1

सूर्य और संसार

ब्रह्म मुहूर्त की बेला में
मंदिर में घन्टे घड़ियाले
बजते गुरु बानी सबद
कीर्तन गुरुद्वारों में
मस्जिदों में आजाने होती।।
सबकी उम्मीदे चाहत
नई सुबह के आने वाले
सूरज से होती।।
आएगा अपनी किरणों
संग सृष्टि की दृष्टी युग
चेतना नई कर्म क्रांति की
ऊर्जा का वर्तमान भविष्य
लाएगा।।
मर्यादाओं की किलकारी
भावो में कृष्ण कर्म योग
ज्ञान योग जीवन के कुरुक्षेत्र
में प्रभा प्रभाकर लाएगा।।
अहिंशा परमो धर्मह के बुद्ध
महाबीर प्रेम दया क्षमा करूणा
संदेश जीजस का दिवाकर लाएगा।।
लूथर नेल्सन नेता महात्मा
रूपो में चैतन्य चेतना के
परिवर्तन का पाञ्चजन्य
बजाता भुवन भाष्कर
कहलाता।।
किरणों का आदि मध्य अंत
दिवस कहलाता युग सृष्टि
का प्राणी नव चेतन की उर्जा
उत्साह से संचारित हो जाता।।




प्रेम परक कविता – प्रिय छवि

प्रिय छवि 

कवि अपने नैसर्गिक वितान में अपना प्रिय ढूंढता है उसी में कवि की खुशियाँ व काव्य-धारा के शब्द की महक बिखरती हैं। मेरे इसी नैसर्गिक प्रियतम जहाँ ऊपर अम्बर में उड़ते खग, रंग बिरंगे बादल और धरा पर बासंती समीर, रंग बिरंगी गुलशन की महक इन्हीं प्रिय छवि को यह कविता समर्पित है

प्रिय छवि

प्रिय छवि, देखूं चहुँ ओर

जादूगर, वो तो चित चोर।

दिवस भले हो रजनी श्याम

मन उचरे प्रिय का ही नाम।

सोवत जागत नैनन समाए

वही छवि मेरे मन को भाए।

मनस पटल बना प्रिय धाम

प्रिय भजन ही इसका काम।

भूख न लागे, न लागे प्यास

चित्त को है, प्रिय की आस।

ओष्ठ न कुछ भी कहना चाहें

प्रिय नाम की ही धुन  गाहें।

समीर स्पर्श मोहे ऐसे सताए

प्रिय मिलन की चाह जगाए।

देखूँ जब सुमन भ्रमर गुंजार

पाऊँ प्रिय से मिलन संसार।

श्वास श्वास संग जीना संग

मोह हृदय रंगा प्रिय के रंग।

चाँद करे अब ऐसी ठिठौली

तू तो है बस, प्रिय की गौरी।

महक रहा मन महके तन

कहो प्रिय! आओगे कब।

दर्पण में भी प्रिय छवि पाऊँ

देखूँ मैं, प्रिय रूप बन जाऊँ

प्रिय ही जीवन, प्रिय ही सार

मुक्ति  पथ का वही आधार।

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”

प्रवक्ता (हिन्दी)

राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत 

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं –  घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे,  मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ 

उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार