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वैश्विक हिंदी की चुनौतियां: कुछ भाषाई समाधान

विभिन्न समय ज़ोन में आप सभी को मेरा यथोचित अभिवादन। मैं आज आप सभी को एक अत्यन्‍त  महत्वपूर्ण मुद्दे पर संबोधित करने में सम्मानित महसूस कर रहा हूं । हिंदी का भूमंडलीकरण  एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर हम भारतीय पिछले कुछ दशकों से काम करते आ रहे हैं क्योंकि हम दुनिया भर में भाषाई मक्का के रूप में जाने जाते हैं।

  1. जॉर्जअब्राहम ग्रियर्सन ने वर्ष 1928 में प्रकाशित अपने भारत के भाषाई सर्वेक्षण (एलएसआई) में रिकॉर्ड किया था कि दक्षिण एशिया में 364 भाषाएं और बोलियां मौजूद हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 19,500 से अधिक भाषाएं या बोलियां मातृ भाषाओं के रूप में बोली जाती हैं  और 121 भाषाएं ऐसी है, जिन्‍हें 10,000 या उससे अधिक लोग बोलते हैं । भाषाएँ हमारे सभ्यतागत अस्तित्व और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता की एक महत्वपूर्ण और पारिभाषिक विशेषता रही हैं । फिर भी, हमने बड़ी कुशलता का परिचय देते हुए और महाद्वीपीय–आकार के विविधतापूर्ण राष्ट्र में अंग्रेजी का उपयोग संपर्क भाषा के रूप में करते हुए संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को समाहित किया है।
  1. मुझे खुशी है कि सृज़न ऑस्ट्रेलिया अंतर्राष्‍ट्रीय ई-पत्रिका ने भारतीय उच्‍चायोग, त्रिनिदाद और टोबैगो को भारत की आजादी के 75 वर्ष के जश्‍न के तहत आज की इस वेब संगोष्‍ठी को संयुक्त रूप सेआयोजित करने का अवसर प्रदान किया है। जैसा कि दिनांक 12 मार्च 2021 को साबरमती के तट पर “आजादी के अमृत महोत्सव” का उद्घाटन करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि ये समारोह “1.3 बिलियन भारतीयों की आकांक्षाओं, भावनाओं, विचारों, सुझावों और स्‍वप्‍नों को साकार करेंगे”। यह वेब संगोष्‍ठी उस भावना में अपना योगदान देने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।
  1. एक वैश्विक भाषा हमें सांस्कृतिक, पारंपरि‍क, क्षेत्रीय और विशेष रूप से जातिगत या स्‍वभाव या प्रवृत्तिगत विविधता के बावजूद दुनिया को एक-दूसरे के साथ साझा करने योग्य, सुपरिचित और सुलभ बनाने में सक्षम बनाती है।यह इस मायने में वैश्विक है क्योंकि यह स्‍वरूप के मामले में सरल और सहज, कार्यक्षेत्र के मामले में मुक्‍त और अवसरों के मामले में बंधनरहित है। अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश और जर्मन जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भाषाएं इस श्रेणी में आती हैं। लोग या तो प्रथम, द्वितीय या तृतीय भाषा के रूप में इन भाषाओं में निपुणता हासिल कर बेहतर रोजगार, गुणवत्तायुक्‍त शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्‍त कर सकते हैं। ये भाषाएं पश्चिमी सभ्यताओं की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लंबे इतिहास का प्रतिनिधित्व भी करती हैं, जो वैश्विक बौद्धिक विमर्श का हिस्सा भी हैं। जैसे जैसे साम्राज्यों ने अपने अपने प्रभाव क्षेत्रों का विस्तार किया, वैसे ही उनकी भाषाओं का भी विस्‍तार हुआ।
  1. इसके विपरीत, भारत एक सभ्यता और समाज दोनों के रूप में सदियों से बाहरी दुनिया के लिए खुला रहा है। मसालों के व्यापार के माध्यम के अलावा, यहाँ बौद्धिक परंपराओं, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान और नवाचार का निर्बाध प्रवाह बना रहा है।दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते वैश्विक मंच पर भारत का आचरण सदैव पारदर्शी रहा है। 21वीं सदी में भारत संपूर्ण मानवता के 1/5 भाग का प्रतिनिधित्व करता है, जहां लगभग 50% आवादी 25 वर्ष से कम उम्र की है। भारतीय युवावर्ग वैश्विक है और आकांक्षाओं व उत्‍साह से भरा हुआ है।हर वर्ष  लगभग आधा मिलियन भारतीय छात्र अंग्रेजी बोलने वाले देशों के शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते हैं। वेविश्व स्तर पर उभरते हुए भारत और इसकी विविधता के अग्रदूत हैं और भाषा इस प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग हैं। भारतीय फिल्म उद्योगों ने भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भारतीय प्रवासी समुदायों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कई लोगों द्वारा या तो प्रथम, द्वितीय या एक लोकप्रिय भाषा के रूप में बोली और समझी जाने वाली हिंदी आने वाले दशकों में एक महत्वपूर्ण वैश्विक भाषा भाषा के रूप में उभर कर सामने आने की स्थिति है। फिर भी, ऐसा करने के लिए इसे कुछ दीर्घकालिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ये चुनौतियां इस प्रकार हैं:
  • हिंदीत्‍तर वक्ताओं के लिए हिंदी को प्रासंगिक बनाना – किसी हिंदीत्‍तर वक्ता को हिंदी क्यों सीखनी चाहिए? उसे शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, वाणिज्य, व्यापार, राजनीति, कूटनीति, पर्यटन, मीडिया और वेब  के क्षेत्रों में इसका उपयोग क्‍यों करना चाहिए? एक प्रसिद्ध कहावत है कि जिसके पास बोलने के लिए कोई भाषा है वह अपने आटे (उत्‍पाद) को दूसरे, जो वहां कि भाषा नहीं जानता है, की तुलना में अधिक तेजी से बेच सकता है। यह तर्क किसी भी भाषा के लिए भी लागू होता है। किसी भी भाषा को वैश्विक भाषा बनने के लिए  उसे अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करना होगा, तभी वह दुनिया भर के उपभोक्‍ताओं के बीच लोकप्रिय हो सकती है।
  • हिंदी बोलने वाले प्रवासी भारतीयों कोजोड़ना – नेपाल, फिजी , मॉरीशस , गुयाना, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, युगांडा, बांग्लादेश, बेलीज, भूटान, बोत्सवाना, कनाडा, जिबूती, इक्वेटोरियल गिनी, जर्मनी, केन्या, न्यूजीलैंड,  फिलीपींस, सिंगापुर, सिंट मार्टेन, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, यमन, जाम्बिया  जैसे देशों में हिंदी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हालांकि, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे  देशों में भारतीय मूल के लोगों ने अपनी भाषा खो दी है, चाहे वह  भोजपुरी  हो या हिंदी। भारत सरकार युवाओं के बीच हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए सभी प्रयास कर रही है । हालांकि, यह तब तक सुलभ नहीं होगी जब तक कि वे लोग भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति, उच्च शिक्षा, वैज्ञानिक सहयोग  और मनोरंजन  उद्योग के साथ अभिन्न रूप से नहीं जुड़ते हैं।
  1. वैश्विकसमुदाय के लिए हिंदी को तुलनात्‍मक रूप से अधिक सुलभ  बनाने के लिए कुछ भाषाई समाधान इस प्रकार किए जा सकते हैं:
  1. सरलीकरण- कोई भी भाषा संरचनात्मक रूप से जितनी जटिल होती है, वह नए शिक्षार्थियों के लिए सीखने की दृष्टि से उतनी ही अधिक दुरूह हो जाती है। भाषा लचीलेपन से सुलभ होती है । यह एक सकारात्मक प्रवृत्ति है कि पिछले कुछ वर्षों में  हिंदी का सरलीकरण हुआ है और इसे डिजिटल उपयोग की दृष्टि से आसान बनाया गया है।
  2. विदेशी शब्दों का समावेश– इन वर्षों में, हिंदी ने खुद को समृद्ध बनाने के लिए अन्य भाषाओं से नए शब्द भी अपने शब्‍दकोश में जोड़े हैं। इसने हिंदी और अन्य सहोदरा भारतीय भाषाओं के बीच की सीमाओं को भी लगभग अप्रासंगिक बना दिया है। हिंदी को कई अन्य विदेशी भाषाओं के साथ भी इस परम्‍परा को जारी रखना होगा। ऐसे शब्‍द भंडार, विशेष रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और विश्लेषण  में जिनका उपयोग किया जाता है,  को वाक्‍य संरचना में  शामिल करने की आवश्यकता है।
  • डिजिटलीकरण– भारत डिजिटाईजेशन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा प्रायोगि‍क स्‍थल है,  यहां इंटरनेट का उपयोग धीरे-धीरे हर गली-कूचे और नुक्कड़ तक पहुँच रहा है। लगभग सभी सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्‍टाग्राम, यूट्यूब, कू, टेलीग्राम, वाट्सएप इत्‍यादि में भी हिंदी सहित भारतीय भाषाओं का उपयोग किया जाता है। कई सांस्कृतिक महत्‍व की सामग्री का भी डिजिटलीकरण किया जा रहा है, जिससे पारंपरिक और समकालीन दर्शकों और श्रोताओं तक डिजिटल पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक नया आयाम  प्राप्‍त हो रहा है। इन उपकरणों की कुशलता और इनके इस्‍तेमाल की सहजता पर और अधि‍क काम किए जाने की आवश्‍यकता है। देवनागरी लिपि  के डिजिटल उपयोग  और पहुंच ने सामाजिक मीडिया, की-बोर्ड टाइपिंग और पुस्तकों के प्रकाशन को भी अधिक सरल बना दिया है। किंडल डिजिटल प्रकाशन (केडीपी) की तरह हिन्दी में डिजिटल प्रकाशन की सुविधा भारत में भी विकसित की जा सकती है, जिससे न केवल डिजिटल रूप से बल्कि वास्तविक प्रिंट के रूप में प्रकाशन करने में भी आसानी होगी। विकिपीडिया में दिखाया गया है कि एक आधुनिक डिजिटल संदर्भ पुस्तकालय कैसे काम करता है। विश्व स्तर पर लोकप्रिय होने के लिए हिंदी में ऐसे डिजिटल संसाधन किसी भी व्‍यक्ति के लिए 24X7 आधार पर उपलब्‍ध होने चाहिए, चाहे उनका उपयोग किसी भी संदर्भ, अधिगम और अनुसंधान के लिए क्‍यों न किया जाना हो।
  1. अंतरभाषिक संचार (संप्रेषण):हिंदी को अपनी उपयोगिता बढ़ाने के लिए डिजिटल स्पेस में अन्य भारतीय भाषाओं के साथ स्वतंत्र रूप से संवाद स्‍थापित करना चाहिए । कई लेखक, कथाकार और सामग्री निर्माता आज की दुनिया में बड़े पाठक वर्ग तक पहुंच बनाने के लिए कई भारतीय भाषाओं का उपयोग करना चाहते हैं। हिंदी को अन्य भाषाओं को भी समुचित स्थान दिलाने की दिशा में नेतृत्वपरक भूमिका अदा करनी चाहिए और भारत में तथा भारत के बाहर भारतीय भाषाभाषी समुदायों तक व्यापक  पहुंच बनाने के लिए अपनी ताकत का उपयोग करना चाहिए।
  2. ई-वाणिज्‍य-भारत के टियर-II और टियर-III शहरों में ई-वाणिज्‍य और विज्ञापन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं निहित हैं और वैश्विक कनेक्टिविटी की भी संभावना है। एफबी बिजनेस, डब्‍ल्‍यूए बिजनेस जैसे प्लेटफार्मों  के लिए भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की जबरदस्त आवश्यकता है।
  3. डिजिटल मीडिया- पिछले कुछ वर्षों में यूट्यूब, वेबसमाचार चैनलों जैसे डिजिटल मीडिया  की  सक्रियता जनता के बीच काफी बढ़ गई है। टेलीविजन की जगह स्मार्टफोन ने ले ली है। इससे हिंदी को वैश्विक दर्शकों तक पहुंच बनाने के लिए जबरदस्त अवसर मिल रहे हैं।
  • डिजिटल शिक्षण- 21वीं सदी आभासी कक्षाओं, चैटबॉक्‍स और दूरस्‍थ अधिगम की सदी है। कोविड-19 ने हमें सिखाया है कि कि‍सी आभासी दुनिया में काम कैसे करना है। लगभग सभी शिक्षण संस्थान अब अनुवाद अध्ययन, वाकपटुता कौशल और अन्य समझ विकसित करने वाले कौशल जैसे आवश्यकता-आधारित पाठ्यक्रम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदी इन पहलों का हिस्सा हो सकती है।  हिंदीत्‍तर भाषियों के लिए नए सॉफ्टवेयर पैकेज  डिज़ाइन और विकसित किए जा सकते हैं। नए प्रयोक्‍तानुकूल आईसीटी पैकेज और अनुप्रयोग विकासित और तैयार किए जा सकते हैं ताकि बड़े पैमाने पर हिंदी का अध्‍ययन अध्‍यापन किया जा सके।
  • वैश्विकयुवा वर्ग को जोड़ना: यहाँ हिन्दी के लिए वैश्विक ई-अधिगम प्लेटफार्मों के विकास की भी गुंजाइश है। भारत के बाहर कई प्रवासी बच्चे अंशकालिक स्कूली पाठ्यक्रम गतिविधियों के रूप में या स्कूल के बाद हिन्दी सीखना चाहते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हमें छात्रों और स्कूलों के लिए जल्दी से सुलभ होने वाले डुओलिगो जैसे वैश्विक प्लेटफार्म विकसित  करना चाहिए।  
  1. भारत ने वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराते हुए खुद को सुस्थापित कर लिया है।पूरे देश में उच्‍चगति कनेक्टिविटी का विस्‍तार किया जा रहा है। कोविड-19 के बाद भारत के एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आने की पूरी उम्मीद है। यह नई संभावित स्थिति निस्संदेह एक लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगी। यह भी संभावना है कि हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं को भी फिर से  नए सिरे से अपना प्रयोग बढ़ाने का अवसर प्राप्‍त  हो। वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर की मानक सामग्री के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए डिजिटल स्‍पेस में “सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व” बनाए रखने के लिए अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं के साथ सहयोग करना हमारी रणनीति होनी चाहिए।

हिंदी अनुवाद : शिवकुमार निगम, द्वितीय सचिव (हिंदी, शिक्षा एवं संस्‍कृति), भारतीय उच्‍चायोग, पोर्ट ऑफ स्‍पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो

 




कुछ कोलाब- खास रिश्ते

कुछ कोलाब- खास रिश्ते

(काेलाब मन के वो भाव हैं जो मन मस्तिष्क से होते हुए हमें उत्साहित करते हुए, नई खुशियों के साथ परिवर्तन की चेतना प्रदान करते हैं।)

1
कुछ रिश्ते खास होते हैं
भीड़ से अलग पहचान रखते हैं
कोई हो या चाहे न हो
हर पल मन से साथ होते हैं
फायदे नुकसान की दुनिया में
बेफिक्र से थामे हाथ रखते है
छाया बन धूप से बचाते
बरगद की छाँव सा फैलाव रखते हैं

2
काश ! कुछ ऐसा हो जाए
बिन कहे तू सब सुन जाए
बिन बोले हर बात समझ जाए
बिन देखे मुझको पढ़ जाए
बिन जाने मेरा हाल समझ जाए
काश ! कुछ ऐसा हो जाए
तेरे लबों से मेरा नाम छू जाए
मेरे हाथों में तेरा हाथ लहरा जाए
तेरे कदम मेरे संग चल जाएं
मेरी हर श्वास संग तू रच बस जाए
काश ! कुछ ऐसा हो जाए … –

3
तुम्हारा साथ चलना
कदमों से कदमों का मिलना
हाथों में थामे हाथ हमारा आगे बढ़ना
न कुछ कहना न कुछ सुनना
एक दूजे को कहना
एक दूजे को सुनना
आडंबरों से परे अपनी दुनिया रचना

 

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत
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[email protected]

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार l




*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है*

*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है*
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

 

पौराणिक महत्व का माँ दुर्गा की शक्ति की पूजा अर्थात नवरात्रि में दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी माँ दुर्गा जी की बुराई के प्रतीक महिषासुर राक्षस पर विजय प्राप्त करने के रूप में मनाया जाता है।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

