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रज्जो /RAJJO

                        रज्जो

 रात के दस बज रहे होंगे। कॉलनी के गेट से होकर आ रही मिलिट्री हॉस्पिटल की वैन देखकर हैरान रह गयी | इस समय कौन सी इमरजेंसी है ? अजीत को बुलाने जैसे ही मुडी , तब तक वैन हमारे क्वार्टर के सामने आ चुकी थी।

‘मास्टरनी, मास्टर जी को बुलाइए ज़रा ‘ तिवारी की आवाज।

वैन का सायरन सुनकर तब तक अजीत भी  दरवाजे तक पहुंच चुका था। तिवारी से बात करते वक्त अजित के चेहरे पर दिखी घबराहट ने दिल की धड़कन और बढ़ा दी ।

‘दुर्गा प्रसाद की बीवी अस्पताल में है,तुम जल्दी तैयार हो जाओ |’ अजित ने कहा |

क्या उसकी डेलिवेरी हो गयी ?’ मैंने खुशी-खुशी पूछा |

‘ नहीं उसका एक्सीडेंट हो गया है | केरोसीन से शरीर पूरा जल गया है  | बचने की कोई उम्मीद नहीं | वह तुम से मिलना चाहती है |’ अजी उसी रौ में बताता  जा रहा था ,मैं कुछ बता  नहीं पायी , वहीँ कि वहीँ जड़ होकर खडी रही | कब वान पर चढी ,कब हम अस्पताल पहुंचे ,होश ही नहीं रहा |      

रज्जो… रजवंती… कुलवंदसिंह कॉलोनी के नए क्वार्टर में मेरी मदद के लिए आयी थी वह । लान्स नायिक दुर्गा प्रसाद की पत्नी। शादी के बाद जब मैं पटियाला पहुंची तो ऐसा लग रहा था  जैसे मेरी जड़ें ही उखड़ गई हों। कुलवंद सिंह कॉलोनी के 25 क्वार्टरों में एक में भी कोई मलयाली परिवार नहीं था । एकमात्र सांत्वना थी अजी का साथ  और प्यार | रजवंती, जिसे सब रज्जो बुलाती थी, मास्टरजी की पत्नी को गृहकार्य में मदद करने के लिए आयी थी ।  गेहूँवा रंग, रूखे – सूखे बाल ,गोल-गोल सुडौल गाल और पान के दाग भरे दांत …और सबसे आकर्षक थी उसकी वे बड़ी-बड़ी आँखें हर चीज़ को उत्सुकता से देखती थी | जब वह अपने गंदे दांतों को दिखाकर  हंसती थी , तो लगता था कि उसकी  आंखें भी हंसने लगती हैं ।

नयी जगह और नए परिवेश से परिचित होने में  रज्जो ने ही मेरी मदद की थी । हिंदी में एम .ए किया है तो क्या हुआ , स्थानीय भाषा के बिना बाजार जाना बहुत मुश्किल था । अपने व्यस्त काम  के दौरान अजी हमेशा मेरे  साथ आ भी नहीं पाते थे। वहीं पर रज्जो का साथ काम आया | उसके साथ मैंने यात्रा करना सीखा, बाज़ार जाकर चीज़ें खरीदना सीखा  और वहां के निवासियों के साथ हिल-मिलकर रहना भी सीखा । इसके साथ मुझे एक नाम भी मिला ‘मास्टरनी’ ।     

इसी बीच अनपढ़ रज्जो को हिंदी पढ़ाने का जिम्मा उठाया था मैंने  । सिर्फ एक टाइम पास के लिए शुरू किया था  ,पर  इसने मेरी जिंदगी ही बदल दी। रज्जो के बाद श्रीरामनगर के  सिपाहियों की पत्नियां एक-एक कर पढ़ने आने लगीं । कुछ   तो अपने बच्चों को भी साथ ले आयी  तो  कुछ   बूढ़ी माताओं को |  बुजुर्गों के लिए  साक्षरता क्लास  और बच्चों के लिए ट्यूशन … मेरे  अध्यापन  करियर की शुरुआत वहीँ पर हुई | पाँच साल से लेकर पचपन साल  की उम्र तक के शिष्य बने | रज्जो सबकी मुखिया थी । अपने गाँव  से इतनी दूर आकर जो अजनबीपन और अलगाव का बोध दिल में उग आया था वह धीरे-धीरे बदलने लगा । मैं वहां पूरी तरह रम गयी  । मेरे  इस बदलाव से सबसे बड़ी  राहत अजी को ही मिली थी , अब तो रोज़ उन्हें मेरी शिकायत सुननी नहीं पड़ती  थी | मज़ाक –मज़ाक में उनके दोस्त भी कहा करते थे , ‘ मास्टरजी ,अब तो आप से भी पोपुलर हो गयी है  मास्टरनी |  आर्मी वूमेन वेलफेयर एसोसिएशन के सहयोग से महिलाओं के लिए कई काम करने में मुझे सक्षम बनाया था रज्जो के लिए शुरू की गयी साक्षरता क्लास  |      

इस बीच, इस एहसास ने कि हमारे जीवन में एक नया मेहमान आ रहा है, जीवन को और भी खुशहाल बना दिया | खुशखबरी रज्जो को सुनायी ,फिर तो एक परछाई की तरह वह मेरे पीछे ही रही | सचमुच एक माँ की तरह |  ‘मास्टरनी , आपको लड़का होगा लड़का ।’  हर दिन जब वह यह कहती रही तो उसे चिढाने के लिए मैंने कहा, ‘लड़की पैदा हुई  तो क्या होगा ? हमें तो लडकी चाहिए | ‘ उसके चेहरे की मुस्कान तुरंत फीकी पड़ गई थी | बाद में हमारा वह नन्हा सपना जब पेट में ही ख़तम हो गया  तो मुझे दिलासा  देने के लिए वह दिन रात मेरे साथ रही | उन्हीं दिनों उसने मुझे अपनी कहानी सुनायी थी |       

        चौदह साल की थी वह जब  उसकी शादी दुर्गाप्रसाद के साथ हुई थी | महाराष्ट्र के गाँवों में छोटी उम्र में ही लडकी-लड़के का ब्याह होता है | शादी के बाद वह गर्भवती हुई , गाँव के डाक्टर ने स्कैन करके बताया कि लडकी होनेवाली है | इसीलिये पति ने उसका गर्भपात करवाया | एक बार नहीं तीन-तीन  बार। सास  उसे यह कहकर कोसती थी कि लड़कों को जन्म न देनेवाली  परिवार के लिए अभिशाप है। उसके हर काम में वह मीन-मेख निकालती थी ,खरी खोटी सुनाती थी | अब तो सास उसे  ससुराल आने ही नहीं देती | छुट्टियों में जब दुर्गा प्रसाद गाँव जाता है  तो रज्जो यहीं क्वार्टर्स में ही रहती है । अब वह फिर से मां बननेवाली है | पर अपने पति से उसने यह बात छुपायी है |

‘मैं माँ बनना चाहती हूँ मास्टरनी, कितनी बार अपने बच्चों को यूं मारती रहूँ ? अब चाहे लड़का हो या लडकी ,मुझे इसे जनाना है |’  इसलिए  उसने अभी तक अपने पति को यह जानकारी नहीं दी है।

‘ पर कब तक रज्जो ?’ मैंने पूछा | ‘कुछ महीने बाद उसे अपने आप ही पता चलेगा |’  मैंने उसे सलाह दी कि एक और गर्भपात उसके जीवन को खतरे में डाल देगा और इसलिए ऐसा नहीं होने देना चाहिए चाहे कुछ भी हो जाए।      

रात को मैंने रज्जो के बारे में अजीत को बताया | अजीत ने दुर्गा प्रसाद को बुलाकर बात की | मास्टरजी के सामने तो सिरर हिलाकर वह सब कुछ सुनता रहा | मास्टरजी के साथ वह बहस नहीं कर सकता था |

रज्जो उसके बाद भी घर आती रही |  कल जब मैंने उसे देखा तो उसकी आँखों में बड़ी थकान थी। आठवां महीना था और इसलिए मैंने उसे यह कहकर वापस भेज दिया कि अब काम पर न आना। उसे आराम की ज़रुरत थी | वह फिर वहीं खड़ी रही मानो कुछ कहना बाकी हो । मैं बच्चों की  ट्यूशन में इतनी व्यस्त थी  कि उनकी ओर  ध्यान देने का समय नहीं था और यह भी पता नहीं चला कि वह कब लौट गयी ।     

‘सुमा , चलो,उतरो ..अस्पताल आ गया ।‘ अजीत की आवाज़ एकदम चौंकानेवाली थी …मेरा ह्रदय जोर-जोर से धड़कने लगा | मारे भय के मैं कांप रही थी | रज्जो का सामना कैसे करूँ ?

‘मैं क्या कर सकती हूँ अजी , रज्जो ने मुझसे मिलने को क्यों कहा है …आखिर उसको यह एक्सीडेंट हुआ कैसे ?’’ मैं रो रही थी |

” ये सब उस  साले दुर्गाप्रसाद की करामत है ‘..अजी की आवाज़ में रोष था | उसने बेचारी रज्जो के शरीर पर केरिसिन डालकर जलाया था | गाँव में किसी डाक्टर को दिखाया तो उसने बताया पेट में लडकी है … गर्भपात अब संभव नहीं  है, क्योंकि यह आठवां महीना है… बस ‘’ कहते –कहते अजी की साँसें फूल रही  थी |

‘ सुमा ,केवल तुम्हें  अंदर जाने की अनुमति है । पड़ोसियों से थोड़ी सी जानकारी ही मिली  है | उसी के तहत  आर्मी  पुलिस ने दुर्गा को  हिरासत में ले लिया है , पर  रजवंती ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है। उसका बयान ही दुर्गा को सज़ा दे सकता है | इसीलिये तुम्हें लाया गया | तुमसे तो रज्जो सब कुछ बतायेगी न |’  अजीत की बातों से उसे हादसे की पूरी जानकारी मिली |  

तो क्या यही आपत्ति जताने के लिए कल वह घर में आयी थी ? मैंने टाल दिया था उसे … क्या मैं उसे बचा सकती थी ? दिमाग में कई प्रश्न एक साथ आने  लगे | क्या मैं बचा सकती थी उसे ?

सहसा अजीत ने पीछे से पुकारा,       “उस साले को  ऐसे मत छोड़ो सुमा , रज्जो से बयान दिलवाना ज़रूर  |’

आई सी यू वार्ड की तीखी गंध नाक में भर रही थी | भय के मारे मैं  थर-थर कांप रही थी | पुलिस ने सीधे मुझे रज्जो को पास  पहुंचाया |

ओह..कितना भयानक था वह दृश्य …सिर्फ ..सिर्फ एक बार ही उस अध जले  चेहरे देख पाया  | रज्जो के चेहरे का एक हिस्सा पूरी तरह विकृत हो गया था | शरीर पूरा ढका हुआ था ताकि और कुछ दिखाई न दे | वेदना से वह कराहती जा रही थी | मुझसे रहा नहीं गया | सर चकरा रहा था कि पुलिस ने पकड़ लिया और पास की कुर्सी पर बिठा दिया।     

‘मैडम, ज्यादा वक्त  नहीं है उसके पास  और गला पूरा जल गया है कि वह ठीक से बोल भी नहीं सकती …जल्दी  पूछ लीजिये  कि क्या हुआ।’

रज्जो की अध खुली आँखों में देखकर मैंने  पुकारा, “रज्जो!”

असहनीय पीड़ा के बावजूद उस के चेहरे पर हल्की मुस्कान सा हल्की सी लहर  छलकने लगी |

“रज्जो , ये सब हुआ कैसे ?  …दुर्गा ने ऐसा क्यों किया?”उसकी होंठ धीरे-धीरे हिलने लगी।

‘ मास्टरनी , तुम आयी  मुझसे मिलने…’ आँखों से आंसू बराबर बहने लगे …|.    ‘ अब तो सबकुछ  खत्म हो गया, मास्टरनी ! अच्छा ही हुआ मेरी बच्ची पैदा नहीं हुई | नहीं तो उसे भी ..’ उसकी पतली आवाज गले में अटक गयी |

मैंने सवाल दोहराया.. ‘रज्जो,  क्या दुर्गा ने यह जघन्य अपराध किया था?  क्या उसे तुम्हारे गर्भ में पल रहे बच्चे की याद ही नहीं आयी?’

यही मेरी नियति है मास्टरनी , हमारे यहाँ स्त्रियों  की यही किस्मत है। किसे दोष दे?’  उसकी आवाज़ इतनी पतली थी , ठीक समझ नहीं पा रहा था | लेकिन उसकी वे बड़ी-बड़ी आंखें मुझसे बराबर बोलती जा रही थी । उसे यह खबर सुकून दे रही थी कि उसकी बच्ची ऐसे समाज में पैदा ही नहीं हुई, नहीं तो वह उसीकी कहानी दोहराती | पति के खिलाफ बयान देकर वह उसे दंड दिलाना भी नहीं चाहती ? किसलिए ? किसके लिए ? इस क्रूर समाज से शायद उसका यही प्रतिकार था | शायद उसे क्षमा करने का महारत हासिल था |  उसकी आँखों से आंसू की ऐसी लड़ी निकल रही थी जिसमें मेरे सारे सवालों का जवाब थे। न जाने कब वे आँखें निश्चल हो गईं । पहली बार किसी की मौत अपनी आँखों से देख रही थी | रज्जो मर चुकी है , …यह विचार मेरी रूह को कंपा रही थी | कल तक मेरा साया बनकर चलनेवाली,मेरी सहेली .. वह  हम सब को छोड़कर जा चुकी है   … अब तो सास उसे कोई श्राप नहीं देगी ,पति ताने नहीं मारेंगे , …कोई नहीं कोसेंगे उसको ….अपने सारे दुःख –दर्द से उसे छुटकारा मिल चुकी है । रोम-रोम में असहनीय पीड़ा सहकर भी वह अपने पति के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोली  जिसने  कभी भी उससे प्यार नहीं किया,कभी उसे अपना नहीं माना |     

कई साल बीत चुके हैं पर आज भी रज्जो की आंसू भरी निगाहें मेरे दिल और दिमाग में ताज़ी हैं |   क्या स्त्री होना इतना बड़ा जुर्म है ?लडकी पैदा करवाना क्या श्राप है |

 




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नदी के साथ

मैं इस नदी के साथ,
जीना चाहता हूँ..
डूबना चाहता हूँ..
इसके भीतर!!
तैर कर सभी..
पार कर लेते हैं नदियाँ।
नाव पर घूमते हुए..
देखते हैं सभी।
मैं डूब कर भीतर तक
देखना चाहता हूँ भीतर से इसे।
बातें करना चाहता हूँ।
इसकी पीड़ा..
आजतक किसी ने नहीं सुनी
इसके भीतर की व्यथा,
जो अनंतकाल से..
धाराप्रवाह बहती चली आ रही
बिना रुके!!

मैं चाहता हूँ,
इसी क्षण रोक देना इसे
और बातें करना।
इसकी कल-कल की आवाज़
सुनते हैं सभी,
मैं सुनना चाहता हूँ, मौन!!
इसका हो जाना चाहता हूँ मैं,
सदा सदा के लिए!!




किसान

सभी व्यवसायी चाहते हैं, उनका बेटा बड़ा होकर
यदि कुछ नहीं तो उनका ही रोज़गार संभाले।
परन्तु एक किसान कभी स्वप्न में भी नहीं सोचता
कि उनका बेटा बड़ा होकर किसान बने।
ये पंक्तियाँ हमारे कृषिप्रधान देश के किसानों की
बदहाली को बयां करती है।।




प्रेम

प्रेम…

ये वो प्यारा नाम है जो प्यार, स्नेह, मोह, प्रीत, आनन्द, हर्ष का एक अद्भुत संयोग है। जो ह्रदय में ममत्व की भावनाओं को उत्पन्न करता हैं। जहाँ इसमें, जुड़ाव है, खिंचाव हैं, लगाव हैं और अपनत्व हैं तो जलन का एक प्यारा सा मिश्रण हैं।

 




लड़के जब रोतें हैं

  • लड़के जब रोते हैं,
    प्रकृति में असंतुलन बढ़ जाता है।
    सूर्य अपने तीव्र वेग पर आ जाते हैं।
    समंदर में वाष्पोत्सर्जन चरम पर होता है।
    पृथ्वी का जलस्तर तेजी से घटता है।
    वनस्पतियाँ कुम्हलाने लगती हैं।
    सुनों लड़कों! प्रकृति में संतुलन
    बनाये रखने के लिए ही सही,
    तुम आसानी से मत रोना…।



तुम्हारा सौंदर्य

अत्यंत कठिन है
तुम्हारे सौंदर्य का वर्णन
तुम्हारे सौंदर्य को देखना ठीक वैसा ही है,
जैसे बारिश के बाद इंद्रधनुष को ढूंढना!
तुम्हारे सुंदरता का उत्कर्ष है तुम्हारे चेहरे की लालिमा
जैसे उदय होता सूर्य है प्राकृत का!
तुम्हारी ध्वनि हृदय को आमोद करती है
जैसे तपती ऊष्मा में मेंह का आगमन!
तुम्हारी सौंदर्य के साथ तुम्हारी सादगी
ऐसी शोभित होती है मानो
किसी वीरांगना के शरीर पर लगे हों
युद्ध के गहरे घाव!!




