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हंसी मुस्कान आया है

 

खामोश मौसम में हंसी
मुस्कान आया है ।
फ़िज़ाओं की खुशबू का
खास अंदाज आया हैं।।
बहारें भी है खुश क़िस्मत लम्हो
की ख्वाहिश में बहारो की किस्मत
का कोई किरदार आया है।।
खामोश मौसम में हंसी
मुस्कान आया है
फ़िज़ाओं की खुशबू का
खास अंदाज आया हैं।।
शाम की हलचल बेमौसम की
बारिश की बूंदों में चमकते चाँद
चाँद का शबनम में दीदार आया हैं।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।
हज़ारों साल नर्गिस की
बेनूरी के आलम में जहां की
आरजू का गुलोगुज़ार आया है।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।
यादों खवबों उम्मीदों की
धड़कन में जमाने जज्बे का
रौशन नाज़ आया है।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तरप्रदेश




हंसी मुस्कान आया है

 

खामोश मौसम में हंसी
मुस्कान आया है ।
फ़िज़ाओं की खुशबू का
खास अंदाज आया हैं।।
बहारें भी है खुश क़िस्मत लम्हो
की ख्वाहिश में बहारो की किस्मत
का कोई किरदार आया है।।
खामोश मौसम में हंसी
मुस्कान आया है
फ़िज़ाओं की खुशबू का
खास अंदाज आया हैं।।
शाम की हलचल बेमौसम की
बारिश की बूंदों में चमकते चाँद
चाँद का शबनम में दीदार आया हैं।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।
हज़ारों साल नर्गिस की
बेनूरी के आलम में जहां की
आरजू का गुलोगुज़ार आया है।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।
यादों खवबों उम्मीदों की
धड़कन में जमाने जज्बे का
रौशन नाज़ आया है।।
खामोश मौसम में हंसी मुस्कान आया है फ़िज़ाओं की खुशबू का खास अंदाज आया है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर पीताम्बर




जेठ की भरी दोपहरी भाग -3

 

अपनी हस्ती की मस्ती का मतवाला
धुन ध्येय का धैर्य धीर गाता
चला गया जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाता चला गया।।
जेठ की भरी दोपहरी में एक
दिया जलाने की कोशिश में
लम्हा लम्हा जीता चला गया
जमाने को जमाने की खुशियों
से रोशन करता चला गया।।
ना उसका खुद कोई अरमान था
एक दिया जला के जमाने को जगाके
जमाने के पथ अंधकार को मिटाके
जमाने का पथ जगमगा के ।।
लम्हो को जीया जीता चला गया
कहता चला गया जब भी आना
लम्हा लम्हा मेरी तरह जीना मेरे
अंदाज़ों आवाज़ों खयालो हकीकत
में जीना मरना ।।
जेठ की दोपहरी में एक दिया
जलाने जलाने की कामयाब कोशिश
करना जिंदगी के अरमानों अंदाज़
की मिशाल मशाल प्रज्वलित करता जा।।
जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने को लम्हा
लम्हा जिये जा जिंदगी का सच जज्बा जज्बात कबूल करता जा।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




जेठ की भरी दोपहरी -2

 

जेठ की भरी दोपहरी में
एक दिया जलाने की कोशिश में लम्हा
लम्हा जिये जा रहा हूँ।।
भूल जाऊँगा पीठ पर लगे धोखे
फरेब मक्कारी के खंजरों के
जख्म दर्द का एहसास।।
तेज पुंज प्रकाश मन्द मन्द शीतल
पवन के झोंको के बीच खूबसूरत
नज़र आएगा लम्हा लम्हा।।
चट्टाने पिघल राहों को सजाएँगी
शूल और शोले अस्त्र शस्त्र
बन अग्नि पथ से विजय पथ ले जाएंगे।।
चमत्कार नही कहलायेगा
कर्मो से ही चट्टान फौलाद पिघल
जमाने को बतलायेगा।।
लम्हा लम्हा तेरा है तेरे ही वर्तमान
में सिमटा लिपटा है तेरे ही इंतज़ार
में चलने को आतुर काल का करिश्मा कहलाएगा।।
पिया जमाने की रुसवाईयों
का जहर फिर भी जेठ की भरी दोपहरी जला दिया एक चिराग दिया।।

जिससे भव्य दिव्य है युग वर्तमान
कहता है वक्त इंसान था इंसानी
चेहरे में आत्मा भगवान था।।
बतलाता है काल सुन ऐ इंसान
मशीहा एक आम इंसान था
जमाने मे छुपा जमाने इंसानियत
का अभिमान था।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर




है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो..

*है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो*

मानवता हमें सिखाती है ये सृष्टि जननी कहलाती है
माँ का फर्ज निभाती है जब जन्म हमें दे जाती है
चाहे भूखी रह जाये पर हमें खिलाए नहीं वो खाती है
भाई हमें बनाती है जब बहन रूप में आती है
घर को भी स्वर्ग बनाती है जब पत्नी रूप घर आती है
सोए भाग जग जाते हैं जब बेटी बन जन्म हो जाती है
मानवता के नाते ही कम से कम तो इंसान बनो
है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो ………।
जब तक पर्दे के पीछे है तब तक यह अबला नारी है
जब दुष्टों का संहार किया दुर्गा-काली बन जाती है
जब अपनों पर आ जाए तो झांसी रानी कहलाती है
फिर भी कुछ-कुंठ विचारों ने नारी का है अपमान किया
ब्रम्हा- विष्णु -शिव शंकर ने नारी को सम्मान दिया
हर मजहब हमें सिखाता है मत नारी का अपमान करो
जो भी तुमने है पाप किया उन पापों का उद्धार करो
है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो ………..।
पूरा ही जग अब बदल चुका हर विभाग- हर क्षेत्र में नारी है
स्कूटर की बात छोड़ो,जहाज की कमान संभाली है
खेलों के मैदानों में भी करतब ये खूब दिखाती है
मेडल लेकर हर खेलों में देश का मस्तक उठाती है
कुछ कर ना सको तो नारी गौरव में इसके शक्ति को प्रणाम करो
है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो……..।
              *कुमार बिजेन्द्र*
    *प्राथमिक विद्यालय रतनुआ*
               9304643237




मुल्क़ के हालात

मुल्क़ के हालात

आजकल मेरे मुल्क़ के हालात बहुत ख़राब हो गए हैं ;
आवाम पर सफ़ेदपोश लुटेरों के ज़ुल्म बेहिसाब हो गए हैं ।

कोई खोलकर पढ़ना ही नहीं चाहता इक-दूजे के दुख-दर्द को;
आदमी मेरे शहर के अलमारी में बंद किताब हो गए हैं ।

मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध ने कमर तोड़ दी आम आदमी की;
इज्ज़त से दो वक्त़ की रोटी मिलना, मुफ़लिसों के ख़्वाब हो गए हैं ।

मज़लूमों का बहता ख़ून देखकर भी नहीं पसीजता इनका दिल;
हुक़्मराँ मेरे मुल्क़ के ज़हनो-दिल से बड़े बेआब हो गए हैं ।

आतंकी, टुकड़े-टुकड़े गैंग बताते वो- सब हक़ माँगने वालों को;
लगता है सत्ता के नशे में इनके दिमाग़ ख़राब हो गए हैं ।

फेक न्यूज़,पुलिस, देशद्रोह से डराते वो
खिलाफ़त करने वालों को;
सच को दबाने के इनके तरीके पहले से नायाब हो गए हैं ।

ज़िंदगी,ज़मीन-जंगल, सरकारी इदारें सब बिकने को तैयार हैं;
आजकल के कुर्सी वाले सरमायदारों के दलाले-अहबाब हो गए हैं ।

अगर आने वाली नस्लों को रोशन देखना चाहते हो ‘दीप;
तो अंधेरों से खुलकर लड़ों, क्योंकि अब आग़ाज़े इंक़लाब हो गए हैं ।

  ● संदीप कटारिया’दीप’ (करनाल,हरियाणा)

शब्दार्थ:-
सफ़देपोश- सफ़ेद कपड़े पहनने वाले नेता लोग ;
मुफ़लिस -गरीब ; मज़लूम- कमजोर/शोषित ;
बेआब- बेशर्म/ जिनकी आँख का पानी मर जाए ;ख़िलाफत- विरोध करना; नायाब – पहले से अलग । सरकारी इदारे- सरकारी विभाग ;
सरमायदार- अमीर व्यपारी वर्ग । दलाले-अहबाब-दलाली करने वाले दोस्त ; आग़ाजे-इंक़लाब- क्रान्ति की शुरूआत ।




हिन्दी साहित्य में नारी जागृति

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