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*मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई*

*मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

लगाये रखनाअपने मुँह नाक की टोपी।
कहें जिसे मास्क भी लाइफ तब होगी।

कैसा दौर है आया कुछ समझ न आये।
नया वैरियंट गया नहीं है दूजा आ जाये।

गजब कोरोना ये आई मुश्किल बीमारी।
प्राकृतिक बिलकुल ये लगे नहीं बीमारी।

इंसान त्रस्त हो गया ऐसी है ये महामारी।
पढ़ाई लिखाई रोजगार जा रही है मारी।

प्रथम द्वितीय लहरों का खतरा है झेला।
तीसरी लहर की पुनः आरही अब बेला।

चाइना ने ऐसी की है जग से नाइंसाफी।
दुनिया में कहीं पाने लायक ना है माफ़ी।

कोरोना संक्रमण ने करोड़ों जानें ले लीं।
अर्थव्यवस्था लोगों से नौकरियाँ ले लीं।

कभी ब्लैक व्हाइट फंगसों से हैं परेशान।
कभी येलो ग्रीन फंगस कर रहा परेशान।

लगता नहीं साल दो साल अभी जायेगा।
बच्चों बूढों जवानों सबपर कहर ढायेगा।

वैक्सीन तो लगवा लो ही सब कोई भाई।
मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई।

लापरवाही छोड़ें भैया पड़ जायेगी भारी।
आफत में पड़ जायें गें जां पे होगी भारी।

कोरोना अभी गया नहीं अभी नहीं दवाई।
सतर्क रहें व सुरक्षित रहें किये रहें कड़ाई।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*स्वर लहरियों का सरगम ही संगीत*

*स्वर लहरियों का सरगम ही संगीत*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

मन की खिन्नता को ये प्रसन्न करे संगीत।
निराशा को आशा में बदलता है संगीत।

गीत सुन नृत्य करने को मन कहे संगीत।
बज रहा हो कहीं भी ध्यान खींचे संगीत।

सात सुरों के संगम से बनता कोई संगीत।
जीवन में बड़ा महत्व रखता मधुर संगीत।

शिवजी डमरू से निकालते सुन्दर संगीत।
माँ शारदा वीणा से निकालीं मधुर संगीत।

सरस्वती जिस कण्ठ विराजें गाता है गीत।
विद्यामाँ जिस कलम विराजें रचता है गीत।

स्वर लहरियों,वाद्य यंत्रों का मेल है संगीत।
अवसाद मिटा देता है ये सुनिये तो संगीत।

कल कल अविरल बहती सरिता में संगीत।
झर झर बहते झरना से निकले प्रिय संगीत।

कृष्ण के मुरली से निकले बड़ा मधुर संगीत।
शंख ध्वनि से निकलता सुमधुर प्रिय संगीत।

पक्षी के कलरव में वसा है कर्ण प्रिय संगीत।
जल तरंगों से है निकलता मनमोहक संगीत।

कोयल की कूक प्यारी कैसे निकाले संगीत।
पपीहे की टेर प्यारी क्या गजब होये संगीत।

गीत और संगीत का उत्सव घर घर होता है।
ढोल मंजीरा ढपली से लेडी संगीत होता है।

ख़ुशी का हर पर्व अधूरा यदि न बजे संगीत।
जीवन के सुख दुःख से जुड़ा रहा ये संगीत।

आपके अधरों से जो स्वर निकले वो संगीत।
हिन्दू के सोलह संस्कारों में रचा बसा संगीत।

संगीत के महारथियों के हर धुन में ये संगीत।
फिल्में ड्रामें नौटंकी राम-कृष्ण लीला संगीत।

झूलें थिरकें गायें बाथरूम सिंगर प्रिय संगीत।
मानव जीवन का पर्याय बन गया है ये संगीत।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*संस्कार बिना हर शिक्षा बेकार*

*संस्कार बिना हर शिक्षा बेकार*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

संस्कार एक कला है साथमें व्यक्ति का गहना।
जिसमें होता संस्कार भरा उसका क्या कहना।

जीवन में होता है सभी के पूरा सोलह संस्कार।
व्यक्तित्व वही निखरता जिस रग में है संस्कार।

मिलता नहीं दुकानों पर ना ही ये हाट बाजार।
माता-पिता परिवार से मिलता अच्छा संस्कार।

संस्कार ग्रहण करना चाहें तभी ये हैं आ सकते।
स्कूलों में भी गुरुजन-सहपाठी से भी पा सकते।

दया प्रेम स्नेह मदद अग्रज सम्मान करे संस्कार।
क्षमा विनम्रता अनुज प्यार आचरण है संस्कार।

ज्ञान और संस्कार ही हमें शीर्ष तक ले जाता है।
प्रतिभा सज्जनता सहनशीलता से सब पाता है।

खोयें कभी ना जीवन में ये निज गुण हैं संस्कार।
सफल व्यक्ति का आभूषण है यही एक संस्कार।

सुख-दुःख चाहे कोई भी हो याद रहे ये संस्कार।
चरित्र बनाता है अच्छा ये पाता लोगों का प्यार।

महिला का सम्मान करे उन्हें माँ बहन जैसे माने।
उच्च संस्कार का नेक प्रदर्शन है ये दुनिया जाने।

बच्चों में संस्कार ले आयें शिक्षा से भी जरुरी है।
शिक्षा-संस्कार से बढ़ कर कुछ भी ना जरुरी है।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*सर्वश्रेष्ठ हूँ मैं केवल शेष सभी बेकाम*

*सर्वश्रेष्ठ हूँ मैं केवल शेष सभी बेकाम*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

ये कहना कोई श्रेष्ठ नहीं है,मैं ही हूँ केवल सर्वश्रेष्ठ।
बिलकुल गलत धारणा है ये,बिलकुल नहीं यथेष्ट।

एक से एक ज्ञानी हैं जहाँ में,जिनके आगे हो फेल।
ये केवल है घमंड आप का,पटरी बिना चले न रेल।

रावण से ज्ञानी पंडित ना,कोई पृथ्वी पर आया है।
लेकिन अपने दुष्कर्मों का,वो भी फल तो पाया है।

मिल कर रहना प्रेम भाव से,ये सब से है अनमोल।
दुनिया याद सदा रखती है,सब के खट्टे मीठे बोल।

काम नहीं रुकता है किसी का,सब हो ही जाता है।
इस दुनिया में कुछ न मुश्किल,सब तो हो जाता है।

रब ने जब सांसें दी हैं तो,जीवन भी तो वही देगा।
उसने ही दी है यह सांसें,जब भी चाहे वो ले लेगा।

यहाँ कोई ऊँचा ना नीचा,नहीं कोई है अधिकारी।
सब का मालिक 1है केवल,बाकी सभी भिखारी।

कृष्णा ने भी तो दिया सदा है,बलदाऊ को मान।
तब क्यों लोग नहीं करते हैं,बड़ों का वो सम्मान।

किस घमण्ड में जीते हैं वो,किसका है अभिमान।
जहाँ पे हों सब ही ज्ञानी,ना बड़ा किसी का ज्ञान।

दर्द सभी का जो पहचाने,और उसका करे निदान।
इस दुनिया में वही बड़ा है,छोटे भी हो सकें महान।

छोड़ अहं को गले लगाता,मिल कर करता काम।
बनता भी हर काम उसी का,उसी का होता नाम।

यही रीति है इस दुनिया की,ऐसे ही होता है काम।
फिर क्यों खुद को श्रेष्ठ समझते,बाकी को बेकाम।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायंस क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*हिमालयन अपडेट कानपुर-काव्य समीक्षा*

*हिमालयन अपडेट कानपुर-काव्य समीक्षा*
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समीक्षक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

कलमकार कोई भी हो वह तो अपनी लेखनी का सदैव ही धनी होता है। कवि कवियित्रियाँ और साहित्यकार अपने नित सुन्दर साहित्य सृजन से समाज को प्राचीनकाल से ही दर्पण दिखाने का काम करते चले आरहे हैं। साहित्य का समाज के विकास में बहुत बड़ा योगदान माना जाता रहा है।
हिन्दी साहित्य के योगदान की तो बात ही निराली रही है। हिन्दी साहित्य का भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आज विदेशों में भी हिन्दी साहित्य संवृद्धि और विकास के लिए अनेकों संस्थायें कार्यरत हैं।

हमारे सम्मानित साहित्य मनीषियों ने अपने अपने उत्कृष्ट कविताओं और लेखों के सबल माध्यम से समय समय पर विभिन्न महत्वपूर्ण राष्ट्रीय, प्रान्तीय,स्थानीय विषयों के साथ ही साथ हमेशा महापुरुरुषों,त्योहारों,पर्वो,सामाजिक,सांस्कृतिक,और समसामयिक विषयों पर भी अपनी सशक्त कलम से अपने मनोभावों के शब्दों से पिरोते हुए
न सिर्फ समाज को एक आईना दिखाया है बल्कि
बहुत से लेख और कविताओं को इतिहास के पन्नों
में स्वर्णाक्षरों में अंकित कराते हुए उन्हें कालजयी भी बनाया है।

आज मेरे मन में विचार आया कि क्यों अपने इस काव्य ग्रुप *हिमालयन अपडेट-कानपुर* में प्रेषित विभिन्न सुधी,गुणी एवं निरंतर साहित्य सेवा में लगे हुए कवि/कवियित्रियों की प्रस्तुत रचनाओं की *समीक्षा* की जाये।

उसी क्रम में 24 जून 2021 को प्रेषित रचनाओं में जहाँ आदरणीय श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव-गोण्डा,उ.प्र. जी द्वारा प्रेषित ‘कसम’ शीर्षक से उनकी रचना में आज की वर्तमान कसम की स्थितियों का,जिसमे लोग कसम तो एक नहीं सौ सौ खाते रहते हैं किन्तु उसका मान नहीं रखते हैं। उसे तोड़ने पर ही आमादा रहते हैं,गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हैं। बहुत सुन्दर और कटु भावार्थ के साथ रचना को पंक्तिवद्ध किया गया है,वहीं आदरणीय श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव ‘ओम’ जी द्वारा माँ शारदा को ‘नमन’ करते हुए उनकी ही कृपा से साहित्य सृजन की बात अपनी सूक्ष्म रचना में बताते हुए अपनी किसी भी भूल के लिये सरस्वती माता से क्षमा की प्रार्थना का भाव प्रस्तुत किया है। यह पूर्णतः सच है कि हममें से कोई भी बिना विद्या वर दायिनी माँ की कृपा के कुछ भी करने-लिखने में समर्थ नहीं हो सकता है। माँ वीणा धरणी सरस्वती शारदा को शत शत नमन।

आदरणीया सुनीता मुखर्जी,गाजियाबाद-उ.प्र जी द्वारा प्रेषित रचना ‘आस्था’ के माध्यम से जीवन में सिर्फ अच्छे कर्म,दुर्गुणों से बचने,पर सेवा का भाव,
असहायों पर प्रभु कृपा,जीवन पथ से भटकने पर राह दिखाने की कामना के साथ स्वजनों की भ्रम की दीवार गिरा कर चारो ओर ख़ुशियाँ बिखेरने की प्रभु से ज्ञान और वरदान प्राप्त करने की प्रबल इच्छा का समावेश किया गया है,वहीं ‘ढलती शाम’
शीर्षक से लिखी कविता के माध्यम से जीवन की एक और शाम ढल जाने,चाहते हुए भी रवि के तेज में सुकून से और अधिक न रह पाने और रात के आगोश में जाने,कुछ पल का विश्राम पाने,नींद के साथ चाँद तारों में खो जाने एवं अपनी मंजिल पर पहुँच जाने की तृप्ति के साथ आदरणीया नंदिनी लहेजा,रायपुर(छत्तीसगढ़) ने अपना काव्य भाव प्रस्तुत किया है।

आदरणीय कवि विवेक अज्ञानी,गोण्डा,उ.प्र.ने भी
जहाँ अपनी रचना ‘कंप्यूटर के ज़माने’ में कोई किसी का न रहा का भाव प्रदर्शित किया है। सभी इस चमत्कारी मशीन में लोग इतना ज्यादा व्यस्त हो गए हैं कि किसी रिश्ते की कोई फ़िक्र ही नहीं रह गई है। माँ हो या बेटा या बेटे की भूख,माँ का ध्यान केवल कंप्यूटर पर है।बच्चा भी बड़ा होने पर माँ पर ध्यान नहीं देता। श्री कृष्ण और माँ यशोदा के प्यार जैसा क्यों समय नहीं आता। आज इस मोबाइल और कंप्यूटर ने प्रेम के सभी रिश्तों को अकेला कर दिया है,वहीं कविवर ओम प्रकाश द्वारा पुनः प्रेषित ‘एक मुक्तक’ के माध्यम से माया और काया के चक्कर तथा सांसारिक
चकाचौंध में दुनिया से संस्कार एवं आचरण का ह्रास हो रहा है,वह धूल खा रहा है मैं तो कहूँगा कि उसका नाश हो रहा है का बड़ा सुन्दर भाव प्रस्तुत किया है।

वरिष्ठ कवि एवं लेखक डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव,पी बी कालेज,प्रतापगढ़,उ.प्र. द्वारा प्रस्तुत रचना शीर्षक “निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कबीर दास” के माध्यम से कबीर दास जी के जन्म,कर्म,सोच,अनपढ़ होते हुए भी दोहों के गा कर समाज की कड़ुई सच्चाई,रूढ़िवादी विचार धारा,जात-पांत,ऊँच-नीच और मुल्ला-पंडित के विचारों को उनके दोहों के अर्थ को काव्य रूप में पिरोते हुए कबीर के संयम,धर्म,साहस,संतोष धन पर अपनी रचना में भावों को बखूबी समावेशित किया है,वहीं आदरणीय कविवर अभिषेक मिश्रा, बहराइच,उ.प्र.द्वारा प्रेषित एक ग़ज़ल शीर्षक ‘एक प्रयास’ के माध्यम से फ़ना हो गए होते,इश्क में समझौता मगर नहीं आता,बिछड़ जाते कारवां से अच्छा है रास्ते में तेरा शहर नहीं आता। आज दो भाइयों के बीच की दरारें ऐसी गहरी हो गई हैं कि कोई एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करता।
जिसके वादों पे एतबार किया बीमार का हाल भी पूछने नहीं आता,बरगदों के पेड़ क्या कटे अब तो दोपहर भी गांव में नहीं आता जैसे सुन्दर मनोभाव अपनी ग़ज़ल में पिरो कर प्रस्तुत किया है।

आदरणीया कवियित्री डॉ.निधि मिश्रा जी ने अपने कविता शीर्षक ‘घड़ी विपति की है घहराई’ के द्वारा जहाँ महामारी कोरोना के कारण उपजी विभिन्न समस्याओं,काम काज की बंदी,बेकारी, बेरोजगारी,रोग प्रसार और बच्चे,जवान तथा बूढों की जान पर बन आई आफत से दुःख में डूबे हुए सभी प्राणियों की रक्षा करने की दीननबंधु कृपानिधान से गुहार लगाते हुए उनके जीवन को बचाने का सुन्दर भाव प्रस्तुत किया गया है, वहीं
आदरणीय कविवर श्री सुधीर श्रीवास्तव द्वारा पुनः प्रेषित रचना शीर्षक ‘संत कबीर’ के माध्यम से कबीर को एक विचार धारा के रूप में बताया गया है। अन्धविश्वास,भेदभाव,छुआछूत के विरोधी, उनकी मनोभावना में निश्छलता,हिन्दू मुसलमान सब का उनके निशाने पर रहना,हर किसी को केवल ईश्वर की संतान मानना और अपने धुन का पक्का होना बताया है। कबीर को हिन्दू मुस्लिम सभी धर्मों के लोग उतना ही सम्मान देते हैं। आज वास्तव में कबीर अब कबीर नहीं बल्कि एक विचार धारा के रूप में स्थापित हो चुके हैं,आज उसी विचार धारा को जीवन में सभी को अपनाने की आवश्यकता है।

प्रस्तुत समीक्षा के लिए मैं आदरणीया प्रिय अर्चना शर्मा जी का हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ एवं अपना आभार भी व्यक्त करता हूँ,जिन्होंने मुझे इस योग्य समझते हुए मुझसे अपना निवेदन करते हुए मुझे हिमालयन अपडेट कानपुर ग्रुप में प्रेषित दैनिक रचनाओं की समीक्षा करने का एक सुअवसर प्रदान किया।

इस प्रकार आज के कवियों,रचनाकारों एवं सभी साहित्यकारों की प्रस्तुत रचनाओं से हमें बहुत कुछ सदैव की भांति ही सीखने और समझने को मिला। सभी नवोदित रचनाकारों/सुधी मनीषियों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं और सुन्दर सृजन के लिए मेरी बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं मंगल शुभकामनाएं।

समीक्षक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*बढ़ती उम्र के साथ सुखी रहने को आदतों में बदलाव जरुरी*

*बढ़ती उम्र के साथ सुखी रहने को आदतों में बदलाव जरुरी*
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आलेख :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

प्रकृति का यह शाश्वत सत्य नियम है यदि ईश्वर कृपा बनी रहती है तो जो जन्म लिया है,वह वृद्धि करेगा,बढेगा,जवान होगा,अधेड़ होगा और अंत में एक दिन बूढा भी होगा। अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारने और अपनी युवा उम्र की आदतों में आशातीत बदलाव लाने से यह हमें तनावमुक्त जीवन और ख़ुशियाँ प्रदान कर सकता है।

जीवन में हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती और अपार ऊर्जा भरी उमंग लेकर आती है। आप भी उसका आनंद लीजिये। आप को बाल रंगने हैं तो रंगिये, वज़न कम करना है तो अवश्य करिये। मनचाहे कपड़े पहनने हैं तो वह भी आप पहनिये। संतुलित और सात्विक भोजन कीजिये किन्तु ये भी जरुरी है अब बच्चों की तरह खिलखिलाइये,
अच्छा सोचिये,अच्छा माहौल रखिये। प्रतिदिन
शीशे में दिखते हुए अपने वर्तमान अस्तित्व को भी जरूर स्वीकारिये।

संसार की कोई भी क्रीम आपको कभी गोरा नही बना सकती। कोई भी शैम्पू कभी बाल झड़ने से पूरी तरह नहीं रोक सकता, कोई भी तेल कभी पूरी तरह से प्राकृतिक बाल नहीं उगा सकता है।
कोई साबुन भी आपको बढ़ती उम्र में बच्चों जैसी स्किन कभी नही दे सकता है। चाहे वो लाइफ बॉय,पियर्स,डोव, या प्रॉक्टर गैम्बल ही क्यों न हो या फिर पतंजलि प्रॉडक्ट का हो सब अपने अपने सामान बेचने के लिए केवल आकर्षक विज्ञापन देते हैं और पब्लिक को कैसे भ्रमित कर अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं,इस लिए ऐसा कुछ बड़े बड़े विज्ञापनों और प्रचार में बोलते हैं।

सौंदर्य तो एक प्रकृति प्रदत्त ईश्वर का दिया हुआ अनुपम उपहार है। ये सब कुदरती होता है। हमारी
उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक,आँखों से लेकर दाँतों तक मे बहुत बड़ा बदलाव आता है।
हम पुरानी मशीन को चुस्त दुरुस्त रख करके उसे बढ़िया चलाते तो रह सकते हैं,परन्तु उसे कभी भी नई मशीन जैसे नहीं कर सकते हैं। बढ़ती उम्र में निश्चित ही ऊर्जा और स्फूर्ति में तो कमी आनी ही आनी है। हम बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे हैं,इसे सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा।

सच तो ये है कि किसी टूथपेस्ट में ना तो नमक होता है और ना ही किसी मे नीम। किसी क्रीम में केसर भी नहीं होती,क्योंकि यदि 1-2 ग्राम असली केसर भी लेने जाइये तो उसका दाम सैकड़ों से लेकर हजारों रुपए तक में होता है,तब कहाँ से भला केसर साबुन में मिला कर बेजा जा सकता है। कोई बात नहीं अगर आपकी नाक मोटी है तो,
कोई बात नहीं अगर आपकी आँखें छोटी हैं तो,
कोई बात नहीं यदि आपके होंठों की संरचना टेढ़ा है या परफेक्ट शेप साइज में नही हैं। आप गोरे हैं या सांवले इसका भी कभी दुःख न करें। यह शरीर प्रभु का वरदान है। आप केवल यह सोचें कि फिर भी हम सुन्दर हैं। असली सुंदरता टी आप के इस वास्तविक व्यक्तित्व में छिपी है। आप का मन व दिल सुन्दर होना चाहिए। आप का व्यवहार सुन्दर है।अपनी सुंदरता को पहचानिये, उस पर ही गर्व कीजिये। दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है,अपनी निज सुंदरता को महसूस करना।

आप जानते हैं कि हर बच्चा सुंदर क्यों दिखता है? क्योंकि वो छल कपट से कोसों दूर और निश्छल तथा मासूम होता है। उम्र के साथ बड़े होने पर जब हम छल व कपट से लिप्त जीवन जीने लगते हैं तो हम बचपन की हमारी पूरी मासूमियत खोते जाते हैं,और उस सुंदरता को पुनः पाने के लिए ही पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।

हमें अपने मन की सुंदरता और खूबसूरती पर ही ध्यान देना चाहिए। शारीरिक सुंदरता पर नहीं। बढ़ती उम्र के साथ हमारा पेट भी निकल गया है तो कोई बात नहीं उसके लिए हमें शर्माना ज़रूरी नहीं है। हम सभी का शरीर हमारी उम्र के साथ ये बदलता रहता है तो यह वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये। इसके लिए चिंतित
होने की जरुरत नहीं है। आज सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा पड़ा रहता है। कोई कहता लिखता है यह खाओ,वह तो बिलकुल मत खाओ। ठंडा खाओ, गर्म पिओ,
कपाल भाती करो,सवेरे गर्म पानी में नींबू पिओ व
रात को सोते समय गर्म दूध पिओ।ज़ोर ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो,दाहिने से सोइये बाएं से
उठिए। हरी साग सब्जी खाओ, दाल में प्रोटीन है,
दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।

हम अगर पूरे एक दिन के सारे उपदेशों को पढ़ने और पालन करने लगें तो पता चलेगा कि हमारी ज़िन्दगी ही बेकार है,न कुछ खाने को बचेगा और ना कुछ पीने को यहाँ तक कि जीने को भी कुछ नहीं बचेगा। आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे। ये सारा ऑर्गेनिक फूड,एलोवेरा,करेला,मेथी,लौकी,हल्दी,
आँवला, हम विभिन्न कंपनियों के विज्ञापनों और टीवी तथा सोशल मीडिया पर आकर उपदेश देने वालों के चक्कर में फँसकर अपने दिमाग का दही कर लेते हैं। स्वस्थ होना रहना तो दूर हम स्वयं ही स्ट्रेस का शिकार हो जाते हैं।

अरे! भाई हर इंसान मरने के लिये ही तो जन्म भी लेता है। कभी ना कभी तो सभी को मरना ही है। अभी तक तो बाज़ार में अमृत बिकना शुरू ही नहीं हुआ है कि कोई खरीदे और उसे पीकर अमर
हो जाये। हर चीज़ आप सही व संतुलित मात्रा में खाइये। हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जरूर खाइये जो आपको बहुतअच्छी लगती है। भोजन का संबंध मन से होता है और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है। मन को मारकर कभी खुश नही रहा जा सकता। खुश नहीं रहेंगे तो शरीर भी स्वस्थ नहीं रह सकता। तनाव और अवसाद में रह सकते हैं।
इस लिए थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए।
सुबह शाम में समय निकाल टहलने जरूर जाइये,
हल्की फुल्की कुछ कसरत भी करिये। अपने को किसी मन पसंद स्वस्थ कार्य में व्यस्त रहिये। खुश और मस्त रहिये। शरीर से ज्यादा अपने मन को पूरी तरह सुन्दर रखिये। अपने अचार विचार को भी सुन्दर रखिये। प्रकृति की अनुपम सुंदरता को निहारिये,उसका आनंद लीजिये। हमारा आपका यह शरीर और जीवन,माता-पिता और ईश्वर द्वारा दिया गया एक अनुपम उपहार है। हमें अपने उम्र के साथ प्राकृतिक जीवन जीने की जरुरत है। हमें बढ़ती उम्र के साथ अपनी आदतों में बदलाव लाने की जरुरत है,जिससे हम सभी स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकें। अपने जीवन का सम्पूर्ण आनंद बुढ़ापे में भी ले सकें।

 

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*ईश्वर सब कुछ देख रहा है इसका भी ध्यान रखें*

*ईश्वर सब कुछ देख रहा है इसका भी ज्ञान रखें*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

ईश्वर ही की इस जग में सब से बड़ी सत्ता है,
उसके मर्जी बिना कभी हिलता नहीं पत्ता है।

मानव अबतक प्रकृति से बहुत है खेला खेल,
अब मानव रो रहा जब घर ही बन गया जेल।

इतनी विपदा एक साथ न और कभी थी आई,
भीषण गर्मी बर्फ बाढ़ तूफान कोरोना है छाई।

यह साल है ऐसा इसमें लास की नहीं भर पाई,
2020 में बच जायें यही है सबसे बड़ी कमाई।

दुनिया में धरती पर जब भी पाप बढ़ जाता है,
ऐसा ही कुछ ना कुछ फिर ईश्वर कर जाता है।

राम राम करते रहो और हाथों से सुन्दर काम,
नेकी ही केवल जायेगी साथ तुम्हारे उस धाम।

लदे हुये फल के पेड़ों से सीखो कैसे झुकना है,
अहम् काम न आयेगा तो काहे को अकड़ना है।

बहती नदियां क्या वे खुद अपना पानी पीती हैं,
प्यासों की प्यास बुझाने को वो जीवन जीती हैं।

परमारथ के वास्ते ही साधू ने धरी शरीर सदा,
सच्चे साधू ने धरती पर किये हैं उपकार सदा।

मानव जन्म मिला हमें कुछ दया धर्म तो करते,
दीन दुःखी के सेवा करते मानवता में ही रहते।

सब कुछ छोड़ सभी को परमधाम ही जाना है,
तब काहे की रार करें जब वापस नहीं आना है।

रहें प्यार से जीवन में औरों का भी ध्यान रखें,
ईश्वर सब कुछ देख रहाहै इसका भी ज्ञान रखें।

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
जिलाध्यक्ष
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,प्रतापगढ़,यूपी
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर022
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती विशेष*

*छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती विशेष*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

छत्रपति शिवाजी महाराज एक बहादुर योद्धा।
जन्में यह धरती पर कर्मवीर अविजित योद्धा।

पिता शाहजी भोसले माता जीजा बाई के घर।
19फरवरी1630 का दिन है इतिहास में अमर।

इन्हें शिवाजी राजे भोसले के नाम से भी जानें।
छत्रपति शिवाजी महाराज नाम से भी हैं जानें।

पिता शिवनेरी दुर्ग जुन्नर नगर पुणे में थे तैनात।
जन्मे वीर शिवाजी मिली माँ-बाप को सौगात।

इनका लालन पालन माता की रही जिम्मेदारी।
खूब निभाईं जीजाबाई अपनी यह जिम्मेदारी।

बचपन बीता माँ के देखरेख में माँ से सुने सीखे।
अर्जुन कृष्ण राम हनुमान कथा से शौर्य हैं सीखे।

धीरे-2 सभी विद्या में निपुण हुए हैं वीर शिवाजी।
अशोक भरत चाणक्य कथा से हैं सीखे शिवाजी।

चंद्रगुप्त अहिल्याबाई कथा से छत्रपति जी सीखे।
सभी कलाओं में निपुण होगये सब माँ से हैं सीखे।

महापुरुषों की जीवनी से शिवाजी बहुत प्रभावित।
अपनाये जीवन में उन आदर्शो को किये समाहित।

लाल महल पुणे में सहबाई निम्बालकर से विवाह।
10 वर्ष के उम्र में ही शिवाजी का हो गया विवाह।

14मई1640 में शिवाजी का पहला हुआ विवाह।
तत्पचात चार स्त्रियों के संग में और हुआ विवाह।

सोयराबाई पुतलीबाई सकवरबाई एवं काशीबाई।
पहली पत्नी लाल महल पुणे से आई थीं सकबाई।

पांचों पत्नियों से शिवाजी को 4पुत्रियां 2पुत्र हुए।
छत्रपति शिवाजी महाराज हर तरह से संपन्न हुए।

जब राजकाज संकट में हो शत्रु से स्वयं घिरा हो।
उसकी चालें घातक शत्रु छल कपट में माहिर हो।

तब शिवाजी की युद्ध रणनीति ही अपनाने योग्य।
शिवाजी का युद्ध कला में अनन्य किए गए प्रयोग।

युद्ध कौशल और पराक्रम गजब शिवाजी रखते।
दुश्मन उनकी चतुराई से सदा मात खाते थे रहते।

छापामार युद्ध व शत्रु नाश शिवसूत्र किया ईजाद।
दुष्टों के संग दुष्टता शिष्टों के संग शिष्टता प्रतिपाद।

शिवाजी की कोई खास प्रारंभिक शिक्षा नहीं हुई।
परंतु वीर गाथाएं युद्ध कौशल इतिहास अमर हुई।

मुगलों को छत्रपति शिवाजी ने खुब धूल चटाई है।
औरंगज़ेब के नजरबंदी से खुद-पिताको छुड़ाई है।

1674तक पुरंदर संधि के मुग़ल राज्य मराठा हुई।
1680में 50वर्ष के आयु में शिवाजी की मृत्यु हुई।

अपने शासन में मराठा साम्राज्य नहीं झुकने दिया।
मृत्युबाद शिवाजी पुत्र संभाजी ने शासन है किया।

शत-2 नमन एवं वन्दन भारत के महान वीरों की।
इतिहास भरा पड़ा है ये धरा ऐसे शूरवीर हीरों की।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*हँसी ख़ुशी प्रेम से रहें घर ही स्वर्ग है*

*हँसी ख़ुशी प्रेम से रहें घर ही स्वर्ग है*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

बिना कुछ करे ना कभी कुछ मिला है,
कर्मों का फल ही तो सदा ये मिला है।

भले लोग चाहें कि हमें सब नसीब हो,
मुमक़िन नहीं है सब अपने नसीब हो।

देता वही है प्रभु जो हक़ में है अच्छा,
उसके अलावा ना कोई साथी सच्चा।

मिले स्वर्ग हमको सब पाना चाहते हैं,
मरना तो कोई भी ना मगर चाहते हैं।

अपने मरे बिन ना मिलता ये स्वर्ग है,
हँसी ख़ुशी प्रेम से रहें तो घर स्वर्ग है।

मचायेंगें चाचर कलह करें तो नर्क है,
सुबह शाम झगड़े तनी तना नर्क है।

जीवन हो ऐसे तो ये जीवन बेकार है,
नफ़रतें ये छोड़ें करें प्रेम ना बेकार है।

प्रेम ही तो जीवन का सत्य आधार है,
प्रेम ही मानव का मात्र एक संसार है।

धर्म कर्म परोपकार केवल ये लक्ष्य हो,
संकटों में भी मुस्काएं ये परिलक्ष्य हो।

डगमगाये चाहे नैया पहुंची हो मंझधार,
ईश्वर ही करेगा जीवन सब ये बेड़ापार।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*वृक्षारोपण जरूर करें ताकि हमें शुद्ध ऑक्सीजन-स्वस्थ जीवन मिले*

आलेख शीर्षक :
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*”वृक्षारोपण जरूर करें ताकि हमें शुुद्ध ऑक्सीजन-स्वस्थ जीवन मिले*
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

पर्यावण का तात्पर्य हमारे आस पास चारो ओर प्राकृतिक रूप से प्राप्त जो भी जीव जंतु कीट पतंगे मानव प्राणी पशु पक्षी अन्य जानवर पेड़ पौधे वन उपवन जंगल नदियां पहाड़ फूल पत्ती लतायें जड़ी बूटियां और वनस्पतियां इत्यादि उपलब्ध हैं,वे सब हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंग हैं।इन सब की सुरक्षा प्रकृति के संतुलन के लिए आवश्यक है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षारोपण अत्यंत आवश्यक और प्रत्येक प्राणी के जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण है।
*आओ हम पेड़ लगायें-जीवन अपना बचायें*
पर्यावरण का हमारे जीवन की खुशहाली में बहुत बड़ा महत्त्व और सराहनीय योगदान है। हरे भरे पेड़ पौधे हमारे सुखमय जीवन और जीने का एक आधार हैं।इनके बिना हमारा जीवन असुरक्षित है।
इन वृक्षों के अपने आस पास होना हम सब के लिए नितांत जरुरी,बहुत महत्वपूर्ण और सदा ही बहुत उपयोगी रहा है। इन वृक्षों से ही हमें अपनी जीवनदायिनी शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त होती है। जिससे हम शुद्ध हवा में साँस लेते हैं और हमारा जीवन सुरक्षित रहता है। इन पेड़ों से ही हमें प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है, जो किसी अन्य स्रोत से नहीं प्राप्त हो सकती है। ऑक्सीजन ही वह सर्वोत्तम गैस है जो हमारे वायुमंडल में निःशुल्क रूप से व्याप्त रहती है,जिससे हम स्वस्थ्य व जीवित रह पारहे हैं। यदि यह हमें प्राकृतिक रूप से न प्राप्त हो या वायुमंडल से समाप्त हो जाये तो हमारा या किसी भी प्राणी मात्र का जीना संभव नहीं है,हमारा जीवन निष्क्रिय हो जायेगा और मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। ये वृक्ष हमारे लिए पर्याप्त ऑक्सीजन तो उत्पन्न ही करते हैं,साँस लेने की प्रक्रिया में हमारे द्वारा छोड़ी गयी बहुत ही हानिकारक और अशुद्ध कार्बनडाईऑक्साइड को अवशोषित भी करते हैं।
इसी प्रदूषित कार्बन डाई ऑक्साइड से ये पेड़ पौधे क्लोरोफिल और सूर्य के प्रकाश तथा जल के सहयोग से अपना भोजन बनाते हैं।
*वृक्ष हैं धरती की शान-न हो इनका नुकसान*
वाह रे हे ईश्वर जगत के स्वामी तूने कितना सुन्दर यह प्राकृतिक संतुलन बनाया है। पेड़ पौधे जो हमें निरंतर जीवन देते आ रहें हैं और हम बुद्धिजीवी कहलाने वाले मानव उनका प्रतिदिन दोहन करते आ रहे हैं।उन्हें काट रहे हैं,नष्ट कर रहे हैं। हरे भरे सघन वनों और जंगलों को अपने व्यक्तिगत लाभ व उपभोग के लिए नित्य समाप्त करते जा रहे हैं।
इससे अपनी कमाई बढ़ाने में रोज इसका क्षरण कर रहे हैं। स्वस्थ्य जीवन के लिए जरुरी इन अति महत्वपूर्ण वृक्षों को नष्ट करने में हम अपनी ऊर्जा और शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं।
*हरे भरे पेड़ मत काटो-इन्हें भी दर्द होता है*

*पेड़ हमें ऑक्सीजन देते-फल फूल लकड़ियाँ देते,बदले में कुछ भी न लेते-ठंडी ठंडी छांव भी हैं देते।*

यदि बागों और जंगलों का इसी तरह विनाश होता रहा तो धरती पर पर्याप्त वृक्ष कहाँ रह पाएंगें। हम कैसे जी पाएंगें। मनुष्य की क्या परिणिति होगी इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। हमें इन वृक्षों को कटने से और जंगलों को नष्ट होने से बचाना होगा।ये वृक्ष हमारे लिए बहुत जरुरी हैं।
*पेड़ों की रक्षा करना हमारा परम धर्म है,*
*इसमें ऐ इंसानों कोई नहीं शर्म है।*
इन्ही वृक्षों से ही तो हमें खाने के लिए स्वास्थ्य वर्धक फल-फूल,चिकित्सा के लिए जड़ी-बूटियां,भोजन बनाने के लिए ईंधन,राहगीरों को आराम विश्राम के लिए छाया,पशुओं के लिए चारा,मकान के लिए इमारती लकड़ियाँ,स्वास्थ्य वर्धक विभिन्न खाद्य पदार्थो में स्वादिष्ट प्राकृतिक आम,अमरुद,जामुन,महुआ,कटहल,बड़हल,चीकू,
सेव,संतरा,आड़ू,चेरी,नाशपाती,लीची,किन्नू,कीवी,अनन्नाश,गूलर,जंगल जलेबी,खिन्नी,फालसा,बेल,
इमली,कैथा इत्यादि वस्तुयें समय समय और मौसम के अनुसार प्राप्त होती रहती हैं।
खाने के लिए ही लवंग,इलायची,जीरा,दालचीनी, तेजपत्ता,छबीला,जायफर,बड़ी इलायची,जावित्री,
रतनजोत,केसर,काजू,पिस्ता,बादाम,अखरोट,
चिरौंजी,किशमिश,मुनक्का,छोहरा,गरी,खजूर इत्यादि मेवे और मशाले भी इन्ही पेड़ो से ही तो सब को प्राप्त होते हैं।
पूजा के लिए भी फल-फूल,सुपाड़ी,नारियल व
नवग्रह की लकड़ियाँ,केला पत्ता,आम के पल्लव,
होम की लकड़िया,चन्दन,रुद्राक्ष आदि प्रभु को प्रिय सभी वस्तुयें इन्ही वृक्षों,पेड़-पौधों से ही हमें प्राप्त होती है।
गृह,कुटीर और लघु तथा बड़े उद्योगों की दृष्टि से कागज,गत्ता,हार्ड बोर्ड,प्लाई,खेल के सामान, दियासलाई,बीड़ी,सजावटी सामान,घरेलू फर्नीचर,खिलौने,रेशम,शहद,बेंत,बांस,बल्ली,
थूंन्ही,मंडार,दुर्गा पूजा के पंडाल की सजावट,
खिड़की-दरवाजे,मूसल,ओखली,लकड़ी के बर्तन,मेज,कुर्सी,बेंच,आलमारी,तख़्त,चारपाई,
मचिया,पूजा की चौकी बैलगाड़ी,इक्का ठेलिया,
कुयें में पड़ने वाली नेवाढ़ इत्यादि के लिए भी तो हम इन्ही वृक्षों और पेडों पर सदियों से निर्भर ही करते आ रहे हैं।
यहाँ तक कि किसी के मृत्योपरांत भी उसकी शव यात्रा की तिख्ती हेतु बांस और चिता जलाने के लिए लकड़ियाँ भी तो इन्ही पेड़ों और वृक्षों से प्राप्त होती है।
ये वृक्ष पानी बरसाने में भी सहायक होते हैं तथा बरसात में वर्षा के जल के बहाव से होने वाली मिटटी के कटाव को भी रोकने में सहायक होते हैं। वृक्ष पर्यावरण में व्याप्त वायु प्रदूषण को भी दूर करने में सहायक होते हैं तथा स्वच्छ,शीतल,
हवा के साथ हमें जीवन में शुद्ध ऑक्सीजन भी देते रहते हैं,ये पेड़ पौधे वन उपवन की प्राकृतिक हरियाली और प्रकृति का संतुलन भी बनाये रखने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाते हैं।
*पेड़ पानी बरसाने में हैं होते बड़े सहायक,*
*वर्षा में भूमि के कटाव रोकने में सहायक।*
ऐसी दशा परिस्थिति और आवश्यकता के रहते हुए भी हम फिर क्यों वन,जंगल और बागों को नष्ट करने पर लगे हुए हैं। हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए और वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए ताकि हमारे पर्यावण की सुरक्षा भी हो सके और हमें सभी आवश्यक चीजें भी उपलब्ध होती रह सकें, जीवन के लिए सब से जरुरी चीज ऑक्सीजन भी निरंतर मिलती रह सके। पर्यावरण का संतुलन भी न बिगड़े और ग्लोबल वार्मिंग से भी हम जीवन में बचे रह सकें। ये वृक्ष हमें अनेक रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं जिससे हमारी निजी आजीविका चलती रहे और परिवार का आसानी से भरण पोषण भी होता रह सके।
पेड़ों के इन्ही अपार गुणों के कारण इन्हें एक छोटा बड़ा साधारण पेड़ नहीं बल्कि “वृक्ष देवता” कहा जाता है और मनुष्य अपने जीवन काल में नित्य या कभी न कभी किसी पूजा पर्व अथवा गृह शांति और निवारण हेतु वह नीम,पीपल,पाकड़, बरगद,शमी,तुलसी,केला आदि पेड़ पौधों व वृक्षों को जल चढ़ाता है और उसकी पूजा करता है।
*ये केवल पेड़ नहीं हैं-धरती के वृक्ष देवता हैं*
पर्यावरण के संरक्षण एवं सघन वृक्षारोपण हेतु विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत ही एक बहुत ही सुन्दर,उपयोगी और महत्वपूर्ण कार्यक्रम और *”सामाजिक वानिकी कार्यक्रम”* है। जिसको *महाराज प्रतापगढ़ स्वर्गीय राजा अजीत प्रताप सिंह जी द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार में जब वह “वन एवं पर्यावरण मंत्री” थे,उनके द्वारा पर्यावरण सुरक्षा हेतु विकसित,स्थापित और संचालित किया गया था जो आज की वर्तमान स्थिति में भी प्रासंगिक एवं समीचीन है।*
पर्यावरण सुरक्षा संरक्षण और संतुलन हेतु यह वृक्षारोपण के लिए जरुरी है,जिसमे निम्न प्रकार से लोगों द्वारा सहयोग किया जा सकता है।
1- *स्कूलों में स्कूल नर्सरी की स्थापना हो।*
2- *किसान नर्सरी की स्थापना की जाये।*
3- *पट्टे की भूमि प्राप्त कर वृक्षारोपण हो।*
4- *गाँव में तालाबों के किनारे वृक्षारोपण हो।*5- *स्कूलों की बाउंड्रीज व आवागमन मार्ग * *के दोनों ओर वृक्षारोपण किया जाये।*
6- *प्रत्येक परिवार में किसी नई उपलब्धि पर यादगार पल बनाने हेतु कम से कम एक फलदार पेड़ जरूर लगायें।*
7- *परिवार के किसी प्रिय सदस्य की मृत्यु पर भी उसकी याद में एक फलदार पेड़ अवश्य ही लगायें ।*
इस प्रकार उपरोक्तानुसार हम नर्सरियों के अलावा व्यक्तिगत रूप से भी स्वयं कम से कम एक अतिरिक्त पेड़ लगाकर कर वृक्षारोपण कर सकते हैं और निजी तौर पर पर्यावरण की सुरक्षा करने में घर परिवार के लिए खुशहाली लाने में अपना खुद का महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
इन नर्सरियों की स्थापना हेतु उत्तर प्रदेश और भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा जैसे वन,पर्यावरण,कृषि, एवं सामाजिक वानिकी इत्यादि विभागों द्वारा आर्थिक सहयोग भी प्रदान किया जाता है,जिससे इन नर्सरियों में बीजारोपण कर अथवा कलम कटिंग आदि के माध्यम से छोटे छोटे विभिन्न प्रकार के फलों के पौधे,औषधीय गुणों के पौधे,सुन्दर फूलों के पौधे,सजावटी पौधों और गमले व क्यारी में लगाये जाने वाले आकर्षक पौधों का उत्पादन कर उनकी विक्री से धनोपार्जन भी किया जा सकता है और इस प्रकृति के सुन्दर पर्यावरण संरक्षण हेतु सघन वृक्षारोपण को भी एक गति प्रदान की जा सकती है।
इसके लिए जरुरी है कि महिलाओं और पुरुषों को अपने अपने ग्राम पंचायतों में युवा मंडलों का नविन गठन करना चाहिए तथा अपने ग्राम प्रधान से पट्टे पर भूमि का आवंटन करवा कर उस पर हरे भरे वृक्षों को लगा कर अपने गाँवों को हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से भर देना चाहिए। जिससे आप जब भी गांव में प्रवेश करें अथवा कहीं जाने के लिए निकलें तो उसकी सुंदरता और हरियाली को देख कर आप का मन प्रसन्नता से भर उठे और गाँव के सब लोगों को स्वच्छ हवा और विशुद्ध ऑक्सीजन भी मिलती रहे।
स्कूलों और विद्यालयों के प्रबंधकों,प्रधानाचार्यो और उसके अध्यापकों-अध्यापिकाओं को अपने छात्र-छात्राओं को अपना मार्गदर्शन देते हुए उनके सहयोग से स्कूलों में स्कूल नर्सरी की योजना बनानी और स्थापना करनी चाहिए। अपनी नर्सरी के पौधों की सिंचाई,बढ़वार और सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए तथा रोपित करने लायक हो चुके पौधों को यथास्थान लगा कर अपने स्कूल कालेज को सुन्दर वातावरण और पर्यावरण से सुसज्जित करना चाहिए,जिससे हरियाली और प्राकृतिक छटा का हर विद्यार्थी,अभिभावक और स्टाफ आनंद उठा सके।
ग्रामीण किसानों द्वारा भी किसान नर्सरी लगाई जाना चाहये। इसके लिए वन विभाग से विशेष सहयोग लेते हुए अपनी किसान नर्सरी को मूर्त रूप देना चाहिए और उसने अच्छे अच्छे पौधे तैयार करना चाहिए। इस प्रकार तैयार पौधों से खेत खलिहान,गाँव, किसान,स्कूल,विद्यालय और
निजी घर परिवार सभी को एक सुखद अनुभूति होगी और हर जगह की प्राकृतिक सुंदरता एवं हरियाली से भी सम्पूर्ण वातावरण जगमगा उठेगा। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित और संतुलित बना रहेगा।
यही नहीं उपरोक्त तरह से तैयार किये गए पौधों की विक्री से ग्राम पंचायत के युवा मंडलों,स्कूल कालेजों एवं किसानों को अतिरिक्त आय का एक सुनहरा अवसर भी प्राप्त होगा। इस नर्सरी से अच्छा धनोपार्जन कर सकते हैं तथा उसे अपने गाँव, स्कूल,विद्यालय,युवा मंडल के सदस्य या किसान अपने व्यक्तिगत के ऊपर भी खर्च कर सकते हैं और अपने अथवा संस्था के विकास में उस धन का सदुपयोग करके स्वयं प्रगति और उन्नति कर सकते हैं।
*पेड़ हमें देते हैं रोजगार-करें न इनका उजाड़*
आज मनुष्यों ने अपने निजी विकास की अंधी दौड़ में अधिक से अधिक धनोपार्जन हेतु इस नैसर्गिक प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है,इसके लिए वह छोटी नदी नाले व तालाबों को पाटता जा रहा है। बाग बगीचा के पेड़ों को काटता जा रहा है। जंगल नष्ट करता जा रहा है। कल कारखाने बहुमंजिला मकान मिल फैक्टरियां बनाता लगाता जा रहा है। इससे होने वाले शोर, उठने वाले धुँए और जहरीली गैसों से तथा बाहर निकलने वाली गंदगियों से वातावरण अशुद्ध और पर्यावरण असुरक्षित तथा प्रकृति भी असंतुलित होती जा रही है। हमारा साँस लेना भी आज दूभर हो गया है। इस असंतुलन और प्रदूषण का बहुत बड़ा दुष्प्रभाव सभी जीव जंतुओं और मानव के साथ ही साथ पेड़ पौधों वनस्पतियों और बिल्डिंगों के ऊपर भी पड़ता साफ साफ दिखाई पड़ रहा है।
*पेड़ हमारे पिता जैसे धरती माता है,*
*पर्यावरण स्वच्छ व सुखद सुहाता है।*
*सूर्य चन्द्रमा वायु गगन अन्न व जल,*
*पतंगे जड़ी बूटियाँ वन उपवन फल।*
*नदियां झरने पहाड़ जीव जंतु कीट,*
*यह सभी पर्यावरण के अंग है मीत।*
इस लिए यह हम सब के लिए बहुत जरुरी है कि इस पर्यावरण को सुरक्षित रखने के विभिन्न सभी उपायों में सर्वाधिक कारगर उपाय वृक्षारोपण को हम जीवन में अधिक से अधिक अपनायें और करें। स्वस्थ्य व सुखमय जीवन जीने के लिए हम सब का यह परम कर्तव्य है कि प्रकृति के साथ ऐसा कोई भी खेल न खेलें जिससे उसका संतुलन बिगड़े और पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हो। कल कारखानों से हो रहे विषाक्त प्रदूषण को बंद करने का उपाय करें अथवा इसे कम से कम कम अवश्य करें। ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के इन सुन्दर उपहारों का दोहन बंद करें। अधिक अधिक हम सभी मिलकर वृक्षारोपण करें। धरती और आस पास का सम्पूर्ण वातावरण हरित और सुखद करें। अपनी प्रकृति और पर्यावरण को स्वच्छ सुन्दर सुरक्षित तथा इसे संतुलित बनाये रखने में अपना पूर्ण योगदान करें। इसका पूरा पूरा ध्यान रखें यही हम सब का फर्ज है,तभी वास्तव में हमें इंसान कहलाने और हमारे मानव होने का कोई अर्थ है।
*मत काटो हरे भरे वृक्ष को,जीवन के यही रक्षक हैं।*
*वृक्षारोपण अधिक करें,जिससे पर्यावरण न बिगड़े*
जय प्रकृति, जय धरती, जय हिंद, जय भारत।

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
जिलाध्यक्ष
ह्यूमन सेफ लाइफ फॉउन्डेशन,शाखा-प्रतापगढ़
संपर्क : 9415350596