अंतरराष्ट्रीय अटल काव्य प्रतियोगिता – 2021

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं सुप्रसिद्ध कवि भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती 25 दिसंबर 2021 के अवसर पर विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस,  न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में “अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता – 2021” का आयोजन किया जा रहा है ।

इस प्रतियोगिता में विश्व के सभी देशों के रचनाकारों से उपरोक्त प्रतियोगिता हेतु स्वरचित हिन्दी काव्य रचनाएँ आमंत्रित हैं । 

अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता – 2021 हेतु स्वरचित कविता भेजने की अंतिम तिथि : 20 सितंबर 2021  

  • प्राप्त हुई रचनाओं पर निर्णयक मण्डल के निर्णय अनुसार घोषित श्रेष्ठ रचनाकारों को अटल जयंती (25 दिसंबर 2021) पर आयोजित किए जाने वाले “अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन” में चयनित रचना का पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा ।
  • निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित उत्कृष्ट रचनाओं की संख्या अधिक होने पर शेष रचनाकारों को हमारे किसी अन्य आगामी “अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन” में चयनित रचना का पाठ करने का अवसर प्रदान किया जाएगा ।
  • प्राप्त रचनाओं की संख्या के आधार पर चयनित श्रेष्ठ रचनाकारों की संख्या 21/51/101/151/251 निर्धारित की जाएगी।
  • पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण रचनाएँ प्राप्त होने पर उन्हें संकलित करके आईएसबीएन युक्त काव्य संग्रह के रूप में प्रकाशित किया जाएगा जिसकी पीडीएफ़ प्रति सभी चयनित रचनाकारों को निशुल्क उपलब्ध करवाई जाएगी ।
  • काव्य पाठ में सम्मिलित होने वाले सभी कवियों को प्रतिभागिता प्रमाणपत्र दिया जाएगा ।

प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु नियम एवं  शर्तें :

  1. कविता किसी भी विषय पर, मौलिक एवं स्वरचित एवं किसी भी तरह के कॉपीराइट मामले से स्वतंत्र हो ।
  2. कविता में किसी भी व्यक्ति/समूह/संस्था/धर्म/जाति/स्थान के लिए अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग न हो ।   
  3.   प्रतिभागी अपनी एक से अधिक कविताएँ प्रतियोगिता हेतु भी भेज सकते है ।
  4. हमारे निर्णायक मण्डल का निर्णय अंतिम एवं सर्वमान्य होगा ।

प्रतियोगिता हेतु काव्य रचनाएँ कैसे भेजें ?

उपरोक्त प्रतियोगिता हेतु काव्य रचनाएँ इस लिंक पर उपलब्ध गूगल फॉर्म के माध्यम से ही स्वीकार की जाएंगी : https://forms.gle/FEjQkogFWBmgGvqu9

अंतिम तिथि : 20 सितंबर 2021 

 




तथाकथित बुद्धिजीवी और स्त्री सशक्तिकरण

मैं अपने गांव का सबसे पढ़ा लिखा लड़का हूं , अच्छी सरकारी नौकरी है , शहर में घर भी है जो मेरे पिता जी ने बनवाई है, और मैं 10 लाख सालाना तक कमा भी लेता हूं ।

गांव और मेरे समाज के लोग अपने बेटे को मुझ जैसा बनने की सलाह देते है । और मुझे बुद्धजीवी कहते है , जो असल में मै मेरी सोशल मीडिया और अखबार में लिखे जाने वाले विचारों को पढ़ कर उनको लगता है ।

मेरी कुछ साल पहले शादी हुई खूब धूमधाम से शादी की पूरी पंचायत में इस बात कि चर्चा थी , और होती भी क्यों नहीं दहेज में बहुत सारे रुपए , चार चक्के की गाड़ी , सोने जेवरात और संसाधन के सभी चीजें मेरे पत्नी के पिता यानी मेरे ससुर ने मुझे दिया । और वो उनकी पूरी जीवन के कमाई से भी अधिक का था ।

मै पढ़ा लिखा बुद्धजीवी शादी के बाद पत्नी को महिला सशक्तिकरण के कई पाठ पढ़ाए , लड़का और लड़की के गैर बराबरी के किस्से सुनाए । भाई बहन के बराबरी के लेख पढ़ाए , पिता के संपति में पुत्र के बराबर पुत्री का अधिकार के मार्ग दिखाएं । 

मेरी पत्नी अपनी हक की लड़ाई लडी और हिस्सा ले आई । अब मै छोटे शहर में नहीं रहता बड़े महानगर में घर ले लिया हूं , मेरे पिता जी अब भी वही छोटे शहर के पुराने घर में है और उनका फोन आया था बता रहें थे मेरी बहन अपना हिस्सा लेने आई है , मै विवश हूं क्या करूं उसकी ( मेरी बहन ) शादी के वक्त मैंने जमीन और घर गिरवी रख दिया ताकि उसकी शादी पढ़े लिखे और सरकारी नौकरी वाले लड़के से हो अगर ये जमीन और घर तुम दोनों में बाट के उसका हिस्सा दे भी देता हूं तो ये कर्ज कैसे भरूंगा ( रोते हुए ) । अब मेरे चिंतन में एक तरह मेरी पत्नी एवं उसके पिता और एक तरफ मेरी बहन एवं मेरे पिता और बीच में मै कल के अखबार के लिए महिला सशक्तिकरण पर लेख लिखने की सोच रहा था ।

ताकि कल जब ये छप कर आए तो मेरे गांव मेरे पंचायत के लोग अपने बच्चे को बोल सकें  इसके जैसा बनो ” 

 

रजनीश तिवारी

दिल्ली विश्वविद्यालय 

(एक छोटी सी लेख महिला सशक्तिकरण के अधीन)

 

 




कर्णधार तनय ( महिला सशक्तिकरण के अधीन एक लेख )

मैं गांव का सबसे पढ़ा लिखा लड़का हूं , अच्छी सरकारी नौकरी है , शहर में घर भी है जो मेरे पिता जी ने बनवाई है, और मैं 10 लाख सालाना तक कमा भी लेता हूं ।

गांव और मेरे समाज के लोग अपने बेटे को मुझ जैसा बनने की सलाह देते है । और मुझे बुद्धजीवी कहते है , जो असल में मै मेरी सोशल मीडिया और अखबार में लिखे जाने वाले विचारों को पढ़ कर उनको लगता है ।

मेरी कुछ साल पहले शादी हुई खूब धूमधाम से शादी की पूरी पंचायत में इस बात कि चर्चा थी , और होती भी क्यों नहीं दहेज में बहुत सारे रुपए , चार चक्के की गाड़ी , सोने जेवरात और संसाधन के सभी चीजें मेरे पत्नी के पिता यानी मेरे ससुर ने मुझे दिया । और वो उनकी पूरी जीवन के कमाई से भी अधिक का था ।

मै पढ़ा लिखा बुद्धजीवी शादी के बाद पत्नी को महिला सशक्तिकरण के कई पाठ पढ़ाए , लड़का और लड़की के गैर बराबरी के किस्से सुनाए । भाई बहन के बराबरी के लेख पढ़ाए , पिता के संपति में पुत्र के बराबर पुत्री का अधिकार के मार्ग दिखाएं । 

मेरी पत्नी अपनी हक की लड़ाई लडी और हिस्सा ले आई । अब मै छोटे शहर में नहीं रहता बड़े महानगर में घर ले लिया हूं , मेरे पिता जी अब भी वही छोटे शहर के पुराने घर में है और उनका फोन आया था बता रहें थे मेरी बहन अपना हिस्सा लेने आई है , मै विवश हूं क्या करूं उसकी ( मेरी बहन ) शादी के वक्त मैंने जमीन और घर गिरवी रख दिया ताकि उसकी शादी पढ़े लिखे और सरकारी नौकरी वाले लड़के से हो अगर ये जमीन और घर तुम दोनों में बाट के उसका हिस्सा दे भी देता हूं तो ये कर्ज कैसे भरूंगा ( रोते हुए ) । अब मेरे चिंतन में एक तरह मेरी पत्नी एवं उसके पिता और एक तरफ मेरी बहन एवं मेरे पिता और बीच में मै कल के अखबार के लिए महिला सशक्तिकरण पर लेख लिखने की सोच रहा था ।

ताकि कल जब ये छप कर आए तो मेरे गांव मेरे पंचायत के लोग अपने बच्चे को बोल सकें ” इसके जैसा बनो ” ।

 

रजनीश तिवारी

 दिल्ली विशवविद्यालय