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पुलवामा हमले के शूरवीर,तिरंगे की शान शहीदों को नमन हमारा

पुलवामा घातक हमले के हे शूरवीर।
तुमको शत शत नमन हमारा हे वीर।।

हे देश के रक्षक,तुम्हें शत- 2 प्रणाम।
माँ भारती के लाल,तुझे मेरा प्रणाम।।

प्राणों की शहादत,देकर करते रक्षा।
तेरा बलिदान करे,भारत की सुरक्षा।।

दुश्मन चाहे जितना,भी जोर लगाये।
भारत की सीमा पर,तनाव फैलाये।।

तुम रक्षक हो,भारत सीमा की शान।
दुश्मन से बदला,लेते हो बंदूखे तान।।

तुम पर करें गर्व,देशवासी अभिमान।
तेरे दम पर भारत,के झंडे की शान।।

हे शूरवीर हे देश भक्त,तुम बड़े महान।
करता नमन तुम्हें वीरों,शत-2 प्रणाम।।

दुश्मनों ने धोखे से 40 वीरों को मारा।
व्यर्थ शहादत न हो भारत ने ललकारा।।

भारत की आजादी,के गौरव हो शान।
अंग्रेजों से लोहा लेकर,देदी तूने जान।।

गुलामी की बेड़ी से,मुक्त सारा जहान।
ये अपना हिंदुस्तान,भारत बना महान।।

गणतंत्र दिवस मना रहे सब हिंदुस्तानी।
स्वतंत्रत हैं हम भगा दिए इंग्लिशतानी।।

सदा तिरंगा ऐसेही लहर लहर लहराये।
भारत माता के आगे सब शीश झुकाये।।

युगों-2 तक याद,रखेगा तेरा बलिदान।
हे भारतके क्रांतिवीर,तेरा सदा सम्मान।।

अमर शहीदों माँ भारती के सच्चे लाल।
भारत के रक्षक हो तुम भारत के भाल।।

श्रद्धा सुमन समर्पित है,कोटि-2 प्रणाम।
वंदन है अभिनन्दन है शत-शत प्रणाम।।

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




पुलवामा शहीदों को नमन

पुलवामा शहीदों को नमन

हमारे देश के वीर सिपाही जो सीमा पर रक्षा करते हुए आज के ही

दिन 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में शहीद हो गए उन

वीर शहीदों को नमन करते हुए यह कविता प्रस्तुत की गई है।

 

कहां से लाऊं उन वीरों को जो कुर्बान हो गये
जो कल तक हमारे साथ थे वो इतिहास हो गये

भुलेगा न उस भयानक मंजर को कभी मेरा देश
आए थे सीमापार से भेड़िए धरकर काल का भेष

कैसे प्रेम दिवस मनाऊं कैसे इस हृदय को समझाऊं
जी चाहता है कोई मल्हार राग गाकर खुद को बहलाऊं

पत्थर दिल हो चुके उन्हें, उन वीरों की याद दिलाऊं
नमन कर शहीदों को श्रद्धांजलि देकर दीप जलाऊं

वो भी प्यार था किसी का, लाल था किसी मां का
उनकी याद में दिल से कुछ अश्रु बहालो उनके नाम का

आज घर में खुशियां मना रहे हैं हम अपनों के साथ
ये सब उत्सव खुशियाँ मिली है हमें इन वीरों के हाथ

उनके भी कुछ सपने हैं, इंतजार करने वाले उनके अपने हैं
उनके घर में भी दीप दिवाली होली रंगोली के सपने हैं

पत्थर नहीं हुआ है दिल मेरा, आँखों में नमी है अभी
रो रहा है उनकी याद में जो घर नहीं आया कभी

पिंकी “हरि” भार्गव
हिंदी भवन
कराला, नयी दिल्ली




देखा है मैंने …!

 

देखा है ? मैंने देखा है

लोगों को करीब से बदलते देखा है…!

 

जो लोग बातों – बातों में ही अपना

हाल – ए दिल बयां करते थे..!

 

आज उनके कानों में जूं तक नहीं रेंगती …!

गम – ए हाल कम के नहीं, सबके यही हैं..!

 

ये समय भी तो है, पर ये तो समय है

इसको तो करवट लेते देखा है पर लोगों का क्या..!

 

देखा है? हाँ मैंने देखा है

लोगों को ही करीब से बदलते देखा है..!

 

देखा है मैंने समुद्र की लहर लपटों

को भी देखा है पर कुछ न कुछ लाते देखा है..!

 

ये नजरिया है देखने की वरना इनको

नव आशियां को भी उजाड़ते देखा है..!

 

कभी कुछ तो कभी बहुत कुछ हो तुम

ऐसा कहते देखा है…!

 

बातों – बातों में ही सबकुछ भी कहते देखा है

देखा है? हाँ हुजूर मैंने ..

 

देखा है लोगों को, बड़े करीब

से बदलते देखा है…!

 

देखा है? मैंने देखा है..!

कभी हर मर्ज की दवा हो तुम

 

ऐसा भी कहते देखा है…!

देखा है मैने लोगों को करीब से बदलते देखा है

 

कभी अपना तो कभी अपनापन

सब काम पड़ने पर दिखाते देखा है…!

 

कभी दिल, तो कभी जान हो तुम कहते देखा है

देखा है? हाँ मैंने लोगों को

 

बहुत करीब से बदलते देखा है…!

 

कभी दुःख – दर्द तो कभी आंखों

में आंसू को भी बरसते देखा है…!

 

देखा है मैंने लोगों को ,

करीब से बदलते देखा है..!

 

देखा है? हाँ मैने देखा है

इश्क़ में लोगों को जान भी

 

देते देखा है! पर जिसके लिए जान

दी उसे उफ्फ तल्क नहीं आती …!

 

ऐसा दिल भी देखा है..!

 

पर ऐसा करने वालों को रात की नींद

और दिन का चैन भी छीनते देखा है ..!

 

देखा है? हाँ मैने ही देखा है

लोगों को बड़े करीब से बदलते देखा है..!

 

जब सफल होता है व्यक्ति तो उसका

गुनगान भी करते देखा है…!

 

पर मैंने एक सफल व्यक्ति की पहचान को भी

मिटते देखा है..!

 

अब देखने को क्या ही रह गया है? हाँ

मैं ही वो शख्स हूँ जो यह सब मिटते देखा है!

 

देखा है मैंने लोगों को

बडे़ करीब से बदलते देखा है..!

 

पर इतना सब देखने के बाद ये कहता हूँ

जो बहरूपियें हैं वो बदले अपने आप को..!

 

मैं न तब ही बदला था न अब ही बदला हूँ और

न बदलूंगा

ये बातें बड़े ही ईमान से कहता हूँ ..!

 

 

 




“वैलेंटाइन याद रह गया उनको याद करेगा कौन”

 

एक गुलाब उन शहीदों के नाम……

“वेलेंनटाइन याद रह गया
उनको याद करेगा कौन…….!

ख़ुद की हस्ती मिटाई जिसने
सरहद पे जान गवाईं जिसने,
हिना भी ना सुखी हाथों की
माथे की बिंदियां हटाई जिसने,
उस बूढ़ी माँ की हालत तुम पूछो
कलेजे के टुकड़े की अर्थी उठाई जिसने..!

वेलेंनटाइन याद रह गया
उनको याद करेगा कौन……….

क्या उनको अख्तियार नहीं था
क्या उनको जीवन से प्यार नहीं था,
वो भी ग़ुलाब थमा सकते थे
महफ़िल में रंग जमा सकते थे,
लेकिन ये उनको नहीं ग़वारा था क्योंकि हिन्दोस्तां उनको प्यारा था !

वेलेंनटाइन याद रह गया
उनको याद करेगा कौन……..

मिट गए, मग़र झुके नहीं
आंधी-तूफ़ां में भी कदम रुके नहीं,
क्यों खाई सीने पे गोली
ताकि तुम खेल सको रंगों की होली,
थी उनकी भी चम्पा-चमेली
थी गाँव मे उनकी भी बड़ी हवेली !

लेकिन तुम भूल गए उनकी कुर्बानी

तुम्हें अच्छी नहीं लगती उनकी कहानी,
तुम्हारे कल के लिए वो पास्ट बन गये
गोलीबारी,धमाकों में ब्लास्ट बन गये,
आज तुम उनकी वजह से प्रथम बने हो यारों
वो अंतिम बेचारे, लास्ट बन गये !

वेलेंनटाइन याद रह गया
उनको याद करेगा कौन………!

आओ सब एक “दीप” जलाएँ
उनकी शहादत पे ग़ुलाब चढ़ाएं
जियें-मरें वतन की ख़ातिर
मेरा वतन गुलिस्तां,गुलशन बन जाए
चहूँ और हो उजियारा
मिट्टी में अमन के तरु खिल जाएं…..!

कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”




काश तुम होते

काश तुम मेरी ज़िंदगी में जो होते
ज़िंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

वफ़ा ज़िंदगी में बेवफाई न होती मोहब्बत के हम भी मसीहा ही होते जिंदगी में इतनी रुसवाई न होती।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

ख्वाहिसों कि चाहत हकीकत की जिंदगी इश्क कि इतनी दीवानगी न होती ।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

जूनून जिंदगी का मकसद कि मंजिल तूफां कि मंजिलों से इतनी शिकायत न होती।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

जिंदगी में दोस्त कम दुश्मन बहुत दोस्तों से शिकवा दुश्मनो कि इतनी इनायत न होती।।

जज्बों कि जिंदगी रिश्तों का जहाँ रिश्तों में इतनी कवायत न होती।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

नादा मोहब्बत निभाने का वादा कशमकश कि जिंदगी में कशिश इबादत न होती।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

जिंदगी का सफर आरजू की ख़ुशी
जिंदगी गम के आंसुओ कि सुराही न होती।।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

जिंदगी ख़ुशी गम कि साकी शराब जिंदगी नशा गम जुदाई न होती।

काश तुम मेरी जिंदगी में जो होते जिंदगी से इतनी शिकायत न होती।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




मजदूर भाग-1

 रामू उठ भोर हो गया कब तक सोते रहोगे जो सोता है वो खोता है जो जागता है पाता है रामू के कानो में ज्यो ही पिता केवल के शब्द सुनायी दिये गहरी निद्रा से जागा उसे ऐसे लगा वह एक नई ऊर्जा के साथ जिंदगी के एक नई सुबह कि शुरुआत पिता के आशीर्वाद से प्रारम्भ कर रहा है।रामू तुरंत दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर अपने अध्ययन में जुट गया यही प्रक्रिया उसके जीवन कि शैली थी प्रतिदिन पिता केवल उसे ब्रह्म बेला में लगभग चार बजे उठाते और वह सात बजे तक अध्ययन करता और आठ बजे तक तैयार होकर उसे स्कूल जाना होता और पिता केवल अपनी दिहाड़ी मजदूरी पर निकलते।दिन इसी तरह से बीतता पिता केवल जब भी खुद खाली होते रामू को पास बैठते और उसके बचपन के कोमल मन मस्तिष्क पर एक सशक्त सफल इंसान बनने के लिये उसे धार देते रहते।हमेशा उसे यह बताने से नहीं चूकते कि वो एक मजदूर है जिसकेपिता ने उसे पढाने लिखाने कि बहुत कोशिश कि मगर उसका मन बचपन कि शरारतों में रमा रहा और पढाई लिखाई में मन नहीं लगा पाया और पिता के शिक्षा सपनों को चूर चूर कर दिया ।आज उन्हें याद कर पछतावा होता है और कभी कभी पश्चाताप के आंसू भी बहने लगते बेटे रामू तेरे स्वर्गीय दादा जी अपने समय के आठवी जमात पास थे और पूरे गावँ में वही आठवी जमात पास थे सारा गावँ उनके पास अपनी समस्याओं को लेकर सुझाव और निराकरण के लिए आता और संतुष्ट होकर जाता।उनका कहना था कि शिक्षा इंसान कि ताकत और जिंदगी के संग्रमों के लिये धारदार हथियार होती है अतः जो गलती मैंने कि अपने पुज्ज दादा जी के नसीहतों को मानकर बेटा रामू तुम ऐसी गलती मत दोहराना ताकि मेरी तरह पछतावा और जिंदगी में अपमान का प्रतिदिन घूंट पीना पड़े।मुझे देखो मैंने अपने जीवन में अपने पिता कि नसीहतों को नज़र अंदाज़ किया जिसके कारण आज मुझे दुनिया का प्रत्येक आदमी नसीहत देता है ।जब मै काम पर जाता हूँ तो जिसकी मजदूरी करता हूँ उसका गुलाम बनकर रहना पड़ता है उसकी जलालत सहनी पड़ती है गालियां सुननी पड़ती है कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हम इंसान न होकर जानवर हो गए है यही तुम्हें बताना चाहते है कि तुम्हे जलालत अपमान का घूंट पिने के लिये जिंदगी को विवस न करे।इंसान अपने मान अपमान के लिये खुद जिम्मेदार होता है खुद अपने जीवन के आदर्शो मूल्यों का निर्धारक होता है यह सिख मैंने मजदूर होकर उसकी समाज में स्तिथि और पीडा से अनुभव कि है ।मजदूर इंसान अवश्य होता है लेकिन उसके पास उसकी इज़्ज़त सिर्फ दो जून कि रोटी उसके जज्बात गुलामी कि निष्ठा और उसकी जिंदगी निरंतर जानवर कि तरह न थकने वाली और मौत बेरहम कभी कफ़न नसीब तो कभी बदनसीबी को मिटटी का ही कब्र कफ़न श्मषान और अपने पीछे छोड़ जाता है न समाप्त होने वाला मजबूर जिंदगी के मजलूम मजदूरों का सिलसिला ।मैं चाहता हूँ बेटे रामू इस सिलसिले को तोड़ कर तमाम मजदूरों और उनकी नस्लो को नसीहत दो।मासूम रामु के दिल दिमाग पर बापू केवल कि बात पत्थर लकीर कि तरह बैठ चुकी थी कभी कभी रामू का कोमल मन बापू के जीवन कि कड़वी सच्चाई को समाज के तिरस्कार का नतीजा मानता लेकिन रामू कृत संकल्पित था कि वह अपने बापू के नसीहतों को अपने जीवन का आदर्श बनाकर प्रमाणित करेगा।रामू अपने पिता कि नसीहतों को अपने लिये जीवन का मूल मन्त्र और पिता को आदर्श मानकर प्राण पण से अपने कठिन लक्ष्य कि चुनौती के विजय पथ पर सहस हिम्मत और हौसलो से आगे बढ़ता गया दसवी कि परीक्षा में अव्वल रहा जिसके बाद उसे वजीफा मिलने लगा पिता केवल पर बोझ कुछ कम हुआ फिर इंटरमीडिएट कि परीक्षा में अब्बल रहा और बी एस सी में विश्वविद्याल प्रयाग में दाखिला लिया पिता केवल को बेटे कि सफलता पर अहंकार कम भगवान् का आर्शीवाद और बेटे कि मेहनत पर विश्वाश था।रामू जब बी एस सी द्वितीय वर्ष कि परीक्षा का परिणाम आया तब बापू केवल ने कहा बेटा रामू अब हमे विश्वास हो चूका है कि तुम मेरे पिता कि इच्छा जो मैं उनका पुत्र होने के नाते नहीं कर सका पूरा करोगे केवल उस दिन बहुत खुश था वह बेटे को ढेर सारा प्यार आशीर्वाद देकर घर से काम पर गया लेकिन कुदरत को तो और कुछ मंजूर था।दोपहर में खबर आई कि केवल जिस भवन निर्माण कार्य में मजदूरी कर रहा था वह भवन धारासाही हो गया और केवल उसके निचे दब दब गया है खबर मिलते ही केवल के घर अफरा तफरी मच गयी रोते विलखते केवल कि पत्नी सुगना दो पुत्रिया रीमा ,नीमा वहाँ पहुँच गयी जहाँ केवल मजदूरी करता था वहाँ पहुचने पर दृश्य देखकर रीमा, नीमा, सुगना का लगभग आवाक अचेत रोती कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे, क्या न करे चुकी केवल लखनऊ में परिवार के साथ रहता था गाँव उसका बिहार के हज़ारी बाग़ में था गाँव में खेती बारी नही थी जीविकोपार्जन का साधन भी मजदूरी ही थी उसने सोचा बाहर जाकर कुछ अच्छा कमा सकेंगे मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था ।रोती विलखति सुगना ने मलबा के पास खड़े एक व्यक्ति से कहा आरे तनि हमारे बाबू के कोइ खबर पंहुचा दो अपने बाप के देख लिहे और के बा इनकर उस व्यक्ति ने पूछा कि तुम्हारे बाबू कहा रहते है उनसे बात करने का कोइ माध्यम सुगना ने सिर्फ इतना ही कहा इलहाबाद इंवर्सिटी में पढ़त हउअन इनकी जियत जिनगी के प्राण जिस व्यक्ति से सुकना अपने बाबू को बुलाने कि बात कर रही थी वह पुलिस विभाग में उपपुलिस अधीक्षक था पूछा नाम क्या है तुम्हारे बाबू का सुगना ने कहा रामू उस समय मोबाइल का ज़माना नहीं था अतः उपाधीक्षक सोमपाल सिंह ने हॉट लाइन से अलाहाबाद विश्वविद्याल के कुलपति महोदय के आवास पर पूरी जानकारी देते हुये रामू को तुरंत भेजने का अनुरोध किया कुलपति ने कहा सोमपाल जी रामू मेरे विश्वविद्यालय का शौर्य सूर्य है यहाँ का प्रत्येक छात्र् प्रत्येक सुबह खुद को रामू जैसा होने का भगवान से प्रार्थना करता है मैं उसे अपनी कार से अबिलम्ब भेजने कि व्यवस्था करता हूँ।कुलपति तोताद्री ने रामु को अपनी कार ड्रॉवर भेज कर बुलवाया और पांच हज़ार रूपये पास से दिये और कहा घबराओ नहीं तुम्हारे पिता केवल कि तवियत ख़राब है अतः तुम्हारा जाना आवश्यक है।रामू चार पांच घंटे में लखनऊ पंहुचा तो माँ बहनो कि दशा देखकर स्वयं अनियंत्रित होने लगा फिर खुद को संभालते हुये पोस्ट मार्टम हाउस से पिता केवल का शव प्राप्त कर अंतिम संस्कार किया।उसके बाद केवल उस ठीकेदार के पास गया जिसकी बिल्डिंग को बनाते समय उसकी पिता केवल कि मृत्यु हुयी थी ठीकेदार ने रामू को जलील करते हुये जान से मारने कि धमकी देते हुये कहा मजदूर का बेटा है जा कही मजदूरी कर अपनी माँ बहनो का पेट पाल उस पर भी काम न चले तो अपनी जवान बहनो को धंधे पर बैठा देना बडा आया साला हराम का हर्जाना माँगने।रामू को लगा कि उलझना ठीक नहीं है अतः वह वहाँ से चला गया ।अब माँ बहनो का लखनऊ रहने का कोइ औचित्य नहीं था अतः बहन माँ को लेकर अलाहाबाद चला आया और गंगा नदी के किनारे झोपडी बनाकर उसमे माँ बहनो के साथ रहने लगा उसने यह बात किसी को नहीं बताई ।पहले उसका खर्च वजीफा और कुछ पिता केवल के सहयोग जो कभी कभार होता से काम चल जाता ।लेकिन अब उसके पास बहनो कि पढाई और माँ सहित भरण पोषण के साथ साथ अपने पढाई का खर्चे का सवाल था। रामू ने इसके लिये मेहनत पर भरोसा किया और सुबह आठ बजे से एक बजे तक विश्वविद्यालय में क्लास करता दो बजे से तीन बजे तक आराम करता तीन बजे से आठ बजे तक ठेले पर सब्जी बेचता और आठ बजे से बारह बजे रात तक शहर में छुपकर रिक्सा चलता फिर दो बजे रात से चार पांच बजे तक स्वाध्ययन करता सब्जी रिक्सा चलते खाली समय भी अध्ययन करता।इस तरह उसने अपने जीवन को मानव मशीन बना दिया था।बी एस सी में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान और एम एस सी गोल्ड मेडलिस्ट होकर विश्वविद्याल को गौरवान्वित किया।फिर रामू ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में आवेदन किया और प्रथम प्रयास में ही चयनित हो गया सक्षताकार में उससे पूछा गया कि देश में मज़दूरों कि हालत सुधारने के क्या सार्थक पहल होने चाहिये रामू का जबाब था मैं मजदूर स्वर्गीय केवल का बेटा हूँ मेरे पिता मजदूरी करते बिल्डिंग के निचे दब कर मर गए उन्हें मलवे के कबाड़ कि तरह कचरे कि ढेर में फेक दिया गया और मुझे लावारिस बनाकर सड़क पर जलील होने के लिये मैंने अपने पिता के सपनो कि हकीकत के लिये सड़को पर रिक्सा चलाया ठेले पर सब्जिया बेचीं और जलालत का जहर पिया मैं मजदूर के खून पसीने किबूँद कतरा हूँ जो किसी करिश्मे के विश्वस में जीता है साक्षात्कार कमेटी हथप्रद गयी ।उसे प्रशिक्षण में जाने से माँ बहनो के लिये किराये का मकान लेकर रखा।प्रशिक्षण समाप्त होने पर उसकी नियुकि लखनऊ में ही ।
केवल का हर सहयोगी मजदूर बड़े फक्र से अपने बेटो को रामू कि राह पर चलने कि नसीहत देता है जैसे केवल हर मजदूर कि आत्मा और रामू साहब उनकी संतान इंकलब के जिंदबाद है।।

कहानीकार नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




मजदूर भाग -2

रामू अपने कार्यालय में एक दिन सुबह ठीक दस बजे पंहुचा आये पत्रों को और समस्याओं को पढ़ता शुरू किया और उसके उचित निदान का निर्देश अपने पी आर ओ को देता जाता ।एका एक रामू की निगाह एक बंद लिफ़ाफ़े पर पड़ी जिसके
प्रेषक का नाम लिखा था रामानुजम तोतादृ अर्नाकुलम केरल जल्दी जल्दी बंद लिफ़ाफ़े को खोलता है और पत्र पढना शुरू करता है पत्र में तोताद्रि जी ने लिखा था —-
प्रिय रामू
मैं आज बड़े ही भारी उदास मन से नितांत अकेले बैठा हुआ हूँ शांति इतनी कि साँस लेता हूँ तो
खुद के स्वांस की आवाज़ पवन के तूफान जैसी महसूस होती है
लगता है मेरी अपनी ही सांस मुझे संसार से जीते जी उड़ा कर किसी
ऐसे स्थान पर ले जायेगी जहाँ प्राश्चित अफ़सोस का स्थान तो होगा ही नहीं होगा तो सिर्फ जन्म से जीवन की यात्रा का सुखद दुखद बृतांत जिसकी अनुभुति को देखा और जिया गया है। व्यथित करती हुई सिर्फ मानस
पटल की यादों की परतो में आती जाती व्यथित करती रहेगी।मेरे पिता अर्नाकुलम में नारियल बागानों में साधारण से मजदूर हुआ करते थे मैं तीन बड़ी बहनो में सबसे छोटा भाई था आज मेरी तीनो बहने अमेरिका में अपने परिवार के साथ स्थाई रूप से बस चुकी हैं मेरे पिता ने मेरी बहनो का विवाह बड़ी गरीबी में निम्नतम मजदूर परिवार में किया था अब इसे भाग्य का खेल कहूँ या भगवन कृष्ण के गीत के कर्म ज्ञान का पुरुषार्थ मेरे तीनो बहन के पतियो ने अपने मजदूर मजबूर पिता को अपने मेहनत लगन निष्ठां से समाज में शिखरतम प्रतिष्ठा दिलाई आज उन्होंने साबित कर दिया की भगवान उन्ही के लिये है जो भगवान द्वारा प्रदत्त जन्म जीवन के मौलिक उद्देश्यों को अपने पराक्रम पुरुषार्थ द्वारा प्रमाणित कर सकने में सक्षम होता है।मैंने भी अपने पिता की बेबस आँखों में उनकी आकांक्षाओं की लाचारी का द्वन्द देखा स्कूल से विद्यालय विश्वविद्यालय तक आर्थिक तंगी के अपमान का विष पिता रहा फिर एम् एस सी पी एच डी आदि अध्ययन करता रहा कभी स्कालर शिप मिली कभी लोगो ने प्रोत्साहित किया चूँकि दक्षिण भारत में वर्ग भाषा और स्तर में बहुत विवाद भेद मौजूद है मैं उच्च ब्राह्मण परिवार से होने के कारण मेरी योग्यता की स्विकार्यता बहुत कठिन चुनौतियों जलालत के बाद हुई चूँकि मेरे पिता अनपढ़ भूमिहीन थे अतः उनके पास अपने परिवार पोषण का एक मात्र साधन शारीरिक श्रम की चाकरी यानि मजदूरी ही थी।उन्होंने अपना जीवन अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये मशीन बना दिया और अपने जीवन की आकांक्षाओं को अपनी संतानो की उपलब्धि में साकार किया मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ की मैं तुम्हे अपनी जिंदगी के विषय में बताकर क्या हासिल करना चाहता हूँ मगर मन ने आवाज दी और लिखना शुरू कर दिया मेरे जीवन का संघर्ष किसी भी कुरुक्षेत्र के महायुद्ध से कम नही है नौकरी के लिए मसक्कत शिक्षा प्राप्त करने के लिये कदम कदम पर संघर्ष कभी गिरीबी अगर अभिशाप है तो मजदूरी महापाप जिसकी जलालत इंसान को प्रत्यक्ष झेलनी भोगनी पड़ती है।मैंने जो अपने जीवन को देखा मेने कोशिश किया की उन परिस्तितियों का सामना मेरी संतान को न झेलनी पड़े मैंने सभी परिस्थियां संसाधन उनके बेहतर भविष्य के लिये उपलब्ध कराये और मेरी संतानो ने उसका लाभ भी उठाया और अपनी मन मर्जी की मंजिल के मुसाफिर बन गए मेरी एक बेटी आयर लैंड में वरिष्ठ और जानी मानी नेफ्रो सर्जन है उसने आयरिस से विवाह कर अपना घर बसा लिया है तो बेटा मेरा एकलौता विश्व का जाना माना कार्डियोलॉजिस्ट है और उसने फ़्रांस में अपना आशियाना बना लिया है दो जानी मानी सन्तानो का पिता आज अकेले अपनी अंतिम सांसो का घुट घुट कर इंतज़ार कर रहा है पत्नी विमला की मृत्यु हो चुकी है और सामने उसकी तस्वीर से बात करता रहता हूँ।भोजन बनाने के लिए बाई आती है और चली जाती है बेटे बेटी से बात करने की कोशिश करता हूँ तो बड़ी मुश्किल से उनका फोन उठता है जब भी फोन उठाते है सिर्फ यही कहते है यहाँ आ जाओ बृद्धाश्रम बहुत है या इण्डिया में ही बृद्धाश्रम हो वहां चले जाओ।मैंने अपना विशाल माकन बच्चों के स्कूल के लिये दान कर दिया है अनेकों बीमारियों ने जकड़ रखा है और अब सिर्फ मृत्यु से समंध का इंतज़ार कर रहा हूँ।आज वो रामानुज तोताद्री अपनी किस्मत पर तड़फड़ा रहा है जिसके जीवन की इस विषम घड़ी में तुमको साझा करना क्यों उचित समझा स्वयं नहीं समझ पा रहा हूँ?
मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ लाखो विद्यार्थियो को शिक्षा और उनका भविष्य सँवारने में अपनी योग्यता से ईमानदार प्रयास किया जब भी मैं बहार निकलता बाज़ार हाट या किसी सार्वजनिक स्थान पर हमारे विद्यार्थी श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते है मुझे कभी कभी अभिमान का दीमक अंदर से खोखला करने का प्रयास करता मगर मैं कभी बसीभूत नहीं हुआ ।आज मुझे खुद के होने का बेहद अफ़सोस हो रहा है मुझे जीवन यात्रा की वेदना ने छलनी कर दिया है।मैं एक मजदूर की संतान होकर मजबूर पिता को मजबूरी के मकड़ जाल से निकलने का संकल्प सत्य किया मजदूर पिता को मजदूर महात्म्य
का महानायक बनाने में कोइ कोर
कसर बाकि नहीं रखा ।आज मै खुद मजबूर और अपने मजदूर पिता के इर्द गिर्द महसूस कर रहा हूँ।रामानुज तोताद्री का पत्र पढ़कर रामु की आँखे भर आयी ।तुरंत ही अपने कार्यालय सहयोगियों की मीटिंग बुलाई और कार्यालय का एक सप्ताह के कार्यो का निर्देश जिम्मेदारी प्रत्येक को निश्चित हिदायत के साथ सौंपते हुए अर्नाकुलम् जाने का फैसला कर लिया।अगले दिन अर्नाकुलम के लिये रवाना हो गया दो दिन बाद अर्नाकुलम रामानुज तोद्रादि जी के घर पहुँच गया।तोताद्री जी रामु को देखकर अचानक भौचक्के रह गए उन्होंने रामु का कुशल क्षेम पूछा और भावनात्मक सत्कार में स्नेह विह्वल आंसुओ के प्रवाह से किया रामू को तोताद्री जी की दशा देखकर अपने पिता की याद ताज़ा हो गयी जब वह हर सुबह उसे जीवन मूल्यों की शिक्षा देकर मजदूरी के काम पर निकलते।रामू और तोताद्री ने अपने बीते दिनों की यादों को अपनी बात चीत के शीलशिले के लिए आधार बनाया दोनों के मध्य यादो के पर्त खुलने लगे दर्द और सुख दुख के एहसास का अतीत वर्तमान में रिश्तों को मजबूती प्रदान करने में कारगर होने लगे ।दोनों के वार्तालाप में पता ही नहीं चला की
शाम कब हो गयी तोतादृ जी का
खाना बनाने वाली बाई आई तब रामु ने उसका हिसाब करते हुये बताया की आब तुम्हे खाना बनाने कीआवश्यकता नहीं है तोतादृ जी की दैनिक दिनचर्या में जो लोग भी सम्मिलित थे रामू ने सबको स्वयं जाकर एक एक का हिसाब कर दिया जैसे चिकित्सक वासरमैंन बाई आदि और यह भी बता दिया की अब तोताद्रि जी को आपके सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी आप लोगो ने जितनी लगन निष्ठां के साथ तोताद्री जी की सेवा की उसके लिये आप सभी को ह्रदय से आभार कृतज्ञता इसके उपरांत रामू ने उस स्कूल प्रबंधन से मुलाक़ात किया जिसको विद्यालय खोलने हेतु तोताद्री जी ने अपना मकान दान कर दिया था और उनसे रामानुज तोताद्रि के नाम से विद्यालय खोलने एवं उदघाटन करने का अनुरोध करते हुये बीस हज़ार रुपये दान स्वरुप इस निवेदन के
साथ किया की विद्यालय पूजन तोताद्री जी के कर कमलो द्वारा संपपन्न होगा विद्यालय प्रबंधन ने इस गौरवशाली आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।तोताद्री
जी समझ नहीं पा रहे थे की रामू
क्या करना चाहता है ।लेकिन उन्हें भरोसा था की वह गलत नहीं हो सकता जिसके अपने बेटों ने चका
चौध की दुनियां और भौतिकता के आकर्षण में अपने नैतिक दायित्वों कर्तव्यों की तिलांजलि दे दी हो उसे रामू से क्या शिकायत हो सकती थी। चुप चाप रामू के निर्णयों को सिरोधार्य करते उसके साथ कदम से कदम मिलते जा रहे थे ।रामू को आये लगभग दस दिन हो चुके थे और वह स्वयं नाश्ता खाना बनाता तोतादृ जी की ऐसी देख भाल करता जैसे ईश्वर स्वयं रामू की शक्ल में उनका तीसरा बेटा दे दिया हो। आखिर वह दिन आ ही गया जब रामानुज तोताद्री कालेज का विधिवत पूजन शुभारम्भ होना था रामू ने स्वयं तोताद्री साहब को नहला धुला कर तैयार कर पूजन में साथ लेकर गया और पूजन विधिवत विद्यालय प्रबंधन समिति के सभी
सदस्यों की उपस्तिति में सम्पन्न हुआ। पूजन सम्पन्न होते ही रामू ने प्रबंध समिति को लगभग एक हजार वर्ग मीटर की भव्य इमारत जो तोताद्री जी के जीवन के सपनो संस्कारो की प्रत्यक्ष धरोहर थी की चाभी दस्तावेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष तोताद्री जी के कर कमलों से समुगम नागराजन को सौप दिया चाभी सौपते वक्त तोताद्री जी बहुत भाउक हो गए और उन्होंने बोलना शुरू किया मैं रामानुज तोताद्री अपने स्वर्गीय माता पिता और ईश्वर को साक्षी मानकार अपने भौतिक जीवन की उपलब्धि आप लोगों को इस विश्वास के साथ सौंपता हूँ की इस विद्यालय में गरीब ,मजदूरों, असहाय ,बेसहारा बाच्चो को उनके जीवन मूल्य उद्देश्य के लिये शिक्षित कर सबल सक्षम नागरिक बनाकर राष्ट्र समाज को प्रस्तुत करेगा तभी मेरे मजदूर पिता के मेहनत पसीनों से सिंचित यह भूमि मेरे पुरुखों को शांति प्रदान कर सकेगी यदि संभव हो तो रामू का नाम इस विद्यालय के प्रबब्धन में अवश्य रखियेगा मुझे विश्वाश है की रामू मेरी इस इच्छा का आदर
करेगा ।मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ यहाँ विद्यार्थियो को पढ़ते बढ़ते देख जीवित और मृत दोनों स्तितियों में मुझे शांति और ख़ुशी मिलेगी इतना कहकर रामानुज तोताद्री ने गहरी सांस छोड़ते हुए अपने अरमानो के आशियाने को भर नज़र निहारा उनकी आँखे गवाही दे रही थी उनके गुजरे अतीत की यादो को जिसको तोताद्री जी ने उस भवन में गुजारा था उनकी आँखों से आंसू छलक रहे थे ।इतनी देर में रामू ने तोताद्री जी के आवश्यक सभी सामान जो पहले से ही पैक थे बाहर निकाल कर रखवा दिया रामू ने कहा सर चलिए अब आप मेरे साथ रहेंगे। तोताद्री जी बिना कुछ कहे रामू के साथ चल दिए विद्यालय प्रवंधन कमेटी के सभी सदस्यों ने समुगम जी के नेतृत्व में अश्रुपूरित नम और भावों के प्रवाह से रामू और तोताद्री जी को बिदा किया ।रामू तोताद्री को लेकर अर्नाकुलम रेलवे स्टेशन पहुंचा करीब एक घंटे बाद ट्रेन चलने को तैयार हुए तोताद्री जी ने अपनी जन्म भूमि की मिटटी अपने माथे लगाया और बोले हे मेरी पावन मातृ भूमि मैं तेरे ही आँचल में पला बढ़ा मेरे पिता पुरखे भी तेरी ही परिवरिस से जाने पहचाने गए तेरा ऋण मेरे खून के कण कण और खानदान पे है कोई भी प्राणी जननी जन्म भूमि का ऋण नहीं चूका सकता मगर जन्म और मृत्यु तेरे दामन में सौभाग्य है जो मेरे पुरुखों को तो
प्राप्त हुआ मगर शायद मुझे प्राप्त नही होगा ,होगा भी कैसे मेरी संतानो को तूने संभवतः कुछ ज्यदा ही प्यार कर दिया जिसके कारण अभिमान के अभिभूत तेरी सेवा से बिमुख वहां चले गए जहाँ से उनका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है संभवतः मेरे ही किसी अनजाने अपराध के अंतर मन की सजा के कारण वे अपने नैतिक कर्तव्यों से विमुख हो गए ।
मुझे क्षमां कर दे मातृभूमि मैं जब भी जन्म लूँ तेरी ही मिटटी की
बचपन ,जवानी मुझे नसीब हो। ट्रेन अपनी गति से चलती जा रही थी रामू और तोताद्री आपस में बाते करते रहते जब कभी ख़ामोशी होती दोनों ही तोड़ने की कोशिश करते।रामू और तोताद्री जी वातानुकूलित प्रथम श्रेणी डिब्बे में सवार थे दोनों की बर्थ आमने सामने थी यह वह दौर था जब भारत में मोबईल का चलन नहीं था लेकिन संचार क्रांति का दौर प्रारम्भ हो चुका था जगह जगह प्राइवेट काल आफिस खुले थे।ट्रेन निरंतर चल रही थी रामू और तोताद्री के वार्ता का क्रम चलता कभी रुक जाता तो आस पास बैठे यात्रियों को खामोशी का एहसास होता प्रथम श्रेणी कोच
तब व्यक्ति के संभ्रांत और प्रसतिष्ठित होने की पहचान थी जो अब भी बरकरार है ।बातों ही बातों
में तोताद्री साहब को कब नीद आ गयी और वो सो गए ट्रेन के कोच
में लंबी खामोशी छा गयी रामू भी शांत बैठा था अपनी धुन ध्यान में तभी उसी कोच में बैठी सुजाता जो बड़े ध्यान से रामू और तोताद्री जी की आपसी बातो को सुन रही थी ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा ये आपके पिता है रामू ने जबाब दिया नहीं मगर पिता समान है मैं एक मजदूर का बेटा हूँ जिसकी मृत्यु एक इमारत के निर्माण में कार्य करते वर्षो पहले हो चुकी है ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तोताद्री सर है। मैं लखनऊ में अकेला रहता हूँ इन्हेंअपने पास ले जा रहा हूँ।सुजाता ने झट दूसरा सवाल किया इन्होंने ऐसा क्या आपके लिये किया जिसके लिये आप इनको अपने पिता से बढ़कर मान दे रहे है इनके कुलपति काल में तो हज़ारों विद्यार्थियों ने शिक्षा विश्वविद्यालय में ग्रहण की होगी ?रामू ने उत्तर दिया मेरे पिता की दुर्घटना में मृत्यु
हुई थी इन्होंने अपनी सरकारी कार से मुझे इलाहाबाद से लखनऊ भेजा साथ ही साथ अध्य्यन के दौरान सदैव मेरी मदद पुत्र की तरह की सत्य है इनके कुलपति कार्य काल में हज़ारों
बच्चों ने शिक्षा ली मगर ये मेरे लिये
और में इनके लिये मैं पिता पुत्र की
तरह ही थे।सुजाता रामू का बेवाक जबाब सुनकर आश्चर्य से रामू का चेहरा देखने लगी कुछ देर ख़ामोशी के बाद रामू ने प्रश्न किया आप कहाँ जा रहीं है ?सुजाता ने बड़ी संजीदगी से जबाब दिया मैं लखनऊ जा रही
हूँ मैं केरल घूमने अपने दोस्तों के
साथ गयी थी वापसी में मेरे दोस्तों का कार्यकम और कुछ दिन रुकने का था मुझे लौटना था इसलिये मैं वापस जा रही हूँ।फिर रामू और सुजाता बातों ही बातो आपस में घंटो बीता दिये पता ही नहीं चला इसी बीच तोताद्री साहब ने एक बार लंबी सांस छोड़ी रामू को पुकारा और फिर निद्रा की मुद्रा में
चले गए रामू ने बहुत जगाने की कोशिशि की मगर तोताद्री साहब
नहीं उठे सुजाता ने भी बहुत कोशिश की मगर जब तोताद्री जी नहीं उठे तब रामू घबड़ाया रामू की घबराहट देखकर सुजाता ने कहा आप घबड़ाओ नहीं इनकी
साँसे धड़कन ठीक है ये अस्थाई
कोमा में जा चुके है रामू को सुजाता की ये बात सुनकर झुंझलाते हुये गुस्से से बोला आप इतने विश्वाश से कैसे कह रही है ये कोमा में है सुजाता ने उत्तर दिया जनाब मैं किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ में न्यूरोलोगी विभाग में सहायक प्रबक्ता हूँ मेरे पास ऐसे अनेक मरीज लगभग रोज आते है। रामू ने तुरंत साँरी बोला और पूछा अब हमे क्या करना चाहिये सुजाता ने कहा जनाब आप घबड़ाये नहीं एक डॉक्टर आपके साथ है मगर अब कोच कंडक्टर से कह कर जल्दी से जल्दी अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकवाये जहाँ इनको मेडिकल
सपोर्ट मिल सके रामू तुरंत कोच कन्डक्टर स्वामीनाथन के पास गया और उनको अपने बर्थ के पास लाकर तोताद्री जी के की बिगड़ती हालत को दिखाया स्वामीनाथन ने कोमा में सोये तोताद्री जी का पैर छुआ और उसके आँख से आंसुओ धार निकल पड़ी रामू ने आश्चर्य से पूछा क्या आप इनको जानते है स्वामीनाथन ने बताया की जब वह स्नातक में पढता था तब तोताद्री साहब ने ही किताबे फीस
