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सदबुद्धि यज्ञ

 

लाला गजपति विल्लोर गाँव के संपन्न कायस्थ परिवार के मुखिया थे उनके परम् मित्र थे ठाकुर सतपाल सिंह और पंडित महिमा दत्त तीनो मित्रो के ही विचार गाँव में सिद्धांत संस्कार संसकृति हुआ करते ।तीनो साथ मिलकर गाँव में क़ोई न कोइ बखेड़ा खड़ा किया करते ।किसी भी फसाद की शुरुआत लाला गजपति की पहल पर होती ठाकुर सतपाल सिंह किसी एक पक्ष के साथ खड़े हो जाते और पंडित महिमा दत्त दोनों पक्षो के मध्य विवाद का सर्वमान्य रास्ता निकालने की पहल करते और फिर फसाद समाप्त हो जाता सारे गाँव वाले भी लाला गज़पति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा दत्त की तिगड़ी के तिकड़म को समझते मगर कुछ भी कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।स्थानीय पुलिस और प्रशासन भी बिल्लौर के किसी भी विवाद में लाला गज़पति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा दत्त को ही तवज़्ज़ह देते गाँव के लोग बिना किसी दैवीय आपदा के गाँव के खुराफाती त्रिदेवो के कुचक्र में जाल की आसहाय पंक्षी की भाँती
फड़फड़ाते मगर कुछ भी कर् सकने में असहाय निरीह कुछ भी नही कह पाते
असहाय सब कुछ जानते हुये भी अन्याय सहने को बिबस थे गाँव वालों ने एक साथ मिलकर आपस मे विचार किया कि क्यो न लाला गजपति ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा की आत्मा परिवर्तन का सद्बुद्धि यज्ञ गांव में करवाया जाए ।
गांव वालों ने आपस मे चंदा एकत्र किया और लाला गजपति और ठाकुर
सतपाल एवं पंडित महिमा से अनुरोध किया कि आप तीनो ही सद्बुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान बने जिससे कि गांव के लोगो मे सद्बुद्धि सन्मति सम्प्पन्नता आये तीनो ने गांव वालों के अनुरोध पर विचार करने का कुछ समय मांगा यज्ञ शुरू होने में तीन चार दिन का समय बाकी था।फिर लाला गजपति ठाकुर सतपाल एवं महिमा पंडित ने आपस मे विचार विमर्श कर इस नतीजे पर पहुंचे की चूंकि गांव का सम्मिलित सद्बुद्धि कार्यक्रम है अतः मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन का ही मुख्य यजमान बनाना उचित होगा गाँव वालों को तीनों त्रिदेव की इस मंशा के पीछे कोई कुचक्र नज़र नही आया हालांकि मुखिया के चुनाव में तीनों के द्वारा सामर्पित उम्मीदवार पलटन पहलवान को कुछ दिन पूर्व ही चौधरी सुरेमन ने हराया था फिर भी भोलेभाले गाँव वालों के मन मे चौधरी सुरेमन के सद बुद्धि यज्ञ मुख्य यजमान बनने में कोई षड्यंत्र
दूर दूर तक प्रतीत नही हुआ।
धीरे धीरे सदबुद्धि यज्ञ प्रारम्भ होने की तिथि आयी और सदबुद्धि यज्ञ की शुरुआत बड़े धूमधाम से हुई चौधरी सुरेमन मुख्य यजमान की भूमिका में थे सात दिन का श्रीमद भागवत कथा का आयोजन एवं सायं कालीन गांव के नौजवानों द्वारा बिभिन्न एतिहासिक पात्रों पर आधारित नाटक एवं गांव के विकास पर ग्राम वासियों की भूमिका एवं कर्तव्य दायित्व पर चर्चा का आयोजन सुनिश्चित था जो सदबुद्धि यज्ञ के प्रथम दिन से ही बड़े सुनियोजित और प्रभावी तरीके से प्रारम्भ हुआ और प्रति दिन चलने लगा लाला गजपति ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया सदबुद्धि यज्ञ में पूरा गांव इस आस्था विश्वास के साथ पूरे उत्साह से भाग ले रहे थे कि शायद लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा का ह्रदय परिवर्तन सदबुध्दि यज्ञ से हो जाय एवं गांव में शांति आ जाये।बड़ी धुम धाम से गांव में सदबुद्धि यज्ञ चल रहा था यज्ञ के समापन से एक दिन पूर्व कथावाचक व्यास पंडित सुदर्शन शुक्ल जी ने मानव जीवन जीवात्मा के श्रेष्ठ पुर्जन्मजन्मार्जित कर्मो का फल एवं मानव जीवन में क्षमा दया सेवा और किसी भी प्राणी मात्र को दुख दर्द न पहुचाना ही सबसे बड़ा धर्म बताया पंडित जी के प्रवचन को लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल पंडित ,महिमा बड़े ध्यान से सुन रहे थे प्रवचन समाप्त होने के बाद तीनों ने आपस मे विचार किया लाला गजपति बोले कि निश्चय ही हम लोंगो ने पिछले जन्म में कुछ सदकर्म किये थे कि हम लोंगो को मानव जन्म मिला है फिर ठाकुर सतपाल बोले कि इस जनम में तो हम लोगो ने अब तक कोई ऐसा काम नही किया कि अगले जनम में फिर मानव जनम मील पाए सारी जिंदगी हम तीनों गाँव वालों को परेशान कर खून के आंसू रुलाते रहे पंडित महिमा बोले बात तो सही है मगर अब हम तीनों कब्र में पैर लटकाए उमर के चौथे पन में है पता नही कब चोला दामन छोड़ दे अतः अब तो कुछ ऐसा करने की जरूरत है कि अगर हम जनम ले तो किसी ताकतवर जीव के रूप में जैसे इस मानव जनम में हम लोंगो ने सारे गांव को नाच नचाया वैसे जिस शरीर मे रहे हमारी दहसत कायम रहे लाला गजपति और ठाकुर सतपाल को बात जच गयी और तीनो ने कहा अब पश्चाताप और प्रायश्चित का कोई फायदा नही है अतः जैसा हम लोंगो ने जीवन भर किया है वैसा ही करते रहे जो होगा देखा जाएगा तीनो आपस मे विचार विमर्श कर अपने अपने घर चले गए रात्रि बहुत हो चुकी थी जाकर सो गए अगले दिन सदबुद्धि यज्ञ की पूर्ण आहुति होनी थी सुबह पूरा गांव जल्दी उठा और गांव के सामुहिक सदबुद्धि यज्ञ के पूर्णाहुति में जुट गया पूर्णाहुति बड़े विधि विधान से पंडित सुदर्शन शुक्ल ने कराया गांव वाले और मुख्य यजमान मुखिया सुरेमन चौधरी ने पंडित जी को बड़ी श्रद्धा के साथ दान दक्षिणा देकर विदा किया पूरे गांव में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया सदबुद्धि यज्ञ का निर्विघ्न समापन निश्चित तौर पर गांव वालों के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि गांव के खड़्यंत्रकारी त्रिदेव लाला गजपति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा तीनो ने पूरे यज्ञ के दौरान कोई बाधा नही पैदा की साथ ही साथ पूरे मनोयोग से सहयोग करते रहे ।जिस दिन सदबुद्धि यज्ञ की समाप्ति हुई उस दिन पश्चिम दिशा से बड़ी तेज हवा चल रही थी अचानक ठाकुर सतपाल सिंह की तबियत खराब हुई उन्होंने अपने दो परम् मित्रो पंडित महिमा और लाला गजपति को बुलाया दोनों ही तुरंत हाज़िर हो गए ठाकुर सतपाल ने अपने मित्रों से कहा देखो भाई मेरा आखिरी समय आ गया है मैं चाहता हूँ कि एक बार सदबुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से मिल कर जीवन भर किये कुकर्मो का बोझ कुछ कम कर लूं क्योकि भगवान अपने भक्तों की अधिक सुनते है अतः भगवान के पास जाने से पूर्व भगवत भक्त चौधरी सुरेमन से मेरा मिलना बहुत आवश्यक है।शीघ्र ही पंडित महिमा और लाला गजपति ने जाकर गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से अपने मित्र ठाकुर सतपाल की हालत को बताते हुए उनकी अंतिम इच्छा मुखिया चौधरी सुरेमन से मिलने की बताई चौधरी सुरेमन ने कहा कोई बात नही चलिये चलते है और ठाकुर सतपाल की इच्छा का सम्मान करते है कुछ ही देर में पंडित महिमा लाला गजपति और मुखिया चौधरी सुरेमन ठाकुर सतपाल के पास पहुंचे उनके पहुचते ही ठाकुर सतपाल ने कहा चौधरी सुरेमन जी आपने आज ही मुख्य यजमान की हैसियत से सद्बुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति कराई है मेरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी अत्येन्ष्टि पूर्णाहुति की आग से ही कि जाय अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप यज्ञ के यज्ञ कुंड से पूर्णाहुति की आग गांव के पश्चिम दिशा की ओर गांव से बाहर रख दे जिससे कि मेरी मृत्य के बाद आग मेरे घर वाले वहां से लेकर मेरी अत्यष्टि कर देंगे जिससे पवित्र सदबुद्धि यज्ञ की आग भी पवित्र बनी रहेगी चौधरी सुरेमन को ठाकुर सतपाल की इस बात में कोई साजिश नज़र नही आई उन्होंने फौरन ठाकुर सतपाल की बात मान कर बोले ठाकुर साहब अभी मैँ सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड से आग गांव के पश्चिम रख देता हूँ और सभी ग्राम वासी भी मेरे साथ जाएंगे कुछ देर बाद चौधरी सुरेमन वहाँ से चले गए और गांव वालों को इकठ्ठा कर ठाकुर सतपाल की मरने से पूर्व इच्छा बताई गांव वालों को भी इसमें कोई अनुचित बात नही प्रतीत हुई अतः सभी ग्राम वासी चौधरी सुरेमन के नेतृत्व में यज्ञ कुंड की अग्नि ले गांव के पश्चिम गांव के सिवान के बाहर सद्बुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की आग रख कर चले आये और आकर मुखिया चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल को बता दिया कि यज्ञ कुंड के पूर्णाहुति की आग गांव के सिवान के बाहर रख दी गयी है मुखिया सुरेमन चौधरी की बात सुनते ही ठाकुर सतपाल ने राहत की सास ली और उनके प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते बोला आब मैँ चैन से मर सकूंगा ।मुखिया सुरेमन चौधरी के जाने के बाद ठाकुर सतपाल ने कहा अच्छा अब हमारा अंतिम समय है मित्रो जीवन भर हर तरह से साथ निभाने के लिये आप दोनों का आभार मैंने भी जाते जाते मित्रता और जीवन भर के संबंधों की मर्यादा का निर्वहन कर दिया है और ठाकुर सतपाल के प्राण पखेरू उड़ गए।अब दोनों मित्र पंडित महिमा और लाला गजपति बड़ी चिंता में पड़ गए कि जाते जाते ठाकुर सतपाल ने किस मित्रता का निर्वहन किया है बड़ी माथापच्ची और दिमाग लगाने के बाद नतीजे पर पहुंचे की आज तो पछुआ तेज हवा चल रही है जिधर गांव के ज्यादातर गेंहू के पके खेत है उसके बाद सोमारू का घर टोला है जिसमे लगभग सत्तर अस्सी घर हरिजन एवम अन्य जातियों के है और पिछले मुखिया चुनाव में जिस सोमारू को तीनो मित्रों ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था और जो चौधरी सुरेमन से हार गया था ।अब रात भर पंडित महिमा और लाला गजपत अपने मित्र ठाकुर सतपाल के शव के पास बैठे मित्रता का निर्वहन कर रहे थे कि अचानक गांव के पश्चिम से पुरब की तरफ आग की तेज लपटे आसमान को छूने लगी देखते ही देखते सोमारू के टोले तक आग ने आपने आगोस में जकड़ लिया गेहूँ के खेत और सोमारू का टोला हनुमान की पूँछ की लगाई सोने की लंका की तरह धूं धु करकें जलने लगा अब क्या था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पत ने विचार विमर्श कर अपने मित्र ठाकुर सतपाल सिंह के शव को धूं धूं जलते आग से शोमारू की टोला में डाल दिया तेज आग में जाने कब ठाकुर सतपाल का शव खाक हो गया अब दोनों मित्रो ने राहत की सांस ली क्योकि मित्र की इच्छानुसार सदबुद्धि यज्ञ के कुंड की पुर्णाहुति की आग से जलते खेत और गांव में अत्येन्ष्टि सर्वथा मित्र की इच्छा के अनुरूप और सर्वश्रेष्ठ थी। पूरे गांव वालों में अफरा तफरी मची थी सब मुखिया चौधरी सुरेमन को गालियाँ देते बदुआ देते आग बुझाने में जुटे हुये थे बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया जा सका मगर तब तक सब खाक हो चुका था आग बुझाते बुझाते सुबह हो गयी यह जानकारी नजदीक के पुलिस थाने तक चली गयी सुबह थाने की पुलिस गांव पहुंच कर दोषियों की पहचान तलाश करने लगी।
सारे गांव वालों का कलमबंद बयान दर्ज किया गया सभी ने बताया कि चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल की
अंत्येष्टि के लिये ही सद बुद्धि यज्ञ की आग गांव के पश्चिम सिवान के बाहर
रखवाई थी उस दिन तेज पछुआ हवा
चल रही थी यह जनते हुए और अपने विरोधी जिसने पिछले चुनाव में चुनाव लड़ा था से चुनाव रंजिश का बदला चुकाने के लिये ।अब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति के बयान की बारी थी दोनों ने पुलिस को बताया कि
चौधरी सुरेमन के खिलाफ प्रधान के चुनाव में शोमारू को मेरे महरूम दोस्त ठाकुर सतपाल ने चुनाव में खड़ा किया था इसी कारण चौधरी सुरेमन ने
मेरे मरहूम दोस्त को मार कर धूं धू जलते गांव में जिंदा जला दिया अब क्या था पुलिस ने पक्के सबूत गवाहों के बिना पर चौधरी सुरेमन को जेल भेज दिया जैसा कि न्यायिक व्यवस्था में होता है तारीख पर तारीख पर सुनवाई के बाद माननीय विद्वान न्यायाधीश महोदय ने चौधरी सुरेमन से पूछा कि आपको क्या कहना है चौधरी सुरेमन ने कहा जज साहब आज कल भारतीय गांवों में जहाँ से भारत की वास्तविक तस्वीर बनती है का वातावरण दूषित कलुषित और अविश्वसनीय हो चुका है मैँ यह सोचता था कि गांव से शहरों की तरफ का पलायन का कारण बेरोजगारी हैं नही योर आनर एक कारण यह भी है
की गांव के लोग अब भोले भाले न होकर अपनी संकीर्ण सोच और आचरण के कारण भारत के गांवों की पहचान खोता जा रहा है ।मैन इसी वातावरण को बदलने के लिये लोकतांत्रिक तरीके से प्रधान का चुनाव लड़ा मैँ अपने गांव को एक आदर्श भरतीय गांव बनाना चाहता था
मैन ईमानदारी से कोशिश भी की मगर
अब सच्चाई और फरेब के बीच आपकी सजा का इंतजार कर रहा हूं।
जज साहब ने पूछा कि आप भविष्य क्या करना चाहेंगे चौधरी सुरेमन ने कहा जिस उद्देश्य को पूरा नही कर पाया उसे पूरा करूँगा मगर अब जीवन मे प्रधानी का चुनाव कभी नही लडूंगा।चूंकि ठाकुर सतपाल को आग में फेकते किसी ने नही देखा था मगर उनकी जली हड्डियाँ जले गांव की राख में ही बरामद हुई थी अतः विद्वन न्यायाधीश ने चौधरी सुरेमन को पंद्रह साल की कैद बा मुस्ककत कि सजा सुनाई चौधरी सुरेमन जेल की हवा खा रहे थे इधर गांव में प्रधानी चुनाव पर दूसरे स्थान पर रहे शोमारू को नया ग्राम प्रधान बना दिया अब क्या था लाला गजपति और पंडित महिमा की
पौ बारह होगयी।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश




हे अन्नदाता

*हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !*

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !
उठों जागों तुम्हें खेत बुलाता
हल तुझसे पहलें जाग गए
बैल खेतों को भाग गए
जिससें तेरा जन्मों से नाता
हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता,

तेरी धरती क्यूँ रहेगी परती
जो तुझ पर हैं जान छिड़कती
मिट्टी पानी खर पतवार
क्यूँ रहेगी इनसे गुलज़ार
इनकों हाथों से उखाड़ फेंकता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

देख तुझें बहार आती हैं
बीज नया जीवन पाती हैं
फ़सलों को इंतजार तेरा हैं
हाथों का दुलार तेरा हैं
जो तेरे थाप से उछल मचाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

निराई गुड़ायी साफ सफ़ाई
हैं हरियाली जिनसे आई
जगत निहाल हो जाता हैं
हर प्राण शीश झुकाता हैं
फ़िर भी जो तनिक
गुमान न करता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

बातों से सरोकार नहीं हैं
किसी से भी तकरार नहीं हैं
परवाह कियें बिना चाह के
सत्य समर्पण सेवा भाव से
जो हैं ईश्वर कहलाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तुम्हें खेत बुलाता ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
   देवरिया उत्तर प्रदेश




जीवन संग्राम

http://कृष्ण -अर्जुन संवाद प्रेरित मेरे द्वारा रचित #कविता ———-////————— #जीवन संग्राम के महासमर में, विजय का वरण तभी होगा, गिद्ध और सियारो से हटकर यदि सिंह दल गठन होगा । #प्रवासी गिद्ध और सियार भी भला किसी के यार हुए, कल मेरे द्वार थे, आज तेरे द्वार भए। #सिंह की यारी केवल सिंह से हो सकती है, गिद्ध और सियार की यारी केवल द्वेष क्लेश दे सकती है । #सिंह पुत्र है तो सिंह जैसा व्यवहार कर, सियारो के इस झुंड को रण क्षेत्र से बाहर कर । #धर्म क्षेत्र पर आगे बढ़कर मानवोचित व्यवहार कर, मानवता की रक्षा कर गिद्ध भाव का संहार कर ।। #सत शक्ति को साथ लेकर विजय का आह्वान कर, अपने तीक्ष्ण बाणों से शत्रु का संहार कर ।। #धर्म अधर्म के महासमर में विजय का वरण जरूर होगा, प्रभु कृपा बनी रही तो दुष्टदमन जरूर होगा । #जय श्री राम #अनिल राणा प्रतिहार, सह सचिव सक्षम हरियाणा ।।




मर्यादा पुरुषोत्तम राम

http://मर्यादा #पुरुषोत्तम श्री राम को समर्पित मेरी #कविता ——–////—————– #श्री राम तुम महान हो, समस्त जगत का कल्याण हो इतिहास नहीं वर्तमान हो, प्राणों का आह्वान हो राष्ट्र की गौरव गाथा हो, मर्यादा में पुरूषोत्तम हो श्री राम तुम महान हो, जगत का कल्याण हो ।। #अयोध्या में जन्मे हो, रघुकुल के ध्रुव तारे हो नर नहीं नारायण हो, प्राणी मात्र को प्यारे हो सृष्टि के कण कण का प्रकाश हो, दुष्ट जन का विनाश हो श्री राम तुम महान हो, जगत का कल्याण हो ।। #इक्ष्वाकु वंश के वंशज हो, मंगल भवन मंगलकारी हो वीरो में सर्वोत्तम हो, सदैव अक्षयकारी हो सभी को सुलभ भक्ति हो, अंतर्मन की शक्ति हो श्री राम तुम महान हो, जगत का कल्याण हो ।। #भारत के रोम रोम में बसे हो, सबके प्रिय राम हो मिलने पर श्री राम हो, बिछुड़ने पर राम राम हो महानता का आकाश हो, अंधेरे मन का प्रकाश हो श्री राम तुम महान हो, जगत का कल्याण हो ।। #जय श्री राम ।।




जिंदगी और सूरज

कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
जिंदगी दौड़ती है चाहतों के रफ्तार में।
कहीँ जब शाम ढलती है जिंदगी
ठहर सी जाती है चाहतों के चाँद
के इंतज़ार में।।
इंसा हर लम्हे को जीता चाहतों
ख्वाईसों के इंतज़ार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है ..:….
सुबह औ शाम इंसा तन्हा ही जीता जन्हा ही जीता रिश्तों के खुमार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
उम्र गुजरती जाती है उम्र गुजरती जाती है धुप छाँव गम ख़ुशी बहार
में ।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
सांसो धड़कन का इंसा कस्मे है खाता जिन्दगी के प्यार इज़हार में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
बचपन याद नही यौवन बीता जाता जश्न जोश जज्बा गुमान में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
जँवा इंसा उगता सूरज उम्मीदों
आरजू की उड़ान में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है
ढलता यौवन मकशद मोशिकी का
तराना जिंदगी की शाम में।।
रौशन चाँद का आना जिंदगी का
मुस्कुराना सफ़र है सुहाना
कभी जिंदगी ऐसी दुनिया को मिलती है दुनियां सूरज चाँद संग ज़मीं पे जीती है खुशियों के
कायनात में।।
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




चाँद से सवाल

चाँद से सवाल

चंदा मामा हमारे घर भी आओ ना,
मेरे संग बैठकर हलवा-पूड़ी खाओ ना ।

मुझे करनी हैं, तुमसे ढेर सारी बातें
तुम्हें बुलाते-बुलाते गुज़र गई कई रातें ।

अब ना चलेगा तुम्हारा कोई भी बहाना
जल्दी से मेरे सवालों के जवाब देते जाना ।

तुम्हें घेरे हुए हैं जो- बहुत से टिमटिम तारे,
क्या वे सब हैं – दोस्त तुम्हारे ?

तुम रोज़ छोटे-बड़े, कैसे हो जाते हो,
कभी पूरे गोल तो कभी ग़ायब हो जाते हो ?

सुना है तुम सूरज चाचा से बहुत डरते हो,
उसके आते ही छिपने की क्यों करते हो ?

अगर तुम नहीं आए तो मैं ग़ुस्सा हो जाऊँगा,
तुम्हारे हिस्से के भी पकवान , खुद खा जाऊँगा ।

रचनाकार:- संदीप कटारिया (करनाल,हरियाणा)

 




यूँ मायूस मत बैठो

यूँ मायूस मत बैठो ।

यूँमायूस मत बैठो, हँसों मुस्कुराओं दोस्तों ।
ख़्वाब से निकलो हक़ीक़त में आओ दोस्तों ।।

एक उम्र गुज़ार दी ज़माने वालों के काम देखते-देखते;
अब बारी तुम्हारी है-कुछ कारगुज़ारी करके दिखाओ दोस्तों ।

फूलों की मासूम-महक़ती वादियों में बहुत रह लिए;
अब काँटों में रहने का हुनर भी सीखों और सिखाओ दोस्तों ।

चाँद-सितारों को घर तक लाना जब ना हो मुमकिन;
तो जुगनुओं से ही अपने सहन को सजाओ दोस्तों ।

दौलत और शोहरत के ढेर लगा कर क्या करोगे;

बस,सदाकत-हक़गोई पर फ़ना हो जाओ दोस्तों ।

दुनियाँ वाले तो चाहेंगे ही-आपको हर बार गिराने की;
पर ख़ुद को ख़ुद की नज़र से कभी मत गिराओ दोस्तों ।

मंदिर मस्जिद में जाकर क्यों वक़्त ज़ाया करते हो;
जब क़ाबलियत है तुममें , पहले ख़ुद को ख़ुदा बनाओ दोस्तों ।

खैर इस ‘दीप के साये तले भी अंधेरे ही पनपते हैं;
बेहतर होगा ख़ुद को चाँद-सूरज की तरह चमकाओ दोस्तों ।

यूँ मायूस मत बैठो, हँसों मुस्कुराओं दोस्तों ।
ख़्वाब से निकलो हक़ीक़त में आओ दोस्तों ।।

रचनाकार – संदीप कटारिया (करनाल,हरियाणा)




प्रेम महज ढ़ाई अक्षर का शब्द नहीं

प्रेम महज 

ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं

प्रेम में है समाहित

भावना रुपी समुद्र

ज्ञान रुपी नभ।।

प्रेम महज 

ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं

प्रेम पूजा है

प्रेम की परिभाषा

चंद शब्दों में नहीं दी जा सकती

प्रेम अपरिभाषित है।।

प्रेम महज

ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं

प्रेम की महिमा का वर्णन

शब्दों में वर्णित करना

है सरल नहीं।।

प्रेम महज

ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं

जिस तरह मात-पिता की महिमा

लफ़्जों में व्यक्त करना है कठिन

ठीक उसी तरह

प्रेम को प्रेम की विशेषताओं को

लफ़्जों में व्यक्त करना है नामुमकिन।।

प्रेम महज

ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं

और जिसने भी प्रेम को 

समझा है महज एक शब्द

उससे बड़ा

अल्पज्ञ कोई नहीं।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित




परिंदे जानते होंगे

आसमान छोटा हो गया है 

परिंदों के ख़ातिर

इंसानी दिमाग हो रहा है 

धीरे-धीरे शातिर

ज़मी पे अभी पाँव

पूरी तरह रखे नहीं हैं 

आसमां में आशियाँ बनाने में 

होने लगा है माहिर 

अभी तक समंदर की

थाह भी पाई नहीं 

अम्बर की दास्ताँ 

करने लगे हैं ज़ाहिर

न मालूम ये परिंदे

कभी कुछ सोचते भी होंगे 

या बस इतना कि जमीन 

पर रहते हैं काहिर 

जो बेचतें हैं ईमान

गैरों के हाथों अपना 

वे दुनिया भी बेच देंगे 

हैं इतने बड़े ताजिर

क्या जाने  ये परिंदे  

जानते होंगे उसे भी 

आसमान में रहता है 

जो सबसे बड़ा साहिर 

 

गीता टंडन 

6.2.21

 




मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना

 

मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना

 

मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना
छोटी सी बात नहीं है
जीवन का सार है उन शब्दों में
जिनमें तेरी उमंग, तेरे साहस,
तेरी सहनशीलता, तेरे अह्सास,
तेरी चेतना, तेरे सपनों की दुनिया
बसी होती है मेरी कविता में
जो मृत को चेतन, चिंतन को विमुक्त
अवरोधक तो चलायमान,
निष्ठुर को निष्ठावान बनाने की
प्रेरणा देती है मेरी कविता
यूँ ही नहीं कोई चंदा,
कोई हरि होता है, शब्दों के जादू में
शोणित नाद की गूँज होती है
वही गूँज प्रेरक बनकर पाठक
को झकझोर देती है मेरी कविता
तेरे इसी दैदीप्य स्वरुप को
पढ़ा जाता है मेरी कविता में
तुझे, अनवरत संघर्ष की वाहक
बनाकर पढ़ा जाता है मेरी कविता में

हरिराम भार्गव “हिंदी जुड़वां”

सर्वोदय बाल विद्यालय पूठ कला्ं,

शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली