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जैसे हबूब गया

 
नवगीत-जैसे हबूब गया

 
सूरज निकला सुबह-सुबह
शाम को डूब गया।
 
किरणों ने 
दुनिया में
धूप की चादर फैलाई।
संगीत फूटा 
निर्झर से
कल-कल की ध्वनि आई।।
 
ये कैसी चहल-पहल थी कि
मन ही ऊब गया।
 
हवाएँ बर्फीली
तन में
सुईयाँ चुभाएँगी।
चिड़ियाँ गुम्बद पर
सुबह-सुबह
प्रभाती गाएँगी।।
 
धुला-धुला सा मौसम है
जैसे हबूब गया।
 
अंबर से बहारें
अप्सरा सी
बाग में उतरीं।
आज वसुंधरा
लग रही है
बिल्कुल साफ-सुथरी।।
 
और प्रेयसी के जीवन से
है महबूब गया।
 
अविनाश ब्यौहार
जबलपुर मप्र