देकर उसकी मदत की थी मेरे बाप के पास इतनी हैसियत ही नहीं थी की वो मुझे स्नातक पढ़ा सकें ।आज मैं जो कुछ भी इनकी बदोलत हूँ। यदि मैं इनकी सेवा कर सका तो मेरे लिये सौभाग्य होगा अगला स्टेशन वारंगल आ रहा है वहाँ ट्रेन रुकेगी वहाँ समुचित मेडिकल सुविधाये भी है वहीँ इनके इलाज़ की व्यवस्था करते है।
कुछ ही देर ट्रेन चलने के उपरान्त वारंगल स्टेशन पहुंची बड़ी तेजी से स्वामीनाथन स्टेशन मास्टर के केविन जाकर मरीज के सम्बन्ध में जानकारी दिया और निवेदन किया की ट्रेन को तब तक रुकवा दे जब तक मरीज के इलाज़ की समुचित व्यवस्था नहीं
हो जाती ।फिर स्ट्रेचर मंगाने और मरीज को ट्रेन से उतरने और हस्पताल तक पहुँचाने हेतु निवेदन किया स्टेशन मास्टर सूर्या राव ने कहा घबराये नही। सूर्य राव स्वयम उठकर ट्रेन के गार्ड को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के बाद स्ट्रेचर ट्रेन के कम्पार्टमेंट में भेजा जहाँ रामू तोताद्री के पास बैठा गंभीर मुद्रा में सोच में डूबा था अचानक स्ट्रेचर आया तब उसका ध्यान टुटा तुरंत उठकर वह् तोताद्री जी को स्ट्रेचर पर लाने अन्य लोंगों की मदत करने लगा कुछ ही मिनट में रामू तोताद्री जी को लेकर ट्रेन से निचे उतरा तभी सुजाता भी अपना सामान लेकर उतरी ट्रेन के निचे स्वामीनाथन खड़े थे अम्बुलेंस स्टेशन के बाहर खड़ी थी जब रामू तोताद्री जी को स्ट्रेचर से लेकर स्टेशन से बाहर जाने से पहले सुजाता की तरफ मुखातिब होकर बोला सुजाता जी आप क्यों अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ रही है ।तोताद्री जी मेरी जिम्मेदारी है आप खामख्वाह क्यों परेशान हो रही है सुजाता रामू की बात को बड़े ध्यान धैर्य से सुनने के बाद बोली रामू जी क्या आपका इन माहशय से कोई खून का रिश्ता है रामू ने कहा नहीं फिर क्यों इनके लिये अर्नाकुलम तक गए इनके बेटे इनसे मिलने नहीं आते पत्रो का जबाब भी नहीं देते देते तो इनको आहत करते आप ऐसा क्यों कर रहे है? जैसे ये आपके लिए भगवान हो रामू लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोला हाँ हमारे लिये ये भगवान ही हैं तब सुजाता ने दृढ़ता पूर्वक कहा की यदि एक सादरण इंसान आपके लिए भगवान् है तो मेरे लिए क्यों नहीं? वो भी जो जीवन मृत्यु की शय्या पर पड़ा हो मैं एक डॉक्टर हूँ मेरा कर्तव्य है की हम तब तक इनकी देखभाल करे जब तक ये स्वस्थ नहीं हो जाते ये मेरा फ़र्ज़ है ।स्वामीनाथन रामू और सुजाता की बाते बड़े ध्यान से सुन रहे थे उन्होंने निवेदन के स्वर में रामू से कहा आप सुजाता जी को चलने दीजिये ।रामू किसी तरह दबे मन से सुजाता को साथ चलने की स्वीकृति दे दी अब सुजाता ,स्वामीनाथन और रामू एम्बुलेंस से स्टेशन से बाहर निकले और थोड़ी ही देर में बाला जी नर्सिंग होम जो वारंगल का सबसे प्रतिष्ठित नर्सिंग होम था पहुँच गए जहाँ सुजाता सबसे पहले नर्सिंग होम के स्वागत कक्ष में दाखिल हुई और वहाँ के चिकित्सक के बारे में अपना परिचय एक डॉक्टर के रूप में देकर पूंछा तब तक डॉक्टर सुब्बा राव रेड्डी बाहर निकले ।स्वागत कक्ष में बैठी महिला ने इशारा किया सुजाता तुरंत डॉ रेड्डी से मुखातिब हुई और अपना परिचय देने के बाद मर्ज और मरीज के विषय में बताया इसी बीच स्वामीनाथन और रामू स्ट्रेचर लेकर दाखिल हुए डॉ रेड्डी ने बिना बिलंब तोताद्री जी का इलाज़ शुरू कर दिया स्वामीनाथन, सुजाता और रामू नर्सिंग होम के सामने एक साधारण होटल में रुकने के लिये कमरे ले लिये बारी बारी से तीनों
तोताद्री जी की सेवा एवं देख भाल करते इसी बीच सुजाता और रामू जब भी समय मिलता बाते करते धीरे धीरे एक दूसरे के मन मतिष्क ह्रदय से एक दूसरे पर करीब होते गए पता नहीं दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया दोनों को भी एहसास नही हो पाया ।डॉ सुब्बाराव ने सारी कोशिश कर लिया मगर तोताद्री जी कोमा से बाहर नहीं आ सके लगभग दो सप्ताह का समय बीत चुका था सुजाता भी बहुत चिंतित थी चूँकि वह स्वयं जानती थी की अधिक दिनों तक कोमा में तोताद्री जी का रहना अच्छा नहीं वह चिंता सोच में बैठी थी तभी वहां रामू ने आकर सुजाता की चिंता ध्यान को तोड़ते हुए बोला क्या सोच रही है? सुजाता बोली रामू जी आप बार बार आप कहके शर्मिंदा कर रहे है आपको यह नहीं लगता है ट्रेन में अचानक हम लोंगो का मिलाना तोताद्री जी का अचानक बीमार होना और फिर हम लोंगो का साथ होना यह मात्र संयोग नहीं ईश्वर की इच्छा आशिर्बाद है मैं प्रति दिन अपने पिता जी से बात करती हूँ मैन बाता दिया है की मैंने अपनी शादी के लिये अपनी एवम आपकी पसंद लड़का पसंद कर लिया है ।रामू ने भी बिना झिझक सुजाता के प्रेम विवाह की सहमति देते हुये बोला मेरी भी अन्तरात्मा की यही आवाज़ है अतः मैं तुम्हे आज दशों दिशाओं सारे देवी देवताओ अवनि आकाश पर्वय नदियां झरने झील पेड़ पौधों वनस्पतियो को साक्षी मानकर तुमसे उचित समय आने पर विवाह करने का वचन देता हूँ।
सुजाता ने तुरंत ही एक सवाल
किया रामू तुमने इतनी जल्दी फैसला लेने के लिये किस ख़ास बात ने विवश किया मेरे निस्वार्थ प्रेम ने या कोई अन्य कारण से रामू ने बड़े ध्यान से सुजाता की आँखों में आँखे डाल कर देखा और बोला सुजाता क्या तुम जानती हो की मैं कौन हूँ मेरा बैक ग्राउंड क्या है मैं क्या करता हूँ मेरे क्योकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानता हो हूँ की तुम किंग जार्ज मेडिकल कालेज में न्यूरो बिभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हो सुजाता ने जबाब दिया मेरे लिये इतना ही काफी है की तुम्हारा दिल आइने की तरह है जिसमे दिल और चेहरा साफ़ साफ़ दिखता है ।मेरे लिये इतना बहुत है प्यार करने के लिये जिंदगी में रामू ने कहा फिर भी मैं तुमको बताना चाहता हूँ की तुमको पछतावा न हो मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी हूँ और लखनऊ में विशेष सेवा मे पोस्टिंग है मेरी अभी दोनों की वार्ता चल ही रही थी की स्वामीनाथन भागे भागे आये और बोले तोताद्री सर को होश आ गया सुजाता और रामू भागे भागे बाला जी नर्सिंग होम के उस रूम में पहुंचे जिसमे तोताद्री साहब की चिकित्सा चल रही थी तोताद्री जी ने रामू को देखते ही कहा रामू मैं बहुत गहरी नींद में सो गया था मगर नींद में भी तुम्हारी परेशानी का कारण मैं हूँ चिंता रहती आज लगा की तुम जीवन में कुछ खुश हो तो नीद तुम्हारी ख़ुशी देखने के लिये टूट गयी। रामू की आँखे भर आयी रानू ने तुरंत ही सुजाता की तरफ मुखातिब होते हुए सुजाता का परिचय कराते हुए बोला ये डॉ सुजाता है हमी लोंगो के डिब्बे में सफ़र कर रही थी ये न्यूरो बिभाग किंग जार्ज मेडिकल कालेज में सहायक प्रोफ़ेसर है आपकी बिमारी की स्थिति में अपना सफ़र बीच में ही छोड़ कर हम लोंगो के साथ उतर कर आपकी देख रेख बड़ी लगन से किया है ।तोताद्री साहब ने सुजाता को गौर से देखा और बोले बेहद खूबसूरत और होनहार है मेरा आशिर्बाद है बेटा। सुजाता और कुछ दे भी नहीं सकता क्योकि रामू के शिवा मेरे पास तुम्हे देंने के लिये कुछ भी नहीं है और रामू तुम्हारे साथ है ।फिर तोताद्री जी विश्वनाथन की तरफ मुखातिब हुते हुए बोले ये निरंकार विश्वनाथन मेरा प्रिय शिष्य मैं जीतनी बार जन्म लूँ हर बार विश्वनाथन और रामू जैसे बेटो पिता बनना मेरी एकमात्र इच्छा होगी मैं ईश्वर से सदैव यही मांगूगा।
इन्ही बार्ता के मध्य डॉ सुब्बाराव रेड्डी वहां पहुचे उन्होंने तोताद्री जी
की रूटीन चेक उप करने के बाद वहां उपस्थित सभी लोंगो को हिदायत दी तोताद्री जी को आराम की जरुरत है। फ़ौरन विश्वनाथन सुजाता और रामू तोताद्री जी को आराम देने की नियत से वहां से हट गए ।अब प्रतिदिन तोताद्री जी की सेहत में तेजी से सुधार होने लगा एक हफ्ते बाद पूरी तरह ठीक हो गए बाला जी नर्सिंग होम वारंगल में तीन सप्ताह तक इलाज़ इलाज़ के बाद तोताद्री जी पूरी तरह स्वस्थ हो गए डॉ सुब्बाराव रेड्डी ने कुछ आवश्यक हिदायत दी और सुजाता को समझाया और नर्सिंग होम से छुट्टी दे दी नर्सिंग होम में इलाज़ का पूरा खर्च निरंकार विश्वनाथन ने चुकाया और लखनऊ तक जाने का ट्रेन टिकट के साथ सुजाता ,रामू और तोताद्री जी के साथ रेलवे स्टेशन आया और ट्रेन में बैठाने आदि की व्यवस्था की और तोताद्री जी के पौरों पर सर रख कर आशिर्बाद लेकर सुजाता ,रामू के साथ तोताद्री जी को विदा किया ट्रेन वारंगल से च्लने लगी निरंकार स्वामीनाथन एक तक जाती ट्रेन को देखते रहे उनकी आँखों से अश्रु धरा बह रही थी धीरे धीरे ट्रेन आँखों के सामने से ओझल हो गयी ।विश्वनाथन भी अपने घर लौट गए विश्वनाथन दूसरे दिन पूरे तीन सप्ताह की छुट्टी आवेदन ले कर अपने कार्यालय पहुंचे जब वे अपने अधिकारी रामामूर्ति को छुट्टी का
आवेदन दिया रामामूर्ति जी आग बबूला हो गए और बोले मैं जनता हूँ की आपके पिता को ये दुनियां छोड़े वर्षो हो गए मगर फिर भी आपने लिखा है की आपके पिता जी की तबियत खराब होने के कारण डियूटी पर नहीं आ सके ये नया बाप कहाँ से आ गया ?विश्वनाथन को अपने अधिकारी रामामूर्ति जी की बात बड़ी नागवार गुजरी फिर भी उन्होंने बड़े धैर्य से जबाब दिया सर उन्होंने मुझे पढ़ाने में बहुत मदत की थी मेरे बाप के पास इतना संसाधन ही नहीं था की वो मुझे स्नातक की शिक्षा दिला पाते वो तो भला हो तोताद्री जी का जिनकी कृपा से मैं स्नातक भी हुआ और आपके समक्ष यह अवकाश प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर की हद हैसियत पाई। राममूर्ति जी को समझते देर नहीं लगी उन्होंने फ़ौरन अवकाश स्वीकृत करते हुए अपनी कुर्सी से उठे विश्वनाथन की
पीठ थापथाई और बोले तुम धन्य हो तुम्हारे जैसा इंसान जमाने में मिशाल है और यह कहते हुए उनकी आँख भर आयी बोले तुम सदा ही अपने उदेशय पथ पर सफल हो।।
ट्रेन अपना सफ़र पूरा करते हुए लखनऊ को पहुंची रामू सुजाता और तोताद्री साहब ट्रेन से उतारे और फ़ौरन रिजर्व टैक्सी कर अपने घर को चल दिए सुजाता ने भी कहा हम भी घर तक साथ चलेंगे और वह भी साथ हो ली आधे घंटे में तीनो रामू के सरकारी आवास पहुचे जहाँ रामू की दोनों बहने अपने भाई रामू और तोताद्री जी का इंतज़ार कार रही थी सुजाता ने तोताद्री साहब का कमरा विस्तर ठीक कराया और रामू की बहनों को तोताद्री साहब की देख भाल की खास हिदायत देकर चलने के लिये विदा लेने के लिये रामू की दोनों बहनों राशि और रोहिणी की तरफ मुखातिब हुई तभी दोनों बहनो ने कहा अच्छा भाभी आपकी हिदायत के अनुसार ही हम लोग बाबूजी की देखभाल करेंगे सुजाता को बहुत तेज झटका लगा उसने विस्मय कारी दृष्टि से राशि और रोहिणी की तरफ देखा तभी दोनों बहनो ने एक साथ बोला माफ़ करना भाभी आपकी शादी जिससे होगी वह् भी हम बहनो के भाई जैसा ही होगा। सुजाता ने हल्की मुस्कान बिखेरी और अपने घर जाने को बाहर निकली दोनों बहने अपने भाई रामू के साथ बाहर निकली और तीनो ने भावनात्मक अभिवादन से सुजाता को विदा किया। सुजाता कुछ ही देर में अपने घर पहुँच गयी घर पहुँचते ही सुजाता की पापा हृदय शंकर त्रिपाठी ने अपनी एकलौती बिटिया का बेहद भावनात्मक स्वागत किया और बिलम्ब का कारण पूछा सुजाता ने पूरी यात्रा का तप्सिल से वर्णन हृदय शंकर त्रिपाठी अपनी बेटी पर बहुत प्रशन्न हुये सुजाता सफ़र की थकान बोझ से सामान्य होकर अगले दिन से अपने डियूटी पर जाने लगी रामू भी अपने कार्य पर जाने लगा दिन धीरे धीरे जिंदगी सामान्य होने लगी राशि और रोहिणी जल्दी ही तोताद्री जी से घुल मिल गयी और तोताद्री जी को बाबूजी कहती और तोताद्री जी को भी दो बेटिया मिल गयी थी तोताद्री जी का मन विल्कुल ऐसा लग गया जैसे की अपने घर अर्नाकुलम में ।उधर सुजाता जब भी अपने डियूटी से खाली होती रामु से मिलने जाती दोनों घंटो बाते करते कभी कभी साथ घुमने पार्क रेस्त्रां चले जाते दोनों की प्रेम कहानी किंग जार्ज मेडिकल कालेज और लखनऊ के प्रशासनिक अमलों में चर्चा का विषय बन गयी थी धीरे धीरे यूँ ही दिन बीतते गए।एकाएक एक दिन तोताद्री जी ने रामू से कहा बेटा रामू राशि और रोहिणी अब विवाह योग्य हो चुकी है दोनों के लिए विवाह योग्य बर देखकर इनका विवाह कर दो या यदि इन दोनों की पसंद का कोई लड़का हो उनसे ही इनका विवाह कर दो रामू को तोताद्री जी की बात अच्छी लगी उसने पहले ही सुरेन्द्र नायक के परिवार में उनके दोनों बेटों को जो डॉक्टर थे अपनी बहनों के लिए पसंद कर रखा था दूसरे दिन रामू सुरेन्द्र नायक के घर जाकर अपने बहन राशि और रोहोणि का विवाह निश्चित कर दिया बड़े धूम धाम से दहेज़ रहित विवाह रामू ने अपनी बहनो का किया सुरेन्द्र नायक जी की ख़ुशी का क़ोई ठिकाना नहीं रहा रोहिणी और राशि जैसी सुलक्षणा सुन्दर बहुओं को पाकर तोताद्री जी ने दोनों कन्याओ का कन्या दान किया जब दोनों बहने बिदा होने लगी रामू और तोताद्री जी ने
भरी आँखों से बिदा किया सुजाता विवाह के एक सप्ताह पहले सुबह आ गयी थी और विवाह की तैयारी शॉपिंग आदि करती कभी दस बजे कभी बारह बजे रात्रि को अपने घर जाती। उसने अपनी ननदो की शादी में क़ोई कोर कसर नहीं रखी इसी तरह तीन महीने एकाएक दिन तोताद्री जी ने रामू को प्यार से बैठाया और कुछ देर पुरानी बातों की याद ताज़ा करते हुये बोले रामू अब तक तुमने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया किसी भी परिवार को तुम पर नाज़ हो सकता है मगर अब तुम्हे अपने बारे में सोचना है तुम शादी कर लो सुजाता अच्छी लड़की है उसके आने से तुम्हे जीवन की सारी खुशियाँ मिलेंगी पढ़ी लिखी डॉक्टर है सुन्दर है मिलनसार है
सर्वथा तुम्हारे योग्य है आज ही तुम सुजाता से कहो की वो तुम्हारी शादी के लिये अपने पिता जी को यहां भेजे और विवाह की तिथि निश्चित करे। रामू ने सहमति से सर हिलाया और तैयार होकर कार्यालय को चल दिया उस दिन सुजाता जल्दी जल्दी अपने काम से छुट्टी पाकर रामू से मिलने के लिये फोन करके बुलाया रामू कार्यालय से खाली होकर जल्दी ही सुजाता से मिलने गया सुजाता पहले से इंतज़ार कर रही थी ।रामू के पहुँचते ही सुजाता ने कहा कब से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ आज मै सरप्राइज देने वाली हूँ रामू ने कहा मैं भी तुम्हे सरप्राइज देनेवाला हूँ सुजाता ने झट कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम रामु ने कहा पहले तुम पहले तुम के चक्कर मे लखनऊ के नबाबों का हाल मत करो तुम पहले से आकर इंतज़ार कर रही हो अतः पहले तुम ही बताओ सुजाता ने कहा अच्छा बाबा मैं ही बताती हूँ तो सुनो मेरे पापा पंडित ह्रदय शंकर त्रिपाठी कल आपके घर मेरे रिश्ते की बात लेकर जाने वाले है जनाब मेरे पापा काफी कड़क ऊँचे ओहदेदार खानदानी आदमी है जरा संभल कर बात कीजियेगा रामु ने भी बताया कि मैं भी यही कहने वाला था कि तुम अपने पिता को मेरे घर हम दोनों की शादी की बात के लिये भेजो फिर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे फिर दोनों अपने अपने घर को चले गए। दूसरे दिन अवकाश का दिन रविबार था ठीक सुबह नौ बजे ह्रदय शंकर त्रिपाठी रामू के घर पहुंचे दरवाजे का कालवेल बजाया तो तोताद्री जी ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ बैठाया थोड़ी देर बाद रामू ड्राईंग रूम में दाखिल हुआ और ह्रदय शंकर त्रिपाठी को देखकर बोला आप यहाँ कैसे यहाँ आने हिम्मत हुई तेज आवाज सुनकर तोताद्री साहब ड्राईंग रूम में दाखिल हुए बोले बेटा मैंने इनको बैठाया है ये सुजाता के पिता है क्या बात है रामू बहुत गुस्से में बोला बाबूजी ये वाही कॉन्ट्रेक्टर है जिनकी सुजाता अपार्टमेंट में काम करते मेरे पिता की मृत्यु हुई थीं और इन्होंने मेरी माँ को बहुत अपमानित किया था ह्रदय शंकर त्रिपाठी को समझ नहीं आ रहा था की वो बात को किस प्रकार शुरू करें उन्होंने तोताद्री जी से निवेदन किया सर वह एक दुर्घटना थी जिसके कारण मैं भी बहुत मानसिक दबाव में था मैं अपनी गलती के लिये क्षमा मांगता हूँ मेरी एकलौती बेटी ने मुझे यहाँ भेजा है रामू से अपने रिश्ते के लिए वो रामु से ही प्यार करती है और रामू से ही विवाह करना चाहतीं है मैं लाचार विवश पिता हूँ मुझे चाहे जो सजा दे दें लेकिन मेरी बेटी की ख़ुशी के लिये ये रिश्ता स्वीकार करें ।उसे नहीं पता की रामू के पिता की मृत्यु उसके पिता के ही प्रोजेक्ट में हुई थी और जब उसे बता चलेगा तो मुझसे नफ़रत करने लगेगी कहते हुये तोताद्री जी के पैर पकड़ लिया तोताद्री जी ने ह्रदय शंकर त्रिपाठी को उठाया और कहा धीरज रखिये रामू ने कहा हरगिज नहीं अब तो ये रिश्ता नहीं हो सकता।रामू ने तोताद्री जी से कहा सर जिस व्यक्ति में मानवता नाम की कोई संस्कार न हो उससे किसी भी प्रकार का रिश्ता ईश्वर का अपमान है मेरे पिता के मृत्यु के समय के दो किरदार जिनकी भूमिका मैं नहीं भूल सकता उसमे एक आप है जिनमे मुझे अपना पिता नज़र आते है दूसरे ये महाशय है जिनमें मुझे अपने दुर्दिन के अपमान जलालत और इंसानी जिंदगी का कोफ़्त नज़र आता है। मैं इनके व्यवहार आचरण से इतना आहत हुआ की जिंदगी भर मजदूर का बेटा होने का दर्द सताता रहेगा ।सर इनसे कहिये ये इसी वक्त यहाँ से चले जाय नहीं तो मैं कुछ भी धृष्टता करने पर विवस हो सकता हूँ। इतने में हृदय शंकर त्रिपाठी जी विवस लाचार असहाय होकर कहा बेटा मेरी एक ही बेटी सुजाता मेरे जिंदगी की तमाम खुशिया है मैं उसके लिए आया हूँ मैं उस दिन की कृत के लिये बहुत शर्मिंदा हूँ माफ़ी मांग रहा हूँ बेटे इतना कठोर न बन तू तेरे पिता रामू ने मेरे लिये जान गवांयी आगर वो आज होते तो शायद इतना पत्थर दिल नहीं होते रामू तुम्हारे पिता ने कभी मेरी बात नहीं टाली रामू ने तुरंत पलट कर जबाब दिया सही कह रहे है उसी मजदूर की विधवा पत्नी मेरी माँ
जीवन भर उनकी बेवसी को हमे याद दिलाती इस दुनिया से चली गयी ।मैं उसे क्या जबाब दूंगा क्या क्या कहूँगा की तेरे पति की लाश पर हैवानियत का नंगा नाच किया उन्ही के सपनों के आशियाने बना रहा है तू बड़ा लायक बेटा है एक मजदूर की मजबूरी का उसका बेटा मज़ाक उड़ा रहा है ठीक उसी तरह जिन्होंने मजदूरो की लाश की बोटियों की कीमत पर दौलत के महल बनाये लोगों की लाचारी का समाज में जुलुस निकाले क्या वहीँ बचे है दुनियां में रिश्तों के लिये।तोताद्री जी रामू के मुख मंडल की भाव भंगिमा से उसकी मानसिक और आहत ह्रदय के प्रतिशोध् को प्रत्यक्ष देख रहे थे ।
उनको खुद नहीं समझ आ रहा था की जिसने अपने जीवन में बड़ी से बड़ी समस्या को और भयंकर नफरत की आग को शान्तं कर सर्वस्वीकार सम्मानित समाधान दिया है वो आज खुद इतना विवस क्यों? तोताद्री जी ने
धैर्य पूर्वक बोलना शुरू किया कहा बेटा तुम्हारा ह्रदय विशाल है
देखो मुझे जिसके सगे बेटो ने ठुकरा दिया लेकिन तुमने खुद के बेटो से भी अधिक मान देकर पूरी मानवता को एक सन्देश दिया पिता जो अपने जवानी मेंअपनी संतान को अपने कंधे पर बैठाकर दिन दुनियां को बताता है की उसकी संतान उसे उसके आखिरी सांस तक उसके अभिमान को जिवंत रखेगा उसके जवानी के कर्म ,धर्म
के पुरस्कार के परिणाम से अभिभूत कर उसे जीवन समाज में संबंधो का अभिमान की अबुभूति करायेग आज कितनी संताने रामु है जो आदर्श है देखो मेरी ही औलाद जिनके लिये मैंने अपने जीवन की सभी दौलत लूटा दी और वे ही आज मेरी जिंदगी को असहाय छोड़कर चले गए और उनके पास वक्त तक नहीं की जानने की कोशिश करें की उनका बाप है भी या मर गया है ,जिंदा है तो किस हालात में हैं क्या ऐसे पिता जीना छोड़ देते है तुम्हारा जन्मदाता तो धन्य है जो खुद तो दुनियां छोड गया लेकिन अपनी औलाद के रूप में तुम्हे अपनी भावनाओ जिनको जिया सपनो को जिनको देखा का साकार रामू दुनियां में उसके अस्तित्व उसके सपनो की हकीकत का सत्य है।आज तुम पर दुनियां को गर्व है उन मूल्यों को धूलधुसित न होने दो जिसके लिये तुम्हारे पिता जीते रहे तुम्हे अच्छी शिक्षा तालीम मिली उसके लिये कितना भी थके हारे हो तुम्हे ब्रह्म बेला में तुम्हे नीद से जगाना नहीं भूलते थे वो खुद अनपढ़ होते हुये भी तुम्हारी शिक्षा संबंधी जानकारी हासिल कर कही कोई कमी होने नहीं होने देते उनकी चाहत थी की तुम दुनियां में सक्षम व्यक्ति बनो।तुमने भी उनकी आशाओं को सच साबित कर दिया ।जहाँ तक सुजाता से तुम्हारे विवाह का प्रश्न है तो तुमने देखा ही की बिना किसी जान पहचान के एक दो घंटे की सफर में मुलाक़ात में उसने अपना सफ़र बीच में छोड़ कर तुम्हारे साथ पूरे तीन हफ्ते मेरी सेवा करती रही इतना पर्याप्त नहीं है उसके पिता की माफ़ी के लिये यदि इतना पर्याप्त नहीं है तो तुम इस सत्य को नहीं झुठला सकते हो की तुम सुजाता को खुद भी खुद से ज्यादा चाहते हो और तुमने सुजाता को वचन दिया है की तुम उसे जीवन संगिनी बनाओगे और वह् तुम्हारे लिये सर्वथा उपयुक्त भी है।
तुम्हारे तो मेरे ऊपर बहुत ऋण है शिष्य होने का फ़र्ज़ इस तरह निभाया है तुमने की दुनियां में अर्जुन कृष्ण और भीष्म जैसा याद करेगी मैं किसी भी जन्म में तुम्हारा गुरु पिता बनना ईश्वर से अपने किसी भी सद्कर्मो के लिये वरदान में मांगूंगा यदि ईश्वर मुझे कुछ भी देना चाहे मैं ना तो तुम्हे सुजाता से विवाह के लिये आदेश देने की स्थिति में हूँ ना ही सुझाव मेरा मात्र निवेदन है की तुम उचित समझो तो सुजाता से पाणिग्रहण स्वीकार करो। तोताद्री जी की आँखे भर आयी रामू ने तुरंत ही तोताद्री जी के पैर पकड़ कर बोला आपका आशिर्बाद मेरे लिये मेरे पिता का आदेश होगा यदि आपकी इच्छा यही है तो हम सुजाता से विवाह करने को तैयार हूँ। मगर मेरी शर्त यह है की शादी मंदिर में होगी ह्रदय नारायण त्रिपाठी को लगा जैसे अंधे को दो आँखे मिल गयी तोताद्री जी ने विवाह का मुहूर्त निश्चित करके विवाह की तैयारी के लिये जुट गए
सुजाता और रामू का विवाह मंदिर पर सादगी के साथ हुआ ।रिसेप्शन रामू के निवास के समीप मैरेज लान में आयोजित किया गया जिसमे रामू और सुजाता की जोड़ी को सभी ने सराहा।रामू रिसेप्शन शुरू होने के साथ ही तोताद्री जी को डायस पर ले जाकर बोलना शुरू किया आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित लखनऊ के सभी सम्मानित गणमान्य अतिथी आज मैं अपने उस पिता से आपको परिचित करता हूँ जिसने मुझे जन्म तो नहीं दिया मगर जीवन का मकसद हौसला और जीवन की सच्चाई से लड़ने की ताकत दी ये है हमारे जीवन के मार्ग दर्शक गुरु पिता और जीवन की उंचाईयों की उड़ान के पंख आदरणीय पूज्यनीय श्री रामानुज तोताद्री ये नहीं होते तो आज मेरा अस्तित्व नहीं होता मैं तो एक साधारण मजदूर पिता की संतान जिसमे ना तो समाज में स्वाभिमान से जीने का साहस होता है ना ही संबल देने वाला समाज मजदूर अपने खून पसीने से सिर्फ अपने परिवार को बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी दे सकता है ।और नीद के लिए झोपडी उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती की वह समाज में खड़े होकर किसी से बराबरी से बात कर सके उसकी जिंदगी तो बाबूजी मालिक कहते बीत जाती है और जी हुज़ूरी जलालत भी उसे जिंदगी में ईश्वर की कृपा आशिर्बाद लगती है ।कीड़ों मकोड़ो की जिंदगी मजदूर का बेटा सपने देखने का हक नहीं रखता ऊँचे सपने तो बहुत दूर की बात है मेरे जन्मदाता पिता भी डरी सहमी जिंदगी के बोझ तले एक इमारत बनाते वक्त उसी के मलबे में जमीदोज हो गए उस मुर्दा मजदूर को भी सुकून के दो गज़ कफ़न और शमशान नसीब नही हो सकी आज मैं जहाँ भी हूँ उस मरहूम मजदूर के प्रतिनिधि के रूप में जिसे हुनर से तरासा है आदरणीय रामानुज तोताद्री जी ने आगर ईश्वर सत्य है तो इस दुनियां में जी उसके जीवन्त जाग्रत स्वरुप है।हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सुजाता और रामु ने तोताद्री जी का पैर छू कर आशिर्बाद लिया तोताद्री जी ने बोलना शुरू किया दुनियां अजीब है कोइ अपना होकर साथ छोड़ देता है कोई परया प्रेम के रिश्तों में ऐसा बाँध लेता है की अपनों की काली याद तक नहीं आती मैंने भी पैदा की संताने है जिनके सपनों को साकार करने के लिये अपनी हर संभव कोशिश की आज वो सम्मानित संपन्न भी है मगर उन्हें फुरसत नहीं की इस बुढ़े का हाल चाल ले सके यदि यही समाज की प्रगति है तो ऐसी प्रगति
प्रगति बिलकुल नहीं होनी चाहिये जिसमे प्रगति की प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाय और प्रगति की बुनियाद हिल जाय यदि क़ोई प्रगति की परिभाषा हो सकती है तो उसका प्रतिनिधित्व करता है रामू जो जीवन समाज के विखरे एक एक पन्ने तिनके को इकठ्ठा कर् प्रगति प्रतिष्टा का प्रेरक वर्तमान का युग राष्ट्र समाज का अभिमान है आज मेरे अपने खून ने मुझे तिरस्कृत किया तो मर्यादा के देवता यदि राम त्रेता में राम राज्य के प्रेरक पुरुष है तो आज उन मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करता है प्रत्यक्ष है रामू मेरे बेटों ने मुझे ठुकरादिया तो क्या हुआ राम मेरे साथ है जिसने आज यह प्रमाणित कर दिया की रिश्ते खून से ही नहीं मानवीय मूल्यों की संवेदनाओं की बुनियाद पर खड़े होते है आज मैं फक्र के साथ स्वीकार करता हूँ की रामू ही हमारा बेटा है। आज मैं इसे यह अधिकार देता हूँ की यदि मैं न रहूँ तो रामू मेरे बेटों को कोई सूचना नहीं देगा और मेरी चिता को अग्नि उसी प्रकार देगा जैसे इसने अपने जन्म दाता पिता को दिया था यह अधिकार मैं रामू को देता हूँ।एकबार पूरा हाल तालियों की
गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
रिसेप्शन की पार्टी पुरे शबाब पर जोश खरोश से सम्पन हुई सबने नव दंपति सुजाता और रामू को उनके सफल सुखी जीवन का आर्शीवाद दिया मंगल कामनाये की पार्टी समाप्त हुई सुजाता बहु के रूप में तोताद्री जी की पसंद थी जैसा नाम वैसा गुण सुजाता ने घर का वातावरण खुशनुमा बनाने में हर संभव कोशिशि की तोताद्री जी का ख्याल अपने पिता की भाँती करती दोनों ननदे त्यौहार ख़ास अवसरों पर आती और भाभी सुजाता से खुश रहती महदुर का विखरा परिवार समाज का प्रतिष्ठित परिवार बन गया। धीरे धीरे दिन बितते गए तोताद्री जी को अपने बेटों की याद तक नहीं आती तोताद्री जी ने ऱामू के पिता की तरह अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाई रामू दोनों बहनो की शादी का कन्या दान स्वयं किया रामू की शादी में पिता की भूमिका निभाई अब रामू एक खूबसूरत बेटे का पिता बन चूका था जिसका नाम तोतादृ जी ने स्वयं बड़े प्यार से दिया था शुभो रामू रामानुजम तोताद्री सुजाता और रामू बेटे को जूनियर तोताद्री सर कहकर बुलाते घर में विल्कुल खुशियो जैसा माहौल था एक आदर्श परिवार तोताद्री जी भी शुभ से दिनभर घुले मिले रहते उनको उम्र के आलावा कोई बिमारी नहीं थी बुढ़ापा उनकी उम्र लवभग पंचानवे वर्ष की हो चुकी थी फिर भी स्वस्थ की दृष्टि से वे विल्कुल फिट थे।एकाएक एक दिन तोताद्री जी को दिल का दौरा पड़ा सुजाता और रामू भी घर पर ही थे जल्दी जल्दी स्टाफ कार से ही रामु सुजाता तोताद्री जी को लेकर इलाज हेतु भागे दुर्भाग्य यह था की उसी दिन तमाम मजदूर ट्रेड यूनियन सड़को पर सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन कर रहे थे हर तरफ सड़को पर जाम लगा था रामू किसी तरह जल्दी से तोताद्री जी को मेडिकल एड दिलाने के लिये बेचैन था लेकिन जाम के कारण कही से निकल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि विल्कुल नामुमकिन था अमूमन शांत शौम्य रामू खूंखार शेर की तरह गाडी से उतरा और गाडी निकालने के लिये निवेदन जोर जबरजस्ती करने लगा भीड़ इतनी उग्र थी की उसे समझ पाना संभव नहीं था उग्र भीड़ में रामू की झड़प हो ही रही थी तभी खाकी वर्दी में अधेड़ पुलिस अधिकारी कड़कती आवाज़ में बोला क्या है आप लोग इतना शोर हो रहा था की कोई किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं था इसी बीच रामू ने उस वर्दीधरी को पहचान लिया वहीँ पुलिस अफसर था जिसने रामू के मजदूर पिता की ह्रदय शंकर त्रिपाठी की निर्माणाधीन सुजाता काम्प्लेक्स में काम करते समय मृत्यु के समय माँ की थोड़ी बहुत मदत की थी रामू उस पुलिस अफसर के पास गया और उसने जल्दी जल्दी उस अतीत को याद दिलाते हुये कहा की आज फिर मेरे पिता जैसे क्या पिता ही जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहे है उन्हें जल्द चिकित्सा नहीं मिली तो मर जाएंगे उस पुलिस अधिकारी ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए लाठिया भांजनी शुरू कर दी और साथ के सिपाही और पुलिस कर्मी भी लाठी भांजने लगे नतीजन गाड़ी निकलने का रास्ता हो गया उस पुलिस अधिकारी ने स्वयं कहा आगे आगे अपनी गाडी लेकर चलता हूँ आप पीछे पीछे आये तभी कार से सुजाता निकली और बोली सुनिये आपको पापा जी बुला रहे है उन्हें थोडा बहुत होश भी है रामू दौड़कर गाडी में गया तोताद्री साहब जैसे उसीका इंतज़ार कर रहे हो साथ में सुजाता भी गयी तोताद्री साहब ने कहा बेटा रामू रामू बोला हां पापा रामानुज तोताद्री की आँखों में चमक और मन में शांति बोध स्पष्ठ उनके चेहरे से झलक रहा था बोले बेटा रामू मुझे मुखाग्नि तुम ही दोगे जिससे मेरी आत्मा को शुख सुकून मिलेगा रामू ने कहा आप ऐसा क्यों कह रहे है हम लोग जल्दी ही अस्पताल पहुचने वाले है और आप ठीक हो जाएंगे रामानुज तोताद्री ने रानू का हाथ अपने हाथ में पकड़ा और निढाल हो गए कुछ देर के लिये लगा की भीड़ में सन्नाटा हो गया है सुजाता ने चेक किया छाती और स्वांस से जो भी मेडिको थिरेपी दी जा सकती थी दिया मगर बेकार अंत में बड़ी निराशा से बोली अस्पताल जाने का कोई फायदा नहीं है अतः घर चलकर अंतिम संस्कार की तैयारी की जाय रामू गाडी को तुरंत घर की तरफ मोड़वाया घर पहुचकर अंतिम संस्कार की तैयारी कर तोताद्री जी को कांधा दिया और मुखाग्नि दिया अस्थियों का विसर्जन संगम में करवाया फिर वीधिवत धार्मिक रीती रिवाज़ से श्राद्ध किया श्राद्ध में उत्तर ,भारत दक्षिण भारत दोनों विद्वानों ने अपने अपने कर्मकाण्ड पद्धतियों से कर्मकाण्ड कराया।रामानुज रामु तोताद्री अपनी तोतली आवाज़ में बाबा को खोजता है कभी उनकी तस्वीर के सामने खडा हो जाने अपनी बाल्यबन में क्या क्या बाते करता है।रामू हर वर्ष अर्नाकुलम जाता है और उनके विद्यालय को एक नयी सौगात देता है।
बहुत दिनों बाद एक दिन तोताद्री जी की डायरी रामू को मिल रामु को लगा की उनकी डायरियों को संकलित कराकर प्रकाशित कराई जाय रामु ने तोताद्री जी की डायरियों का दो संकलन छपवाय पहला वेदना दूसरा द्वन्द दोनों किताबो ने बहुत शोहरत हासिल किया नतीज़न लाखो रुपये रॉयल्टी आने लगी रामु ने उस रॉयल्टी और कुछ और सहयोग एकत्र कर रामानुज तोताद्री फाउंडेशन बनाकर मजदूरों की विधवाओं ,विकलांग, मजदूरो और बेसहारा मजदूरो एवम् मजदूरो के बच्चों की पतिवरिस शिक्षा स्वस्थ की बेहतरी का क्रांतिकारी अनुष्ठान प्रारम्भ किया जो शैने शैने समाज में नई जाग्रति चेतना का संचार कर रहा है।

कहानीकर —-नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




सभिसप्त ज़िंदगी

जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन तुम्हारी ढेर सारी खुशियो और जीवन कि दिशा दृष्टि के लिये बहुत महत्व पूर्ण है। तो बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ सबसे पहले हम लोग मंदिर जाएंगे उसके बाद महेश सिंह ने पत्नी मनोरमा से कहा आज रिया का जन्म दिन है और हर साल इस साल से कुछ ख़ास हम सभी मंदिर जाएंगे आप और मिलिंद जल्दी से तैयार हो जाओ मैंने रिया से तैयार होने के लिये बोल दिया है।महेश सिंह मनोरमा मिलिंद रिया हम दो हमारे दो कुल चार सदस्यों का परिवार था महेश मनोरमा दोनों बहुत खुश थे एक तो रिया के पेपर बहुत अच्छे हुए थे दूसरे कुल पुरोहित ने भी बताया था कि रिया बिटिया कि जन्म में बृहस्पति प्रवल है अतः शिक्षा के क्षेत्र में सदैव नाम और ख्याति अर्जित करेगी महेश, मनोरमा बेटे मिलिंद बेटी रिया को लेकर शहर के सारे मंदिरों पर गए आशिर्बाद लिया लगभग दिन के एक बजे घर लौटे देखा कि रिया कि स्कूल टीचर मैडम लियोनी पहले से ही पड़ोसीकृपा शंकर मिश्र के घर बैठी थी ।महेश मनोरमा को बहुत आश्चर्य हुआ कि पड़ोसी कृपा जी कि कोइ संतान तो रिया के साथ पढ़ती नहीं फिर रिया कि स्कूल टीचर वहाँ क्यों क्या ख़ास बात हो सकती है। इसी उधेड़ बन में महेश और मनोरमा अपने घर का दरवाज़ा खोल ही रहे थे कि अचानक कृपा शंकर मिश्र और मैडम लियोनी आते ही एक साथ बोल उठे बधाई हो रिया बिटिया ने दसवीं कि परीक्षा में पूरे जनपद में प्रधम स्थान प्राप्त किया है ।कृपा शंकर जी ने बड़े आत्म अभिमान से कहा कि हमे आपका पड़ोसी होने पर गर्व है रिया बिटिया ने सारे मोहल्ले और ख़ास कर सभी पड़ोसियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया ।मनोरमा और रिया ने बड़े बिनम्र भाव से कहा कि रिया कि मेहनत आप सभी लोगो कि शुभकामना और आशिर्बाद से बिटिया ने सफलता हासिल किया है। घर का दरवाजा खोलते हुए मनोरमा ने मैडम लियोनी और कृपा शंकर जी से अंदर आने का आग्रह किया सभी लोग महेश सिंह जी के ड्राइंग रूम में दाखिल हुए और बैठे तब रिया ने सबका पैर छूकर आशिर्बाद लिया तब तक मिलिंद सबके लिये मिठाई लेकर आया सबने रिया कि शानदार सफलता कि मिठाई खाई तब मैडम लियोनी ने बोलना शुरू किया महेश जी चुकी रिया ने इतनी शानदार सफलता मेरे विद्यालय से प्राप्त कि है अतःमै चाहती हूँ कि रिया आगे भी हमारे स्कूल की छात्रा बनी रहे महेश और मनोरमा को क़ोई आपत्ति नहीं हुई वहां बैठे कृपा शंकर जी ने भी सहमति जताई मैडम लियोनी ने फिर बोलना शुरू किया कि जिन स्टूडेंट ने स्कूल प्रतिष्ठा बड़ाई है उनके पेरेंट्स को हम लोग सम्मानित करना चाहते है अतः आप मेरा अनुरोध निमंत्रण स्वीकार करे फिर मैडम लियोनी ने रिया को अपने पास बुलाकर कहा वेल डन माय स्वीट बेबी गॉड ब्लेस् यू और जाने कि इज़ाज़त मागने लगी लियोनी के जाने के बाद घर में जश्न का माहौल हो गया मोहल्ले में सभी को मालूम हो चूका था कि महेश सिंह की बेटी रिया ने दसवी क्लास में जिले में सबसे अब्बल आयी है ।धीरे धीरे मोहल्ले वालों के आने और बधाईयों का सिलसिला शुरू हुआ ।सभी ने रिया कि शानदार सफलता के लिये बधाई और शुभकामनाये दी महेश और मनोरमा को बेटी रिया पर गर्व महसूस हो रहा था ।छुट्टियां समाप्त होने वाली थी और नए सत्र का शुभारम्भ होने वाला था रिया नए सत्र नए क्लास में पढ़ने गयी तो बहुत से पुराने सहपाठीयो कि जगह नए स्टूडेंट्स ने ले रखी थी।पहले दिन स्कूल के हर क्लास में रिया को ले जाया गया और उसकी शानदार सफलता से नए पुराने सभी को प्रेरणा के रूप में अवगत कराया गया। स्कूल के सभी शिक्षकों ने बड़ी गर्मजोशी से रिया का स्वागत किया स्कूल में विल्कुल नया स्टूडेंट जिसने दसवी कि परीक्षा दूसरे जनपद से पास की थी यहाँ आगे कि पढ़ाई के लिए आया था बड़ी तन्मयता से स्कूल कि पहले दिन की गतिविधियों को देख रहा था नाम भी तन्मय पाण्डेय । वह बार बार रिया कि खूबसूरती मासूमियत को निहारता पता नहीं क्यों तन्मय कि कोमल भावनाये रिया कि तरफ पहले दिन ही आकर्षित हो गयी उसके मन में यह बात बार आती कि रिया ही उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है। तन्मय प्यार जैसी किसी भी जज्बे से वाकिफ नहीं था शाम के चार बजे स्कूल कि छुट्टी हुई तन्मय अपने आप को रोक न सका वह रिया के पास जाकर बोला मै तन्मय पाण्डेय तुम्हारी क्लास में पड़ता हूँ हम दोनों को अगर पढ़ाई के दौरान किसी हेल्प कि जरुरत पड़ी तो आपस में साझा एवं सहयोग कर सकते है ।रिया ने उस वक्त तो क़ोई ध्यान नहीं दिया और धन्यवाद कहकर चली गयी दोनों अपने अपने घर चले गए रिया कि माँ और महेश सिंह ने पूछा बेटा स्कूल में नए क्लास के सत्र का पहला दिन कैसा रहा रिया ने सारा वाकिया बताया सुनकर माँ बाप का सीन गर्व से चौड़ा हो गया ।रात को जब रिया सोने के लिये अपने कमरे में गयी तब यकायक उसके सामने तन्मय का चेहरा घुमाने लगा बार बार तन्मय के कहे शब्द हाय मै तन्मय पाण्डेय रिया के कानो में गुजने लगे रिया को भी इसका क़ोई मतलब समझ नहीं आ रहा था छत कि दीवार देखते देखते कब सो गयी पता नही चला। समझ में नहीं आ रहा था उधर तन्मय भी सोच रहा था कि रिया ने उसको नोटिस क्यों नहीं किया दूसरे दिन दोनों ही क्लास में अपनी अपनी सीट पर बैठकर क्लास करने लगे।जुलाई से सितम्बर तक रिया और तन्मय एक दूसरे पर क़ोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।सितम्बर में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में उमेश सिंह और मनोरमा को रिया के बेस्ट परफोर्नेन्स के लिये सम्मानित किया जाना था।तन्मय के पिता धीरेन्द्र पाण्डेय एक साधारण किसान थे वे धोती कुर्ता में आये थे समारोह प्रारम्भ हुआ प्राचार्य अल्वर्ट के साथ लियोनी मैडम समारोह में उपस्थित थी उन्होंने बोलना शुरू किया रेस्पेक्टेड पेरेंट्स आज हम रिया के मदर फादर को सम्मानित करने के लिए गेदर हुए है रिया ने डिस्टिक में नबर वन रैंक हासिल कर स्कूल का नाम रौशन किया हैं रिया के इस अचीवमेंट में उसके मदर फादर के कंट्रीब्यूसन को नेग्लेक्ट नहीं किया जा सकता है अब हम प्रिंसिपल साहब से रिक़ुएस्ट करते है कि रिया के मदर फादर को ऑनर करे पूरा हाल तालियों के गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। फिर प्राचार्य अल्बर्ट ने मनोरमा और महेश सिंह का सम्मान करने के बाद बोलना शुरू किया उन्ही गार्जियन का बच्चा कुछ अच्छा करता है जिनके गार्जियन जिम्मेदार और बच्चों को अच्छा कल्चर देते है आज हमे मनोरमाऔर महेश सिंह जैसे गार्जियन बनने कि जरुरत है हाल एकबार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। प्रिंसिपल अल्वर्ट ने आगे बोलना शुरू किया मैं इस अवसार पर धीरेन्द्र पाण्डेय जी को इग्नोर नहीं कर् सकता जिनका सन् तन्मय पाण्डेय पुरे प्रदेश में ट्वेंटी फिफ्थ रेन्क पाकर हमारे स्कूल में डॉटर रिया के क्लास में ही स्टडी कर रहा है एकाएक हाल में तालियों कि गड़गड़ाहट गूंजने लगी रिया ने बड़े गौर से तन्मय कि तरफ मुस्कुराते हुये देखा। प्रिंसिपल अल्वर्ट बोलते रहे उन्होंने बताया कि धीरेन्द्र पाण्डेय जी एक साधारण किसान है और उन्होंने अपने सन् को हाई कल्चर दिया है यह आल गार्जियन के लिए इंस्पिरेशन है ।
प्रिंसिपल अल्वेर्ट के सम्बोधन के बाद समारोह सम्पन्न हुआ सभी अभिभावक अपने अपने घर को चले गए रिया घर पहुंचकर तन्मय से पहले दिन कि मुलाक़ात के ख्यालो में खो गयी अगले तीन दिनों तक विद्यालय बंद था।तीन दिन की छुट्टिया रिया के लिये मुश्किल से बीती वह जल्दी से जल्दी खुद को तन्मय का बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती थी इसके लिये आवश्यक था कि वह तन्मय से शीघ्र मिले छुट्टी बीताने के बाद स्कूल खुला रिया सबसे पहले स्कूल के मेन गेट पर तन्मय का इंतज़ार करने लगी तन्मय जब स्कूल मैन गेट पर ज्यों ही पहुंचा रिया फ़ौरन उसके पास पहुंची और बड़े भोले अंदाज़ में बोली तन्मय आई ऍम सॉरी मैं आपको तब समझ नहीं पाई जब आप पहले दिन हमारे पास आये थे क्या हम अब वेस्ट फ्रेंड हो सकते है तन्मय अपने अंदाज़ में मुस्कराते हुये बोला साँरी भी क्या वर्ड है जिसने भी इस वर्ड कि खोज कि होगी बहुत बुद्धिमान होगा यह एक शब्द सारे तकलीफ को भुला देता है। फिर बोला हाँ बाबा मुझे तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड बनना है ।मेरे लिये प्राउड है रिया ने तुरंत सवाल किया रोज तो तुम स्कूल सबसे पहले पहुचते हो आज देर क्यों हो गयी तन्मय ने मुस्कुराते हुये कहा कभी कभी भगवान् भी अच्छाई कि परख करते छोटी मोटी परीक्षाये लेता रहता है आज मेरी सायकिल पंचर हो गयी थी ।दोनों अपने वार्तालाप में मसगुल थे कि उधर से गुजरती मैडम लियोनी ने दोनों को वार्तालाप करते देखा कहा गूड तुम दोनों एक दूसरे के साथ हेल्दी कॉम्पेटिसन के साथ दोस्ती करो और स्कूल का नाम रौशन करो।अब लगभग प्रतिदिन रिया और तन्मय आपस में बात करते दोनों ही विज्ञानं और गणित के छात्र थे अतः किसी भी बिषयागत प्रॉब्लम पर बात करते और मिलकर समाधान खोजते रिया के माँ बाप महेश और मनोरमा को भी रिया कि इस दोस्ती पर क़ोई एताराज नहीं था ।धीरे धीरे पूरे स्कूल में फ्रेंडशिप ऑफ़ टू एक्ससिलेन्ट ऑफ़ स्कूल के नाम से तन्मय और रिया की जोड़ी मशहूर हो गयी ।इसी तरह फर्स्ट इयर के होम एग्जाम में दोनों ने अपने कठिन परिश्रम से सयुक्त रूप से फर्स्ट रैंक हासिल कर् सेकंडियर यानि बारहवी कक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों ने अपनी एक्ससलेंट फ्रेंड शिप ऑफ़ स्कूल को कायम रखते अपने अपने मकसद पर आगे बढ़ रहे थे सेकेंडियर के एग्जाम हुये रिजल्ट आया तो फिर दोनों के मार्क्स बराबर थे और दोनों ने ही जिले नहीं वल्कि पूरे प्रदेश में पांचवा स्थान हासिल कर अपने स्कूल का मान बढ़ाया ।अब रिया और मयंक का स्कूल से विदा हो कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने का वक्त आ गया स्कूल द्वारा फिर से दोनों के विदाई समारोह सम्मान के लिये रखा गया सम्मान समारोह में प्राचार्य ने फिर कहा रिया के मेरे स्कूल में पढने के बाद और तन्मय के आने के बाद शहर का हर गार्जियन कि चाहत है कि उनका वार्ड इस स्कूल में पढे यह अचीवमेंट हमारे और हमारे स्कूल के लिये बहुत प्राउड का सब्जेक्ट है। फ्यूचर में हम कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ पड़ने वाला हर स्टूडेंट रिया और तन्मय को फॉलो करे।अब रिया और तन्मय दोनों ही उच्च शिक्षा के अध्य्यन के लिये कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु निर्णय अपने अपने अभिभावको पर छोड दिया। तन्मय अपने गांव चला गया रिया को लगता कि उसकी सफलता तन्मय के बिना अधूरी है और वह तन्मय कि यादो और स्कूल में बीते दिनों कि याद में खोई रहती ।पंडित धीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने बेटे को जे एन यू पढ़ाई के लिये भेजा तन्मय को आसानी से दाखिला मिल गया और वह अपने अध्ययन कार्य में जुट गया उसे अपने किसान पिता के सपनो को सच साबित करने का जूनून था। मगर नियत कुछ और खेल खेलना चाहती थी अचानक एक दिन तन्मय लेक्चर रूम में बैठा अपने खयालो में खोया था तभी प्रोफेसर वाजिद लेक्चर रूम में दाखिल हुए और क्लास शुरू किया जब प्रोफेसर वाजिद कि नज़र क्लास में बैठी एक नई लड़की पर पड़ी तभी उन्होंने इशारे से उस लड़की को खड़े होने के लिये कहा वह ज्यो ही खड़ी हुई प्रोफेसर वाजिद ने पूछा आपका नाम रिया सर तब भी तन्मय ने क़ोई ध्यान नहीं दिया फिर प्रोफ़ेसर वाजिद ने पूछा कि इस क्लास में तुम्हारा क़ोई मित्र है रिया ने तुरंत जबाब दिया यस सर प्रोफेसर वाजिद ने पूछा कौन रिया ने जबाब दिया तन्मय पाण्डेय अब तन्मय ने अपना सर घुमा कर देखा तो वास्तव में रिया ही थी। उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था प्रोफेसर वाजिद ने तन्मय पाण्डेय से पूछा कि क्या रिया को जानते हो तन्मय ने कहा यस सर हम दोनों ही एक ही स्कूल में पड़ते थे और एक ही रैंक से टॉप किया था। प्रोफेसर वाजिद ने कहा गुड तुम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखना दिल्ली में अक्सर नए स्टूडेंट के साथ कुछ न कुछ गलत हो जाता है तुम दोनों बाहर से आये हो और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते और समझते हो तन्मय और रिया ने स्वीकारोक्ति से सर हिलाया इसके बाद क्लास शुरू हुआ क्लास ख़त्म होते ही तन्मय रिया बाहर निकले तो तन्मय ने पूछा यहाँ कैसे आ गयी? रिया ने कहा कि तुम जे एन यू जाकर पड़ो और प्रशासनिक सेवाओं कि तयारी करों तोऔर मैं भी यहाँ आ गयी वही उद्देश्य लिये जो तुम लेकर आये हो।चलो अच्छा ही हुआ अब हम दोनों मिलकर दिल्ली में जे एन यू में टॉप करेंगे और हां मैं गर्ल्स होस्टल में रहती हूँ और आप जनाब तन्मय ने कहा मैं अपने दूर के रिश्तेदार के घर पर रहता हूँ रिया और तन्मय दोनों को अनजान महानगर में जरुरत थी दोनों एक दूसरे के पूरक थे दोनों कि मुलाकाते रोज होती और अध्य्यन के विषयो पर दोनों एक दूसरे कि जानकारी साझा करते। लेकिन अब दोनों में इन मुलाकातो का अर्थ बदला हुआ था दोनों को प्यार के आकर्षण कि हद अधिक अनुभूति होने लगी और दोनों कि पहली मुलाकात अब सहपाठी कि सीमा से पार कर प्रेम कि पराकाष्ठा तक पहुँच गयी दोनों एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह सकते थे ।लेकिन दोनों के शैक्षिक स्तर पर उनके प्यार का कोईं प्रभाव नहीं पड़ा दोनों ने स्नातक कि परीक्षा में अपना लोहा पुनः जे एन यू में मनवाया तीन वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला एका एक दिन रिया के घर से उसके मामा रमेश सिंह जी दिल्ली आये और रिया से गोरखपुर घर चलने को कहा और बताया कि माँ मनोरमा को लकवा मार गया है अतः उनकी देख रेख के लिये चलना होगा ।चूंकि भाई मिलिंद डॉक्टर होकर अमेरिका में शिफ्ट हो अमेरिकन लड़की से शादी कर चुका था अतः उसका माँ कि सेवा के लिये आना संभव नहीं था रिया ने मामा जी से तन्मय से मिलने कि अनुमति मांगी और वह तन्मय से मिलते ही फुट फुट कर रोने लगी तन्मय ने उसे चुप कराते हुये कहा मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि उसकी आँखों से मोती से भी कीमती आंसुओ का शैलाभ आ जाए। बताओ क्या बात है रिया ने माँ मनोरमा के बीमार होने कि बात बताई और कहा हमे अभी गोरखपुर जाना है तन्मय ने कहा कि घबराओ नहीं यह तुम्हारे लिए सौभाग्य कि बात है कि तुम्हे माँ कि सेवा का अवसर मिल रहा है ये मत भूलो कि तुम्हारे अस्तित्व और संस्कार कि स्तम्भ है आज उस माँ को अपनी बेटी कि जरुरत है। जिसने अपनी बेटी के लिये ना जाने कितनी रातें इसलिये जाग कर बिताई होंगी कि बेटी सो सके बहुत सी अपनी इच्छाओं का दमन किया होगा जिससे कि तुम्हारी इच्छाये पूरी हो सके यह मेरे लिये आत्म अभिमान कि बात है कि मेरा प्यार मेरी रिया जीवन मूल्यों कि परीक्षा में जा रही है वहाँ भी एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। रही बात मेरे मिलने कि तो मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी दूसरी लड़की का चेहरा नहीं देखा प्यार कि नज़र से अतः मै वचन देता हूँ कि जीवन के अंतिम पल में भी तुम ही मेरे साथ होगी हर जन्म में तुम ही मेरा प्यार रहोगी तुम्हे मुझमे मिलना ही होगा मैं जन्म पे जन्म लेते हुये तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा या जन्म जन्म तुम्हारे साथ रहूँगा दोनों ने एक दूसरे को प्यार कि दुहाई की बिदाई दी ।रिया मामा जी के पास लौटी और सामान पैक करना शुरू कर दिया और मामा जी के साथ गोरखपुर चलने कि तैयारी करने लगी उसके मन में अपने प्यार के प्रति आत्म संतोष और विश्वास का भाव था सफर कि सारी तैयारी होने के बाद रिया मामा जी के साथ गोरखपुर चलने के लिये तैयार हो स्टेशन रवाना हुई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसकी ट्रेन भी तैयार थी रिया मामा रमेश के साथ ट्रेन में बैठी थोड़ी देर बाद ट्रेन भी चल दी पूरी रात सफ़र करने के बाद रिया मामा जी के साथ दूसरे दिन बारह बजे दिन में गोरखपुर पहुँच गयी और लगभग आधे घंटे बाद वह अपने घर माँ मनोरमा और पिता महेश के सामने खड़ी थी ।माँ को जब रिया ने देखा माँ मनोरमा बिस्तर पर लेटी घर के छत को एक टक निहारते ही जा रही थी रिया ने माँ के पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरती बोली माँ मैं आ गई हूँ अब आप चिंता ना करो मनोरम ने जब बेटी रिया को देखा तो उसे गले लगाने कि कोशिश में उठने का अथक प्रयास करती रही मगर उनके शारीर में ना तो शक्ति थी ना ही चेतना सिर्फ उनकी आँख में विवसता कि अश्रु धरा का प्रवाह फुट रहा था रिया माँ कि इस दशा को देखकर फुट फुट कर् रोने लगी पिता महेश और मामा रमेश ने रिया को सात्वना दिलाशा दे कर चुप कराया ।अब माँ कि सेवा ही रिया के जीवन का वर्तमान ध्येय बन गया था वह बेटी होने के फ़र्ज़ को जिए जा रही थी हर तीसरे दिन डॉक्टर चेक करने आता मगर माँ मनोरम कि हालत सुधरने कि बजाय और गंभीर होती जा रही थी भाई मिलिंद भी पिजड़े में फड़फड़ाते किसी पंक्षी की भांति डॉक्टरों से प्रतिदिन बात करता और चुकी वह खुद भी एक डॉक्टर था तो उचित सलाह भी देता ।धीरे धीरे एक साल माँ मनोरमा को बिस्तर पर बीमार पड़े हो चुके थे ।तन्मय प्रतिदिन रिया को उसकी माँ के स्वास्थ कि जानकारी बाबत एक पत्र लिखता मगर रिया जबाब नहीं दे पाती प्रतिदिन के पत्रो को पढ़ती और सभाल कर रख लेती काल अपनी निरंतर गति से चल रहा था लगभग दो साल बीत गए। माँ मनोरमा कि हालत जैसी कि तैसी ही थी अंततः महेश सिंह ने बेटी रिया से कहा बेटा तेरी माँ की नसीब में बीमार रहना ही लिखा है अतः तुम माँ कि देख रेख के साथ कुछ अध्ययन भी शुरू करो ग्रेजुएसन हो ही गया है बी एड कर लो रिया को बात समझ में आयी और उसने बी एड का फार्म भरा उसे तुरंत दाखिला मिल गया उसने कालेज जाना भी शुरू कर् दिया लेकिन माँ कि देख भाल में क़ोई कमी नहीं रखी इधर प्रतिदिन तन्मय के पत्रों का शिलशिला जारी रहा ।रिया ने बी एड किया एम एड किया माँ कि सेवा भी पूरी निष्ठां से करती रही माँ को बीमार बिस्तर पर पड़े पड़े पांच साल गुजर चुके थे मगर उसकी हालत में सुधार कि बात तो दूर नहीं बिस्तर पर पड़े रहने से कई और बीमारियों ने जकड़ लिया डॉक्टरों ने उसके बचने कि रही सही उम्मीद भी छोड़ दी मिलिंद डॉक्टरो से निरंतर बात करता अपनी जानकारी के अनुसार माँ कि हालत को भगवान पर छोड़ दिया मिलिंद ने पिता महेश सिंह से बहन रिया के बिवाह के लिये कहा पिता महेश को भी महसूस हुआ कि बेटा ठीक कह रहा है महेश सिंह ने भी हाँ करते हुये बताया कि गोरख पुर के बड़हल गंज निवासी उनके बचपन के मित्र सतमन्यु सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिश में इंस्पेक्टर थे और भिंड में डांकुओ से मुठभेंड में शहीद हुये थे का पुत्र समरेंद्र सिंह उनकी जगह पर अनुकम्पा पर इन्स्पेटर नियुक्त हुआ है उसी से रिया का विवाह करना है क्योकि मैंने और सतमन्यु ने समरेंद्र और रिया का रिश्ता बहुत पहले ही पक्का कर दिया था मिलिंद भी इस सच्चाई को जनता था अतः उसने तुरंत हामी भर दी महेश सिंह ने रिया को बुलाया और समझाने के लहजे में बोले कि बेटी परया धन होती है उसे एक ना एक दिन बाबुल का घर छोड़ना ही होता है और तेरी माँ कि हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही इसकी भी इच्छा यही है कि तुम्हारी शादी धूम धाम से होते हुए देखे मैंने अपने बचपन के मित्र स्वर्गीय सतमन्यु सिंह ने बचपन में तेरा और समरेंद्र का रिश्ता निश्चित कर दिया था। मैं जानता हूँ बेटी तुम्हे यह रिश्ता रास नहीं आएगा मै यह भी जानता हूँ कि तुम तन्मय को चाहती हो मगर तन्मय से तुम्हारा विबाह इस जन्म में सम्भव नहीं है तन्मय का पिछले पांच वर्षो से निरंतर पत्रो का आना तुम्हारे और तन्मय के प्यार का प्रमाण है मैं जनता हूँ तन्मय बहुत अच्छा लड़का है मगर मैं और मेरा समाज बिजातीय बिबाह कि अनुमति नहीं देता ।हमारा परिवार राजपूतो का है और तन्मय भूमिहार इसके अलावा भी बहुत कारण है जो तुम्हे बताना आवश्यक नहीं समझाता।
रिया पापा को बहुत समझाने कि कोशिश करते उसने कहा पापा तन्मय को भी आप उतना ही जानते है जितना मुझे तन्मय बहुत अच्छा लड़का है शाकाहारी है अच्छे परिवार खानदान का उसके पिता किसान होते हुये भी अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये है तन्मय मुझे ज्यादा खुश रख सकेगा और देखिये माँ कि बीमारी में उतना दूर रहते हुये भी एक दिन भी ऐसा नहीं गया जिस दिन उसने माँ के स्वास्थ् के विषय में जानकारी के लिये पत्र न लिखा हो वह माँ और आपको भी उतना ही सम्मान करता है जितना मै और मिलिंद भैया जितना खुद अपने माँ बाप को इज़्ज़त देता है रही बात जाती कि तो जाती में भी वह हमसे उच्च ही है मेरी पसंद है मिलिंद भैया भी इस रिश्ते को पसंद करेंगे। पिता महेश सिंह ने कहा मिलिंद को समरेंद्र का रिश्ता पसंद है रिया ने कहा की भैया को तन्मय के बारे में आपने बताया ही नहीं होगा मैं भैया से बात करती हूँ महेश सिंह ने आदेशात्मक लहजे से कहा खबरदार जो तुमने मिलिंद से इस सम्बन्ध में और कुछ बात किया तो तुम्हारे लिये रिश्तों के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे रिया ने फिर पापा को समझने के लहजे में कहा कि भैया ने तोअन्तर्धर्मीय विवाह कर मानवीय मूल्यों को तरजीह दी है हम तो तन्मय जो उच्च कुल का भारतीय है इतना सुनते ही महेश सिंह आग बबूला हो गए जैसे उनकी दुखती रग पर रिया ने हाथ रख दिया हो बड़े ही क्रोध में कहा तेरी माँ तो मरणासन्न है ही यदि तुमने और बहस इस सम्बन्ध में किया तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेगी ।अब रिया के पास कोइ जबाब नहीं था वह रोती हुई माँ के पास गयी माँ ने जब रिया को देखा तो बोलने कि कोशिश करती अपनी सबसे प्यारी औलाद से कुछ कहना चाहती मगर बेबस लाचार अपनी बेटी कि आँखों का आंसू देखती उसके आँखों में उसी तरह अश्रु धारा बहने लगे जैसा रिया के दिल्ली से वापस आने के बाद बहे थे ।माँ बेटी कि विवसता के आंसू देख कर विधाता भी अपनी विधान पर सोचने को विवस हो गया लेकिन रिया कि तकदीर भी उसीने लिखी थी अतः अपने निर्धारित भविष्य का खेल वह देखता रहा।रिया किसी तरह हिम्मत करके उठी और उसने तन्मय को एक पत्र लिखा पत्र में उसने तन्मय को सम्बोधन में लिखा प्रियतम हमारे प्यार का इस जन्म में परवान चढ़ना संभव नहीं है मेरे पापा ने मेरी शादी कहीं और बचपन में तय कर राखी थी और वहीं मेरी शादी करना चाहते है मै विवस नहीं हूँ मगर मम्मी पापा कि परिवरिश के संस्कारिक संसार के रीती रिवाज को निभाना मेरा नैतिक तायित्व है वह मैं निभाने जा रही हूँ। लेकिन तुम मेरा इंतज़ार करना क्योकि मैं जब तक तुम्हारा प्यार नहीं पा लेती हूँ तब तक जन्म दर जन्म लेती रहूंगी तुम्हारी रिया पत्र पोस्ट करने के बाद उसने अपने आंसू पोछे और अब वह एक निर्जीव निरुत्साह जीवन्त शारीर या यूँ कहे कि कठपुतली या रोबोट कि तरह रह गयी थी जिसमे भाव और आत्मा नाम की कोइ जागृति नहीं थी सिर्फ कठपुतली या रोबोट जिसका संचालन उसके पिता के हाथ में था ।तन्मय ने रिया का पत्र प्राप्त किया पढ़के बाद उसे अपने प्यार रिया पर भरोसा और बढ़ गया उसे यकीन हो गया कि रिया का निर्णय उसके आत्मीय बोध का सच्चा प्यार है। प्यार शारीरिक वासनाओं और भौतिक बंधनो से ऊपर है वह रिया का इंतज़ार करता रहेगा चाहे जितने बार जन्म लेना पड़े ।
वह पूर्व कि भाँती रिया के माँ के स्वस्थ के जानकारी के लिये पत्र लिखता रहा और रिया उसे उसके प्यार की अमानत समझ सहेज कर रखती गयी और वह भी समय आ गया जब रिया को अपना प्यार अपना घर बार छोड़कर ससुराल जाना था महेश सिंह ने रिया कि शादी में रिया का पिता बनकर रिया का कन्या दान किया तो अपने स्वर्गीय मित्र सतमन्यु कि तरफ से उसे उसके सुखी जीवन कि गारन्टी दी रिया का पति समरेंद्र और सास शांति देवी रिया को पाकर बहुत खुश थे उनको उनकी कल्पनाओ से अधिक खुबसूरत बहु और रिश्ता मिला था ।रिया कि शादी में अमेरिका से मिलिंद भी आया था उसने अपनी लाड़ली बहन कि बिदाई बड़े भाई के फ़र्ज़ का क़र्ज़ निभाते हुये किया रिया ससुराल जाने से पूर्व माँ के पास गयी और बंद जुबा और आँखों में बहती अश्रुधारा से माँ से अंतिम विदाई ली पता नहीं क्यों उसे आभास हो गया था कि उसके जाते ही माँ भी दुनियां छोड देगी माँ से भवनात्मक विदा लेकर वह ससुराल जाने के लिये बाबुल के घर से रुखसत हुई ।रिया के जाने के बाद घर वीरान हो गया तीन दिन बाद मिलिंद कि अमेरिका कि फ्लाइट थी विवाह कि भीड़ भाड़ से घर खाली हो चुका था अब मनोरमा कि देख भाल करने को रिया नहीं थी मनोरमा कि नजरे बार बार रिया को ढूंढ रही थी और बेबस लाचार आँखों से आंसू बहा रही थी मगर रिया तो सदा के लिये जा चुकी थी अन्ततः मनोरमा ने रिया के ससुराल जाने के तीसरे दिन जिस दिन मिलिंद की अमेरिका कि फ्लाइट थी दुनियां छोड़ दी महेश सिंह पर जैसे आफत का पहाड़ टूट पड़ा ।रिया के हाथों कि मेहंदी भी हल्कि नही पड़ी थी किसी तरह से मनोरमा का अंतिम संस्कार हुआ रिया भी आयी मगर अब घर वीरान हो चुका था अब सिर्फ घर में मिलिंद और उसके पापा महेश सिंह जी ही रह गए थे चुकी मिलिंद अमेरिका से अकेले ही बहन रिया के बिवाह में आया था उसकी अमरिकन पत्नी कुछ आवश्यक कारणो से नहीं आ पायी थी मिलिंद ने पापा महेश सिंह से कहा कि क्यों न इस मकान और अन्य प्रापर्टी जैसे गाव कि खेती बाड़ी कि देख भाल का जिम्मा मामा रमेश जी को सौंप दे और प्रापर्टी का एटॉर्नी रिया को नियुक्त कर आप मेरे साथ अमेरिका ही चले महेश सिंह को यह बात जच गयी उन्होंने एडवोकेट जयंती लाल जी से पवार ऑफ़ एटॉर्नी और कस्टोडियन रमेश सिंह के पक्ष में बनवा कर एक एक प्रति रिया और रमेश को देने के बाद निश्चिन्त हो गए पत्नी मनोरमा के तेरही के तीसरे दिन मिलिंद महेश सिंह रिया और समरेंद्र साथ साथ एयर पोर्ट गए और भाई मिलिंद और पिता को रिया ने अमेरिका के लिये विदा किया रिया और समरेंद्र बड़हल गंज लौट आये हवाई जहाज हवा से बाते करता आकाश में उड़ता जा रहा था महेश सिंह के दिमाग में एक बात बार बार आ रही थी कि यदि अमेरिका में उनकी अमेरिकन बहु ने उन्हें मन से नाही स्वीकार किया तो क्या होगा जिसकी संभावना थी लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि यदि ऎसा हुआ तो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है वे भारत वापस आकर ईश्वर को जैसा मंजूर होगा वैसी जिंदगी जिएंगे।
मिलिंद पापा के साथ अमेरिका पहुँच गया और माहेश् सिंह को फौरी तौर पर वैसा कुछ महसूस नहीं हुआ जैसा कि उन्हें भारत से आते समय डर सता रहा था।अब रिया अपनी सास शांति देवी के साथ रह रही थी समरेंद्र कि पोस्टिंग दूसरे जनपद में चौकी प्रभारी के रूप में हो गयी वह वहां कार्य भार ग्रहण कर चुका था उसे पुलिस कि नौकरी में घर आने का मौका नहीं मिलता रिया अकेले में हमेशा तन्मय कि यादों में खोई रहती थी इसे सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य समरेंद्र कि पोस्टिंग उसी जगह थी जहाँ तन्मय का घर था । तन्मय भी प्रसासनिक सेवा कि तैयारी के लिये दिल्ली ही रहता था वह तीन चार महीने कि छुट्टी में घर आया था जब उसे पता लगा कि उसके मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी पर कोई नैजवान् प्रभारी आया है तो वह मिलने चला गया पहली मुलाक़ात दो नौजवानो कि धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी ।अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे दोनों का मिलना जुलना रोज कि आदतो में सम्मिलित रोज मर्रा की जीवन शैली बन गयी ।समरेंद्र ने अपने दोस्त तन्मय से कहा कि मेरी नई शादी है सोचता हूँ कि परिवार ले आऊँ कुछ दिन परिवार को भी साथ रखु पता नहीं पुलिस कि नौकरी में कब ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाए कि परिवार रखना सम्भव ही न हो तो दोस्त एक अच्छा सा पारिवारिक किराये के मकान कि ब्यवस्था कर दो पुलिस वालों को जल्दी क़ोई मकान किराये पर नहीं देता ।तुम लोकल हो तुम्हारे माध्यम से मकान किराये पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा तन्मय ने कहा दोस्त यह बहुत छोटी सी बात है आप समय निकालो मैं कुछ मकान दिखा देता हूँ तुम्हे जो पसंद हो किराए पर ले लेना ।दूसरे दिन तन्मय समरेंद्र को मकान दिखाने ले गया दो तीन मकान देखने के बाद उसे एक मकान पसंद आया जिसका अग्रिम किराया देकर समरेंद्र बोला कि अगले सप्ताह मैं परिवार लेने जाऊँगा ।अगले सप्ताह समरेंद्र घर गाया तो माँ शांति देवी ने कहा तू तो बिलकुल अपने बाप कि तरह पुलिस वाला बन गया है उन्होंने पुलिस कि नौकरी कि निष्ठा में जान दे दी और मुझे अकेला छोड गए तुम्हे तो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिये फुरसत नहीं समरेंद्र ने कहा माँ तुम तो जानती हो कि पुलिस कि नौकरी में दिन रात कोल्हू के बैल कि तरह खटना पड़ता है और हर समय खतरे भी रहते है लेकिन मैं अब सोचता हूँ कि रिया को जितने दिन भी मौका मिले साथ रखूं माँ शांति देवी को लगा की समरेंद्र ने उसके मन कि बात कह दी शांति देवी ने तुरंत सहमति दे दी एक दिन घर रहने का बाद समरेंद्र रिया को लेकर अपने साथ चला गया रिया किराये के मकान को एकदम सजा सवारकर एक खूबसूरत आशियाने कि शक्ल दे दी ।परिवार लाने के बाद पहले दिन अपनी पोलिस चौकी जब समरेंद्र गया सबसे पहले उसने तन्मय को बुलवाया और कहा दोस्त मैं अपना परिवार ले आया हूँ और रोज मर्रा कि जरुरत जैसे गैस कनेक्सन अखबार दूध आदि कि व्यवस्था करवा दो चूकी दोनों हम उम्र थे अतः दोस्ती में औपचारिकता नहीं थी तन्मय ने समरेंद्र के कहे अनुसार उसी दिन सारी व्यवस्थाये कर दी ।रिया को कोई तकलीफ नहीं थी तन्मय अक्सर समरेंद्र से चौकी पर ही मिल लेता इस तरह लगभग एक माह बीत गए ।एक दिन जब तन्मय समरेंद्र से मिलने चौकी पर गया तब समरेंद्र ने कहा तन्मय तुमने हमारी गृहस्ती बसाने में इतनी मदद कि है हमारे घर पर तुम्हारा एक कप चाय का हक तो बनाता ही है ऐसा करो तुम आज शाम को हमारे घर आओ ।तन्मय चला गया और समरेंद्र भी डियूटी पर गस्त पर निकल पड़ा जब शाम समरेंद्र घर पहुंचा उसके आधे घंटे बाद तन्मय भी पहुच गाया तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने कहा भाई तन्मय आपके शहर और आपके घर में आपका स्वागत है तन्मय सहम सा गया अपने पुलिस वाले दोस्त कि बात सुनकर और बोला समरेंद्र क्या बात करते हो समरेंद्र ने कहा ठीक ही तो कह रहा हूँ शहर तुम्हारा है और मकान तुम्हारी वजह से मुझे मिला है ।अब बेवजह का सवाल छोड़ो और बैठो तन्मय ड्राईंग रूम के शोफे पर बैठा समरेंद्र अंदर गया और पत्नी रिया को चाय लेकर आने को बोला और आकर ड्राईंग रूम में बैठ गया दोनों दोस्त आपस में गप्पे लड़ाने में मशगूल थे तभी रिया चाय लेकर ड्राईंग रूम दाखिल हुई रिया ने ज्यो ही तन्मय को देखा उसके होश उड़ गए उसके हाथ में चाय का ट्रे गिरने ही वाला था कि समरेंद्र ने सभल लिया और ट्रे मेज पर रखते बोला अरे दोस्त मेरी बीबी तो तुम्हे देख कर चकरा गयी क्या ख़ास बात है तुमसे तो हम तो रोज ही मिलते है तन्मय कि स्थिति और भी गभ्भिर थी उसे तो पूरी दुनियां घूमती नज़र आ रही थी पल भर के लिये रिया
तन्मय कि नजरे मिली और सदियों कि बाते कर गयी । तन्मय कुछ बेचैन होने लगा वो बैठा तो समरेंद्र के ड्राईंग रूम में जरूर था मगर उसका मन अतीत में रिया के साथ गुजरे वक्त कि यादों में खो गया तन्मय सोचने लगा नियति कौन सा अजीब खेल उसके साथ खेल रही है उसने जल्दी जल्दी चाय ख़त्म की और तन्मय से जाने कि इज़ाज़त लेकर बहार निकल गया जल्दी जल्दी घर पहुंचा और रिया के खयालो में खो गया उसे ना तो भूख थी ना ही प्यास थी सिर्फ रिया के प्यार कि चाह की राह उसे यक़ीन नहीं था कि रिया कि उसकी मुलाक़ात ऐसे मुश्किल दो राहे पर होगी वह बड़ी दुविधा कि स्थिति में था। किसी तरह रिया कि यादों में जागता रात बीती सुबह वह सामान्य दिखने की और खुद की भावनाओं पर नियंत्रण करने कि कोशिश करता रहा शाम होते ही वह समरेंद्र से मिलने गया और समरेंद्र उसे अपनी बुलेट पर बैठा घर लेता चला गया फिर साथ बैठकर चाय पीना और गप्पे लडाना दो तीन बार समरेंद्र तन्मय को साथ अपने साथ घर ले गया अब तन्मय के मन से झिझक कम हो गयी वह अक्सर समरेंद्र से मिलने जाता कभी समरेंद्र के साथ उसके घर चला जाता कभी समरेंद्र गश्त में हल्के में चला जाता तो तन्मय अकेले ही समरेंद्र के घर पहुच जाता और रिया के साथ घंटो बात करता रहता यह सिलशिला चलता रहा एकाएक एक दिन शाम को समरेंद्र से तन्मय मिलने गया और वहाँ से समरेंद्र अपने चौकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में गस्त पर निकल गया इस बात को समरेंद्र को जरा भी इल्म नहीं था कि तन्मय उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर जाता है उस दिन समरेंद्र को गस्त करते रात के तीन बज गए तन्मय और रिया में आपस में बात करने में मशगूल थे तभी समरेंद्र ने दरवाजा खटखटाया दरवाजा तन्मय ने ही खोला समरेंद्र के होश् उड़ गए उसने आश्चर्य से पूछा तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो तन्मय ने कहा रिया ने कहा बैठो जब तक वो नहीं आ जाते मै बैठ गया बातो ही बातो में पता ही नहीं चला कब इतना टाइम हो गया समरेंद्र ने तन्मय से कहा मित्र शरीफ व्यक्ति इतनी रात को किसी के घर उसकी अकेली बीबी से बात नहीं करते । तन्मय अपने घर चला गया समरेंद्र बिना कुछ कहे सो गया कहते है कि पुलिस शक के बिना पर असली मुजरिम तक पहुँच जाते है समरेंद्र सुबह उठा और अपने चौकी पहुँच कर् उसने अपने सबसे विश्वाश पात्र सिपाही को तन्मय के विषय में जानकारी हासिल करने के लिये गोपनीयता कि हिदायत के साथ लगा दिया और खुद अपने पड़ोसियों से तन्मय के अपनी अनुपस्तिति में आने के बाबत सूचना इकठ्ठा किया तो पता चला कि तन्मय लगभग रोज रात्रि के दी तीन बजे तक समरेंद्र के घर से बहुत दिनों आता जाता देखा जा रहा है कोई बोलता इसलिये नहीं है कि एक तो पुलिस से सम्बंधित और दूसरे दोस्ती का मामला ।समरेंद्र के दिमाग में क्या चल रहा था किसी को नहीं पता समरेंद्र अंतर्मुखी व्यक्तित्व था जिसका अंदाज़ा लगा पना बहुत कठिन था एक सप्ताह बाद समरेंद्र द्वारा नियुक्त विश्वसनीय सिपाही ने तन्मय के बचपन से वर्तमान तक का पता लगा कर बता दिया उसने बताया कि रिया और तन्मय इंटरमीडिएट से साथ साथ पढ़ते थे दोनों में बहुत प्यार था रिया ने तन्मय से शादी के लिये बगावत कर दी थी मगर दोनों का विवाह रिया के पिता महेश सिंह जी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया समरेंद्र ने जानकारी हासिल करने के बाद अब स्वयं भी ख़ुफ़िया तरीके से तन्मय के अपने घर आने जाने के सिलसिले कि तस्दीक करने लगा वह जान बुझ कर चौकी से निकल जाता और अपने घर के आस पास अपने ही घर कि निगरानी करता।समरेंद्र ने प्रतिदिन देखा कि तन्मय उसके घर आता है और रिया से रोज रात एक दो बजे तक बात करता है समरेंद्र चाहता था कि तन्मय और रिया जब भी आपत्ति जनक स्थिती में हो तो उनको वह रंगे हाथों पकड़े मगर रिया और तन्मय का प्यार ईश्वर का विधान था जिसमे वासना का क़ोई स्थान नहीं था फिर भी समरेंद्र को तन्मय और रिया का मिलना नागवार लगता था एक तो पुलिस में कार्य करने से शक सुबहा उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया था मन ही मन उसने दृढ़ निश्चय कर् लिया तन्मय को रिया कि जिंदगी से हटा कर दम लेगा अंतिम दिन जब तन्मय रिया से मिलकर जाने लगा उसने कहा अब हम मिलने नहीं आएंगे जन्म जन्मान्तर तुम्हारे आने कि प्रतीक्षा में रहेंगे ख़ुफ़िया निगरानी कर रहे समरेंद्र ने तन्मय कि बात सूनी ।तन्मय के जाने के आधे घंटे बाद वह घर में गया और सो गया सुबह उठा तो वह काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक लग रहा था रिया ने माहौल को हल्का करने के लिये मज़ाकिया अंदाज़ में कहा क्या किसी खतरनाक मुजरिम से पाला पड़ा था जो आप इतने गंभीर गुमसुम है समरेंद्र कुछ बिना बोले तैयार होकर चला गया रिया का मन किसी अनहोनी के डर से घबराने लगा शाम हुई रोज कि भाँती तन्मय समरेंद्र से मिलने पुलिस चौकी आया उस वक्त चौकी में सिर्फ समरेंद्र था उसने अपनी योजना के अनुसार सभी मातहतों को बाहर डियूटी पर भेज दिया था तन्मय दोस्त कि दोस्ती के गुरुर में था उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसका पुलिस दोस्त उसके लिये साक्षात् काल का रूप धारण कर चुका है तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने सवाल किया तुम देर रात मेरे घर मेरी पत्नी से बात करने क्यों जाते हो क्या कोइ दोस्त अपने दोस्त कि गैरहाजिरी में उसके घर रात दो तीन बजे तक उसकी पत्नी से अकेले में बात करता है यह तुम्हारे साथ मैं करूँ तो कैसा लगेगा तन्मय ने समरेंद्र को समझने कि बहुत कोशिश कि उसने बताया कि रिया उसके साथ पढ़ी है मगर समरेंद्र ने कहा दोस्त पुलिस वाले कि दोस्ती कि धार तुमने देखी है अब उसके दुश्मनी कि मार झेलो इतना कहते उसने कहते उसने अपने सर्विस रिवाल्वर निकली और सारी गोलियां तन्मय के कनपटी सीने पेट में इस विश्वाश से उतार दी कि वह किसी हाल में जीवित ना बचे तन्मय जमीन पर गिरा तड़फड़ा रहा था समरेंद्र ने तुरंत ऑटो वाले को जिसे उसने पहले से बोल रखा था को बुलाया और तन्मय को उसमे अर्ध मृत्य अवस्था में लादते हुये कहा इसे सरकारी अस्पताल ले जाओ पुलिस चौकी के पास रहने वालों ने इस घटना को देखा उनमे से एक नौजवान चौकी के सामने तन्मय कि नृशंस हत्या पुलिस द्वारा किये जाने पर जनपद निवासियो को जोरदार ललकारा अब जनता का हुजूम ईकठ्ठा हो चुका था मौके कि नज़ाकत देख समरेंद्र फरार हो गया जनता के हुजूम ने जनपद के थाने पुलिस चौकियों को फूक डाला जनता कि मांग थी खून का बदला खून मगर समरेंद्र का कही पता नहीं था।जब घटना कि जानकारी रिया को मिली तो वह स्वयं मृत सामान हो गयी उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या करे ।जनपद की जनता उद्वेलित आंदोलित थी करोड़ो रुपये कि सरकारी सम्पति जनता के आक्रोश के भेट चढ़ गए सरकार द्वारा जनपद में अनिश्चित कालीन कर्फ्यू लगा दिया प्रशासनिक अमले का स्थानातरण कर दिया और नयी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की गयी चुकी इस पूरे घटना में रिया का दोष नहीं था अतः उसे प्रशासन ने चोरी छिपे जनता के आक्रोश से बचते बचाते उसके घर भेज दिया घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद समरेंद्र ने न्ययालय में आत्म समर्पण कर दिया ।शहर का माहौल समरेंद्र के आत्म समर्पण के बाद शांत होने लगा ।यह सुचना जब महेश सिंह और मिलिंद को मिली तो महेश सिंह आनन फानन भारत लौट आये और अपनी बेटी रिया को अपने घर वापस ले आये रिया का सब कुछ लुट चूका था पति अपराधी जेल में था और प्रेमी जन्म जन्म के इंतज़ार के लिये मर चुका था रिया एक स्कूल टीचर हो अपने इस जीवन का निर्वहन करती अगले जीवन में तन्मय के प्यार के इंतज़ार में जिए जा रही थी पिता महेश सिंह उसकी बेदना को मूक बनकर देखते पश्चाताप के आंसू बहाते सोचते काश वे रिया कि बात मान उसकी शादी तन्मय से किये होते मगर पश्चाताप का ना तो कोई फायदा था ना ही प्राश्चित ।

कहानीकार–नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




बहुत मुश्किल होगा

बहुत मुश्किल होगा

 

 

बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।
तुझे भुला कर किसी और से दिल लगाना ।।

बेचैन दिल का हाल किसे बताए
सीने पर लगे ज़ख्म किसे दिखाएँ
आसान नहीं हाले दिल सबको बताना
बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।

मय से भरे सारे जाम ख़ाली हो गए
कल के शहंशाह आज मवाली हो गए
अपनी निगाहों से भर दे-मेरे दिल का पैमाना
बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।

यादों में तेरी यूँहीं वक्त गुज़र जाता है
मेरा ख़ुदा मुझे वहाँ ऊपर बुलाता है
तुम हुए साथ तो उसे भी बना दूंगा कोई बहाना
बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।

हर तरफ़ बिखरी ख़ुशबू सिर्फ़ तेरी है
मन-मंदिर में बसी मूरत र्सिर्फ तेरी है
नामुमकिन है किसी और को अपना ख़ुदा बनाना

बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।

न जाने कितनी कोशिशें कीं तुझे मनाने की
फिर भी तेरी आदत नहीं गई हमें सताने की
अब छोड़ो भी ज़ालिम इस ‘दीप को सताना
बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।

तुझे भुला कर किसी और से दिल लगाना
बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हमसे जी पाना ।

 संदीप कटारिया (करनाल, हरियाणा)