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काव्य धारा -14

मंगल मूरत

जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक!!

मातृ भक्ति की शक्ति प्रथम पूज्यते देव गज़ानन!!

जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक !!

महादेव शिव शंकर के सत्य प्रकाश महाकाल रूद्राअँश भय भव, भंजक बाधा विघ्न विनाशक देवो के आदी देव लम्बोदर !!

जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक!!

दुख, संकट हरता, मंगल करता, नियती काल निर्धारक, भक्तो के रक्षक दुष्टों के संघारक, दीन दुखी के पालक करुणा छमा द‍या के सागर !!

जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

द॔त एक, चार भुजाएं, सोहे सिंदूर माथे, मुसक सवारी नारायण, चतुरानन भी मंगल मुरति कि इस्तुति गाए ।।
जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक!!

मोदक का भोग रिद्धि सिद्धि ही भाए, सकल कामना के दाता, दुख सबृद्धि शुभ मंगल कर्ता कि अर्घ्य आराधना ओम् गण गण गण गणपति श्री गणेश।।

जै जै जै गण पति गण नायक शुभ कर्मों के देव विनायक जै जै जै गण पति गण नायक!!




काव्य धारा -13

जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!
जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!

मनोकामना कि तू माता, ममता का आँचल वात्सल्य कि मुरत सूरत महिमा कि माता रानी!!

जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!

दुष्ट विनाशक भय भंजक माँ शेरों वाली!!

जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!

सूर्योदय संध्या तक तेरी सेवा भक्ति रात्रि जागरण कि आराधना तूं देवी देवों कि शक्ति जै जै माँ जोता वाली!!
जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!

संतानों कि रक्षक, सकल मनोरथ पूरन करती, सुख शांति सम्मान कि लक्ष्मी!!

जै जै जै अम्बे मातु भवानी माँ दुर्गा जग कल्याणी!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश




काव्य धारा -12

राम तो जीवन मूल्यों का नाम
राम धर्म धैर्य का मान।।
राम विशुद्ध सात्विक संस्कार
राम राम से प्रणाम।।
राम राम राम अभिशाप
राम नाम ही आदि राम नाम
ही अंत हर ह्रदय में राम है
हर साँसों में राम
हर प्राणी में राम है हर प्राण
के राम।।
बनाना है भक्त राम का मन का
मेल दोष को धो डालो
युग समाज के रिश्तों में
मर्यादा पुरुषोत्तम पालो।।
मन वचन कर्म से मिथ्या द्वेष
दम्भ त्यागो स्वयं को राम मय बना डालो।
कण कण में राम मिलेंगे
राम के प्राणी प्राण भगवान मिलेंगे।।
संसार के प्राणी बानर भालू
साथ मिलेंगे।।
दुःख पीड़ा में तेरे साथ रहेंगे
तेरे साथ जिएंगे तेरे साथ मरेंगे।।
राम नाम ही सत्य है राम राम
स्वागत राम
नाम ही खेवनहार।।
राम ही यश है राम राम राम ही
अधम राम नाम ही सत्य है
राम नाम उद्धार।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर




काव्य धारा -11

चलो आज हम राम को खोजे

कहाँ हम आ गए खुद
को खोजते भटकते
नगर की हर डगर पर
तेरा नाम लिखा हैं
तेरी अवनि का कण कण
एक दर्पण के जैसा हैं।
तेरी अवनि के कण कण
में तेरा रूप देखा हैं
कोई राम कहता हैं
कोई भगवान कहता हैं।
हर सांसो की धड़कन में
एक राम लाया हूँ।
मानवता के मूल्यों का
भगवान लाया हूँ।।
सुबह और शाम कल कल कलरव
करती सरयू की धाराए परम् पावन माटी को मैं साथ लाया हूँ।।
मर्यादाओं की भीड़ में मार्यादा को
खोजता साकेत के पुरुषोत्तम का
श्री राम लाया हूँ।।

 

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




काव्य संगत-10

चलो राम बताएं–

चलो आज हम राम बताएं
राम मर्यादा अपनाएँ।।

राम रिश्ता मानवता की
अलख जगाएं।।

प्रभु राम का समाज बनाएं
मात पिता की आज्ञा सेवा
स्वयं सिद्ध का राम बनाएं।।

भाई भाई के अंतर मन का
मैल मिटाए।
भाई भाई में बैर नहीं भाई
भाई को भारत का भरत बनाएं।।

लोभ ,क्रोध का त्याग करे समरस
सम्मत समाज बनाएं।।

सम्मत सनमत बैभव राम नियत
का दीप जलाए।।

कर्म धर्म श्रम शक्ति निष्ठां
धन चरित पाएं।।

पावन सरयू की धाराएं
कलरव करती जन्म जीवन
का अर्थ सुनाएँ।।

भव सागर का स्वर्ग नर्क
केवट खेवनहार बनाये
भेद भाव रहित राम भव
सागर पार कराएं।।

निर्विकार निराकार राम
सबमें साकार राम बोध
प्राणी प्राण का दर्शन पाएं।।

राम नाम नहीं राम मौलिक
मानवता सिद्धान्त राम रहित
जीवन बेकार।
सांसो धड़कन पल प्रहर में
राम बसाएं।।

राम बन वास का रहस्य
जल ,वन ,जीवन का राम
दैत्य ,दानव से भयमुक्त
धर्म ,दया ,दान ऋषिकुल
बैराग्य विज्ञान का राम।।

सेवक राम यत्र तंत्र सर्वत्र राम
राम से बिमुख ना जाए ।।
चलो आज हम राम बताएं
राम मर्यादा का युग अपनाएं।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश




काव्य धारा -9

राम

स्वयं को भक्त राम का
कहते बड़ा मुश्किल है
भक्त राम का बन पाना।।

राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम
कठिन है जिंदगी में मर्यादा
निभा पाना।।

पिता की आज्ञा से स्वीकारा
राम ने वन में जाना
त्यागा राज पाठ मद लोभ
तापसी जीवन भी मर्यादा का
नजराना।।

पिता आज कुछ भी कहता
बेटे को फर्क नहीं पड़ता
आज बेटा राजा है पिता को
पड़ता है वन जाना।।

बहुत दुस्कर है भाई लखन भरत
जैसा बन पाना।
लखन भाई राम की खातिर
जीवन का शुख भोग त्यागा
बना राम की परछाई बनकर
संग वन भटका ना सोया
चौदह वर्ष जागा।।

भारत भाई आज्ञा पालक
चरण पादुका के शरण
वनवासी नंदी ग्राम के
कण कण में राम बसा डाला।।

केवट जैसा सखा राम का
सबरी के झूठे बेर भी राम
अमृत जैसा।।

उंच नीच का
भेद राम ने मिटा डाला जग में
राम ने भगवान् भाव बता
डाला।।

मित्र धर्म मिशाल सुग्रीव मिशाल
अधम शारीर के भालू बानर की
भक्ति सेवा के कायल राम।
महाबीर हनुमान
राम नाम की भक्ति की शक्ति जग का खेवनहार बना डाला।।

नाम राम का लेकर
भाई का दुश्मन भाई
मित्र धर्म का मतलब ही
दुनिया ने बदल डाला।।

भक्त राम का द्वेष रहित निष्पाप
अन्याय अत्य चार का प्रतिकार
राम भक्ति है आत्म बोध का
उजियार ।।
मन में राम नाम मर्म का
दिया एक जला डालो
रामभक्ति का युग में अलख
जगा डालो।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश




काव्य सागर -8

——जग जननी माँ—–

10-जग जननी
दुःख हरणी ,मंगल करनी तू तारण
हारी तू सकल जगत संसार माँ।।
दुष्ट विनासक, भय भव भंजक
पल, प्रहर अविरल युग प्रवाह माँ।।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
पाप विनासनी मोक्ष दायनी
जगत कल्याणी युग गति व्यवहार माँ।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
अपराध क्षामं करती चाहे जो भी
गलती तेरी ही संतान युग संसार माँ
माँ तेरी महिमा ब्रह्मा ,विष्णु, शंकर
गाये तेरी महिमा अपरंपार माँ।।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
देवोँ की देवी स्वर्ग ,नर्क उद्धार माँ
धन ,बैभव ,शुख संपत्ति दाता
तुझे नित दिन जो धावे तेरा ही ध्यान लगाएं सकल मनोरथ पावे।
भव सागर से तू ही करती बेड़ा पार माँ।।
स्वांस प्राण आधार माँ
जग जननी तू सकल जगत आधार माँ।।
भक्तो की शक्ति तू अवनि आकाश
ब्रह्मांड माँ जग जननी तू सकल जगत
संसार माँ।।
तू पार्वती राधा ,रुक्मणि अर्धनारीश्वर
ईश्वर की श्रृंगार माँ जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
तू माता ममता तेरा आँचल हम बालक
नादान माँ जग जननी तू सकल जगत
संसार माँ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 

11-जै जै जै अम्बे——-

अम्बे तेरा दर्शन दुर्लभ दौलत
अम्बे तेरा मुखड़ा हरता दुखड़ा
अम्बे तेरे आशीष का है संसार
अम्बे तेरे रूप हाथ हजार।।
अम्बे तू ही दुःखियों की साहरा
अम्बे तू ही करती बेड़ा पार।।
अम्बे तेरी भक्ति में ही शक्ति
अम्बे तू ही कृपाल दयाल।।
अम्बे तू ही करुणा की है सागर
अम्बे तू ही है दीन दयाल।।
अम्बे तू ही जीवन का आधार
अम्बे तेरी भक्ति भाग्य सैभाग्य।।
अम्बे तू ही जननी पालन हार
अम्बे तू ही दुष्टो का संघार।।
अम्बे तू ही नारी की है शक्ति
अम्बे तू ही सृष्टि संसार।।
अम्बे तू ही भक्तों की है भक्ति
अम्बे तू ही अवनि आकाश।।
अम्बे तू ही नदियां सागर
अम्बे तू ही वायु और तूफान।।
अम्बे तू ही शुख शांति की लक्षमी
अम्बे तू ही ममता और दुलार।।
अम्बे हम तो बालक है नादान
अम्बे हम गाते तेरा गुण गान।।
अम्बे तू ही क्षमा की सागर
अम्बे बालक का जो अपराध।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 

12-पाप। बिनासनी माँ—–

कष्ट निवारिणी पाप नाशिनी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
दुर्लभ ,सुगम शुभ मंगल करती
अंधकार की ज्योति माँ।
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।
आगम ,निगम पुराण तेरी
महिमा गावैं जग कल्याणी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
खड्ग ,त्रिशूल ,घंटा ,खप्पर ,पदम् चक्र वज्र धारिणी रौद्र रूप की काली माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

संसय हरणी संकल्प की जननी
भक्ति की शक्ति निर्विकार की हस्ती
माँ जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।
तेरे द्वारे जो भी धावे मनवांच्छित फल
पावे भोग भाग्य की दाता माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
पापी अधम का बढ़ता अत्याचार तब तब काल दंड काअवतार
युग धरती हरति संताप माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।
शोक ,रोग से निर्भय करती
विघ्न विनासानी विध्यवासिनी
मां जाय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 

14-माईया आओ घर द्वारे—–

माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों का है इंतज़ार
घर घर तेरा मंडप सजा है
माईया के स्वागत का दिन रात।।

माईया तेरे रूपों का संसार
माईया तू ही अवनि की अवता6र पर्वत बाला बुद्धि ,बृद्धि का स्वर संसार
माईया पधारो घर द्वारे भक्तो को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही ज्ञान, ध्यान, विज्ञान
ब्रह्म आचरण ब्रह्म चारिणी विधि विधान बुद्धि पराक्रम प्रबाह
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही चंद्र हास शक्ति बल
बुद्धि का विकास माईया तू ही दानवता का विनाश चंद्र माथे घंटा खड़क त्रिशूल हाथ माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों को हैं इंतज़ार।।

माईया शुभ मंगल का है गान
तेरा आगमन झूमे गाये संसार
मिट गए सारे अंधकार कूष्माण्डा
का गुणगान माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों को है इंतज़ार।।

माईया चहुँ ओर खुशहाली
माईया कर्म ,धर्म ,मर्म ,मान
दुष्टो का विनाश स्कन्ध
माता का आगमन जग कृतार्थ
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों
को है इंतज़ार।।

माईया जग सारा तेरा मंदिर
युग का प्राणी बालक नादान
माईया बल ,बुद्धि ,बैभव का वरदान
दुष्ट ,दुष्कर्म ,दुःसाहस का नाश मां
कात्यानी जग माँ है तू प्राण
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही सत्य सन्ध ,सत्य
सत्यार्थ माईया तेरा जग जाहिर न्याय
अन्याय दानव का है तू काल
भक्तो की रक्षा राक्षस संघार
तू ही काली काल माईया पधारो
घर द्वारे भक्तोंको है इंतज़ार।।

युग गरिमा गौरव गौरी
भक्ति ,शक्ति का विश्वास
वरदान पूजा ,वंदन ,अभिनंदन
महा गौरी धाम पधार माईया
पधारो घर द्वारे भक्तों को है
इंतज़ार।।

सकल मनोकामना दायनी
रिद्ध सिद्धि दायनी भय
भव भंजक निर्भय कारी
सिद्धदात्री माँ नौ रूप नवधा
भक्ति नवग्रह सहित विराजै
माईया पधारो घर द्वारे भक्तों
का हैं इंतज़ार।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश




काव्य सागर-7

माँ आओ मेरे द्वार

माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों का है इंतज़ार
घर घर तेरा मंडप सजा है
माईया के स्वागत का दिन रात।।

माईया तेरे रूपों का संसार
माईया तू ही अवनि की अवता6र पर्वत बाला बुद्धि ,बृद्धि का स्वर संसार
माईया पधारो घर द्वारे भक्तो को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही ज्ञान, ध्यान, विज्ञान
ब्रह्म आचरण ब्रह्म चारिणी विधि विधान बुद्धि पराक्रम प्रबाह
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही चंद्र हास शक्ति बल
बुद्धि का विकास माईया तू ही दानवता का विनाश चंद्र माथे घंटा खड़क त्रिशूल हाथ माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों को हैं इंतज़ार।।

माईया शुभ मंगल का है गान
तेरा आगमन झूमे गाये संसार
मिट गए सारे अंधकार कूष्माण्डा
का गुणगान माईया पधारों घर द्वारे
भक्तों को है इंतज़ार।।

माईया चहुँ ओर खुशहाली
माईया कर्म ,धर्म ,मर्म ,मान
दुष्टो का विनाश स्कन्ध
माता का आगमन जग कृतार्थ
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों
को है इंतज़ार।।

माईया जग सारा तेरा मंदिर
युग का प्राणी बालक नादान
माईया बल ,बुद्धि ,बैभव का वरदान
दुष्ट ,दुष्कर्म ,दुःसाहस का नाश मां
कात्यानी जग माँ है तू प्राण
माईया पधारों घर द्वारे भक्तों को
है इंतज़ार।।

माईया तू ही सत्य सन्ध ,सत्य
सत्यार्थ माईया तेरा जग जाहिर न्याय
अन्याय दानव का है तू काल
भक्तो की रक्षा राक्षस संघार
तू ही काली काल माईया पधारो
घर द्वारे भक्तोंको है इंतज़ार।।

युग गरिमा गौरव गौरी
भक्ति ,शक्ति का विश्वास
वरदान पूजा ,वंदन ,अभिनंदन
महा गौरी धाम पधार माईया
पधारो घर द्वारे भक्तों को है
इंतज़ार।।

सकल मनोकामना दायनी
रिद्ध सिद्धि दायनी भय
भव भंजक निर्भय कारी
सिद्धदात्री माँ नौ रूप नवधा
भक्ति नवग्रह सहित विराजै
माईया पधारो घर द्वारे भक्तों
का हैं इंतज़ार।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




काव्य फहरा-7

भय भव भंजक

कष्ट निवारिणी पाप नाशिनी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

दुर्लभ ,सुगम शुभ मंगल करती
अंधकार की ज्योति माँ।
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।

आगम ,निगम पुराण तेरी
महिमा गावैं जग कल्याणी माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

खड्ग ,त्रिशूल ,घंटा ,खप्पर ,पदम् चक्र वज्र धारिणी रौद्र रूप की काली माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

संसय हरणी संकल्प की जननी
भक्ति की शक्ति निर्विकार की हस्ती
माँ जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।।

तेरे द्वारे जो भी धावे मनवांच्छित फल
पावे भोग भाग्य की दाता माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

पापी अधम का बढ़ता अत्याचार तब तब काल दंड काअवतार
युग धरती हरति संताप माँ
जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

शोक ,रोग से निर्भय करती
विघ्न विनासानी विध्यवासिनी
मां जाय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ
दायनी माँ।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




काव्य सागर -6

जगत माँ

जग जननी
दुःख हरणी ,मंगल करनी तू तारण
हारी तू सकल जगत संसार माँ।।
दुष्ट विनासक, भय भव भंजक
पल, प्रहर अविरल युग प्रवाह माँ।।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
पाप विनासनी मोक्ष दायनी
जगत कल्याणी युग गति व्यवहार माँ।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
अपराध क्षामं करती चाहे जो भी
गलती तेरी ही संतान युग संसार माँ
माँ तेरी महिमा ब्रह्मा ,विष्णु, शंकर
गाये तेरी महिमा अपरंपार माँ।।
जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
देवोँ की देवी स्वर्ग ,नर्क उद्धार माँ
धन ,बैभव ,शुख संपत्ति दाता
तुझे नित दिन जो धावे तेरा ही ध्यान लगाएं सकल मनोरथ पावे।
भव सागर से तू ही करती बेड़ा पार माँ।।
स्वांस प्राण आधार माँ
जग जननी तू सकल जगत आधार माँ।।
भक्तो की शक्ति तू अवनि आकाश
ब्रह्मांड माँ जग जननी तू सकल जगत
संसार माँ।।
तू पार्वती राधा ,रुक्मणि अर्धनारीश्वर
ईश्वर की श्रृंगार माँ जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।
तू माता ममता तेरा आँचल हम बालक
नादान माँ जग जननी तू सकल जगत
संसार माँ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर उत्तर प्रदेश