1

बसंत और फाग

आई आई बसंत बहार
लहलहाते खेत खलिहान
पीले फूल सरसों के खेतों में
बाली झूमें खुशियों की बान हज़ार।।
आई आई बसंत बाहर
लाहलाते खेत खलिहान।

बजते बीना पाणि के
सारंगी सितार माँ की अर्घ्य
आराधना संस्कृति संस्कार भोर में
कोयल की मधुर तान।।
आई आई बसंत बहार
लहलहाते खेत खलिहान।।
गांव नगर गलियों में फागुन की फाग उत्साह ,उमंग की टोली घूमे बासंती बाला की गूंजे गान।।
आई आई बसंत बहार
लहलहाते खेत खलिहान।।
रंगों की फर फर फुहार
होली की मस्ती निखार
उड़ते रंग अबीर गुलाल ।।
आई आई बसन्त बाहर
लहलहाते खेत खलिहान।।
मिटे भेद उमर जाति पाँति के
लागे सब आदमी इंसान।।

आई आई बसंत बहार
लहलहाते खेत खलिहान।।
सारे गीले शिकवे हुए समाप्त
बैर भाव के टूटे दर दीवाल
सम भाव का देश समाज।।
आई आई बसंत बयार
लहलहाते खेत खलिहान।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश




बासंती बयार रफ्ता रफ्ता

बासंती बयार रफ्ता रफ्ता
फागुन की फुहार रस्ता रस्ता
होरी की गोरी का इंतजार लम्हा लम्हा।।
आम के बौर मधुवन की खुशबू ख़ास
कली फूल गुल गुलशन गुलज़ार
रफ्ता रफ्ता।।
माथे पर बिंदिया आंखों
में काजल गोरे रंग पे लाल गुलाल
बैरागी का खंडित बैराग
रफ्ता रफ्ता।।
भेद भाव की टूटती
दीवार गीले शिकवे दर किनार
भांग की ठंडई गुझियों की
मिठास रफ्ता रफ्ता।।
बूढ़े हुये जवान जवां जज्बा
आसमान रफ्ता रफ्ता।।
खेतों में झूमती बाली
सरसों के पीले फूल
महुआ की महक सुगंध
रफ्ता रफ्ता।।
सूरज की बढ़ती शान
नदियों की कलवरव तान
जोगीरा फाग रफ्ता रफ्ता।।
अमीर गरीब ऊंच नीच
प्रेम रंगों के संग पंख परवाज
रफ्ता रफ्ता।।
दिल की चाहत का वर्ष
इंतज़ार लाया बसंत बाहर
जीवन के दिन चार होली
हर्ष हज़ार रफ्ता रफ्ता।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश




किस रंग खेलू होली

दिल दुनियां के रंग अनेकों
किस रंग खेलूं होली
मईया ओढे चुनरी रंग लाल
केशरिया बैराग किस रंग खेलूं होली।।
रंग हरा है खुशहाली हरियाली पहचान
खुशियों का अब रंग नही है
जीवन है बदहाल किस रंग खेलूं
होली ।।
रंग गुलाबी सौंदर्य सत्य है
दिलों मे द्वेष, मलाल बहुत है
किस रंग खेलूं होली ।।
शुभ पीत रंग शुभ समाज संग रुदन क्रंदन का वर्तमान है किस रंग
खेलूं होली।।
रंग बसंती राष्ट्र प्रेम का चोला
देश मे ही शत्रु गद्दार हज़ार
किस रंग खेलूं होली।।
श्वेत रंग है सेवा शान्ति
त्याग परमार्थ लूट अशांति
और स्वार्थ की दुनियां आज
किस रंग खेलूं होली।।
आत्म बोध का श्याम रंग है
सांवरिया भी दंग है कैसी
रची दुनियां कैसा हुआ जहाँ
किस रंग खेलूं होली।।
रंग काला नियत नीति न्याय
प्रतीक अन्धेरा निराशा चहुं ओर
अन्याय का हाला प्याला बोल बाला किस रंग खेलूं होली।।
अरमानो का नीला एम्बर
अरमानों की नीलामी जलती
होली किस रंग खेलूं होली।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




थाने वाला गांव

 

विल्लोर गांव का एकात्म स्वरूप बदल चुका था गांव छोटे छोटे टोलो में जातिगत आधार में बंट एक अविकसित कस्बाई रूप ले चुका था जहाँ हर व्यक्ति गांव के एकात्म स्वरूप के सौहार्द को याद कर समय को कोसता और बादलते समय की दुहाई देकर वर्तमान परिस्थितियों को स्वीकार कर लेता गांव की हालत यह हो गयी थी कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की सोच सिर्फ स्वयं एव स्वयं के परिवार और जाति तक सीमित रह गयी थी स्वार्थ के अतिरिक्त कोई मूल्य शेष नही रह गया था ।गांव के एक टोले के लोग दूसरे टोले के लोंगो को फूटी आंख नही सुहाते पूरे गांव का वातावरण विषाक्त के अहंकार में डूब चुका था कोई किसी त्यौहार मरनी करनी पर एक दूसरे टोले वाले नही आते जाते बात बात पर गांव में कलह क्लेश झड़प मार पीट होती रहती दरवाजे के सहन और पानी निकासी नाली के झगड़े खेतो के मेढ़ डाढ़ के झगड़े पंचायत मारपीट विल्लोर गांव की नई संस्कृति बन चुकी थी कुल पांच छः सौ घरों पंद्रह टोले के गांव विल्लोर में तीन सौ पचास विवाद के मुकदमे बिभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन हो गए गांव के भोले भाले लोंगो की मेहनत की कमाई वकील कचहरी में जाने लगी गांव में कच्ची शराब का व्यवसाय जोरो पर खुल्लम खुल्ला चलने से गांव की अधितम आबादी शराब की आदि हो गयी कमाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दारू में जाने लगा दारू के नशे में प्रति दिन किसी न किसी मोहल्ले में गाली गलौज मार पीट आम बात हो चुकी थी नई पीढ़ी अधिकतर नशे की आदि हो चुकी थी जिसकी वजह से गांव के किसी न किसी घर मे माँ बाप और संतानो के बीच रुपये पैसे के लिये कलह होना आम बात थी जो थोड़े बहुत समझदार लोग बचे थे उन्होंने भविष्य को देखते हुये अपनी संतानों को पढ़ने के लिये दूर शहरों में भेज दिवा था हर टोले में दो चार नौजवान नेता बन कर उभर चुके थे जिन्हें रूरल बैरिस्टर के शानदार खिताब से नवाजा जाता जो या तो गलत रास्तों पर निकल चुके थे या यूं कहें कि चोरी छिनैती डकैती बलवा में अपनी रोटी सेकते अपनी शान समझते और ऐसा माहौल बनाते की उनकी पूछ और दब दबा बनी रहे गांव की युवा पीढ़ी सुबह दस बजे नियमित पास के बाज़ार चली जाती और बाज़ार में हंगामा काटती पूरे बाज़ार में विल्लोर गांव की छवि उदंड और उचक्कों की थी धीरे धीरे गांव की अराजक स्थिति का पता प्रशासन को भी लग चुका था अतः प्रशासन ने विल्लोर गांव में पुलिस थाना खोल दिया अब गांव थाना हो जाने के कारण स्थिति और भी भयावह हो चुकी थी। पंडित महिमा दत्त और लाला ग़ज़पति ने गांव के विषय मे जिस अवधारणा की कल्पना की थी वह साकार होती नजर आ रही थी जैसा कि भारत की परंपरागत शैली थी आपस मे बंदर की तरह लड़ो झगड़ो और तीसरी बिल्ली को मौका दे दो की वह विवाद के निपटारे में न्यायाधीश बने और खुद मालिक बन बैठे भारत की इसी परसम्पागत शैली का फायदा उठाते हुए पहले तो विदेशी आक्रमणकारियो ने यहां की सांस्कृतिक विरासत और धन संपदा को लूटा और अंत मे जाते जाते अंग्रेजी हुकूमत ने भारत को हिंदुस्तान धार्मिक आधार पर बांट कर बना दिया उसी परम्परा संस्कृति संस्करण की पीढ़ी की उपज पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति थे जिनको वर्चस्व की भूख थी जिसे किसी कीमत पर पूरा करना चाहते थे और तरह तरह के खड़यंत्र करते रहते चूंकि गांव की एकात्मकता समाप्त हो चुकी थी गांव जाती गत आधार पर टोलो में बंट चुका था अतः ठाकुर के स्मारक पर एक रुपया प्रतिमाह प्रति परिवार से आना बंद हो चुका था लाला और पंडित के आमदनी का जरिया समाप्त हो चुका था अतः दोनों पहले से ज्यादा आक्रामक और शातिर हो चुके थे।विल्लोर गांव में पहले थानेदार के रूप में नियुक्ति हुई शमशेर खान की आते ही शमशेर बहादुर ने पहला काम किया विल्लोर गांव की सांस्कृतिक और भौगोलिक एव सामाजिक पृष्ठभूमि का गंभीरता से अध्ययन किया और फिर कमजोर और मजबूत पक्षों की जानकारी हासिल की फिर पूरे विल्लोर गांव के सभी टोलो में अपने मुखबिर तैनात कर दिया और अपने सभी माताहदो को निर्देश दिया कि विल्लोर गांव की हर हरकत पर नज़र रखे ।फिर खान शेर बहादुर ने लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा दत्त को बुलाया और बोला देखो पंडित और लाला तुम दोनों ने अपने महरूम दोस्त ठाकुर के साथ मिलकर बहुत गदर काटा है अब तुम लोग अपनी हरकते बंद कर दो वरना अंजाम अच्छा नही होगा पूरे गांव को तो तुमने आपस मे बांट दिया है और कलह का बीजारोपण कर दिया है उसी का परिणाम है कि गांव में जितने घर नही है उतने विवाद न्यायालय में है और आये दिन गांव में नया बखेड़ा खड़ा होता रहता है ध्यान से सुनो अब तक गांव वालों को बेवकूफ बनाकर तुम लोंगो ने अपना उल्लू सीधा किया अब ध्यान से सुनो मुझे जो पगार सरकार देती है वह मेरे बीबी बच्चों के लिये मैं तो जहाँ तैनात रहता हूँ सिर्फ वही के नमक से जिंदगी गुजर बसर करता हूँ दूसरी बात नोआ खाली का गदर तुम लोंगो ने सुना ही होगा अब यदि तुम लोग गांव में जरा भी चालबाजी दिखाओगे तो नोआ खाली की तरह तुम दोनों का सर कलम कर चौराहे पर टांग दूँगा लाला ग़ज़पति दरोगा शमशेर की बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे पंडित महिमा तो पसीने से तर बतर कांप रहे थे लाला ग़ज़पति बोले हुज़ूर आप हाकिम है जो चाहे कर सकते है हम जरा पंडित महिमा को जो बहुत घबड़ा गए है को ठिक करके दो मिनट में आते है फिर लाला ग़ज़पति पंडित महिमा को साथ लेकर थाने परिसर से कुछ दूर लेकर गए और बोले पंडित काहे मरा जात हो सुने नही उ दरोगा का कहत रहा जहाँ रहत है वही के नमक खात है और नोवा खाली का मतलब समझो
पंडित महिमा बोले लाला हम तो बहुते घबड़ा जाइत है हमरे संमझ में तो कुछ नही आता आपे मतलब समझाओ तब लाला ग़ज़पति बोले देखो पंडित दरोगा परले दर्जे का भ्रष्ट और मक्कार है और इसके रहते गाव में शांति कम अशांति ज्यादा फैलेगी अब तक गांव वालों की कमाई का एक हिस्सा कोर्ट कचहरी की दरिद्र शान में खर्च हो रहा था अब एक हिस्सा इस दरोगा को भी चाहिये और यह येन केन प्रकारेण लेगा दूसरी बात यह चलता फिरता नरभक्षी है जो इंसानों को भय दहसत में पिसता रहेगा काहे घबराते हो पंडित महिमा यह दरोगा हम लोंगो की ही बिरादरी के ऊंचा खिलाड़ी है अब चलो उ देखो आंखे फाड़ देख रहा है उसके पास चलते है फिर महिमा और लाला दरोगा शमशेर के पास गए और बोले हाकिम आपका इकबाल बुलंद रहे बताइए हम लोग क्या कर सकते है दरोगा शमशेर बोला आई गई न अक्ल ठिकाने आखिर ऊंट को पहाड़ के नीचे आना ही पड़ता है तुम लोग गांव से मेरे नमक की जोरदार व्यवस्था इंतज़ाम करो चाहे जो करो हमे क्या पण्डित महिमा लाला एक स्वर में बोले हाकिम जैसी आपकी की मर्जी फिर दरोगा समशेर बोला देखो भाई हम दिन रात डियूटी पर रहित है परिवार त रखी नाही सकित त तुम लोग सोवे खातिर1 मशलन्द गद्दा रजाई की व्यवस्था रखे हर सप्ताह एक दिन अब तो लाला पंडित के पैर से जमीन खिसक गई क्योकि दोनों कुछ भी कर ले लेकिन चरित्र हीनता ना तो स्वीकार करते ना करते मगर मरता क्या न करता दोनों ने कहा हाकिम की जैसी मर्जी दरोगा शमशेर ने कहा अब जाओ तुम दोनों और मेरी बातों पर गौर फार्माओ।
पंडित महिमा और लाला गजपति थाने परिसर से बाहर निकले और गांव की तरफ चलने लगे खामोशी तोड़ते हुए लाला गजपति बोले देखा पंडित ई दरोगा करोङो नौटंकीबाज़ मरे हुईए तब पैदा हुआ होई पहले कैसी हेकड़ी बघरत रहा फिर मतलब पर आवा सुनो पंडित ई शोमारू प्रधान के हमारे खिलाफ खड़ा करके कोशिश करे सबसे पहले त ई पता करेका है कि कही हम लोगन से पहले इसने शोमारू को तो नही बुलाया था यदि बुलाया था तो का बात किहेस पता करना बहुत जरूरी है काहे की गांव में कुछो करे खातिर हम लोगन के लिये शोमारू तुरुप का इक्का है अगर ऊ बहक गावा तो समझो मह लोग गांव में माटी के माधव बन जाव ए लिये घर पहुँचिके सबसे पहिले हम दोनों समारू के घर चलते है उसकी टोह लेते है बाद में कौनो और काम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति गांव पहुँच के अपने घर ना जाकर सीधे शोमारू प्रधान के घर गए पंडीत और लाला को देखकर शोमारू भौचक्का रह गया और बोला आप दोनों एक साथ का बात है सब कुशल त है लाला ग़ज़पति बोले हम लोग थाने दरोगा जी से मिलने गए थे लौटते समय सोचा तुम्हारा भी हाल चाल लेते चले समारू ने फिर सवाल किया थाने काहे कौनो खास बात लाला ग़ज़पति बोले कौनो खास बात नाही है शोमारू दरोगा शमशेर हम लोगन के पुरान जाने वाले है सो मिलन खातिर बुलाये रहेन शोमारू बोला लाला जी ऊ त हमहुके बुलाएंन है लाला ग़ज़पति बोले इमा कौनो खास बात नाही है विल्लोर इतना बड़ा गांव है दारोगा जी नवा नवा आये है तू गांव के प्रधान तोहे त बोलैबे करीहन लेकिन कौनो बात करीहन सिर्फ एताना बताये की तू सिर्फ प्रधान है पढा लिखा नाही हैं सगरो काम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति देखत हन एकरे अलावा कुछ बोले जीन बोले त तू जाने तोहार काम जाने शोमारू बोला ठिक मालिक लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा अपने घर चले गए शोमारू दरोगा के से मिले खातिर जाय वदे तैयार होने लगा। तैयार होकर शोमारू भगवान का नाम लेता थाने पहुंचा सोमारू को देखते ही दारोगा शमशेर खान ने कुटिल चतुराई से बोला आईये प्रधान जी आपने तो आने में बड़ी देर लगा दी कहते तो हमी चले आते समारू भोला भाला आदमी उसे दारोगा की कुटिलता का हरगिज़ अंदाज़ा नही था वह बड़े ही आदर भाव से बोलः हाकिम देरी के लिये माफी अब हम आपके दरबार मे हाज़िर है का हुकुम है दरोगा शमशेर को समझते देर नही लगी कि प्रधान अव्वल दर्जे का बेवकूफ या निहायत सीधा साधा इंसान है बोला प्रधान जी आपके गांव में झगड़ा फसाद ववाल जरायम पेशा में देशी दारू बनाने के साथ साथ तमाम नाज़ायज़ काम हो रहा है साथ ही साथ गांव के नौजवान आये दिन बाज़ार में बलवा काटते है उनमें से कुछ तो नकब्बबाज़ी ,छिनैती ,डकैती आदि कार्यो में मशगूल है क्या तुमको पता है शोमारू सीधा साधा गंवार जरूर था मगर हालात की संमझ और परख थी उसको बोला हकीम नई पीढ़ी के नौजवानों के पास कोई काम धाम तो है नही पढ़ लिख सके नही जो पड़ना लिखना चाहता था वह गांव छोड़कर बाहर चला गया और बाहर का ही रह कर रह गया जो नवजवान गांव में है उनके मा बाप के पास इतनी खेती नही की उसकी उपज से परिवार का भरण पोषण कर सके और खेती में भी क्या किसी साल सूखा तो किसी साल बाढ़ खाद बीज के लिये लाइन कभी मिलता तो कभी नही मिलता मालिक आज की खेती भाग्य समय एके बराबर है फसल अच्छी हुई त लोग संमझ लेत है कि समय तकदीर अच्छी है नाही होत है तो मान लेते है कि समय तकदीर ठिक नही चलत बा गांव के नवजवान का करे रोजी रोजगार के नाम पर मजूरि बची गयी है कुछ नवजवान त मन मारीक़े मजूरि कर लेत हईन मगर बहुत नाही करि सकतन उन्हें चाही सुथन सूट बूट माई बाप के औकात है नाही का करे बजारे जात है कुछ रोजी रोजगार करत है कुछ बवाल काटत है अब आपे बताओ हाकिम एमा प्रधान का कर सकतन सोमारु ने दारोगा शमशेर खान को ऐसा घुमाया की वो चकरा गए बोले प्रधान तू बिल्कुल बेवकूफ या बकलोल नाही है तू त अपने गांव के पूरा अर्थव्यवस्था अर्थशास्त्र बताई दिये बीच मे शोमारू टोकते हुए बोला हाकिम एक बात तो बताये नाही की हमरे गांव वालन के आमदनी के एक हिस्सा कोरट कचहरी में जात है हर टोलन पर पचास साठ किता मुकदमा है ओहुँमें गांव बर्बाद है दरोगा शमशेर बोले प्रधान जी आपकी जिम्मेदारी बनती है कि गांव के विवादों का निपटारा गांव में ही सहमत से करा दे शोमारू बोला हाकिम हम खाली पद के प्रधान हई कद काम के प्रधान लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा है कारण की हम ठहरा गंवार मनई सरकारी काम काज उहे लोग देखतेंन गांव के भी सगरो मनई जानत है कि हम पद के प्रधान हई कद में हम सोमारू हई त हाकिम प्रधानी की जिम्मेदारी संबंधी कौनो जानकारी पंडित महिमा और ग़ज़पति दे सकतेंन।दारोगा शमशेर समझ गया कि गांव के मेह लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा है और ठाकुर तीसरा साथी अब दुनियां में नही है पण्डित महिमा और लाला ग़ज़पति को तो दरोगा शमशेर अपने धौंस में लेने के सारे तरीके अपना चुका था मगर उसे विश्वास नही था कि उसके धौस में पंडित और लाला की जोड़ी जल्दी फंसेगी फिर भी वह पंडित और लाला पर विशेष नज़र रख रहा था ।विल्लोर गांव में एक पुराना शिव मंदिर था जहां गांव के हर टोले के लोग समयानुसार बैठते थे पुजारी शिवा गिरी बड़े ही शौम्य मृदु और विनम्र सनातनी थे उनकी इज़्ज़त गांव के सभी लोग करते थे मंदिर से लगभग पांच सौ मीटर दूर एक मस्जिद भी थी जहाँ सिर्फ मुस्लिम इस्लामी तकरीर और जुमे की नवाज़ को एकत्र होते थे होली और ईद एक साथ पड़ने से गांव में एक भय व्याप्त था कि त्योहार के दिन कोई अनहोनी न हो जाय इधर पंडित और लाला ग़ज़पति ने शोमारू प्रधान को बुलाकर हिदायत दी कि कुछ भी हो जाय मगर त्योहार शांति पूर्वक बीतना चाहिये शोमारू प्रधान ने स्वय जाकर सभी टोलो पर विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर होली और ईद एक साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में मनाने के लिये निवेदन किया मगर होना तो कुछ और था ईद और होली से ठीक एक दिन पहले जिस रात होलिका दहन हुआ उसी रात शिवा गिरी की हत्या हो गयी सुबह उनके मृत शरीर को जानवर घसीट रहे थे सुबह होली और ईद के दिन यह बात पूरे गांव में आग की तरह फैल गयी लोग इकठ्ठा हुए देखा कि शिवा गिरी की बड़ी बेरहमी से गला रेत कर नृशंस हत्या कि गयी है तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे तब तक दरोगा शमशेर भी वहां पहुंच गए मस्जिद के मौलवी मियां नसीर भी वहां मौजूद थे मगर किसी के संमझ में यह नही आ रहा था कि शिवा गिरी की हत्या किसने की हैं।पूरे गांव का माहौल गमगीन था सभी गांव वालों ने फैसला किया कि इस वर्ष होली नही मनाई जाएगी मगर मुस्लिम समुदाय के लोग ईद मनाने के लिये तैयार थे विलम्ब ही सही ईद की नाबाज़ दिन बारह बजे अता की गई और ईद मिलन समारोह भी चलने लगा इधर दरोगा शमशेर ने गुमनाम मुकदमा दर्ज कर शिवा गिरी का पोस्टमार्टम कराकर शव गांव के हवाले कर दिया गांव वालों ने बड़ी श्रद्धा से सारे गीले शिकवे भुला कर शिवा गिरी को अंतिम विदाई दी और मंदिर के ही निकट उनकी समाधि बना दिया और उनके पुत्र देवा गिरी को मंदिर का पुजारी नियुक्त कर दिया।।

कहानीकार -नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




होलिका दहन

*होलिका दहन*

हर साल मुझकों जलाने का अर्थ क्या हुआ ?

सोच से अपनें मेरें जैसे सामर्थ सा हुआँ

हाथ में मशाल वालों से पूछतीं हैं होलिका

जलाने का प्रयास मुझकों तेरा ब्यर्थ क्यों हुआ ?

 

अपनें शान के अग्नि में ख़ुद ही मैं जल गईं

अभिमान के तेज़ ताप में ख़ुद ही मैं तल गईं

देखती हूँ तुम सभी भरे हो उसी दम्भ में

इसलिए तेरे हाथों हर बार जलने से मैं रह गईं

 

प्रह्लाद जैसा बन के कोई गोंद में आ जाओ मेरे

प्यार की बयार से जलाओ और बुझाओ मुझें

गर्व दर्प हिंसा नफ़रत निकाल दे जो मन से तो

ऐसे कोई अग्नि में एक बार ही जलाओ मुझें

 

फ़िर देखना हर साल मुझें जलाने की जरूरत नहीं

पाक दिल इन्सान में रहने की कोई हसरत नहीं

बुराईयाँ सब मिट जाए ,ऐ इंसान गर तुझसे 

तो धरती पर रुकने की मेरी कोई चाहत नहीं ।।

©बिमल तिवारी “आत्मबोध”

   देवरिया उत्तर प्रदेश

   #मन_रंगरसियाँ

   #दिल_फ़क़ीर




*प्रेम के सतरंगी रंगों से भरा गंगा जमुनी संस्कृति व भाईचारे का प्यारा रंगपर्व होली*

*प्रेम के सतरंगी रंगों से भरा गंगा जमुनी संस्कृति व भाईचारे का प्यारा रंगपर्व होली*

