*प्रेम के सतरंगी रंगों से भरा गंगा जमुनी संस्कृति व भाईचारे का प्यारा रंगपर्व होली*
लेखक :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
भारतीय विभिन्न ऋतुओं के समय समय पर परिवर्तन के साथ ही साथ ऋतुराज वसंत के आगमन की आहट मात्र से हम सब के हृदय में उत्साह व् उमंग की नई-नई कोपलें और कलियाँ निकलनी शुरू हो जाती हैं। इन कलियों में एक ऐसी कली भी होती है जो अपने साथ सतरंगी रंगों के साथ मादक और मनमोहक सुगंध लिए अलौकिक प्रेम और भाईचारे का “होली” पर्व लेकर आती हैं और अपनी सुगंध बिखेरते हुए तरह तरह के लजीज पकवानों,गुझिया,पापड़,चिप्स,दही बड़ा,रसगुल्ला आदि स्वादिष्ट व्यंजनों की भरमार कर देती हैं।
हर तरफ अबीर,गुलाल,विभिन्न रंग,पिचकारी एवं सुगन्धित इत्र की बहार छा जाती है। सभी हिन्दू भाई लोग प्रेम से एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाते हैं,एक दूसरे पर रंग डालते हैं,गले मिलते हैं और बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं तथा छोटों को अपना स्नेह व आशीर्वाद देते हैं। अन्य व्यंजनों के साथ ही साथ होली के मुख्य व्यंजन गुझिया का प्रेम के साथ आनंद उठाते हैं।
हमारे देश में यूं तो होली के प्रारंभ से पहले ही हम भगवान भोले नाथ जी के “महापर्व शिवरात्रि” को ही भोले शंकर जी के मंदिरों में उनको जलाभिषेक करते हैं और उसी समय अबीर,गुलाल भी उन्हें अर्पित करते हुए होली की शुरुआत होने का समय मान लेते हैं,किन्तु मुख्य पर्व होली तो होलिका के दहन के साथ ही प्रारम्भ होता है। इसमें हर गांव और शहर में जगह जगह चौराहों पर उत्साही नवयुवकों द्वारा शिवरात्रि के बाद से ही लकड़ी और लट्ठ इकट्ठा किया जाना प्रारम्भ कर दिया जाता है,और विभिन्न रंगों की होली खेलने से पहले बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है।
इस संदर्भ में यहाँ एक बात संक्षिप्त रूप में बताना जरूरी है ताकि उन्हें भी ये मालूम हो सके जिनको ये बात अभी तक नहीं पता रहा हो,खासकर आज के नए बच्चों को क्योंकि उन्हें अपने दादा-दादी या नाना-नानी के पास रहने का समय अब उतना नहीं मिलता की वो बड़ों के किस्से कहानी सुन सकें और उनके द्वारा इस ज्ञान को प्राप्त कर सकें, मोबाइल,टीवी कार्टून, वीडियो गेम आदि में पढ़ाई से ज्यादा ही उनका समय जाता है। यद्यपि की इस बार तो कोविड-19 के कारण थोड़ा अलग ही माहौल रहा है और अभी रहेगा भी। हाला कि अब कोविड-19 से बचाव की वैक्सीन भी सुलभ हो गयी है। इस क्षेत्र में भारत को आशातीत सफलता प्राप्त हुई है और वह और उसके चिकित्सा विज्ञानी, वैज्ञानिकों ने अपना स्वदेशी टीका बनाने में भी सफलता प्राप्त कर लिया है। टीकाकरण का कार्य भी प्रारंभ हो चुका है,जो भारत में दिन प्रतिदिन लगाया जा रहा है।
(आइये होली से जुड़े एक कहानी किस्सा/वृतांत की चर्चा करते हैं
आप सब बड़े बुजुर्ग तो स्वयं भी इस बात से अवश्य ही भिज्ञ होंगे कि राक्षसराज हृण्याकश्यप के पुत्र भक्त प्रह्लाद जिनकी ईश्वर में अपार श्रद्धा थी और वो विष्णु भगवान के भक्त थे,किन्तु उनके पिता श्री हृण्याकश्यप उन्हें भगवान की आराधना, मानना, पूजा,वंदना,अर्चना और भक्ति के लिए मना करते थे,और अपने को ही भगवान मानने को कहते,इसी बात पर जोर देते,अपनी सत्ता के आगे नतमस्तक होने को ही कहते ,किन्तु भक्त प्रह्लाद उनकी एक न सुनते थे,उन्हें तरह तरह के कष्ट दिए गए,प्रह्लाद को बहुत सताया जाता और कठिन से कठिन सजा दी जाती,उनके जीवन की लीला समाप्त करने का हर यत्न प्रयत्न अपने सिपाहियों द्वारा करवाया जाता रहा किन्तु ईश्वर उनकी हमेशा मदत करते और अपने भक्त प्रह्लाद की जान की रक्षा करते हुए उन्हें हमेशा सुरक्षित रखते। इस बात से परेशान राक्षस राजा पिता हृण्याकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया,उसकी बहन होलिका को वरदान प्राप्त था,उसका दुपट्टा जो था अगर वह उसे ओढ़ कर साक्षात अग्नि में भी प्रवेश कर जाये या अग्नि की चिता पर भी बैठ जाए तो वह दुपट्टे की वजह से पूर्ण सुरक्षित रहेगी और आग की तेज लपटें भी उसे जला नहीं सकेंगी। वह कभी आग में जल कर राख नहीं हो सकती। हृण्याकश्यप की बहन होलिका ने भाई की मदद हेतु उसे वचन दिया की वो ऐसा जरूर करेगी। इस लिए भक्त प्रह्लाद की जीवन लीला को समाप्त करने के लिए बहन होलिका ने चिता सजवायी और अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को गोद में बैठा कर सजाई गई चिता में स्वयं बैठी और अपना वरदानी दुपट्टा ओढ़ लिया जिससे वो आग में ना जले तथा सजवायी गयी चिता में आग लगायी गयी,जिससे प्रह्लाद उसमे जल कर भस्म हो जाये और मर जाये तथा हमेशा के लिए इस समस्या का हल हो जाये।साथ ही साथ राक्षसी पिता का अभिमान भी सदा के लिए बना रह जाये।
अतः पूर्व सुनिश्चित योजना के तहत ही भक्त प्रह्लाद की मृत्यु के लिए ऐसी ही व्यवस्था की गयी और होलिका के गोद में प्रह्लाद को बैठा कर उस सजाई गई चिता में अग्नि प्रवाहित की गयी और आग की लपटें ज्वालामुखी की तरह धधकने लगीं,किन्तु ये क्या ? ये तो एक आश्चर्यचकित कर देने वाला अजीबो गरीब चमत्कार है।
होलिका द्वारा वरदान प्राप्त दुपट्टा अचानक हवा चलने की वजह से होलिका के ऊपर से उड़ कर भक्त प्रहलाद के ऊपर आकर गिरा और उसका पूरा शरीर ढक लिया। ईश्वर के प्रति किसी भक्त के अटूट विश्वास,अपार श्रद्धा ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रभावित हो कर सदैव की भांति इस बार भी प्रभु ने उसके जीवन को पूर्ण सुरक्षित रखा और उसकी बुरी बुआ होलिका स्वयं द्वारा सजवायी गयी चिता में खुद ही जल कर राख हो गयी। उसकी बुरी सोच, कर्म और बुराई का साथ देने की वजह से ईश्वर ने उसे स्वयं ही जला कर राख कर दिया। होलिका जल गयी,मर गयी, किन्तु भक्त प्रह्लाद बचे रहे। इसके बाद भी हृण्याकश्यप का दिल नहीं पसीझा और उसने अपने महल के एक खंभे को इतना गर्म करवाया की वो तप कर लाल हो गया,ताकि भक्त प्रह्लाद को उस खंभे से चिपका कर बांध दिया जाये और वह उस गर्म खंभे से तड़प कर मर जाये। किन्तु एक कहावत जो कही है वह बिलकुल सत्य है।
“जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय”
भक्त प्रह्लाद को ऐसी दशा में देख कर भगवान विष्णु ने द्रवित ही कर स्वयं नरसिंह अवतार लिया था, क्यों कि हृण्याकश्यप को भी यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु पृथ्वी, जल और नभ में कहीं भी नहीं हो सकती, न उसे कोई पशु मार सकता है ,न ही पक्षी और न ही कोई मनुष्य या देवता। इसी लिए भगवान विष्णु को आधे नर और आधे पशु शेर के रूप में “नरसिंह” रूप धारण कर भक्त प्रह्लाद को बचाने और हृण्याकश्यप को मारने के लिए स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ा।
भक्त वत्सल भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में आ कर हृण्याकश्यप को मार कर उसका भी उद्धार किया और अपने परम प्रिय भक्त प्रह्लाद के जीवन की भी रक्षा किया और उसे आशीर्वाद दिया।
प्रेम से बोलो श्री हरि भगवान विष्णु की- जय हो।
इसी लिए तब से आज तक बुराई पर अच्छाई की इस जीत होने के प्रतीक स्वरुप एक परम्परा के रूप में स्थापित इस होलिका का दहन प्रयेक वर्ष होली का रंग खेलने और खुशियां मनाने के पहले होलिका को जलाया जाता है।)
हमारा भारत खासकर उत्तर प्रदेश गंगा जमुनी तहजीब का धनी रहा है, यहाँ विभिन धर्म और संप्रदाय के लोग सदियों से मिलजुल कर रहते आये हैं और सांप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय देते हुए एक दूसरे के त्योहारों की इज्जत करते और मिल जुल कर मनाते आये हैं, होली भी हमारे अन्य धर्मों के मित्र और भाई बहन हम हिन्दू भाई बहनों के घर जरूर आते जाते रहे हैं और एक दूसरे को बधाई और शुभकामनायें देते आये हैं, गुझिया और दावत खाते आये हैं। प्रेम और भाईचारे की एक मिसाल है ये रंगों का पर्व हमारी होली का त्योहार। ठीक वैसे ही जैसे मुस्लिम भाइयों का ईद का त्योहार।
बृजवासियों,मथुरा,वृन्दावन और बरसाने की होली तो पूरी दुनिया में मशहूर है,जहाँ महीनों होली का त्योहार होता है।
भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में कभी लड्डू होली,कभी लट्ठमार होली,कभी फूलों की होली,कभी अबीर और गुलाल की होली तो कभी रंगों की होली खेली जाती है और बहुत ही उत्साह और उल्लासपूर्ण वातावरण में यह होली का पर्व मनाया जाता है।
कुछ शहरों जैसे इलाहाबाद में तो कपड़ा फाड़ होली भी होती है, सुबह की बेला में कपड़ा फाड़ होली खेलते हैं और फिर शाम को सूखे रंगों की होली खेलते हैं। एक दूसरे के यहाँ आते जाते और गले मिलते हैं तथा गुझिया पापड़ आदि का आनंद उठाते हैं,युवा डीजे की धुन पर सुबह से ही देर रात तक नृत्य और मस्ती के साथ होली का लुत्फ़ उठाते हैं।
इसी तरह बनारसी होली का भी अपना महत्त्व है,भगवान काशी विश्वनाथ की नगरी में तो और गुझिया के साथ ही साथ भांग,दूध और ठंडाई के बिना होली का मजा ही बेकार होता है। बनारसी फाग गाया जाता है, नौका विहार करते हुए उस पर काव्यपाठ,फगुआ आदि विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ गाया जाता है। बड़े हर्षोल्लास के साथ बाजे गाजे के साथ बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में होली मनाई जाती है
हमारे प्रतापगढ़ में होली के दिन शाम को गोपाल मंदिर में आयोजित होने वाला महामूर्ख सम्मलेन भी अपना एक अलग ही महत्त्व रखता है,जिसमे शहर के बुद्धिजीवी वर्ग,व्यवसायी,समाजसेवी,बड़े बुजुर्ग और युवा,अधिकारी ,कर्मचारी, कवि, शायर एवं साहित्यकार सब मिलकर होली का हुड़दंग मचाते हैं और काव्यपाठ करते हैं,एक दूसरे के द्वारा मूर्खों के इस सम्मलेन में उसके सम्राट के रूप में किसी को महामूर्ख की पदवी से विभूषित करते हैं।
इसी तरह भारत के प्रत्येक प्रान्त में अपने अपने अलग अंदाज में ये रंगों का पर्व होली मनाया जाता है। हर प्रदेश में प्रेम और भाईचारे के इस महान पर्व सतरंगी त्योहार होली को हम सब बड़ी खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं।
होली में यदि किसी के प्रति किसी को कोई शिकवा शिकायत या उससे मनमुटाव भी है तो हमें उसे हमेशा के लिए भुला कर आपस में प्रेम से मिलकर बड़े स्नेह के साथ पुनः दोस्ती की एक नई शुरुआत करते हुए एक दूसरे के गले मिल कर हमें होली का त्योहार मनाना चाहिए।
1 – “होली के दिन दिल खिल जाते हैं,दुश्मन भी गले ….…………………………मिल जाते हैं।”
2 – “होली खेलैं रघुवीरा , अवध में होली खेलैं ……………………………..…..रघुवीरा।”
3 – “रंग बरसे चुनर भीगे, रंग बरसे………….
रंग बरसे .…………………………..चुनर भीगे।
4 – “होलिया में उड़े रे गुलाल…………………
…………………………………..होलिया में।
5 – “फागुन मा ससुर जी देवर लागैं, फागुन मा…
…………………………………………….।”
6- “आज बिरज में होली रे रसिया……………..
……………….केकरे हाथ कनक पिचकारी….।”
7- “बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी………….
………………सीधी साधी छोरी शराबी हो गयी।”
इसी प्रकार अनेकों गीत संगीत होली के तारतम्य में गाये बजाये जाते हैं। गावों में तो अवधी भाषा,लोकगीत,भोजपुरी इत्यादि में भी फगुआ गाया जाता है और ढ़ोल,मंजीरा,झांझ,चिमटा,खंझड़ी,ढपली इत्यादि वाद्य यंत्रों को बजाते हुए आनंद लिया जाता है।
फ़िल्मी दुनिया में तो शायद ही ऐसी कोई पिक्चर बनती हो जिसमें फाल्गुन का ये त्योहार होली के अवसर को मनाते और गीत गाते ना दिखाया जाता हो। इसके बिना जैसे जीवन का कोई भी पर्व अधूरा रहता हो, इस लिए फिल्मों में भी होली की सीन और होली गीत का फिल्मांकन जरूर किया जाता रहा है।
स्कूलों में तो होली के त्योहार के लिए अवकाश होने के समय बच्चे स्याही से ही अपने सहपाठियों के संग होली खेल जाते हैं,स्कूल से घर आने पर उनके यूनीफॉर्म और हाथ पैर चेहरा सब स्याही से ही रंगे छिड़के नजर आते हैं।मेरी इस लाइन से आप को भी अपना बचपना जरूर याद आ गया होगा, उस समय की उम्र और सोच ही ऐसी हुआ करती रही है,जो आज भी स्कूली बच्चों में बदस्तूर जारी है।
दोस्तों, रंगों के इस पावन पर्व होली के आने वाले इस सर्द-गर्म के मौसम में त्योहार के लिए मैं अपने लेख के माध्यम से आप से एक विशेष निवेदन भी करना चाहूँगा, और वो ये कि आप होली के लिए रासायनिक रंगों का तो प्रयोग बिलकुल भी न करें, क्योंकि इन रंगों को कृतिम रूप से विभिन्न रसायन के मिश्रित प्रयोग से बनाया जाता है, इससे आप की आँखों,चेहरे और शरीर पर छिल कट भी सकता है। आँखों में घाव भी हो सकता है।आँखें लाल हो सकती हैं,गड़ने लग सकती हैं और आँखों की प्राकृतिक रोशनी भी प्रभावित हो सकती हैं। आप को खाज खुजली और छिले कटे खरोंच व शरीर पर काले धब्बे जैसे विभिन्न चर्म रोग से भी ग्रसित कर सकता है। यह आप को बीमार कर सकता है और स्वास्थ्य खराब कर सकता है।
अतः आप प्राकृतिक फूलों से बने रंगों का ही प्रयोग करें तथा अपने जानने वालों को भी इन्ही रंगों के प्रयोग के लिए प्रेरित करें। होली में पानी की बौछार और ज्यादा देर तक गीले रंगों के साथ होली खेलने या इसके ज्यादा प्रयोग से भी आप देर तक भीगने या भीगे रहने से बुखार और न्यूमोनिया जैसे रोगों से भी पीड़ित हो सकते हैं।इस लिए ज्यादा देर तक पानी वाले गीले रंगों से न खेलें और ना ही अपने बच्चों को खेलने दें।
होली के त्योहार में कुछ युवा और प्रौढ़ तेल व कालिख, जला हुआ मोबीआयल,बैटरी से उसकी कज्जी निकाल कर भी एक दूसरे को लगाते और परेशान करते हैं तथा हुड़दंग मचाते हैं। ऐसा बिल्कुल भी न करें,ये भी आप को बीमार बना सकता है। युवा वर्ग तेज आवाज में डीजे लगा कर चौराहों और मुख्य सड़कों को बाधित करते हैं और बहुत देर रात तक हुड़दंग मचाते रहते हैं,ये तरीका भी शायद ठीक नहीं हो सकता। क्यों की इसमें आने जाने वाले राहगीरों पर भी कई रंग ,कीचड या कालिख फेंकते हैं।
हमें इसका ध्यान रखना चाहिए कि राहगीरों में कोई मरीज भी हो सकता है और कुछ ऐसे भी धर्म के लोग जिन्हें रंग खेलना अच्छा न लगता हो तो बेवजह ही भाईचारे और खुशियों के इस त्योहार में एक तनाव पैदा हो सकता है,इस लिए ऐसा करने से भी अवश्य बचें।
होली के त्योहार में ज्यादातर हमारा आज का युवा वर्ग आनंद के लिए अक्सर भाँग, शराब और अन्य मादक पदार्थों का भी प्रयोग करने लगते हैं,जिससे उनको नशा भी हो जाता है और कभी कभी इससे बड़ी भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाती है। होली त्योहार का एक बहाना लेकर दोस्तों के साथ भी लोग नशा करते हैं और कभी कभी तो दुश्मनी भी निकालने के लिए कुछ शरारती लोग कोई जहरीली चीज भी मिला कर दोस्ती के रंग में भंग कर देते हैं। यह जरुरी नहीं कि इससे उसका कुछ न बिगड़े। यह उसकी मानसिक स्थिति बिगाड़ सकता है,बीमार बना सकता है,यहाँ तक की मादक पदार्थो का अधिक या मिलावटी सेवन जानलेवा भी साबित हो सकता है।
इससे आप खुद व् परिवार के लोग बेवजह ही परेशानी और आर्थिक संकट में पड़ सकते हैं। इस लिए कभी भी विशेषकर होली के त्योहार में ऐसा कोई काम और इसे मनाने के किसी भी असामाजिक तरीके का इस्तेमाल बिलकुल न करें,जो खुशियों के इस पर्व को किसी नई परेशानी और अप्रतीक्षित परिणाम में बदल दे।
इसी तरहखाने पीने में भी बहुत एहतियात बरतने की जरुरत है, बाजार की बनी चीजों में ज्यादातर त्योहारी मौसम में मिलावटी चीजें ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में बाजार में मिलती और बिकती हैं। दूध, खोया या खोए से बनी चीजें,घटिया स्तर के रिफाइंड आयल से बनी हुयी बाजारू गुझिया या मिठाई जिनकी खरीद और ज्यादा इस्तेमाल से आप का स्वास्थ्य ख़राब हो सकता है। इनका ज्यादा इस्तेमाल आप को बीमार बना सकता है,आप सांस रोग,जूड़ी, बुखार और कभी कभी उल्टी दस्त और डायरिया से भी पीड़ित हो सकते हैं।
इस लिए घर की बनी हुई शुद्ध चीजों का ही इस्तेमाल करें तो ज्यादा अच्छा और स्वास्थ्यकर होगा, वो भी बहुत ज्यादा नहीं ,अपनी सेहत का ध्यान रखते हुये। जिससे रंगों का ये पावन पर्व होली का त्योहार ख़ुशी और उल्लास से व्यतीत हो सके और आप सभी लोग सपरिवार स्वस्थ्य और मस्त भी रह सकें। अतः उपरोक्त बातों का भी अवश्य ध्यान रखें और अपने स्वास्थ्य की दृष्टि से भी त्योहार को मनायें और आपस में प्रेम,भाईचारा और खुशियां बांटें।
आप सभी मेरे अमेरिकी/आस्ट्रेलियाई भाई बहनों और प्रवासी भारतीयों तथा भारत के सभी लोगों को सपरिवार मेरी तरफ से रंगों के इस पावन पर्व रंगीली होली की बहुत बहुत हार्दिक बधाई और मंगल शुभकामनायें।
हैप्पी होली। हैपी होली। हैपी होली।
लेखक
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
जिला अध्यक्ष
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,प्रतापगढ़,यूपी
एवं
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596