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दोहा त्रयी :….आहट 

दोहा त्रयी :….आहट 

 

हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।

 

आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।

 

आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।

 

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित




जीने से पहले ……

जीने से पहले ……

 

मिट गई
मेरी मोहब्बत
ख़्वाहिशों के पैरहन में ही
जीने से पहले

 

जाने क्या सूझी
इस दिल को
संग से मोहब्बत करने का
वो अज़ीम गुनाह कर बैठा
अपने ख़्वाबों को
अपने हाथों
खुद ही तबाह कर बैठा
टूट गए ज़िंदगी के जाम
स्याह रातों में
ज़िंदगी
जीने से पहले

 

डूबता ही गया
हसीन फ़रेबों के ज़लज़ले में
ये दिल का सफ़ीना
भूल गया
मौजों की तासीर
साहिल कब बनते हैं
सफ़ीनों की तकदीर
दफ़्न हो जाती हैं
ज़िंदा साँसें
ख़्वाहिशों की लहद में
मोहब्बत
जीने से पहले

 

सुशील सरना/25.2.21
मौलिक एवं अप्रकाशित