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निराशा का दौर छोड़ जीत ही जाएंगे

निराशा का दौर छोड़
आशा आस्था संचार में
मिल जाएगा उद्देश्य मार्ग जीत ही जाएंगे ।।
कदम कदम जिंदगी का जंग
मुश्किलें बहुत जिंदगी एक
चुनौती ,जिंदगी की चुनौतियो से जीत जाएंगे उत्सव जीत मनाएंगे।।
उत्साह ,उमंग ,संग जीत ही जाएंगे थकना ,हारना रुकना बिसरायेंगे।।
जिंदगी के जंग में शत्रु अनेक
अंदाज़ा नहीं किधर से होगा
आक्रमण असमन्जस यह भी की
खुद के आस्तीन से धोखे फरेब का संभव हैआक्रमण।।
जीत ही जाएंगे संयम ,संकल्प
संयम का हथियार अपनाएंगे।।
जिन्दंगी के जंग की जीत
मन ,मीत ,लय ,गीत स्वर ,संगीत
तरन्नुम ,तराना जागरूक जीवन
सैनिक की ऊर्जा खजाना।
जीत ही जाएंगे कदापि स्वयं
की संस्कृति संस्कार नहीं गवायेंगे।।
दृष्टि और दिशा से बिचलित नहीं होंगे जीत ही जाएंगे स्वतंत्र अस्तित्व का अलख जगायेंगे।।
उदंडता उन्मुक्त नहीं स्वतंत्रता ,जीत ही जाएंगे इच्छा की परीक्षा को सीमा गर्व गरिमा बनाएंगे ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




धर्म राजनीति शासन

धर्म आस्था की धतातलअवनि आकाश धर्म मर्यादा संस्कृति संस्कार।।
धर्म शौम्य विनम्र युग समाज
व्यवहार।।
धर्म जीवन मूल्यों आचरण का
सत्य सत्यार्थ।।
धर्म छमाँ करुणा सेवा परोपकार
कल्याण जीव जीवन का सिद्धान्त।।
धर्म न्याय नैतिकता ध्येय ध्यान ज्ञान सिद्धांत।।
धर्म निति नियति का मौलिक आविष्कार।।
धर्म द्वन्द द्वेष घृणा
का प्रतिकार।।
धर्म कर्म वचन दायित्व कर्तव्य बोध से धारण करता प्राणी प्राण।।
धार्म धैर्य है धर्म शौर्य है धर्म
विजयी पथ का मार्ग।।
शासन शक्ति की भक्ति शासक
मति अभिमान का समय काल।।
शासन भय है भय निर्भयता का
आधार शासन शक्ति का मौलिक
अधिकार।।
शासन समन्वय है जन मानस
मन की आवाज़।।
शासन आस्था नहीं शासन विश्वास
राज्य् निति और राजनीति का साकार।।
शासन द्वेष भेद न्याय अन्याय
विवेचना समय काल स्थिती परिस्थिति की माँग।।
शासन दो धारी तलवार है संवैधानिक इसके धार।।
शासन का मूल व्यवहार शासक
की मर्जी और विचार।।
न्याय अन्याय की व्याख्या मौके
मतलब के अनुसार।।
शासन की अपनी विवसता
अँधा कभी कभी दृष्टि दृष्टिकोण
अतीत वर्तमान।।
धर्म और शासन में अंतर मात्र
धर्म मानव मानवता जीव जीवन
निरंतरता ।।
आस्था की अस्ति का
नाम सिर्फ उत्कर्ष उत्थान उत्सर्ग
प्रसंग परिणांम।।
शासन जब चल पड़ता धर्म
मार्ग पर शासन धर्म एकात्म स्वरुप जन्म लेता मर्यादा का श्री राम।।

धर्म शासन का उद्देश्य एक समरसता समता मूलक युग समाज का निर्माण।।
आस्था और विश्वाश का विलय
एक दूजे का ग्राह सम्मत का शासन ।।
जन आकांक्षाओं का
अभिनन्दन राम राज्य् की बुनियाद ।।
जन जन राम सरीखा
शासक शासन प्राण सरीखा।
धर्म का शासन ,शासन में धर्म
नैतिक युग का मर्म राम राज्य् और जय श्रीराम ।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




नौजवान

1-जिंदगी एक संग्राम है आशा का परचम लहरा जिंदगी के कदमों के
निशाँ है।।
जीवन एक संग्राम है
दुख ,दर्द ,धुप और छाँव है
आशा,निराशा रेगिस्तान और तूफ़ान है।।
आंसू ,गम ,मुस्कान है
शोला शबनम शैलाभ है
जीवन में आस्था हथियार है
विश्वाश विजेता का व्यहार है।।
जिंदगी का होना विजेता की
जिंदगी जवाँ ,जोश की शान है
जवां ,जज्बा जिन्दा जिंदगी
पहचान है।।

आशाओं की अवनि ,आरजू का आसमान नौजवान
आशाओं का परचम लहरा
वर्तमान की चुनौती कर रहा स्वर्णिम इतिहास का निर्माण।।
जिंदगी के धुप ,छाँव का योद्धा
तपती रेगिस्तान के शोलो की अग्नि पथ को पथ विजय में बदलता अवरोध सारे तोड़ता आशा का परचम लहराता समय काल की जान की मान जिंदगी जिन्दा नौजवान है।।

2- नौजवान आशा का भविष्य–

मर्द मूल्यों का ,दर्द का एहसास
नहीं तमाम दर्दो को दामन में समेटे लड़ता जिंदगी का संग्रामआशा का परचम लहरातादुनियां में रौशन नाज जिंदगी नौजवान।।

तपिस के अंगार को शबनम की
बूँद में तब्दील कर दे सर्द के बर्फ
को अपनी ज्वाला से अंगार कर दे
वक्त को मोड़ दे आशा का परचम
लहराता निराशा को विश्वाश में बदलता जिंदगी के जंग का जाँबाज नौजवान ।।
नज़रों में मंज़िल मकसद आंसू
भी मंजिलों का अंदाज़ मंजिल
मकसद के कारवां का अकेला मुसाफिर ज़माना देखता चलता
उसकी राह हर हाल में अपनी
मकसद मंजिल की मुस्कान आशा
का परचम लहराता जिंदगी का अंदाज़ नैजवान् ।।
अपने हद हस्ती को निर्धारित करता दुनियां के दामन की खुशियों का तरन्नुम तराना।।
आशा का परचम लहराता जज्बा
ज़माने की आन बान नौजवान
जिंदगी जहाँ में होने का वाहिद आगाज़।।

3–मुश्किलों का विजेता नौजवान —-

हर जहमत से दो दो हाथ
हर मुश्किल की मईयत उठाता
दुस्वारी की महामारी को दुकडे
टुकड़े करता अंधेरो की चाँदनी
सूरज चाँद आशा का परचम लहराता वक्त की अपनी इबारत
का नौजवान।।
तूफानों से लड़ता लडखडाती
कश्ती का मांझी उम्दा उस्ताद
जिंदगी के भंवर मैं नहीं उलझता
मझधार में मौके का पतवार आशा का परचम लहराता लहरों
को चीरता भवरों से निपटाता
जिन्दंगी का जांबाज नौजवान।।
जिंदगी वही जिन्दा हर सवाल
का रखता जबाब ,आई किसी
भी सूरते हाल से टकरा जाने की
मस्ती माद्दा आशा का परचम
लहराता दिलों में बुझाते रोशनी का चिराग नौजवान।।
ना जज्बा ना जज्बात ना
हिम्मत ना हौसलों की उड़ान
ना इरादे फौलाद हो ना अपने
वक्त कदमों की शान पहचान
मुर्दा उस जिंदगी को जान।।
जिन्दा जिंदगी हिम्मत की जागीर
हौसलो का नया आसमान इरादों
की बुलंद इबादत इबारत आशा का परचम लहाराता जिंदगी विजेता जहाँ की गूंज गुंजन आवाज का नौजवान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




गांव

1-गाँव की माटी प्रकृति—
सुबह कोयल की मधुर तान
मुर्गे की बान सुर्ख सूरज की
लाली हल बैल किसान गाँव
की माटी की शोधी खुशबू भारत
की जान प्राण।।
बहती नदियां ,झरने झील,तालाब
पगडंडी पीपल की छाँव
बाग़ ,बगीचे विशुद्ध पवन के
झोंके भावों के रिश्तों के ठौर
ठाँव गाँव की माटी की शान।।
भोले भाले लोग नहीं जानते
राजनिति का क्षुद्र पेंच दांव
एक दूजे के सुख दुःख के साथी
गाँव की माटी का अलबेला रीती
रिवाज।।
जाती धर्म अलग अलग मगर
बड़े उमंग से शामिल होते मिल
साथ मनाते एक दूजे का तीज
त्यौहार।।

2–गाँव की माटी और जन्म का रिश्ता—

गाँव की मिट्टी की कोख से
जन्मा भारत हिन्द का हर
इंसान चाहे जहाँ चला जाए
गाँव की मिट्टी ही पहचान।।

पैदा होता जब इंसान पूछा
जाता माँ बाप कौन ,कहाँ
जन्म भूमि का कौन सा गाँव
गाँव गर्व है गाँव गर्भ है
गांव की माटी का कण कण
ऊतक टिशु सांसे धड़कन प्राण।।
उत्तर हो या दक्षिण पूरब हो
या पक्षिम गाँव से ही पहचान
कहीं नारियल के बागान कहीं
चाय के बागान सेव ,संतरा ,अंगूरों
की मिठास खुसबू में भारत के कण कण का गाँव।।
त्याग तपस्या बलिदानो की
गौरव गाथा का सुबह शाम
गाँव की माटी का अभिमान।।
आजाद ,भगत ,बटुकेश्वर, बिस्मिल या लालापथ राय बल्लभ पटेल ,या राजेन्द्र प्रसाद चाहे लालबहादुर सब भारत के गाँवो की माटी के लाल।।

3–गांव की माटी वर्तमान और इतिहास—–

इतिहास पुरुष हो या वर्तमान
गाँव की माटी के जर्रे का जज्बा
बचपन नौजवान ।।
सुखा ,बाढ़ मौसम की मार
विषुवत रेखा का भी गाँव जहाँ
अग्नि की वारिश भी लगाती है
शीतल छाँव।।
लेह ,लद्दाख ,लाहौल, गंगोत्री हिम
हिमालय की गोद में बसे गाँव
हर दुविधा दुश्वारी भी प्यारी
नहीं चाहता छोड़ना क़ोई अपना
गाँव।।
गाँव की मिट्टी का पुतला गाँव का वर्तमान गाँव की परम्परा में ही
खुश गाँव की माटी पर ही प्रथम
कदम गाँव की मिटटी में ही चाहत
लेना अंतिम सांस।।
गाँव आँचल बचपन का कागज
की कश्ती वारिश का पानी का
गाँव परेशानी बदहाल गॉव हर
हाल में जन्नत से खूबसूरत जननी
जन्म भूमि स्वर्गादपि गरिष्येते गाँव की माटी जीवन का प्रारम्भ
अंतिम सांस की माटी गाँव।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




फूल के जज्बात

गांव शहर नगर की गलियों की
कली सुबह सुर्ख सूरज की लाली के
साथ खिली ।।
चमन में बहार ही बहार मकरंद
करते गुंजन गान नहीं मालुम चाहत जिंदगी जाने कब छोड़ देगी साथ।।
रह जाएगा चमन में गम का साथ।।
फिर किसी कली के खिलने का
इंतज़ार गली गली फिरता भौरा
बेईमान कली के खिलने का करता
इंतज़ार।।
गुल गुलशन गुलज़ार चमन बहार में कली की मुस्कराहट फूल की चाह आवारा भौरे की राह।।
भौरे की जिंदगी प्यार का
दस्तूर जिंदगी भर अपने मुकम्मल
प्यार की तलाश में घूमता।।
इधर उधर पूरी जिंदगी हो जाती
बेकार खाक भौरे को हर सुबह खिले फूलों का लम्हा दो लम्हा साथ ही जिंदगी का एहसास।।
पल दो पल के एहसास के लिये भौरे बदनाम आवारा दुनियां ने दिया नाम।।
भौरे की किस्मत
उसकी नियति जिंदगी प्यार
जज्बात लम्हा दो लम्हा फूल
का साथ जिंदगी भर कली के
खिलने का इंतज़ार।।




फूल की किस्मत

फूल की किस्मत को क्या कहूँ
बया क्या करूँ हाल ।

बड़े गुरुर में सूरज की पहली
किरण के संग खिली इतराती
बलखाती मचलती गुलशन
बगवां की शान।।

फूल के सुरूर का गुरुर भी लम्हे
भर के लिये बागवाँ माली ही उसे
उसके जिंदगी के डाल से जुदा कर देता।।

किसी और को सौंप देता फूल की
किस्मत के इम्तेहान का दौर शुरू
होता।।

डाली का साथ छुटते ही अपनों
से बेगाना होते ही सुबह देवो के
सर पर बैठती साध्य साधना आराधना के पथ उद्देश्यों में
खुशबु बिखेरती ।।

देवों के शीश पर बैठ मानव के
मन्नंत मुराद की उम्मीद फूल।

सुर बाला की गहना बनती महफ़िलों की रौनक प्यार मोहब्बत की महफूज मकसद
मंजिल की ख़ास फूल।।

गजरे में गुथी जाती माले में पिरोई
जाती गुलदस्ते में जकड़ी जाती
हर वक्त जगह मुझसे ही दुनियां
में खुशियाँ आती।।

बहारों में महबूब के आने पर बरसती वरमाला पसंद का
परवान जमीं आकाश मैं
बनती।।

रात की गली सुबह फूल बन
कर खिली सुबह से शाम तक ना
जाने कितने इम्तेहान से गुजरती।

हर किसी की खुशियों का साझीदार बनती शाम ढलते
पैरों से रौदी जाती ।

मेरी हर
पंखुड़ी से आवाज आती हे
ईश्वर काश मैं फूल न होती।।

मैं श्रद्धा की अंजलि हूँ मुझे
हाथ में लेकर इंसान जीवन
रिश्तों के भावों का 
दुनियां में करता इज़हार।।

मैं वियोग विछोह के दर्द
संबंधो की अंजलि श्रंद्धांजलि हूँ।

अर्थी के महत्व जीवन 
सच जैसे मैं डाली से टूटती
वैसे मानव के बिछुड़ते रिश्तों
की क्रंदन मैं फूल निश्चिन्त
भाव और निश्छल हूँ।।

मुझे भी अपने दुनियां में
होने का होता गर्व
जब मातृ भूमि के कर्म
धर्म पर मर मिटने वाले
की राहो की बन जाऊं मैं
धुल फूल।।

तब मैं खुद पे इतराती दुनिया
को बतलाती मेरा हर सुबह
चमन में खिलना मेरी हस्ती
की मस्ती है ।।

बन जाऊं शहीदों
के कफ़न की शोभा बीर सपूतों
की गौरव गाथा की सच्चाई मैं फूल।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




इरादे

डरने वालों को नहीं, मिलता जग में तीर । 

अटल इरादों से सदा, बनती है तकदीर । । 

सुशील सरना 




छोने को सीख

छोने को सीख

 

आ मेरे प्यारे छोने ! आज जी भर के तुझे चूम लूँ ,
संग तेरे खुशियों के दो पल मैं भी झूम लूँ ;
फिर ना जाने किस घड़ी हम जुदा हो जाए
ये बेरहम इंसाँ हमें मारने को आमादा हो जाए ।

उसने नदियाँ, वन, पशु-पक्षी सब तबाह कर दिए, लालच की आग में सब संसाधन स्वाहा कर दी है; जंगलों को उजाड़ कर ईंट-सीमेंट के जंगल बनाएं
जीवों की खाल, सिंग,माँस बेचकर ख़ूब पैसे कमाए ।

मेरे छोने मैं तुझे यही जी भर कर प्यार करूँगी,

भूखी रहकर भी तेरे खाने-पीने का सारा इंतजाम करूँगी ।

पर भूलकर भी तू ना जाना इन इंसानों की बस्ती में,
भावनाओं की कोई कदर नहीं इन हैवानों की बस्ती में ।

अपने ही ग़रीब-मजदूरों पर इतना जुल्म करते हैं- ये 

जानवर तो दूर इंसानों का दर्द नहीं समझते हैं-ये इसलिए मेरे प्यारे छोने ! मेरी बात अच्छे से सुन ले तूँ
हमारा घर संसार है यही,अपनी खुशियाँ यहीं से चुन ले तूँ ।

आ मेरे प्यारे छोने ! आज जी भर के तुझे चूम लूँ
संग तेरे ख़ुशियों के दो पल मैं भी झूम लूँ
फिर ना जाने किस घड़ी हम जुदा हो जाए
ये बेरहम इंसाँ हमें मारने को आमादा हो जाए ।

संदीप कटारिया
(करनाल हरियाणा)