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*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है*

*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है*
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

 

पौराणिक महत्व का माँ दुर्गा की शक्ति की पूजा अर्थात नवरात्रि में दुर्गा पूजा का पर्व हिन्दू देवी माँ दुर्गा जी की बुराई के प्रतीक महिषासुर राक्षस पर विजय प्राप्त करने के रूप में मनाया जाता है।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

मान्यता है कि बहुत समय पहले देवताओं और असुरों के बीच स्वर्ग को लेकर युद्ध होता रहता था। दोनों ही स्वर्ग पर अपना अधिकार जताते रहते थे। जब भी युद्ध होता था तो देवताओं द्वारा असुरों को हराने के लिए कोई न कोई एक उपाय अवश्य ही निकाल लेते थे। इस बात से महिषासुर नामक असुर (राक्षस) बहुत परेशान रहता था। इस लिए एक बार उसने भगवान ब्रम्हा जी की कड़ी तपस्या प्रारम्भ कर दिया। ब्रम्हा जी उसकी इतनी कठिन तपस्या से प्रसन्न हो कर महिषासुर से वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने ब्रम्हा जी से कहा कि मुझे अमरता का वरदान दीजिये प्रभू।
जिससे मेरी मृत्यु न हो,कोई भी देवता मुझे जीवन में पराजित न कर सकें। ब्रम्हा जी ने उससे कहा कि मैं तुम्हें अमरता तो प्रदान नहीं कर सकता किन्तु इतना जरूर कर सकता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु किसी देवता या पुरुष के हाथों न हो बल्कि तुम्हारी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों हो। महिषासुर यह सुन कर भी बहुत प्रसन्न हो गया और ब्रह्मा जी के इस वरदान को स्वीकार कर लिया। उसने अनुमान लगाया कि ऐसी कोई स्त्री दुनिया में नहीं है जो मुझसे वलिष्ठ हो या जो मुझे हरा सके या
मुझे मार सके।

जैसा की असुर हमेशा करते थे,वरदान पाकर निश्चिन्त हो जाते और देवताओं पर चढ़ाई कर देते। महिषासुर ने भी वैसा ही किया,जल्द ही सभी देवताओं पर बहुत बड़ी विपदा आन पड़ी। सभी देवता भगवान त्रिदेव के पास अपनी इस विषम समस्या और संकट को लेकर पहुंचे। इस घोर संकट से देवताओं को निजात दिलाने हेतु भगवान ब्रह्मा ,विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों से शक्ति का रूप,शक्ति की देवी माँ दुर्गा को उत्पन्न किया और उनसे महिषासुर राक्षस का संहार भी करने को कहा। अब महिषासुर राक्षस और माता दुर्गा में कई दिन भयंकर युद्ध चला। इस युद्ध के परिणाम स्वरुप आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को माँ दुर्गा ने महिषासुर को मार गिराया।
तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसी लिए दुर्गा माँ का यह एक रूप एवं नाम महिषासुर मर्दिनी भी है।

अस्तु दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर भलाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। यह न केवल हिंदुओं का एक सब से बड़ा उत्सव है बल्कि बंगाली हिन्दू समाज में भी एक सब से बड़े विशाल हर्षोल्लाष का पर्व है। दुर्गा पूजा का यह महान वैभवशाली पर्व सांस्कृतिक-सामाजिक रूप से एवं सनातन दृष्टिकोण से भी सब से महत्वपूर्ण एक उत्सव है।

दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों में विशेषकर आसाम, बिहार,झारखण्ड,मणिपुर,उड़ीसा,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बहुत व्यापक रूप से मनाया जाता है,जहाँ इसे मानाने के लिए इस समय पाँच दिनों की वार्षिक छुट्टी भी रहती है। बंगाली हिन्दुओं और असामी हिन्दुओं के बाहुल्य वाले क्षेत्रों में यह त्योहार वर्ष का सब से बड़ा उत्सव माना जाता है,और इसे बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। यह वर्ष में 2 बार आता है। एक बार शरद ऋतु में शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है,उसके बाद दशहरा पर्व होता है और एक बार चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है उसके बाद दशवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म दिवस राम नवमी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
यद्यपि कि इस बार पुनः कोरोना के बढ़ते संक्रमण व विस्तार के चलते 2921 में भी सरकार ने कुछ पावंदियों के साथ ही मंदिर में जाने की छूट दी है।
जिससे भीड़ न जमा हो और लोगों को कोई भी दिक्कत व परेशानी भी न हो।

पश्चिमी भारत के अतिरिक्त भी दुर्गा पूजा का यह उत्सव दिल्ली,उत्तर प्रदेश,महाराष्ट्र,गुजरात,पंजाब
,काश्मीर,आंध्र प्रदेश,कर्नाटक और केरल में भी बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा एक ऐसा त्योहार है जिसे सर्वाधिक हिन्दू आबादी 91 % वाले नेपाल और सब से कम हिन्दू आबादी 8 प्रतिशत वाले बंगला देश में भी बड़े त्योहार के रूप में हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है।

वर्तमान समय में तो यह दुर्गा पूजा विभिन्न प्रवासी
असामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन,संयुक्त राज्य अमेरिका,कनाडा,यूनाइटेड किंगडम,फ़्रांस,
ऑस्ट्रेलिया,जर्मनी,नीदरलैंड,सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में भी आयोजित करवाये जाते हैं। माता रानी के इस त्योहार विशाल दुर्गा पूजा को ब्रिटिश संग्रहालय में भी 2006 में उत्सव पूर्वक आयोजित किया गया था। दुर्गा पूजा की इतनी ख्याति ब्रिटिश राज्य में अंग्रेजों के शासन में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने देवी माँ दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया।

हिन्दू धर्म में अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है। वह भी अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग देवी देवताओं की पूजा उस क्षेत्र विशेष की मान्यता और परंपरा के अनुसार की जाती रही है और बड़े धूम धाम से उत्सव पूर्वक की जाती है। उत्तर भारत में जहाँ सावन व फाल्गुन माह में कावड़ यात्रा पूरे माह भर और महा शिवरात्रि पर्व कई दिनों तक मनाया जाता है वहीं भाद्रपद माह में महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की महाधूम रहती है,यह त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है।यद्यपि कि इस बार गणेशोत्सव और शारदीय नवरात्रि में भी यह त्योहार कोरोना संक्रमण के कारण सरकार ने इसे घर में मनाने की इजाजत दी है,मंदिर नहीं खोला गया था। इसी तरह गुजरात,राजस्थान और लगभग पूरे उत्तर भारत में ही वर्ष में दो बार जहाँ चैत्र और आश्विन माह में नवरात्रि पूजा का बड़े धूमधाम से उत्साहपूर्वक आयोजन किया जाता है,तो वहीं बंगाली क्षेत्र में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि से दशमी तिथि तक पाँच दिनों तक दुर्गा पूजा पर्व का उत्सव बड़े हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इन प्रतिमाओं/मूर्तियों का विसर्जन भी जैसे दस दिनों के पश्चात आदर व श्रद्धा पूर्वक गणेशोतोत्सव के बाद किया जाता है,वैसे ही दुर्गा पूजा के बाद माँ दुर्गा की विभिन्न प्रतिमाओं/मूर्तियों का भी बड़े आदर व सम्मान के साथ विसर्जन किया जाता है।

सच पूछा जाय तो दुर्गापूजा का यह प्रसिद्ध उत्सव और त्योहार तो पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा आदि राज्यों में है,किन्तु वर्तमान समय में दुर्गा पूजा का यह उत्सव लगभग पूरे देश में ही मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि में तो दुर्गा पूजा की तैयारियां लगभग महीने भर पहले से ही शुरू हो जाती है। इस पर्व में पंडाल लगाकर इसे विधिवत सजाया जाता है और इसमें माता रानी दुर्गा माँ के अलग अलग रूपों की दुर्गा माँ की प्रतिमाओं को बड़े ही विधि विधान से पूजन कर स्थापित किया जाता है। इस अवसर पर पांडालों में स्थापित सभी प्रतिमाओं का एक कमेटी द्वारा विधिवत आंकलन भी किया जाता है तथा सर्वश्रेष्ठ सजावट,श्रेष्ठ व्यवस्था,सबसे बेहतर प्रतिमा,सब से अधिक रचनात्मक कार्यों के लिए पांडाल के व्यस्थापकों को पुरष्कृत भी किया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है। पुरुष एवं महिलाएं अपने क्षेत्र के पारंपरिक परिधान पहनते हैं। यह भी मान्यता है कि राजा-महाराजाओं के समय में तो यह दुर्गा पूजा और भी अधिक जोश और उत्साह से बड़े स्तर पर हमेशा आयोजित की जाती रही है।

इस दुर्गा पूजा त्योहार में कलश स्थापना से लेकर नौमी तक हिन्दू धर्म के श्रद्धालु और भक्तगण व्रत और उपवास रखते हैं। इस व्रत में बहुत से लोग तो पूरा नौ दिन सिर्फ फलाहार,मेवा,दूध,दही,सिंघाड़े के आटे से बनी खाद्य सामग्री और बिना लहसुन प्याज की सब्जी आदि केवल खाते हैं और माता रानी का दोनों समय दुर्गा के नौ रूपों की हर दिन के हिसाब से उनकी पूजा अर्चना कीर्तन भजन करते हैं और अंतिम दिवस नवमी को हवन पूजन प्रसाद वितरण करने के बाद अन्न को ग्रहण करते हैं। कुछ लोग केवल स्थापना दिवस और अष्टमी को ही व्रत रहते हैं और माँ दुर्गा का पूजा पाठ और हवन तथा आरती इत्यादि करते हैं। अब जब शरीर की शक्ति और ऊर्जा कम हो रही रहती है तब भी माँ के श्रद्धा के प्रति व्रत इत्यादि रहते हैं। माता की पूजा अर्चना और मंदिरों में नवरात्रि में दर्शन करने और चढ़ावा चढ़ाने भी जाते हैं। माता रानी सब की मनोकामना पूर्ण करती हैं और सब पर अपनी कृपा बरसाती हैं। देवी माँ दुर्गा सब का मंगल करती हैं और दुष्टों का संघार भी करती हैं।
जय माता दी।

*या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*

*जय माता दी,जय माता दी,जय माता दी*

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
2020-21,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*डॉ.भीम राव अम्बेडकर जयन्ती पर-विशेष काव्य*

*डॉ.भीमराव अम्बेडकर जयंती पर-विशेष काव्य*
(जन्म,कर्म,शिक्षा,संघर्ष,उपलब्धि,मृत्यु व सम्मान)

रचियता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

बाबा साहब अम्बेडकर,जी की आज जयंती है।
समाजसुधारक काम किये,उसका रंग वसंती है।

जन्मे14अप्रैल1891में,महू इंदौर मध्य प्रदेश में।
राम जी मौला-भीमा बाई,की14वीं ये संतान थे।

पाँच वर्ष के अल्प आयु में,माँ स्वर्गलोक सिधारीं।
भीमराव का पूरा पालन,पोषण चाची कीं बेचारी।

पिता मराठी अंग्रेजी गणित,के ज्ञाता शिक्षक थे।
जबतक जीवित रहे पढ़ाये,क्योंकि वे शिक्षक थे।

बचपन से ही तेजस्वी थे,संस्कृत का चाहते ज्ञान।
निम्न जाति में पैदा होने से,मिला ना उनको मान।

अछूतों जैसा जीवन झेले,सदैव हुए हैं अपमानित।
गुरु न शिक्षा देना चाहें,पानी पीना भी अपमानित।

पढ़ने में मेधावी थे ये,किसी तरह से पढ़ते लिखते।
पितृ मृत्यु बाद ये कैसे, अपनी पढ़ाई हैं पूरी करते।

किसी तरह मैट्रिक एवं बीए,की पढ़ाई पूर्ण किया।
महाराज बड़ौदा इनको,25रू माह वजीफा दिया।

मेधावी छात्रों को विदेश में,पढ़ने का देते थे मौका।
बड़ौदा नरेश की कृपा से,भीमराव भी पाए मौका।

अमेरिका इंग्लैंड में रहके, अम्बेडकर ने की पढ़ाई।
अर्थशास्त्र राजनीति कानून,विषय डट कर पढ़ाई।

महाराजा बड़ौदा ने इनके,यह सारे हैं खर्च उठाये।
पीएचडी भी किये वहीं से,उच्च शिक्षा लाभ पाये।

स्वदेश लौटकर आने पर,10 वर्ष की उनकी सेवा।
सैनिक सचिव के पद पर,रहकर उनको दी है सेवा।

पढ़े लिखे थे पद पर रहकर,भी रोज सहे अपमान।
चपरासी तक भी करता,रहता था इनका अपमान।

भेदभाव अस्पृश्यता का,दलित होने का दंश झेला।
सवर्णों के बुरे व्यवहार, कट्टरपंथियों के सब झेला।

कुंठित हो सचिव पद त्याग दिया,बम्बई चले आये।
छुआछूत की बुरी भावना से यहाँ भी बच ना पाये।

मुम्बई में रह ‘बार एट लॉ’, की उपाधि ग्रहण किये।
सामाजिक भेदभाव बीच,यह वकालत शुरू किये।

वकील होनेके बावजूद भी,इन्हें कोई कुर्सी न देता।
एक मुकदमा कत्ल का, जीते जिरह से विधिवेत्ता।

दकियानूसी विचारकों की,काम ना आई खोपड़ी।
कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा,मन मार तब करनी पड़ी।

यह कहते थे दुनिया में ऐसा,कोई समाज है पवित्र।
मनुष्य के छूने मात्र परछाईं,से होजाता है अपवित्र।

अछूतोद्धार हेतु संघर्ष किये,आंदोलन कई चलाये।
लन्दन गोलमेज कॉन्फ्रेंस में,भी अपनीबात उठाये।

अंगेजों की गुलामी से हम,जब 47 में आजाद हुए।
स्वतंत्र भारत के प्रथम,कानून मंत्री अम्बेडकर हुए।

बने संविधान प्रारूप निर्माण, उप समिति अध्यक्ष।
दलित सुधार मान सम्मान, के भी यह रहे अध्यक्ष।

संविधान निर्माण में अपनी,अहम भूमिका निभाई।
दलितों के कल्याण हेतु, कई योजनायें भी बनाई।

कहे दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत में,मैं जन्मा भले मगर।
हिन्दू होकर नहीं मरूँगा,स्वीकारा बौद्ध धर्म डगर।

त्यागपूर्ण जीवन जीते,6दिसंबर56 को स्वर्ग धाये।
मरणोपरांत अप्रैल 1990,भारतरत्न सम्मान पाये।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22 एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है*

*”जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

आया है देखो यह माँ का त्योहार,
सजने लगा देवी मैय्या का दरबार।

2020 से आया संक्रमण कोरोना,
वासंतिक नवरात्र में पुनः कोरोना।

 शारदीय नवरात्र में सजा कोना-2,
अबकी फिर छाया है यह कोरोना।

नौ दिनों का होता धार्मिक त्योहार,
घर-घर में माँ का स्वागत हर द्वार।

स्थापित करते कलश देवी माँ का,
धूप दीप चन्दन रोली पुष्प पताका।

करियेगा ध्यान लगा पूजा देवी का,
पहला दिन है शैलपुत्री देवी माँ का।

दुर्गा चालीसा पढ़ें ध्यान से माँ का,
दूसरा दिन है ब्रम्हचारिणी माँ का।

थाल सजा कर नित करते आरती,
तीसरा दिन है माँ चंद्रघंटा देवी का।

फल मेवा मिश्री ले प्रसाद चढ़ाओ,
चौथे दिन की देवी माँ हैं कुष्मांडा।

धूप जलाओ और संकीर्तन गाओ,
पंचम दिन की देवी माँ स्कंदमाता।

सुबह शाम माँ का जयकारा लगायें,
छठवें दिन में देवी माँ हैं कात्यायनी।

फूल चढ़ायें माला पहनायें माता को,
सातवां दिन कालरात्रि देवी माँ का।

चुनरीचूड़ी बिंदीसिन्दूर चढ़ाएं माँ को,
अष्टम दिन की महागौरी देवी माँ को।

हवन करें महाआरती,प्रसाद भी बांटे,
नवयें दिन की देवी माँ सिद्धदात्री का।

इसी नवमी को जन्मे प्रभु श्रीराम जी,
अयोध्या में उत्सव बजी शहनाई भी।

सुदर्शन धारी विष्णु ये मानव रूप में,
दशरथ-कौशल्या के प्रिय पुत्र रूप में।

त्रेता युग के मेरे प्रभु श्रीराम अवतारी,
मर्यादा पुरूषोत्तम सर्वप्रिय धनुर्धारी।

देवी माँ व श्रीराम ने असुरों को मारा,
दुःखियों को सदैव माँ-प्रभु ने है तारा।

सभी का कल्याण करना ऐ देवी माँ,
अपनी कृपा बरसाना हे प्रभु! हे माँ!

जय जय श्रीराम जय-2 श्रीराम जी,
जय जय हो मैय्या जय हो माता दी।

 

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
2020-21एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर*

*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर*
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

भीम राव अम्बेडकर जी (बचपन में इनका नाम भीम सकपाल था) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को
महू-इंदौर,मध्य प्रदेश के राम जी मौला (पिता) एवं भीमाबाई (माता) के घर उनकी 14वीं संतान के रूप में हुआ था। इनके पिता जी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। मराठी,अंग्रेजी
और गणित विषय के अच्छे ज्ञाता भी थे। भीम राव को भी यही गुण पिता से विरासत में मिले थे।

भीम राव जिस जाति में पैदा हुए थे वह उस समय बहुत निम्न्न व हेय दृष्टि से देखी जाने वाली जाति थी। जब वे मात्र 5 वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया। इनका लालन पालन इनकी चाची ने किया। भीम राव संस्कृत पढ़ना चाहते थे,किन्तु अछूत होने के कारण इन्हें संस्कृत पढ़ने का अधिकारी नहीं समझा गया। प्रारंभिक शिक्षा के दौरान इन्हें बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा। अध्यापक उनकी कापी किताब नहीं छूते थे। यहाँ तक की जिस स्थान पर अन्य विद्यार्थी पानी पीने जाते थे,वहाँ उन्हें पानी पीने से मनाही थी। वे वहाँ नहीं जा सकते थे। कभी कभी तो वे कई बार प्यासे ही रह जाते थे। इस प्रकार की छुआछूत की भावना से वे बहुत दुःखी और खिन्न रहते थे।

एक बार तो एक बैलगाड़ी वाले ने उनकी जाति जानते ही उन्हें और उनके दोनों भाइयों को अपनी बैलगाड़ी से नीचे ढकेल दिया था। ऐसे ही एक बार अधिक वारिश से बचने के लिए भीमराव जिस मकान की छत के नीचे खड़े थे उस मकान मालिक ने उनकी जाति जानते ही उन्हें कीचड़ सने पानी में भी ढकेल दिया था। अछूत होने के नाते कोई नाई उनके बाल नहीं काटता था। यहाँ तक कि अध्यापक उन्हें पढ़ाते नहीं थे। पिता की मृत्यु के बाद भीम राव ने अपनी पढ़ाई पूर्ण किया।
चूँकि भीमराव एक प्रतिभाशाली छात्र थे,इस लिए उनको बड़ौदा के महाराजा ने 25 रूपये मासिक वजीफे के रूप में भी प्रदान किया। उन्होंने 1907 में मैट्रिक और 1912 में बी.ए. (बी.ए. को उस ज़माने में एफ.ए. यानी फादर ऑफ़ आर्ट कहा जाता था) की परीक्षा उत्तीर्ण किया। उस समय बड़ौदा के महाराजा द्वारा कुछ मेधावी छात्रों को विदेश में पढ़ने का मौका और सुविधा दिया जाता था। भीम राव अम्बेडकर को भी यह सुविधा मिल गयी। उन्होंने 1912 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लैंड में रहकर अर्थशास्त्र,राजनीति तथा कानून का गहन अध्ययन किया और पीएच.डी. की डिग्री भी यहीं से प्राप्त किया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे स्वदेश लौटे।

बड़ौदा नरेश महाराजा की शर्त के अनुसार उनकी 10 वर्ष सेवा करनी थी,अतः अम्बेडकर जी को वहाँ सैनिक सचिव का पद दिया गया। सैनिक सचिव के पद पर होते हुए भी उन्हें काफी अपमान जनक घटनाओं का सामना करना पड़ा। बड़ौदा नरेश के स्वागतार्थ जब वे उन्हें लेने पहुंचे तो भी अछूत होने के नाते उन्हें होटल में नहीं आने दिया गया। सैनिक कार्यालय के चपरासी भी उन्हें दी जाने वाली फाइलें व रजिस्टर फेंक कर देते थे। यहाँ तक कि कार्यालय का पानी भी उन्हें पीने नहीं दिया जाता था। जिस दरी पर अम्बेडकर चलते थे,वह अछूत हो जाने के कारण उस पर कोई नहीं चलता था। इस प्रकार से लगातार अपमानित होते रहने के कारण उन्होंने सैनिक सचिव का यह पद अंततः त्याग दिया।

लोगों के इस भेदभाव एवं बुरे व्यवहार का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि दलितों और अस्पर्श्य माने जाने वाले लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने उनका नेतृत्व करने का निर्णय लिया तथा उनके कल्याण हेतु एवं उन्हें वास्तविक अधिकार व मान सम्मान दिलाने के लिए दकियानूसी कट्टरपंथी लोगों के विरुद्ध वे जीवन भर संघर्ष करते रहे। इस उद्देश्य से ही उन्होंने 1927 में “बहिष्कृत भारत” नामक मराठी पाक्षिक समाचार पत्र निकालना प्रारम्भ किया। इस पत्र ने शोषित समाज को जगाने का अभूतपूर्व कार्य किया। उन्होंने मंदिरों में अछूतों के प्रवेश की मांग किया एवं इस हेतु 1930 में करीब 30000 दलितों को साथ लेकर नासिक के काला राम मंदिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया।

इस अवसर पर उच्च वर्णो के लोगों की लाठियों की मार से अनेक लोग घायल भी हो गए,किन्तु भीम राव ने सभी अछूतों को मंदिर में प्रवेश करा कर ही दम लिया। इस घटना के बाद लोग उन्हें
“बाबा साहब” कहने लगे। बाबा साहब ने 1935
में “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी” की स्थापना किया जिसके द्वारा अछूतों,अस्पृश्य लोगों की भलाई के लिए कट्टरपंथियों के विरुद्ध और तेज संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया। सन 1937 के बम्बई में हुए वहां के चुनावों में कुल 15 में से 13 सीट पर जीत भी हासिल हुई। यद्यपि कि डॉ.अम्बेडकर गांधी जी द्वारा किये जा रहे दलितोद्धार के तरीकों से पूर्ण सहमत नहीं थे। किन्तु अम्बेडकर ने अपनी विचारधारा के कारण कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे बड़े नेताओं को अपनी ओर आकर्षित किया।

बम्बई (आज का मुम्बई) आने पर भी उन्हें इस छुआछूत की भावना से छुटकारा नहीं मिला। यहाँ रह कर उन्होंने “बार एट लॉ” की उपाधि ग्रहण किया और वकालत शुरू कर दिया। एक वकील होने के बावजूद भी उन्हें कोई कुर्सी नहीं देता था।
उन्होंने एक कत्ल का मुकदमा भी जीता था। ऐसे में उनकी कुशाग्र बुद्धि की प्रशंसा मन मार कर के सभी उच्च वर्गीय लोगों को करनी ही पड़ी। बचपन से लगातार उनके सामने छुआछूत और सामाजिक भेदभाव का घोर अपमान सहते हुए भी उन्होंने वकालत को एक पेशे के रूप में अपनाया। छुआछूत के विरुद्ध लोगों को संगठित कर अपना जीवन इसे दूर करने में लगा दिया। समाज में सार्वजानिक कुओं,जलाशयों से पानी पीने तथा मंदिरों में भी प्रवेश करने हेतु अछूतों को प्रेरित किया।

अम्बेडकर हमेशा यह पूछा करते थे “क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज है जहाँ मनुष्य के छूने मात्र से उसकी परछाई से भी लोग अपवित्र हो जाते हैं ?”
पुराण और धार्मिक ग्रंथों के प्रति उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं रह गयी थी। बिल्ली और कुत्तों की तरह मनुष्य के साथ किये जाने वाले भेदभाव और व्यवहार की बात उन्होंने लन्दन के गोलमेज सम्मेलन में भी कही। डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने इस भेदभाव और अछूत परम्परा के खिलाफ भी अछूतोद्धार से सम्बंधित अनेक कानून बनाये। 15 अगस्त 1947 को जब भारत अंगेजों की गुलामी से स्वतंत्र हुआ तो उनको स्वतंत्र भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया गया।

1947 में जब डॉ.राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में भारतीय संविधान निर्माण समिति का गठन हुआ तो इस कार्य को पूर्ण करने हेतु विभिन्न प्रकार की उपसमितियां भी बनाई गयीं और उसके अलग अलग प्रभारी/अध्यक्ष भी बनाये गए। इसी प्रकार डॉ.अम्बेडकर को भी ऐसी ही एक उपसमिति ‘संविधान प्रारूप निर्माण समिति” के प्रभारी/अध्यक्ष के रूप में चुना गया। इस समय उन्होंने कानूनों में और भी सुधार किया,तथा संविधान निर्माण हेतु उसके प्रारूप स्वरुप को तैयार किया।

डॉ.अम्बेडकर द्वारा लिखी गयी पुस्तकों में से कुछ
“द अनटचेबल्स हू आर दे” “हू वेयर द शूद्राज” “बुद्धा एन्ड हिज धम्मा” “पाकिस्तान एन्ड पार्टीशन ऑफ़ इंडिया” तथा “द राइज एंड फाल ऑफ़ हिन्दू वूमेन” प्रमुख पुस्तको के रूप में हैं।
इसके अलावा भी उन्होंने बहुत से लेख लिखे, जिनकी संख्या लगभग 300 के पास है। भारत के संविधान निर्माण में भी अन्य उपसमितियों के प्रभारी/अध्यक्षों के उनके योगदान की तरह ही डॉ.अम्बेडकर जी का भी संविधान प्रारूप निर्माण समिति के प्रभारी/अध्यक्ष के रूप में बड़ा अमूल्य योगदान रहा है। जिसे भुलाया नहीं जा सकता है।

इस प्रकार डॉ.भीम राव अम्बेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता,राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता,अर्थशास्त्री,दर्शनशास्त्री,इतिहासकार,और एक समाज सुधारक भी थे। सामाजिक विषमता का पग पग पर सामना करते रहे और अंत तक वे झुके नहीं।अपने अध्ययन,परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन और सम्मान दिया। इसी लिए उन्हें भारत का आधुनिक मनु भी कहा जाता है।उन्होंने अपने अंतिम संबोधन पूना पैक्ट के बाद गाँधी जी से यह कहा था-“मैं दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत होकर जन्मा हूँ,किन्तु मैं हिन्दू होकर नहीं मरूँगा।” इसी लिए उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के विशाल मैदान में अपने 2 लाख से कहीं अधिक अनुयाइयों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। इस तरह डॉ.भीम राव अम्बेडकर महान त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए दलितों के कल्याण के लिए कड़े संघर्ष करते हुए 6 दिसंबर 1956 को स्वर्ग सिधार दिए। उनके महान कार्यो और उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने अप्रैल 1990 में उन्हें (मरणोपरांत) “भारत रत्न” सम्मान प्रदान कर सम्मानित किया गया। आज उनके जन्मदिवस 14 अप्रैल को पूरा देश अम्बेडकर जयन्ती के रूप में मनाता है और अपना श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें शत शत नमन करता है।

 

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596