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जगदम्ब शिवा

पुणे की पुण्य भूमि
माँ भारती का गौरव
आँचल ज्ञान कर्म धर्म
की भूमि अभिमान।।
शिवनेरी दुर्ग की माटी का
कण कण दर दिवाले
गवाह जीजाबाई शाह जी के
शिवा जन्म जीवन का काल।।
सोलह सौ तीस मधुमास
मौसम की अंगड़ाई शिवा
सूर्य शौर्य का अविनि अम्बर
युग आगमन उत्सव उल्ल्लास।।
माँ भारती के शौर्य साहस की
गाथा का सूर्योदय नव अध्याय।।
भारत के कण कण की मुस्कान
शिवनेरी दुर्ग की किलकारी
वर्तमान की चिंगारी भरत
भारत के भविष्य की हुंकार।।
अदभुत बालक क्रूर दानवता की
दुष्ट प्रबाह पर प्रहार शिवा सत्य
सत्यार्थ।।
माँ जीजाबाई की शिक्षा
परवरिस गुरुओ का आशीर्वाद
पराक्रम शिवा शंख नाद।।
सोच समझ विचार की क्रंति
स्वस्तंत्र अस्तित्व स्वतंत्रता
जीवन मूल्यों राष्ट्र आदर्श
शिवा अहंकार।।
मुगलों से लोहा लेता शत्रु
कट्टर क्रूर औरंगजेब सत्य सनातन का
पल प्रहर करता सत्यानाश।।
शिवा मुगलो की मृग मरीचिका
पिपासा शत्रु के विनाश काशत्र शास्त्र काअंदाज़।।
सीधा युद्व कठिन था लड़ना
मुगलो की कट्टरता से शिवा
छद्म युद्ध किया आविष्कार।।
दिया चुनौती कट्टर क्रूर दमन
शासन को मराठा छत्रप की रखी आधार।।
मुगलो के अहंकार को
धूलधूसित कर माँ भारती के
आन बान सम्मान का रखा
सन सोलह सौ चौहत्तर में
सर पे महिमा महत्व का
मुकुट महान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

प्रेरक प्रेरणा शिवा वर्तमान

शिवा संस्कृति की बुनियाद
शिवा नीति निपुण नीति
नियंता का वरदान।।
शिवा पुरुष पराक्रम
पुरुषार्थ की परिभाषक
व्यक्ति व्यक्तित्व की मैलिक
सभ्यता स्वतंत्रता का स्वर
आवाज़।।
शिवा राष्ट्र अस्तित्व की गरिमा
मर्यादा का बैभव भाल।।
शिवा नई चेतना जागृति
स्वतंत्रता की साध्य साधना
आराधना का आँगर।।
शिवा कर्म है शिवा धर्म है
शिवा मानवता राष्ट्र का मर्म
धर्म धैर्य धीर धन्य बीर अभिमान।।
शिवा गर्व गर्जना शिवा
सिंह हुंकार साहस शक्ति
का शाश्वत सूर्य युग युगांतर
धारा प्रभा प्रबाह।।
शिवा युवा ओजश्वी ओज
तेजश्वी तेज वर्तमान युवा
सिद्धान्त।।
नंदलाल मणी त्रिपाठी पीताम्बर




दिल से बड़ा कोई ताज नहीं…..

दिल से बड़ा कोई ताज नहीं…..
 
क्यों आ के किनारे पर डूबी
कश्ती हमको याद नहीं
बस दर्द-ऐ-मुहब्बत है दिल में
और इसके सिवा कुछ याद नहीं
क्या जाने दिल बेचारा ये
हार जीत क्या होती है
पल -पल जल के हारा क्यों
ये दिल शमा पे याद नहीं
जाने सुकून क्यों मिलता है
अंगारों पे इस दिल को
क्यों आगोश में कातिल की सोया
इस घायल दिल को याद नहीं
तन्हा- तन्हा रोता है
पर करता ये फरियाद नहीं
जिस दिल से मुहब्बत की दिल ने
उस दिल से बड़ा कोई ताज नहीं
 
सुशील सरना/19.2.21
 
 



*हिंदी वर्ण माला के स्वर-व्यंजन का प्रयोग और मेरा गीत *

*हिंदी वर्ण माला के स्वर व्यंजन का प्रयोग और मेरा गीत *
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

*अ* अभी समय है, बिना गवांये,
*आ* आओ जीवन सफल बनायें।
*इ* इधर उधर की छोड़ सभी कुछ,
*ई* ईश्वर की भक्ती कर लो कुछ।
*उ* उर तल में कुछ सुन्दर भर लो,
*ऊ* ऊपर वाले की कृपा को भर लो।
*ऋ* ऋषि मुनि की सीखो बातें अच्छी,
*ए* एक राह तुम चुन लो सच्ची।
*ऐ* ऐसी वैसी नहीं, जो नेक राह हो,
*ओ* ओम नाम का उर में वास हो।
*औ* और कोई चाहे भले ना साथ हो,
*अं* अंग तुम्हारा सही साथ हो।
*अ:* अ: यह कितना सुन्दर होगा,
*क* कभी किसी को कष्ट न होगा।
*ख* खले अगर तो भी सह लेना,
*ग* गलत किसी के लिए न निर्णय लेना।
*घ* घबरायें कभी तो प्रभु नाम जपना,
*ङ्ग* अंगारों पर भले तुम्हे हो चलना।
*च* चलता रहे यह जीवन सुखमय,
*छ* छल व कपट से दूर रहें हो निर्भय।
*ज* जग में सुन्दर स्वस्थ्य रहें सब,
*झ* झगड़े झंझट से दूर रहें सब।
*इयाँ(त्र)* इयाँन अच्छी एक छोटी गाड़ी,
*ट* टले बला जब चलें पिछाड़ी।
*ठ* ठहरो सोचो क्या है करना,
*ड* डरना है या गर्व से है रहना।
*ढ* ढलें मजबूत ऐसे जैसे बैंक लॉकर,
*त* तरना चाहो यदि यह भवसागर।
*थ* थम कर रहना जल्दी न करना,
*द* दम अपना प्रभु भक्ति में रखना।
*ध* धन कुछ लगे निशक्त की सेवा में,
*न* नर ही तो नारायण हैं उनके सेवा में।
*प* परमात्मा का रूप उसे भी जानो,
*फ* फरिश्ता बन दुःखी का दर्द पहचानो।
*ब* बनो मसीहा गरीबों का आशीष पाओ,
*म* मन की सुख शांति को हर दिन पाओ।
*य* यही स्वर्ग है धरती यही नर्क है,
*र* रब काम दे या ज्यादा क्या फर्क है।
*ल* लब पर हो नाम केवल प्रभू का,
*व* वही करेगा बेड़ा पार सभी का।
*स* सत्य राह पर हरदम चलना,
*ष* षड़यंत्रों से दूर ही रहना।
*श* शराफत की पहचान बनो,
*ह* हरदम केवल नेक इंसान बनो।
*क्ष* क्षमा भावना रखना श्रेष्ठ प्रदर्शन,
*त्र* त्रय प्रभु की कृपा का हो दर्शन।
*ज्ञ* ज्ञप्ति बनाये सदा ज्ञानी ही हर जन।।

रचयिता
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
लेक्चरर,पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता-इंडिया

संपर्क : 9415350596




*जर ज़मीन जोरू होती है हर झगड़े की जड़*

*जर ज़मींन जोरू होती है हर झगड़े की जड़*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

जर ज़मीन जोरू से हमेशा,हो जाती है तकरार।
यही तो तीनों चीज है ऐसी,जिससे मचती है रार।

झगड़े की जड़ ये हैं तीनों,मरने मारने को तैयार।
भाई-2 में झगड़ा करवाये,पटका पटकी की मार।

मूड़ फुटौव्वल भी होती है,व लाठी फरसा से मार।
यह ना देखे अपना पराया, चलें गोलियां भरमार।

अपनों का खून है बहता,लाशों पे लाशें गिरती हैं।
थानापुलिस,कोर्टकचेहरी,के चक्कर में फिरती हैं।

दीवानी फौजदारी मुकदमा,पीढ़ी दर पीढ़ी चलती।
न्याय नहीं मिलता है जल्दी,तारीखें मिलती रहती।

होता है पछतावा अंत में,अपनों के खून बहाने का।
छाती से जिन्हें लगा खेलाया,उनकी जानें लेने का।

परिवार के खुशहाली में,कैसी नजर लग जाती है।
इक दूजे को नहीं सुहाता,दिल में गांठ बन जाती है।

पट्टीदार कभी बन जाते,इन सब झगड़ों का कारण।
बनते स्वजन कभी हैं,जर,जमींन,जोरू का रावण।

क्या लेकर आया धरती पर,क्या लेकर तू जायेगा।
खाली हाथ ही आया था तू,खाली हाथ ही जायेगा।

रहो प्यार से आपस में,कम ज्यादा जो है सब्र करो।
भाई भाई ही होता है, दुश्मन बन के ना कुफ्र करो।

हँसी ख़ुशी सुख शांति,मिले मिलजुल कर रहने में।
क्या रखा है झगड़े की जड़,जोरू ज़मीन गहने में।

मात-पिता के लिए बराबर, उसके सब ही बच्चे हैं।
बिना कपट निज कर्मो से,बढ़ जाते हैं जो सच्चे हैं।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता-इंडिया

संपर्क : 9415350596




क्षणिकाएं :…..यथार्थ

क्षणिकाएं :…..यथार्थ

 

1.

मैं
कभी मरता नहीं
जो मरता है
वो
मैं नहीं
… … … … … … …

2.

ज़िस्म बिना
छाया नहीं
और 
छाया का कोई
जिस्म नहीं
… … … … … … … …

3.
क्षितिज
तो आभास है
आभास का
कोई छोर नहीं
छोर
तो यथार्थ है
यथार्थ का कोई
क्षितिज नहीं

 

सुशील सरना/19-2-21
मौलिक एवं अप्रकाशित




high way

 

हाई वे

कड़कती धूप की तपती  ज़मीन पर नंगे पाँव,पिचके पेट, अधेड़ उम्र का नाटा सा  आदमी  ‘हाई वे’ में “खाना तैयार है”बैनर के साथ खड़ा था। आने-जानेवालों को आवाज दे देकर उसके प्राण सूख गए थे ।  उर्र्र्रर्र्र फुर्र्ररर अतिवेग से चलती हुईं एक दो गाड़ियाँ  अंदर आती तो थी लेकिन फिर उसी वेग से लौट भी जातीं थीं । एक आध अगर कोई खाने की  टेबुल तक पहुँच जाता, तो इसकी सांस में सांस आ जाती ।

बीच बीच में मालिक की तीव्र निगरानी से डरते डरते वह ड्यूटी पर तैनात था। गर्मी की वजह से पाँव लाल अंगार हो गए थे।  धूप से बचने के लिए जब वह पैर को बदल बदलकर जमीन पर रखता, तो लगता जैसे कसरत कर रहा हो। भीषण गर्मी के तनाव कोझेलता हुआ वह हसरत भरी निगाहों से सड़क को ताक रहा था । बड़ी प्यास लगी थी,लेकिन  पीने केलिए पानी कहाँ? दोनों होंठों  को बार बार गीला करते हुए फिर अपनी निगाह डालता रहा।

तभी दूर से देखा, एक मोटर में  चार पांच नवयुवक बिसलेरी बोतल से पानी को एक दूसरे के प्रति उछालकर खेलते कूदते गर्मी में राहत पा रहे थे । नीचे गिरती  हर एक बूंद को दया एवं लालच की दृष्टि से वह देख रहा था इस उम्मीद से कि काश ! कुछ बूंदें उसके मुंह  में भी पड जाएं ! पानी की हर बूंद को तरसता बदनसीब  इंसान उन युवकों को अपने लबलबाते होंठों को रगड़ता हुआ आस भरी निगाहों से घूर  रहा था।

भूख अपनी सीमा लांघ गई थी , कंठ  में आवाज़ सूख गई थी ,चिल्लाने में अपनी पूरी मेहनत लगा रहा था ।

अचानक एक गाडी इसकी पुकार  सुनकर होटल की तरफ मुडी । गाडी की खिड़की के पास बैठी एक छोटी सी बच्ची ने  उसको देखा और मुस्कराई। उसकी भोली सुंदर सी निष्कपट मुस्कान पर वह मंत्रमुग्ध सा हो गया लेकिन पलटे बिना स्मृति पर उस सुन्दर सी छवि को अंकित करके वह पुनः काम पर लग गया ।

 सोच रहा था “इतने लोगों को चिल्ला चिल्लाकर बुलाता हूँ, मगर इनमें से किसी  का भी ध्यान तक आकर्षित नहीं कर पाता हूँ ।  मुश्किल से एक दो कारें  अंदर आतीं हैं और उसी वेग से बाहर  भी निकल जाती हैं  ।अगर एक आध को भी  भोजन केलिए मना लूँ , तो मालिक की खुशी दुगुनी हो जाएगी ।

 इसी सोच में डूबे उस  आदमी ने अचानक एक कार की आवाज़ सुनकर , पलटकर देखा, वही बच्ची भोली मधुर मुस्कान के साथ दो चॉकलेट उसके हाथ   थमा कर चली गयी ।

समय की गति तीव्र होने लगी ।  तीन बजते वह तनावमुक्त हुआ और होटल की तरफ बढने लगा । यूनिफोर्म को उतारकर फटे चिथड़े शर्ट से अपने पतले शरीर को ढककर वह मालिक के पास जा खड़ा हुआ । खाने की एक पोटली मालिक ने उस आदमी की ओर  बढायी।

कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए वह “हाय वे” से तेज कदमो से चलता हुआ पगडण्डी की  राह अपनी कुटीया पर जा पहुंचा जहाँ उसकी बीमार पत्नी बड़ी देर से उसकी राह देख रही थी ।  फटी पुरानी साड़ियों  से बने  उस बिस्तर से वह उठकर बैठ गयी ।

पति ने अपना सारा वृतांत पत्नी को सुनाया और उसका  हाल चाल पूछते हुए  बडे  प्यार से खाना खिलाया।  खुद खालेने के बाद बच्ची के द्वारा दी गयी चॉकलेट भी पत्नी को खिलाते हुए दोनों अपनी दुनिया में खो गए ।

द्वारा

प्रो. ललिता राव

अद्यक्ष, भाषाई विभाग , आर.वि.एस महाविद्यालय ,कोइम्बतोर

सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति,संसदीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार

अद्यक्ष, भारतीय भाषा मंच, SSUN तमिलनाडु इकाई  

अद्यक्ष, हिंदी साहित्य भारती, तमिलनाडु इकाई

संपर्क : 9994768387