लेखक :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

भारतीय विभिन्न ऋतुओं के समय समय पर परिवर्तन के साथ ही साथ ऋतुराज वसंत के आगमन की आहट मात्र से हम सब के हृदय में उत्साह व् उमंग की नई-नई कोपलें और कलियाँ निकलनी शुरू हो जाती हैं। इन कलियों में एक ऐसी कली भी होती है जो अपने साथ सतरंगी रंगों के साथ मादक और मनमोहक सुगंध लिए अलौकिक प्रेम और भाईचारे का “होली” पर्व लेकर आती हैं और अपनी सुगंध बिखेरते हुए तरह तरह के लजीज पकवानों,गुझिया,पापड़,चिप्स,दही बड़ा,रसगुल्ला आदि स्वादिष्ट व्यंजनों की भरमार कर देती हैं।
हर तरफ अबीर,गुलाल,विभिन्न रंग,पिचकारी एवं सुगन्धित इत्र की बहार छा जाती है। सभी हिन्दू भाई लोग प्रेम से एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं,एक दूसरे पर रंग डालते हैं,गले मिलते हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं तथा छोटों को अपना स्नेह व आशीर्वाद देते हैं। अन्य व्यंजनों के साथ ही साथ होली के मुख्य व्यंजन गुझिया का प्रेम के साथ आनंद उठाते हैं।
हमारे देश में यूं तो होली के प्रारंभ से पहले ही हम भगवान भोले नाथ जी के “महापर्व शिवरात्रि” को ही भोले शंकर जी के मंदिरों में उनको जलाभिषेक करते हैं और उसी समय अबीर,गुलाल भी उन्हें अर्पित करते हुए होली की शुरुआत होने का समय मान लेते हैं,किन्तु मुख्य पर्व होली तो होलिका के दहन के साथ ही प्रारम्भ होता है। इसमें हर गांव और शहर में जगह जगह चौराहों पर उत्साही नवयुवकों द्वारा शिवरात्रि के बाद से ही लकड़ी और लट्ठ इकट्ठा किया जाना प्रारम्भ कर दिया जाता है,और विभिन्न रंगों की होली खेलने से पहले बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है।
इस संदर्भ में यहाँ एक बात संक्षिप्त रूप में बताना जरूरी है ताकि उन्हें भी ये मालूम हो सके जिनको ये बात अभी तक नहीं पता रहा हो,खासकर आज के नए बच्चों को क्योंकि उन्हें अपने दादा-दादी या नाना-नानी के पास रहने का समय अब उतना नहीं मिलता की वो बड़ों के किस्से कहानी सुन सकें और उनके द्वारा इस ज्ञान को प्राप्त कर सकें, मोबाइल,टीवी कार्टून, वीडियो गेम आदि में पढ़ाई से ज्यादा ही उनका समय जाता है। यद्यपि की इस बार तो कोविड-19 के कारण थोड़ा अलग ही माहौल रहा है और अभी रहेगा भी। हाला कि अब कोविड-19 से बचाव की वैक्सीन भी सुलभ हो गयी है। इस क्षेत्र में भारत को आशातीत सफलता प्राप्त हुई है और वह और उसके चिकित्सा विज्ञानी, वैज्ञानिकों ने अपना स्वदेशी टीका बनाने में भी सफलता प्राप्त कर लिया है। टीकाकरण का कार्य भी प्रारंभ हो चुका है,जो भारत में दिन प्रतिदिन लगाया जा रहा है।

(आइये होली से जुड़े एक कहानी किस्सा/वृतांत की चर्चा करते हैं
आप सब बड़े बुजुर्ग तो स्वयं भी इस बात से अवश्य ही भिज्ञ होंगे कि राक्षसराज हृण्याकश्यप के पुत्र भक्त प्रह्लाद जिनकी ईश्वर में अपार श्रद्धा थी और वो विष्णु भगवान के भक्त थे,किन्तु उनके पिता श्री हृण्याकश्यप उन्हें भगवान की आराधना, मानना, पूजा,वंदना,अर्चना और भक्ति के लिए मना करते थे,और अपने को ही भगवान मानने को कहते,इसी बात पर जोर देते,अपनी सत्ता के आगे नतमस्तक होने को ही कहते ,किन्तु भक्त प्रह्लाद उनकी एक न सुनते थे,उन्हें तरह तरह के कष्ट दिए गए,प्रह्लाद को बहुत सताया जाता और कठिन से कठिन सजा दी जाती,उनके जीवन की लीला समाप्त करने का हर यत्न प्रयत्न अपने सिपाहियों द्वारा करवाया जाता रहा किन्तु ईश्वर उनकी हमेशा मदत करते और अपने भक्त प्रह्लाद की जान की रक्षा करते हुए उन्हें हमेशा सुरक्षित रखते। इस बात से परेशान राक्षस राजा पिता हृण्याकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया,उसकी बहन होलिका को वरदान प्राप्त था,उसका दुपट्टा जो था अगर वह उसे ओढ़ कर साक्षात अग्नि में भी प्रवेश कर जाये या अग्नि की चिता पर भी बैठ जाए तो वह दुपट्टे की वजह से पूर्ण सुरक्षित रहेगी और आग की तेज लपटें भी उसे जला नहीं सकेंगी। वह कभी आग में जल कर राख नहीं हो सकती। हृण्याकश्यप की बहन होलिका ने भाई की मदद हेतु उसे वचन दिया की वो ऐसा जरूर करेगी। इस लिए भक्त प्रह्लाद की जीवन लीला को समाप्त करने के लिए बहन होलिका ने चिता सजवायी और अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को गोद में बैठा कर सजाई गई चिता में स्वयं बैठी और अपना वरदानी दुपट्टा ओढ़ लिया जिससे वो आग में ना जले तथा सजवायी गयी चिता में आग लगायी गयी,जिससे प्रह्लाद उसमे जल कर भस्म हो जाये और मर जाये तथा हमेशा के लिए इस समस्या का हल हो जाये।साथ ही साथ राक्षसी पिता का अभिमान भी सदा के लिए बना रह जाये।

अतः पूर्व सुनिश्चित योजना के तहत ही भक्त प्रह्लाद की मृत्यु के लिए ऐसी ही व्यवस्था की गयी और होलिका के गोद में प्रह्लाद को बैठा कर उस सजाई गई चिता में अग्नि प्रवाहित की गयी और आग की लपटें ज्वालामुखी की तरह धधकने लगीं,किन्तु ये क्या ? ये तो एक आश्चर्यचकित कर देने वाला अजीबो गरीब चमत्कार है।

होलिका द्वारा वरदान प्राप्त दुपट्टा अचानक हवा चलने की वजह से होलिका के ऊपर से उड़ कर भक्त प्रहलाद के ऊपर आकर गिरा और उसका पूरा शरीर ढक लिया। ईश्वर के प्रति किसी भक्त के अटूट विश्वास,अपार श्रद्धा ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रभावित हो कर सदैव की भांति इस बार भी प्रभु ने उसके जीवन को पूर्ण सुरक्षित रखा और उसकी बुरी बुआ होलिका स्वयं द्वारा सजवायी गयी चिता में खुद ही जल कर राख हो गयी। उसकी बुरी सोच, कर्म और बुराई का साथ देने की वजह से ईश्वर ने उसे स्वयं ही जला कर राख कर दिया। होलिका जल गयी,मर गयी, किन्तु भक्त प्रह्लाद बचे रहे। इसके बाद भी हृण्याकश्यप का दिल नहीं पसीझा और उसने अपने महल के एक खंभे को इतना गर्म करवाया की वो तप कर लाल हो गया,ताकि भक्त प्रह्लाद को उस खंभे से चिपका कर बांध दिया जाये और वह उस गर्म खंभे से तड़प कर मर जाये। किन्तु एक कहावत जो कही है वह बिलकुल सत्य है।

“जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय”

भक्त प्रह्लाद को ऐसी दशा में देख कर भगवान विष्णु ने द्रवित ही कर स्वयं नरसिंह अवतार लिया था, क्यों कि हृण्याकश्यप को भी यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु पृथ्वी, जल और नभ में कहीं भी नहीं हो सकती, न उसे कोई पशु मार सकता है ,न ही पक्षी और न ही कोई मनुष्य या देवता। इसी लिए भगवान विष्णु को आधे नर और आधे पशु शेर के रूप में “नरसिंह” रूप धारण कर भक्त प्रह्लाद को बचाने और हृण्याकश्यप को मारने के लिए स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा।

भक्त वत्सल भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में आ कर हृण्याकश्यप को मार कर उसका भी उद्धार किया और अपने परम प्रिय भक्त प्रह्लाद के जीवन की भी रक्षा किया और उसे आशीर्वाद दिया।
प्रेम से बोलो श्री हरि भगवान विष्णु की- जय हो।

इसी लिए तब से आज तक बुराई पर अच्छाई की इस जीत होने के प्रतीक स्वरुप एक परम्परा के रूप में स्थापित इस होलिका का दहन प्रयेक वर्ष होली का रंग खेलने और खुशियां मनाने के पहले होलिका को जलाया जाता है।)
हमारा भारत खासकर उत्तर प्रदेश गंगा जमुनी तहजीब का धनी रहा है, यहाँ विभिन धर्म और संप्रदाय के लोग सदियों से मिलजुल कर रहते आये हैं और सांप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय देते हुए एक दूसरे के त्योहारों की इज्जत करते और मिल जुल कर मनाते आये हैं, होली भी हमारे अन्य धर्मों के मित्र और भाई बहन हम हिन्दू भाई बहनों के घर जरूर आते जाते रहे हैं और एक दूसरे को बधाई और शुभकामनायें देते आये हैं, गुझिया और दावत खाते आये हैं। प्रेम और भाईचारे की एक मिसाल है ये रंगों का पर्व हमारी होली का त्योहार। ठीक वैसे ही जैसे मुस्लिम भाइयों का ईद का त्योहार।
बृजवासियों,मथुरा,वृन्दावन और बरसाने की होली तो पूरी दुनिया में मशहूर है,जहाँ महीनों होली का त्योहार होता है।
भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में कभी लड्डू होली,कभी लट्ठमार होली,कभी फूलों की होली,कभी अबीर और गुलाल की होली तो कभी रंगों की होली खेली जाती है और बहुत ही उत्साह और उल्लासपूर्ण वातावरण में यह होली का पर्व मनाया जाता है।
कुछ शहरों जैसे इलाहाबाद में तो कपड़ा फाड़ होली भी होती है, सुबह की बेला में कपड़ा फाड़ होली खेलते हैं और फिर शाम को सूखे रंगों की होली खेलते हैं। एक दूसरे के यहाँ आते जाते और गले मिलते हैं तथा गुझिया पापड़ आदि का आनंद उठाते हैं,युवा डीजे की धुन पर सुबह से ही देर रात तक नृत्य और मस्ती के साथ होली का लुत्फ़ उठाते हैं।
इसी तरह बनारसी होली का भी अपना महत्त्व है,भगवान काशी विश्वनाथ की नगरी में तो और गुझिया के साथ ही साथ भांग,दूध और ठंडाई के बिना होली का मजा ही बेकार होता है। बनारसी फाग गाया जाता है, नौका विहार करते हुए उस पर काव्यपाठ,फगुआ आदि विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ गाया जाता है। बड़े हर्षोल्लास के साथ बाजे गाजे के साथ बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में होली मनाई जाती है
हमारे प्रतापगढ़ में होली के दिन शाम को गोपाल मंदिर में आयोजित होने वाला महामूर्ख सम्मलेन भी अपना एक अलग ही महत्त्व रखता है,जिसमे शहर के बुद्धिजीवी वर्ग,व्यवसायी,समाजसेवी,बड़े बुजुर्ग और युवा,अधिकारी ,कर्मचारी, कवि, शायर एवं साहित्यकार सब मिलकर होली का हुड़दंग मचाते हैं और काव्यपाठ करते हैं,एक दूसरे के द्वारा मूर्खों के इस सम्मलेन में उसके सम्राट के रूप में किसी को महामूर्ख की पदवी से विभूषित करते हैं।
इसी तरह भारत के प्रत्येक प्रान्त में अपने अपने अलग अंदाज में ये रंगों का पर्व होली मनाया जाता है। हर प्रदेश में प्रेम और भाईचारे के इस महान पर्व सतरंगी त्योहार होली को हम सब बड़ी खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं।
होली में यदि किसी के प्रति किसी को कोई शिकवा शिकायत या उससे मनमुटाव भी है तो हमें उसे हमेशा के लिए भुला कर आपस में प्रेम से मिलकर बड़े स्नेह के साथ पुनः दोस्ती की एक नई शुरुआत करते हुए एक दूसरे के गले मिल कर हमें होली का त्योहार मनाना चाहिए।

1 – “होली के दिन दिल खिल जाते हैं,दुश्मन भी गले ….…………………………मिल जाते हैं।”

2 – “होली खेलैं रघुवीरा , अवध में होली खेलैं ……………………………..…..रघुवीरा।”

3 – “रंग बरसे चुनर भीगे, रंग बरसे………….
रंग बरसे .…………………………..चुनर भीगे।

4 – “होलिया में उड़े रे गुलाल…………………
…………………………………..होलिया में।

5 – “फागुन मा ससुर जी देवर लागैं, फागुन मा…
…………………………………………….।”

6- “आज बिरज में होली रे रसिया……………..
……………….केकरे हाथ कनक पिचकारी….।”

7- “बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी………….
………………सीधी साधी छोरी शराबी हो गयी।”

इसी प्रकार अनेकों गीत संगीत होली के तारतम्य में गाये बजाये जाते हैं। गावों में तो अवधी भाषा,लोकगीत,भोजपुरी इत्यादि में भी फगुआ गाया जाता है और ढ़ोल,मंजीरा,झांझ,चिमटा,खंझड़ी,ढपली इत्यादि वाद्य यंत्रों को बजाते हुए आनंद लिया जाता है।
फ़िल्मी दुनिया में तो शायद ही ऐसी कोई पिक्चर बनती हो जिसमें फाल्गुन का ये त्योहार होली के अवसर को मनाते और गीत गाते ना दिखाया जाता हो। इसके बिना जैसे जीवन का कोई भी पर्व अधूरा रहता हो, इस लिए फिल्मों में भी होली की सीन और होली गीत का फिल्मांकन जरूर किया जाता रहा है।
स्कूलों में तो होली के त्योहार के लिए अवकाश होने के समय बच्चे स्याही से ही अपने सहपाठियों के संग होली खेल जाते हैं,स्कूल से घर आने पर उनके यूनीफॉर्म और हाथ पैर चेहरा सब स्याही से ही रंगे छिड़के नजर आते हैं।मेरी इस लाइन से आप को भी अपना बचपना जरूर याद आ गया होगा, उस समय की उम्र और सोच ही ऐसी हुआ करती रही है,जो आज भी स्कूली बच्चों में बदस्तूर जारी है।
दोस्तों, रंगों के इस पावन पर्व होली के आने वाले इस सर्द-गर्म के मौसम में त्योहार के लिए मैं अपने लेख के माध्यम से आप से एक विशेष निवेदन भी करना चाहूँगा, और वो ये कि आप होली के लिए रासायनिक रंगों का तो प्रयोग बिलकुल भी न करें, क्योंकि इन रंगों को कृतिम रूप से विभिन्न रसायन के मिश्रित प्रयोग से बनाया जाता है, इससे आप की आँखों,चेहरे और शरीर पर छिल कट भी सकता है। आँखों में घाव भी हो सकता है।आँखें लाल हो सकती हैं,गड़ने लग सकती हैं और आँखों की प्राकृतिक रोशनी भी प्रभावित हो सकती हैं। आप को खाज खुजली और छिले कटे खरोंच व शरीर पर काले धब्बे जैसे विभिन्न चर्म रोग से भी ग्रसित कर सकता है। यह आप को बीमार कर सकता है और स्वास्थ्य खराब कर सकता है।
अतः आप प्राकृतिक फूलों से बने रंगों का ही प्रयोग करें तथा अपने जानने वालों को भी इन्ही रंगों के प्रयोग के लिए प्रेरित करें। होली में पानी की बौछार और ज्यादा देर तक गीले रंगों के साथ होली खेलने या इसके ज्यादा प्रयोग से भी आप देर तक भीगने या भीगे रहने से बुखार और न्यूमोनिया जैसे रोगों से भी पीड़ित हो सकते हैं।इस लिए ज्यादा देर तक पानी वाले गीले रंगों से न खेलें और ना ही अपने बच्चों को खेलने दें।
होली के त्योहार में कुछ युवा और प्रौढ़ तेल व कालिख, जला हुआ मोबीआयल,बैटरी से उसकी कज्जी निकाल कर भी एक दूसरे को लगाते और परेशान करते हैं तथा हुड़दंग मचाते हैं। ऐसा बिल्कुल भी न करें,ये भी आप को बीमार बना सकता है। युवा वर्ग तेज आवाज में डीजे लगा कर चौराहों और मुख्य सड़कों को बाधित करते हैं और बहुत देर रात तक हुड़दंग मचाते रहते हैं,ये तरीका भी शायद ठीक नहीं हो सकता। क्यों की इसमें आने जाने वाले राहगीरों पर भी कई रंग ,कीचड या कालिख फेंकते हैं।
हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि राहगीरों में कोई मरीज भी हो सकता है और कुछ ऐसे भी धर्म के लोग जिन्हें रंग खेलना अच्छा न लगता हो तो बेवजह ही भाईचारे और खुशियों के इस त्योहार में एक तनाव पैदा हो सकता है,इस लिए ऐसा करने से भी अवश्य बचें।
होली के त्योहार में ज्यादातर हमारा आज का युवा वर्ग आनंद के लिए अक्सर भाँग, शराब और अन्य मादक पदार्थों का भी प्रयोग करने लगते हैं,जिससे उनको नशा भी हो जाता है और कभी कभी इससे बड़ी भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है। होली त्योहार का एक बहाना लेकर दोस्तों के साथ भी लोग नशा करते हैं और कभी कभी तो दुश्मनी भी निकालने के लिए कुछ शरारती लोग कोई जहरीली चीज भी मिला कर दोस्ती के रंग में भंग कर देते हैं। यह जरुरी नहीं कि इससे उसका कुछ न बिगड़े। यह उसकी मानसिक स्थिति बिगाड़ सकता है,बीमार बना सकता है,यहाँ तक की मादक पदार्थो का अधिक या मिलावटी सेवन जानलेवा भी साबित हो सकता है।
इससे आप खुद व् परिवार के लोग बेवजह ही परेशानी और आर्थिक संकट में पड़ सकते हैं। इस लिए कभी भी विशेषकर होली के त्योहार में ऐसा कोई काम और इसे मनाने के किसी भी असामाजिक तरीके का इस्तेमाल बिलकुल न करें,जो खुशियों के इस पर्व को किसी नई परेशानी और अप्रतीक्षित परिणाम में बदल दे।
इसी तरहखाने पीने में भी बहुत एहतियात बरतने की जरुरत है, बाजार की बनी चीजों में ज्यादातर त्योहारी मौसम में मिलावटी चीजें ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में बाजार में मिलती और बिकती हैं। दूध, खोया या खोए से बनी चीजें,घटिया स्तर के रिफाइंड आयल से बनी हुयी बाजारू गुझिया या मिठाई जिनकी खरीद और ज्यादा इस्तेमाल से आप का स्वास्थ्य ख़राब हो सकता है। इनका ज्यादा इस्तेमाल आप को बीमार बना सकता है,आप सांस रोग,जूड़ी, बुखार और कभी कभी उल्टी दस्त और डायरिया से भी पीड़ित हो सकते हैं।
इस लिए घर की बनी हुई शुद्ध चीजों का ही इस्तेमाल करें तो ज्यादा अच्छा और स्वास्थ्यकर होगा, वो भी बहुत ज्यादा नहीं ,अपनी सेहत का ध्यान रखते हुये। जिससे रंगों का ये पावन पर्व होली का त्योहार ख़ुशी और उल्लास से व्यतीत हो सके और आप सभी लोग सपरिवार स्वस्थ्य और मस्त भी रह सकें। अतः उपरोक्त बातों का भी अवश्य ध्यान रखें और अपने स्वास्थ्य की दृष्टि से भी त्योहार को मनायें और आपस में प्रेम,भाईचारा और खुशियां बांटें।

आप सभी मेरे अमेरिकी/आस्ट्रेलियाई भाई बहनों और प्रवासी भारतीयों तथा भारत के सभी लोगों को सपरिवार मेरी तरफ से रंगों के इस पावन पर्व रंगीली होली की बहुत बहुत हार्दिक बधाई और मंगल शुभकामनायें।
हैप्पी होली। हैपी होली। हैपी होली।

लेखक
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
जिला अध्यक्ष
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,प्रतापगढ़,यूपी
एवं
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं*

*”विश्व रंगमंच दिवस” की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं*
****************************************

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

यह सुन्दर संसार ही,जीवन का एक रंगमंच है।
दुनिया में आने वाला,हर शख़्स यहाँ खिलाड़ी।

प्रभु से बड़ा न है कोई,न उससे बड़ा खिलाड़ी।
मानव तो उसके आगे है,केवल है एक अनाड़ी।

जीवन में सब को अपने,कुछ तो काम मिला है।
निभा रहा है ड्यूटी जो है,न शिकवा न गिला है।

ईश्वर की मर्जी से अपना,पाट अदा कररहे सभी।
जिसको जितना पाट है करना,निभा रहे हैं सभी।

ये जीवन भी एक रंगमंच है,अलग-2 इसके पात्र।
सामाजिक रिश्तों को ढोते,बन कर सभी सुपात्र।

कोई बेटा पिता पितामह, कोई पुत्री माँ दादी माँ।
कोई नाती नातिन पोता पोती,कोई बने नानी माँ।

इस रंगमंच पर अपना खेला, सब लोग दिखा रहे।
जिसका पाट ख़त्म हो जाता,धरती से वो जा रहे।

नाटक नौटंकी टीवीसीरियल,ये फिल्में भी रंगमंच।
प्रहसन ड्रामा बहुरूपिये, कठपुतली भी है रंगमंच।

गीत गजल कौवाली,काव्य गोष्ठी मुशायरा रंगमंच।
भोजपुरी अवधी पूर्वी,सभी का प्यारा है ये रंगमंच।

हर किरदार पृथक हैं जग में,किन्तु रंगमंच है एक।
इस पर अपनी कला दिखाने,आते रहते हैं अनेक।

“विश्व रंगमंच दिवस” की,आप सभी को बधाई है।
हर रंगकर्मी स्त्री-पुरुष बच्चे,को हार्दिक बधाई है।

अपने निज कला का जादू,यह ऐसे सदा निखारें।
रंगमंच का बाजीगर बन,हर दिल में जगह बटोरें।

स्वस्थ्य मनोरंजन से अपने,दिल को ऐसे ही जीतें।
रचनात्मक सोच प्रदर्शन,हर दिन खुशियों से बीतें।

हर रंगकर्मी का समाज में,होता बड़ा ही है आदर।
अपने किसी कृत्य से करना,कभी ना मैली चादर।

रंगमंच व रंगकर्मियों का,जीवन सदा आबाद रहे।
जनमानस के रोम रोम से,उन्हें यह आशीर्वाद रहे।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नॉर्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*अयोध्या में संतो संग हिन्दू-मुस्लिम खेलें रंग होली*

*अयोध्या में संतों संग हिन्दू-मुस्लिम खेलें रंग होली*
***************************************

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

खेलें हिन्दू मुस्लिम मिल कर होली,
अयोध्या में राम लला के घर होली।

भाई इकबाल व अनीस खेलें होली,
गंगा जमुनी संस्कृति की यह होली।

प्यार एवं भाईचारे की अनुपम होली,
अयोध्या खेल रही एकता की होली।

हिन्दू मुस्लिम एक दूजे के रंग होली,
डारें अबीर गुलाल और खेलें होली।

ब्रज में खेलें मथुरा बरसाने में होली,
अयोध्या में भी खेलें संग संग होली।

यह है अपने देश परिवेश की होली,
गुझिया पापड़ चिप्स की यह होली।

विविध रंग भरी पिचकारी की होली,
तन मन वस्त्र में बहुरंगों की है होली।

गले मिलें सब ये बोलें होली है होली,
अवध में खेलें रघुवीर संग सब होली।

लड्डू,लठमार,रंग,फूलों की ये होली,
बृज बरसाने में खेलें कृष्ण संग होली।

रूप धरे हैं राम लक्ष्मण की इस होली,
कृष्ण रूप धरे गोपियों संग की होली।

दिलों से दिल को मिलाती यह होली,
ये फ़ाग अनेक रंग बरसाती ये होली।

ढोल व झांझ मंजीरा बजे इस होली,
लक्ष्मण के हाथ अबीरा है इस होली।

श्रीराम की नगरी अयोध्या की होली,
युग युग से प्रेम सौहार्द्र की रही होली।

खुशियों के संग मिलकर खेलो होली,
अमन चैन से बीते यह रंग पर्व होली।

होली उत्सव है भाई ये होली है होली,
करो ठिठोली देवर भौजाई की होली।

होली है जीजा व साली की यह होली,
सरहज और नंदोई की भी है ये होली।

भाई और भाई की यह प्रमुदित होली,
छोटे बड़े वृद्ध महिला पुरुष की होली।

बच्चों के रंग भरे गुब्बारों की ये होली,
उछल कूद कर रंग लगाने की है होली।

मन को मन से मिलाने की है ये होली,
दुश्मनी शत्रुता सब भुलाने की होली।

रंगों का पर्व हँसी ख़ुशी मनाना होली,
मन आह्लादित करती रही है ये होली।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




होली

बस रंगों का त्योहार हैं होली

और ढंगों का त्योहार हैं होली

मिलजुल जाए आपस में सारे

ऐसा यहीं ईक़ त्योहार हैं होली

 

करती फिज़ा ज़वान हैं होली

बदलतीं हिज़ा इंसान की होली

धरती अम्बर एक सा करती

करती खिज़ा मानसून की होली

 

खाते सब क्यूँ हैं भाँग की गोली

करतें उलटी सीधी बात बोली

बेढंगे करतूत से अब अपने

बना दिये त्योहार को बम गोली

 

ना मत इसको बदनाम करो

बस रंग अबीर के नाम खेलो

ये पर्व हैं प्यार और उन्नति का

बोली जुआ में ना बरबाद करो।।

©बिमल तिवारी “आत्मबोध”

   देवरिया उत्तर प्रदेश

   #रंगबरसे 

   #RangBarse




मनहरण घनाक्षरी “होली के रंग”

मनहरण घनाक्षरी “होली के रंग”

(1)

होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।

****************
(2)

फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

****************
(3)

बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया