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*ॐ नमः शिवाय-हर हर बम बम-जय शिव शंकर शम्भू*

*ओम नमः शिवाय,हर-हर बम-बम,जय शिव शंकर शम्भू*
(जटा जूट धारी शिव शंकर जय हो शम्भू)
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

हर हर महादेव जय काशी शम्भू,
घट-2 में बम बम भोले हों शम्भू।

बाबा विश्वनाथ जय काशी शम्भू,
महाकाल की नित जय हो शम्भू।

सोमनाथ की जयहो हर हर शम्भू,
मल्लिकार्जुन देव जय हो हे शम्भू।

ममलेश्वर ध्यान की जय हो शम्भू,
बाबा वैद्यनाथ की जय हो शम्भू।

भीमा शंकर स्वामी जय हो शम्भू,
नागेश्वर बाबा तेरी जय हो शम्भू।

त्रयंबकेश्वर स्वामी जय हो शम्भू,
हे घृषणेश्वर नाथ जी जै हो शम्भू।

सेतु बंधु रामेश्वरम जय हो शम्भू,
हे बाबा केदारनाथ जय हो शम्भू।

ओंकारेश्वर स्वामी जय हो शम्भू,
मनकामेश्वर महादेव जै हो शम्भू।

बाबा बेलखरनाथ जै हो हे शम्भू,
हे पडिंलन महादेव जय हो शम्भू।

घुइसरनाथ बाबा की जै हो शम्भू,
हे बर्फानी बाबा तेरी जै हो शम्भू।

हर हर बम बम तेरी जय हो शम्भू,
हेगौरी शंकर तेरी जय हो हे शम्भू।

कैलाशपति की जय जय हो शम्भू,
अमरनाथ जी की जय हो हे शम्भू।

पशुपतिनाथ आपकी जय हो शम्भू,
टपकेश्वर महादेव की जय हो शम्भू।

रुद्रेश्वर स्वामी की जय जय हो शम्भू,
नटराज महादेव की जय जय शम्भू।

हे नागराज तेरी जयजय हो हे शम्भू,
जटाजूटधारी शंकर की जै हो शम्भू।

हे त्रिपुरारी तेरी नित जय हो शम्भू,
आशुतोष भगवान की जै हो शम्भू।

जय हो त्रिशूल धारी की जै हो शम्भू,
जयहो डमरूधारी तेरी जय हो शम्भू।

मृगछालाधारी शंकर की जै हो शम्भू,
हे विषपान कारी महादेव जै हो शम्भू।

हे त्रिनेत्रधारी शिवशंकर जय हो शम्भू,
जटाचंद्रधारी भोलेशंकर जय हो शम्भू।

हे देवों के देव महादेव जी जै हो शम्भू,
जीवन के प्रतिपल तेरी जय हो शम्भू।

12 ज्योतिर्लिंगों विश्वनाथ जै हो शम्भू,
रखना शंकर खैर सदा जय हो हे शम्भू।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*”राम मानस” पर 108 बन्दों का सूक्ष्म मानस काव्य*

*”राम मानस” पर 108 बन्दों का एक सूक्ष्म मानस काव्य*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,हैं त्रेता युग के अवतारी।
जन्मे अयोध्या में,पिता दशरथ कौशल्या महतारी।

ठुमुक चलें रामचन्द्र,बजे पैजनियाँ करें किलकारी।
जग में मानव रूप धर,अवतरित हुए सुदर्शनधारी।

गुरुकुल में शिक्षा ली है,गुरु विश्वामित्र से श्री राम।
सूर्यवंश की शान बढ़ाये,कर्मो से श्री राम भगवान।

सीता स्वयंबर आयोजित,किये मिथिला में प्यारी।
मिथिला नरेश राजा जनक,की सीता रही दुलारी।

चारो भाई संग ले चले,गुरु विश्वामित्र ये कृपाचारी।
गुरुकुल से सीतास्वयंबर,जनकपुर पहुंचे धनुर्धारी।

राजा महाराजा देखे योगी द्वय,येहैं पीत वस्त्रधारी।
कर्ण कुंडल,गले माला,कर में धनुष,पृष्ठ बाणधारी।

ठहाका लगाये हँसे स्वयंबर में,सब राजा दरबारी।
धनुष तोड़ने आये हैं,वनवासी यह कैसे वस्त्रधारी।

हर राजा अपने नंबर पर,धनुष तोड़ने को हैं आये।
टस से मस भी करसके न,खिसिया के पीछे जाये।

श्री राम जी की बारी जब,धनुष तोड़ने की आयी।
उठा धनुष शिवजी का,दो टुकड़ा कर दिया भाई।

पुष्प वर्षा के बीच स्वयंबर में,फिर सीता जी आईं।
हाथों में वर माला थी जो,श्री राम जी को पहनाईं।

श्रीराम ने भी एक माला,सीता जी को है पहनाई।
सफल रहा सीता स्वयंबर,हर दिल में ख़ुशी छाई।

गुरु कृपा से कर विवाह,चारो भाई अयोध्या आये।
फूलों की वर्षा से स्वागत,राजमहल नगरी में पाये।

सीता उर्मिला मांडवी श्रुतिकीर्ति को लाये दशरथ।
बहुएँ पाके खुश कौशल्या,कैकेयी,सुमित्रा दशरथ।

राजमहल में वैवाहिक खुशियों से आई थी बहार।
ऐसी नजर लगाई किसी ने,बदले कुछ के व्यवहार।

कैकेयी को दिए थे,राजा दशरथ ने जो 2 वरदान।
उचित समय पर मैं लेलूँगी,आपके दिये ये वरदान।

मंथरा ने कान भरा,बहकावे में आईं रानी कैकेयी।
कोप भवन जा पड़ी रहीं,दशरथ की रानी कैकेयी।

महाराजा को पता चला,वे गए मनाने को हैं भाई।
कैकेयी कहीं आप के दिये, वरदान की घड़ी आई।

राजा कहे बोलो तुम्हें दूँगा,चाहिए तुम्हें क्या भाई।
दशरथ से राम हेतु 14वर्ष,का वनवास माँग आई।

दशरथ ने वचन दिया एवमस्त,अब तो ख़ुशी पाई।
रघुकुल में रीति यही,प्राण जाये पर वचन न जाई।

प्राणों से प्यारे राम को,चौदह वर्षीय दिए वनवास।
वनगमन से पूर्व राम,पिता के दर्शन को आये पास।

दुःखी ना हों पिताजी,आज्ञा का होगा पूरा पालन।
राजसी वस्त्र छोड़,वनवासी का वस्त्र किये धारण।

पैदल ही वन को चल पड़े, श्री राम सीता लक्ष्मण।
कुछ दूर साथ में गये मंत्री,सुमंत अयोध्या के जन।

पुत्र वियोग में बीमार हुए,पिता को हुआ है क्लेश।
राम के याद में व्याकुल,दशरथ जी गये स्वर्गवास।

अयोध्या में शोक फैला, दुःखी सभी नर एवं नारी।
रानियाँ व राज कुमार, शोकाकुल हैं मंत्री दरबारी।

कैकेयी ने पुत्र मोह में, सिंघासन पर भरत ही बैठें।
बनें अयोध्या के वे राजा,ननिहाल से जब वे लौटें।

इसी भूल से सबकुछ गड़बड़,विपदा आई है भारी।
पितृ मृत्यु की खबर से,दौड़े आये भरत मन भारी।

भरत गये भाई राम से मिलने,बतलाये दुःख भारी।
विह्वल दुःखी राम लौटें ना,पितृ इच्छा से लाचारी।

गद्दी पर नहीं बैठूँगा भइया,ये मेरा अधिकार नहीं।
बिना आपके अयोध्या,बिलकुल भी स्वीकार नहीं।

श्रीराम ने भरत को प्यार किया,व उन्हें समझाया।
निज चरण पादुका देके,भरत को वापस लौटाया।

चरण पादुका रखे गद्दी पर,14वर्ष राज्य संभाला।
श्रीराम प्रतीक्षा में,उन बिन भरत ने कार्य संभाला।

मारीच ने स्वर्ण मृग रूप में,सीता को है ललचाया।
राम को भेजा लेने मृग,सीता को बहुत था भाया।

राम बाण से घायल मृग,लक्ष्मण कहके चिल्लाया।
लक्ष्मण थे सीता रक्षा में,उन्हें जंगल में है बुलाया।

सीता को देख अकेले,रावण भिक्षा मांगने आया।
लक्ष्मन रेखा से बाहर आ,भिक्षा दो यह बहकाया।

साधू आदर में भिक्षा देने,सीता ज्यों बाहर आई।
रावण पकड़ा सीता को,कुटिलता में विजय पाई।

दुष्ट रावण उड़न खटोला में,सीता लेके चल दिया।
साधु रूप धर आया रावण,सीता का हरण किया।

दैत्य संग सीता को देख,जटायु लड़ा व गया भिड़।
रावण के प्रहार पंख काटे,घायल हो वह गया गिर।

सीता दिखी न पंचवटी में,श्रीराम विह्वल हैं नयनी।
हे खग-मृग,मधुकर श्रेनीं,तुम देखे सीता मृगनयनी।

मिला राह में श्रीराम को,घायल जटायु ने बताया।
दुष्ट रावण सीता संग लेकर,उड़न खटोला उड़ाया।

वन में नल,नील,अंगद,जामवंत,सुग्रीव की है सेना।
राम प्रेमी माता शबरी,खिलाये जूठे बेर हाँके बेना।

वनवासी राम जी अपने,लीला से बहुतों को तारा।
मारीच,ताड़का,दैत्य मारे,कितनों राक्षस को मारा।

भाई की पत्नी पर बुरी नजर,वाले बाली को मारा।
अहिल्या का उद्धार किये,निषाद राज को है तारा।

हनुमान लंका धाये,माँ सीता का पता लगा आये।
त्रिजटा जैसी एक राक्षसी,सीता की सेवा में पाये।

अशोक वाटिका उजाड़ी एवं लंका में आग लगाई।
राम भक्त वहाँ एक मिले,रावण के विभीषण भाई।

विभीषण ने रावण को, लख लख बार समझाया।
रावण ने तबभी सीता को,श्रीराम को ना लौटाया।

बना योजना लंका पे करेगें,वानरसेना अब चढ़ाई।
रामेश्वरम समुद्र तट पर,श्रीराम ने शिवलिंग बनाई।

शिवजी की पूजा की,श्रीलंका जाने को पुल पालें।
श्रीराम लिख पत्थर पर,सब वानर समुन्द्र में डालें।

लगे तैरने सभी पत्थर,आपस में वे जुड़ने भी लगे।
पुल बनके तैयार होगया,सब उसपे चलने भी लगे।

पहुंचे श्रीलंका में श्रीराम, वानर सेना भी ले साथ।
राम भक्त विभीषण का,वहाँ पे पाया सच्चा साथ।

हर एक राक्षस लड़ने आये,मायावी रूप दिखाये।
राम-लक्ष्मण के वाण के आगे,कोई टिक न पाये।

लक्ष्मणजी मूर्छित हुए,मेघनाथ के शक्तिबाण लगे।
वैद्यसुषेन दवा कहे,वीर हनुमान संजीविनी ले उड़े।

सुषेन व संजीविनी बूटी ने,लक्ष्मण के प्राण बचाये।
तब जाके कहीं श्रीराम के,प्राण में ये प्राण हैं आये।

जंग हुई अहिरावण,कुम्भकरण,मेघनाथ को मारा।
अंत समय रावण को भी,मेरे प्रभु श्री राम ने मारा।

विभीषण को श्रीलंका के सिंघासन पर है बैठाया।
लौटे सकुशल सीता को लेकर,अपने गले लगाया।

अयोध्यावासी पुष्प वर्षा कर,अपनी ख़ुशी जताये।
श्रीराम के वापस लौटने पर, असंख्य दीप जलाये।

खुशियाँ ही खुशियाँ छाई थी,अयोध्या में चहुंओर।
प्रभु श्रीराम को पाकर, नगरवासी हुए भावविभोर।

सब राज्यों से आये राजन, नगरवासी हैं आमंत्रित।
राजतिलक की हुई तैयारी,हर राजा हुए आमंत्रित।

अयोध्या राज्य में हुआ, श्रीराम का राज्याभिषेक।
खुश हुए नगरवासी पाकर, एक महान राजा नेक।

राज सिंघासन पर बैठे हैं,प्रभु श्रीराम जी धनुर्धारी।
श्रीराम दरबार की पूजा,करते घर हैं सब नर नारी।

राम दर्शन को सबहैं पहुंचे,महल में अयोध्यावासी।
राज महल में पहले जैसे,रही न अब कोई उदासी।

श्रीराम ने गुप्तचर छोड़े,नगरी का हाल तो लाओ।
कौन रह रहा कैसे,क्या कह रहा,मुझे ये बतलाओ।

गुप्तचर आकर सब हाल बताये,सब कुछ है ठीक।
हर कोई है ख़ुश रह रहाहै,होकर नगरी में निर्भीक।

श्रीराम मंत्री संग वेश बदल,खुद किये नगर भ्रमण।
देखे तो एक धोबी पत्नी से,कर रहा बुरा आचरण।

ये झगड़ा राजमहल,श्रीराम के सुनवाई को आया।
दरबार में श्रीराम जी,नारी हक़ में फैसला सुनाया।

यह फैसला धोबी को,बिलकुल भी पसंद न आया।
कहा मैं राम नहीं तुम्हें रखलूँ,पत्नी को वो भगाया।

इससे गहरा आघात पहुँचा, प्रभु श्रीराम के मन में।
सीता को महल से निकाल,पुनः भेज दिया वन में।

जंगल में भटकती सीता को,कुछ मिलीं महिलायें।
सीता गर्भवती बेचारी,थकी हारी मुर्छित हो जायें।

बाल्मीकि आश्रम की,यह महिला सभी सदस्यायें।
वे सीता को संग साथ लिए,आश्रम में लेकर जायें।

वाल्मीक से आश्रम में,वे वन सीता का हाल कहीं।
गुरु बोले चिंता न करो बेटी,तुम सुख से रहो यहीं।

पूर्ण समय पर सीता जी को,शुरू हुई प्रसव पीड़ा।
आश्रम में बेटा जो जन्मा,दूर हुई माँ की हर पीड़ा।

वनवासी आश्रमवासी,सब खुश हुए व आह्लादित।
वाल्मीक व सीता जी भी, किलकारी से आनंदित।

गुरु नाम रखे बच्चे का, यह सीता-राम का है लव।
पैदा हुआ आश्रम में ये,अयोध्या में जलायेगा लव।

एक दिन सीता ने लव को,गुरु के पास छोड़ दिया।
वन में गई लकड़ी लेने,गुरु ने भी ध्यान लगा दिया।

ध्यान से छूटे जब गुरु तो, लव को वहाँ नहीं पाये।
सीता क्या कहेगी ये सोचके,गुरु बहुत ही घबराये।

खेलते-खेलते वन में कुछ दूर चले गये थे ये लव।
गुरु बाल्मीक ने कुश रख,मन्त्रों से बना दिये लव।

सीता जी लौटीं लकड़ी लेके,तो ये जान नहीं पाई।
मेरा है यह पुत्र या कोई, कुश से पैदा हुआ है भाई।

थोड़ी देर बाद ही लव भी,खेल कूद वापस आया।
माँ के संग अपने रूप का,कोई दूसरा बच्चा पाया।

बाल्मीक ने जब यह देखा,सीता को येबात बताई।
लव तुमसे है पैदा,यह कुश है मन्त्रों से पैदा है भाई।

अब ये द्वय भाई हैं ‘लव-कुश’,आश्रम की ये जान।
पढ़े लिखेंगें एक साथ,हर विद्या का पाएंगे ये ज्ञान।

अयोध्या में श्रीराम जी,अश्वमेद्य यज्ञ करना सोचे।
सजा संवर के पूजन कर,अश्वमेघ का घोड़ा छोड़े।

घोड़ा कोई रोक सके न,इसलिए साथ सिपाही थे।
जिसने उसे रोकना चाहा,लड़ते उससे सिपाही थे।

लव-कुश ने घोड़े को रोका,बना लिये अपना बंदी।
छोटे बच्चों का देखे साहस,येहैं वीर चतुर हरफंदी।

घोड़ा पकड़े दोनों भाई,वाल्मीक आश्रम ले आये।
माँ व गुरु से सारी बातें,यह दोनों भाई हैं बतलाये।

पहुंची बात अयोध्या ये,राम के सब भाई चकराये।
एक-एक कर के सब भाई,इनसे वहाँ लड़ने आये।

जीत सके न कोई तो,अंत में श्रीराम ही खुद आये।
लव-कुश के देख पराक्रम,मन ही मन हैं वो हर्षाये।

लव-कुश पूछें राम से,आप ही अयोध्या केहैं राजा।
कैसे राजा है आप जो,धर्म पत्नी सीता को त्यागा।

फिरभी युद्ध किये येसब,लव-कुश एवं श्रीराम जी।
बाल्मीक आये समझाये,मारें मत इन्हें जानें दें जी।

लव-कुश गुरु संग फिर,वापस आये अपने आश्रम।
माँ-गुरु दोनों से पूछें,राम कौन हैं जानना चाहें हम।

माँ ने बताया रघुकुल के, राजा राम पति हैं हमारे।
बाल्मीक बताये बच्चों,श्रीराम जी हैं पिता तुम्हारे।

बात जानकर लव-कुश, अयोध्या को गए निकल।
गाते घूमें गीत नगर में,इक कथा सुनाते हो विकल।

बच्चों के मधुर गीत स्वर,अंतःराजमहल में पहुंचा।
श्रीराम बुलाये बच्चों को,दरबारी ले के जा पहुंचा।

राम कहे बच्चों अब तुम,मुझे अपने गीत सुनाओ।
बच्चों के कथा गीत सुन,राम कहे माँ को बुलाओ।

बाल्मीक जी सीता को ले,पहुंचे अयोध्या दरबार।
सीता की पवित्रता बताये,कहे करो इन्हें स्वीकार।

श्रीराम कहे मैं एक राजा हूँ,केवल एक पति नहीं।
अग्नि परीक्षा देनी होगी,इसके बिना स्वीकार नहीं।

सीता रोईं बहुत बताईं,मेरे रोमरोम में बसे श्रीराम।
नजरों से भी गैर न देखा,क्या कहते हो हे भगवान।

अग्नि परीक्षा मैं अवश्य दूँगी,जब दिल में है आस।
खुद पर मुझे भरोसा है पूरा,मैं हूँगी बिलकुल पास।

तनमन से यदि शुचि होउँ,कोई गैर कभी न भाना।
हे धरती माँ ये सच है तो,मुझे अपनी गोद बैठाना।

किया प्रार्थना धरती माँ से,माँ सीता को लेने आई।
सीता को लिया गोद में, सीता धरती में गईं समाई।

पृथ्वी से पैदा हुई हैं सीता,पुन पृथ्वी में हुई विलीन।
राजा जनक की पुत्री बन,आदर्श दिखाया कुलीन।

हाहाकार मचा महल में,सब रोयें बिलखें चीत्कारें।
लव-कुश माँ की खातिर,माँ माँ माँ माँ कहें पुकारें।

श्रीराम उठे सिंघासन से,बच्चों को सीने से लगाये।
सीता के धरती में समाने से,वे हार्दिक कष्ट उठाये।

उन्हें पिता का प्रेम दिये,राजवस्त्र भी उन्हें पहनाये।
अयोध्या के राजा श्रीराम,बच्चे राजकुमार कहाये।

सुदर्शनधारी विष्णु अवतारी,लीला बहुत दिखाये।
त्रिपुरारी रुद्रावतारी हनुमान,ने दिल में राम बसाये।

बाल्मीक जी ने रचा रामायण,जग में नाम कमाये।
तुलसी दास जी राम चरित मानस रच के हैं छाये।

श्रीराम ने मानव तन में,घर,गृहस्थी वैराग्य दिखाये।
निज आचरण से श्रीराम,मर्यादा पुरुषोत्तम कहाये।

मैं कृतकृत्य”राम मानस’के,काव्य लेखन प्रसाद से।
उपजी रामभक्ति दृढ़ मुझमे,ख़ुश हृदय आह्लाद से।

श्रीराम चरित मानस में,जो आदर्श शिक्षा है मिली।
स्वयं आचरण में उतारे,तो मन की कलियाँ खिली।

श्रीराम के आराध्य हैं शंकर,शिव के आराध्य राम।
शिव अवतार हैं बजरंगी,विष्णु अवतार हैं श्रीराम।

राम राम राम राम राम,राम राम सीता राम कहिये।
जाहीं विधि राखें राम, ताहीं विधि शांति से रहिये।

जय श्री राम। जय श्री राम । जय श्री राम।

नोट :- प्रभु श्रीराम के “राम मानस” काव्य रचना हेतु मुझ जैसे एक अज्ञानी छोटे भक्त द्वारा मेरे टूटे फूटे शब्दों में रचित 108 बन्दों की यह स्वरचित मौलिक सूक्ष्म काव्य माला की एक पवित्र आहुति मैं भी “राम मानस” काव्य ग्रंथावली द्वारा अपने प्रभु श्रीराम के श्रीचरणों में सादर समर्पित कर सकूँ। इसे लिखने में यही मेरी प्रबल और हार्दिक इच्छा रही है।
आप सभी विद्वत जन मेरी त्रुटियों पर ध्यान न देकर मेरे भाव को देखने की कृपा करें। इतने पवित्र ग्रंथ का सम्पूर्ण प्रसंग एक छोटे से काव्य रचना में समाहित कर पाना संभव नहीं है। यद्यपि की मैंने मुख्य प्रसंगों को अपने इस राम मानस काव्य माला में यथोचित समावेश करने का पूर्ण प्रयास किया है,किन्तु हो सकता है कुछ विशेष प्रसंग सामने आना छूट गया हो।
उसे आप छूटा न समझें,उसे अपने हृदय में मेरी तरफ से लिखा पायें तो मैं आप का बहुत आभारी रहूँगा।
पवित्र राम चरित मानस या रामायण जैसे महाकाव्य का कुछ अंश-प्रसंग मैंने अपने शब्दों में इसे पिरोकर आप के सामने काव्य रूप में प्रस्तुत करने का एक सूक्ष्म प्रयास मात्र किया हैं।
आप सभी श्रेष्ठ व गुनी विद्वानों के कमलवत चरणों में इस विनम्र निवेदन के साथ मैं इसे सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ,कि अज्ञानतावश जो कुछ भूल हुयी हो उसके लिए अपने इस अनुज की त्रुटियों को अवश्य ही क्षमा प्रदान कर मेरा उत्साहवर्धन जरूर करेंगे।

सादर।

जय जय श्री राम।
जय जय हनुमान।
जय श्री सीता राम।

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*गजब बयार बह रही बा ग्राम प्रधानी का*

*गजब बयार बह रही बा ग्राम प्रधानी का*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

देखा कैसेन हवा चल रही बा,
आवाबा इ चुनाव प्रधानी का।

कुर्ता जैकेट टोपी व अंगौछा,
पहिन के निकले हैं रवानी मा।

घर घर चक्कर काटत बाटेन,
पावय के बरे वोट प्रधानी मा।

पैरन मा शीश झुकावत बाटेन,
जीता चाहैं नेता ये प्रधानी मा।

भूखे प्यासे टहलैं सबै से मिलैं,
तनिकौ फ़िक्र न दानापानी का।

एकै लक्ष्य बना बाटै हम कैसेन,
पहुँची सब घरघर के दलानी मा।

काका-काकी बाबा-आजी से,
झूठ फुरा कह बात बनानी बा।

कालोनी एक तोहका हम देबै,
इंडिया मार्का हियाँ गड़ानी बा।

राशन कार्ड व जॉब कार्ड मा,
कुछ यूनिट व काम बढ़ानी बा।

गेहूँ चाउर चीनी सब कुछ देबै,
बस तोहके हमय जितानी बा।

वृद्धा पेंशन विधवा पेंशन सब,
कुछ लगवउबै हम प्रधानी मा।

हरेक घरा मा उजियारा लउबै,
जितबै जौ अबकी प्रधानी मा।

तोहरे घरे तक खड़ंजा बिछवैबै,
सब औअल ईंट नई लगानी बा।

इज्जत घर भी हम बनवाय देब,
बहू बिटिया कै लाज बचानी बा।

बीमारी में दवा करवउबै तोहरा,
फल फूल दूध सबै दिलानी बा।

लरिकन का स्कूले भेजउबै हम,
कापी किताब सबै दिलानी बा।

बिटिया कै शादी जौ पड़िहै तौ,
दान दहेज़ भी हमैं लिखानी बा।

गाँव का अपने चमकाय देब हम,
बस तोहरा का हमैं जितानी बा।

खाब्या पीब्या जउन चीज दै देबै,
जौने से मनब्या तोहैं मनानी बा।

हे अम्मा दीदी काकी भौजी दादी,
साड़ी तोहका देबै इहै बतानी बा।

बाबा बाबू काका भइयौ खातिर,
कुर्ता पायजामा धोती आनी बा।

गजब पायलगी दुआ वंदगी होवै,
चच्चा से ठोंके रोज सलामी बा।

नेतवन अइसेन ललचावत बाटें,
जैसेन ललचायेंन हर प्रधानी मा।

घर घर मा कुछ का फोर लिहेन,
बस अब दारू गोस मंगानी बा।

कुछ फिटफिटिया से टहर रहेन,
चारपहिया से धौंस जमानी बा।

सबै तौ खुदका हरिश्चन्द बतावैं,
जनता तौ केवल बहकानी बा।

ना जाने ई का खाय के रहत हैं,
झूठै बोलैं इनकै इहै निशानी बा।

सरकार देय न देय कुछू हम देबै,
इहै तौ वोटर दिल में बैठानी बा।

हलुआ पूड़ी लड्डू पेड़ा खवैहैं,
मुर्गामटन बिरियानी मंगानी बा।

देशी व अंग्रेजी दारू पिलवइहैं,
इहै जाल मा तौ हमैं फसानी बा।

देखौ तौ कैसेन हवा चल रही बा,
माहौल जउन अहय प्रधानी का।

हर चौराहे चौपाल मा देखौ अब,
खुसुर फुसुर कर वोट बढ़ानी बा।

कौनो जतन नेता जीत जौ जैहैं,
तब तो असली रूप दिखानी बा।

एक तसला सीमेंट दस बालू से,
नाली बनिहैं पीले ईंट लगानी बा।

बोरिंग इ 60-70 पर ही करवैहैं,
रुपिया जौ जेबे इन्हें बचानी बा।

1व6 कै ही प्लास्टरवा इ करवैहैं,
खड़ंजा उखाड़ा ईंट लगानी बा।

नहर तलाव सबै पुरान खोदवैहैं।
कगजे पै नया काम दिखानी बा।

एकौ ना स्कूल अस्पताल बनइहैं,
नइका चकरोड बना दिखानी बा।

वृक्षारोपण कबहूँ न सब करवैहैं,
चोक नाली सफाई दिखानी बा।

कम्बल जाड़ा मा कुछय बटवैहैं,
जेबे में बाकी सबै मालपानी बा।

ग्रामसेवक सेक्रेटरी लेखपाल इ,
मिल के लुटिहैं सब प्रधानी मा।

कुछ तौ बहुत नेक दिल हैं होते,
अपने जेबे से लगावैं प्रधानी मा।

नाम व पुण्य कमाय के खातिर,
कुछ गलत करैं न उ प्रधानी मा।

सोच समझ के वोट देह्या भइया,
बेकारै वोटवा जाय न पानी मा।

लेह्या न केहू से दुश्मनी तू भइया,
राह चलै बा गावैं मा बितानी बा।

पीढ़ी दर पीढ़ी कै बैर होय जावै,
खेते मेड़े कै झगड़ा न उठानी बा।

अच्छे अच्छे दोस्त शत्रु बन जावैं,
अक्सर चुनाव में जान गंवानी बा।

हरदल हर नेता सब साथे मिलिहैं,
काहे बेकारै पड़ी हम परेशानी मा।

एमएलए एमपी कै भी बात वहै,
बड़ मनमुटावी चुनाव प्रधानी बा।

सोच समझ के काम केह्या सब,
लालच तनकौ नहीं दिखानी बा।

ई लालच मा पड़ब्या जौ समझौ,
अक्ल चली गै तोहार नादानी मा।

केहू काम ना अइहैं हरदम तोहरे,
पड़ब्या जौ तू कभौं परेशानी मा।

अपने दिमाग से काम लेह्या सब,
सबै के साथे मिल के बितानी बा।

रोजै इ बयार बही ना जौंन अहै,
इहै चुनाव बाद इसे तो जानी बा।

पाँच वर्ष की फिर फुर्सत मिलिहै,
भाई चारा प्रेम से शेष बितानी बा।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)

मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)
2*9 (मात्रिक बहर)
(पदांत ‘ना पहचानी’, समांत ‘आ’ स्वर)

दूजों के गुण भारत तुम गाते,
अपनों की प्रतिभा ना पहचानी।
तुम मुख अन्यों का रहे ताकते,
पर स्वावलम्बिता ना पहचानी।।

सोने की चिड़िया देश हमारा,
था जग-गुरु का पद सबसे न्यारा।
किस हीन भावना में घिर कर अब,
वो स्वर्णिम गरिमा ना पहचानी।।

जिनको तूने उपदेश दिया था,
असभ्य से जिनको सभ्य किया था।
पर आज उन्हीं से भीख माँग के,
वह खोई लज्जा ना पहचानी।।

सम्मान के’ जो सच्चे अधिकारी,
है जिनकी प्रतिभा जग में न्यारी।
उन अपनों की अनदेखी कर के,
उनकी अभिलाषा ना पहचानी।।

मूल्यांकन जो प्रतिभा का करते,
बुद्धि-हीन या पैसों पे मरते।
परदेशी वे अपनों पे थोप के’,
देश की अस्मिता ना पहचानी।।

गुणी सुधी जन अब देश छोड़ कर,
विदेश जा रहे मुख को मोड़ कर।
लोहा उनने सब से मनवाया,
पर यहाँ रिक्तता ना पहचानी।।

सम्बल विदेश का अब तो छोड़ो,
अपनों से यूँ ना मुख को मोड़ो।
हे भारत ‘नमन’ करो उसको तुम,
अब तक जो सत्यता ना पहचानी।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा)

गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा)

देश हमारा न्यारा प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।
सब देशों से है यह प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।।

उत्तर में गिरिराज हिमालय,
इसका मुकुट सँवारे।
दक्षिण में पावन रत्नाकर,
इसके चरण पखारे।
अभिसिंचित इसको करती है,
गंगा यमुना की जलधारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा —–।।

विंध्य, नीलगिरि, कंचनजंघा,
इसका गगन सजाते।
इसके कानन, उपवन आगे,
सुर के बाग लजाते।
सुरम्य क्षेत्रों की हरियाली,
इसकी है जन-मन की हारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा —-।।

उगले कनक सम शस्य फसल,
इसकी रम्य धरा नित।
इसकी अलग विविधता करती,
जन जन को सदा चकित।
कलरव से पशु-पक्षि लगाएँ
यहाँ स्वतन्त्रता का नारा ।
देश हमारा न्यारा प्यारा —-।।

सब जाति धर्म के नर नारी,
इस में खुश हों पलते।
बल, बुद्धि और सद्विद्या के,
स्वामी इसपे बसते।
इनके ही सद्गुण के बल पर,
आश्रित देश हमारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा —-।।

न्योछावर कर दें सब कुछ,
हम इस के ही कारण।
बलशाली बन हम दुखियों के,
दुख का करें निवारण।
भारत के नभ में विकास का,
चमकाएं ध्रुवतारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा —-।।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया




मूल निवासी – आस्ट्रेलिया के

कहा जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में चार में से एक व्यक्ति प्रवासी है या विदेश से आकर बसा है । अगर इतिहास की घड़ी की सुइयों को १८वी शताब्दी तक पीछे घुमाया जाय तो यहाँ के अँगरेज़ भी प्रवासी हैं क्यों कि वे इंगलैंड से आ कर बसे हैं। केवल यहाँ के आदिवासी जो २.७ % हैं वे ही मूल निवासी है। पर विकासवाद के विशेषज्ञों के लिये  निहित  अर्थों में वे भी प्रवासी हैं। इन आदिवासियों का उद्गम वैज्ञानिकों के लिये बड़ा रूचिकर विषय रहा है। लगभग ५०,००० वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया में यहां के मूल निवासियों का   पदार्पण हुआ था ऐसा “अफ्रीका से बाहर” वाले एक सिद्धान्त के अनुसार माना जाता है। इनके जीन   प्राचीन यूरेशियन जाति से मिलते हैं। इस मामले में नये नये अध्ययन सामने आ रहे हैं।

भाषा की उत्पत्ति होने के समय से  सन १७८७ के पहले तक यहाँ इन आदिवासियों में लगभग २५० भाषायें बोली जाती थी जिनमें ६०० बोलियाँ थी । आज केवल २० भाषायें बची हैं  बाकी लुप्त हो चली  हैं ।

इन आदिवासियों की संस्कृति में बहुत सी रोचक बातें है जिनमें  ‘स्वप्न’ या ’ड्रीम’   की अवधारणा का एक विशेष स्थान है  और यह स्वप्न  के सामान्य अर्थ से अलग है । इसके अन्तर्गत इनके पूर्वजों की आत्मायें  मानव या अन्य रूपों में आती  हैं तथा वे जमीन, जानवर और पेड़-पौधों को आज के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तित कर के  दे देती हैं ।  ये आत्मायें विभिन्न समुदायों,  व्यक्तियों व पशु आदि अन्य प्राणियो में आपस में संबन्ध स्थापित करती  हैं । जहाँ जहाँ इनके पूर्वज यात्रा करते हैं या जिस स्थान पर रूकते हैं वे वहाँ पर नदी, पहाड़ इत्यादि बनाते हैं ।  यह काम पूरा हो जाने के बाद वे पशु , तारे या पर्वत इत्यादि में परिवर्तित हो जाते हैं । इस प्रकार यह  जगह उनके लिये पवित्र बन जाती है । यहाँ के आदिवासियों के लिये यह सारा भूतकाल समाप्त नहीं हुआ है; वह वर्तमान में भी उपस्थित है और भविष्य में भी रहेगा । इनके पूर्वजों की आत्मायें   व उनकी शक्तियां भी नष्ट नहीं हुई हैं बल्की ’स्वप्न’  समाप्त होने के बाद उनमें केवल  रूप-परिवर्तन हुआ है । ये कहानियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुना कर  नई पीढ़ी को हस्तान्तरित की जाती हैं । अगर हम इन ’स्वप्नों’ का भारत के आदिवासियों की गाथाओं  से अथवा वैदिक-रचनाओं से तुलना करने बैठें  तो इस तुलनात्मक अन्तर की सतह से कितना गहरा साम्य उजागर होगा !

 

और क्यों न हो! एक आनुवांशिकी शोध  बताती हैं कि ओज़ी आदिवासियों के डी. एन. ए. में सात जीन-समूह  अन्यत्र केवल भारत की ही २६ आदिवासी जातियों में पाये गये जो बताते हैं कि उन्होने  ऑस्ट्रेलिया तक का सफर एशिया के “दक्षिणी मार्ग” याने भारत से होकर तय किया था।

 

 अब कला के विषय में बातचीत की जाय। किसी देश में एक विकसित चित्रकला के अवशेष  मिलें किन्तु विकास की प्रक्रिया के कोई चिन्ह न मिलें तो  इसे क्या समझा जाय? कि यह कला दूसरे देश से आयातित की गई है। ब्रॉडशॉ चित्रकारी  इसी का एक ज्वलन्त उदाहरण है। इसे प्राचीन दुनिया के सात आश्चर्यों में गीना जाता है। एक ओर जहाँ वांजीना चित्रकला धार्मिक  कृत्य के लिये उपयोग में आती थी वहाँ दूसरी ओर  ५०,००० पुरानी  ब्रॉडशॉ चित्रकला सामाजिक स्तर पर उपयोगी थी । देखा गया है कि  वान्जीना एक  सरल पैंटींग है जो नकल करने में भी आसान थी पर ब्राडशॉ पेन्टींग बड़ी जटील व आश्चर्यजनक रुप से विकसित थी पर जैसा कि उपर कहा गया है इसके विकास की सीड़ियां नहीं मिलती अत: यह माना जाता है कि यह कला कहीं से लाई गई है।

 

आधुनिक काल में चलें तो भारतीय इतिहास की तरह  अंग्रेजों द्वारा आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के शोषण की बड़ी लम्बी कहानी है । जब यहाँ अंग्रेज व यूरोपनिवासी बस्तियां बसा रहे थे तो वे साथ में चेचक के कीटाणु भी लाये थे । माना जाता है कि इन्होने जानबूझ कर कंबल बाँट कर तथा अव्यवस्था से आदिवासियों में किटाणु फैलाये । बेचारे आदिवासी इन किटाणुओं का माजरा समझ न पाये;  इलाज क्या करते? फलत: पहले तीन सालों में चेचक से स्थानिय दारुग  लोगों की जनसंख्या केवल १०% रह गई जब कि पहले इनकी संख्या ५०,००० के लगभग थी  । 

 

अंग्रेजों के आने के बाद आदिवासियों की काफ़ी जमीन छिन ली गई थी । न्यायालय तक  ने १९७१ में आस्ट्रेलिया  को  टेरा नलिस  घोषित किया जिसका अर्थ यह है  कि अंग्रेजों के यहाँ आने के समय आदिवासियों में जमीन की माल्कियत  की कोई अवधारणा नहीं थी अत: ब्रिटिश शासन द्वारा हथियाई गई जमीन का कोई मालिक न होने से ऐसा करने का  पूरा हक था । इससे बड़ा झूठ शायद कोई हो ।  जरा सी सतह कुरेदने से बात साफ़ हो जाती है कि जमीन से उनका रिश्ता भौतिक तो था ही, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक भी था व है । १९९२ में जाकर माबो केस में ’टेरानलीस’ अवैध ठहराया तथा आदिवासियों में जमीन के स्वामित्व की अवधारणा स्वीकार की गई । इस फैसले में यह भी कहा गया कि जमीन का स्वामित्व तब ही स्वीकार  किया जायगा यदि विवादग्रस्त भूमि से आदिवासियों का सांस्कृतिक संबन्ध अब तक कायम हो।

 

इस का परिणाम यह हुआ कि अधिकांश इतिहासकार  आदिवासियों के पक्ष में सामग्री ढुंढने में मशगुल हो गये। ग्राम वाल्श नामक इतिहासकार ने जो खोज की वह इस माबो की धारणा के पक्ष-विपक्ष से उपर थी पर विपक्ष में दिखाई देती थी अत: उस बेचारे को  रेसिस्ट समझा गया। यदि  तथ्य कहते हैं कि ब्राडशॉ पेन्टींग बाहर से लाई गई तो इसमें इतिहासकार क्या करे?  यदि ये आदिवासी पहले के आदिवासियों को जीत कर बसे थे तो बसे थे। आँख मूंदने से न तो सत्य  को बदला जा सकता है और न ही इससे अँगरेज़ी हूकुमत की नृशंसता  को न्यायपरक ठहराया जा सकता है।

 

इन आदिवासियों के साथ हुये अत्याचार की दास्तान बड़ी दर्द भरी है ।  इतना प्रशासनिक संकेत तो केवल उपरी सतह को कुरेदता है कि १९६२ से पहले संघीय चुनावों में इन्हे वोट देने का अधिकार नहीं  था व कुछ राज्यों में इनके वोट देने में जानबूझ कर अड़चन रखी गई थी । १९६७ में जाकर इनके बारे में राज्य सरकार के मनमाने कानून बदलने का केन्द्र की सरकार को अधिकार मिला और  तब राष्ट्रिय-जनगणना में इन्हें जगह मिली । मूल गहराई की बात लें तो  ’चुराई गई पीढ़ी ’ या स्टोलन जनरेशन – जिसकी तो चर्चा करना बड़ा दुखदाई  है।  आँकड़े बताते हैं कि १९१० से १९७० के बीच में लगभग एक लाख आदिवासियों के बच्चों को पुलिस व जनकल्याण अधिकारी जबरदस्ती छीन कर ले गये  जिनमें से कुछ श्वेत नागरिकों को गोद दे दिये गये। उनसे निम्न स्तरीय घर के काम करवाये व अपने माता-पिता से दूर वे क्रूर  यन्त्रणा के शिकार हुये । दुख और आश्चर्य इस बात का है कि यह काम नियमबद्ध हुआ क्यों कि उस समय तक  ऐसे  नियम थे कि इन बच्चों को, विशेष कर मिश्रित जाति के बच्चों को माताओं से दूर रखा जाय जिससे वे श्वेत-संस्कृति की  मूल धारा में मिल जायं । मूल धारा में मिलाने के नाम पर माताओं से बच्चे छीन लेना और  उनकी पहचान और संस्कृति को मिटा कर अपरिचित वातावरण में बर्बरता का व्यवहार करना – कितना दुखप्रद रहा होगा! १३ फरवरी २००८ को आस्ट्रेलिया के प्रधान-मन्त्री ने ’चुराई पीढ़ी’ से त्रस्त आदिवासियों एवं पूरे राष्ट्र के नाम संदेश में औपचारिक  रूप से  ऐतिहासिक-भूल स्वीकार की  । अब देखना यह है आदिवासियों से पुन: मैत्री (reconciliation )  की दिशा में यह कदम ठोस साबित होता है या कोरी औपचारिकता बन कर रह जाता है ।

 




पूछते हो मैं कौन हूं….

मैं अर्पण हूं,समर्पण हूं,

श्रद्धा हूं,विश्वास हूं।

जीवन का आधार,

प्रीत का पारावार,

प्रेम की पराकाष्ठा,

वात्सल्य की बहार हूं।

तुम पूछते हो मैं कौन हूं?

 

मैं ही मंदिर, देवप्रतिमा।

मैं ही अरुण, अरुणिमा।

मैं ही रक्त, रक्तिमा।

मैं ही गर्व ,गरिमा।

 

मैं ही सरस्वती, ज्ञानवती

मैं ही बलवती, भगवती

मैं ही गौरी, मैं ही काली

मैं ही उपवन,मैं ही माली।

 

मैं ही उदय, मैं ही अस्त,

मैं ही अवनि ,मैं ही अम्बर।

मैं अन्नपूर्णा, सर्वजन अभिलाषा

करुणा, धैर्य, शौर्य की परिभाषा।

मैं ही मान, मैं ही अभिमान

मैं ही उपमेय, मैं ही उपमान।

मैं ही संक्षेप, मैं ही विस्तार

मैं ही जीवन, जीवन का सार।

 

मैं भूत, भविष्य, वर्तमान हूं,

हर तीज- त्योहार की आन हूं

सुनी कलाई का अभिमान हूं।

और..तुम पूछते हो मैं कौन हूं”?

 

तो सुनो, अब ध्यान लगाकर..

मैं पापा की परी, मां की गुड़िया,

दादा की लाडो,दादी की मुनिया।

काका की गुड्डो, काकी की लाली,

भैया की छुटकी, दीदी की आली।

 

मैं ही रौनक, मैं ही सबकी शान हूं।

मैं ही दानी, मैं ही सबसे बड़ा दान हूं।

मैं ही सबसे बड़ा दान हूं………….।

अब तो समझ गए कि मैं कौन हूं….?

 

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237

 
 



वर्तमान में मर्यादा और राम

 

कहते भगवान राम को
करते शर्मशार भगवान को।।
त्रेता में रावण ने सीता का हरण किया।
बहन सूपनखा की नाक कान कटी
नारी अपमान में नारी का हरण किया।।
ना काटी नाक कान नारी सीता का
आदर सम्मान किया।।
चाहता रावण यदि सीता के नाक कान काट प्रतिशोध चुका सकता था जीवन की रक्षा कर सकता था।।

रावण कायर नही राम को
दी चुनौती आखिरी सांस तक
ना मानी हार ।।
बहन सम्मान में
राज्य परिवार समाज सबका
किया त्याग समाप्त।।
राम रावण युद्ध का सूपनखा
की नाक कान हीआधार।।
ना राम जानते रावण को ना
रावण का राम से कोई प्रतिकार
सरोकार।।
रावण अट्टहास करता युग का
पतन हुआ अब कितनी बार।।

द्वापर में भाई दुर्योधनन
भौजाई का चिर हरण करता।।
भरी राज्य सभा मे द्रोपदी
नारी मर्यादा को तहस नहस
करता।।
पति परमेश्वर ही पत्नी का
चौसर पर दांव लगाता कितना
नैतिक पतन हुआ ।। रावण
लज्जित कहता कैसे मानव
कैसा युग राम कहाँ महिमा
मर्यादाओ का युद्ध कहाँ।।

स्वयं नारायण कृष्ण द्रोपदी
मर्यादा का मान धरा।
कब तक आएंगे भगवान
करने मानवता की रक्षा।।
रावण कहता बड़े गर्व से
राम संग भाई चार ।।

राम लखन बन में भरत शत्रुघ्न
कर्म धर्म तपोवन साथ।।

द्वापर में भाई भाई का शत्रु
पिता मात्र कठपुटली आँखे
दो फिर भी अंधा ।।।

पिता पुत्र
दोनों ही स्वार्थ सिद्धि में अंधे
रिश्ते परिहास कुल कुटुम्ब
मर्म मर्यादा का ह्रास।।
रावण कलयुग देख बदहवास
रावण को स्वयं पर नही
होता विश्वाश।।
कलयुग में तो रावण का
नही नाम निशान ना राम
कही दृष्टिगोचर चहुँ ओर भागम
भाग हाहाकार।।
एक बिभीषन से रावण का सत्यानाश
अब तो हर घर परिवार में विभीषण
कुटिलता का नंगा नाच।।
महाभारत में तो भाई भाई आपस
में लड़ मरके हुए समाप्त।
भाई भाई का दुश्मन पिता पुत्र
में अनबन परिवार समाज की
समरसता खंड खंड खण्डित राष्ट्र।।
बृद्ध पिता बेकार पुत्र समझता भार
एकाकीपन का पिता मांगता
जीवन मुक्ति सुबह शाम।।
घर मे ही बहन बेटी
नही सुरक्षित रिश्ते ही रिश्तो की अस्मत को करते तार तार।।
बदल गए रिश्तों के मतलब
रिश्ते रह गए सिर्फ स्वार्थ।।
एक विभीषण कुलद्रोही दानव
कुल का अंत।
घर घर मे कुलद्रोही मर्यादाओ का
क्या कर पाएंगे राम स्वयं भगवंत।।
अच्छाई क्या जानो तुम भ्रष्ट ,भ्रष्टाचारी
अन्यायी ,अत्याचारी शक्ति शाली
राम राज्य की बात करते आचरण
तुम्हारा रावण दुर्योधन पर भारी।।

रावण के मरने जलने का
परिहास उड़ती कलयुग
कहता रावण गर्व से राम राज्य तो ला नही सकते ।।।

रावण की जलती ज्वाला से
राम नही तो रावण की अच्छाई
सीखो।।
शायद कलयुग का हो उद्धार
डूबते युग समाज मे मानवता
का हो कुछ कल्याण।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




नारी तू न्यारी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु

नारी है तू नारी है तू नारी है
दुनियाँ तुझ पे वारी है वारी है।।
तुझसे दुनियाँ सारी है दुनियां सारी है
शक्ति की देवी ममता की माता है जननी नारी है।।
प्रेम सरोवर है क्रोध में अंगारी है
चपला, चचल बाला सुकुमारी है।।
देवो की देवी देव शक्ति अधिस्ठात्री है
रिश्तो की जननी बिटिया दुलारी है।।
छाया माया सत्य सत्कारी है
बहन भगिनी माँ बेटी रिश्तो की
मर्यादा ,गरिमा, महिमा संचारी है।।
छमा ,दया की सागर अमृत की
गागर युग मर्म संसारी है।।
तेरे होने से दुनिया ये सारी है
अन्याय भी सहती समाज का
संयम धैर्य को धारण जग कल्याणी है।।
कोमल हृदय तुम्हारा
पहुचाए कोई हानि अतिसय
करुणा कर दे देती छमा।
यदि कोई मर्यादा की सीमाएं
देता लांघ काल अवतारी है।।
कोमल कली किसलय तेरे
रूप जब कोई करता दुःसाहस
प्रयास पुरुष प्रधान समाज
की कमजोरी लाचारी है।।
बेबस दिन हीन लाचार तू नही
युग पथभ्रष्ट शर्म शर्मिंदा कलंक
कलंकित दुनियाँ सारी है
तेरे संग जब हो अत्याचार
मच जाता हाहाकार तेरी हाय
हद में जल जाता पुरुष प्रधान समाज।।
समाज का अहंकार मृत्यु तू
महाकाल रणचण्डी काली है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




बेटी और नारी अंतराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु

1–बेटी और नारी

नन्ही परी की किलकारी
गूंजे घर मन आँगना।।
कहता कोई गृहलक्ष्मी
आयी घर आँगन की गहना।।
बेटी आज बराबर बेटों के
फर्क कभी ना करना।।
बेटी बेटा एक सामान
बेटी बेटों की परिवरिश
दो आँखों से ना करना।।
पड़ती बेटी बढती बेटी
अभिमान सदा ही करना।।
शिक्षित बेटी सक्षम बेटी
परिवार समाज के संस्कार
का रहना।।
बेटियां हर विधा हर क्षेत्र में
आगे बढ़ती देख रही है दुनियां
शिक्षित समाज में फिर भी
बेटी को संसय भय में पड़ता
है जीना।।
माँ बाप सुबह शाम ईश्वर से
करते प्रार्थना ।।
विद्यालय से शकुसल वापस
आ जाए बेटी तो कहते शुभ
दिन है अपना।।
नगर गली चौराहे पे नर भक्षी
पिचास गिद्ध दृष्टि से कब
कर दे दानवता का नंगा नाच
बेटी का मुश्किल हो
जाए जीना।।
बेटी अनमोल रत्न है जजनी
मानव की नारी की कली कोमल।।
आवारा भौरों का संस्कार से क्या
लेना देना।।
समाज को शर्मसार कर देते
बेटी नारी मर्यादा का तार तार
करते।।
पुरुष समाज के आहंकार
विकृत होता समाज ।।
टूट जाती मर्यादाये मिट जाता
लोक लाज।।
मानवता की पीड़ी में कही कभी
दानवता की सुनाई दे जाती पद
चाप।।
बेटी नारी की जिम्मेदारी
का एहसास ।।
बेटी शक्ति स्वरुप नारी
विराट रूप।।
बेटी सक्षम शिक्षित नारी
समाज राष्ट्र की गौरव मान।।

2–वर्तमान का परिवेश और बेटी नारी

विकसित होते पल प्रहर
समाज संस्कार पर प्रश्न
अनेको।।
शिक्षा मर्यादा संस्कार का
आधार ।।
आवारा भौरों की शक्ल में
नर भक्षी और शैतान ।।
आवारा भौरों को आकर्षित
करता वर्तमान का परिवेश
समाज।।
दुःशासन क्या चीर खिंचेगा
वस्त्र नहीं पुरे तन पे पाश्चात
श्रृंगार।।
सुपनखा के कारण हुआ था
राम रावण का भीषण संग्राम।।
सुपनखा अब फैसन है
रावण जैसा भाई नहीं है आज।।
कृष्णा किसकी लाज बचाये
बचा नहीं अब लोक लाज।।
बेटी अस्मत इज़्ज़त नहीं
सुरक्षित घर में
रिश्तों की मर्यादा आये दिन अब टूटती
भय दहसत में बेटी पल पल
पल घुटती मरती।।
घर बाहर चारो और बेटी
नहीं सुरक्षित।।
दोष सनाज का बेटी बेटो
की हया लाज अब छुटी।।
बेटी नारी नव दुर्गा अवतारी
दुष्ट दलन की दुर्गा काली।।
बेटी बेटो में हो सभ्यता
की समझदारी नकल
नहीं किसी की अपनी
पहचान की हो बेटी नारी।।
पुरुष समाज में दलित
दासता की ना हो बेटी
नारी मारी।।
बेटी की जाती धर्म तो मात्र
शिक्षा सक्षम मजबूत इरादों
की बेटी नारी।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर