र दीक्षित जी एवं टाटा समूह में दूरियां बढ़ गई और विश्वाश कि डोर कमजोर पड़ टूट गई और दीक्षित जी ने टाटा समूह छोड़ दिया या टाटा समूह ने ही उन्हें समूह छोड़ने के लिए कहा जो भी सच हो भूपेंद्र दीक्षित जी के जीवन में परीक्षाओं का यह कठिन दौर शुरू हुआ लेकिन उन्होंने थकना हारना झुकना नहीं सीखा था उनके पारिवारिक संस्कार इतने मजबूत थे कि उनकी निष्ठा संदेह से परे थी जो चुनौति एवं परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुई थी उससे उन्होंने लड़ना बेहतर समझा कहते है सत्य परेशान हो सकता है पराजित नही इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध किया भूपेंद्र दीक्षित जी ने समय बीतने के साथ टाटा समूह में उनके प्रति उभरी भ्रांतियां समाप्त हो गई लेकिन उन्होंने दोबारा नौकरी करना उचित नहीं समझा और स्वयं को स्थापित करने के लिए कॉन्ट्रेक्ट का कार्य प्रारम्भ किया और जीवन यात्रा में अहम दूसरे अध्याय का शुभारम्भ किया।

यह भूपेंद्र दीक्षित जी द्वारा समय समाज के भ्रम के दल दल से उबर कर संघर्ष के नए संभावनाओं के शुभारम्भ से अपने वर्तमान को एवं आने वाले भविष्य को दिशा दृष्टि प्रदान करते हुए प्रेरित किया इस कार्य में उनके मित्र एवं सहभागी ने भी महत्पूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हुए साथ निभाया और दोनों साथ साथ सफलता के शिखर पर बड़ते चले गए टाटा समूह कि नौकरी के बाद अपेक्षित सफलता के सभी माप दंडो को निर्धारित किया और उसे प्राप्त किया जो किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए असंभव ही नहीं सर्वथा कल्पना ही है।

भूपेंद्र दीक्षित जी ने अपने जीवन के शिखर यात्रा का प्रथम शुभारम्भ किया और शिखर पर स्थापित हुए वहा जब समय काल एवं द्वेष वैमनस्य के प्रतिस्पर्धा ने सांस य का अंधेरा किया तब उसे अपने धैर्य एवं दक्षता से समाप्त करते हुए जीवन के दूसरे सोपान का शुभारम्भ कांट्रेक्टर कार्य के साथ किया और शिखर पर स्थापित हुए जमशेदपुर टाटा नगर में एवं बिहार में अपनी विशेष पहचान सफल व्यक्ति के रूप में स्थापित किया कहते हैं व्यक्ति के जीवन में परीक्षाएं उसी कि होती है जो परीक्षा के योग्य होता है यह सच्चाई भूपेंद्र दीक्षित जी के जीवन में अक्षरशः सत्य है ।
भूपेंद्र दीक्षित जी द्वारा सफलता के स्वयं निर्धारित सभी मान मानकों को सभी स्तर पर प्राप्त किया गया जिसके कारण बिहार मैरवा हरपुर एवं प्रदेश में परिवार शिखर पर स्थापित किया जो किसी भी नौजवान के लिए प्रेरणा प्रदान करने के लिए पर्याप्त है ।
भूपेंद्र दीक्षित के स्वर्गीय बड़े भाई के योग्य कर्मठ एवं लायक पुत्र लल्लन दीक्षित द्वारा अपने चाचा के आदर्शो कि परम्परा को अपनी उपलब्धियों से चार चांद लगाया गया वास्तव में भूपेंद्र दीक्षित जी का सयुक्त परिवार के रूप मार्गदर्शन पिता जानकी दीक्षित कि आकांक्षाओं के अनुरूप सम्मान ख्याति कि ऊंचाई को हासिल करना सभी के लिए संबंधों एवं सामाजिक संस्कारो के विषय में सोचने को विवश करता है।

कहते है पराक्रम कभी बूढ़ा नहीं होता है आज भी चाहे कितनी ही विकट परिस्थितियों कि चुनौती हो भूपेंद्र जी धैर्य एव समन्वय के महारथी है जिनके आचरण एवं व्याहारिक सामाजिक सोच शैली शसक्त सफल समाज के निर्माण का मजबूत आधार बनती है ।
परिस्थितियां चाहे जो भी हो
विजयी सफलता के भाव भावनात्मक का समग्र समाज अल्लादित उत्कर्ष के शिखर का प्रतिनिधित्व करता है ।
भूपेंद्र दीक्षित जी जमशेद पुर टाटा नगर में अहम स्थान रखते है साथ ही साथ अपने बहूआयामी व्यक्तित्व के हृदय स्पर्शी व्यवहार से वर्तमान पीढ़ी के लिए जन्म जीवन यात्रा के अक्षुण्ण अक्षय उपलब्धियों के सोच संस्कार एवं दिशा दृष्टिकण प्रदान करते हुए विजेता के ऊर्जा का भाव प्रवाहित करता है तो अतीत का आदेश प्रस्तुत करते हुए स्वर्णिम भविष्य का परिणाम परक भाष्य प्रस्तुत करता है।

यह वास्तविकता है भूपेंद्र दीक्षित जी का सदैव चुनौतियों को पराजित कर नए विजय का शुभारम्भ ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।