सुशील कुमार ‘नवीन’
12 अगस्त को विश्व संस्कृत दिवस है। देवभाषा संस्कृत को सम्मान देने का दिन। विश्वभर में संस्कृत को चाहने वालों के लिए यह दिन किसी पर्व से कम नहीं है। हो भी क्यों न हो वो विश्व की उस भाषा से जुड़े हैं जो अधिकांश भाषाओं की जननी है। जो न केवल सांस्कृतिक भाषा है अपितु शास्त्रीय भाषा भी है। जिसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा भी यही है। मधुर और रसीली ध्वनि तथा वैभवशाली शब्द न केवल इसे भारत में अपितु विश्व भर में इसे सम्माननीय स्थान प्राप्त कराते हैं।
देशभर में इस बार संस्कृत सप्ताह 9 से 15 अगस्त तक मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने के साथ-साथ उसे आम जनमानस तक पहुंचाना है। संस्कृत दिवस पहली बार 1969 ई. में मनाया गया था। इस अवसर पर देश भर में व्याख्यान संगोष्ठी एवं बैठकों का आयोजन किया जाता है। इस बार 2022 में संस्कृत दिवस 12 अगस्त को है। श्रावण पूर्णिमा का दिन इसके लिए चुना गया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि पुराने समय में इसी दिन से शिक्षण सत्र की शुरुआत की जाती थी। इस प्राचीन परंपरा को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने संस्कृत और संस्कृति के महत्व को सम्मान देने के लिए इस दिन को चुना है।
देवभाषा संस्कृत में ज्ञान का सागर अथाह है। विश्व के प्रथम ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर समस्त प्राचीन ग्रंथ इसी में संग्रहित है। संस्कृत वर्तमान में प्रयोग में लाई जाने वाली भाषाएं जैसे हिंदी, मराठी, तेलुगु, सिंधी, बंगला आदि की जननी भी है। हिंदू, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्मों के अनेकों ग्रंथ इसी में लिखे गए हैं। चारों वेद,व्याकरण निरुक्त,वेद वेदांग, उपनिषद, पुराण,आदि संस्कृत में ही है। चिकित्सा,खगोल, गणित,विज्ञान, अर्थ से संबंधित सभी शास्त्र इसी में हैं। कहने की साफ बात यही है कि किसी विषय को जड़ से समझना और जानना है तो संस्कृत को जानना होगा।
प्राचीनकाल में सभी भारतीय संस्कृत का प्रयोग करते थे। कई समय तक संस्कृत भाषा बहुत सारे राज्यों में प्रचलित रही और अभी भी इसका प्रचलन कई राज्यों में देखने को मिल जाएगा। राजा भोज और एक बुनकर के बीच के वार्तालाप में प्रयोग इस श्लोक से संस्कृत प्रेम का उदाहरण देखा जा सकता है। –
काव्यं करोमि नहि चारुतरं करोमि
यत्नात्करोमि यदि चारुतरं करोमि ।
भूपालमौलिमणिमण्डितपादपीठ
हे साहसाङ्क कवयामि वयामि यामि।
इसी तरह लकड़ी का बोझ ज्यादा देख कर राजा भोज ने एक लकड़हारे से पूछा। ‘भारो वाधति’? अर्थात लकड़ी का भार ज्यादा कष्ट तो नहीं पहुँचा रहा ? लकड़हारे ने जो जबाव दिया उसे सुनकर राजा भोज को भी अपनी आंखे नीचे झुकानी पड़ गई थी। लकड़हारे ने कहा कि ‘भारो न वाधते राजन यथा वाधते वाधति’ अर्थात हे राजन !सिर पर लकड़ी के भार से मुझे इतना कष्ट नहीं हो रहा ,जितना आपके मुख से वाधते को वाधति सुन कर हुआ है।
संस्कृत भाषा भारत की एकता का आधार है। भारतीय गौरव की रक्षा के लिए इस भाषा का प्रचार-प्रसार करना हमारा सबका कर्तव्य है। संस्कृति संस्कृत पर आधारित है। संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध उक्ति है- “संस्कृतिः संस्कृताश्रिता” अर्थात् हमारी संस्कृति संस्कृत पर आश्रित है। इससे स्पष्ट होता है कि यदि हमें अपनी संस्कृति बचानी है तो यह आवश्यक है कि हम संस्कृत को पढ़े ,उसे जानें। बिना संस्कृत के संस्कृति का अस्तित्व हो ही नहीं सकता।
आज के समय में देश को संस्कृत की महता बनाए जाने की प्रबल जरूरत है। गुणों के आधार पर जो सम्मान इसे मिलना था वो अभी मिल नहीं पाया है। इसे आम लोगों की भाषा बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। तभी संस्कृत दिवस की सार्थकता साबित हो पाएगी।
‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा’।
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।