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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता नैतिकता और नारी

घृणा घमंड का उत्पात
अनैतिकता अत्याचार की
बोझिल नारी ।।
युग मानवता परम् शक्ति
सत्ता पर भारी नारी।।
दहेज का दानव हो
या वहसी का व्यभिचार
या कोख की शोक युग
मानवता नारी से हारी।।
नारी का सम्मान
प्रगतिशील युग समाज
की बारी फुलवारी।।
बेटी बैभव नारी का आधार
ओजस्वी राष्ट्र  की नारी पहचान परिवार की नाज़
अरमानों उम्मीदों की विश्वास।।
बेटी का जीवन पल प्रहर संग्राम
अस्तित्व की खातिर माँ की
कोख में लड़तीं जीवन पथ
की योद्धा महान।।
पैदा होते ही माँ को ताना
किशोर में हुई तो कुत्सित
दृष्टि का ताना बाना
पल प्रहर लड़ती जाती
बेटी के लिये दुनिया युद्ध
मैदान।।
रिश्तो का गौरव मान
फिर भी बेटी को रिश्तो से भय
बाहर दुनिया तमाम का भय
कहीं चैन सुकून नही।
फिर भी निर्भीक निडर
मान अपमान में सहज
आसमान में उड़ती आशाओं
के पंख संग बेटी अरमानो की
लिये  नारीआस्था आस ।।

 




अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता नारी और समाज

नैतिकता का अभिमान
पुरुषार्थ पराक्रम की
अर्थ आवाज़ ।।
नारी कमजोर नही
पग प्रगति की शक्ति
भाग्य काल भगवान की
अंतर शक्ति मान।।
कोमल हृदय भावुक भाव
शांत शौम्य मधुर मार्मिक
करुणा वात्सल्य प्यार दुलार।।
कमसीन नादा नाजुक भोली
दिल दौलत दूँनिया दिलदार।।
चंचल चितवन शोख अदाएं
कला गीत ग़ज़ल कल्पना की
फनकार।।
हसरत हस्ती आरजू
हुस्न इश्क मोहब्बत
ख्वाब हकीकत यार
प्यार यलगार।।
कली फूल शोला शूल
ममता ममत्व प्रेम स्नेह
देवो की देवी श्रद्धा मनु
युग सृष्टि का व्यवहार।।




गंभीर जुआरी – युधिष्ठिर के अवतार

कोई पूछ बैठे कि जुआ अधिक से अधिक किस देश में खेला जाता है? तो ’देश’ सुनते ही लास वेगास को भूलना पड़ता है। आश्चर्यजनक उत्तर इस बात में मौजूद है कि आस्ट्रेलियावासी उत्तरी अमेरिका के देशों से प्रति व्यक्ति दुगुना खेलते हैं। तभी तो यहाँ के केवल  2.1 करोड़ लोगों के बीच दुनिया की 20% पोकर मशीने लगी हुई  हैं। कुल आबादी के हिसाब से आस्ट्रेलिया का विश्व में 52 वा स्थान हो तो क्या हुआ? कुल पोकर मशीनो के हिसाब से उसे 7 वा स्थान होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ 10 ऐसी मशीने पाई गई जहाँ आ कर लोग एक वर्ष में 1 से 2 करोड़ डालर (प्रत्येक मशीन पर)  तक स्वाहा करते हैं। फिर क्यों न आस्ट्रेलिया को दुनिया का सबसे बड़ा  जुआरी देश समझा जाय!

माना कि पश्चिमी देशों में जुये के मामले में मूल्य कुछ अलग हैं। मनोरंजन के लिये यहाँ थोड़ा बहुत जुआ खेल लेना बुरा नहीं समझा जाता पर इसे अजूबा नहीं तो और क्या कहा जाय कि मेलबर्न कप की घुड़दौड़ के दिन (जो कि नवम्बर माह के पहले मंगलवार को ’मनाया’ जाता है! ) जैसे पूरे  देश की साँस रूक जाती है और  एक उत्सव जैसा वातावरण हो जाता है।  पिछली 1 नवंबर को मैंने भारत में अपने मित्र को फोन पर  बताया कि  “आज  मेलबर्न कप की घुड़दौड़ होने से यहाँ मेलबर्न में सरकारी और गैर सरकारी सभी जगहों पर अवकाश है” तो उसने बार-बार “घुड़दौड़ की छुट्टी!” कह कर हँसते हँसते  अपना बुरा हाल कर लिया।

मनोरंजन का उद्देश्य अलग किन्तु जिन लोगों को जुये में भारी वित्तिय हानी सहनी पड़ती है और साथ ही परिवार का टूटना, घर बेचा जाना, जघन्य अपराध ,  मानसिक  तनाव और आत्महत्या आदी से गुजरना पड़ता है उन्हे ’गंभीर जुआरी’ की संज्ञा दी जाती है। शोध-कर्ता बताते हैं कि जुआ खेलना और गंभीर जुआरी होना ये दोनो अलग अलग चीजें हैं। दोनो को विभाजित करने वाली रेखा व्यक्ति की आकांक्षा में है। यदि आप पैसा कमाने के लिये या धनवान बन जाने के लिये जुआ खेलते हैं तो यह नैतिक रूप से गलत है क्योंकि तब आप धनोपार्जन के लिये बुद्धि या  परिश्रम को महत्व नहीं देते – भाग्य के भरोसे रहना चाहते हैं। लेकिन मान लीजिये वास्तव में आप पैसा बनाने के इरादे से नहीं खेलते तो उसे आप अपनी आर्थिक  समस्याओं का समाधान समझ कर नहीं खेलेंगे  फिर आप  हद से ज्यादा पैसा और समय गवाँना भी मंजूर नहीं करेंगे। इन हालात में जुआ केवल दिल बहलाव का साधन समझा जा सकता है। अपने इस विधायक रूप में  यह मनोरंजन के अलावा सामाजिक मिलाप का एवं मीठी आशा और मीठे सपनों का अवसर समझा जाता है। हालाँकि धर्म भी यही सब कुछ दे देता है – मीठी आशा और मीठे सपने। पर जब धर्म की पकड़ ढीली होने लगती है तो कुछ लोग इसके लिये जुये की तरफ भागते हैं। 

अब प्रश्न उठता है गंभीर जुआरी  कौन है? सर्वमान्य परिभाषा के अनुसार गंभीर जुआरी वह है जिसमें इन दस में से ५ संकेत मौजूद हों :  बार बार जुये का विचार आना, लम्बा समय जुये में बिताना, जुये का अवसर न मिलने पर चिड़चिड़ापन, समस्या से भागने के लिये जुआ खेलना और जुये में नुकसान पूरा करने के लिये ज्यादा खेलना। केवल इन पाँच संकेतों से यह तो तय हो जाता है कि खेलने के लिये केसिनो में प्रवेश करते समय यदि आपको थोड़ा डर नहीं लगता तो या तो आप बहुत धनवान हैं या फिर आपने जुये के खेल को अच्छी तरह समझा नहीं है क्योंकि अब आगे के ५ संकेत गंभीरता की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं : जुआ खेलने की सीमा छुपाने के लिये झूठ बोलना, जुआ न खेलने के इरादे में असफल प्रयास,  परिवार या मित्रों के सामने नुकसान का पैसा अदा करने के लिये अपील ,परिवार का प्रेम या नौकरी पर आँच आने पर भी जुआ न छोड़ पाना और अंत में पैसा पाने के लिये अपराध। इन संकेतों से इतना तय है कि जुये के लिये स्त्री को दाव पर लगाने का काम केवल युधिष्ठिर ने नहीं किया था, इसमें कंगाल होने वाला प्रत्येक व्यक्ति परोक्ष रूप से स्वयं को तथा अपने परिवार को दाव पर लगा देता है। यह एक ऐसी समस्या है जो अमेरिका या विश्व के वित्तिय ढांचे के लुढ़कने के साथ भी नहीं लुढ़कती बल्कि ज्यादा बढ़ती है। जब बेरोजगारी  भी गंभीर जुआरी का रास्ता नहीं बदल सकती तो फिर और क्या समाधान हो सकता है? आस्ट्रेलिया में  २.३% जनता गंभीर जुये की लत में बुरी फँसी हुई है और इस प्रकार उनके परिवार सहित ३३ लाख लोग प्रभावित हैं। इसमें अंतिम परिणति आत्महत्या तक भी पहुँच जाती है। आत्महत्या के अन्य कारणों के साथ गंभीर जुआ भी अपने आप में एक मुख्य मुद्दा बनता है।

इस स्थिति की तुलना में भारत का हाल ऐसा है कि वहाँ लोटरी और घुड़दौड़ के अलावा सभी प्रकार के जुये अवैध हैं और केवल गोवा और सिक्किम के राज्य  ’ओनलाइन जुआ’  खेलने की  इज़ाजत देते है। अवैध घोषित कर यह मान लेना बड़ा सुखद लगता है कि इससे  रोकथाम हो जाती होगी पर इसके अभिशाप से  प्रभावित लोगों के आँकड़े न मिलने की स्थिति में अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में  प्रतिवर्ष लगभग ३० अरब डालर  का जुआ वैध तरीके से खेला जाता है और अलग से लगभग उतना अवैध तरीकों से भी।  आस्ट्रेलिया  में  कुल १२८ अरब डालर का जुआ खेला जाता है पर जीतने की लालच जुआरियों के लिये महत्वपूर्ण है अत: एक बहुत बड़ा हिस्सा जीतने वालों दे दिया जाता है। इस उद्योग के मालिकों का दावा है कि इसमे से १९ अरब डालर निकाल कर शेष हिस्सा खेलने वालों को जीत के तौर पर वापस दिया जाता है।

भारत हो या आस्ट्रेलिया या फिर कोई भी देश हो, वहाँ के सभी गंभीर जुआरियों का नैतिक उत्तरदाइत्व   जुये के उद्योग-मालिकों पर भी जाता है। है। कहने के लिये कुछ केसिनो और लोटरी-प्रोग्राम के मालिक ऐसा प्रावधान रखते हैं कि  गंभीर जुआरी होश में होने पर आवेदन कर सकें कि उनके जुआ खेलने के अधिकार छीन लिये जायें। लोटरी-प्रोग्राम में ऐसे लोगों को जीतने पर भी पैसा न मिलने का प्रावधान रखा जाता है जिससे वे जुआ खेलने के लिये हतोत्साहित होते रहें।  इतना सब होने के बाद भी वास्तविकता यह है कि जुआरी स्वयं फिर से जुआ खेलने चले जाते हैं। मुश्किल यह रहती है कि सुरक्षा-कर्मी इन्हे भगाने के लिये पहचान पाने में असमर्थ होते हैं।

आस्ट्रेलिया की प्रधान मन्त्री जुलिया गिलार्ड का प्रस्ताव है कि तीव्र गति से खेली जाने वाली पोकर मशीनों पर खेलने से पहले रकम की सीमा घोषित करना आवश्यक करार दिया जाय जिससे ग्राहक को एक दिन में उतनी राशी से ज्यादा की हानी न हो। जब कि ग्रीन पार्टी का प्रस्ताव है कि ऐसी मशीनो पर एक बार में एक डालर खेलने की सीमा निर्धारित की जाय। क्योंकि इस तरह एक-एक डालर करके १२० डालर  हारने में ही एक घंटा लग जाता है।  पर यह तो बड़ी ज़्यादती है! ऐसे तो जिन्दगी भर की कमाई लुटाने में कितना वक्त लग जायगा ! जुये के मालिक इन दोनो प्रस्तावों का  डट कर विरोध कर रहे हैं; वे जानते हैं कि उन्हें असली आमदनी गंभीर जुआरियों से होती है और इनकी तकलीफों को देख कर घोड़ा अगर घास से यारी करले तो फिर खायेगा क्या?

मनोवैज्ञानिक कहते हैं जुआ खेलना एक आंतरिक रुझान है। अपना प्रिय तरीका न मिलने पर ये जुआरी कोई भी तरीका इस्तेमाल कर लेते हैं। गंभीर जुआरी हमेशा तीव्र गति से हारने-जीतने वाले खेल पसंद करते हैं तथा इनके दैनिक व्यवहार से पत्नी या घरवालों को ऐसा लगता है कि वे ड्रग आदि की समस्या में फँस गये हैं। ऐसे जुआरियों को कौन समझाये कि उन्हें  डॉक्टर या सलाहकारों की मदद लेनी चाहिये या कि  ATM पर पैसा निकाल सकने की सीमा कम कर देनी चाहिये और कम्प्यूटर पर जुआ खेलने की सुविधा को अवरोधित कर देनी चाहिये। उनकी झिझक मिटाने के लिये  ’गेंबलिंग एनोनिमस’ व हेल्पलाइन  हर तरह से मदद देने के लिये तैयार भी होते हैं पर मदद चाहने वाला फोन पर अपना मुँह तो खोले। 

वैज्ञानिक कहते हैं कि सेरोटोनिन की कमी से व्यक्ति में जुए का नशा सा हो जाता है और वह  उसकी बाध्यता का शिकार हो जाता है पर जैसा कि उपर लिखा है मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि  यह एक आन्तरिक झुकाव है जो किसी भी शर्त पर जुआरी को खेलने के लिये मजबूर करता है। इस पर पदार्थवादी कहेगा कि सेरोटोनिन नामक रासायनिक पदार्थ में ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति के अंतस में जुये की रूझान को कम करती है पर ’चेतनावादी’ द्रष्टिकोण से यह पदार्थ नहीं केवल रूझान महत्वपूर्ण है और यही रूझान अपने अस्तित्व के लिये सेरोटोनिन कह लो या भले ही “सोरी, टोनी ! ” कह लो; कुछ भी उटपटांग नाम के रासायनिक पदार्थ को कम कर दे या उसका निर्माण कर ले तो इसमें आश्चर्य क्या है?  सारी इस दार्शनिक भूलभूलैया से उपर उठ कर क्यों न हम ऐसा सोचें कि पदार्थ और चेतना दोनो आपस में हाथ में हाथ मिला कर चलते हैं। सवाल इस बीमारी का है और यह बीमारी  किसी एक जाती या एक सामाजिक इकाई पर विशेष रूप से तो  वार करती नहीं तथा धनी निर्धन, पुरूष-स्त्री या छोटे बड़े में फर्क किये बिना हमला करती है अत: किसी एक टोली पर अधिक ध्यान देकर इस समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। काश ! ये जुआरी किन हब्बार्ड की सलाह को ठीक से समझ पाते कि  यदि पैसा डबल करना है तो सही तरीका यही है कि नोट को बीच में से मोड़ कर उसे जेब  में रख लिया जाय।

 

 




मुझे उस ओर जाना है

मुझे उस ओर जाना है

मुझे उस ओर जाना है” कविता समस्त स्त्री वर्ग की जिजीविषा को उन्मुक्त वातावरण में जीने, खुलकर हँसने, अपने अरमानों को पूर्णता की ओर ले जाने का आह्वान करती है। 

मुझे उस ओर जाना है

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ तुम हो जहाँ मैं  हूँ

जहाँ हम एक जीवन हों।

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ जीवन का स्पंदन हो

मृत्यु का नहीं भय हो।

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ आदि तुम्हीं अंत हो

न कोई और परिचय हो।

 

मुझे उस ओर जाना है

गगन विस्तार विस्तृत हो

न सीमाओं का बंधन हो।

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ तुम एक ही तत्व हो

न भेदों का जहां गढ़ हो।

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ तेरा न मेरा हो

जो भी हो हमारा हो

 

मुझे उस ओर जाना है

समष्टि का जहाँ हित हो

व्यष्टि भी वहीं युक्त हो।

 

मुझे उस ओर जाना है

जहाँ हर जीव विकसित हो

हर प्राण विलसित हो।

 

कवयित्री परिचय –

 

मीनाक्षी डबास “मन”

प्रवक्ता (हिन्दी)

राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत 

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

 

प्रकाशित रचनाएं –  घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे,  मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ।

उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार। 




वो पल

                                     वो  पल

                                                            दिल के कोने में

                                                             चुपके चुपके  झरोखों  से,

                                                               हवा के साए आये

                                                               कुछ गुनगुना गये,

                                                              यादें नहीं जाती,

                                                              गुजरे हुए पलों की,

                                                               ओस की बूंदों सी,  

                                                              अमलतास के फूलों पर,

                                                              अधखिली कलियों से

                                                                काँपते  अधरों  पर,

                                                                बिखरते झरते पत्तों से ,

                                                                ख्वाहिशों के दामन में ,

                                                             फुसफुसाकर कह रहे है ,

                                                              पल ये यादें सहेज रहे है ,

                                                                          ये आशियाना,

                                                                      छीन न ले कोई,

                                                                     कभी न जाए दिल से ,

                                                                       यादें तुम्हारी,

                                                                    कुम्हलाती धूप भी,

                                                                    धुंधला न कर पाई ,

                                                                   शाम की मख़मली,

                                                                    सुर्ख रोशनी में ,

                                                                    लगाए रखा है  ,

                                                                    यादों को तुम्हारी,

                                                                   सीने से हमने

                                                       अपराजिता की भीनी सौंध

                                                                      और हरी हरी दूब पर,

                                                                 उजली निखरी चाँदनी में ,

                                                                         एक ऐसा पल था,

                                                                           जब हम साथ थे,

                                                                          चटकती कलियों  ने,

                                                                         कई राज खोले थे,

                                                                        आज भी हम न भूले,

                                                                तुम्हारी वो सर्द निगाहें, ,

                                                                          काश आ जाते,

                                                                      तो मुस्करा देते ये पल ,

                                                                     कलियाँ बिछ जातीं,

                                                                             हमारी राह में ,

                                                                             थम गईं है सांसे,

                                                                        रुक गई है निगाहें

                                                                             बरस रही हैं आँखें ,

                                                                        जिंदा हैं हम क्योंकि,

                                                                        याद है उन पलो की ,

                                                                          जो हमारे साथ हैं,

                                                                          जो हमारे साथ हैं  !!!!!!

                    ****पद्मावती ******

 

 

 

 

 

 

 

 

                     




मोह

मोह
़़़़़़़़़़़़
सांसों से मोह कभी छूटता नहीं ,
बंधनों में बंध कर भी दम घुटता नहीं!!

शाम निराश तो करती है, पर सुबह की किरणें देख आस का धागा टूटता नहीं!

तिरस्कार, अपमान सब सहना कठिन होता है,
पर मन से जीने का हौसला छूटता नहीं!!

मुस्कानों से भरे चेहरे का एक भी कोना झुर्रियों से बचा नहीं ,
ये आईना भी अब झूठ बोलता नहीं !!!

तुम्हारी आंखों में प्यार वही ढूंढती हूं…
पर कमज़ोर नजरों से साफ कुछ दिखता नहीं !!

उम्मीद करती हूं तुम पुकार लो मुझे प्यार से ,
घुटती ही सही अपने आवाज़ से संवार लो फिर से…
तेरे प्यार की कहानी से मन उबता नहीं!!!

उम्र इतनी बेरहम होगी
नहीं जानती थी ,
जिंदगी इतना रुलाएगी पता नहीं था !!

सभी परेशानियों के बावजूद आश्चर्य है!!
जीने का हौसला बिखरता नहीं!

मोह सांसो से इतना गहरा जाने क्यों है ??
उखडती सांसें हर बार डराती है ..
क्या करुं!!!
सांसो से मोह अब भी छूटता नहीं……..

क्रांति श्रीवास्तव
#अभिव्यक्ति




मोह

मोह
़़़़़़़़़़़़
सांसों से मोह कभी छूटता नहीं ,
बंधनों में बंध कर भी दम घुटता नहीं!!

शाम निराश तो करती है, पर सुबह की किरणें देख आस का धागा टूटता नहीं!

तिरस्कार, अपमान सब सहना कठिन होता है,
पर मन से जीने का हौसला छूटता नहीं!!

मुस्कानों से भरे चेहरे का एक भी कोना झुर्रियों से बचा नहीं ,
ये आईना भी अब झूठ बोलता नहीं !!!

तुम्हारी आंखों में प्यार वही ढूंढती हूं…
पर कमज़ोर नजरों से साफ कुछ दिखता नहीं !!

उम्मीद करती हूं तुम पुकार लो मुझे प्यार से ,
घुटती ही सही अपने आवाज़ से संवार लो फिर से…
तेरे प्यार की कहानी से मन उबता नहीं!!!

उम्र इतनी बेरहम होगी
नहीं जानती थी ,
जिंदगी इतना रुलाएगी पता नहीं था !!

सभी परेशानियों के बावजूद आश्चर्य है!!
जीने का हौसला बिखरता नहीं!

मोह सांसो से इतना गहरा जाने क्यों है ??
उखडती सांसें हर बार डराती है ..
क्या करुं!!!
सांसो से मोह अब भी छूटता नहीं……..

क्रांति श्रीवास्तव
#अभिव्यक्ति




सूर्य और देव

पवन पुत्र शिष्य पुत्र शनि
दुःख भय भंजक न्याय दंड
के दाता सारे सूरज संग
भाग्य दुर्भाग्य के दाता।।
धर्म शास्त्रों में देवता
विज्ञान वैज्ञानिक की
शोध कल्पना परिकल्पना
अविनि परिक्रमा करती
दिवस माह वर्ष युग काल
की गति चाल का निर्माता।।
युग ब्रह्मांड त्रिभुवन का
परम् प्रकाश व्यवहार विनम्र
प्रकृति प्रबृत्ति का निर्धाता।।
कहते सूरज पृथ्वी से
प्रातः तेरे कण कण को
नव उद्देश्य चेतना से जगाता।।
नमस्कार करता प्राणी
जल का अर्घ्य चढ़ाता
मेरे ही स्पर्श सानिध्य में
योगी मुनि युगों युगों की
साध्य साधना से इष्ट देव
को पाता।।
मेरे आने पर पंक्षी 
कोलाहल कर स्वागत करते
कृषक मेरी किरणों संग
हरियाली खुशहाली का
विश्वास जगाता।।
श्रम श्रमिक को आवाज़
मैँ देता आओ मिलकर
श्रम से सृंगार करे
कर्मनेवाधिकारस्य को
आत्म साथ किये नए
सुबह के संदेशों का हो
जय जयकार अंगीकार।।




सूर्य और सत्य

युग के हर प्राणी की निद्रा
शौर्य सूर्य के सुबह शाम की
प्रतिद्वंनि आकर्षक ।।
नई सुबह आशा विश्वाश
संबाद संचार गति चाल काल
सूरज का युग ब्रह्मांड व्यवहार
ना जाने कितने ही है पर्याय नाम।।
सूरज दिनकर दिवाकर प्रभाकर
आदित्य भुवन भास्कर प्रशान्त
हृदय तल से आना जाना
संस्कृति संस्कार ।।
सप्त अश्व रथ सवार नित्य
प्रतिदिन आता जाता युग
सृष्टी जीव जीवन जगत 
मूल्यों रहस्य महत्व महिमा
धरा का सत्य सत्यर्थ सूर्य संसार।।
शौर्य सूर्य रथ के सप्त अश्व
सृष्टी के मूल तत्व छिति जल
पावक गगन समीर सूर्य के संग
अंश छठा ज्ञान कर्म सूर्य आराधन
के मूल मंत्र आधार।।
सातवां पराक्रम पुरुषार्थ
जीवन मूल्यों के शौर्य सूर्य
कर्तव्य दायित्व बोध का
जीवन मूल्य संग्राम सार।।
सप्त अश्वो का रथ सौर्य
सूर्य का सप्त महाद्विप सप्त
महासागर सप्तर्षि मंडल ध्रुव
गोलार्ध सारे ब्रह्मांड राग रागिनी
राग दिनकर का आचार।।




सूर्य और जीवन

ना कोई लाचारी ना कोई
दुःख व्याधि कायनात में
खुशियों खुशबू का हर मन
आँगन घर आँगन से नाता
शौर्य सूर्य कहलाता।।
युग मे नित्य निरंतर काल
की गति अविराम काल कदाचित
सूरज  गति का सापेक्ष काल
निरन्तर चलता जाता।।
युग की फुलवारी का भूत                                       भविष्य वर्तमान का ताना बाना आना
जाना आदित्य अर्थ बतलाता जाता।।
ब्रह्मांड के आदि अंत मे
युग काल के आगमन गमन में
प्रातः प्रशांत हृदय से उदय उदित
त्रिभुवन में सूरज काल कर्म
व्यख्याता।।
उदय वात्सल्य चंचल शीतल
कोमल नित धरा के स्वागत
का सृंगार बनाता।।
युवा प्रखर निखर प्रगति
प्रतिष्ठा का परम स्रोत पथ
प्रदर्शक उपलब्धि महिमा का
महत्व पुरुषार्थ का दाता।।
सांध्य अवसान युग को
चंद्र की शीतलता देकर
घड़ी पल प्रहर विश्राम
को जाता आंधेरो की
अनुभूति से युग को
सूरज  चैतन्य चेतना
प्रकाश का एहसास
कराता।।
प्रातः संध्या भुवन भास्कर
आते जाते रक्त लाल सी
किरणों से आत्म बोध की
प्रेरणा जगाता।।
सांध्य अवसान की बेला में
चाँद अमावस से कहता जाता
अक्षुण्ण रखना युग ब्रह्मण्ड को
निद्रा में भय भाव
मत लाना।।
सूरज के मुस्कानों से हर प्रातः
युग ब्रह्मांड निद्रा का त्याग
कर नव जीवन का आद्यपान्त
आनंद की अनुभूति करता
आशीष है पाता।।