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आराज पन्नक

-आराच पन्नक-

कहानी अतीत कि घटित सत्य घटनाएं जो वर्तमान एव भविष्य के लिए दिशा दृष्टिकोण का मार्ग प्रदान करते हुए शिक्षा एव संवेदनाओ के लिए प्रेरणा परक होते है ।

रामायण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन ऐश्वर्य का सत्यार्थ ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी के द्वारा प्रस्तुत करते हुए युगों युगों के लिए जीवन एव उसके मौलीक मुल्यों को मर्यदा पुरुषोत्तम के आदर्शों परिपेक्ष में प्रेरित करता है जिसे बाद में गोस्वामी तुलसी दास ने भव्यता प्रदान किया।

महाभारत के परिपेक्ष्य में भी यही सत्य है वेदव्यास जी महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी थे जिनके द्वारा चंद्रवंशियों के जीवन बैभव पराक्रम एवं राजनीति कला आदि का वर्णन महाभारत पुराण के माध्यम से प्रस्तुत किया है जैसे कि ब्रह्मर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण के माध्यम से किया है दोनों ने अपने समकालीन घटनाओं को श्लोकों के माध्यम से प्रस्तुत कर अपने वर्तमान से भावी पीढ़ियों युगों को जीवन कि व्यवहारिकता नैतिक आचरण संस्कृति सांस्कार के लिए संदेश एव मार्ग दर्शन दिया है जो तत्कालीन घटनाएं थी आज इतिहास एव कहानियों के रूप में प्रेरित करती मानव समाज को दिशा दृष्टिकोण प्रदान करती है।

रामायण एव महाभारत को धर्म ग्रंथो का दर्जा प्राप्त है इसी प्रकार पंचतंत्र एव अरीबन नाईट काल्पनिकता एव वास्तविकता के समन्वय के रूप में प्रस्तुत है जो प्रासंगिक बन वर्तमान एव युगों युगों कि पीढ़ियों का मार्ग दर्शन करती रहेंगी।

प्रस्तुत कहानी आराच पन्नक जिसका स्पष्ट मतलब होता है विषधर बाण जो समय के साथ नीमा के जीवन बक्ष में प्रहार करता पूरे जीवन कि खुशियों को उलट कर रख देता है और देता है विपत्तियों का पहाड़ भय भयानक जीवन एवं अग्निपथ जिसमें अपनी अग्नि परीक्षा जीवन भर नीमा देती रहती है साथ ही साथ उसकी दो मासूम बेटियों को भी मां के जीवन के अग्नि पथ की तपिश में झुलसना एवं शीतलता कि तलाश का संघर्ष करना होता है ।

कहानी में दो अलग अलग पीढ़ियों कि बेटी नारी के संघर्षों उसके शांत स्वर में हुक वेदना एवं सामाजिक प्रहार कि मार से आहत मर्माहत मूक सिसकियों की वास्तविकता कहता वर्तमान कि बेटियों नारी समाज को प्यापक दिशा दृष्टि कोण प्रदान करता प्रासंगिक सत्यार्थ यथार्थ वर्तमान को प्रेरणा देती है अाराच पन्नक।

कहानी सत्य घटना का साक्ष है जो वर्तमान के शासन समाज को जीवन संघर्षो षड्यंत्रों का आराच पन्नक की तरह उसके परिणाम को प्रस्तुत कर सोचने को विवश करती है ।

कहानी एक ऐसी माँ की है जिसका जन्म सभी भौतिक सुख सुविधाओं के बीच होता है और जीवन संघर्षो एवं संवेदनाओं कि वेदना से नित्य आहत होता रहता है ।

यह कहानी दो बेटियों कि है जिन्होंने अपने पिता को खोया और बचपन से ही समाज के उस विकृत स्वरूप को देखा जिया जो हर पल उनके स्वाभिमान को आहत करता रहा फिर भी हिम्मत नही हारी और माँ बेटियों ने अपने संघर्षो से समय समाज के लिए आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत करते हुए जीवन पथ कि कठिनाईयों चुनौतियों से लड़ने एव जितने के लिए प्रेरित किया है इसी सत्य का साकार करती कहानी हैं आराच पन्नक।

राम रतन सिंह नेपाल से सटे भारत नेपाल सीमा के गांव गेरमा के बहुत प्रतिष्ठित जमींदार थे ईश्वर की कृपा से उनके पास कोई कमी नही थी दो पुत्र रिपुदमन सिंह एव चंद्रमौलि सिंह राम रतन सिंह एवअच्युता के प्रिय संतानों में थे दोनों होनहार एव भारतीय परम्पराओं के अनुरूप थे ।

अच्युता एव राम रतन सिंह को एक बेटी की कमी बहुत अखरती अच्युता के बहुत कहने पर राम रतन सिंह ने कुल पुरोहित पण्डित श्यामा चरण शास्त्री को बुलाया और पत्नी अच्युता की पुत्री कि इच्छा बताई पण्डित श्यामाचरण ने राम रतन सिंह को बताया कि उन्हें एक कन्या का योग बनता है लेकिन इसके लिए अच्युता को माँ दुर्गा की नियमित उपासना एक वर्ष तक करनी होगी जिसके लिए उन्होंने विधि विधान बताया और चले गए।

अच्युता ने पण्डित जी के बताए विधि विधान से माँ दुर्गा की आराधना शुरू किया एक वर्ष बाद उन्होंने राम रतन सिंह को घर मे नए मेहमान के आने की सूचना दी ।

नौ महीने बाद अच्युता ने एक सुंदर कन्या रत्न को जन्म दिया राम रतन सिंह कि वर्षो कि मुराद पूरी हुई राम रतन सिंह के परिवार में खुशियों का कोई ठिकाना नही रहा।

कन्या की आने की खुशी में सर्वत्र ख़ुशनुमा वातावरण था भाई रिपुदमन एव चंद्र मौली नन्ही परी सी छोटी बहन को बहुत प्यार करते बड़े नाज़ से माँ अच्युता ने पण्डित श्याम चरण शात्री को बुलाकर घर कि नन्ही परी का नामाकरण सांस्कार सम्पन्न कराया गया और नाम रखा गया नीमा ।

बेटी लक्ष्मी प्यारी न्यारी
दुलारी खुशियों की किलकारी
बेटी ।
चाहत और प्रतीक्षा मां दुर्गा
साक्षात हैं बेटी अभिलाषा आकांक्षा अवनी आकाश हैं
बेटी ।
नीमा रतन अच्युता की जीवन
प्राण जीवन स्वांस भाग्य भगवान हैं बेटी।।

नीमा बेहद खूबसूरत थी विल्कुल ठाकुर राम रतन सिंह एव अच्युता कि कल्पनाओं के अनुरूप जैसे साक्षात परी उतर आई हो।

नीमा का जन्म भारत की स्वतंत्रता के चौदह पंद्रह वर्ष बाद ही हुआ था देश आजादी के बाद अपने पुनर्निर्माण एव विकास में व्यस्त था उस दौर में लड़कियों कि शिक्षा के प्रति जागरूकता नही थी फिर भी राम रतन सिंह ने बेटी नीमा को बेटो की तरह ही शिक्षा दीक्षा देने का निर्णय ही नही किया बल्कि सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जिससे कि बेटी नीमा की शिक्षा निर्वाध जारी रह सके ।

बेटी नीमा ने भी माँ बाप के अरमानों को पंख लगा दिएऔर बहुत परिश्रम करती अध्ययन में जी जान से जुट गई अपने कक्षा में सदैव अव्वल आकर अपने माँ बाप का नाम रौशन करती रही हाई स्कूल ,इंटरमीडिएट फिर स्नातक स्नातकोत्तर कि शिक्षा पूर्ण कर चुकी नीमा ।

रतन सिंह को एव माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी लेकिन नीमा कोई साधारण लड़की नही थी ईश्वर ने उसे जन्म ही दिया था बेटी नारी की अलग मर्यदा पहचान समय समाज मे स्थापित करने के लिये उसने अपने माँ बाप से प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी के लिए समय मांगा उस समय इलाहाबाद बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था आई ए एस ,पी सी एस कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ।

नीमा ने इलाहाबाद जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी शुरू कर दिया यह वह दौर था जब बालिकाओं कि शिक्षा दर बहुत न्यूनतम थी नौकरी की बात तो बहुत असंभव सी बात थी फिर भी नीमा ने बहुत मेहनत किया और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से उसका चयन जिला कोषागार अधिकारी के रूप में हुआ और पूरे क्षेत्र में नीमा कि सफलता के डंके बजने लगे वर्ष वर्ष उन्नीस सौ उन्यासी अस्सी का दौर था ।

अब राम रतन सिंह और माँ अच्युता को नीमा के विवाह की चिंता सताने लगी तब नीमा के योग्य वर मिलना भी बहुत कठिन चुनौती थी ।

नीमा संस्कारो में पली समाज के लिए अनुकरणीय लड़की थी अतः वह अपने विवाह के विषय मे सारे नीर्णय अपने माँ बाप एव भाईयों के जिम्मे ही छोड़ रखा था।

बहुत खोज बिन के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित बलिया निवासी जयेंद्र पाल सिंह के सुपत्र धर्मपाल सिंह से नीमा के विवाह तय हुआ ।

पिता राम रतन सिंह एव भाई रिपुदमन एव चंद्रमौलि नीमा के विवाह में कोई कोर कसर नही रखना चाहते थे एक तो पारिवारिक परम्परा एव सम्मान कि मर्यदा के निर्वहन का प्रश्न था तो दूसरी तरफ नीमा के द्वारा लड़की के रूप में स्थापित सामयिक गौरवशाली उपलब्धियों के अनुरूप वैवाहिक स्तर को बनाये रखना दोनों ही मानदंडों पर राम रतन सिंह कमी नही रखना चाहते थे और उन्होंने किया भी ऐसा की सारे जवार में नीमा के वैवाहिक उत्सव के चर्चे थे धर्म पाल सिंह के पिता जयेंद्र पाल सिंह भी बेटे के वैवाहिक समंध से बहुत खुश एव अभिमान कि अनुभूति कर रहे थे आखिर धर्मपाल सिंह एव नीमा के पाणिग्रहण का समय लम्बी प्रतीक्षा के बाद आ ही गया जयेंद्र पाल सिंह बेटे धर्मपाल की बारात लेकर राम रतन सिंह के दरवाजे पहुंचे रतन पाल सिंह ने अपनी क्षमता एव समर्थ में कुछ भी कमी बारात के स्वागत एव जयेंद्र सिंह के बेटे के विवाह कि आकांक्षा नही उठा रखी ।

नीमा और धर्मपाल सिंह का विवाह बड़े धुम धाम के साथ सम्पन्न हुआ नीमा विदा होकर ससुराल गयी बेटी की विदाई के बाद रतन सिंह अच्युता एव भाई रिपुदमन तथा चंद्रमौलि सिंह कि दुनियां में खालीपन सूनापन था जिसकी भरपाई मुश्किल थी क्योकि उस दौर समय मे नीमा जैसी बेटी बहन विरलों को ही नसीब थी ।

पूरे परिवार कि खुशियाँ ही उनसे रूठ कर नीमा के साथ चली गयी हों आखिर नीमा लक्ष्मी का स्वरूप ही थी पूरे घर परिवार में नीमा के विदाई का दर्द साफ झलक रहा था ।

दुनियां का दस्तूर बेटी पराया धन होती है के आगे परिवार के सभी सदस्य मन मार स्वंय को समझाने कि कोशिश करते रहे ।

दिन बिताता गया इधर नीमा के दुल्हन बन घर आने से जयेंद्र पाल सिंह के घर मे जैसे खुशियो की श्रृंखला के रूप में साक्षात लक्ष्मी का ही शुभागमन हुआ हो बहुत लोंगो को जयेंद्र सिंह की किस्मत से ही रस्क होने लगा ।

कहते है ना कि भगवान एव भाग्य कब किसके साथ खड़े हो जाय किससे रूठ जाय कोई नही जानता कोई कर भी क्या सकता था यह तो जयेंद्र पाल सिंह के भाग्य की बात थी।

दिन बीतते गए परिवार की खुशियाँ बढ़ती गयी लेकिन नीमा और धर्मपाल को तो अपनी अपनी जिम्मेदयों को निभाने जाना ही था एक को जिला कोषागार अधिकारी की तो दुसरे को पुलिस उपाधीक्षक कि दोनों की ही नियुक्ति जालौन में थी इधर बेटी की बिदाई से रतन पाल सिंह के परिवार में सूनापन खालीपन था तो बेटे एव लक्ष्मी जैसी बहु के जाने से जयेंद्र पाल सिंह के परिवार में वियोग की उदासी थी।

आखिर नीमा दोनों ही परिवारो के लिए खुशियों कि अनिवार्यता बन गयी थी उसका सबके प्रति व्यवहार भी सबको उसकी तरफ आकर्षित करता लेकिन कोई कर भी क्या सकता था सभी सिर्फ नीमा और धर्मपाल कि खुशियो के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल ईमानदार एव कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी थे आम जनता में बहुत लोकप्रिय एव अपराधियों के लिए काल के समान थे उनका नाम सुनते ही अपराधियो के पसीने छूटने लगते हर अपराधी की यही इच्छा रहती की उसका सामना कभी भी धर्मपाल सिंह से ना हो ।

धीरे धीरे विवाह के तीन चार वर्ष बीत चुके थे नीमा ने बेहद खूबसूरत बेटी को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से नीमा और धर्मपाल ने कावेरी रखा था कावेरी कि किलकारियों से नीमा एव धर्मपाल के घर मे रौनक तो थी ही बाबा जयेंद्रपाल एव नाना रतन सिंह के घर मे भी खुशियों ने दामन फैला रखा था कावेरी कि एक मुस्कान सभी के लिए दुनियां कि सबसे बड़ी नेमत थी ।

धीरे धीरे कावेरी ढाई तीन वर्ष की हो गयी और नीमा दूसरी संतान को जन्म देने वाली थी बहुत पुरानी कहावत है कि भगवान अपने ही चाहने वालो कि परीक्षा लेता है यही सत्य चरितार्थ नीमा के जीवन हुई ।

पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह की शक्तियों के कारण अपराधियों पर कानून का शिकंजा कसता गया अपराधियों के हौसले पस्त होते चले गए जनता को पुलिस के अच्छे आचरण का सत्यार्थ धर्मपाल के रूप में था लेकिन अपराधियों एव पुलिस विभाग के ही कुछ लोंगों को धर्मपाल की कार्यशैली पसंद नही आ रही थी नतीजन पहले तो धर्मपाल सिंह को येन केन प्रकारेण तोड़ने के लिए प्रलोभन आदि का हथकंडा अपनाया जब बात नही बनी तब खतनाक साजिश रच डाली।

साजिश में मोहकमे के ही कुछ लोंगो को शामिल किया जिनके रसूख एव आमदनी समाप्त सिर्फ धर्मपाल की जनपप्रिय कार्य शैली से हुये थी अतः उनके पास धर्मपाल से निपटने का कोई न्यायप्रिय संवैधानिक रास्ता तो था नही अतः धूर्तता कुटिलता की साजिश षड्यंत्र को अपना हथियार बनाया जिसमे मोहकमे के लोगो ने भी साथ दिया जिससे पुलिस उपाधीक्षक धर्मपाल सिंह बेखबर अपना कार्य करते रहे ।

एक दिन पुलिस कप्तान के कार्यालय में फोन कि घँटी बजी और सूचना दी गयी कि शातिर अपराधी चौक के पास छुपे है पुलिस कप्तान ने तुरंत धर्मपाल को मौके पर पहुँचने का निर्देश दिया धर्मपाल सिंह पूरे दल बल के साथ मौके पर पहुंचे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नही था कि जिस पुलिस टीम का वह नेतृत्व कर रहे है उनमें साजिश कर्ता भी सम्मिलित है वह सीधे खुफिया सूचना के बताए स्थान पर पहुँचे पता लगा कि अपराधी गुमटी में छिपे हुए है गुमटी बन्द थी पुलिस टीम जिसका नेतृत्व धर्मपाल कर रहे थे उन्हें लगभग सत्यता की जानकारी थी अतः उन्होंने स्वंय गुमटी का दरवाजा खुलवाने के बजाय धर्मपाल सिंह को ही आगे कर दिया जबकि किसी भी अभियान का नेतृत्व दिशा दृष्टिकोण एव टीम कि ऊर्जा का नेतृत्व करता है और सभी विकल्पों कि समाप्ति पर स्वयं मोर्चे पर खड़ा होता है ।

धर्मपाल के साथ उल्टा हो रहा था टीम के सदस्य साजिश कर्ता जिन पर वो गलती से भरोसा कर बैठे थे ने उन्हें आगे कर गुमटी खुलवाने के लिए कहा और पीछे पूरी टीम ज्यो ही धर्मपाल सिंह ने गुमटी पर जोर जोर पीटना शुरू किया अंदर बैठे अपराधियो ने गुमटी खोलने के साथ अंधा धुंध फायरिंग कर दी धर्मपाल सिंह भी तैयार अवश्य थे किंतु उन्हें इतने भयानक अपराधियों के मूव का अंदाज़ा नही था ।

तबातोड़ फायरिंग से सबसे पहले सामने धर्मपाल सिंह एव उनके पीछे खड़े मुश्तैद सिपाहियो पर मौत का कहर बनकर टूट पड़ा धर्मपाल सिंह तो मौके पर घायल अवस्था मे जमीन पर तड़फड़ा ही रहे थे साथ ही साथ उनके पीछे खड़े सिपाही जो जिम्मेदार एव ईमानदार थे एव जिन्हें साजिश की भनक तक नही थी बारह पंद्रह की संख्या में घायलावस्था में जमीन पर तड़फड़ाता रहे थे।

उस दौर में सांचार सुविधाएं आज की तरह बहुत व्यपक नही थी सिर्फ रेडियो एव प्रिंट मीडिया तथा संभ्रांत घरों में ही दूरदर्शन वह भी सिर्फ राष्ट्रीय चैनल ही था जब भी किसी समाचार घटना कि जानकारी प्राप्त करनी होती लोंगो को रेडियो या समाचार पत्रों पर निर्भर रहना पड़ता ।

इतनी बड़ी घटना के घटित होने के बाद एक ही शहर के एक कोने कि खबर दुसरे कोने तक पहुंचते पहुंचते अनेक भ्रम भ्रांतियों की शिकार हो जाती नीमा को जब इस दुर्घटना कि जानकारी हुई उस पर तो जैसे वज्रपात हो गया ।

उंसे समझ मे ही नही आ रहा था कि क्या कैसे क्यूं इस तरह कि घटना ने उसके खुशहाल जीवन मे बिपत्तिया लेकर अाई।

कुछ भी समझ नही आ रहा था आनन फानन वह घटना स्थल फिर अस्पताल की तरफ गयी जहां डॉक्टरों द्वारा धर्मपाल सिंह को मृत घोषित कर दिया गया उसके जीवन मे पलक झपकते ही अकल्पनीय तूफान ने सब कुछ समाप्त कर दिया।

कभी कभार पति धर्मपाल अपने कार्यो के संदर्भ में जिक्र अवश्य करते लेकिन नीमा को ऐसे हादसे की उम्मीद तक नही थी ।

पुलिस मोहकमे में मुड़भेड़ की चर्चा जोरों पर चल पड़ी सर्वत्र यही चर्चा होने लगी कि पुलिस एव अपराधियों के मुठभेड़ में पुलिस कर्मचारी एव अधिकारी शहीद हुए ।

किसी को यह नही समझ आ रहा था कि शहर एव बस्तियों में पुलिस मुठभेड़ नही होती ना तो घटना स्थल जंगल या वीरान बीहड़ था जहाँ अपराधियों के लिए पनाहगाह हो घटना स्थल जनपद का रिहाईसी इलाका था जहां शहरीकरण एव ग्रामीण दोनों का संयुक्त परिवेश था लेकिन अब कुछ भी संम्भवः नही था।

नीमा की दुनियां उजड़ चुकी थी जयेंद्र सिंह एव रतन सिंह को घटना कि जानकारी हुये तो हतप्रद निःशब्द वेदना में डूब गए सभी के समक्ष एक ही यक्ष प्रश्न था आखिर इतनी बड़ी घटना जनपद मुख्यालय पर कैसे घटित हो गयी इसी प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाह रहे थे लेकिन उत्तर किसी के पास नही था ।

इधर पुलिस विभाग ने जांच के आदेश दिए स्थानीय थाने के प्रभारी ने पूरे प्रकरण को पुलिस अपराधियों के मुठभेड़ मानकर किसी भी साजिश से इनकार कर दिया और अपनी आख्या प्रस्तुत कर दी।

नीमा बिल्कुल टूट चुकी थी उसके समक्ष पहाड़ जैसी जिंदगी का कोई उद्देश्य नही नजर आ रहा था इस हादसे के समय नीमा गर्भवस्था में थी कावेरी मात्र ढाई तीन वर्ष की थी नीमा को यह समझ मे ही नही आ रहा था कि अब उसके जीवन का भविष्य एव उद्देश्य क्या होगा आंखों के आंसू सुख गए थे वह सिर्फ देखती जैसे उसकी सुनी आंखे उसके अंतर्मन कि पीड़ा वेदना का दर्पण हो पिता रतन सिंह एव परिवार के लोंगो के पास भी नीमा को दिलाशा देने के लिए कोई ठोस वर्तमान या भविष्य नही प्रतीत हो रहा था।

जयेंद्र सिंह ने बेटा खोया ही था लक्ष्मी बेटी जैसी बहु कि सुनी मांग एव उसका भविष्य सोच कर उनका कलेजा जुबान को आ जाता कावेरी को तो यही नही समझ मे आता कि उसका बचपन कैसे उससे रूठ गया प्रतिदिन पापा का प्यार माँ का दुलार जाने कहाँ खो गया दुःखों के प्रवाह का कोई रास्ता किसी को नही सूझ रहा था सब एक दूसरे को दिलाशा ही देते यह जानते हुए कि कोई रास्ता है ही नही वर्वाद गुलिस्तां को सजाने के लिए।

कहते है वक्त काल समय ही उन समस्याओं प्रश्नों का हल उत्तर दे देता है जो मनुषयः के बस से परे होती है और अपने द्वारा दिये गए जख्मो को मरहम भी वही देता है किसी तरह धर्मपाल सिंह कि अन्त्येष्टि एव अन्य कार्य पूर्ण हुये।

नीमा के जीवन के संघर्ष एव समाज के विकट स्वरूप से लड़ने एव बची जिंदगी में पति के लिए न्याय ही मात्र उद्देश्य था ।

नीमा कि नियुक्ति वाराणसी हुई और पति कि मृत्यु के पांच छ माह बाद उसने दूसरी कन्या को जन्म दिया जिसने अपने आने से पूर्व ही पिता को खो दिया था ।

नीमा के पास धर्मपाल की अमानत दो बेटियाँ थी जिन्हें वह स्वर्गीय पति धर्मपाल के सपनो कि संतान बनाने के लिए संकल्प के साथ जुट गई साथ ही साथ पति को न्याय दिलाने के लिए स्वंय सत्य असत्य न्याय के जंग में कूद पड़ी ।

दूसरी बेटी के जन्म के बाद नीमा जैसे साक्षात नारी शक्ति कि नौ रूपों को स्वंय में आत्मसाथ कर समाज एव वर्त्तमान से अकेले अघोषित संग्राम लड़ रही थी बेटी कल्पना एव कावेरी का लालन पालन अन्य जिम्मेदारियों के साथ एक महिला के लिए बहुत कठिन चुनौती थी जबकि मैके एवं ससुराल पक्ष का नैतिक , भवनात्मक सहयोग नीमा को मिलता रहता फिर भी उसे अपने दुख क्लेश अंतर्मन कि पीड़ा को स्वंय झेलते हुए अपनी लड़ाई पति के लिए न्याय के लिए महत्वपूर्ण एव आवश्यक था ।

छोटी छोटी बेटियों को लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटना भारतीय न्याय प्रक्रिया कि जटिल बोझिल प्रक्रियाओं के झंझावतों से रूबरू होना साथ ही साथ समाज के वेधते व्यवहार से छलनी होते अपने मन मस्तिष्क को संतुलित रखना कहते है –

“नारी ज्वाला नारी अंगारा नारी शीतल शौम्य नारी नैतिकता मर्यदा नारी भाव संवेदना नारी कोमल नारी कठोर नारी माता नारी काली युग संसारी।।

नीमा को नारी के सभी अध्यायों आयामो से गुरजना पड़ रहा था सौम्यता विनम्रता बाबुल एव ससुराल के संस्कारो कि मर्यदा कि ड्योढ़ी नही लांघी।

कावेरी एव कल्पना को अच्छी शिक्षा सांस्कार देने के लिए सारे संम्भवः उपलब्ध प्रायास किये समय के साथ हिम्मत हौसलों से अपने वीरान जिंदगी के चमन को गुलजार करने एव न्याय के लिए हर संघर्ष संग्राम से जूझती रही।

समय कि हर परीक्षा से गुजरती रही समय अपनी गति चाल से चलता रहा और नीमा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश जिसे पिछड़ा कहा जाता है विशेष कर महिलाओं के संदर्भ में के लिए संघर्ष के अध्याय आयाम से नारी शक्ति के समक्ष एक अविस्मरणीय अनुकरणीय आचरण प्रस्तुत करती रही ।

बुलंद हौसलों का दामन समंदर कि लहरों का सानी पत्थरो के सिनो को चीर निर्झर निकलती।।

मरुस्थल को भी समंदर का पुरष्कार देती कठिन चुनौतियों से लड़ती नीमा दुनियां इतिहास बदलती।।

नीमा पति को न्याय दिलाने के लिए निरंतर प्रयत्न शील रहती ईश्वरीय विधान कुछ और ही सोच रहा था एकाकी जीवन का सुना पन अंतर्मन कि वेदना फूटी और एक नई बिपत्ति को लेकर आई नीमा कैंसर जैसे असाध्य बीमारी से पीड़ित हो गयी वैसे भी उंसका खुशियो और सुखों से बहुत कम दिनों का साथ था।

विवाह एव पति के साथ छूटने तक चार पांच वर्ष बामुश्किल पूरा जीवन दूरुह एव शूलों से भरे रास्तों का संघर्ष बन कर रह गया अब बची खुची कसर कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने का संघर्ष जीवन संघर्षो कि पराकाष्ठा कि असह वेदना सम्भवतः ईश्वर ने भी कठिन से कठिन परीक्षाओं कि अति कर दी ।

पति कि मृत्यु के लगभग बाईस वर्षो बाद वर्ष 2004 में कैंशर की पीड़ा जीवन के संघर्षो के जख्म एव देश के बिभन्न न्यायालयों के चक्कर काटती पति के लिए न्याय कि अधूरी आशा लेकर दो बेटियों को छोड़ जाने कहा चली गयी यदि जीवन सत्य है तो मृत्यु उसका आवरण लेकिन नीमा का जीवन भी मृत्य पीड़ा के समान ही था नीमा चली गयी लेकिन बहुत से अनुत्तरित प्रश्नों को समय समाज के समक्ष छोड़ गई जिसका जबाब समय एव समाज ने कभी जानने कि कोशिश नही की नीमा के नारी अंतर्मन की व्यथा वेदना उसके सुखी आंखे छटपटाहट पति धर्मपाल कि आवनी पर अंतिम छटपटाहट को ही संदर्भित वर्णित करते प्रश्न करते रहे न्याय मांगते रहे।

माँ कि मृत्यु के बाद कावेरी एव कल्पना के समक्ष माँ के अधूरे सपने एव पिता के लिए न्याय महत्त्वपूर्ण थे कावेरी ने दिल्ली के श्रीराम लेडी कालेज से स्नातक कि शिक्षा प्राप्त किया था कावेरी एव कल्पना ने माँ नीमा की अन्तर्रात्मा के भवों के घांवो को बहुत करीब से महसूस किया एवं जिया था।

बेतिया माँ के प्रत्येक पल प्रहर कि साक्ष्य स्वंय थी अतः उनका नैतिक कर्तव्य भी था कि कम से कम माँ एव पिता को उनके कर्मों कि उपलब्धियों से शांति मीले एव उनका नाम उनके भौतिक शरीर मे ना रहते हुए भी समाज के लिए आदर्श प्रेरणा बने ।

कावेरी एव कल्पना एक साथ दिल्ली में रहकर अपने माँ बाप के सपनो की वास्तविकता के लिए संघर्ष का शुभरम्भ किया सारे सुख दुख भूल कर एक मात्र लक्ष्य स्वंय को माँ बाप के अभिलाषाओं एव आकांक्षाओ कि कसौटी पर प्रमाणित प्रस्तुत करना।

ईमानदार सोच निष्काम कर्म किसी भी उद्देश पथ के भयंकर अंधकार को समाप्त कर उजियार का मार्ग प्रसस्त करते है –

उद्देश्यों के उत्साह का पथिक तूफानों भवरों लहरों कि नाव का नाविक।।

उद्देश्य पथ को मोड़ देता समय संसार मे नव अध्याय आयाम सृजन करता काल समय स्वंय स्वागत कर चिराग रौशन करता।।

कावेरी एव कल्पना ने प्रमाणित कर दिया कि असम्भव कुछ भी नही नीति नियत को भी बदलने की क्षमता मानव में ही होती है नारी मानव समाज कि मूल अवयव अवधारणा कि शक्ति समर्थ है अतः उसके लिए काल समय को नई पहचान देना असम्भव नही है ।

हुआ भी यही कावेरी ने वर्ष 2008 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मान जनक स्थान पाकर माँ बाप को गौरवान्वित किया तो कल्पना ने भरतीय राजस्व सेवा में चयनित होकर दोनों बहनों ने अपने दृढ़ संकल्प परिश्रम से जन्म देने वालो को तो महिमा मंडित किया ही अपने जन्म स्थान एव समाज को गौरवशाली एव गरिमा प्रदान किया ।

2013 में तीस वर्षों कि लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद न्यायलय द्वारा पिता धर्मपाल के कथित मुठभेड़ के मामले में न्यायलय का निर्णय आया जिसमें आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा न्यायालय द्वारा सुनाई गई जिनको सजा सुनाई गई उनमें कुछ तो मर चुके थे ।

इस न्याय का कोई बहुत महत्व कावेरी कल्पना के लिए नही था क्योकि निर्णय में न्याय ऊबाऊ लंबी प्रक्रिया के बाद आया था जो न्याय नही कहा जा सकता सिवा इसके की माँ नीमा कि आत्मा को शांति मिली होगी ।

आज कावेरी कल्पना को हर व्यक्ति बड़े अभिमान से अपने गांव क्षेत्र परिवार का बता कर अभिमानित महसूस करता है।
कल्पना कि नियुक्ति सहायक आयकर आयुक्त पद पर हरियाणा में ही है ।

प्रति दिन सूरज उसी तरह निकलता है जिस तरह धर्मपाल की मृत्यु के दिन एव नीमा के अंतिम सांस के दिन निकला था फर्क सिर्फ है तो यही की अब सूरज निकलता है तो नीमा धर्मपाल के ब्रह्मांड में विलीन अस्तित्व कि प्रत्यक्ष आभा कि किरणों काबेरी एव कल्पना कि चमक तेज के साथ।।

कहानीकार –
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।




अपकर्म

शीर्षक – अपकर्म

भारत के महत्पूर्ण नगरी काशी वाराणसी बनारस कि सांस्कृतिक शैक्षिक प्रवृति से विधिवत परिचित हूं अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास में बहुत से मित्र एवं शत्रुओं को बनाया सिर्फ वाराणसी ही नहीं वाराणसी के आस पास जनपद जौनपुर ,संत रविदास नगर, सोनभद्र ,मिर्ज़ापुर आदि जनपदों में भी मित्रो का अच्छा खासा स्नेह सम्मान मिलता रहता है ।

अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास के दौरान अनेक सूख दुःख के अवसरों पर उपस्थिति रहने एवं भागीदारी का अवसर प्राप्त हुआ है ।

वाराणसी वर्ष 2008 में मेरे एक मित्र के पिता जी कि मृत्यु हो गई जिनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ मै हरिश्चंद घाट पर पहुंचा जहां मेरे मित्र अपने पिता जी के अंतिम संस्कार के लिए लेकर गए थे ।

श्मसान घाटों में मर्णकर्निका का ही धार्मिक महत्व है लेकिन साथ ही साथ यह भी कहावत मशहूर है कि मोक्ष के लिए लोग काशी आते है और शायद विश्व में काशी वाराणसी बनारस इकलौता शहर है जहा मोमुक्षु भवन जीवित लोगों जो मृत्यु कि प्रतीक्षा कर रहे होते है उनके लिए बना है।

यह कुछ अजीब नहीं लगता विश्व में चिल्ड्रेन हाऊस ,ओल्डेन हाऊस मिलेंगे लेकिन डेथ होम नहीं मिलेगा ।

मान्यता है कि अंतिम समय में काशी में शरीर त्याग करने वाले को मोक्ष मिलता है यह बात दीगर है कि काशी में जन्मे महान सूफी संत कबीर दास जी जान बुझ कर अपने जीवन के अंतिम समय में काशी त्याग दिया इस मिथक को तोड़ने के लिए कि काशी में ही मरने वालो को मोक्ष मिलता है और उन्होंने मगहर में आकर शरीर का त्याग किया कहावत यह भी प्रचलित है कि मगहर में शरीर त्यागने वाले को भूनकर नरक कि यतना से गुजरना पड़ता है और आत्मा जन्मों तक मोक्ष के लिए भटकती रहती है ।

खैर बात काशी के श्मसान हरिश्चन्द्र घाट कि कर रहा हूं जहा मेरे मित्र अपने स्वर्गीय पिता के शव को लेकर अंतिम संस्कार के लिए आए थे मेरे मित्र पिता के अंतिम संस्कार कि तैयारी ही कर रहे थे कि चार पांच या अधिक से अधिक दस लोग एक सौ को लेकर आए आए हुए लोगों में चार मरने वाले के पुत्र थे चारों को देखने से लगता है कि भारत के किसी रजवाड़े या किसी बड़े आद्योगिक घराने से है और मृतक उनका बाप हैं ।

हरिश्चंद घाट का अजीब नज़ारा था मै अपने मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में ही व्यस्त था लेकिन नज़ारा कुछ ऐसा था की ध्यान खींचना स्वाभाविक था मृतक के चारो बेटों प्रत्येक के शरीर पर इतने महंगे आभूषण थे जितना किसी आम भारतीय कि कुल जीवन कि कमाई या सम्पत्ति नहीं होती चारो में मृत पिता के अंतिम संस्कार के लिए तू तू मै मै चल रही थी ।

चारो बेटे पहले मृतक पिता को लेकर मर्णकर्णीका ही गए थे लेकिन वहां डोम राजा द्वारा मृतक के पुत्रों के नक्शे एवं पहनावे को देखकर लखो रुपए कि मांग की गई जिसके कारण चारो बेटे मरहूम पिता कि अर्थी लेकर हरिश्न्द्र घाट चले आए यहां आलम और भी वीभत्स था चारो आपस में भिड़ गए कि पिता के अंतिम संस्कार में होने वाला व्यय कौन करेगा चारो एक दूसरे से कहते तुम्हारे लिए पिता जी ने बहुत कुछ किया मेरे लिए कुछ नहीं किया मृतक पिता अर्थी पर भयंकर धूप में अपने भौतिक शरीर कि मुक्ति का तमाशा देख रहे थे।

भीड़ लग गई और भी अर्थियो के साथ आए लोगों ने अपने अपने दुखो को भुलाकर मृतक के चारो बेटों को समझने कि भरपूर कोशिश किया मगर मजाल क्या कोई किसी कि बात सुन तक ले मानना तो बहुत बड़ी बात है।

खैर मामले को बहुत बिगड़ता देख छोटे छोटे बच्चे डोम परिवारों के जिनका एक मात्र कार्य शवों को जलाना ही है और बची लकड़ी कफन आदि बाज़ार मे इकठ्ठा कर बेचना है डोम परिवार के बच्चों के साथ मल्लाहों के बच्चे भी शव जलाने का कार्य करते है एवं आर्थियो कि बची सामग्रियों को बाज़ार में बेचते है यह अच्छा खासा कारोबार है जो जाने कितने परिवारों को दो वक़्त कि रोटी देता है और सरकार पर बोझ कुछ कम करता है एक बात का विशेष ख्याल रखिए वाराणसी में यदि भुट्टे या मूंगफली खाने का सौक रखते है तो कोशिश करे वाराणसी प्रवास के दौरान ये सौक़ त्याग दे क्योंकि भुट्टा एवं मूंगफली या अन्य कोई भी भूजी जाने वाली सामग्री श्मसान के बचे कोयले से भूनी जाती है यदि यदि आप सनातन धर्म के वाम मार्गिय है तो कोई बात नहीं।

खैर बच्चो ने एकत्र होकर पिता के अंतिम संस्कार के लिए लड़ते भाईयों को कहा बाबूजी आप लोग आपस में क्यो लड़ते हैं जो भी खर्च करना हो लकड़ी आदि मंगा दीजिए हम लोग मुफ्त में इनका अंतिम संस्कार कर देंगे किसी तरह चारो भाइयों ने आपस में मिलकर कुछ मन लकड़ियां एवं बेमन से अंतिम संस्कार का सामान खरीदा सामान इतना ही था कि मृतक का सिर्फ एक पैर ही जल सकता था जल्दी जल्दी बच्चो ने चिता सजाए चारो में से एक ने मुखाग्नि दी और अपनी अपनी गाड़ियों में बैठे और चल दिए ।

जाते जाते मरहूम पिता कि अर्थी जलाने के लिए पांच लीटर मिट्टी के तेल का डिब्बा दे गए ।

बच्चो ने आर्थी को वैसे ही निष्ठा से जलाया जैसे वे किसी भी अर्थी को जलाते आस पास के चिताओ कि बची लकड़ी एवं अन्य सामान मांग कर उस बदनसीब बाप के शव को उन बच्चो ने सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जिनका उससे दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था।

मेरे साथ आए मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में लोग अंतिम संस्कार के बाद घरो को लौटने लगे मेरे दिमाग में एक यक्ष प्रश्न बार बार उठता परेशान कर रहा था कि आखिर इस व्यक्ति ने ऐसा क्या कर दिया हैं ?

बेटे बाप कि अर्थी को लावारिस कि तरह छोड़ कर चले गए मै शाम को लगभग छःबजे घर लौटा मगर हरिश्चंद घाट का वह दृश्य बार बार मुझे परेशान कर रहा था सोने कि कोशिश करता रहा मगर नीद जैसे कहीं खो गई हो।

शमशान कि खास बात यह है कि वहां जाने के बाद भले कुछ न करना पड़े थकान बहुत लगती है मुझे सिर्फ यही चिंता सता रही थी कि क्यो बेटों द्वारा मृत्यु के बाद भी अपमानित होता रहा बाप?

लेकिन मेरे प्रश्न या जिज्ञासा का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि मै या कोई भी मरने वाले एवं उसके बेटों के बारे में नहीं जानता था कि कहां से आए हैं कौन है ?

मेरे मन में बार बार यही सवाल उठ रहे थे जो हमें परेशान कर रहे थे जिसका कोई उत्तर मिलने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।
तभी हमारे बहुत पुराने मित्र कमल नयन जी आए रात लगभग बारह बजे अवतरित हुए जबकि प्रति दिन वह मेरे सोने के साथ आते है और दो घंटे साथ रहते हुए देश विदेश कि तमाम घटनाओं बातो पर अपने अनुभवों विचारों को बता कर चले जाते है और मै पुनः घोर निद्रा में सो जाता हूं ।

मैंने एक बार कमल नयन जी से सवाल किया महोदय मैं ही आपको भरत भारत कि एक सौ तीस करोड़ कि आबादी में सबसे बड़ा सियाप मिला आपका भरा पूरा परिवार है जो आपके अवतरण एवं परिनिर्माण को संवेदन शीलता के साथ मनाते हैं कमल नयन बोले मिस्टर त्रिपाठी रिश्ते नाते स्थूल शरीर के होते है स्थूल शरीर कि जीवन परछाई ही उसके सगे संबंधियों के लिए महत्वपूर्ण होता है मै परछाई नहीं हूं मै सत्य हू मैंने कहा मिस्टर आपके कारण लोग मुझे पागल कहते थे मुझे विशेषज्ञ चिकित्सको से परामर्श लेना पड़ा कभी कभी मुझे खुद लगता कि वास्तव में मै पागल तो नहीं हो गया हू मगर चिकित्सको द्वारा क्लीन चीट दिए जाने के बाद मुझे कुछ संतोष हुआ और ब्रेन मैपिंग एवं नार्को टेस्ट नहीं कराना पड़ा।

फिर भी मेरी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा कमल नयन जी का प्रतिदिन सानिध्य किसी आश्चर्य से कम नहीं है जबकि मै भूत प्रेत में विल्कुल विश्वास नहीं करता तब भी कमल नयन जी का सानिध्य मेरे लिए प्रेरणा उत्साह प्रदान करता है अब मेरे जीवन कि शैली में कमल नयन शामिल है और मै कुछ भी प्रयास कर लू अब यह साथ छूटना ना मुमकिन है।

जब कमल नयन आए बोले मिस्टर त्रिपाठी आप परेशान हो शमशान के घटना से क्यो ?
यह दुनिया है मतलब कि बाकी औपचारिकताओं कि बची खुची दौलत अभिमान अहंकार एवं दैहिक इन्द्रिय तृप्ति कि इसके अलावा कुछ नहीं।

कमल नयन ने बताना शुरू किया मेरा भाई बहुत उत्साही एवं आक्रामक स्वभाव का इंसान हवा में ही शरीर त्यागना उसकी विवशता बन गई मै अपने स्थूल शरीर से हवा में उड़ता था मां के मरने के साथ ही न चाहते हुए भी मुझे पारिवारिक विरासत संभालनी पड़ी ।

भरत भारत कि प्रतिष्ठा को चार चांद लगाने के लिए त्रेता कि स्वर्ण नगरी में अपनी शक्ति कि सेना भेजी माल द्वीप जैसे छोटे से राष्ट्र कि अक्षुण्ण सत्ता के लिए अपनी शक्ति भेजी बहुत ऐसे कार्य किए जिससे राष्ट्र समाज आज गौरवशाली और मजबूत हुआ मगर दखिए शांति का दूत बनकर त्रेता कि स्वर्ण नगरी गया था वहीं के उग्र संवेदनाओं के खतरनाक इरादों ने मुझे ही बारूद से उड़ा दिया मैंने ईश्वर अल्ला जीजुस गुरु कि सत्य ईश्वरीय सत्ता का सम्मान किया मुझे अपरिपक्व स्वीकार करने में कोताही हुई क्या कहूं षडयंत्र या प्रारब्ध तो मिस्टर त्रिपाठी जिस के लिए आप परेशान और जानना चाहते है तो सुने।

चारो बेटे मरने वाले के ना तो प्रारब्ध थे ना ही समय काल परिस्थितियों कि देंन सिर्फ क्षुद्र मानसिकता के स्वार्थ तुष्टि के पुतलों जो मृतक के पुत्र थे उनका स्वाभाविक जीवन मूल्य आचरण था।

परेशान होने की कोई बात नहीं मै जब स्थूल शरीर से दुनिया में था तब इतनी व्यस्तताएं थी कि कुछ भी जानने सुनने का समय नहीं मिलता था स्थूल शरीर के छुटने के बाद ब्रह्माण्ड में विचरण करता हूं अतः मरने वाले एवं उसके पुत्रो को भली भांति जानता हू ।

बड़ी विनम्रता पूर्वक कमल नयन जी से अनुरोध किया कि आप मृतक एवं उसके परिवार एवं श्मसान पर उसके पुत्रो के आचरण बताने कि कृपा करे।

बहुत अनुनय विनय करने के बाद कमल नयन जी ने बताना स्वीकार किया और बताना शुरू किया।

कमल नयन ने बताया कि जिस मृतक के विषय में चितित हूं वह बिहार का रहने वाला है एवं उसके पिता धीरेन्द्र सिंह बहुत गरीब थे और अपने जमाने में किसी तरह परिवार के गुजारे के लिए छोटे मोटे कार्य किया करते थे।

उन दिनों देश अंग्रेजो का गुलाम था और स्वतंत्रता आंदोलन का जोर गांव गांव तक फैला था बड़ा बुजुर्ग नौजवान हर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कि लड़ाई लड़ रहा था उस दौर में धीरेंद्र सिंह ( कलपनिक नाम)ब्रिटिश हुकूमत कि मुखबिरी करता था जिसके कारण उसे कुछ पैसा मिल जाता था मगर स्वतंत्रता आंदोलन के आंदोलन कारियो को धीरेन्द्र सिंह ने अपनी मुखबिरी से पकड़वाया जिससे आंदोलनकारियों को बहुत प्रताड़ना झेलनी पड़ी देश जब आजाद हुआ जाते जाते अंग्रेजो ने धीरेन्द्र सिंह को बहुत बड़ा फार्म हाउस मुफ्त में दे दिया ।

धीरेन्द्र सिंह ने अंग्रेजो के जाने के बाद मीले फार्म हाउस के बदौलत इलाके का बड़ा रसूखदार व्यक्ति बन गया और उसने अपने परिवार को समाज एवं क्षेत्र में प्रतिष्ठा दिलाने हेतु कुछ नेक कार्य भी किए गए लेकिन उसकी पीढ़ी के लोग उसे देश द्रोही के रूप में ही देखते थे धीरेन्द्र का परिवार बहुत फला फुला लेकिन उसके वर्तमान एवं समाज ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया उसका एक ही बेटा था हुकुम सिंह (काल्पनिक नाम) उसके चार बेटे हिम्मत सिंह ,हरमन सिंह ,हौसला सिंह एवं हिमांशु सिंह जो (काल्पनिक नाम)उसे लेकर श्मसान तक आए थे जीवन काल में हुकुम सिंह ने बेटों को उच्च शिक्षा दिया और सभी के भविष्य कि बेहतरी के लिए अलग अलग व्यवसाय कराए हुकुम सिंह का परिवार दो चार जिले में प्रतिष्ठत एवं रसूखदार परिवार मात्र दो पीढ़ी धीरेन्द्र सिंह एवं हुकुम सिंह तक बन गया कहते है धन दौलत तो मिल सकता है मगर संस्कार खून से ही मिलता है जो धीरेन्द्र सिंह के कुनबे के साथ सत्य प्रतीत हो रहा था।

शिक्षित बेटों ने अपने अपने व्यवसायों में बहुत प्रगति कि धीरेन्द्र सिंह के पोतो ने उनके जीवन कि दरिद्रता के नामो निशान मिटा दिया लेकिन दौलत का यह महल धीरेन्द्र सिंह कि देशद्रोह एवं देश भक्तो कि आह कि बुनियाद पर खड़ी थी तो बाप हुकुम सिंह के क्रूर एवं अमानवीय अहंकार के अरमानों पर बनी थी।

धीरेन्द्र सिंह अंग्रेजो कि दलाली करता देश भक्तो को प्रताड़ित करवाता तो हुकुम सिंह स्वतंत्र देश के विकसित हो रहे समाज पर जुल्म कि सारे हदे तोड़ देता देश कि आजादी के बाद एवं अंग्रेजो से मिले फार्म हाउस एवं दौलत कि बुनियाद पर हुकुम सिंह को जन्म के साथ ही दौलत का दरबार मिला हुआ था जिसके सिंघासन पर बैठकर वह अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता रहता जब हुकुम सिंह जवान हुआ और उसका बाप धीरेन्द्र सिंह जीवित था तब हुकुम का व्यवहार समाज लोगों के प्रति बेहद बहसियाना हुआ करता किसी भी नवयौवना पर उसकी नज़र पड़ने भर कि देर थी वह ऐंन
केन प्रकारेन हासिल करता धीरेन्द्र सिंह के पास शिकायत आने पर कुछ मामलों में ले दे कर समझौता कर लेता तो कुछ मामलों में दबंगई से दबा देता।

धीरेन्द्र सिंह के मरने के बाद हुकुम सिंह का जब जमाना कायम हुआ तब उसने लगभग दस कोस के आस पास के सभी गांवों में लौड़ी या यूं कहे कि बिना काम के दासी पाल रखा था जिसका काम था गांव में जवान कुंवारी कन्याओं के बारे में जानकारी देना एवं हुकुम सिंह के लिए उसे प्रस्तुत करना अपने इस विशेष शौख के लिए हुकुम सिंह ने घर से अलग कुछ दूरी पर एक डेरा गोठा बनवा रखा था जहां वह अपने शौख को अंजाम देता उसके इस शौक के कारण कितनी ही लड़कियों ने दम तोड दिया जिनके शवों को हुकुम सिंह के बेटे ठिकाने लगाते थे पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती क्योंकि हुकुम सिंह का कद बहुत ऊंचा था मरने वाली लड़कियों के मां बाप को हुकुम सिंह कुछ नगद दे देता कुछ दिन कि वेदना के बाद मां बाप को सब भूलना पड़ता।

मैंने कमल नयन जी से यह पूछना उचित नहीं समझा कि क्या स्वतंत्र राष्ट्र में भी ऐसी क्रूरता के का तांडव संभव हैं क्योंकि मैंने स्वयं अपने गांव में हुकुम सिंह के हज़ारांश व्यक्ति का आचरण भी हुकुम सिंह कि ही तरह था वह भी ईश्वर द्वारा दिए समय काल कि शक्ति का अपने शौख के लिए सदुपयोग करता था तब भी पूरा गांव जनता था लेकिन कुछ नहीं बोलता इसीलिए कमल नयन कि किसी भी बात पर मुझे कत्तई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि भारत में जीवित नर भक्षी इंसानों के एक बड़े समाज कि वास्तविकता के सत्यार्थ से परिचित करवाया।

हुकुम सिंह के चारो बेटे अपने पिता कि कार गुजारियों से परिचित थे बल्कि सहयोगी थे अतः हुकुम सिंह के जीवित रहते ही बेटों का आचरण बिल्कुल बेटों कि तरह न होकर पट्टीदार भाईयों कि तरह हो गया जो बूढ़े होने पर हुकुम सिंह को बहुत अंखरता लेकिन उसके कर्मों के परिणाम का दर्पण उसकी खुद कि संताने ही थी जब हुकुम सिंह शरीर से कमजोर एवं हो गया एवं पारिवारिक मामलों में उसकी पकड़ कमजोर हो गई तब बच्चे ही उसे प्रताड़ित करते पीटते वह यह सब बर्दास्त करने को विवश था क्योंकि उसने अपने जीवन काल में यही बोया था जो विष वाण कि फसल बन उसके जीवन में ही उसके कर्मों को धीरे धीरे लौटा रही थी ।

कमल नयन जी ने बताया कि हुकुम सिंह के चारो बेटे इसे गांव के गड़ही के किनारे ही जलाने वाले थे वो तो हुकुम के पुरोहित पण्डित चतुअरानान मिश्र(काल्पनिक नाम) ने समझाया कि यदि बाप कि अर्थी को लेकर चारो बेटे काशी के पावन परिक्षेत्र में लेकर चले गए और वहा दाह हुआ तो पिता के कुकर्मों कि छाया बेटों पर नहीं पड़ेगी या कम हो जाएगी पण्डित चतुरान एक तो अपने यजमान हुकुम सिंह के प्रति अपने पुरोहित धर्म के दायित्व को निभाने के लिए एवं हुकुम कि सद्गति के लिए उसके चारो बेटों को हुकुम कि अर्थी को काशी ले जाने का सुझाव दिया साथ ही साथ उनको यह तथ्य भी मालूम था कि हुकुम सिंह कि जो संताने उसे जीवित रहते पिटती थी प्रताड़ित करती थी वह उसके शव को काशी तक लेकर एक साथ पहुंच पाएंगी संदेह है यदि एक साथ पहुंच भी गई तो शव दाह तक एक साथ नहीं रह पाएंगी और आपस में लड़ झगड़ कर हुकुम के अंतिम संस्कार को ही उसके पापों के प्रश्चित का प्रमाण बना कर दुनियां के सामने प्रस्तुत कर देंगे।

वैसा ही हुआ हुकुम सिंह के चारो बेटे हुकुम कि अर्थी लेकर पहले मर्ण कर्णिका लेकर गए वहा डोम राजा के यहां बवाल काटा फिर हरिश्चन्द्र घाट पर भयंकर धूप में हुकुम सिंह के शव को भूनने के लिए रख आपस मै लड़ते रहे दुनियां तमाशा देखती यही अंदाज़ा लगाती रही कि इतने बड़े आदमी कि मृत्यु के बाद इतनी दुर्गति क्यो अपने बेटे ही उसके साथ पल भर नहीं ठहरना चाहते
कहावत है कि जीवन के कुकृत्यो एवं पापो का हिसाब व्याज के साथ बढ़ता रहता है यदि कोई ईश्वर को मानता है या नहीं मानता है दोनों ही स्थिति में कर्मो का हिसाब तो किसी ना किसी रूप में चुकाना होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पठान का कर्ज़ा यदि किसी ने पठान से सूध पर कर्ज ले लिया और जीवित रहते वापस नहीं कर सका तो मरने के बाद पठान आता है और घर वालो से मृतक द्वारा लिए कर्जे कि मांग करता है कर्ज़ा अदा हो जाने पर चला जाता है कर्ज़ा अदा न हो होने कि स्थिति में मृतक कर्जदार के परिजनों के सामने मृतक के मुंह में पेशाब कर यह कहते हुए चला जाता है कि कर्ज अदा हो गया यही इसी सत्य का साक्षी था मृतक हुकुम सिंह का शव एवं दाह चिंतित मत हो मिस्टर त्रिपाठी यह दुनिया हैं ।

कमल नयन का खूबसूरत अंदाज मुस्कुराता चेहरा जिंदा दिल अंदाज बोले टूमारो अगैन मिस्टर त्रिपाठी और प्रतिदिन कि तरह स्नेह नेह कि बारिश कि घोर निद्रा का चादर ओढ़ा गए।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश