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ताटंक छंद “भ्रष्टाचारी सेठों ने”

ताटन्क छंद “भ्रष्टाचारी सेठों ने”

(मुक्तक शैली की रचना)

अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।
छीन निवाला दीन दुखी का, बड़ी तौंद की सेठों ने।
केवल अपना ही घर भरते, घर खाली कर दूजों का।
राज तंत्र को बस में कर के, सत्ता भोगी सेठों ने।।

कच्चा पक्का खूब करे ये, लूट मचाई सेठों ने।
काली खूब कमाई करके, भरी तिजौरी सेठों ने।
भ्रष्ट आचरण के ये पोषक, शोषक जनता के ये हैं।
दो खाते रख करी बहुत है, कर की चोरी सेठों ने।।

देकर रिश्वत पाल रखे हैं, मंत्री संत्री सेठों ने।
काले धन से काली दुनिया, अलग बसाई सेठों ने।
ढोंग धर्म का भारी करते, काले पाप छिपाने में।
दान दक्षिणा सभी दिखावा, साख खरीदी सेठों ने।

लोगों की कुचली सांसों से, दौलत बाँटी सेठों ने।
सुख सुविधाएँ इस दुनिया की, सारी छाँटी सेठों ने।
दुखियों के दिन फिरने वाले, अंत सभी का होता है।
सारी साख गँवा दी है अब, शोषणकारी सेठों ने।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




सरसी छंद “राजनाथजी”

सरसी छंद “राजनाथजी”

भंभौरा में जन्म लिया है, यू पी का यक गाँव।
रामबदन खेतीहर के घर, अपने रक्खे पाँव।।
सन इक्यावन की शुभ बेला, गुजरातीजी मात।
राजनाथजी जन्म लिये जब, सबके पुलके गात।।

पाँव पालने में दिखलाये, होनहार ये पूत।
थे किशोर तेरह के जब ये, बने शांति के दूत।।
जुड़ा संघ से कर्मवीर ये, आगे बढ़ता जाय।
पीछे मुड़ के कभी न देखा, सब के मन को भाय।।

राजनाथ जी सदा रहे हैं, सभी गुणों की खान।
किया दलित पिछड़ों की खातिर, सदा गरल का पान।।
सदा देश का मान बढ़ाया, स्पष्ट बात को बोल।
हिन्दी को इनने दिलवाया, पूरे जग में मोल।।

रक्षा मंत्रालय है थामा, होकर के निर्भीक।
सिद्धांतों पर कभी न पीटे, तुष्टिकरण की लीक।।
अभिनन्दन ‘संसार करत है, ‘नमन’ आपको ‘नाथ’।
बरसे सौम्य हँसी इनकी नित, बना रहे यूँ साथ।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया (असम)