high way
हाई वे
कड़कती धूप की तपती ज़मीन पर नंगे पाँव,पिचके पेट, अधेड़ उम्र का नाटा सा आदमी ‘हाई वे’ में “खाना तैयार है”बैनर के साथ खड़ा था। आने-जानेवालों को आवाज दे देकर उसके प्राण सूख गए थे । उर्र्र्रर्र्र फुर्र्ररर अतिवेग से चलती हुईं एक दो गाड़ियाँ अंदर आती तो थी लेकिन फिर उसी वेग से लौट भी जातीं थीं । एक आध अगर कोई खाने की टेबुल तक पहुँच जाता, तो इसकी सांस में सांस आ जाती ।
बीच बीच में मालिक की तीव्र निगरानी से डरते डरते वह ड्यूटी पर तैनात था। गर्मी की वजह से पाँव लाल अंगार हो गए थे। धूप से बचने के लिए जब वह पैर को बदल बदलकर जमीन पर रखता, तो लगता जैसे कसरत कर रहा हो। भीषण गर्मी के तनाव कोझेलता हुआ वह हसरत भरी निगाहों से सड़क को ताक रहा था । बड़ी प्यास लगी थी,लेकिन पीने केलिए पानी कहाँ? दोनों होंठों को बार बार गीला करते हुए फिर अपनी निगाह डालता रहा।
तभी दूर से देखा, एक मोटर में चार पांच नवयुवक बिसलेरी बोतल से पानी को एक दूसरे के प्रति उछालकर खेलते कूदते गर्मी में राहत पा रहे थे । नीचे गिरती हर एक बूंद को दया एवं लालच की दृष्टि से वह देख रहा था इस उम्मीद से कि काश ! कुछ बूंदें उसके मुंह में भी पड जाएं ! पानी की हर बूंद को तरसता बदनसीब इंसान उन युवकों को अपने लबलबाते होंठों को रगड़ता हुआ आस भरी निगाहों से घूर रहा था।
भूख अपनी सीमा लांघ गई थी , कंठ में आवाज़ सूख गई थी ,चिल्लाने में अपनी पूरी मेहनत लगा रहा था ।
अचानक एक गाडी इसकी पुकार सुनकर होटल की तरफ मुडी । गाडी की खिड़की के पास बैठी एक छोटी सी बच्ची ने उसको देखा और मुस्कराई। उसकी भोली सुंदर सी निष्कपट मुस्कान पर वह मंत्रमुग्ध सा हो गया लेकिन पलटे बिना स्मृति पर उस सुन्दर सी छवि को अंकित करके वह पुनः काम पर लग गया ।
सोच रहा था “इतने लोगों को चिल्ला चिल्लाकर बुलाता हूँ, मगर इनमें से किसी का भी ध्यान तक आकर्षित नहीं कर पाता हूँ । मुश्किल से एक दो कारें अंदर आतीं हैं और उसी वेग से बाहर भी निकल जाती हैं ।अगर एक आध को भी भोजन केलिए मना लूँ , तो मालिक की खुशी दुगुनी हो जाएगी ।
इसी सोच में डूबे उस आदमी ने अचानक एक कार की आवाज़ सुनकर , पलटकर देखा, वही बच्ची भोली मधुर मुस्कान के साथ दो चॉकलेट उसके हाथ थमा कर चली गयी ।
समय की गति तीव्र होने लगी । तीन बजते वह तनावमुक्त हुआ और होटल की तरफ बढने लगा । यूनिफोर्म को उतारकर फटे चिथड़े शर्ट से अपने पतले शरीर को ढककर वह मालिक के पास जा खड़ा हुआ । खाने की एक पोटली मालिक ने उस आदमी की ओर बढायी।
कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए वह “हाय वे” से तेज कदमो से चलता हुआ पगडण्डी की राह अपनी कुटीया पर जा पहुंचा जहाँ उसकी बीमार पत्नी बड़ी देर से उसकी राह देख रही थी । फटी पुरानी साड़ियों से बने उस बिस्तर से वह उठकर बैठ गयी ।
पति ने अपना सारा वृतांत पत्नी को सुनाया और उसका हाल चाल पूछते हुए बडे प्यार से खाना खिलाया। खुद खालेने के बाद बच्ची के द्वारा दी गयी चॉकलेट भी पत्नी को खिलाते हुए दोनों अपनी दुनिया में खो गए ।
द्वारा
प्रो. ललिता राव
अद्यक्ष, भाषाई विभाग , आर.वि.एस महाविद्यालय ,कोइम्बतोर
सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति,संसदीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार
अद्यक्ष, भारतीय भाषा मंच, SSUN तमिलनाडु इकाई
अद्यक्ष, हिंदी साहित्य भारती, तमिलनाडु इकाई
संपर्क : 9994768387