मान्यता है कि बहुत समय पहले देवताओं और असुरों के बीच स्वर्ग को लेकर युद्ध होता रहता था। दोनों ही स्वर्ग पर अपना अधिकार जताते रहते थे। जब भी युद्ध होता था तो देवताओं द्वारा असुरों को हराने के लिए कोई न कोई एक उपाय अवश्य ही निकाल लेते थे। इस बात से महिषासुर नामक असुर (राक्षस) बहुत परेशान रहता था। इस लिए एक बार उसने भगवान ब्रम्हा जी की कड़ी तपस्या प्रारम्भ कर दिया। ब्रम्हा जी उसकी इतनी कठिन तपस्या से प्रसन्न हो कर महिषासुर से वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने ब्रम्हा जी से कहा कि मुझे अमरता का वरदान दीजिये प्रभू।
जिससे मेरी मृत्यु न हो,कोई भी देवता मुझे जीवन में पराजित न कर सकें। ब्रम्हा जी ने उससे कहा कि मैं तुम्हें अमरता तो प्रदान नहीं कर सकता किन्तु इतना जरूर कर सकता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु किसी देवता या पुरुष के हाथों न हो बल्कि तुम्हारी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों हो। महिषासुर यह सुन कर भी बहुत प्रसन्न हो गया और ब्रह्मा जी के इस वरदान को स्वीकार कर लिया। उसने अनुमान लगाया कि ऐसी कोई स्त्री दुनिया में नहीं है जो मुझसे वलिष्ठ हो या जो मुझे हरा सके या
मुझे मार सके।

जैसा की असुर हमेशा करते थे,वरदान पाकर निश्चिन्त हो जाते और देवताओं पर चढ़ाई कर देते। महिषासुर ने भी वैसा ही किया,जल्द ही सभी देवताओं पर बहुत बड़ी विपदा आन पड़ी। सभी देवता भगवान त्रिदेव के पास अपनी इस विषम समस्या और संकट को लेकर पहुंचे। इस घोर संकट से देवताओं को निजात दिलाने हेतु भगवान ब्रह्मा ,विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों से शक्ति का रूप,शक्ति की देवी माँ दुर्गा को उत्पन्न किया और उनसे महिषासुर राक्षस का संहार भी करने को कहा। अब महिषासुर राक्षस और माता दुर्गा में कई दिन भयंकर युद्ध चला। इस युद्ध के परिणाम स्वरुप आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को माँ दुर्गा ने महिषासुर को मार गिराया।
तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी लिए दुर्गा माँ का यह एक रूप एवं नाम महिषासुर मर्दिनी भी है।

अस्तु दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। यह न केवल हिंदुओं का एक सब से बड़ा उत्सव है बल्कि बंगाली हिन्दू समाज में भी एक सब से बड़े विशाल हर्षोल्लाष का पर्व है। दुर्गा पूजा का यह महान वैभवशाली पर्व सांस्कृतिक-सामाजिक रूप से एवं सनातन दृष्टिकोण से भी सब से महत्वपूर्ण एक उत्सव है।

दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों में विशेषकर आसाम, बिहार,झारखण्ड,मणिपुर,उड़ीसा,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बहुत व्यापक रूप से मनाया जाता है,जहाँ इसे मानाने के लिए इस समय पाँच दिनों की वार्षिक छुट्टी भी रहती है। बंगाली हिन्दुओं और असामी हिन्दुओं के बाहुल्य वाले क्षेत्रों में यह त्योहार वर्ष का सब से बड़ा उत्सव माना जाता है,और इसे बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। यह वर्ष में 2 बार आता है। एक बार शरद ऋतु में शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है,उसके बाद दशहरा पर्व होता है और एक बार चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है उसके बाद दशवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म दिवस राम नवमी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
यद्यपि कि इस बार पुनः कोरोना के बढ़ते संक्रमण व विस्तार के चलते 2921 में भी सरकार ने कुछ पावंदियों के साथ ही मंदिर में जाने की छूट दी है।
जिससे भीड़ न जमा हो और लोगों को कोई भी दिक्कत व परेशानी भी न हो।

पश्चिमी भारत के अतिरिक्त भी दुर्गा पूजा का यह उत्सव दिल्ली,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र,गुजरात,पंजाब
,काश्मीर,आंध्र प्रदेश,कर्नाटक और केरल में भी बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा एक ऐसा त्योहार है जिसे सर्वाधिक हिन्दू आबादी 91 % वाले नेपाल और सब से कम हिन्दू आबादी 8 प्रतिशत वाले बंगला देश में भी बड़े त्योहार के रूप में हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है।

वर्तमान समय में तो यह दुर्गा पूजा विभिन्न प्रवासी
असामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन,संयुक्त राज्य अमेरिका,कनाडा,यूनाइटेड किंगडम,फ़्रांस,
ऑस्ट्रेलिया,जर्मनी,नीदरलैंड,सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में भी आयोजित करवाये जाते हैं। माता रानी के इस त्योहार विशाल दुर्गा पूजा को ब्रिटिश संग्रहालय में भी 2006 में उत्सव पूर्वक आयोजित किया गया था। दुर्गा पूजा की इतनी ख्याति ब्रिटिश राज्य में अंग्रेजों के शासन में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने देवी माँ दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया।

हिन्दू धर्म में अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है। वह भी अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग देवी देवताओं की पूजा उस क्षेत्र विशेष की मान्यता और परंपरा के अनुसार की जाती रही है और बड़े धूम धाम से उत्सव पूर्वक की जाती है। उत्तर भारत में जहाँ सावन व फाल्गुन माह में कावड़ यात्रा पूरे माह भर और महा शिवरात्रि पर्व कई दिनों तक मनाया जाता है वहीं भाद्रपद माह में महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की महाधूम रहती है,यह त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है।यद्यपि कि इस बार गणेशोत्सव और शारदीय नवरात्रि में भी यह त्योहार कोरोना संक्रमण के कारण सरकार ने इसे घर में मनाने की इजाजत दी है,मंदिर नहीं खोला गया था। इसी तरह गुजरात,राजस्थान और लगभग पूरे उत्तर भारत में ही वर्ष में दो बार जहाँ चैत्र और आश्विन माह में नवरात्रि पूजा का बड़े धूमधाम से उत्साहपूर्वक आयोजन किया जाता है,तो वहीं बंगाली क्षेत्र में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि से दशमी तिथि तक पाँच दिनों तक दुर्गा पूजा पर्व का उत्सव बड़े हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इन प्रतिमाओं/मूर्तियों का विसर्जन भी जैसे दस दिनों के पश्चात आदर व श्रद्धा पूर्वक गणेशोतोत्सव के बाद किया जाता है,वैसे ही दुर्गा पूजा के बाद माँ दुर्गा की विभिन्न प्रतिमाओं/मूर्तियों का भी बड़े आदर व सम्मान के साथ विसर्जन किया जाता है।

सच पूछा जाय तो दुर्गापूजा का यह प्रसिद्ध उत्सव और त्योहार तो पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा आदि राज्यों में है,किन्तु वर्तमान समय में दुर्गा पूजा का यह उत्सव लगभग पूरे देश में ही मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि में तो दुर्गा पूजा की तैयारियां लगभग महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है। इस पर्व में पंडाल लगाकर इसे विधिवत सजाया जाता है और इसमें माता रानी दुर्गा माँ के अलग अलग रूपों की दुर्गा माँ की प्रतिमाओं को बड़े ही विधि विधान से पूजन कर स्थापित किया जाता है। इस अवसर पर पांडालों में स्थापित सभी प्रतिमाओं का एक कमेटी द्वारा विधिवत आंकलन भी किया जाता है तथा सर्वश्रेष्ठ सजावट,श्रेष्ठ व्यवस्था,सबसे बेहतर प्रतिमा,सब से अधिक रचनात्मक कार्यों के लिए पांडाल के व्यस्थापकों को पुरष्कृत भी किया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है। पुरुष एवं महिलाएं अपने क्षेत्र के पारंपरिक परिधान पहनते हैं। यह भी मान्यता है कि राजा-महाराजाओं के समय में तो यह दुर्गा पूजा और भी अधिक जोश और उत्साह से बड़े स्तर पर हमेशा आयोजित की जाती रही है।

इस दुर्गा पूजा त्योहार में कलश स्थापना से लेकर नौमी तक हिन्दू धर्म के श्रद्धालु और भक्तगण व्रत और उपवास रखते हैं। इस व्रत में बहुत से लोग तो पूरा नौ दिन सिर्फ फलाहार,मेवा,दूध,दही,सिंघाड़े के आटे से बनी खाद्य सामग्री और बिना लहसुन प्याज की सब्जी आदि केवल खाते हैं और माता रानी का दोनों समय दुर्गा के नौ रूपों की हर दिन के हिसाब से उनकी पूजा अर्चना कीर्तन भजन करते हैं और अंतिम दिवस नवमी को हवन पूजन प्रसाद वितरण करने के बाद अन्न को ग्रहण करते हैं। कुछ लोग केवल स्थापना दिवस और अष्टमी को ही व्रत रहते हैं और माँ दुर्गा का पूजा पाठ और हवन तथा आरती इत्यादि करते हैं। अब जब शरीर की शक्ति और ऊर्जा कम हो रही रहती है तब भी माँ के श्रद्धा के प्रति व्रत इत्यादि रहते हैं। माता की पूजा अर्चना और मंदिरों में नवरात्रि में दर्शन करने और चढ़ावा चढ़ाने भी जाते हैं। माता रानी सब की मनोकामना पूर्ण करती हैं और सब पर अपनी कृपा बरसाती हैं। देवी माँ दुर्गा सब का मंगल करती हैं और दुष्टों का संघार भी करती हैं।
जय माता दी।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

*जय माता दी,जय माता दी,जय माता दी*

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
2020-21,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*डॉ.भीम राव अम्बेडकर जयन्ती पर-विशेष काव्य*

*डॉ.भीमराव अम्बेडकर जयंती पर-विशेष काव्य*
(जन्म,कर्म,शिक्षा,संघर्ष,उपलब्धि,मृत्यु व सम्मान)

रचियता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

बाबा साहब अम्बेडकर,जी की आज जयंती है।
समाजसुधारक काम किये,उसका रंग वसंती है।

जन्मे14अप्रैल1891में,महू इंदौर मध्य प्रदेश में।
राम जी मौला-भीमा बाई,की14वीं ये संतान थे।

पाँच वर्ष के अल्प आयु में,माँ स्वर्गलोक सिधारीं।
भीमराव का पूरा पालन,पोषण चाची कीं बेचारी।

पिता मराठी अंग्रेजी गणित,के ज्ञाता शिक्षक थे।
जबतक जीवित रहे पढ़ाये,क्योंकि वे शिक्षक थे।

बचपन से ही तेजस्वी थे,संस्कृत का चाहते ज्ञान।
निम्न जाति में पैदा होने से,मिला ना उनको मान।

अछूतों जैसा जीवन झेले,सदैव हुए हैं अपमानित।
गुरु न शिक्षा देना चाहें,पानी पीना भी अपमानित।

पढ़ने में मेधावी थे ये,किसी तरह से पढ़ते लिखते।
पितृ मृत्यु बाद ये कैसे, अपनी पढ़ाई हैं पूरी करते।

किसी तरह मैट्रिक एवं बीए,की पढ़ाई पूर्ण किया।
महाराज बड़ौदा इनको,25रू माह वजीफा दिया।

मेधावी छात्रों को विदेश में,पढ़ने का देते थे मौका।
बड़ौदा नरेश की कृपा से,भीमराव भी पाए मौका।

अमेरिका इंग्लैंड में रहके, अम्बेडकर ने की पढ़ाई।
अर्थशास्त्र राजनीति कानून,विषय डट कर पढ़ाई।

महाराजा बड़ौदा ने इनके,यह सारे हैं खर्च उठाये।
पीएचडी भी किये वहीं से,उच्च शिक्षा लाभ पाये।

स्वदेश लौटकर आने पर,10 वर्ष की उनकी सेवा।
सैनिक सचिव के पद पर,रहकर उनको दी है सेवा।

पढ़े लिखे थे पद पर रहकर,भी रोज सहे अपमान।
चपरासी तक भी करता,रहता था इनका अपमान।

भेदभाव अस्पृश्यता का,दलित होने का दंश झेला।
सवर्णों के बुरे व्यवहार, कट्टरपंथियों के सब झेला।

कुंठित हो सचिव पद त्याग दिया,बम्बई चले आये।
छुआछूत की बुरी भावना से यहाँ भी बच ना पाये।

मुम्बई में रह ‘बार एट लॉ’, की उपाधि ग्रहण किये।
सामाजिक भेदभाव बीच,यह वकालत शुरू किये।

वकील होनेके बावजूद भी,इन्हें कोई कुर्सी न देता।
एक मुकदमा कत्ल का, जीते जिरह से विधिवेत्ता।

दकियानूसी विचारकों की,काम ना आई खोपड़ी।
कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा,मन मार तब करनी पड़ी।

यह कहते थे दुनिया में ऐसा,कोई समाज है पवित्र।
मनुष्य के छूने मात्र परछाईं,से होजाता है अपवित्र।

अछूतोद्धार हेतु संघर्ष किये,आंदोलन कई चलाये।
लन्दन गोलमेज कॉन्फ्रेंस में,भी अपनीबात उठाये।

अंगेजों की गुलामी से हम,जब 47 में आजाद हुए।
स्वतंत्र भारत के प्रथम,कानून मंत्री अम्बेडकर हुए।

बने संविधान प्रारूप निर्माण, उप समिति अध्यक्ष।
दलित सुधार मान सम्मान, के भी यह रहे अध्यक्ष।

संविधान निर्माण में अपनी,अहम भूमिका निभाई।
दलितों के कल्याण हेतु, कई योजनायें भी बनाई।

कहे दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत में,मैं जन्मा भले मगर।
हिन्दू होकर नहीं मरूँगा,स्वीकारा बौद्ध धर्म डगर।

त्यागपूर्ण जीवन जीते,6दिसंबर56 को स्वर्ग धाये।
मरणोपरांत अप्रैल 1990,भारतरत्न सम्मान पाये।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22 एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है*

*”जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

आया है देखो यह माँ का त्योहार,
सजने लगा देवी मैय्या का दरबार।

2020 से आया संक्रमण कोरोना,
वासंतिक नवरात्र में पुनः कोरोना।

 शारदीय नवरात्र में सजा कोना-2,
अबकी फिर छाया है यह कोरोना।

नौ दिनों का होता धार्मिक त्योहार,
घर-घर में माँ का स्वागत हर द्वार।

स्थापित करते कलश देवी माँ का,
धूप दीप चन्दन रोली पुष्प पताका।

करियेगा ध्यान लगा पूजा देवी का,
पहला दिन है शैलपुत्री देवी माँ का।

दुर्गा चालीसा पढ़ें ध्यान से माँ का,
दूसरा दिन है ब्रम्हचारिणी माँ का।

थाल सजा कर नित करते आरती,
तीसरा दिन है माँ चंद्रघंटा देवी का।

फल मेवा मिश्री ले प्रसाद चढ़ाओ,
चौथे दिन की देवी माँ हैं कुष्मांडा।

धूप जलाओ और संकीर्तन गाओ,
पंचम दिन की देवी माँ स्कंदमाता।

सुबह शाम माँ का जयकारा लगायें,
छठवें दिन में देवी माँ हैं कात्यायनी।

फूल चढ़ायें माला पहनायें माता को,
सातवां दिन कालरात्रि देवी माँ का।

चुनरीचूड़ी बिंदीसिन्दूर चढ़ाएं माँ को,
अष्टम दिन की महागौरी देवी माँ को।

हवन करें महाआरती,प्रसाद भी बांटे,
नवयें दिन की देवी माँ सिद्धदात्री का।

इसी नवमी को जन्मे प्रभु श्रीराम जी,
अयोध्या में उत्सव बजी शहनाई भी।

सुदर्शन धारी विष्णु ये मानव रूप में,
दशरथ-कौशल्या के प्रिय पुत्र रूप में।

त्रेता युग के मेरे प्रभु श्रीराम अवतारी,
मर्यादा पुरूषोत्तम सर्वप्रिय धनुर्धारी।

देवी माँ व श्रीराम ने असुरों को मारा,
दुःखियों को सदैव माँ-प्रभु ने है तारा।

सभी का कल्याण करना ऐ देवी माँ,
अपनी कृपा बरसाना हे प्रभु! हे माँ!

जय जय श्रीराम जय-2 श्रीराम जी,
जय जय हो मैय्या जय हो माता दी।

 

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
2020-21एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर*

*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर*
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

भीम राव अम्बेडकर जी (बचपन में इनका नाम भीम सकपाल था) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को
महू-इंदौर,मध्य प्रदेश के राम जी मौला (पिता) एवं भीमाबाई (माता) के घर उनकी 14वीं संतान के रूप में हुआ था। इनके पिता जी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। मराठी,अंग्रेजी
और गणित विषय के अच्छे ज्ञाता भी थे। भीम राव को भी यही गुण पिता से विरासत में मिले थे।

भीम राव जिस जाति में पैदा हुए थे वह उस समय बहुत निम्न्न व हेय दृष्टि से देखी जाने वाली जाति थी। जब वे मात्र 5 वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया। इनका लालन पालन इनकी चाची ने किया। भीम राव संस्कृत पढ़ना चाहते थे,किन्तु अछूत होने के कारण इन्हें संस्कृत पढ़ने का अधिकारी नहीं समझा गया। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान इन्हें बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा। अध्यापक उनकी कापी किताब नहीं छूते थे। यहाँ तक की जिस स्थान पर अन्य विद्यार्थी पानी पीने जाते थे,वहाँ उन्हें पानी पीने से मनाही थी। वे वहाँ नहीं जा सकते थे। कभी कभी तो वे कई बार प्यासे ही रह जाते थे। इस प्रकार की छुआछूत की भावना से वे बहुत दुःखी और खिन्न रहते थे।

एक बार तो एक बैलगाड़ी वाले ने उनकी जाति जानते ही उन्हें और उनके दोनों भाइयों को अपनी बैलगाड़ी से नीचे ढकेल दिया था। ऐसे ही एक बार अधिक वारिश से बचने के लिए भीमराव जिस मकान की छत के नीचे खड़े थे उस मकान मालिक ने उनकी जाति जानते ही उन्हें कीचड़ सने पानी में भी ढकेल दिया था। अछूत होने के नाते कोई नाई उनके बाल नहीं काटता था। यहाँ तक कि अध्यापक उन्हें पढ़ाते नहीं थे। पिता की मृत्यु के बाद भीम राव ने अपनी पढ़ाई पूर्ण किया।
चूँकि भीमराव एक प्रतिभाशाली छात्र थे,इस लिए उनको बड़ौदा के महाराजा ने 25 रूपये मासिक वजीफे के रूप में भी प्रदान किया। उन्होंने 1907 में मैट्रिक और 1912 में बी.ए. (बी.ए. को उस ज़माने में एफ.ए. यानी फादर ऑफ़ आर्ट कहा जाता था) की परीक्षा उत्तीर्ण किया। उस समय बड़ौदा के महाराजा द्वारा कुछ मेधावी छात्रों को विदेश में पढ़ने का मौका और सुविधा दिया जाता था। भीम राव अम्बेडकर को भी यह सुविधा मिल गयी। उन्होंने 1912 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लैंड में रहकर अर्थशास्त्र,राजनीति तथा कानून का गहन अध्ययन किया और पीएच.डी. की डिग्री भी यहीं से प्राप्त किया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे स्वदेश लौटे।

बड़ौदा नरेश महाराजा की शर्त के अनुसार उनकी 10 वर्ष सेवा करनी थी,अतः अम्बेडकर जी को वहाँ सैनिक सचिव का पद दिया गया। सैनिक सचिव के पद पर होते हुए भी उन्हें काफी अपमान जनक घटनाओं का सामना करना पड़ा। बड़ौदा नरेश के स्वागतार्थ जब वे उन्हें लेने पहुंचे तो भी अछूत होने के नाते उन्हें होटल में नहीं आने दिया गया। सैनिक कार्यालय के चपरासी भी उन्हें दी जाने वाली फाइलें व रजिस्टर फेंक कर देते थे। यहाँ तक कि कार्यालय का पानी भी उन्हें पीने नहीं दिया जाता था। जिस दरी पर अम्बेडकर चलते थे,वह अछूत हो जाने के कारण उस पर कोई नहीं चलता था। इस प्रकार से लगातार अपमानित होते रहने के कारण उन्होंने सैनिक सचिव का यह पद अंततः त्याग दिया।

लोगों के इस भेदभाव एवं बुरे व्यवहार का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि दलितों और अस्पर्श्य माने जाने वाले लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने उनका नेतृत्व करने का निर्णय लिया तथा उनके कल्याण हेतु एवं उन्हें वास्तविक अधिकार व मान सम्मान दिलाने के लिए दकियानूसी कट्टरपंथी लोगों के विरुद्ध वे जीवन भर संघर्ष करते रहे। इस उद्देश्य से ही उन्होंने 1927 में “बहिष्कृत भारत” नामक मराठी पाक्षिक समाचार पत्र निकालना प्रारम्भ किया। इस पत्र ने शोषित समाज को जगाने का अभूतपूर्व कार्य किया। उन्होंने मंदिरों में अछूतों के प्रवेश की मांग किया एवं इस हेतु 1930 में करीब 30000 दलितों को साथ लेकर नासिक के काला राम मंदिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया।

इस अवसर पर उच्च वर्णो के लोगों की लाठियों की मार से अनेक लोग घायल भी हो गए,किन्तु भीम राव ने सभी अछूतों को मंदिर में प्रवेश करा कर ही दम लिया। इस घटना के बाद लोग उन्हें
“बाबा साहब” कहने लगे। बाबा साहब ने 1935
में “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी” की स्थापना किया जिसके द्वारा अछूतों,अस्पृश्य लोगों की भलाई के लिए कट्टरपंथियों के विरुद्ध और तेज संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया। सन 1937 के बम्बई में हुए वहां के चुनावों में कुल 15 में से 13 सीट पर जीत भी हासिल हुई। यद्यपि कि डॉ.अम्बेडकर गांधी जी द्वारा किये जा रहे दलितोद्धार के तरीकों से पूर्ण सहमत नहीं थे। किन्तु अम्बेडकर ने अपनी विचारधारा के कारण कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे बड़े नेताओं को अपनी ओर आकर्षित किया।

बम्बई (आज का मुम्बई) आने पर भी उन्हें इस छुआछूत की भावना से छुटकारा नहीं मिला। यहाँ रह कर उन्होंने “बार एट लॉ” की उपाधि ग्रहण किया और वकालत शुरू कर दिया। एक वकील होने के बावजूद भी उन्हें कोई कुर्सी नहीं देता था।
उन्होंने एक कत्ल का मुकदमा भी जीता था। ऐसे में उनकी कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा मन मार कर के सभी उच्च वर्गीय लोगों को करनी ही पड़ी। बचपन से लगातार उनके सामने छुआछूत और सामाजिक भेदभाव का घोर अपमान सहते हुए भी उन्होंने वकालत को एक पेशे के रूप में अपनाया। छुआछूत के विरुद्ध लोगों को संगठित कर अपना जीवन इसे दूर करने में लगा दिया। समाज में सार्वजानिक कुओं,जलाशयों से पानी पीने तथा मंदिरों में भी प्रवेश करने हेतु अछूतों को प्रेरित किया।

अम्बेडकर हमेशा यह पूछा करते थे “क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज है जहाँ मनुष्य के छूने मात्र से उसकी परछाई से भी लोग अपवित्र हो जाते हैं ?”
पुराण और धार्मिक ग्रंथों के प्रति उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं रह गयी थी। बिल्ली और कुत्तों की तरह मनुष्य के साथ किये जाने वाले भेदभाव और व्यवहार की बात उन्होंने लन्दन के गोलमेज सम्मेलन में भी कही। डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने इस भेदभाव और अछूत परम्परा के खिलाफ भी अछूतोद्धार से सम्बंधित अनेक कानून बनाये। 15 अगस्त 1947 को जब भारत अंगेजों की गुलामी से स्वतंत्र हुआ तो उनको स्वतंत्र भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया गया।

1947 में जब डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में भारतीय संविधान निर्माण समिति का गठन हुआ तो इस कार्य को पूर्ण करने हेतु विभिन्न प्रकार की उपसमितियां भी बनाई गयीं और उसके अलग अलग प्रभारी/अध्यक्ष भी बनाये गए। इसी प्रकार डॉ.अम्बेडकर को भी ऐसी ही एक उपसमिति ‘संविधान प्रारूप निर्माण समिति” के प्रभारी/अध्यक्ष के रूप में चुना गया। इस समय उन्होंने कानूनों में और भी सुधार किया,तथा संविधान निर्माण हेतु उसके प्रारूप स्वरुप को तैयार किया।

डॉ.अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी पुस्तकों में से कुछ
“द अनटचेबल्स हू आर दे” “हू वेयर द शूद्राज” “बुद्धा एन्ड हिज धम्मा” “पाकिस्तान एन्ड पार्टीशन ऑफ़ इंडिया” तथा “द राइज एंड फाल ऑफ़ हिन्दू वूमेन” प्रमुख पुस्तको के रूप में हैं।
इसके अलावा भी उन्होंने बहुत से लेख लिखे, जिनकी संख्या लगभग 300 के पास है। भारत के संविधान निर्माण में भी अन्य उपसमितियों के प्रभारी/अध्यक्षों के उनके योगदान की तरह ही डॉ.अम्बेडकर जी का भी संविधान प्रारूप निर्माण समिति के प्रभारी/अध्यक्ष के रूप में बड़ा अमूल्य योगदान रहा है। जिसे भुलाया नहीं जा सकता है।

इस प्रकार डॉ.भीम राव अम्बेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता,राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता,अर्थशास्त्री,दर्शनशास्त्री,इतिहासकार,और एक समाज सुधारक भी थे। सामाजिक विषमता का पग पग पर सामना करते रहे और अंत तक वे झुके नहीं।अपने अध्ययन,परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन और सम्मान दिया। इसी लिए उन्हें भारत का आधुनिक मनु भी कहा जाता है।उन्होंने अपने अंतिम संबोधन पूना पैक्ट के बाद गाँधी जी से यह कहा था-“मैं दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत होकर जन्मा हूँ,किन्तु मैं हिन्दू होकर नहीं मरूँगा।” इसी लिए उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के विशाल मैदान में अपने 2 लाख से कहीं अधिक अनुयाइयों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। इस तरह डॉ.भीम राव अम्बेडकर महान त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए दलितों के कल्याण के लिए कड़े संघर्ष करते हुए 6 दिसंबर 1956 को स्वर्ग सिधार दिए। उनके महान कार्यो और उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने अप्रैल 1990 में उन्हें (मरणोपरांत) “भारत रत्न” सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया। आज उनके जन्मदिवस 14 अप्रैल को पूरा देश अम्बेडकर जयन्ती के रूप में मनाता है और अपना श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें शत शत नमन करता है।

 

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




बिशन

किशन सुबह ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठा और शाम के दिये बापू के आदेशों को याद कर बेचैन हो गया बापू ने शाम को किशन को समझाते हुए कहा था बेटा हम लोग गरीब है कोई रोजगार तो है नही सिर्फ थोड़ी बहुत खेती है जिसके कारण दो वक्त की रोटी मिल जाती है और खेती मेहनत श्रद्धा की कर्म पूजा मांगती है ।तुम्हारे ऊपर दोहरी जिम्मेदारी है एक तो एकलौते संतान होने के कारण खेती बारी में मेरा सहयोग करना और दूसरा मनोयोग से पढ़ना जिससे कि जो अभाव परेशानी मुझे अपने जीवन मे झेलनी पड़ी वह तुम्हे न उठानी पड़े मेरे पिता जी यानी तुम्हारे दादा जी ने मुझे अच्छी शिक्षा देने की अपनी क्षमता में पूरी कोशिश की मगर आठ जमात से अधिक नही पढा सके जिसका उन्हें मरते दम तक मलाल था। मैं मजबूरी में पढ़ नही सका इसका मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा किशन शाम को दी बापू की नसीहत से खासा बैचैन था क्योंकि खेत मे प्याज की रोपाई होनी थी और अभी खेत पूरी तरह तैयार नही था ।जल्दी जल्दी किशन उठा दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर माँ से गुड़ मांगा और गुड़ पानी पीकर फावड़ा लेकर खेत की तरफ चल दिया खेत पहुंच कर खेत की गुड़ाई का कार्य करने लगा और खेत के खास को निकाल एकत्र करता जिसे अपनी गाय के लिए ले जाना था किशन अपने कार्य को बड़ी एकाग्रता के साथ कर रहा था सुबह के लगभग साढ़े चार ही बजे थे गांव के एक्का दुक्का महिलाएं बाहर जाती दिख जाती कभी कभार गांव के अधेड़ बुजुर्ग भी दिखाई पड़ते किशन को आठ बजे घर पहुचकर स्कूल जाने की तैयारी करनी थी अतः वह बिना समय गंवाए पूरी तल्लीनता से अपने कार्य मे मशगूल था तभी उसके सामने एक अजीब सा प्राणी नज़र आया किशन बिना ध्यान दिए अपना कार्य करता चला जा रहा था आज सोमवार था और तीन दिन बाद उसे बृहस्पतिवार को खेत मे प्याज़ के फसल की रोपाई करनी थी एकाएक वह अजीब सा दिखने वाला प्राणि किशन के बिल्कुल सामने आ गया किशन खेत की गुड़ाई का कार्य रोक कर उस अजनवी की तरफ मुखातिब हुआ उसने देखा कि उस अजीब प्राणी की बनावट बड़ी विचित्र थी वह पृथ्वी के इंसानों से बिल्कुल भिन्न तो था ही किसी जानवर से भी मेल नही खा रहा था कुछ देर के लिये किशन सहमा और डरा भी मगर उस अजीब से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार दोस्ताना और प्यार भरा था अतः किशन ने उससे पूछा क्यो भाई आप कौन है और कहां के बिचित्र प्राणी है यहाँ पृथ्वी पर क्यो भटक रहे है किशन के इतने सारे प्रश्नों का मतलव वह विचित्र प्राणी नही समझ पा रहा था अतः उसने आकाश की तरफ इशारा करते बताया कि मैं वहां से आया हूँ किशन को लगा कि वह विचित्र प्राणी कह रहा हो कि वह भगवान के यहां से आया है किशन को उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार बहुत अपनापन सा लग रहा था अतः किशन उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी से अपने दोस्त शुभचिंतक की तरह बात इशारों में करने लगा कुछ इशारों को वह संमझ पाता और कुछ इशारों को नही संमझ पाता यही दशा किशन की थी वह उस बिचित्र प्राणी के कुछ इशारों को संमझ पाता और कुछ को नही किशन और उस बिचित्र प्राणी के इशारों इशारों की बातों में सुबह कब पौ फ़टी सूर्योदय हो गया पता नही चला सुबह के लगभग आठ बजने ही वाले थे किशन खेत के गुड़ाई का कार्य के उस दिन के निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे उस बिचित्र प्राणी के चक्कर मे रह गया था। मगर उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी का अपनापन प्यार उसके मन मे लक्ष्य अधूरा रहने के मलाल को जन्म नही दे रहा था किशन को घर लौटना था वह असमंजस में था कि यदि उस विचीत्र से दिखने वाले प्राणी को अकेला छोड़ दिया तो गांव वाले उसे मार डालेंगे इशारों इशारों में उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने भी आशंका जाताई थी एकाएक किशन ने निश्चय किया कि वह उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को अपने साथ घर ले जाएगा और वह उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी को लेकर घर की ओर चल दिया घर चलने से पहले उसने उसे अपने अंगौछे से ढक दिया रास्ते मे गांव वाले पूछते किशन ये क्या है किशन कहता कुछ नही यह मेरा दोस्त है किशन उस बिचित्र प्राणी को लेकर घर पहुंचा तो किशन के बापू अरदास बोले बेटा ये क्या है किशन ने बड़ी सहजता से जबाव दिया यह मेरा दोस्त है किशन ने ज्यो ही उस बिचित्र प्राणी से अपना अंगौछे को हटाया किशन के बापू अरदास दंग रह गए बोले बेटा यह तुम्हारा दोस्त कैसे हो सकता है यह तो इस पृथ्वी के ना तो किसी जीव जंतु जैसा है ना ही आदमी जैसा तभी उस अजीब प्राणी ने बड़े ही आदर से झुक कर किशन के पिता अरदास के पैर छुए अरदास आश्चर्य से भौचक्के रह गए और उनका क्रोध समाप्त हो गया उन्होंने किशन से पूछा बेटा यह तुम्हे कहाँ मिला किशन ने अपने बापू से उस बिचित्र प्राणी से मुलाक़ात का पूरा व्योरा बताया और बोला बापू हम तो अभी स्कूल चले जायेंगे इस बिचित्र प्राणी का ख्याल रखना और गांव वालों की नज़र से बचाना अरदास बोले ठिक है बेटा लेकिन अपनी अम्मा को इससे मिला दो और उन्हें बता दो वह इसका बेहतर ख्याल रखेंगी किशन उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को लेकर ज्यो ही माँ मैना के पास गया उस बिचित्र प्राणी ने झट जा माँ मैन के पैर छूकर उनकी गोद मे बैठ गया कुछ देर के लिये तो माँ मैना डर के मारे सहम गई मगर उस बिचित्र प्राणी का प्यार भरा व्यवहार देखकर निडर होकर किशन से पूछा ये क्या है बेटा किशन बोला माँ यह मेरा दोस्त है जैसे माँ तू मेरा ख्याल रखती हो ठीक वैसा ही यह भी तुम्हारा खयाल रखेगा हमे स्कूल जाना है देखना इस पर गांव वालों की नज़र ना पड़े माँ मैना बोली बेटा ठीक है तुम निश्चिन्त होकर स्कूल जाओ यह मेरे पास उसी प्रकार रहेगा जिस प्रकार तुम रहते हो किशन तैयार होकर स्कूल चला गया इधर वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणि माँ मैना के साथ घर पर माँ के हर काम मे हाथ बटाने लगा माँ बर्तन मज़ती वह शुरुआत ही करती मगर सारा बर्तन थो देता कपड़ा साफ करना हो या खाना बनाना सभी कामो में माँ की आगे बढकर हाथ बटाता मैना को तो एक ही दिन में लगने लगा कि बिचित्र सा प्राणी उनका ही छोटा बेटा है।
एक ही दिन में बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी किशन के माँ बापू का दुलारा बन गया उसका व्यवहार इसांनो से अधिक संवेदनशील और व्यवहारिक था उसके व्यवहार आचरण में औपचारिकता बिल्कुल नही थी आभास ही नही होता था कि बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी किसी शिष्ट सभ्य समाज से ताल्लुक नही रखता सिर्फ फर्क था तो मात्र इतना कि वह कार्य सभी इंसानों वाला करता मगर कुछ भी खाता पिता नही सिर्फ वह चूल्हे की आंच के सामने कुछ देर बैठ कर ही तरोताज़ा ताकत ऊर्जा से भरपूर हो जाता उसके आचरण व्यवहार को देख किशन के पिता अरदास पत्नी मैन से बोले आज जब इंसानों के समाज द्वेष ,घृणा, लालच, स्वार्थ में अंधे एक दूसरे की टांग खिंचते कभी कभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो नैतिक मूल्यों मर्यादाओं का परिहास उड़ाते है ऐसे में यह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी पृथ्वी वासी मनुष्यों के लिये एक सिख देता मार्गदर्शक है ।निश्चय ही मेरे किशन ने इस जन्म या पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये है जिसके कारण किशन की मुलाकात इस प्राणी से हुई मैना भावुक होकर बोली जी मैं तो चाहती हूँ कि यह हमारे घर हमारा दूसरा बेटा बनकर रहे लेकिन पता नही क्यो डर लगता है कि कही यह हमें छोड़ कर चला न जाये जिसने सुबह से शाम केवल एक दिन में ही मर्यादा प्रेम और संस्कारों के भाव मे ऐसा बांध लिया है कि मुक्त होना कठिन है।शाम होने को आई किशन भी स्कूल से आ चुका था किशन के आते ही वह बिचित्र सा प्राणि किशन के साथ दूसरे भाई की तरह हो लिया किशन को इस बात पर बहुत आश्चर्य था कि अम्मा बापू पर इस अबोध अंजान बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने कौन सा जादू कर दिया है कि वे लोग उससे ज्यादा प्यार और सम्मान उस प्राणी का कर रहे है रात को जब किशन जब पढ़ने बैठा तब वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी भी किशन के साथ बैठा और किशन को उसकी पढाई में सहयोग करता उलझे प्रश्नों का उत्तर बताता पढाई समाप्त करने के बाद किशन खाना खा कर सोने के लिये गया तो वह बिचित्र प्राणी भी साथ हो लिया सुबह किशन उठा तो वह विचित्र प्राणी भी साथ उठा वह कब सोया यह किशन को मालूम नही हो सका किशन जल्दी से दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर गुड़ पानी पी कर खेत की गुड़ाई करने चल दिया साथ साथ वह विचित से प्राणी भी साथ चल पड़ा
जब किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था तब विचित्र सा दिखने वाले प्राणी ने फावड़ा किशन के हाथ से ले लिया और जैसे जैसे किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था वह करने लगा और लगभग तीन घंटे में पूरे खेत की गुड़ाई कर दी किशन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने उस विचित सा दिखने वाले प्राणी जिसकी लम्बाई साढ़े तीन फीट और बनावट अजीब सी थी को गले लगा लिया औऱ भावुक होकर बोला कि तुम अब विचित्र प्राणी नही तुम मेरे भाई बिशन हो वह विचित्र प्राणि यानी बिशन अब पृथ्वी वासियों की भाषा समझने लगा था और बोलने की कोशिश करता किशन और बिशन दोनों साथ घर की तरफ चल दिये घर पहुंचकर बापू अरदास को किशन ने बताया कि विचित्र प्राणि को सभी लोग बिशन नाम से बुलाएंगे अरदास और मैना बिशन के आने से किशन के साथ बहुत खुश थे परिवार में एक ऐसा सदस्य जुड़ गया था जो सबका ख्याल रखता था उसकी अपनी जरूरते बहुत सीमित थी पूरे परिवार में उल्लास उत्साह और खुशी का माहौल बिशन के आने से बन गया था।बिशन को आये दो दिन ही हुये थे कि मेंहदी पुर गांव में कानो कान खुसर फुसर चल रही थी कि अरदास के यहॉ एक बहुत खास और बिचित्र प्राणी पता नही कहां से आया है किशन स्कूल जाते समय बापू से बोला बापू आज गांव के कुछ लोंगो ने बिशन को खेत मे मेरे साथ देखा है सम्भव है मेरे स्कूल जाने के बाद गांव के लोग आपसे बिशन के विषय मे जानकारी चाहे मगर बापू मेरी कसम आप किसी को कुछ मत बताना नही तो सब मिलकर हमारे बिशन को हमलोंगो से दूर कर देंगे अरदास बोले बेटा तुम निश्चित रहो मेरे होते हुये बिशन को कोई हमसे अलग नही कर सकता किशन निश्चिन्त होकर स्कूल चला गया जैसी की आशंका थी किशन के स्कूल जाने के कुछ ही देर बाद गांव वाले गांव के मुखिया मुनेश्वर के साथ अरदास के दरवाजे आ धमके अरदास ने जब देखा कि गांव वाले उनके दरवाजे आ धमके उनको अंदाजा तो था ही उन्होंने अपनी पत्नी मैना को हिदायत दी कि किसी भी सूरत में बिशन बाहर ना निकले अपने दरवाजे पर गांव वालों को देख कर अरदास ने सबको गुड़ का शर्बत पिलाया और आदर सम्मान से बैठाया और पूछा आप लोग हमारे दरवाजे की शोभा बढ़ाने आये हम आप लोंगो की क्या सेवा करे प्रधान मुनेश्वर बोले अरदास जी सुना है आपके घर कोई बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी आया है गांव वालों की मंशा है कि आप उंसे गांव वालों से मिलवाये परिचय करवाए अरदास बोला प्रधान जी एक तो हमारे यहां कोई विचित्र प्राणि नही रहता जो रहता है वह मेरा दूसरा बेटा बिशन है जो पंद्रह साल पहले विकृत पैदा हुआ था सो हमने उसे समाज के तानों और परिहास से बचाने के लिये छिपा के रखा मगर आज मैंना उंसे लेकर बाहर गयी है उसका इलाज झाड़ फूँक करवाने क्योकि उसकी तबीयत कुछ गड़बड़ लग रही थी ज्यो बिशन स्वस्थ होगा पूरे गांव वालों से उसका परिचय करवा देंगे अरदास ने इतना सटीक और खूबसूरत बहाना बनाया की गांव वाले निरुत्तर हो गए और चले गए मगर गांव वालों के मन मे दुविधा बनी रही कि अरदास झूठ क्यो बोल रहे है अब गांव में हर घर चर्चा होने लगी कि अरदास की बीबी मैना ने ऐसा बालक जना है कि जो पृथ्वी के किसी प्राणि से मेल नही खाता धीरे धीरे यह बात आग की तरह पूरे इलाके जनपद में फैल गयी हर दिन अरदास के दरवाजे पर सुबह से शाम हज़ारों लोंगो उस बिचित्र संतान को देखने की जिद करते मगर किशन उंसे लेकर कभी इधर कभी उधर छिपता फिरता इसी चक्कर मे उसका स्कूल जाना बंद हो गया बात फैलते फैलते स्थानीय पुलिस और जिलाधिकारी तक पहुंच गयी जिलाधिकारी सुबोध मुखर्जी मीडिया पोलिस और पूरे जनपद के संभ्रांत लोंगो के साथ साथ चिकित्सको और दिल्ली से कुछ खास वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर अरदास के दरवाजे मेहंदी पुर गांव पहुंचे अरदास इतने बड़े बड़े हाकिम और पुलिस को देखकर हैरत और भय में टूट गया बोला हाकिम बिशन जो मेरे बेटे के समान है उंसे मैं आपलोगों के समक्ष तभी प्रस्तुत कर पाऊंगा जब आप लोग यह लिखित आश्वासन दे कि आप लोग द्वारा उसका कोई नुकसान नही किया जाएगा और उसे हमारे परिवार से अलग नही किया जाएगा काफी ना नुकुर करने के बाद पूरे प्रशासनिक अमले ने विचार विमर्श करके इस निष्कर्ष पर पहुंची की अरदास जो कह रहा है उंसे लिख कर देकर आश्वस्त करने में कोई हर्जा नही है तुरंत जिलाधिकारी सुबोध मुकर्जी ने लिखित आश्वाशन वैसा ही दे दिया जैसा अरदास चाहते थे अब अरदास अपने घर के अंदर गए और मैना के साथ बिशन किशन को साथ लेकर बाहर आये बिशन मैना की गोद मे उसी प्रकार बैठा था जैसे कोई बेटा अपनी माँ की गोद मे बैठता है जब जिलाधिकारी और उनकी टीम जिसमें बैज्ञानिक चिकित्सक और इलाके के संभ्रांत लोग थे के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा क्योकि अरदास जिसे अपना विकृत दूसरा बेटा कह रहे थे वास्तव मे वह परग्रही प्राणी एलियन था जो किसी कारण भटक कर अरदास के परिवार को मिल गया था वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिये शोध खोज का विषय था जिसके लिये उंसे साथ ले जाना आवश्यक था मगर जिला अधिकारी ने लिखित आश्वासन दे रखा था कि उसे अरदास के परिवार से अलग नही किया जा सकता है। अतः सभी मन मसोश कर चल दिये ।
अब प्रतिदिन अरदास के दरवाजे पर सुबह पूरे प्रदेश और जनपद के सुदूर इलाको के लोंगो की भीड़ लग जाती टी वी चैनल्स अखबार वालो के लिये मसालेदार खबर थी जिससे उनके चैनल्स और अखबार की स्वीकृति और रेटिंग बढ़ रही थी आने वाले लोंग और चैनल्स अखबार वालो ने जमकर अरदास के परिवार वालो पर पैसे की बरसात की अरदास ने पच्चीस एकड़ का फार्महाउस खरीद लिया और शानदार हवेली बनवा की बिशन को आये लगभग एक वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ का तमाशा कम होने का नाम ही नही ले रहा था प्रतिदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही थी इस बात की खबर सबको थी अब कुछ बाहुबलियों की निगाह अरदास के कमाई पर पड़ी और उन लोंगो ने अरदास को आदेश दिया कि बिशन को उसके हवाले कर दे उधर प्रदेश औऱ देश की सरकारें बिशन को अपने कब्जे में लेकर शोध कार्य करना चाहती थी अरदास पर चौतरफा दबाव था देश की सरकार ने एक प्रतिनिधिमंडल बाकायदे राज्य सरकार की सहमति से बिशन को लाने के लिये भेजा प्रतिनिधि मंडल अरदास के घर बिशन को लेने पहुंचा अरदास की संमझ में कुछ भी नही आ रहा था कि वह अपने जिगर के टुकड़े जैसे एलियन बिशन को सौंपे या नही अन्त में अरदास ने फैसला किया कि वह किसी भी सूरत में बिशन को किसी को नही सौंपेगा सरकारी प्रतिनिधिओ ने बिशन को सौंपने के एवज में अच्छी खासी रकम अरदास को देने की पेशकश की वार्तालाप में लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका था मगर कोई हल निकलता नही दिख रहा था ठिक आठवें दिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ एकत्र थी सरकार के प्रतिनिधि भी मौजूद थे उसी समय एलीयन्स का एक समूह वहां उतरा जिसे देखते ही बिशन अरदास को उनकी तरफ इशारा किया अरदास और मैना और किशन बिशन को लेकर भीड़ को चीरते हुए एलियन्स के समूह के पास गए ज्यो ही वे उनके समूह के पास गए उनमें से एक मैना के पास आया जिसकी गोद मे बिशन बेटे की तरह बैठा था उसने बिशन को अपनी तरफ आने का इशारा किया अरदास ने मैना से कहा यह बेटा हम लोंगो के लिये इतने ही दिनों के लिये ही अपनी माँ परिवार से बिछड़ कर आया था तुम एक माँ हो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि बिशन को उसके परिवार माँ के हवाले कर दो मैना के आंख से आंसु के धार फुट पड़े किशन और अरदास भी रोने लगें वहां एकत्र भीड़ यह करुण दृश्य देखकर गमगीन हो गई मैना ने भारी मन से बिशन को ज्यो ही अपनी गोद से छोड़ा सारे एलियन्स खुशी खुशी बिशन को लेकर आकाश की ओर उड़ चले सभी यह दृश्य देखकर हतप्रद रह गए ।।

कहानीकार –नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




नवगीत (कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध)

सुन ओ भारतवासी अबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

आये दिन करता हड़ताल,
ट्रेनें फूँके हो विकराल,
धरने दे कर रोके चाल,
सड़कों पर लाता भूचाल,
करे देश को तू बदहाल,
और बजाता झूठे गाल,
क्या ये ही तेरा अंतर्बोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

व्यर्थ व्यवस्था के क्या तंत्र,
पड़े रहे क्या बंद संयंत्र,
मौन रहें क्या जीवन-मंत्र,
रुदन मचाये या जन-तंत्र,
मूंद रखो औरों पर नेत्र,
विकसित रख अपना हर क्षेत्र,
क्या बस तेरा यही प्रबोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

बच्चे ढूंढ़ें चाहे जीविका,
झोंपड़ झेलें या विभीषिका,
नारी होती रहे घर्षिता,
सिसके नैतिकता, मानवता,
ओछी कर तू चाटुकारिता,
लज्जाते हो पत्रकारिता,
भूल गया क्या सब अवरोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

हक़ की क्या है यही लड़ाई,
लोकतंत्र की या तरुणाई,
अबतक की क्या यही कमाई,
या अधिकारों की अधिकाई
तू उदण्ड बन कर दंगाई,
संस्कार की करे विदाई,
अबतक का क्या ये ही शोध,
कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध?

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




क्षणिकाएँ (विडम्बना)

(1)
झबुआ की झोंपड़ी पर
बुलडोजर चल रहे हैं
सेठ जी की
नई कोठी जो
बन रही है।
**

(2)
बयान, नारे, वादे
देने को तो
सारे तैयार
पर दुखियों की सेवा,
देश के लिये जान
से सबको है इनकार।
**

(3)
पुराना मित्र
पहली बार स्टेशन आ
गाडी में बैठा गया
दूसरी बार
स्टेशन के लिये
ऑटो में बैठा दिया
तीसरी बार
चौखट से टा टा किया।
**

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




वज़ूद

#वज़ूद

इस कायनात में
अगर कुछ है
तो वो सिर्फ
“वज़ूद”
अगर वो है
तो ये सारी दुनियाँ
तुम्हारे पक्ष में है ।

इसलिए ,,,,
स्वयं को
पढ़ो,
लिखो,
सँवारो,
निखारो,
अपने लिए भी,
कुछ वक़्त निकालो !!!

ख़ुद से खुद के
दफ़्न किये गए शौकों को
पुनः जीवित करने के लिए..
गाओ,
गुनगुनाओ,
थिरको
अपनें मन की मधुर तान पर …!!!

बार-बार निहारो,
आईने में ख़ुद को,
सज-सँवर कर ,
मुग्ध हो अपने ही रूप पर,
अपनी ही देहयष्टि पर,
ये सुंदरता तुम्हारी है,
सिर्फ तुम्हारी अपनी है !!!

करो रसास्वादन
अपने गुणों का
अपनी कलाओं का
अपनी खूबियों का !!!

क्योकि….
इसी से तुम्हारा “वज़ूद” जिंदा है
तुम्हारी पहचान जिंदा है
तुम्हारा अस्तित्व जिंदा है !!!

अगर तुम्हारा वज़ूद
सबल है तो सबल भी
तुम ही बनोगी… !!!
क्या जीना,,,????
दूसरों की मुस्कुराहटों के लिए
अपने को रुला कर
अपना मन मार कर
दूसरों की ख्वाहिशें
पूरी करने के लिए !!!

वो दूसरा है
दूसरा ही रहेगा
तुम्हारा नही होगा
अगर होता वो तुम्हारा
तो तुम्हें बिखरने न देता
स्वयं की खुशियों के ख़ातिर
तुम्हें मिटने न देता
इस कदर एक दायरे में तुम्हे
सिमटने न देता !!!

तुम , तुम्हारा वज़ूद
ही तुम्हारा अपना है
और कोई दूसरा नहीं
इसलिये ,,,
सहेजो “स्व” को ….||
—सीमा पटेल