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खोपड़ी

 

ठाकुर सतपाल सिंह का स्मारक बन चुका था अब लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के पास गांव वालों में किसी नए विचार की फसाद का कोई अवसर नही था फिर भी दोनों को चैन इसलिये नही था कि गांव में कोई समस्या नही थी ।शोमारू प्रधान ने ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक से कुछ ही दूरी पर प्राइमरी स्कूल के लिए जमीन दे दी थी जिस पर स्कूल बन चुका था और बच्चों के पठन पाठन का कार्य चल रहा था।गांव वालों को भी चैन था कि ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये गांव के दो लोंगो की बलि चढ़ गई एक तो चौधरी सुरेमन प्रधान बेवजह बेगुनाह सजा काट रहे थे और मुसई बेमौत मरा गया गांव वालों को इतनी कुर्बानी के बाद भी शांति मंजूर थी।समय अपनी गति से चल रहा था पंडित महिमा दत्त जिस मानव खोपड़ी को गांव की नदी के रेता से उठाकर लाये थे उसे उन्होंने छुपा कर अपने व्यक्तिगत कमरे में रख दिया था और प्रतिदिन एक बार कमरा खोल कर उस मानव खोपड़ी को सुरक्षित है कि नही देख लिया करते समय बीत रहा था।सोमारू प्रधान पंडित महिमा दत्त और लाला ग़ज़पति की हर बात को अपना नैतिक कर्तव्य मानकर मानता जा रहा था गांव वालों को भी निश्चिंतता थी कि अब कोई ऐसा कारण नही है जिससे कि पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति को नागवार लगे और नया बखेड़ा शुरू हो अमूमन गांव वालों ने दोनों पर ध्यान देना बंद कर दिया ।लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा लाला शोमारू प्रधान तक सीमित रह गए जिससे गांव वालों का कोई लेना देना नही था।गांव में नौजवानों की नई पौध नए विचारों के साथ नए समय परिवेश में चल आ चुकी थी ।एकाएक लाला ग़ज़पति ने पंडित महिमा दत्त से कहा पंडित आज कल एक बात गौर किया पंडित सब समझते जानते हुए भी मित्र से अनजान बनते पूछा क्या ?लाला ग़ज़पति ने माथे पर बल देते हुये कहा पंडित आज कल गांव वाले हम लोगो को तवज्वो नही देते अब हम लोग गुजरे जमाने के जीते जागते लोग रह गए है जिनकी कोई अहमियत नही है।पंडित महिमा दत्त ने भी सहमती से सर हिलाते हुए कहा सही कह रहे हो लाला अब हम लोग गुजरे वक्त के शेर रह गए है जो आज के समय मे ढेर हो चुके है ।लाला ग़ज़पति ने कहा मगर ये कैसे हो सकता है कि लाला गजपति अभी गांव में जिंदा है और गांव वाले उसकी शान में गुस्ताखी करे भाई पंडित महिमा तू ठहरा पंडित आदमी तोहे स्वर्ग नर्क वेद पुराण देवी देवता पाप पुण्य के भय सतावत बा लेकिन हम कायस्त मनई जिनगी के मौज में विश्वास करीत मरे पे का होई नही मतलब पंडित महिमा ने कहा लाला कौनो जुगत लगा जिससे हम दोनों की पूछ गांव में पहले जैसे हो जाय और फिर से हम लोगन के गांव में सल्तनत
कायम हो जाय लाला ग़ज़पति बोले पंडित धीरज रखो एक बात जानत हो पंडित बोले का लाला गजपति बोले जब भारत आजाद भवा ऊ समय दुई महत्वपूर्ण घटना हुई एक देशवा धरम की नाम पर दुई भाग में बंट गया और आजादी के साथ देशवा को दुई विरासत मिली एक देशवा का नाम बदल गवा भारत से हिंदुस्तान होई गावा दूसरा बटवारा सिद्धान्त मिल गया अब आजद मुल्क भारत के गांव गांव में आज नाही त कल इहे दुई आचरण घर घर गांव गांव में दिखे आज नाही त कल भले केतनो नया पौध नौजवान के आ जावे।हम मुल्क की आजादी की विरासत का इस्तेमाल समझो अपने गांव से शुरू करीत है ताकि आपन गांव देश के भविष्य के आदर्श गांव के नाम से जाना जाई पंडित महिमा बड़े आश्चर्य से बोले मान गए मित्र झूठे थोड़े कहा जात है कि लाला लहर से नोट छाप दे अब बताओ मित्र तोहरे दिमाग मे का चलत बा लाला ग़ज़पति बोले बुरबक पंडित अब तक नाही समझे आज़ादी के विरासत के प्रयोग गांव में होई मतलब गांव में जेतने जाती के टोला है उनके नाम वोही जाती के टोला के नाम से जाना जाय जैसे चम टोली बिन टोली
लाला टोला पंडित टोला ठाकूरान मिया टोली पंडित महिमा बोले ऐसे का होई ?लाला ग़ज़पति थोड़ा गुस्से में बोले पंडित जिनगी भर बकलोल रहिगे अरे पंडित यही तो भारत से आजाद हिंदुस्तान की विरासत है एक त वैल्लोर गांव न रहिजाय टोलन में बंटी जाय जैसे वोकर पहिचान जाति के टोलन से जुड़ी जाई पंडित आतुर होई के सवाल कियेन एके बाद का होइ लाला ग़ज़पति बोले पंडित हर टोला जाती में नेता पैदा होइयन और आपस मे हमेशा लडीहन कटिहन तबे त हमारे जईसन लोगन के राजनीति हनक कायम रही सकत पंडित महिमा बड़े गर्व से बोले मान गए मित्र कायस्त की खोपड़ी लाला ग़ज़पति बोले देखते जाओ मित्र मैं भारत से हन्दुस्तान की आजादी के विरासत की विसात पर क्या क्या करते है।पंडित महिमा दत्त को जो कांकल मानव खोपड़ी गाँव नदी में स्नान करके लौटते समय रेत में मिली थी उसको उन्होंने बढे जतन से सम्भाल कर अपने व्यक्तिगत कमरे में छुपा कर रख दिया था प्रतिदिन एक बार अवश्य कमरा खोल कर आस्वस्त होते की खोपड़ी सुरक्षित है कि नही ।एका एक दिन पंडित महिमा के सपने में ठाकुर सतपाल सिंह आये और बोले पंडित हमार मित्र ते हमरे खोपड़ी को काहे एतना जतन से रखे है पंडित जी बोले हमे का मालूम कि जो खोपड़ी हम नदी की रेता से उठा कर लाये है वो तुमरी खोपड़ी है ठाकुर सतपाल खीज कर बोले ससुर के नाती पण्डित जियत जी हमारे खोपड़ी के दम पर गांव में इतना उधम मचाये मरे के बाद उहि खोपड़ी को पहचानत तक नाही है पण्डित बोले बताओ मित्र हम तुम्हरी खोपड़ी को एतना जतन से रखे है अब का करि ठाकुर सतपाल बोले पंडित जियत जी तोके हम मित्रता के नाम पर ढोवत रहेन मरलो के बाद चैन नाही लेबे देत हौ पंडित बोले का करि मित्र तोहरे मित्रता खातिर ठाकुर सतपाल बोले सुन पंडित जब हम मरेंन हमारी आत्मा जमराज के दरबार मे पहुंची त ऊ कहिन ठाकुर तूने जिंदगी भर लोंगो को दुख पीड़ा क्लेश कलह जैसी व्यधि से परेशान किया है तो तुम्हे भयंकर सजा और नर्क मिलेगा चुकी धोखा मक्कारी और फरेब से लोगो को तबाह परेशान किया इसलिये तुम पहले सांप के रूप में जन्म लोगे और मैं तुरंत साँप के रूप में जन्म लेकर जब रेंगना शुरू किया तभी मेरी माँ मुझे निगलने के लिये झपटी मैं भाग कर अपनी पिछले जन्म की मानव खोपड़ी छिप गया जब तुम खोपड़ी के साथ मुझे उठा कर ले जा रहे थे तब तुम्हे डसने का मौका मिला मगर मैने तुम्हे पहचान लिया और तुमको छोड़ दिया मगर गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक में पीपल के पेड़ पर बैठा पंचायत की कार्यवाही देख रहा था और मालूम हुआ कि यह मीटिंग मेरे ही स्मारक के लिए है और पंचायत सदस्य मेरा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ की हवन कुंड के स्थान पर नही बनने देना चाह रहे है तो मैं जान बूझ कर मैं मुसई पर गिरा और डस लिया और गांव वालों ने मुझे मार डाला मरने के बाद मैं पुनः जमराज के दरबार पहुंचा तो जमराज ने कहा अब तुम्हे चूहे बनकर जन्म लेना होगा हमे लगा कि ई जमराज तो हमे जनम दर जनम परेशान करेगा तब मैंने जमराज के खिलाफ अकेले मोर्चा खोला और जमराज के सारे तंत्र को जमराज का ही शत्रु बना दिया अब जमराज को ही यमपूरी में शासन करना दुरूह हो चुका है हमने जमराज को फरमान दे रखा है सुन जमराज जब तक हमारे दो मित्र पंडित महिमा दत्त एव लाला ग़ज़पति यहां नही आ जाते तब तक तुम केयर टेकर यमपुरी के शासक बन व्यवस्था की देख रेख करो मेरे दोनों मित्रो के आने के बाद तुम पृथ्वी पर जाकर बिभिन्न शरीरों में भृमण करोगे और यम पूरी की शासन व्यवस्था हम तीनो मित्र संभालेंगे जम पूरी की संसद सांसद विधायक पार्षद मेरे प्रस्तव को दो तिहाई से सहमति प्रदान कर चुके है अब हम यहाँ यमपुरी में भावी शासक के तौर पर विशिष्ट अतिथी का शुख भोग रहे है और तुम्हारा और लाला ग़ज़पति के आने का इंतजार कर रहे है मगर इसमें एक पेंच फंस गया है पंडित महिमा दत्त बोले क्या मित्र ठाकुर सतपाल ने बताया कि जब तक मेरे किसी जन्म का अवशेष पृथ्वी लोक में है मुझे यम पूरी का पूर्ण स्वामित्व नही मिल सकता है अतः मेरी खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े कर गांव की नदी में प्रवाहित कर दो इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए पंडित महिमा की निद्रा की तंद्रा टूटी और उन्होंने निश्चय किया कि ठाकुर सतपाल की खोपडी अभी नदी में विसर्जित कर देंगे पंडित तुरंत ही अपने खुफिया व्यक्तित्व कमरे को खोला और खोपडी खोजने लगे मगर उनको ठाकुर सतपाल की खोपड़ी कही नही मिली ।पंडित महिमा दत्त को जब ठाकुर सतपाल सिंह की खोपड़ी सारे प्रयत्न के नही मिली तो खीज कर अपनी पत्नी पंडिताइन विमला पूछा कि मैंने अपने कमरे में एक मानव खोपडी रखी थी क्या तुमने देखा पंडिताइन बोली हाँ मैँ आज घर की सफाई कर रही थी मुझे ख्याल आया कि महीनों से तुमरे कमरे की सफाई नही की है उसकी साफ सफाई करनी चाहिये जब मैं सफाई कर रही थी तभी मैन देखा कि वहाँ एक मानव खोपड़ी रखी है पहले तो मुझे यही नही समझ मे आ रहा था कि तुमरे कमरे में ये मानव खोपड़ी आई तो कैसे क्योकि ई कमरा तो तुमरे अलावा कोई खोलत नाही फिर सोचा कि तुम तो सठियाई गए हो अनाप सनाप हरकत करत रहत हो ये तुमरी ही कारस्तानी है तुम्हें नही मालूम कि घर मे मुर्दा या हड्डी रखना अपशगुन होत है।तुम तो शेष नाग की फुंकार की तरह फुंकार मारीक़े सोई रहे थे हमने डाँगी डोम को पूरे बीस रुपये दिया तब जाकर उसने खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े करके गांव की नदी में विसर्जित कर दिया पता नही किसकी खोपड़ी थी बेचारे की आत्मा भटक रही होय अब कम से कम स्वर्ग चाहे नरक में वोका कौनो जगह तो मील जाई पंडित महिमा दत्त प्रफुल्लित हो बोले शाबाश पंडिताइन आज जिनगी में नीक काम किये हऊ पंडताईंन बोली ऊ सब त ठीक है मगर ई खुराफात तोहरे दिमाग मे कहाँ से आई गइल की जाने केकर खोपड़ी उठाई लाये और इहो ना समझे कि घर मे मुर्दा क हड्डी रखे अशुभ होत है पंडित तू पगला त पहिले गई रहे अब सठियाई गइल हवो
पंडित जी ने पंडताईंन का कोई जबाब ना देकर पंडिताइन को चुप रहने को विवस कर दिया।पंडित महिमा दत्त के पेट मे खलबली मची हुई थी वे जल्द से जल्द ठाकुर सतपाल सिंह से सपने की मुलाकात और खोपडी के साथ सांप के रहस्य को लाला ग़ज़पति से साझा करना चाहते थे फटाफट पंडित तैयार होकर लाला ग़ज़पति से मिलने के लिये चलने को हुए पंडताईंन ने उन्हें जल जलपान के लिये रोकना चाहा मगर पंडित ने पंडताईंन की एक भी बात नही सुनी और घर से निकल पड़े तुरंत ही वह लाला ग़ज़पति के घर पहुंच गए लाला ग़ज़पति उनको देखकर आश्चर्य से सवाल दाग दिया बोले का पंडित तू रात भर सोए नाही पंडित बोले लाला झट से कुछ जल जलपान कराव स्थिर होई जात हई त तबशील से सारा किस्सा बतावत हई लाला जी स्वयं घर के अंदर गए और जोरदार जलपान की व्यवस्था साथ लेकर आये लाला जी खाने पीने के शौकीन थे पंडित जी ने जलपान शुरू करने से पहले कहा लाला आज लगत ह की हमहू मनई हई एतना बढ़िया जलपान त हम छठे छ मासे करीत है लाला अभिमान से अहल्लादित होकर बोले पंडित जी तोहरे यहाँ त दही चुड़ा और पूड़ी सब्जी वियाह भोज यज्ञ पारोज में चलत ह तू का जान खाय पिये के शौक चल जलपान पाव और बताव की का बाती रही कि तू भागे भागे सुबहे फाटि परे पंडित जी जलपान का निवाला घोटते हुए रात अपने सपने में
ठाकुर सतपाल से मुलाकात की बात बताई और नदी से नहा के लौटते समय खोपडी और सांप का पूरा किस्सा बताया लाला पंडित की सारी बात सुनने के बाद बोले पंडित लागत है तोहरी दिमागी हालत ठीक नाही है आरे ठाकुर जियत जी कबो कही जात रहा सारा खुराफात हम लोगन के बुलाई के शामिल बाज़ा की तरह बजावत रहा मरे के बाद पड़ा होई कही सपनो में आवे खातिर कुछ मेहनत करे क पड़ी उ त खुराफात क पकापकया माल बैठे खाय का आदि रहा तू नाही जनत हमने के साथी रहा
पंडित बोले लाला विश्वाश करो हम सही बोल रहे है लाला बोले अब पंडित सही बोल या गलत हमे विश्वाश नाही है पंडित बोले भाई गजपति एक दिन तुहु ई सच्चाई के मान जॉब और सुन लाला ठाकुर सतपाल यमराज की सत्ता के चुनौती दिए हन उहा के सारे कारिंदा सांसद विधायक पार्षद के आपने पक्ष में करिके जमराज के अकेला औकात बताई दिए हैं लाला पंडित की बात गौर से सुनने के बाद झट से पंडित की नाड़ी पकड़े बोले पंडित वैसे त तोहार तबियत खराब नाही दिखत बा फिर भी तोहे इलाज की जरूरत बा चाहे तू सठियाई गए हो अनाप सनाप बक़े जाई रहा हौ पंडित बोले लाला तू जौन चाहे बक मगर सच्चाई ईए है लाला ग़ज़पति ने कहा माना ठाकुर सतपाल की खुराफाती खोपडी के लोहा गांव भर मानत रहा और ऊके सिक्का हम लोग चलावत रहे मगर जमपुरी में उनकर औकात कौनो नरक के कीड़ा मकोड़ा के होई
पंडित महिमा दत्त बोले लाला मान चाहे ना मान एक दिन सच्चाई समझ जाब। लाला गजपति बोले छोड़ पंडित ई सब बवाल अब गाँव मे कईसे हम दुनो मनई राज करि ए पर विचार करो पंडित ने मशवरा झट लाला ग़ज़पति को दिया बोले पूरे गांव के टोलो को जो पहले से जाति के आधार पर बांट दिया है उनको सिर्फ एहसास करके उनमें एक एक नौजवान नेता रूरल बैरिस्टर पैदा कर देते है फिर क्या हम लोग गांव के बादशाह और बादशाहत कायम।।लाला को पंडित का यह सुझाव सटीक लगा और उस पर अमल की कार्य योजना बनाकर रण नीति कार्य योजना पर विचार विमर्श के बाद पंडित अपने घर चले गए और लाला अपने खुराफात की रणनीति में मशगूल हो गए।दिन बीतने के बाद लाला ग़ज़पति रात्री को खाना खा कर सोने लगे जब लाला ग़ज़पति गहरी नींद में सोए हुए थे कि नीद में एकाएक ठाकुर सतपाल अवतरित होकर बोले लाला ग़ज़पति पंडित महिमा तोहरे पास सपने में हमारी मुलाकात की बात कहेन तू भरोसा काहे नाही किये वैसे तो जिंदा रहित जितना झूठ फरेब कहत करत बोलित तीनो मित्र केहू केहू पर सवाल खड़ा नाही करत मगर आज काहे ना विश्वास कीहै लाला ग़ज़पति बोले हम भूत प्रेत में विश्वास नाही करीत ठाकुर सतपाल बोले सुनो लाला हम भूत उत नाही है हम त भूत बनावे वाला यमराज के भूत बनावे वाला हई तू और पंडित जब उहा से शरीर छोड़ कर आईब तब यमपुरी की शासन व्यवस्था हम तीनों के हाथ मे रही और यमराज जएहन जमीन पर जमराज के भूत बनके त लाला ग़ज़पति जल्दी से मिशन वैल्लोर पूरा करके यहां आओ यमपुरी की सत्ता संभालनी है और सुनो लाला तू चित्र गुप्त और जमराज पंडित यमपुरी की न्याय व्यवस्था सम्भालेंगे न्याय के मुख्य दंडा अधिकरी होंगे और मैं स्वय यमराज की भूमिका निभाउंगा देखो भाई लाला गज़पति हमने यमपुरी की सत्ता हथियाने के लिये यमपुरी में यमराज से अकेले लोहा लिया और सल्तनत कायम की है तुमको पोर्टफोलियो और पद को लेकर कोई संसय हो तो बताओ लाला गजपति बोले नही ठाकुर सतपाल यहाँ भी जीते जी तुमने हमे और पंडित के लिये सत्ता सुख सोमारू को माध्यम बनाकर सौंपी थी और मरने के बाद भी तुमने दोस्ती का ख़याल रखा हमे ठाकुर सतपाल का हर फैसला स्वीकार है ।तब ठाकुर सतपाल बोले लाला अब जल्दी से तुम और पंडित मिलकर गाँव बिल्लोर में हमेशा के लिये हम लोंगो की विचार धरा की स्थाई सत्ता की मुस्तकिल बुनियाद बनाकर यहाँ आओ और हम यहॉ की सत्ता से सम्पूर्ण संसार पर शासन की बागडोर संभाले इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए लाला गजपति की नीद खुली सुबह हो चुकी थी लाला गजपति को सुबह नई उर्जा दे रही थी उठकर वे पंडित महिमा का इंतज़ार करने लगे कुछ ही देर सूरज चढ़ने पर पंडित महिमा लाला गजपति के सामने हाज़िर थे उनको देखते ही लाला बोल उठे पंडित तू सही कहत रहे राती के ठाकुर सतपाल हमरे सपने में भी आयन और सारी बात बताएंन उनकर इच्छा है की हम दुइनो मिलके विल्लोर में अपनी सिद्धान्त की सत्ता जल्दी से मुस्तकिल कर देई अब समय कम है हमे तोहे साथ चलीके जमपुरी में उहोके सत्ता ठाकुर सतपाल के साथ सभालेके बा अब जेतना जल्दी हो सके ईहां के काम पूरा किया जाय पंडित महिमा दत्त ने कहा देखा मित्रता ठाकुर सतपाल दोस्ती के मिशाल कायम किहेन ठाकुर सतपाल की जय जय जय ।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




चुनाव आया

*चुनाव आया*

लगता चुनाव आया है ..
जे हर बार मुँह लटकाये फिरता ,
उसके पटिया पे चमकाव आया है,
आगे-पीछे घूमी जो करे बड़बड़ ,
नरेगा राशन कार्डकी चाव आया है ।
लगता…..
वाणी मे पालिस के भाव आया है
नेता जी में अचानक बदलाव आया है
लगता….
दो -चार मिल किया चापलूसी
पुरा कार्यकाल जिया खुशी-खुशी
चाय-समोसा दरी लगाई आमसभा में
गमछा में अचके स्वभाव आया हैं।
लगता…
कोई वार्ड मुखिया कोई सरपंच बने
भार मे जाएँ पहले हम टंच बने
बड़ी- बड़ी लग्जरी चैन ले हम
शौक पुरा करने की दाव आया है ।
लगता ….
जाड़ेमें सगरी कंबल-चादर फेकाए
बारबार दौड़ सबके हाल चाल पुछाए
बिन बुलाए सबके घर समा गुन्जाए
आज चौक सगरी अलाव आया हैं।
लगता …
कोई चरित्रहीन अपनेको न्यायप्रिय बताएँ
कही कफनचोर कोई हरिश्चन्द्र बन जाएं
देखा नही स्वयं को लंबा डीन्ग हकाए
सबका अलगे-अलगे भाव आया है ।
लगता …
कही चौक साफ तो कही बगिया चमके
हर गलती मे चमचन पे मालिक भौके
सही शुद्ध विचारी सगरी बैनर चमके
देख साधु के सगरी बदलाव आया है ।
लगता पंचायती चुनाव आया हैं
लगता चुनाव आया हैं ।

शैलेन्द्र कुमार साधु
जलालपुर सारण बिहार
9504971524




स्मारक

गांव में अमूमन शान्ति का माहौल था
क्योकि गांव के खुराफातियों ठाकुर सतपाल की मृत्यु हो चुकी थी और लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त का मन पसंद शोमारू गांव का प्रधान हो चुका था ।शोमारू कम पढ़ा नही था सिर्फ साक्षर और सीधा साधा गंवार किस्म का अतिसाधारण ग्रामवासी था उसे किसी खुराफात से कोई मतलब नही था एव ना ही प्रधान होने का गुरुर या लालच।जो भी लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त कहते करता जाता उसके लिये लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के आदेश का पालन ही अपना धर्म कर्म था इसके अतिरिक्त वह अपना कुछ भी दिमाग नही लगाता कुल मिलाकर लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त की चाकरी ही करता।धीरे धीरे समय बीत रहा था गांव वाले भी सुकून में थे किसी को गांव के विकास की कोई फिक्र नही थी खुशी इस बात पर थीं कि गांव में कोई नया फसाद नही खड़ा हो रहा था गांव वालों को लग रहा था गांव का विकास हो या ना हों अमन चैन बना रहे उनको यह भी चिंता नही थी कि पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति शोमारू से अनाप सनाप कार्य एव निर्णय कराते रहते ।चौधरी सुरेमन के प्रधान रहते गांव में विकास की एक धारा बह रही थी और उनकी लोकप्रियता से गांव की खुराफाती तिगड़ी पंडित महिमा दत्त ठाकुर सतपाल एव लाला गजपति उसे परेशान करने की खुराफ़त करते जिसमे वे सफल भी हो गए थे मगर गांव वालों को विकास से अधिक शांति प्रिय लगी और मात्र तीन साल बाद पुनः प्रधानी का चुनाव होना निश्चित था अतः गांव वालों ने पंडित महिमा दत्त और लाला गजपत की कारगुजारियों की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।इधर पण्डित महिमा दत्त एव लाला गजपति की मनमानी को शोमारू अपना कतर्व्य मान उनके आदेश का पालन करता जा रहा था।
उधर गांव का चुना प्रधान चौधरी सुरेमन अपनी सजा काट रहा सजा समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहा था।
पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति इस बात पर आनंदितआत्मआल्लादित
थे कि मित्र ठाकुर सतपाल ने जाते जाते भी दोस्ती निभाई और हम दोनों मित्रो को अपनी कुर्बानियों से गांव की सत्ता दिलाई बेचारे सतपाल ने दोस्ती की ऐसी मिशाल कायम की जो दूँनिया में कम ही मिलती है दोस्त सतपाल ने
अपनी चिता भी मांगी तो मोक्ष या मुक्ति के लिये नही वरन हम दोनों मित्रो के लिये दोस्त हो तो ऐसा पंडित महिमा एव लाला गजपति ने आपस मे विचार किया कि क्यो न हम लोग गांव में ठाकुर सतपाल सिंह के नाम का स्मारक बनवाये इस कार्य के लिये इस वक्त से मुफीद वक्त नही मिलने वाला क्योकि शोमारू प्रधान है तो मित्र सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जगह भी मिल जाएगी और पैसा भी पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति ने आपस मे सलाह मशविरा करके गांव में जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वही जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये सबसे उचित लगी दोनों स्वयं प्रधान शोमारू के पास गए और ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के वावत बात की जब ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक की बात चल रही थी ठीक उसी समय शोमारू की पंद्रह साल की बेटी चबेना और गुड़ लेकर वहाँ आयी पंडित महिमा और लाला गजपति की निगाह शोमारू की बेटी सुगनी पर पड़ी दोनों ने एक टक देखने के बाद शोमारू से पूछा शोमारू यह तुम्हारी बेटी है सीधा साधा शोमारू निश्चल निर्विकार बोला हाँ हुज़ूर यह मेरी बेटी सुगनी है दसवीं जमात में पढ़ती है अब तक गांव की कउनो लड़की इतना नाही पढ़े है। पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा तोर भाग शोमारू देख आज तक तोरे बिरादरी में केहू प्रधान होखे खातिर सोच सकत रहे देख ते प्रधान है और एमा हमरे मित्र ठाकुर सतपाल केतनी बड़ी कुर्बानी दिए है ।सुगनी वहां से जा चुकी थी पुनः पंडित महिमा और लाला गजपति ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये विचार विमर्श करने लगे शोमारू प्रधान बोले हुज़ूर आप तो जनते हो हम ठहरे नीरा गवार जहां कहेंगे वहां हम ठाकुर साहब का स्मारक की जमीन की जगह के लिये अंगूठा लगाई देब तब पंडित महिमा एव लाला गजपति ने बड़ी होशियारी से शोमारू को समझाना शुरू किया पंडित महिमा दत्त बोले देखो शोमारू जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वह जगह मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जी के लिये वाजिब होगी क्योंकि सदबुद्धि यज्ञ की आग से ही मुखाग्नि की ठाकुर साहब की अंतिम इच्छा थी और वे उसी अग्नि में समहित भी हुए शोमारू ने पूछा हुज़ूर जब ठाकुर साहब गांव में आग लागे से पहले मर चुके थे तब का उनका मुर्दा आग में कूदा रहा तब लाला गजपति एव पंडित महिमा ने अभियान में एक साथ बोला बक बुरबक कही मुर्दा आग में कूद सकत है और बात को बादलते हुए बोले ई वखत एकर समय नाही है कि मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जिंदा आग में कूदे या जिंदा मणनसन्न अवस्था मे उनका कोउ फेंक दिहेस ई समय उनके स्मारक की बात हुई रही है शोमारू बोला मालिक सदबुद्धि यज्ञ की जमीन त गांव में प्राइमरी पाठशाला खातिर हौ हाकिम लोग जांच पड़ताल करके गवाँ है पुनः लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त ने शोमारू को समझाना शुरू किया बोले देख शोमारू गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले ना खुले वोसे ना ते गांव प्रधान बने है और खुलिओ जाय त फिर ना बनपैबे सोमारू बोला हुज़ूर हम प्रधान रही चाहे ना रही मगर गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले से गांव के लड़िका पढ़िये लिखिए त गांव के तरक्की होई तब दबाव और भय की राजनीति का दांव खेलते पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा कि देख शोमारू गांव में पाठशाला खुले ना खुले सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति कुंड की जमीन पर ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक जरूर बनी चाहे उनकर बने चाहे तोहरे साथ बने शोमारू को अंदाजा लग गया कि अगर अब उसने आना कानी की तो निश्चित ही दोनों मिलकर उसे सांसत में डाल सकते है शोमारू ने तुरंत कहा हुज़ूर गांव आपोके है आप लोग होशियार मनई ह कुछ गलत थोड़े करब ठीक है ठाकुर साहब के स्मारक जहाँ कहत ह वही बने तब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति एक साथ बोले कल गांव पंचायत सदस्यन से प्रस्ताव पारित कराके सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये निश्चित कराइलेव भईया प्रधान जी शोमारू बाबू इतना कह कर पंडित महिमा और लाला गजपति शोमारू के घर से निकले रास्ते मे पंडित महिमा दत्त बोले कि देखा लाला गजपति सोमारुआ के बिटिया कैसी जवान लाज़बाब गुदड़ी क लाल लागी रही थी लाला गजपति बोले पंडित जी बात त ठिके कहत हौव् मगर समय के इन्तज़ार कर रस और मीठा होई पंडित महिमा दत्त बोले लाला जी सुगनी के हाथे क गुड़ चबेना खाईके हम मताई गइल हई अब त लगता कि गुड़ चबेना खाये रोजे जाएके परी लाला गजपति बोले पंडित तू पगलाई गइल हव सबर कर सबर क फल मीठ होत है जैसे पंडित जी कलेजे पर जैसे पत्थर रख दिया गया हो बोले ठिके ह लाला जी काल हम जात हई नदी नहाए ससुरा गाँवई के पंजरे नदी लरिकाई में सांझा सुबह दुपहरिया हर दम नहात रहेन अब दस वरस होई गइल होली संक्रांति पुर्नवासीओ ना नहाइत काल भोरे जाब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति दोनों अपने घर चले गए।
सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में पंडित महिमा दत्त उठे और पंडिताइन से बताया कि आज गांव के पास नदी स्नान के लिये जा रहे हैं गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक सतपाल सिंह के स्मारक के जमीन पर प्रस्ताव हेतु सहमति पर बैठक से पहले लौट आएंगे । लोटा धोती लेकर स्नान के लिये घर से निकल पड़े नदी गांव से लगभग आधे मिल दूरी पर थी अतः कुछ ही देर में पंडित महिमा दत्त नदी तट पहुंचे तुरंत नित्य कर्म से निबृत्त होकर नदी में स्नान किया और फिर गांव की ओर चलने लगे। ज्यो ही दस कदम आगे बढ़े उनके दाहिने पैर का अंगूठा नदी की रेत में किसी खोखले बस्तु में फंस गया पंडित जी ने गौर से देखा तो वह किसी मानव की खोपड़ी की अस्ति पंजर थी जिसमे उनके पैर का अंगूठा फंस गया था पंडित जी ने विचार किया कि अभी नदी स्नान कर निकले है यह भगवान की कृपा है कि यह मानव खोपड़ी किसी विशेष भविष्य में छिपे रहस्य के कारण ही टकराई है क्यो न इसे संभाल कर घर ले चला जाय पंडित जी ज्यो ही उस खोपड़ी को उठाने के लिये नीचे झुके देखा कि खोपड़ी में गेहुआँ सांप कोबरा छिपा बैठा था पंडित जी को लगा जैसे भगवान स्वयं उस मानव खोपड़ी में सांप बनकर बैठे है सो पंडित जी ने मानव खोपड़ी को अपने भीगे कपड़े में बड़ी मुश्किल से लपेट लिया जिसमें खोपड़ी के साथ साथ साँप भी उसी गीले कपड़े में बंध गया अब पंडित जी खोपड़ी और उसमें छिपे सांप को अपने डंडे के एक किनारे बांध लिया और डंडे को कंधे पर रख कर गांव में वही पहुंचे जहां गांव के देवता के स्थान पर पीपल के पेड़ के निचे ठाकुर सतपाल के स्मारक की जमीन के प्रस्ताव पर विचार विमर्श चल रहा था जब पंडित जी वहां पहुंचे तो पंचायत के जले भुने सदस्यों ने व्यंग मारते हुए एक स्वर में कहा आईये यहां लाला गजपति तो थे ही आपही की कमी थी पंडित जी ने भी उसी अंदाज में जबाब दिया तुम गांव वालों की क्या मजाल जो मेरे और लाला गजपति के बिना कोई भी कार्य कर सको लो मैँ हाजिर हो गया।
अब पुनः ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जमीन पर चर्चा शुरू हुई पंचायत के सारे सदस्य अड़े थे कि सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति की जगह गांव में प्राइमरी स्कूल के लिये है अतः उसे स्मारक के लिये नही दिया जा सकता पंडित जी के आने से पहले लाला गजपति ग्राम पंचायत के सदस्यों को संमझा कर तंग आ चुके थे मगर कोई असर नही हुआ। शोमारू प्रधान ने कह रखा था कि गांव पंचायत सदस्यों को मनाना पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति का काम है।तेज हवा पछुआ भी चल रही थी और बसंत का खुशगवार मौसम था पंडित जी ने अपने गीली धोती में बंधी मानव खोपड़ी अपने डंडे सहित पीपत के पेड़ में किसी तरह अटका रखी थी जब पंडित जी पंचायत की बैठक में आये और पीपल के पेड़ में अपनी लाठी में बंधे खोपड़ी को रखने की जुगत कर रहे थे तभी बैठक में बैठे सभी पंचायत सदस्यों को किसी खुराफात की आसंका हुई मगर किसी ने ध्यान इसलिये नही दिया कि कोई खास बात नज़र नही आई।पंडित जी की पुरानी धोती में बंधी खोपडी गांव पंचायत बैठक में पहुचते पहुचते फट चुकी थी पंडित जी की लाठी के एक किनारे लटकी खोपड़ी से सांप कभी कभार अपना फन निकाल कर बाहर निकलने की आहट लेता मगर डंडे के एक किनारे लटके होने के कारण अपना फन फिर खोपड़ी में छुपा लेता अब वह पीपल के पेड़ पर फ़टी धोती से निकल कर पंचायत सदस्यों की चल रही बैठक के ठीक ऊपर वाली पतली डाल पर बैठा हवा के झोंको का आनंद ले रहा था।लाला लाजपत ने पंडित महिमा को बताया कि उनके आने से पहले उसने पंचायत सदस्यों को समझाने की बहुत कोशिश की मगर पंचायत सदस्य सद्बुद्धि यज्ञ हवन कुंड की जगह प्राइमरी विद्यालय बनाने को आड़े है।पंडित महिमा के समझ मे आ गया कि बात सीधे नही बनने वाली है उन्होंने बोलना शुरू किया देखो भाई पंचायत सदस्यों सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड के जगह पर तो मरहूम ठाकुर सतपाल जी का स्मारक ही बनेगा चाहे जितना बखेड़ा खड़ा करना हो कर लो ठाकुर सतपाल ने शरीर छोड़ा है ना तो हम लोगों का साथ छोड़ा है ना गांव ठाकुर आदमी जो चाहते है उसे जिंदा या मुर्दा किसी तरह पूरा ही करते है।अब मैँ ठाकुर सतपाल से ही पूछता हूं बताओ मित्र तुम्हारा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड पर बनेगा की नही पंचायत के सारे सदस्य पंडित महिमा का चेहरा देखते कहने लगे पण्डितवा पगलाई गवा का ई ससुर जियत है तो स्मारक के जमीन खातिर कुछ करि नाही पावत हैं अब मुर्दा ठग सतपाल का करि जब जिंदा लाला गजपति और ई कुछ नाही करि सकत अभी संसय परिहास के मध्य पंचायत सदस्य पड़े हुये थे कि खोपड़ी का सांप जो खोपड़ी से निकल पीपल के डाल पर बैठा था एकाएक पंचायत सदस्य मुसई पर गिरा और उसको डस लिया मुसई गिरकर तड़फड़ाने लगा बाकी लोगों ने मिलकर साँप को मारने की कोशिश और बड़ी मुश्किल से उसे मार सके अब मुसई के उपचार में झाड़ फूंक हुआ मगर मुसाई को बचाया नही जा सका ।गांव वालों के बीच चर्चा आम हो गई कि सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक हेतु दे दी जानी चाहिए नही तो जीते जी ठाकुर ने कम परेशान किया मरने के बाद और परेशान करेगा जैसा कि पंडित महिमा कह रहे थे अब पंचायत के सभी सदस्य एकमत होकर सदबुद्धि यज्ञ की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये दे दी और सभी ने मिलकर ठाकुर का भव्य स्मारक बनवाया और बड़े जोर शोर से उसका उद्घाटन विधि विधान से करवाया और ठाकुर साहब की प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर गांव की हिपज़त का आशीर्वाद मांगते हुए प्रार्थना की ठाकुर साहब आपने जीवित रहते हुए अपने दो मित्रो लाला गजपति और पंडित महिमा के साथ मिल कर गांव वालों को बहुत परेशान किया मरते मरते भी आपने चैधरी सुरेंमन को जेल भेज दिया और अब मुसाई की जान आपके ही स्मारक के चक्कर मे अखड़ेरे चली गयी अब आप हम गांव वालों पर रहम करो ।गाँव वालों की प्रार्थना सुनकर पंडित महिमा और लाला गजपति बोले गांव वाले आप चिंता ना करो हम लोग ठाकुर सतपाल की आत्मा को मनाएंगे और कोशिश करेंगे कि अब गांव में शांति सौहार्दपूर्ण वातावरण बरकरार रहे मगर इसके लिये गांव के हर घर से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक पर एक रुपया हर इतवार को चढ़ाया जाना होगा गांव वालों ने खुशी खुशी पंडित और लाला की शर्त स्वीकार कर ली अब क्या था हर इतवार को लाला और पंडित के पास पांच सौ रूपये आ जाते जिससे वे अपनी अनाप सनाप जरूरतों हेतु खर्च करते।गांव में अमूमन शांति का माहौल कायम था।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




सदबुद्धि यज्ञ

 

लाला गजपति विल्लोर गाँव के संपन्न कायस्थ परिवार के मुखिया थे उनके परम् मित्र थे ठाकुर सतपाल सिंह और पंडित महिमा दत्त तीनो मित्रो के ही विचार गाँव में सिद्धांत संस्कार संसकृति हुआ करते ।तीनो साथ मिलकर गाँव में क़ोई न कोइ बखेड़ा खड़ा किया करते ।किसी भी फसाद की शुरुआत लाला गजपति की पहल पर होती ठाकुर सतपाल सिंह किसी एक पक्ष के साथ खड़े हो जाते और पंडित महिमा दत्त दोनों पक्षो के मध्य विवाद का सर्वमान्य रास्ता निकालने की पहल करते और फिर फसाद समाप्त हो जाता सारे गाँव वाले भी लाला गज़पति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा दत्त की तिगड़ी के तिकड़म को समझते मगर कुछ भी कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।स्थानीय पुलिस और प्रशासन भी बिल्लौर के किसी भी विवाद में लाला गज़पति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा दत्त को ही तवज़्ज़ह देते गाँव के लोग बिना किसी दैवीय आपदा के गाँव के खुराफाती त्रिदेवो के कुचक्र में जाल की आसहाय पंक्षी की भाँती
फड़फड़ाते मगर कुछ भी कर् सकने में असहाय निरीह कुछ भी नही कह पाते
असहाय सब कुछ जानते हुये भी अन्याय सहने को बिबस थे गाँव वालों ने एक साथ मिलकर आपस मे विचार किया कि क्यो न लाला गजपति ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा की आत्मा परिवर्तन का सद्बुद्धि यज्ञ गांव में करवाया जाए ।
गांव वालों ने आपस मे चंदा एकत्र किया और लाला गजपति और ठाकुर
सतपाल एवं पंडित महिमा से अनुरोध किया कि आप तीनो ही सद्बुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान बने जिससे कि गांव के लोगो मे सद्बुद्धि सन्मति सम्प्पन्नता आये तीनो ने गांव वालों के अनुरोध पर विचार करने का कुछ समय मांगा यज्ञ शुरू होने में तीन चार दिन का समय बाकी था।फिर लाला गजपति ठाकुर सतपाल एवं महिमा पंडित ने आपस मे विचार विमर्श कर इस नतीजे पर पहुंचे की चूंकि गांव का सम्मिलित सद्बुद्धि कार्यक्रम है अतः मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन का ही मुख्य यजमान बनाना उचित होगा गाँव वालों को तीनों त्रिदेव की इस मंशा के पीछे कोई कुचक्र नज़र नही आया हालांकि मुखिया के चुनाव में तीनों के द्वारा सामर्पित उम्मीदवार पलटन पहलवान को कुछ दिन पूर्व ही चौधरी सुरेमन ने हराया था फिर भी भोलेभाले गाँव वालों के मन मे चौधरी सुरेमन के सद बुद्धि यज्ञ मुख्य यजमान बनने में कोई षड्यंत्र
दूर दूर तक प्रतीत नही हुआ।
धीरे धीरे सदबुद्धि यज्ञ प्रारम्भ होने की तिथि आयी और सदबुद्धि यज्ञ की शुरुआत बड़े धूमधाम से हुई चौधरी सुरेमन मुख्य यजमान की भूमिका में थे सात दिन का श्रीमद भागवत कथा का आयोजन एवं सायं कालीन गांव के नौजवानों द्वारा बिभिन्न एतिहासिक पात्रों पर आधारित नाटक एवं गांव के विकास पर ग्राम वासियों की भूमिका एवं कर्तव्य दायित्व पर चर्चा का आयोजन सुनिश्चित था जो सदबुद्धि यज्ञ के प्रथम दिन से ही बड़े सुनियोजित और प्रभावी तरीके से प्रारम्भ हुआ और प्रति दिन चलने लगा लाला गजपति ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया सदबुद्धि यज्ञ में पूरा गांव इस आस्था विश्वास के साथ पूरे उत्साह से भाग ले रहे थे कि शायद लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा का ह्रदय परिवर्तन सदबुध्दि यज्ञ से हो जाय एवं गांव में शांति आ जाये।बड़ी धुम धाम से गांव में सदबुद्धि यज्ञ चल रहा था यज्ञ के समापन से एक दिन पूर्व कथावाचक व्यास पंडित सुदर्शन शुक्ल जी ने मानव जीवन जीवात्मा के श्रेष्ठ पुर्जन्मजन्मार्जित कर्मो का फल एवं मानव जीवन में क्षमा दया सेवा और किसी भी प्राणी मात्र को दुख दर्द न पहुचाना ही सबसे बड़ा धर्म बताया पंडित जी के प्रवचन को लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल पंडित ,महिमा बड़े ध्यान से सुन रहे थे प्रवचन समाप्त होने के बाद तीनों ने आपस मे विचार किया लाला गजपति बोले कि निश्चय ही हम लोंगो ने पिछले जन्म में कुछ सदकर्म किये थे कि हम लोंगो को मानव जन्म मिला है फिर ठाकुर सतपाल बोले कि इस जनम में तो हम लोगो ने अब तक कोई ऐसा काम नही किया कि अगले जनम में फिर मानव जनम मील पाए सारी जिंदगी हम तीनों गाँव वालों को परेशान कर खून के आंसू रुलाते रहे पंडित महिमा बोले बात तो सही है मगर अब हम तीनों कब्र में पैर लटकाए उमर के चौथे पन में है पता नही कब चोला दामन छोड़ दे अतः अब तो कुछ ऐसा करने की जरूरत है कि अगर हम जनम ले तो किसी ताकतवर जीव के रूप में जैसे इस मानव जनम में हम लोंगो ने सारे गांव को नाच नचाया वैसे जिस शरीर मे रहे हमारी दहसत कायम रहे लाला गजपति और ठाकुर सतपाल को बात जच गयी और तीनो ने कहा अब पश्चाताप और प्रायश्चित का कोई फायदा नही है अतः जैसा हम लोंगो ने जीवन भर किया है वैसा ही करते रहे जो होगा देखा जाएगा तीनो आपस मे विचार विमर्श कर अपने अपने घर चले गए रात्रि बहुत हो चुकी थी जाकर सो गए अगले दिन सदबुद्धि यज्ञ की पूर्ण आहुति होनी थी सुबह पूरा गांव जल्दी उठा और गांव के सामुहिक सदबुद्धि यज्ञ के पूर्णाहुति में जुट गया पूर्णाहुति बड़े विधि विधान से पंडित सुदर्शन शुक्ल ने कराया गांव वाले और मुख्य यजमान मुखिया सुरेमन चौधरी ने पंडित जी को बड़ी श्रद्धा के साथ दान दक्षिणा देकर विदा किया पूरे गांव में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया सदबुद्धि यज्ञ का निर्विघ्न समापन निश्चित तौर पर गांव वालों के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि गांव के खड़्यंत्रकारी त्रिदेव लाला गजपति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा तीनो ने पूरे यज्ञ के दौरान कोई बाधा नही पैदा की साथ ही साथ पूरे मनोयोग से सहयोग करते रहे ।जिस दिन सदबुद्धि यज्ञ की समाप्ति हुई उस दिन पश्चिम दिशा से बड़ी तेज हवा चल रही थी अचानक ठाकुर सतपाल सिंह की तबियत खराब हुई उन्होंने अपने दो परम् मित्रो पंडित महिमा और लाला गजपति को बुलाया दोनों ही तुरंत हाज़िर हो गए ठाकुर सतपाल ने अपने मित्रों से कहा देखो भाई मेरा आखिरी समय आ गया है मैं चाहता हूँ कि एक बार सदबुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से मिल कर जीवन भर किये कुकर्मो का बोझ कुछ कम कर लूं क्योकि भगवान अपने भक्तों की अधिक सुनते है अतः भगवान के पास जाने से पूर्व भगवत भक्त चौधरी सुरेमन से मेरा मिलना बहुत आवश्यक है।शीघ्र ही पंडित महिमा और लाला गजपति ने जाकर गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से अपने मित्र ठाकुर सतपाल की हालत को बताते हुए उनकी अंतिम इच्छा मुखिया चौधरी सुरेमन से मिलने की बताई चौधरी सुरेमन ने कहा कोई बात नही चलिये चलते है और ठाकुर सतपाल की इच्छा का सम्मान करते है कुछ ही देर में पंडित महिमा लाला गजपति और मुखिया चौधरी सुरेमन ठाकुर सतपाल के पास पहुंचे उनके पहुचते ही ठाकुर सतपाल ने कहा चौधरी सुरेमन जी आपने आज ही मुख्य यजमान की हैसियत से सद्बुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति कराई है मेरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी अत्येन्ष्टि पूर्णाहुति की आग से ही कि जाय अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप यज्ञ के यज्ञ कुंड से पूर्णाहुति की आग गांव के पश्चिम दिशा की ओर गांव से बाहर रख दे जिससे कि मेरी मृत्य के बाद आग मेरे घर वाले वहां से लेकर मेरी अत्यष्टि कर देंगे जिससे पवित्र सदबुद्धि यज्ञ की आग भी पवित्र बनी रहेगी चौधरी सुरेमन को ठाकुर सतपाल की इस बात में कोई साजिश नज़र नही आई उन्होंने फौरन ठाकुर सतपाल की बात मान कर बोले ठाकुर साहब अभी मैँ सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड से आग गांव के पश्चिम रख देता हूँ और सभी ग्राम वासी भी मेरे साथ जाएंगे कुछ देर बाद चौधरी सुरेमन वहाँ से चले गए और गांव वालों को इकठ्ठा कर ठाकुर सतपाल की मरने से पूर्व इच्छा बताई गांव वालों को भी इसमें कोई अनुचित बात नही प्रतीत हुई अतः सभी ग्राम वासी चौधरी सुरेमन के नेतृत्व में यज्ञ कुंड की अग्नि ले गांव के पश्चिम गांव के सिवान के बाहर सद्बुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की आग रख कर चले आये और आकर मुखिया चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल को बता दिया कि यज्ञ कुंड के पूर्णाहुति की आग गांव के सिवान के बाहर रख दी गयी है मुखिया सुरेमन चौधरी की बात सुनते ही ठाकुर सतपाल ने राहत की सास ली और उनके प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते बोला आब मैँ चैन से मर सकूंगा ।मुखिया सुरेमन चौधरी के जाने के बाद ठाकुर सतपाल ने कहा अच्छा अब हमारा अंतिम समय है मित्रो जीवन भर हर तरह से साथ निभाने के लिये आप दोनों का आभार मैंने भी जाते जाते मित्रता और जीवन भर के संबंधों की मर्यादा का निर्वहन कर दिया है और ठाकुर सतपाल के प्राण पखेरू उड़ गए।अब दोनों मित्र पंडित महिमा और लाला गजपति बड़ी चिंता में पड़ गए कि जाते जाते ठाकुर सतपाल ने किस मित्रता का निर्वहन किया है बड़ी माथापच्ची और दिमाग लगाने के बाद नतीजे पर पहुंचे की आज तो पछुआ तेज हवा चल रही है जिधर गांव के ज्यादातर गेंहू के पके खेत है उसके बाद सोमारू का घर टोला है जिसमे लगभग सत्तर अस्सी घर हरिजन एवम अन्य जातियों के है और पिछले मुखिया चुनाव में जिस सोमारू को तीनो मित्रों ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था और जो चौधरी सुरेमन से हार गया था ।अब रात भर पंडित महिमा और लाला गजपत अपने मित्र ठाकुर सतपाल के शव के पास बैठे मित्रता का निर्वहन कर रहे थे कि अचानक गांव के पश्चिम से पुरब की तरफ आग की तेज लपटे आसमान को छूने लगी देखते ही देखते सोमारू के टोले तक आग ने आपने आगोस में जकड़ लिया गेहूँ के खेत और सोमारू का टोला हनुमान की पूँछ की लगाई सोने की लंका की तरह धूं धु करकें जलने लगा अब क्या था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पत ने विचार विमर्श कर अपने मित्र ठाकुर सतपाल सिंह के शव को धूं धूं जलते आग से शोमारू की टोला में डाल दिया तेज आग में जाने कब ठाकुर सतपाल का शव खाक हो गया अब दोनों मित्रो ने राहत की सांस ली क्योकि मित्र की इच्छानुसार सदबुद्धि यज्ञ के कुंड की पुर्णाहुति की आग से जलते खेत और गांव में अत्येन्ष्टि सर्वथा मित्र की इच्छा के अनुरूप और सर्वश्रेष्ठ थी। पूरे गांव वालों में अफरा तफरी मची थी सब मुखिया चौधरी सुरेमन को गालियाँ देते बदुआ देते आग बुझाने में जुटे हुये थे बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया जा सका मगर तब तक सब खाक हो चुका था आग बुझाते बुझाते सुबह हो गयी यह जानकारी नजदीक के पुलिस थाने तक चली गयी सुबह थाने की पुलिस गांव पहुंच कर दोषियों की पहचान तलाश करने लगी।
सारे गांव वालों का कलमबंद बयान दर्ज किया गया सभी ने बताया कि चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल की
अंत्येष्टि के लिये ही सद बुद्धि यज्ञ की आग गांव के पश्चिम सिवान के बाहर
रखवाई थी उस दिन तेज पछुआ हवा
चल रही थी यह जनते हुए और अपने विरोधी जिसने पिछले चुनाव में चुनाव लड़ा था से चुनाव रंजिश का बदला चुकाने के लिये ।अब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति के बयान की बारी थी दोनों ने पुलिस को बताया कि
चौधरी सुरेमन के खिलाफ प्रधान के चुनाव में शोमारू को मेरे महरूम दोस्त ठाकुर सतपाल ने चुनाव में खड़ा किया था इसी कारण चौधरी सुरेमन ने
मेरे मरहूम दोस्त को मार कर धूं धू जलते गांव में जिंदा जला दिया अब क्या था पुलिस ने पक्के सबूत गवाहों के बिना पर चौधरी सुरेमन को जेल भेज दिया जैसा कि न्यायिक व्यवस्था में होता है तारीख पर तारीख पर सुनवाई के बाद माननीय विद्वान न्यायाधीश महोदय ने चौधरी सुरेमन से पूछा कि आपको क्या कहना है चौधरी सुरेमन ने कहा जज साहब आज कल भारतीय गांवों में जहाँ से भारत की वास्तविक तस्वीर बनती है का वातावरण दूषित कलुषित और अविश्वसनीय हो चुका है मैँ यह सोचता था कि गांव से शहरों की तरफ का पलायन का कारण बेरोजगारी हैं नही योर आनर एक कारण यह भी है
की गांव के लोग अब भोले भाले न होकर अपनी संकीर्ण सोच और आचरण के कारण भारत के गांवों की पहचान खोता जा रहा है ।मैन इसी वातावरण को बदलने के लिये लोकतांत्रिक तरीके से प्रधान का चुनाव लड़ा मैँ अपने गांव को एक आदर्श भरतीय गांव बनाना चाहता था
मैन ईमानदारी से कोशिश भी की मगर
अब सच्चाई और फरेब के बीच आपकी सजा का इंतजार कर रहा हूं।
जज साहब ने पूछा कि आप भविष्य क्या करना चाहेंगे चौधरी सुरेमन ने कहा जिस उद्देश्य को पूरा नही कर पाया उसे पूरा करूँगा मगर अब जीवन मे प्रधानी का चुनाव कभी नही लडूंगा।चूंकि ठाकुर सतपाल को आग में फेकते किसी ने नही देखा था मगर उनकी जली हड्डियाँ जले गांव की राख में ही बरामद हुई थी अतः विद्वन न्यायाधीश ने चौधरी सुरेमन को पंद्रह साल की कैद बा मुस्ककत कि सजा सुनाई चौधरी सुरेमन जेल की हवा खा रहे थे इधर गांव में प्रधानी चुनाव पर दूसरे स्थान पर रहे शोमारू को नया ग्राम प्रधान बना दिया अब क्या था लाला गजपति और पंडित महिमा की
पौ बारह होगयी।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश




हे अन्नदाता

*हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !*

हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !
उठों जागों तुम्हें खेत बुलाता
हल तुझसे पहलें जाग गए
बैल खेतों को भाग गए
जिससें तेरा जन्मों से नाता
हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता,

तेरी धरती क्यूँ रहेगी परती
जो तुझ पर हैं जान छिड़कती
मिट्टी पानी खर पतवार
क्यूँ रहेगी इनसे गुलज़ार
इनकों हाथों से उखाड़ फेंकता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

देख तुझें बहार आती हैं
बीज नया जीवन पाती हैं
फ़सलों को इंतजार तेरा हैं
हाथों का दुलार तेरा हैं
जो तेरे थाप से उछल मचाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

निराई गुड़ायी साफ सफ़ाई
हैं हरियाली जिनसे आई
जगत निहाल हो जाता हैं
हर प्राण शीश झुकाता हैं
फ़िर भी जो तनिक
गुमान न करता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता

बातों से सरोकार नहीं हैं
किसी से भी तकरार नहीं हैं
परवाह कियें बिना चाह के
सत्य समर्पण सेवा भाव से
जो हैं ईश्वर कहलाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तेरा खेत बुलाता
हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !
उठों जागों तुम्हें खेत बुलाता ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
   देवरिया उत्तर प्रदेश