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बंटवारा

पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति
अपने खुराफाती दिमाग से गांव में अपना सिक्का चलाने की कोशिशों में लगे रहते गांव में नई पीढ़ी का पदार्पण हो चुका था जिसके कारण पुरानी पीढ़ी के गांव के दबंग सत्ता धारीयो का सिंघासन हिलता नज़र आ रहा था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति की उम्र लगभग सत्तर वर्ष हो चुकी थी ठाकुर सतपाल को दुनिया छोड़े लगभग तीन वर्ष बीत चुके थे।पंडित महिमा ने एकदिन बड़े क्रोध से लाला ग़ज़पति से कहा लाला एक एक दिन हम लोग शमशान के करीब बढ़ते जा रहे है और ऐसा न हो कि गांव में हम लोग जीते जी अपना अस्तित्व खो दे लाला ग़ज़पति ने बड़े धैर्य से कहा पंडित ध्यान से सुनो मैंने तुमसे कहा था कि गांव की नई पीढ़ी बहुत तेज समझदार और प्रतिक्रिया वादी है अतः इस पीढ़ी की ताकत सोच को भारत की आजादी में मिली विरासत के सिद्धान्त पर बांट देते है जिसके लिये पहले से एक कार्ययोजना तैयार है पंडित महिमा दत्त बोले लाला अब विलम्ब किस बात का शीघ्रता शीघ्र हम अपनी योजना को धार देते हुए अंजाम तक पहुंचाते हैं लाला बोले पंडित अब तोहरे मन में लड्डू फूटी रहा बा त सुनो हमारे पास सबसे बड़ा
हथियार शोमारू प्रधान है उस्का उपयोग कर हम गांव को ही देश की आज़ादी के विरासत में मीले राजनीतिक हथियार से गांव को सांस्कृतिक विचार व्यवहार के स्तर पर
बांट देते है पंडित ने पूछा लाला उ कैसे
लाला ने बड़े इत्मीनान से कहा कि हप्ता भर बाद बसंत पंचमी है ।
पंडित महिमा ने आश्चर्य से पूछा बसंत पंचमी से का होत है लाला ग़ज़पति ने कहा ठिके कहा जाता है पंडित लोग खाये और कथा वार्ता के अलावा कुछ नही जानते बकलोल पंडित बसंत पंचमी के हर साल पूरा गांव मिलके फाग गावत है और वोही दिने होली के संवत रखात है आब पण्डित पंडिताई छोड़ जल्दी से जा सोमारू प्रधान से बोल की काल मतलब बसंत पंचमी से पांच दिन पहिले पूरे गांव के बैठक सभा बुलावे पंडित महिमा लाला ग़ज़पति से राम रहारी करके सोमारू प्रधान के पास गए शोमारू ने पंडित महिमा को देखते ही बड़े आदर भाव से आवो भगत करते हए पूछा पंडित जी आज एकाएक बहुत दिन बात का बात है सब कुशल त है आप हमें बोलवा लिए होते पंडित महिमा चतुर राजनीतिज्ञ की कुटिलता पूर्ण भाषा मे जबाब दिया अरे शोमारू तू ठहरे गाँव के प्रधान अगर हम ही लोग तोहार मतलब गांव के प्रधान कर इज़्ज़त ना कईल जाय तो ससुरा पूरे गांव वाले का करीहे छोड़ ई सब बात अब काम के बात सुन वसंत पंचमी में पाँच दिन रही गइल बा काल गांव के समूचा लोगन के सभा बोलाव शोमारू सकते में आई गए बोले पंडित जी सब ठीक ठाक त ह कौनो गड़बड़ त ना हो गइल या कौनो खास बात पण्डित महिमा अबकी बार आंख की तरेर के बोलिन शोमारू तोहे अगली बार प्रधान बने के बा कि नाही जेतना कहा जाय वोतने कर ज्यादा मीन मेख जिन निकाले शोमारू कातर अस काँपत बोले मालिक हमे अगली बार प्रधान बने के बा कि नाही ई त हम नाही जनतीं मगर ई बात हमरे संमझ में नाही आवत बा कि सगरे गांव के बैठक काहे खातिर खैर आप कहत हाईन त काल गांव के सगरे मनई जटीहन पंडित महिमा बोले आज सांझी के डुग्गी पिटवाई द फिर विहने दोबारा डुग डुग्गी बजवाई दिह ताकि गांव के बच्चा बूढ़ा जवान नौजवान सभे ये सभा मे हाजिर होवे एतना कहिके पंडित महिमा उहा से चल पड़े सीधे लाला ग़ज़पति के पास पहुंचे लाला गजपति को देखते ही बोले आव पंडित का भईल सोमारुआ मीटिंग खातिर राजी भईल पंडित बोले का बताई लाला सोमारुआ ससुरा मीटिंग खातिर बहुते नाकुर नुकुर करत रहा
मगर हमहू सारे प्रधान के औकात बताई दिए लाला काल मीटिंग होई गांव के सब मनई जुटीहै मगर लाला काल तू कौन खेला करे वाला हव लाला बोले बकलोल पंडित काल सभा मे रहब न खाली हमरे हा में हा मिलाए
पंडित अपने घर चले गए ।ईधर शोमारू प्रधान ने गांव में डुग डुग्गी पिटवाना शुरू कर दिया कि गांव के सभी बच्चे बूढ़े जवान नौजवान ठाकुर सतपाल जी के स्मारक पर ठीक बारह बजे इकठ्ठा हो डुग डुग्गी सुनते ही गांव में चर्चा शुरू हो गई कि शोमारू त प्रधान की नाव पर काठ के उल्लू हाईन मीटिंग सभा के विचार त इंकर होही ना सकत फिर का बात है कि लोग घूम फिरके पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति के साजिस की सभा मान रहे थे चुकी शोमारू सीधा साधा गवार किस्म का इंसान था जिसके कारण उसके प्रति गांव वालों की सद्भावना थी गांव वालों ने निश्चय किया कि सभी गांव बासी मीटिंग में शामिल होंगे और कौनो खुराफात पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति किहेन त अबकी बार उनके उनकी औकात में मज़ा चखावा जाई।
दूसरे दिन ठीक बारह बजे से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के पास गांव के हर उम्र के लोग इकट्ठा होंना शुरू हो गए आपस मे खुसुर फुसुर करते एक बजते बजते गांव के सभी बूढ़े बड़े बच्चे नौजवान जवान ठाकुर सतपाल के स्मारक के पास इकट्ठा हो गए पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति शोमारू प्रधान के साथ ठाकुर ग़ज़पति के स्मारक के पास एकत्र गांव वालों के बीच पहुँच गए।सर्व प्रथम शोमारू प्रधान ने अपने दोनों हाथ जोड़कर गांव वालों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते बोला आप सब लोगन क आभार आज कौनो खास बात पर चर्चा खातिर लाला गजपति और पंडित महिमा आइल हवन सारे गांव वाले एक बार एक स्वर में विरोध करते खड़े हो गए और सभा से जाने लगे फिर शोमारू ने हाथ जोड़के विनती कर गांव वालों से निवेदन किया कि आप लोग कम से कम पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति की बात सुन ले ओके बाद जउन फैसला करके करे ।गांव वालों के मन मे शोमारू की
बुर्बकाही और सिधाई पर दया भाव था अतः सभी पुनः बैठ गए तब शोमारू ने कहा पंडित जी अब आपन बात कही पंडित जी लाला ग़ज़पति की तरफ इशारा करते हुये बोले लाला जी अब सभा मे अपनी बात गांव की तरक्की के नज़रिया के साथ रखिये।लाला ग़ज़पति खड़े हुये और बोलना शुरू किया प्यारे ग्राम वासियों वैल्लोर गांव एक ऐसा गांव है जिसमे हर जाति धर्म के लोग रहते है और प्यार परिवार सम्बन्धो में कभी कोई कमी नही आई
मगर इसमें कुछ ही लोग गांव की तरक्की और राज नीति में सक्रिय हो पाए बाकी गांव के लोग पिछलग्गू होकर रह गए हम चाहते है कि गांव के हर टोले से नेतृत्व उभरे इसके लिये गांव के टोले चम टोली ,अहिरान ,मिया टोली,पण्डितान,बिनटोली,केवटाना, भर टोली ,गोड़ टोला ,लोहराना ,कोहार टोली कुर्मी कोइराला ,नाई टोला, ठस्कुराना,लाला टोला धोबियान कुल मिलाकर चैदह टोलन क ई विल्लोर गांव ह हर टोला म करीब दस पंद्रह बीस ज्यादे से ज्यादे पच्चीस घर है हम लोगन का विचार है कि ई बारी वसंत पंचमी के फाग हर टोला पर होई पूरा गांव सबहर ना होई गांव वाले फिर क्रोध से आग बबूला हो गए मगर लाला ग़ज़पति ने बड़ी चतुराई से नौजवानों के पाले में बात फेंकी बोले ऐसे ई होई हर टोला के जवान नौजवान अपनी विरादरी से मिली जुली और अपन सुख दुख खातिर चरचा करीहे लडीहन सरकार से शासन से और तरक्की के रास्ता खुली कचहरी तहसील जगहे जगहे जाईहन भटक खुले और हर टोलन विरादरी से जवान नौजवान तैयार होईहन केहू प्रधान केहू पंचायत केहू जिला पंचायत में जाई ए तरह गांव में जब हर विरादरी अपने हक की खातिर जागरूक होई त समूचा गांव में राजनीतिक चेतना जागी और गांव आगे भागी एक बात और सब टोलन के लोग आपन पुस्तैनी धंधा के साथ बाजार में जाई अहिरान दूध बेंचे कुर्मी कोइरई साग सब्जी नाई सैलून खोले कोहार बर्तन के दुकान बनिया विशाता
मिर्च मशाला कपड़ा लत्ता चमार आपन काम करे मियां लोग अंडा गोश्त क दुकान और तांगा चलावे केवटाना मछली लोहार हसिया कुल्हाड़ी खुरपा खुरपी निहाई चलावे धोबी कपड़ा के प्रेस धुलाई के काम करे और बिन कोहार चमार और लोग गांव के बारी में देशी दारू बनावे बेचे जैसे जवरा पर निर्भरता खत्म होई ए खातिर अबकी वसंत पंचमी पर हर टोलन पर मृदंग के साथ फाग होई और एक बात ध्यान दिह जा एक दूसरे से आगे निकले के होड़ होएक चाही मतलब स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बसंत पर हर टोलन पर फाग होई मगर सब टोलन के संबत एक जगह रखाई और जलावल जाई और फिर फगुआ अपने अपने टोलन से पूरा गांव में होई अबकी बार लाला ग़ज़पति की बात पर सिर्फ बुजुर्गों ने विरोध किया जिसे नौजवानों ने यह कह कर चुप करा दिया कि लाला ग़ज़पति सही कह रहे है एक बार फिर लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा ने सीधे साधे शोमारू के कंधे पर बंदूख रखकर भोले भाले गांव वालों को अपने कुटिल चाल की जाल में फंसा दिया।सभा समाप्त हुई और सब गांव वाले अपने अपने घर चले गए तब पंडित ने लाला से सवाल किया कि लाला ई बताओ कि टोलन की बात त हमारे समझ मे आई मगर जाती के पुश्तेनी धंधा गांव के बाहर बाज़ार में भेजे के पीछे का मकसद लाला बोले बकलोल पंडित गांव में सब एक दूसरे के अपनी पुश्तेनी कारोबार से एक दूसरे के सहयोग करतन और वोकरे बदले जवरा अनाज या खेत पवतन उहो कौनो साल उपज ठीक भईल त मिल जाता है ना त बिना जवरों के एक दूसरे के मतलब कारे आवत है ऐसे पूरे गांव में भावनाओं की एकता है जब सब बाज़ारे जहियँ त रोज रोज नकद पैसा पाएहन तब जवरा के प्रथा समाप्त होई सब पैसा नगद चहियँ गांव के एकात्म स्वरूप खत्म होई एक बात दूसर बात ई की जब गांव के बाज़ार में
पैसा मिली त बाहर दूर देश भी जायके बारे मे होड़ मची और जहियन जैसे गांव से कमाय जब नौजवान बाहर जइहैं तब उहा लतियावल जेहन तब इन्हें आवे पर हमार कदर पता चली तीसर बात जब गांव के लोग गांव से बाहर हाट बाजार जइहैं त राजनीति लाभ हानि सोचिहे जैसे जे गांव में रही
ऊ खुराफात अपने लाभ की खातिर करि आपस मे लड़ी तबे न हम जईसन के सिक्का जमी पंडित बोले वाह लाला गजपति मान गए असली लाला की खोपड़ी लाला ग़ज़पति गर्व से बोले पंडित आज पूरे गांव को हमने अफीम का नशा पिला दिया है देखिह ठाकुर सतपाल सिंह के पास जाए से पहिले गांव कईसन होई जाई केहू से केहू मतलब ना रही जाई सब अपनी अपनी टोलन के नेता बनिजाई एक टोला दूसरे टोला से लड़त मरत रही जाई वार्तालाप करते पंडित और लाला अपने अपने घर चले गए । लाला ग़ज़पति की मंशा रंग लाई गांव की युवा पीढ़ी गांव के बाज़ार से क्या जुड़ी राजनीति के देश विदेश के दांव पेंच के प्रति सजग जागरूक हो गयी अब सभी ग्रामवासी अपनी उपज हुनर बाज़ार में बेचते और गांव वालों की एक दूसरे की जरूरत पर व्यावसायिक गणना करते और हानि लाभ के आधार पर करते धीरे धीरे गांव का भोला भाला चरित्र समाप्त होने लगा स्वार्थ और आर्थिक लाभ हानि के आधार एक दूसरे के संबंधों और टोले टोले के संबंधों का बनना विगड़ना शुरू हो गया प्रतिदिन गांव का हर बासिन्दा अपने हुनर उपज से जो कमाता उसका अधिकांश हिस्सा शाम को दारू पीकर खत्म कर देता क्योंकि गांव के कृषि उत्पादन के साथ दारू भी एक उपज बन चूकि थी जैसाकी दारू के लत में होता है गांव के अधिकांश घरों में नियमित मारपीट कलह तो होती थी गाहे बेगाहे नशे के गुरुर में टोलो में दो दो हाथ हो जात्ते कुल मिलाकर पूरे विल्लोर गांव का बातावरण चालाक होशियार स्वार्थी अर्थ प्रधान बन चुका था परिणाम स्वरूप गांव में पुराने पीढ़ी का भोला भाला ग्राम वासी गांव के विषाक्त वातावरण से पलायन करता हुआ देश के विभिन्न शहरों की तरफ भागने लगा गांव विशुद्ध राजीतिक अखाड़ा बन चुका था अब क्या था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति के द्वारा गांव वालों को पिलाई गयी मीठी जहर धीरे धीरे असर करने लगी थी अब गांव सिर्फ पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति जैसे लोंगो के लिये मुफीद रह चुका था।
अब गांव में किसी पर्व के अवसर पर लोग सिर्फ अपने टोले तक ही सीमित रहते सारे गांव के लोग अपने अपने टोलो में बैठने के बाद गांव की नई पीढ़ी दूसरे टोले के व्यक्ति को पहचान नही पाते क्योकि गांव की संपूर्णता बिखर चुकी थी गांव में कुटिलता की संस्कृति ने जन्म ले लिया था वास्तव मे भारत की आजादी से मिले दो विरासत बटवारा और बदलाव सम्पूर्ण विल्लोर गांव ने अंगीकार कर लिया था।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




मोबाइल देवता

मोबाइल देवता

 

आज मोबाइल  संचार क्रांति का केंद्र हैं, जो दृश्य, श्रव्य चलचित्र है। जिसने पूरी दुनिया को संचार के माध्यम से मिला दिया। उदाहरणार्थ Covid 19 में पूरी दुनिया ऑनलाइन रहकर सभी से सम्पर्क में रही, य़ह संचार क्रांति मोबाइल के बिना सम्भव नहीं थी। मोबाइल का जितना उपयोग लाभदायक है उतना हानिकारक भी है। आजकल मोबाइल का सदुपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा होने लगा है इसी संदर्भ में यह कविता प्रस्तुत है

 

 

मोबाइल देवता

 

मोबाइल जी आप तो हो सबसे बड़े देवता

आपके बिना तो किसी का न दिन न  रात l

बच्चा बुढ़ा नाटा मोटा या कोई पतला

सब तुम में लीन न करते किसी से बात l

आज चहूं सिर्फ आपकी ही चर्चा

आधीन हुआ मानव, तूँ बना सबका खास l

घर गृहस्थी संबंध सब तू ही जग में

अंगूठे के स्पर्श में देखो सिर्फ तेरा एहसास l

छूट गए माता पिता बंधु प्रिय सब

बना चहेता तू सबका स्मार्ट जीवक अंग l

सबके ही हाथों में तू प्रसाद हुआ अद्भुत

कर दिए दीप पूजा ध्यान आती नमाज भंग l

एकांत मुस्काए एकांत रोए एकांत शांत है

साथ बैठे लोग फिर भी बना दिये अनजान l

किसी को किसी से न मतलब रहा अब

रिश्तो में भी बन बैठा तू रिश्तेदार महान l

दूर देशांतर की जिजीविषा में तूँ मुस्कान भरे

सूने घर परिवार में तूँ खुशियां लेकर आता l

दूर बैठों की बस तू ही एक आस बना

सभी काम बने बैठे तूँ जीवन आसान बनाता l

तू जगत का साक्षात देव बनकर

इस भू पर नए चमत्कार लेकर आया l

हर पल सब तेरा ध्यान करे पल पल

तू बन गया सबके जीवन का साया l

तेरे आगे बन बैठे सब नाते रिश्ते बौने

मानव को झूठ सच सब तू ही बुलवाता l

तेरा ही सहारा लेकर दुनिया चले अब

झूठ को सच सच को झूठ तू सब बनाता l

नन्हे नन्हे बाल मोहित तुम पर आंखें खो रहे

सब खेल में डूबे बना इनका भी प्रिय वरदान l

नादान दुनिया नहीं जानती मैं जानना चाहे

तूँ क्षरण करता जीवन तू है इतना महान l

घर में दो राह पाट दिए रिश्ते तूने बांट दिए

तू ही मियां बीवी के झगड़े झपट की मूल l

साथ-साथ सामाजिक जीवन भूले सब

आज एक यंत्र के गुलाम सब कितने नादान l

मोबाइल तूँ वास्तव में है महामंत्र महायंत्र है

तू मायाजाल महाकाल जिसे सब अनजान l

 

मीनाक्षी डबास “मन”

(हिंदी प्रवक्ता) राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार

शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली

माता-पिता– श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ

शिक्षा एम ए (हिंदी), बी एड, नेट जेआरएफ

उद्देश्य— हिंदी भाषा का प्रशासकीय स्तर पर प्रचार प्रसार l

 

 

 

 




“मुझे मेरा वो गाँव याद आता है”

 

 

शीर्षक :- 

             “मुझे मेरा वो गाँव याद आता है”
बरगद की छाँव में
बैठ के बूट्टे खाना,
संग दोस्तों के वहाँ 
घंटों भर बतियाना,
नहीं भुलाये भूलता
वो गुजरा जमाना ,
माँ के डर से छुपके जाना,ठंड में ठिठुरता वो नंगा पाँव याद आता है।
                     मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…….
                        सरसों के खेत में
            तितलियों के पीछे भागना,
               धान के ढ़ेर पर लेटकर
                    रात भर वो जागना,
                   बूढ़ी दादी का दूलार
                         वो बसंत बहार,
बरसात के मौसम में उफ़नती नदी का वो तेज बहाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……
चेहरों पे होती मुस्कान
लहलहाते खेत-खलिहान,
बैसाखी पे जोश में भरते
   बच्चे, बूढ़े और जवान,
   परिंदों की लंबी कतारें
खिला-खिला नीला आसमान,
मक्की की रोटी सरसों का साग खाने का मेरा वो चाव याद आता है ।
                    मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..
                चौपालों, चौराहों पे
            हुक्कों की गुड़गुड़ाहट,
           मिट्टी से लेपे आँगन में
               रंगोली की सजावट,
                    पगडंडी की सैर
            नन्हें क़दमों की आहट,
जहां गिरा था फ़िसलकर मेंढ पे  मेरा वो घाव याद आता है ।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..
      बापू की मीठी घुड़की
मल्लाह का राग अलापना,
   कंधे पे बैठ मेला देखना
            पतंग का उड़ाना
तोतली ज़ुबान में ग़ुब्बारे माँगना,
कैसा हसीं पल था बड़ा सुहाना,
बहन की चोटी खींचकर चिढ़ाने का मेरा वो दाव याद आता है।
                 मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……
        सादगी का आलम था चहूँ और
          ना आधुनिकता था कहीं ज़ोर,
          मंद-मंद रौशनी में टिमटिमाते 
                बस तारों का ही था शोर,
         प्रेम-मग्न थे सब अपनी धुन में
               ना ज़ुल्म कोई था ना ज़ोर,
नजरें मिलना, हंसना गुदगुदाना “दीप” तेरा निश्छल सा वो लगाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…….!
           *****
कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”
हिसार ( हरियाणा )
संपर्क सूत्र- 9050956788
 
 
 
 
 
 



“मुझे मेरा वो गाँव याद आता है”

 

 
शीर्षक :- 

             “मुझे मेरा वो गाँव याद आता है”
बरगद की छाँव में
बैठ के बूट्टे खाना,
संग दोस्तों के वहाँ 
घंटों भर बतियाना,
नहीं भुलाये भूलता
वो गुजरा जमाना ,
माँ के डर से छुपके जाना,ठंड में ठिठुरता वो नंगा पाँव याद आता है।
                     मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…….
                        सरसों के खेत में
            तितलियों के पीछे भागना,
               धान के ढ़ेर पर लेटकर
                    रात भर वो जागना,
                   बूढ़ी दादी का दूलार
                         वो बसंत बहार,
बरसात के मौसम में उफ़नती नदी का वो तेज बहाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……
चेहरों पे होती मुस्कान
लहलहाते खेत-खलिहान,
बैसाखी पे जोश में भरते
   बच्चे, बूढ़े और जवान,
   परिंदों की लंबी कतारें
खिला-खिला नीला आसमान,
मक्की की रोटी सरसों का साग खाने का मेरा वो चाव याद आता है ।
                    मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..
                चौपालों, चौराहों पे
            हुक्कों की गुड़गुड़ाहट,
           मिट्टी से लेपे आँगन में
               रंगोली की सजावट,
                    पगडंडी की सैर
            नन्हें क़दमों की आहट,
जहां गिरा था फ़िसलकर मेंढ पे  मेरा वो घाव याद आता है ।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…..
      बापू की मीठी घुड़की
मल्लाह का राग अलापना,
   कंधे पे बैठ मेला देखना
            पतंग का उड़ाना
तोतली ज़ुबान में ग़ुब्बारे माँगना,
कैसा हसीं पल था बड़ा सुहाना,
बहन की चोटी खींचकर चिढ़ाने का मेरा वो दाव याद आता है।
                 मुझे मेरा वो गाँव याद आता है……
        सादगी का आलम था चहूँ और
          ना आधुनिकता था कहीं ज़ोर,
          मंद-मंद रौशनी में टिमटिमाते 
                बस तारों का ही था शोर,
         प्रेम-मग्न थे सब अपनी धुन में
               ना ज़ुल्म कोई था ना ज़ोर,
नजरें मिलना, हंसना गुदगुदाना “दीप” तेरा निश्छल सा वो लगाव याद आता है।
मुझे मेरा वो गाँव याद आता है…….!
           *****
कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”
हिसार ( हरियाणा )
संपर्क सूत्र- 9050956788
 
 
 
 
 
 



नासूर

बन जाती हैं दूरियाँ, रिश्तों में नासूर । 

मधुर वचन से कीजिए, मतभेदों को दूर । । 

सुशील सरना / 27-2-21 

 

 




जय सियाराम

   जय सियाराम 

                                                                               जय जय राम, जय सियाराम

                                                                               सब के दिलों में राम ही राम

                                                                               जय जय राम, जय सियाराम

                                                                               सब के दिलों में राम ही राम         ।।  1  ।।

                  जीवन की नय्या को पार लगादेे

              तू ही है हम सबका रखवाला

                   जीवन की नय्या को पार लगादे 

                                            तू  ही  है  हम सबका रखवाला        ।।  2    ।।      

        हम सबकी है ये तुम्‍हारी इबादत

बेडा हमारी पार करदो प्रभु

     जय जय राम, जय सियाराम

                              सब के दिलों में राम ही राम            ।।   3   ।।

                    हृदय में सदा है ये नाम तुम्‍हारी 

                   आंंखों में भरा है ये सूरत तुम्‍हारी

                   हृदय में सदा है ये नाम तुम्‍हारी 

                                         आंंखों में भरा है ये सूरत तुम्‍हारी          ।।  4 ।।

         हमारी अधूरी ये सपनों की कहानी

            भारत की है ये इतिहास की जुबानी

   जय जय राम, जय सियाराम

                                                                                        सब के दिलों में राम ही राम      ।।  5  ।।

               जय जय राम, जय सियाराम

                                                                                              सब के दिलों में राम ही राम

                                                                                                               *****                                                       

 




रोटी बैंक छपरा के सेवा

 
#एक_सेवा_ऐसा_भी 
*नि:स्वार्थ भाव से भूखे को  भोजन कराते है*
 
 
भारत का एक राज्य है बिहार , जिसकी राजधानी है पटना। पटना के पास ही एक जिला है छपरा (सारण)। वैसे तो छपरा अपने आप में जाना-पहचाना जिला है, लेकिन एक संगठन आजकल इस जिले की पहचान बना हुआ है और ये संगठन है ‘रोटी बैंक,छपरा ‘। 
           सर्वप्रथम आपको बताते चलें कि रोटी बैंक छपरा की शुरुआत वर्ष 2018 के अक्टूबर महीने के 10 तारीख को हुई थी लेकिन इसकी रूप रेखा अप्रैल 2018 को हीं बन गई थी, बस इंतजार था तो एक उचित और निश्चित समय का रोटी बैंक की शुरुआत छपरा शहर के श्री टुनेश्वर उपाध्याय एवं श्रीमती निर्मला उपाध्याय के सूपुत्र श्री रविशंकर उपाध्याय जी के द्वारा की गई,जो कि पेशे से एक शिक्षक हैं।उनसे पूछने पर उनके द्वारा बताया गया कि सर्वप्रथम रोटी बैंक को शुरू करने का ख्याल फेसबुक के माध्यम से ऑल इंडिया रोटी बैंक (AIRBT-630) वाराणसी के द्वारा की जा रही सेवा को देखकर आया।चूँकि बचपन से हीं समाजिक प्रवृत्ति के विचार और समाजसेवा में सदैव अग्रणी भूमिका में रहने के कारण मेरे मन में रोटी बैंक के प्रति सकारात्मक  विचार आया और उन्होंने सोचा कि “अपने शहर में भी बहुत सारे जरूरतमन्द है! जो रात्रि में भूखे पेट सोने को विवश होते है” उसके कारण अलग-अलग हो सकते है।बहुत सारे लोग चौक चौराहों पर,रेलवे स्टेशनों पर,बस स्टैंड में,सड़क किनारे भूखे और लाचार रूप से सोने व रहने को मजबूर रहते थे ।उनसब के सहयोग और उद्धार के लिए मन व्याकुल एवं व्यथित हो गया ।फिर क्या था,,, रोटी बैंक वाराणसी का कार्य देखकर कुछ आशा की किरण दिखने लगी! जिसमें देखा गया कड़ाके की सर्दी में वाराणसी के सड़को पर कुछ युवा जरूरतमन्दों को नींद से उठा-उठा कर के भोजन दे रहे थे। सच में वो दृश्य विचलित एवं सोचने पर मजबूर करने वाला था वे लोग भुखे पेट सो रहे थे, न जाने ऐसे हीं भुखे कितने लोग इस मतलबी दुनिया में काल के गाल मे समा गए होंगे आजकल  कौन किसको पुछता है? ऐसे लोगो के दुख-दर्द को देखकर तो ऐसा लगता है मानो इन गरीब भाईयों को देखने के लिए स्वयं भगवान जगदीश और माता अन्नपूर्णा जी ने दुत बनाकर भेजा है ।इसकी शुरुआत भगवान श्री राम के गृह राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी से हुई! ऑल इंडिया रोटी बैंक ट्रस्ट(AIRBT) के संस्थापक श्री किशोरकांत तिवारी जी और इनके सहयोगी श्री रौशन पटेल जी के द्वारा इस नेक कार्य को किया जा रहा था ।जिसे देखकर बिहार के सारण जिले के छपरा शहर में भी रोटी बैंक शुरू करने की आशा जगी।
              “”फिर मन उधेड़ बुन में पर गया की आखिर इस कार्य को शुरू कैसे किया जाए ,समाज की क्या प्रतिक्रिया होगी ,परिवार के लोग किस तरह इसे लेंगे तरह- तरह के ख्यालात मन को बेचैन करने लगा।””आप समझ सकते है कि स्थिति क्या रही होगी 2018 के फरवरी शुरुआत के दिन थे मैं असमंजस में था रोज फेसबुक में  रोटी बैंक वाराणसी को लाइव देखता था तभी मैने देखा कि रोटी बैंक दिल्ली ,रोटी बैंक दरभंगा की शुरुआत हुई मेरा मन थोड़ा शांत हुआ फिर रोटी बैंक धनबाद फिर रोटी बैंक पुरूलिया मतलब चार राज्यों में रोटी बैंक का कार्य शुरू हो चुका था।मैं अंदर से मजबूत हुआ और अप्रैल 2018 में एक मित्र के विवाह समारोह में अपने कुछ मित्रों के साथ इसपर विचार विमर्श किया, कुछ हद तक सभी का पक्ष सकारात्मक दिखा।उस मित्र में मुख्य रूप से अभय पांडेय,सत्येंद्र कुमार,रामजन्म माँझी,बिपीन बिहारी,कुमार भार्गव,सलील रंजन और दिनेश बिहारी पाण्डेय  थे।लेकिन धरातल पर कार्य नही हो सका सभी अपने निजी कार्यो में व्यस्त हो गए ।दिन बीतता गया मेरे मन में रोटी बैंक शुरू करने की एक जिद सी बैठ गई थी।फिर मैंने रोटी बैंक वाराणसी के अध्यक्ष श्री किशोर तिवारी जी से बात की उन्होने मुझे रोटी बैंक दरभंगा से कांसेप्ट समझने को कहा मैंने रोटी बैंक दरभंगा के अध्यक्ष श्री मयंक गोयल जी एवं रोटी बैंक दिल्ली के अध्यक्ष श्री राम शुक्ला जी से बात की चूँकि मैं उनसबको फेसबुक पर फॉलो कर रहा था तो मुझे समझने में देर नही लगा लेकिन असमंजस के कारण इन सबमें 5 महीने का समय लग गया, फिर भी हौसला बुलन्द था चूँकि मैं दिन में व्यस्त रहता था एक कारण यह भी था कि अगर समय नही दे पाया तो इस कार्य मे सफल नही हो पाऊंगा और यह कार्य बहुत कठिन था इसे करने में टीम वर्क की जरूरत थी।
                    फिर मैंने इस पहल को अपने साथियों के साथ साझा किया इस बार हमने कामयाबी पा ली और रोटी बैंक छपरा को शुरू करने के लिए श्री सत्येंद्र कुमार,श्री अभय पांडेय,श्री रामजन्म माँझी, श्री बिपीन बिहारी कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार हो गए ।रोटी बैंक को शुरू करने में कुछ बड़े भाइयों ने भी अपना सुझाव और स्नेह से मदद की।फाइनली महज 7 लोगों का भोजन या यूं कहें कि 7 पैकेट भोजन से हमलोंगो ने 10 अक्टूबर 2018 को दशहरा के कलश स्थापन के दिन इस शुभ और पुनीत कार्य की शुरुआत की। मजेदार बात यह है कि पहले दिन झिझक के कारण 7 पैकेट भोजन जो हमने अपने घर से बनवा कर पैक किया था उसको बाँटने में पूरे 3 किलोमीटर तक जाना पड़ा ।मन मे डर और दुविधा दोनो था कि कही कोई कुछ बोल न दें ।कोई इसे गलत न ले ले फिर भी हम सफलता पूर्वक भोजन वितरण कर दिए ।अब रोज का सिलसिला शुरू हो गया पहले कुछ दिनों तक बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा रोज अपने घरों से भोजन बनाकर हमलोग वितरण करने जाते। कुछ लोग इसपर सकारात्मक टिप्पणी करते तो कुछ लोग इसपर बेहद नकारात्मक टिप्पणी करते थे ।हमलोग थोड़ा भी विचलित नहीं हुए ।धीरे-धीरे भोजन की संख्या बढ़ने लगी लोग जुड़ने लगे ।फिर छपरा शहर में सेवा के क्षेत्र में एक क्रांति-सी आ गई चूँकि कांसेप्ट नया था इसलिए लोगों का झुकाव होने लगा  फिर सदस्य भी बढ़ने लगे जिसमें एक परिवार से माहौल बनने लगा फिर हमारे साथ श्री राकेश रंजन ,श्री संजीव कुमार चौधरी,श्री अशोक कुमार,श्री पिंटू गुप्ता, श्री रंजीत जयसवाल,श्री कृष्ण मोहन,श्री प्रवीण कुमार,श्री मणिदीप पॉल, श्री राहुल कुमार,श्री विवेक कुमार,श्री किशन कुमार,श्री मनोज डाबर,श्री अश्विनी गुप्ता,श्री राजेश कुमार,श्री सूरज आनन्द,श्री हरिओम कुमार इत्यादि सदस्य के रूप में जुड़े और हमलोग मिलकर रोटी बैंक छपरा को एक परिवार के रूप में स्थापित कर दिए फिर हमलोगों ने इसमें खुद से भोजन बना कर भी वितरण करने लगें, लोगों को प्रेरित करने लगे कि अपने खुशियों को जरूरतमन्दों के साथ साझा करें उन्हें भोजन खिलाये! फिर शुरू हुआ “”खुशियों के रंग रोटी बैंक के संग””जो एक नारा बन कर उभर आया। फिर धीरे-धीरे आमजनों के बीच इस बात का समझ होने लगा कि यह संगठन भूखे पेटों को भरने की व्यवस्था करता है। तब जाकर लोग जान पाए कि ‘रोटी बैंक ‘ संगठन कुछ युवाओं ने मिलकर शहर में सामाजिक तौर पर जरूरतमन्दों की मदद करने के लिए बनाया है। इस संगठन के कार्यकर्त्ता शहर के कुछ घरों से रोटियां इकट्ठी करते हैं साथ ही इस रोटी बैंक में श्रद्धालू व्यक्ति भोजन जमा भी करते है। जिस घर से जितनी रोटी मिल जाये। हर घर अपनी श्रद्धा और अपनी सहजता के हिसाब से रोटी दान करता है ,श्रद्धालुओं के द्वारा किसी भी शुभ अवसर पर भोजन उपलब्ध करवाया जाता है । तत्पश्चात जमा की गई रोटी शाम होते ही गरीबी की मार झेल रहे भूखे लोगों में बांट दी जाती है ।अंततः रोटी बैंक ने अपना कम्यूनिटी किचेन भी बना लिया जिसमें सहयोगी के रूप में सेवा समर्पण वेलफेयर ट्रस्ट और शगुन इवेंट मैनेजमेंट है जो सदैव इस नेक कार्य मे सहयोगी का धर्म निभा रहा है। भोजन वितरण का समय रात्रि के 9 बजे से रखा गया है ।
                 वैसे ये सच है, कि अधिकतर लोग नेम और फेम के लिए इस तरह के सामाजिक कार्यों को करते हैं, लेकिन ‘रोटी बैंक’ संगठन के सदस्य नित्य नई ऊर्जा और नए उमंग के साथ प्रतिदिन नॉनस्टॉप रूप से रात्रि में चाहे परिस्थिति कोई भी क्यों न हो जरूरतमन्दों के बीच निःस्वार्थ और निःशुल्क भोजन वितरण करते है।
हमारा सबल पक्ष है कि जो हमसे मिलता है, वो हमसे जुड़ता जाता है। हम एक टीम की तरह काम करते हैं। यहां कोई ‘मैं’ नहीं बल्कि हमसब ‘हम’ हैं।
आपसभी के प्यार,दुलार और आशीर्वाद से हम छपरा के सड़को पर,रेलवे स्टेशनों पर सोने वाले शारीरिक दिव्यांग,मानसिक विक्षिप्त तथा पारिवारिक तिरस्कृत व्यक्ति को रात्रि में भोजन मुहैया कराते है।
हम सेवादार के रूप में रोटी बैंक के सदस्य प्रतिदिन पूरी निष्ठा भाव से मेहनत करते है और जरूरतमन्दों को भोजन मुहैया कराते हैं। वैसे तो अब करीब-करीब सभी लोग जागरूक हो चुके है,किसी जन्मदिन,शादी पार्टी,छठियार,नया प्रतिष्ठान या कोई भी शुभोत्सव पर गरीबों भाईयों को भोजन कराकर आशीर्वाद लेने के लिए बड़ी उत्सुकता से दौर पड़ते है ।और वैसे दिन भी आता है जब किसी के तरफ से कुछ सहयोग  नही मिल पाता है तो उस समय ये सभी सदस्य भाई लोग आपस मे चंदा यानि सहयोग राशि इकठ्ठा करके पुरा करते है! लेकिन न रुकते है न थकते है न हारते और न ही कभी डरते है। जबकि एक साल यानि बारह महीना ,चारो ऋतु और सत्ताईसो नक्षत्र में  गुजरना होता है ।आप सब लोग जानते होगें ।वैसे भी इनलोगो के पास दिन मे किसी को अपना  दुकान चलाना तो किसी को नौकरी और अनेको रोजगार है, पूरे दिन के हैरानी-परेशानी के बावजूद ये अपनी निष्ठापूर्वक सेवा देते रहते हैं “धन्यवाद है आपलोगों के समाज सेवा मे जज्बा धन्यवाद है आपके माता-पिता जो आपलोग जैसे सुपुत्र को जन्म देकर अपने को और छपरा सहित देश को गौरवान्वित किया ।
       रोटी बैंक के सेवादारों के मार्गदर्शन और अथक परिश्रम से इस पुनीत कार्य को किया जा रहा है। 
    यही नही अपने साथियों का हौसला बढाने और समाजवादी लोगों में उत्सुकता दिखाने के लिए इनलोगो द्वारा एक दो दोहा स्वरूप नारा गढा जा चुका है! जो ;
“”हमने अब ये ठानी है 
   करनी नही नादानी है।”
   जाती धर्म से उपर उठ कर         इंसानियत की लाज बचानी है।।
आये मिलकर एक कदम मानव सेवा की ओर बढ़ाये।।।
 
इसमे सबसे चर्चित एक नारा जो है। 
“रोटी बैंक का एक ही सपना
कोई भी भूखा सोये न अपना”।
 
इन सबके के दुसरे लोगों के प्रति  प्रेम और स्वभाव को देखिए कि कैसे सबको “अपना”बोलकर संबोधित करते है। “अक्सर सभी जगह कोई भी बातो मे बड़े-बुजुर्गों और बुद्धिजीवियों द्वारा सुना जाता हैं कि ए दुनिया अभी सहीसलामत चल रही है कहीं-न-कहीं ऐसे नेक लोग है ।जो हमारे छपरा मे ये वक्तव्य चरितार्थ हो रही है ।”
     ये न कोई संस्था न कोई टिम ये तो केवल अच्छे ,सुशील नि:स्वार्थ भाव से चलने वाला नेक दिल वाले सदस्यों का परिवार है। 
 
        “लेखक के कलम से,,,
               युवा कवि 
         शैलेन्द्र कुमार साधु 
       जलालपुर सारण बिहार 
           9504971524



दोहा त्रयी :….आहट 

दोहा त्रयी :….आहट 

 

हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।

 

आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।

 

आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।

 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित




जीने से पहले ……

जीने से पहले ……

 

मिट गई
मेरी मोहब्बत
ख़्वाहिशों के पैरहन में ही
जीने से पहले

 

जाने क्या सूझी
इस दिल को
संग से मोहब्बत करने का
वो अज़ीम गुनाह कर बैठा
अपने ख़्वाबों को
अपने हाथों
खुद ही तबाह कर बैठा
टूट गए ज़िंदगी के जाम
स्याह रातों में
ज़िंदगी
जीने से पहले

 

डूबता ही गया
हसीन फ़रेबों के ज़लज़ले में
ये दिल का सफ़ीना
भूल गया
मौजों की तासीर
साहिल कब बनते हैं
सफ़ीनों की तकदीर
दफ़्न हो जाती हैं
ज़िंदा साँसें
ख़्वाहिशों की लहद में
मोहब्बत
जीने से पहले

 

सुशील सरना/25.2.21
मौलिक एवं अप्रकाशित




सुशील सरना कृत ‘दोहा त्रयी’ – ‘वृद्ध’

चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।

लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।

वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।