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हाइकु

माँ हो कर ही

जाना जा सकता है

माँ का होना भी

 

काँधे पे पेट

सिर पर गठरी

कोरोना यात्रा

 

धूप से लड़े

हमको छाया देने

पिता सा पेड़

 

जीवन छोड़

लाशों को ही चाहती

ये गिद्ध वृति

 

उलूक यारी

उजाले की क़ीमत

अंधेरा तारी

 

अयानों हेतु

सयानों का छलावा

मौत भी मोक्ष

 

बैल ? तो कोल्हू

जो खाने हों बादाम ?

बन जा मिट्ठु ।

 

फिर पुकारे

मन अँगुलीमाल

आओ ना बुद्ध !

 

पेड़ पिता

सौंपते अंतस भी

फले औलाद

 

पेड़ से पन्ना

पन्ने पे माँडा पेड़

बचाने पेड़

 

धेले बिकते

इंसान यहाँ पर

महँगाई है ?

 

नहीं कहता

वो जो नहीं सहता

कथा बिवाई

 

लगे इधर

और मिले उधर

राज की नीति

 

यक़ीं का खेल

माटी की गुल्लक में

सोने के सिक्के

 

बिन लश्कर

प्यार से जग जीते

वो कलंदर

 

मेघ गठरी

बाँटे पनियाँ मोती

कहाए वर्षा

 

बढ़ती हुई

जनसंख्या दिखाती

आदमी कमी

 

मर्जी हमारी

जब चाहे कह  दें

गधे को बाप |

 

टँगोगे उल्टा

जब कभी करोगे

वल्गल यारी |

छुपती रहे

दम्भ चढ़ी, पाँ जली

फूँकूँ रावण