*”राम मानस” पर 108 बन्दों का एक सूक्ष्म मानस काव्य*
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रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,हैं त्रेता युग के अवतारी।
जन्मे अयोध्या में,पिता दशरथ कौशल्या महतारी।
ठुमुक चलें रामचन्द्र,बजे पैजनियाँ करें किलकारी।
जग में मानव रूप धर,अवतरित हुए सुदर्शनधारी।
गुरुकुल में शिक्षा ली है,गुरु विश्वामित्र से श्री राम।
सूर्यवंश की शान बढ़ाये,कर्मो से श्री राम भगवान।
सीता स्वयंबर आयोजित,किये मिथिला में प्यारी।
मिथिला नरेश राजा जनक,की सीता रही दुलारी।
चारो भाई संग ले चले,गुरु विश्वामित्र ये कृपाचारी।
गुरुकुल से सीतास्वयंबर,जनकपुर पहुंचे धनुर्धारी।
राजा महाराजा देखे योगी द्वय,येहैं पीत वस्त्रधारी।
कर्ण कुंडल,गले माला,कर में धनुष,पृष्ठ बाणधारी।
ठहाका लगाये हँसे स्वयंबर में,सब राजा दरबारी।
धनुष तोड़ने आये हैं,वनवासी यह कैसे वस्त्रधारी।
हर राजा अपने नंबर पर,धनुष तोड़ने को हैं आये।
टस से मस भी करसके न,खिसिया के पीछे जाये।
श्री राम जी की बारी जब,धनुष तोड़ने की आयी।
उठा धनुष शिवजी का,दो टुकड़ा कर दिया भाई।
पुष्प वर्षा के बीच स्वयंबर में,फिर सीता जी आईं।
हाथों में वर माला थी जो,श्री राम जी को पहनाईं।
श्रीराम ने भी एक माला,सीता जी को है पहनाई।
सफल रहा सीता स्वयंबर,हर दिल में ख़ुशी छाई।
गुरु कृपा से कर विवाह,चारो भाई अयोध्या आये।
फूलों की वर्षा से स्वागत,राजमहल नगरी में पाये।
सीता उर्मिला मांडवी श्रुतिकीर्ति को लाये दशरथ।
बहुएँ पाके खुश कौशल्या,कैकेयी,सुमित्रा दशरथ।
राजमहल में वैवाहिक खुशियों से आई थी बहार।
ऐसी नजर लगाई किसी ने,बदले कुछ के व्यवहार।
कैकेयी को दिए थे,राजा दशरथ ने जो 2 वरदान।
उचित समय पर मैं लेलूँगी,आपके दिये ये वरदान।
मंथरा ने कान भरा,बहकावे में आईं रानी कैकेयी।
कोप भवन जा पड़ी रहीं,दशरथ की रानी कैकेयी।
महाराजा को पता चला,वे गए मनाने को हैं भाई।
कैकेयी कहीं आप के दिये, वरदान की घड़ी आई।
राजा कहे बोलो तुम्हें दूँगा,चाहिए तुम्हें क्या भाई।
दशरथ से राम हेतु 14वर्ष,का वनवास माँग आई।
दशरथ ने वचन दिया एवमस्त,अब तो ख़ुशी पाई।
रघुकुल में रीति यही,प्राण जाये पर वचन न जाई।
प्राणों से प्यारे राम को,चौदह वर्षीय दिए वनवास।
वनगमन से पूर्व राम,पिता के दर्शन को आये पास।
दुःखी ना हों पिताजी,आज्ञा का होगा पूरा पालन।
राजसी वस्त्र छोड़,वनवासी का वस्त्र किये धारण।
पैदल ही वन को चल पड़े, श्री राम सीता लक्ष्मण।
कुछ दूर साथ में गये मंत्री,सुमंत अयोध्या के जन।
पुत्र वियोग में बीमार हुए,पिता को हुआ है क्लेश।
राम के याद में व्याकुल,दशरथ जी गये स्वर्गवास।
अयोध्या में शोक फैला, दुःखी सभी नर एवं नारी।
रानियाँ व राज कुमार, शोकाकुल हैं मंत्री दरबारी।
कैकेयी ने पुत्र मोह में, सिंघासन पर भरत ही बैठें।
बनें अयोध्या के वे राजा,ननिहाल से जब वे लौटें।
इसी भूल से सबकुछ गड़बड़,विपदा आई है भारी।
पितृ मृत्यु की खबर से,दौड़े आये भरत मन भारी।
भरत गये भाई राम से मिलने,बतलाये दुःख भारी।
विह्वल दुःखी राम लौटें ना,पितृ इच्छा से लाचारी।
गद्दी पर नहीं बैठूँगा भइया,ये मेरा अधिकार नहीं।
बिना आपके अयोध्या,बिलकुल भी स्वीकार नहीं।
श्रीराम ने भरत को प्यार किया,व उन्हें समझाया।
निज चरण पादुका देके,भरत को वापस लौटाया।
चरण पादुका रखे गद्दी पर,14वर्ष राज्य संभाला।
श्रीराम प्रतीक्षा में,उन बिन भरत ने कार्य संभाला।
मारीच ने स्वर्ण मृग रूप में,सीता को है ललचाया।
राम को भेजा लेने मृग,सीता को बहुत था भाया।
राम बाण से घायल मृग,लक्ष्मण कहके चिल्लाया।
लक्ष्मण थे सीता रक्षा में,उन्हें जंगल में है बुलाया।
सीता को देख अकेले,रावण भिक्षा मांगने आया।
लक्ष्मन रेखा से बाहर आ,भिक्षा दो यह बहकाया।
साधू आदर में भिक्षा देने,सीता ज्यों बाहर आई।
रावण पकड़ा सीता को,कुटिलता में विजय पाई।
दुष्ट रावण उड़न खटोला में,सीता लेके चल दिया।
साधु रूप धर आया रावण,सीता का हरण किया।
दैत्य संग सीता को देख,जटायु लड़ा व गया भिड़।
रावण के प्रहार पंख काटे,घायल हो वह गया गिर।
सीता दिखी न पंचवटी में,श्रीराम विह्वल हैं नयनी।
हे खग-मृग,मधुकर श्रेनीं,तुम देखे सीता मृगनयनी।
मिला राह में श्रीराम को,घायल जटायु ने बताया।
दुष्ट रावण सीता संग लेकर,उड़न खटोला उड़ाया।
वन में नल,नील,अंगद,जामवंत,सुग्रीव की है सेना।
राम प्रेमी माता शबरी,खिलाये जूठे बेर हाँके बेना।
वनवासी राम जी अपने,लीला से बहुतों को तारा।
मारीच,ताड़का,दैत्य मारे,कितनों राक्षस को मारा।
भाई की पत्नी पर बुरी नजर,वाले बाली को मारा।
अहिल्या का उद्धार किये,निषाद राज को है तारा।
हनुमान लंका धाये,माँ सीता का पता लगा आये।
त्रिजटा जैसी एक राक्षसी,सीता की सेवा में पाये।
अशोक वाटिका उजाड़ी एवं लंका में आग लगाई।
राम भक्त वहाँ एक मिले,रावण के विभीषण भाई।
विभीषण ने रावण को, लख लख बार समझाया।
रावण ने तबभी सीता को,श्रीराम को ना लौटाया।
बना योजना लंका पे करेगें,वानरसेना अब चढ़ाई।
रामेश्वरम समुद्र तट पर,श्रीराम ने शिवलिंग बनाई।
शिवजी की पूजा की,श्रीलंका जाने को पुल पालें।
श्रीराम लिख पत्थर पर,सब वानर समुन्द्र में डालें।
लगे तैरने सभी पत्थर,आपस में वे जुड़ने भी लगे।
पुल बनके तैयार होगया,सब उसपे चलने भी लगे।
पहुंचे श्रीलंका में श्रीराम, वानर सेना भी ले साथ।
राम भक्त विभीषण का,वहाँ पे पाया सच्चा साथ।
हर एक राक्षस लड़ने आये,मायावी रूप दिखाये।
राम-लक्ष्मण के वाण के आगे,कोई टिक न पाये।
लक्ष्मणजी मूर्छित हुए,मेघनाथ के शक्तिबाण लगे।
वैद्यसुषेन दवा कहे,वीर हनुमान संजीविनी ले उड़े।
सुषेन व संजीविनी बूटी ने,लक्ष्मण के प्राण बचाये।
तब जाके कहीं श्रीराम के,प्राण में ये प्राण हैं आये।
जंग हुई अहिरावण,कुम्भकरण,मेघनाथ को मारा।
अंत समय रावण को भी,मेरे प्रभु श्री राम ने मारा।
विभीषण को श्रीलंका के सिंघासन पर है बैठाया।
लौटे सकुशल सीता को लेकर,अपने गले लगाया।
अयोध्यावासी पुष्प वर्षा कर,अपनी ख़ुशी जताये।
श्रीराम के वापस लौटने पर, असंख्य दीप जलाये।
खुशियाँ ही खुशियाँ छाई थी,अयोध्या में चहुंओर।
प्रभु श्रीराम को पाकर, नगरवासी हुए भावविभोर।
सब राज्यों से आये राजन, नगरवासी हैं आमंत्रित।
राजतिलक की हुई तैयारी,हर राजा हुए आमंत्रित।
अयोध्या राज्य में हुआ, श्रीराम का राज्याभिषेक।
खुश हुए नगरवासी पाकर, एक महान राजा नेक।
राज सिंघासन पर बैठे हैं,प्रभु श्रीराम जी धनुर्धारी।
श्रीराम दरबार की पूजा,करते घर हैं सब नर नारी।
राम दर्शन को सबहैं पहुंचे,महल में अयोध्यावासी।
राज महल में पहले जैसे,रही न अब कोई उदासी।
श्रीराम ने गुप्तचर छोड़े,नगरी का हाल तो लाओ।
कौन रह रहा कैसे,क्या कह रहा,मुझे ये बतलाओ।
गुप्तचर आकर सब हाल बताये,सब कुछ है ठीक।
हर कोई है ख़ुश रह रहाहै,होकर नगरी में निर्भीक।
श्रीराम मंत्री संग वेश बदल,खुद किये नगर भ्रमण।
देखे तो एक धोबी पत्नी से,कर रहा बुरा आचरण।
ये झगड़ा राजमहल,श्रीराम के सुनवाई को आया।
दरबार में श्रीराम जी,नारी हक़ में फैसला सुनाया।
यह फैसला धोबी को,बिलकुल भी पसंद न आया।
कहा मैं राम नहीं तुम्हें रखलूँ,पत्नी को वो भगाया।
इससे गहरा आघात पहुँचा, प्रभु श्रीराम के मन में।
सीता को महल से निकाल,पुनः भेज दिया वन में।
जंगल में भटकती सीता को,कुछ मिलीं महिलायें।
सीता गर्भवती बेचारी,थकी हारी मुर्छित हो जायें।
बाल्मीकि आश्रम की,यह महिला सभी सदस्यायें।
वे सीता को संग साथ लिए,आश्रम में लेकर जायें।
वाल्मीक से आश्रम में,वे वन सीता का हाल कहीं।
गुरु बोले चिंता न करो बेटी,तुम सुख से रहो यहीं।
पूर्ण समय पर सीता जी को,शुरू हुई प्रसव पीड़ा।
आश्रम में बेटा जो जन्मा,दूर हुई माँ की हर पीड़ा।
वनवासी आश्रमवासी,सब खुश हुए व आह्लादित।
वाल्मीक व सीता जी भी, किलकारी से आनंदित।
गुरु नाम रखे बच्चे का, यह सीता-राम का है लव।
पैदा हुआ आश्रम में ये,अयोध्या में जलायेगा लव।
एक दिन सीता ने लव को,गुरु के पास छोड़ दिया।
वन में गई लकड़ी लेने,गुरु ने भी ध्यान लगा दिया।
ध्यान से छूटे जब गुरु तो, लव को वहाँ नहीं पाये।
सीता क्या कहेगी ये सोचके,गुरु बहुत ही घबराये।
खेलते-खेलते वन में कुछ दूर चले गये थे ये लव।
गुरु बाल्मीक ने कुश रख,मन्त्रों से बना दिये लव।
सीता जी लौटीं लकड़ी लेके,तो ये जान नहीं पाई।
मेरा है यह पुत्र या कोई, कुश से पैदा हुआ है भाई।
थोड़ी देर बाद ही लव भी,खेल कूद वापस आया।
माँ के संग अपने रूप का,कोई दूसरा बच्चा पाया।
बाल्मीक ने जब यह देखा,सीता को येबात बताई।
लव तुमसे है पैदा,यह कुश है मन्त्रों से पैदा है भाई।
अब ये द्वय भाई हैं ‘लव-कुश’,आश्रम की ये जान।
पढ़े लिखेंगें एक साथ,हर विद्या का पाएंगे ये ज्ञान।
अयोध्या में श्रीराम जी,अश्वमेद्य यज्ञ करना सोचे।
सजा संवर के पूजन कर,अश्वमेघ का घोड़ा छोड़े।
घोड़ा कोई रोक सके न,इसलिए साथ सिपाही थे।
जिसने उसे रोकना चाहा,लड़ते उससे सिपाही थे।
लव-कुश ने घोड़े को रोका,बना लिये अपना बंदी।
छोटे बच्चों का देखे साहस,येहैं वीर चतुर हरफंदी।
घोड़ा पकड़े दोनों भाई,वाल्मीक आश्रम ले आये।
माँ व गुरु से सारी बातें,यह दोनों भाई हैं बतलाये।
पहुंची बात अयोध्या ये,राम के सब भाई चकराये।
एक-एक कर के सब भाई,इनसे वहाँ लड़ने आये।
जीत सके न कोई तो,अंत में श्रीराम ही खुद आये।
लव-कुश के देख पराक्रम,मन ही मन हैं वो हर्षाये।
लव-कुश पूछें राम से,आप ही अयोध्या केहैं राजा।
कैसे राजा है आप जो,धर्म पत्नी सीता को त्यागा।
फिरभी युद्ध किये येसब,लव-कुश एवं श्रीराम जी।
बाल्मीक आये समझाये,मारें मत इन्हें जानें दें जी।
लव-कुश गुरु संग फिर,वापस आये अपने आश्रम।
माँ-गुरु दोनों से पूछें,राम कौन हैं जानना चाहें हम।
माँ ने बताया रघुकुल के, राजा राम पति हैं हमारे।
बाल्मीक बताये बच्चों,श्रीराम जी हैं पिता तुम्हारे।
बात जानकर लव-कुश, अयोध्या को गए निकल।
गाते घूमें गीत नगर में,इक कथा सुनाते हो विकल।
बच्चों के मधुर गीत स्वर,अंतःराजमहल में पहुंचा।
श्रीराम बुलाये बच्चों को,दरबारी ले के जा पहुंचा।
राम कहे बच्चों अब तुम,मुझे अपने गीत सुनाओ।
बच्चों के कथा गीत सुन,राम कहे माँ को बुलाओ।
बाल्मीक जी सीता को ले,पहुंचे अयोध्या दरबार।
सीता की पवित्रता बताये,कहे करो इन्हें स्वीकार।
श्रीराम कहे मैं एक राजा हूँ,केवल एक पति नहीं।
अग्नि परीक्षा देनी होगी,इसके बिना स्वीकार नहीं।
सीता रोईं बहुत बताईं,मेरे रोमरोम में बसे श्रीराम।
नजरों से भी गैर न देखा,क्या कहते हो हे भगवान।
अग्नि परीक्षा मैं अवश्य दूँगी,जब दिल में है आस।
खुद पर मुझे भरोसा है पूरा,मैं हूँगी बिलकुल पास।
तनमन से यदि शुचि होउँ,कोई गैर कभी न भाना।
हे धरती माँ ये सच है तो,मुझे अपनी गोद बैठाना।
किया प्रार्थना धरती माँ से,माँ सीता को लेने आई।
सीता को लिया गोद में, सीता धरती में गईं समाई।
पृथ्वी से पैदा हुई हैं सीता,पुन पृथ्वी में हुई विलीन।
राजा जनक की पुत्री बन,आदर्श दिखाया कुलीन।
हाहाकार मचा महल में,सब रोयें बिलखें चीत्कारें।
लव-कुश माँ की खातिर,माँ माँ माँ माँ कहें पुकारें।
श्रीराम उठे सिंघासन से,बच्चों को सीने से लगाये।
सीता के धरती में समाने से,वे हार्दिक कष्ट उठाये।
उन्हें पिता का प्रेम दिये,राजवस्त्र भी उन्हें पहनाये।
अयोध्या के राजा श्रीराम,बच्चे राजकुमार कहाये।
सुदर्शनधारी विष्णु अवतारी,लीला बहुत दिखाये।
त्रिपुरारी रुद्रावतारी हनुमान,ने दिल में राम बसाये।
बाल्मीक जी ने रचा रामायण,जग में नाम कमाये।
तुलसी दास जी राम चरित मानस रच के हैं छाये।
श्रीराम ने मानव तन में,घर,गृहस्थी वैराग्य दिखाये।
निज आचरण से श्रीराम,मर्यादा पुरुषोत्तम कहाये।
मैं कृतकृत्य”राम मानस’के,काव्य लेखन प्रसाद से।
उपजी रामभक्ति दृढ़ मुझमे,ख़ुश हृदय आह्लाद से।
श्रीराम चरित मानस में,जो आदर्श शिक्षा है मिली।
स्वयं आचरण में उतारे,तो मन की कलियाँ खिली।
श्रीराम के आराध्य हैं शंकर,शिव के आराध्य राम।
शिव अवतार हैं बजरंगी,विष्णु अवतार हैं श्रीराम।
राम राम राम राम राम,राम राम सीता राम कहिये।
जाहीं विधि राखें राम, ताहीं विधि शांति से रहिये।
जय श्री राम। जय श्री राम । जय श्री राम।
नोट :- प्रभु श्रीराम के “राम मानस” काव्य रचना हेतु मुझ जैसे एक अज्ञानी छोटे भक्त द्वारा मेरे टूटे फूटे शब्दों में रचित 108 बन्दों की यह स्वरचित मौलिक सूक्ष्म काव्य माला की एक पवित्र आहुति मैं भी “राम मानस” काव्य ग्रंथावली द्वारा अपने प्रभु श्रीराम के श्रीचरणों में सादर समर्पित कर सकूँ। इसे लिखने में यही मेरी प्रबल और हार्दिक इच्छा रही है।
आप सभी विद्वत जन मेरी त्रुटियों पर ध्यान न देकर मेरे भाव को देखने की कृपा करें। इतने पवित्र ग्रंथ का सम्पूर्ण प्रसंग एक छोटे से काव्य रचना में समाहित कर पाना संभव नहीं है। यद्यपि की मैंने मुख्य प्रसंगों को अपने इस राम मानस काव्य माला में यथोचित समावेश करने का पूर्ण प्रयास किया है,किन्तु हो सकता है कुछ विशेष प्रसंग सामने आना छूट गया हो।
उसे आप छूटा न समझें,उसे अपने हृदय में मेरी तरफ से लिखा पायें तो मैं आप का बहुत आभारी रहूँगा।
पवित्र राम चरित मानस या रामायण जैसे महाकाव्य का कुछ अंश-प्रसंग मैंने अपने शब्दों में इसे पिरोकर आप के सामने काव्य रूप में प्रस्तुत करने का एक सूक्ष्म प्रयास मात्र किया हैं।
आप सभी श्रेष्ठ व गुनी विद्वानों के कमलवत चरणों में इस विनम्र निवेदन के साथ मैं इसे सादर प्रस्तुत कर रहा हूँ,कि अज्ञानतावश जो कुछ भूल हुयी हो उसके लिए अपने इस अनुज की त्रुटियों को अवश्य ही क्षमा प्रदान कर मेरा उत्साहवर्धन जरूर करेंगे।
सादर।
जय जय श्री राम।
जय जय हनुमान।
जय श्री सीता राम।
रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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