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आत्मबल

 

 

 

आत्मबल

(जब जीवन में और निराशा घेर लेती है तब हमारे अपने भी हम से विमुख हो जाते हैं परंतु किसी भी स्थिति में मनुष्य को अपना आत्मबल नहीं खोना चाहिए यदि आत्मबल है तो वह अनेक झंझावातों से जीत सकता है और अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकता है। सामाजिक विडंबना ओ में गिरे मनुष्य को निराशा से आशा की किरण दिखाती हुई, समर्पित है यह कविता)

आत्मबल

 

एक दिनअचानक
मुझसे कहा गया
सब खत्म हो गया
फूल अब धूल था
जीवन अब शांत था
मौसम भी वीरान था
ठहर गया तूफान था
थम गया हो उस पल
जैसे जीवन का मूलप्राण था
लेकिन क्या ये सच था ?
क्या उसे कभी ये हक था ?
फिर टटोला उस पल को
खोली आंखें , देखा खुद को
मैं थी , जीवन था , वही समय था
सीने में भरा वही आत्मबल था
नहीं किसी को हक़ भी इतना
छिने मुझसे जो मेरा मूल था
वो मुझे तोड़ेंगे क्या ?
नहीं जिनका कोई दीन धर्म था
फिर जाना मैंने, पहचाना
स्वयं के आत्मबल को
देखा ऊपर दिनकर
जो कह रहा
नहीं मिटती है रश्मियां
तूफान से फिर जाने से
कलुषित कहां होती, सिंहनी
शियारों से घिर जाने से
इसी विश्वास के साथ
मेरी कलम है संग
सजाने लगी हूं
जीवन के सुनहरे रंग

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत
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[email protected]

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार l




कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति का पुनरोदय 

 

 

कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति का पुनरोदय 

हेतराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”
 
कोरोना आज वैश्विक बड़ी महामारी है। इस संदर्भ में विश्व स्तर पर इस महामारी को रोकने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें सबसे पहला और बड़ा कदम है, सभी आम जनता को अपने घर में अंदर रहना है। अर्थात् घर के अंदर रहने की जो स्थिति है, वह वर्तमान परिपेक्ष्य के आधुनिक युग के समाज को देखा जाए तो बहुत ही विकट परिस्थिति है कि मनुष्य अपने सामाजिक दायरे में एक निश्चित सीमा के अंतर्गत जहाँ रह रहा है, उसे वह अपने आप को कैदी ही समझ रहा है। जबकि सच्चाई यह है यह है कि प्राचीनकाल में हमारा भारतीय समाज सयुक्त रूप से अपने घर- परिवार में अपने समाज में अपना जीवन व्यतीत करता था। उदाहरण के तौर पर हम अगर कुछ साल पीछे चले जाएं तो हमारे भारत के समूचे समुदाय संयुक्त समुदाय के रूप में हमें पढ़ने को इतिहास में समझने को मिलते हैं। कालांतर में धीरे-धीरे परिवर्तन होते रहे अनेक समूह बनते रहे और समूह से धीरे-धीरे ऐसे परिवार का निर्माण हुआ जो एकल परिवार या छोटे परिवार, आज के परिवारों का उदय हुआ। परंतु वर्तमान स्थिति आज कोराना महामारी ने व्यक्ति को जिस परिस्थितियों में खड़ा किया है। अगर उन्हें देखा जाए तो कोरोना की वजह से ही आज परिवार में एक पिता को अपनी पुत्री, अपने पुत्र को पूरा समय देने का भाग्य प्राप्त हुआ है। एक पत्नी को अपने पति के साथ दिनभर रहने का भाग्य प्राप्त हुआ है। एक बुजुर्ग माता-पिता को भी इस कोरोना महामारी की वजह से ही दूर-दराज काम करने वाले पुत्र, जो सुबह घर से निकल जाए करते हैं और शाम को देर रात से लौटते हैं। उनसे बैठकर अपने जीवन की खुशियाँ अपने मानसिक और सामाजिक संवाद करने का जो वार्तालाप करने का जो समय मिला है। वह कोरोना की महामारी के आगमन के कारण ही समाज में स्थापित हो पाया है। अतः हम इस कोरोना महामारी को विश्व की विकराल समस्या न समझ कर इसको सकारात्मक रूप में लें तो यह बीमारी जितनी भयावह है, उतनी ही हमारे वैश्विक समाज में मानव को मानव समझने की सीख भी देती जाएगी। इसके साथ-साथ मनुष्य जितना वैज्ञानिक युग में विज्ञान की अंधाधुंध दौड़ भाग में एक तकनीकी मानव बन गया है। उसे भी प्रकृति के संरक्षण के संबंध में और पृथ्वी के बचाव के संबंध में उसे जागरूक किया है। इसके अतिरिक्त दिनभर भागदौड़ करने वाले व्यक्ति जो अपने जीवन का महत्व भूल चुका है। उसको भी मानव जीवन के मूल्य को इसी महामारी में स्थापित किया है। अर्थात् जीवन के मूल्य को समझाने का स्पष्ट प्रयास इस कोरोना महामारी के दिनों में जो लोग अपने घरों में अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं। अतः सभी वैश्विक मनुष्य समाज को एक सामाजिक जीवन की प्रेरणा मिली है। इसके साथ-साथ हमारे वैश्विक स्तर पर अनेक कुप्रथाएँ/कुधारणाएँ चल रही हैं, क्योंकि यह सामाजिक स्तर पर बहुत ही बड़ी अंध-धार्मिकता अमानवता का उदाहरण प्रस्तुत करती है, जिनसे छुटकारा कोरोना महामारी की वजह से ही हमें मिल पाया है। उदाहरण में वे स्पष्ट हैं बाल विवाह, नशा मुक्ति, मृत्यु भोज, विवाहोत्सव में अंधाधुंध खर्चे, रिश्वत/ भ्रष्टाचार, सरकारी सेवा करने वाले लोगों के प्रति अनिष्ठा की भावना, मानवता का मूल्य न जानना, अनावश्यक बीमारी का बढ़ता प्रकोप, सुख परिवार का महŸव न समझना, रोजमर्रा में अनावश्यक खर्चें, किसानों और सैनिकों/पुलिस की सेवा का मूल्य न समझना, डॉक्टरों के प्रति अनिष्ठा व प्रकृति के सरक्षण पर अनिष्ठा जीवन के मूल्य का महŸव न जानना इत्यादि अनेक कुप्रथाएँ/कुधारणाएँ समाज में चल रही थी। इन्हें समझने का अवसर कोरोना की देन है।
बालविवाह पर रोक- हमारे पूरे विश्व स्तर पर अनेक देशों में शिक्षित मनुष्य होने के बावजूद बाल विवाह जैसी कुप्रथा पूरे वैश्विक भूमंडल पर ही चल रही है। जिसमें भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, मलेशिया अर्थात् भारत और भारत के आसपास सभी पड़ोसी देशों में बालविवाह जैसी समस्या आज भी बनी हुई है। और इस कुप्रथा का अंत अर्थात् जनवरी से मई के बीच में होने वाली शादियों पर अंकुश लग गया है।
नशा मुक्ति अंकुश- वैश्विक स्तर पर नशे के मादक पदार्थों पर बिक्री बिल्कुल शून्य कर दी गई है। इससे हमारे विश्व में लगभग 65 प्रतिशत लोग नशा करती है। लोग विभिन्न मादक पदार्थों से नशा करते हैं, जिसमें 40 प्रतिशत लोग सदैव नशे में धुत भी रहते हैं। अर्थात् उन्हें नियमित नशा चाहिए। ऐसे 40 प्रतिशत लोग जो नशे से दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि आज संपूर्ण 100 प्रतिशत लोग नशे के विरूद्ध जागरुक होने की भी सीख ले रहे है। क्योंकि उन्हें अब घर में अपने माता- पिता, पुत्र- पुत्री, पत्नी परिवार के साथ बैठना उठना पड़ता है। इसीलिए वह घर के अंदर अपने आप को बंदी सा महसूस करते हैं और नशा होते हुए भी कर नहीं पाते हैं या छुपकर करते हैं अर्थात् कहीं ना कहीं नशे के ऊपर अंकुश लगा है और जिन लोगों के पास नशे करने के संबंधित मादक पदार्थ नहीं है उन्हें बाजार में भी नशे के मादक पदार्थों का बिक्री बंद हैं। उदाहरण में दिल्ली में सभी शराब की दुकानें बंद है सामान्यतः एक शराब की दुकान में 30,000 से लेकर ₹ 70,000 तक की बिक्री होती है। इसमें लगभग एक दुकान से 300 से 500 व्यक्ति शराब खरीदते हैं। आज 300 से 500 व्यक्ति ही नहीं बल्कि लगभग अगर दिल्ली के घनत्व को देखा जाए तो कम से कम 5,00,000 लोग जो सामान्यतः शराब का नशा करते हैं। वे शराब से बहुत दूर हो चुके हैं अतः यह नशा मुक्ति के लिए भी वरदान साबित हुआ है।
मृत्यु भोज में अनावश्यक खर्चों पर रोक- समाज में मृत्युभोज भी एक उत्सव की तरह मनाया जाने वाला भोज है। इसमें किसी बुजुर्ग व्यक्ति के मरने पर घर-परिवार के लोग उसके दाह संस्कार से ही अनेकों अन्य आवश्यक खर्चे करने शुरू कर देते हैं। अब हमें व्यक्तिगत दूरियाँ बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा आदेश है। कोरोना कहर में आजकल जिस घर में मृत्यु होती है। वहाँ जाना आना आंशिक तौर पर बंद है या दूरी बनाकर उनसे मिला जा सकता है। किसी दाह संस्कार में 5 से अधिकतम 20 लोगों तक की भागीदारी हो सकती है। और मृत्यु भोज करने जैसी प्रथा का कोई विभागीय आदेश नहीं है।यदि कोई मृत्युभोज करता है तो वह कानून का उल्लंघन है। इसीलिए मृत्युभोज बिल्कुल बंद है। और मृत्यु भोज के नाम पर इकट्ठे होने वाली भीड़ भी बंद हो चुकी है। अतः हम समझ सकते हैं कि अनावश्यक मृत्यु भोज पर होने वाले खर्चों पर भी अंकुश इस कोरोना महामारी की वजह से ही लगा है और यह समाज के लिए एक नई दिशा नई सोच को कायम करती है। 
विवाहों में अनावश्यक खर्चे पर अंकुश- विवाह भी एक ऐसा संस्कार है जिसे मनुष्य अपने जीवन में एक लंबी यादगार के रूप में संजोए रखना चाहता है। इसीलिए विवाह से पूर्व ही अनेक अनावश्यक खर्चे करने शुरू हो जाते हैं। जिसमें घर की रंगाई पुताई, डेकोरेशन, बैंड बाजा, ढोल नगाड़े और अन्य सजावटी सामान पर हजारों लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। अनेक होटल बुक किए जाते हैं। अनेक गाड़ियों से बारातें जाती है। खाने-पीने के अनेक मिष्ठान बनते हैं। और इस प्रकार प्रति व्यक्ति एक सामान्य विवाह में ₹500 से ₹50000 तक प्रति व्यक्ति खर्च आता है। जबकि इस कोरोना महामारी की वजह से शादियों में अधिकतम 20 लोगों को ही विवाह में सम्मिलित होने के लिए स्वीकृत किया गया है। इस कारण अब इन दिनों में होने वाली विवाह पर अनावश्यक खर्चों पर अंकुश लगा है और यह हमारे समाज को एक नई दिशा व दशा प्रदान करता है।
कानूनी कार्यों को निपटाने की जल्दबाजी खत्म- यह प्रसंग आवश्यक तो नहीं है परंतु अधिकतर लोगों का मानना है प्रति व्यक्ति कानूनी कार्य को शीघ्र्र्र्र्र निपटाना चाहता है। इसलिए व्यक्ति अपना काम जल्दबाजी और शीघ्रता से पूर्ण करना चाहता है। इस कारण वह अपने काम को निपटाने क3े लिए रिश्वत देने का सहारा लंता है। अर्थात् हम कह सकते हैं कि आंशिक कर्मचारी आवेदक से जान-पहचान के कारण चोरी छुपे किसी काम को बिना निष्ठा के कर देते हैं। आंशिक कर्मचारी काम को निपटाने के लिए रिश्वत भी ले लेते हैं। यह भी एक रिश्वतखोरी अर्थात् काम को क्रमबद्ध तरीके से न होकर अकर्म तरीके से कर देना भी अनिष्ठा है। अर्थात अब सभी सरकारी कर्मचारी अपने-अपने काम पर है और वे क्रमबद्ध तरीके से पूरी निष्ठा से काम कर रहे हैं। उन्हें कोई रिश्वत के नाम पर बहलाने फुसलाने वाला कोई नहीं है। उनके सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने वाला भी कोई नहीं है। उनके कामकाज पर उंगली उठाने वाला भी कोई नहीं है। सभी सरकारी कर्मचारी पूरी निष्ठा से पूरे समय रहते हुए अपना- अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। और इनके कार्यो को सराहा भी जा रहा है। जबकि सामान्य जो जीवन था उसमें अनेक कार्यालयों के आगे बहुत तादाद में भीड़ रहती थी। अनेक लोग सरकारी कर्मचारियों की निष्ठा पर सवाल उठाते थे और यहाँ तक कि ऐसे भी संवाद भीड़ में सुनने को मिलते हैं कि अगर हम रिश्वत देंगे, कुछ पैसे देंगे तो हमारा काम जल्दी हो जाएगा, अब यह धारणा खत्म हो गई है। क्योंकि किसी भी सरकारी कर्मचारी या सरकारी दफ्तर के आगे किसी प्रकार की कोई भीड़ नहीं है। सभी कर्मचारी अपने- अपने दफ्तरों में अपने-अपने कार्यालयों में अपना- अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। सारे काम ऑनलाइन तरीके से किए जा रहे हैं और विभागीय आदेश द्वारा सभी कर्मचारी समय रहते हुए अपना काम निपटा रहे हैं। यह हमारे देश हमारे कर्मचारियों की कर्तव्यनिष्ठा का एक देशभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करती है। और सभी आम जनता जिन लोगों के मन में सरकारी कर्मचारी के प्रति जो बुरी धारणा थी, वह अब खत्म हो गई है। और यह निष्ठा और विश्वास और देश प्रेम कोरोना महामारी की वजह से हमें घर में रहने की वजह से प्राप्त हुआ है। यह भी एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। 
मानवता का मूल्य समझना- मानवता का मूल्य समझना मनुष्य ने आधुनिक युग की भाग दौड़ में अंधाधुंध कमाई के कारण वह अपने आप के मानव जीवन का भी मूल्य भूल गया है। जबकि हम अनेक रेलगाड़ियों में, बसों में, मेट्रो में यहाँ तक की हवाई यात्रा में भी अंधाधुंध भीड़ की मारामारी होती हैं। आज यातायात के संपूर्ण साधन रुके हुए हैं। अर्थात् अब कहीं किसी व्यक्ति को इधर-उधर भागने की आवश्यकता नहीं है। एक व्यक्ति जो सुबह 5ः00 बजे अपने घर से निकलता है रात को 8ः00 बजे घर से पहुंचता है। उस व्यक्ति ने आज अपने परिवार में रहकर अपने माता-पिता अपनी पत्नी अपने पुत्र पुत्री उनकी भावनाओं को समझने का अवसर मिला है। इससे हर व्यक्ति के मन में मानवीय मूल्यों की स्थापना हुई है। और परिवार को भी घर से बाहर रहने वाले पुरुष या महिला के प्रति प्रेम उनका स्वभाव उनका सामाजिक भावनाआें इत्यादि को समझने का अवसर मिला है। 
अनावश्यक बीमारी का निवारण- देशभर के चिकित्सालय मरीजों से भरे रहते हैं। हमारे भारत की राजधानी दिल्ली में अनेक बड़े-बड़े चिकित्सालय बने हुए। उदाहरण महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पूठखुर्द, दिल्ली को लेते हैं। जहाँ ओपीडी में इलाज कराने वाले लगभग प्रतिदिन 2000 से 4000 व्यक्ति आते हैं। आज ओपीडी में कोई व्यक्ति नहीं लाइन में खड़ा है, ओपीडी बंद है। इससे हम समझ सकते हैं कि जो 2000 से 4000 तक व्यक्ति बीमारी के नाम पर आ रहे थे। वे लोग कहाँ है ? आज सभी लोग अपने घरों में हैं। अपने घरों में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अगर वे अस्वस्थ होते तो अस्पताल जरूर आते। इससे हम समझ सकते हैं कि सामान्य स्तर पर छोटी- छोटी जो बीमारियाँ- बीपी, शुगर ,जुकाम, खाँसी, सामान्य दर्द इन सब से राहत तो नहीं मिली, परंतु हमने अपने समाज में घर के बीच में रहकर अपने आप को इस प्रकार स्थापित कर लिया है। हम अपने संबंधित रोगों से निवारण के लिए कुछ जिम्मेदार बनकर कुछ परहेज रख रहे हैं। कुछ सामान्य डॉक्टरों द्वारा दी गई दवाइयों का अनुसरण घर पर ही कर रहे हैं। अर्थात् हम बार-बार अस्पतालों की ओर नहीं भाग रहे हैं। इसे हम समझ सकते हैं कि प्रत्येक चिकित्सालय में व्यक्ति जो ओपीडी में छोटी- छोटी जो बीमारियों के नाम पर प्रतिदिन आते हैं, अर्थात् उनकी बीमारी कोई बड़ी बीमारी नहीं है। आज वे स्वत् ही ठीक हो रहे हैं। यही मेरा मानना है कि आज कोरोना एक तरफ महामारी है तो दूसरी तरफ समाज में अनावश्यक बीमारियों का निवारण भी कर रही है।
परिवार के साथ समय बिताने का अवसर- आधुनिकता की दौड़ में पैसे कमाने की होड, घर गृहस्थी चलाने में मनुष्य कामकाज में व्यस्त था। उन्हें अपने परिवार को अपने घर के साथ समय बिताने का समय नहीं था। आज करोना महामारी की वजह से लोग अपने-अपने घरों में रह रहे हैं। सबको अपने- अपने परिवार के सदस्यों के विचारों को जानने का अवसर मिला है। आज कोरोना की वजह से ही परिवार के सभी सदस्यों की एक के प्रति दूसरे की भावनाओं की कदर भी होने लगी है। और एक महिला जो घर में दैनिक कार्य निपटा रही है, उनके दैनिक कार्यों को भी पुरुषों को समझने का अवसर मिला है। उन्हें लगा है कि घर में काम करने वाली महिला सारे दिन अपनी रसोई में व्यवस्थित और व्यतीत जीवन करती है। वह एक बहुत बड़ी सेवा कर रही है। क्योंकि प्रति महिला का 6 से 8 घंटे रसोई में बीतता है। मेरे सामान्य अध्ययन के अनुसार एक 70 वर्षीय जीवन जीने वाली महिला अपने जीवन के 25 वर्ष रसोई घर में ही बिता देती है। इस समझ को भी पुरुषों को जानने का पूरा- पूरा अवसर इस कोरोना ने हीं दिया है। 
रोजमर्रा के अनावश्यक खर्च पर अंकुश- व्यक्ति अपने आप में खाने-पीने के उत्पाद में जहाँ स्वाद या इच्छा को ध्यान में रखते हुए अनेक छोटे से बड़े और होटल इत्यादि की ओर भागता है। दूसरी ओर अनेक फास्ट फूड की तरफ भाग रहा है। तीसरी ओर आइसक्रीम, चिप्स, कुरकुरे की ओर भाग रहा है हम देखते हैं कि यह एक अनावश्यक खर्च है। जबकि मनुष्य को जीवन जीने के लिए पेटभर भोजन चाहिए और वह भोजन उसे घर में प्राप्त हो सकता है। आज घर में बनने वाले भोजन का महŸव भी कोरोना की वजह से मिला है। और कोरोना की वजह से ही आज सभी होटल बंद है, सभी रेस्टोरेंट बंद है, सभी बड़े- बड़े बाजार बंद है। और हर प्रकार की घरेलू महŸवपूर्ण खाद्यान्न के अतिरिक्त सभी उत्पाद बंद है। इसी कारण मनुष्य को अपने समाज में आवश्यक खाद्य पदार्थों को खरीदने लाने की सुविधा है। व अनावश्यक खाद्य पदार्थों को घर में खरीदकर नहीं ला रहा है। इससे हम समझ सकते हैं कि प्रति व्यक्ति प्रतिदिन सामान्य घरों में सो रुपए से ₹500 तक बचत करता आ रहा है। इसका बचत का योगदान एक मूल्य को मूल्य समझने का योगदान कोरोना की देन है।
किसान की मेहनत का महत्व व किसानों के प्रति सम्मान की भावना जागना- खेतों में सेवा करने वाले किसान को उसकी मेहनत का महŸव देने की भावना जाग्रत हुई है। आम लोगों की किसानों के प्रति यही धारणा थी कि सभी सामान बाजार में उपलब्ध हो रहा है। परंतु आज पूरे विश्व के बाजार बंद है। जबकि किसान अभी भी खेत में खड़ा है और अपना काम कर रहा है। गेहूँ की कटाई हो रही है, वहीं गेहूँ निकाला जा रहा है। कहीं गेहूँ बाजारों में लादकर लाया जा रहा है। यह सभी दृश्य लोग घर बैठे टेलीविजन में देख रहे हैं। अर्थात् किसान 24 घंटे इस महामारी कोरोना के कहर के बीच ओर ऊपर सूरज की तपती हुई गर्मी के बीच उसके कर्तव्य और कर्म निष्ठा के प्रति आज पूरी मानव जाति नतमस्तक है। अर्थात् अब हर व्यक्ति एक छोटे से छोटे बच्चे, जिसने ‘किसान‘ शब्द को समझा है, उसको भी समझ आ गया है कि किसान कौन होते हैं ? और किसान अन्न कैसे उत्पाद करता है ? अर्थात् एक गरीब किसान को समझने का अवसर हमारे पूरे विश्व की मानव जाति को इस कोरोना महामारी ने ही प्रदान किया है।
चिकित्सा व पुलिस के प्रति वफादारी व निष्ठा की भावना जागना- आंशिक कुछ ऐसे व्यक्ति डॉक्टरों की और पुलिस की निंदा करते हुए नजर आते हैं, क्योंकि हर आंशिक कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, ऐसे व्यक्ति जो समाज में हमें मिल जाते हैं, जो व्यक्ति जहाँ इलाज के लिए बड़े से बड़े हॉस्पिटल की ओर भागना चाहता है और दूसरी ओर यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हुए पुलिस से भी भागना चाहता है। अपने दोषारोपण को बचाकर डॉक्टरों की और पुलिस की निंदा करते हुए नजर आते हैं। आज चिकित्सा के हर एक चिकित्सा कर्मी जो कोरोना के कहर में मानव जाति को बचाने में अपनी जान की बाजी लगाते हुए उनकी सेवा कर रहा है। दूसरी ओर हमारी सुरक्षा और रक्षा के लिए हमारी अनियमितता और हमारे उल्लंघन को रोकने के लिए पुलिस और सेना का जवान बाहर गलियों में कोरोना के कहर में जान की बाजी लगाते हुए धूप में खड़ा है। अर्थात् सेना और चिकित्सा के प्रति वफादारी और उनकी जिम्मेदारी के अहसास को आज हमें समझने का अवसर इस कोराना ने ही प्रदान किया। हम समझ सकते हैं कि अगर यह कोरोना जैसी महामारी इस वैश्विक स्तर पर नहीं आती तो यह सर्वदा सत्य रहेगा कि हम अपने देश की सेना हम अपने देश के पुलिस के प्रति आज इतने वफादार हैं, इतने वफादार कभी नहीं हो सकते थे। अर्थात् हमें पुलिस और सेना के प्रति जो निष्ठा की भावना हमारे मन में जगी है, वह इस कोरोना महामारी की देन है। वहीं दूसरी ओर भारतीय डॉक्टरों की बुराई करते रहते हैं विदेशों की ओर भागते हैं। इस भागदौड़ को रोकने का प्रयास कोरोना ने किया है। सकारात्मक दृष्टि से देखें तो कोरोना की वजह से हमें सभी भारतीय डॉक्टरों के प्रति/ सभी चिकित्सालयों के प्रति एक निष्ठा की भावना जागी है। और हम अपने आप में सत्य अर्थों में आज अगर कोई भगवान है तो खेतों में खड़ा हुआ किसान, चिकित्सालय में खड़ा हुआ डॉक्टर और सीमा पर खड़ा हुआ सेना का जवान और हमारी सुरक्षा के लिए सड़कों पर खड़ी हुई पुलिस का प्रहरी है। इससे ऊपर और बड़ा भगवान कहीं नहीं हो सकता इसको जानने का सच्चा और अच्छा अवसर कोरोना ने ही दिया।
समाज में धर्म शांति की स्थापना- यह युग वैश्विक वैज्ञानिक युग है। धैर्य की सीमाएं खत्म हो रही है, लोग अपने आप को महŸव देने लगे हैं। परिवार एकल हो रहे हैं। आज सभी घरों में बंद होने के कारण सामाजिक जीवन में हम पुरानी परंपरा/ वैदिक परंपरा की ओर ले जा रहे हैं। जिन लोगों की अपनी सामाजिक दृष्टि से जिस धर्म के प्रति आस्था निष्ठा रही है। उसी धर्म की और अपनी निष्ठा को बनाए रखने की और धर्म की ओर आसक्त हुए हैं। इससे हम समझ सकते हैं कि जो लोग काम धंधे की भाग दौड़ में कभी ऐश्वर्य प्रसाद को प्राप्त नहीं कर पा रहे थे। आज उसे अपने धर्म को समझने का अवसर, अपने घर में बैठकर कोरोना की वजह से ही प्राप्त हुआ है। इस आलेख के माध्यम से मैं स्पष्ट करना था कि भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में इस कोरोना महामारी की वजह से ही हमारे ही देश के में उत्पन्न हिंदू धर्म व शीशदानी धर्म/ सिख धर्म को जानने का अवसर पूरे संसार को प्राप्त हुआ है। क्योंकि पूरे भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के गुरुद्वारों के द्वारा भूखों को भोजन करवाया जा रहा है। अकेले दिल्ली में सभी गुरुद्वारों द्वारा लगभग 5,00,000 लोगों को प्रतिदिन भोजन करवाया जाता है। श्री गुरु नानक देव जी की लंगर परंपरा का अनुसरण जो सिख समुदाय के लोग कर रहे हैं, यह एक बहुत बड़ी देन है। अर्थात् गुरुद्वारों की सेवा को समझने व सिख गुरु की महिमा को जानने का अवसर इस कोरोना ने ही पूरे संसार को प्रदान किया है। सिख कोई एक जाति समुदाय का धर्म नहीं है, यह एक मानवता का धर्म है। इस संदर्भ में अमेरिका के अनेक गुरुद्वारों में बनने वाले भोजन जहाँ गरीब लोगों को भोजन करवाया जा रहा है। उसके सम्मान में अमेरिकी सरकार द्वारा पुलिस के बड़े अधिकारियों सहित अनेक अमेरिकी गुरुद्वारों की परिक्रमा की गई और गुरू़द्वारों में भोजन बनाने वाले सेवाकर्मियों को सैल्यूट करते हुए सम्मान दिया गया। इसी तरह भारत में भी बंगला साहब गुरुद्वारे में लगभग 1,00,000 लोगों को रोजाना भोजन दिया जाता है। इस संदर्भ में केंद्रीय दिल्ली पुलिस ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बंगला साहिब दिल्ली को सम्मान देते हुए दिल्ली सरकार दिल्ली के पुलिस के केंद्रीय डीजीपी ने अपने सैनिक बल पुलिस बल के साथ गुरुद्वारे की परिक्रमा की और सभी सेवाकर्मियों को सैल्यूट भी किया। क्योंकि आपातकाल में मानव सेवा का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। क्योंकि एक गरीब व्यक्ति तभी अपने हाथ को आगे फैलाता है, जब उसकी सामाजिक स्थिति का चित्रण बिल्कुल निम्न व दयनीय होता हो अर्थात् उसके घर खाने और पीने के संबंधित पानी के अलावा कुछ ना हो तभी वह अपना हाथ फेलाता है। और आज इन्हीं गुरुद्वारों की वजह से आज पूरे भारत में करोड़ों लोग अपना भोजन कर रहे हैं। और उनका जीवन की सुरक्षा गुरुद्वारों के द्वारा की जा रही है अतः हमें अपने धर्म अपने देश को जानने का अवसर इन्हीं महामारी की वजह से प्राप्त हुआ है। अतः हम महामारी कोरोना को अभिशाप न कहकर अगर हमारे माननीय जीवन के मूल्यों को जानने के अवसर के संबंध में वरदान कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह भी एक कोरोना की बहुत बड़ी देन है।
प्रकृति के संरक्षण का महत्व समझना- हम समझ सकते हैं कि प्रकृति अपना संतुलन अवश्य बनाती है हो सकता है कि कोरोना की वजह से प्रकृति अपना संतुलन बना रही हो, क्योंकि मनुष्य आधुनिकता में इतना खो गया है कि वह अंधाधुंध पेड़ों की जंगलों की कटाई करता रहा है। जंगलों की कटाई ही नहीं बल्कि पहाड़ों को काट रहा है। सुरंगें बन रही है। नदियाँ गंदी हो रही है, नदियों में दूषित मैला पाया जा रहा है और यही नहीं बल्कि आसमान में भी अनेक यंत्र छोड़े जा रहे हैं। जिसकी वजह से हमारा पूरा भूमंडल का क्षरण हो गया है और इस कोरोना महामारी की वजह से यह सब रुक गया है। उदाहरण में हम समझ सकते हैं कि पंजाब के जालंधर शहर से हजारों किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश की ‘धोलाधर की पहाड़ियाँ‘ साफ- साफ दिखाई दे रही है। इसका मतलब हमारी प्रकृति का वातावरण स्वच्छ हुआ है, यह भी कोरोना की देन है। अगर कोरोना जैसी महामारी नहीं आती तो हमारी प्रकृति दूषित होती और हम दूषित वातावरण में ही हम जी रहे होते थे। यहाँ तक कि प्रत्येक दिवाली के अवसर पर दीपावली के बाद दिल्ली जैसे महानगर को 10 से 15 दिन के लिए बंद किया जाता है। ताकि दिल्ली का प्रदूषण कम हो जाए इस पर अनेक राजनीतिक संवाद होते रहते हैं। टीवी पर अनेक संवाद कार्यक्रम चलते हैं। इन्हीं दिनों पंजाब व हरियाणा में चावल की खेती पर भी अंकुश उठाए जाते हैं। कहीं दिल्ली के यातायात पर अंकुश उठता है। परंतु सच्चे अर्थों में सत्य यही है कि आज प्रदूषण कम हुआ है, प्रकृति स्वच्छ हुई है, वातावरण सुंदर हुआ है। और यह भी कोरोना की देन है। 
पैसा कमाने की होड़ से परे जीवन का मूल्य जानना- मानव वो अपने जीवन का मूल्य इस कोरोना की वजह से ही समझ में आ पाया है। आज मनुष्य अपने घर परिवार के बीच में अपने पैसे कमाने की भागदौड़ से परे अपने परिवार को समझने का अवसर दे रहा है अतः नकारात्मक दृष्टि से कोरोना एक महामारी है, यह आर्थिक स्तर पर सम्पूर्ण विश्व को नुकसान पहुंचा रहा है। परंतु सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर हमारे पूरे विश्व में मानव जाति को नया जीवन जीने की प्रकृति का संरक्षण करने की नई चेतना प्रदान भी कर रही है।
निष्कर्ष में स्पष्ट है कि कोरोना महामारी की वजह से हमने अपने धर्म, अपने देश, अपनी संस्कृति, अपने देश के कर्तव्यनिष्ठ प्रहरी सेवाकर्मी इत्यादि के प्रति सम्मान की भावना जगी है। वह इस कोरोना महामारी की देन है। इससे पूर्व हम जिस जीवन की भागदौड़ में जी रहे थे, उस भागदौड़ से परे मानवीय मूल्यों की स्थापना भी इस कोरोना महामारी ने प्रदान की है। अतः मैं आज मनुष्य- मनुष्य को एवं महŸव, एक समाज में जीने का महŸव, अपने धर्म अपने देश और अपनी संस्कृति को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। और इन्हीं दिनों देशहित, हमारे द्वारा घर में रहना और सुरक्षित रहने की भावना सदैव- सदैव स्मरणीय रहेगी।
 
हेतराम भार्गव “हिन्दीजुड़वाँ”
हिन्दी शिक्षक, केन्द्र शासित प्रदेश, चण्डीगढ़ भारत
9829960882
माता-पिता- श्रीमती गौरां देवी- श्री कालूराम भार्गव 
प्रकाशित रचनाएं- 
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हरिराम भार्गव के साथ- खंड काव्य)
मैं हिन्दी हूँ . राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हरिराम भार्गव के साथ- -महाकाव्य)
सम्मान-
साहित्य सम्मान – 
स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश 
साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र 
ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक 
सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड
कलम कला साहित्य शिरोमणि सम्मान 2020 – बृज लोक साहित्य कला संस्कृति का अकादमी आगरा
 
आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ, राजस्थान भारत 
काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य- 
वीर पंजाब की धरती (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हरिराम भार्गव के साथ- – महाकाव्य)          
तुम क्यों मौन हो (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हरिराम भार्गव के साथ- -खंड काव्य)  
उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना।
 
 



कोरोना संकट में कार्यरत योद्ध़ाओं का संघर्ष

कोरोना संकट में कार्यरत योद्ध़ाओं का संघर्ष

      हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”

    

 

             कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण आज हम अपने- अपने घरों में बंद हैं और इस प्रकोप से बचने के लिए हम घर से बाहर भी नहीं निकलते हैं। हम अपने घरों के अंदर जिस प्रकार रह रहे हैं, उसी से ही इस कोरोना महामारी का निवारण होगा और हम सुरक्षित रह पाएंगे। परंतु इसी बीच यह बहुत ही विचारणीय विषय है कि इस वैश्विक महामारी का सामना करने के लिए हमारे देश के अनेक विभागों के सेवाकर्मी हमारे लिए देवदूत बनकर खड़े हैं और डटकर मुकाबला कर रहे हैं, जो कोरोना से पीड़ित हैं, उनकी रक्षा कर रहे हैं। और जो इस से अनजान हैं, बेघर हैं या अपने घरों से बाहर हैं, उनको घर जाने की सलाह पुलिस दे रही है। घरों से निकलने वाला कूडा़- कचरा इत्यादि सफाई कर्मी उठा रहे हैं वहीं घरों में रोजाना बिजली- पानी की व्यवस्था व सब्जी विक्रेता की व्यवस्था और जो गरीब है जिनके पास खाना नहीं है, उनकी खाने पीने की व्यवस्था प्रशासन कर रहा है। उन सभी प्रशासनिक सरकारी गैर-सरकारी या निजी मानव कल्याण करने वाले मानवता के धनी हैं, जो हमारे लिए घरों से बाहर अपनी जान की परवाह किये बिना सेवा पर हैं। उनका वर्तमान में इन विकट परिस्थितियों में अमूल्य योगदान है। जिसका कोई नहीं है, उनकी रक्षा- सुरक्षा हमारे देश के कर्मचारी कर रहे हैं। जिनमें प्रमुख हैं- चिकित्सक, पुलिस, सफाई कर्मी, जल बोर्ड सेवाकर्मी, शिक्षक, पटवारी, अन्य सब्जी विक्रेता इन विकट परिस्थितियों में अमूल्य योगदान दे रहे हैं।

देवदूत चिकित्सक – लोग देवता के रूप में आज चिकित्सक देवदूत बनकर कोरोना पीड़ित पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं। चिकित्सकों ने अपनी जान की परवाह करनी छोड़ दी है। उदाहरण में दिल्ली के एम्स/ सफदरजंग जैसे चिकित्सालय की बात करें तो यहाँ के कर्मचारी दिनभर पूरी निष्ठा से अपना काम करें हैं और जबकि वहीं छोटे से छोटे स्तर पर गाँव की एक- एक एएनएम महिला भी अपनी पूरी जिम्मेदारी व निष्ठा से निभाती हुई अपने गांव की कोरोना से बचाव की रक्षा कर रही है। इस आपातकाल की घड़ी में रोग को भगाने के लिए इनका योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

देवरक्षक पुलिस और सेना- हमारी पुलिस और सेना का योगदान आज देवरक्षक का स्वरूप हमें देखने मिल रहा है्र। अधिकतर पुलिस का नाम आते ही हमारे मन में पुलिस का एक चेहरा भी कभी-कभी सामने आ जाता है। जिससे भयभीत होते हैं और पुलिस को यहाँ तक कि रिश्वतखोर भी कह देते हैं। जबकि हम अपने यातायात मापदंडों को पूरा नहीं कर पाते हैं और दोष पुलिस को देते हैं। सेना का सच्चा स्वरूप आज हमारे पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत है। आज पुलिस का हर एक-एक कर्मी हर एक-एक गली मोहल्ले चौराहे पर खड़ा है और हमारे लिए हमारी सुरक्षा के लिए हमारे देश के लिए अपनी जान दाँव पर लगाते हुए जीवन को समर्पित करते हुए, की गई दूसरों की रक्षा सबसे बड़ा धर्म है यह आज सेना के साथ-साथ पुलिस ने भी साबित कर दिया पुलिस का यह योगदान वंदनीय है।

सफाई कर्मियों की अनन्य सेवा– सफाई कर्मी हमारे देश में सबसे महŸवपूर्ण एक अंग है। क्योंकि घरों से निकलने वाला कूड़ा- कचरा यदि न उठाया जाए तो गंदगी फैलती है। इस गंदगी को साफ करने के लिए सफाई कर्मी भी इस आपातकालीन परिस्थिति में अपने काम पर हैं और पूरी निष्ठा से सेवा दे रहे हैं। 

जल और विद्युत विभाग कर्मियों की अनन्य सेवा- जल और विद्युत विभाग कर्मी भी अपनी जान की परवाह न करते हुए, इस आपातकाल में अपना योगदान पूरी निष्ठा से सेवा देते हुए कर रहे हैं। जल और विद्युत विभाग कर्मी शहर हो या गाँव, कस्बा हो किसी भी क्षेत्र में चाहे वह सरकारी निकाय हो चाहे वह गैर सरकारी निकाय हर जगह बिजली और पानी की सुचारू रूप से पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए इसलिए सभी प्रदेशों के जल बोर्ड के सभी सेवाकर्मी भी अपने- अपने काम पर हैं। और पूरी निष्ठा से अपना काम कर रहे हैं। हमारे भारतवर्ष में इन्हीं कर्मचारियों की वजह से सभी के घरों में पानी की किल्लत नहीं आई। क्योंकि इनकी लग्न और सेवा ही सच्ची देशभक्ति है। बिजली बोर्ड भी एक अपनी निजी निकाय है। अपने सभी अधिकारी कर्मचारी सेवा करते हुए अपने- अपने काम पर हैं। और सुचारू रूप से अपनी सेवा दे रहे हैं। क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र, गाँव, कस्बे में बिजली की महŸा आवश्यकता है। जबकि जितने भी सरकारी निकाय गैर सरकारी निकाय या अन्य सरकारी तंत्र जो विद्युत विभाग द्वारा चलते हैं। वहाँ बिजली की आवश्यकता है, अतः पानी और बिजली कर्मियों सेवा कर्मियों का योगदान अनन्य है। 

खाद्य व दवा आपूर्ति करने/ बेचने वालों का योगदान- फल विक्रेता सब्जी बेचने वाले अपनी जान दाँव पर लगाकर प्रत्येक घरों तक सब्जी पहुंचा रहे हैं। राशन, किरयाना और मेडिकल की दुकान वाले निर्धारित विभागीय आदेश का पालन कर रहे हैं। ताकि आम जनता को परेशानी न हो। सभी को जरूरी सामान सुलभ हो सके।

प्रशासनिक विभाग के विभिन्न निकायों के कर्मचारियों की अप्रत्यक्ष रूप से अपनी- अपनी सेवा-यह योगदान प्रशासन के अन्य निकाय के सेवाकर्मी /प्रशासनिक विभाग जैसे शिक्षा विभाग, राजस्व (पटवारी) विभाग, डाक विभाग सभी कर्मचारी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी- अपनी सेवा दे रहे हैं। उदाहरण में दिल्ली सरकार द्वारा जो गरीब लोग हैं, जिनके घर अगर खाना नहीं बन पा रहा है, तो उन्हें सुविधा देने के लिए कई रिलीफ फूड कैंप बनाए गए हैं। यहाँ कैंप में सुबह और शाम दोनों समय गरीबों को भोजन करवाया जा रहा है/ वितरण किया जा रहा है। भोजन के वितरण व्यवस्था में अनेक शिक्षककर्मी अपने- अपने काम पर डटे हुए हैं। और इस आपातकालीन कोरोना की महामारी में भयंकर परिस्थिति में उनका यह अप्रत्यक्ष योगदान सारनाथ के चौथे शेर की तरह है जो दिखाई तो नहीं दे रहा, परंतु सम्माननीय है।

सरकार और सरकार के चुने हुए प्रतिनिधियों का योगदान- सरकारी निकायों के अतिरिक्त सरकार के प्रतिनिधि भी इस महामारी में अपना- अपना अमिट योगदान दे रहे हैं। वे अपने-अपने क्षेत्रों में भूखे या पीड़ित लोग या बीमार इत्यादि के प्रति पूरी व्यवस्था सुचारू रूप से करते हुए उन्हें खाना, चिकित्सा, स्वास्थ्य, दवाई सारी व्यवस्था किए हुए हैं। हम समझ सकते हैं कि इस संकट की घड़ी में पार्टी से परे बिना भेदभाव के सभी कर्मियों/मंत्रियों का अपना- अपना योगदान सराहनीय है। 

गुरुद्वारों का लाखों गरीबों के लिए भोजन का योगदान- धार्मिक दृष्टि से मंदिरों में, गुरुद्वारों का योगदान धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो लोग अपने धर्म और मत को भुलाकर गरीबों के लिए भोजन बनाया जा रहा है। उनकी रक्षा- सुरक्षा की जा रही है। उदाहरण में दिल्ली में लगभग सभी गुरुद्वारों में 5,00,000 लोगों के लिए रोजाना भोजन बनता है। इस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। क्योंकि इस आपातकालीन परिस्थिति में इतने अधिक लोगों का भोजन की व्यवस्था अगर सरकार करती है। चाहे वह केंद्र की सरकार और राज्य सरकार को यह बहुत बड़ी चुनौती थी। परंतु शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी, बंगला साहिब दिल्ली ने आगे आकर लगभग लाख लोगों को खाने की व्यवस्था करवाई है और नियमित रोजाना करवाई जा रही है और इस व्यवस्था में कानूनी प्रावधान का पूरा पालन किया गया है। इसके अतिरिक्त सभी गुरुद्वारों में पाँच लाख लोगांं का भोजन बन रहा है और वितरण किया जा रहा है। इसके साथ अनेक एनजीओ भी आगे आए हैं और उन्होंने अपना योगदान अनेक रिलीफ कैंप बनाकर भोजन सामग्री बना कर  लोगों को खाने की व्यवस्था करवाई है। 

निष्कर्ष में हम समझ सकते हैं कि यहाँ मानव कल्याण का परिचय दिया गया है। स्पष्ट है कि इस आपातकालीन स्थिति में आज पूरे विश्व में हमारे देश में कोरोना जैसी महामारी पर विजय प्राप्त कर ली है। क्योंकि विकसित कहे जाने वाले अपने आप को सुदृढ़ मानने वाले अमेरिका, रूस जैसे देशों के भी आज हाथ खड़े हो गए हैं। जबकि हमारा भारत देश की समस्त सरकारी निकाय, हमारे देश के समस्त सेवाकर्मी और गैर सरकारी सेवाकर्मी सभी का अपना- अपना और उन सभी के परिपेक्ष्य में ही हमने कोरोना पर सुनिश्चित विजय प्राप्त करेंगे। 

 

हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”

हिन्दी शिक्षक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली

9829960782  

माता-पिता- श्रीमती गौरां देवी- श्री कालूराम भार्गव 

प्रकाशित रचनाएं- 

जलियांवाला बाग- दीर्घ कविता (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम भार्गव के साथ- खंड काव्य)

मैं हिन्दी हूँ- राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम भार्गव के साथ-  -महाकाव्य)

साहित्य सम्मान – 

  • स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश
  • साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र
  • ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक
  • सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड
  • कलम कला साहित्य शिरोमणि सम्मान 2020 – बृज लोक साहित्य कला संस्कृति का अकादमी आगरा

 

आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ, राजस्थान भारत 

काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य- 

वीर पंजाब की धरती (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम भार्गव के साथ- – महाकाव्य)          

तुम क्यों मौन हो  (द्वय लेखन जुड़वाँ भाई हेतराम भार्गव के साथ- -खंड काव्य)  

उद्देश्य- हिंदी को लोकप्रिय राष्ट्रभाषा बनाना।

 




माँ

 

माँ

(माँ, स्वयं विधाता का प्रतिरूप है और इस संसार में  नारी शक्ति – माँ पर दुनियाभर में अनंत काव्य सृजन किए  गए  हैं, किए जा रहे हैं। उन्हीं में से मेरी कविता के रूप में सभी माताओं को यह कविता समर्पित है)

जब दुनिया में आई सहमी डरी थी घबराई
मां का स्पर्श पाकर अपार सुकून था पाया
मां ने मुझे सीने लगाकर पीड़ा को था भुलाया
दुग्धामृत पीकर और पिलाकर दोनों हुए थे कृतार्थ
मां के आंचल में विराजते स्वयं विधाता परमार्थ
मां जब भी मुझको दूध पिलाती
पल्लू से ढक कर दुनिया की बुरी नजर से बचाती
सिर पर प्यार भरा हाथ फेरती, एक टक मैं उन्हें निहारती रहती
जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई, मां की चिंता को बढ़ाया
घर परिवार की मर्यादा सत्य धैर्य का पाठ पढ़ाया
मेरा जीवन कर्ज है तेरा, जो कभी चुका ना पाऊं
जब भी पुनर्जन्म पाऊं, तेरी कोख तेरा आंचल पाऊं
जब भी तुम्हें देखती हूं मंत्रमुग्ध हो जाती हूं
तुम इतनी अच्छी और तुम इतनी सच्ची हो मां
तुम्हें लिखना संभव नहीं, मेरे शब्दों में इतनी जान नहीं मां
मेरी मां क्या है, मैं ही जानूं मेरी इच्छा है
यही मेरी मां की परछाई बनूं
मां मेरे पास रहे, ना रहे मैं कहीं भी रहूं
आपका आशीर्वाद रूप सदा मेरे साथ रहे
इतना मान सम्मान दो अपनी माता को
औरत बनाते वक्त अफसोस ना हो विधाता को
धन्य हो, हे ईश्वर धरती पर अपना एक रूप मां का बनाया
मैंने तो समूचा संसार अपनी मां में पाया

कवयित्री
पिंकी “हरि” भार्गव
माता-पिता- श्रीमती सुमित्रा देवी श्री मनीराम भार्गव
भार्गव हिंदी भवन
कराला, उत्तर पश्चिम, दिल्ली