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परिंदे जानते होंगे

आसमान छोटा हो गया है 

परिंदों के ख़ातिर

इंसानी दिमाग हो रहा है 

धीरे-धीरे शातिर

ज़मी पे अभी पाँव

पूरी तरह रखे नहीं हैं 

आसमां में आशियाँ बनाने में 

होने लगा है माहिर 

अभी तक समंदर की

थाह भी पाई नहीं 

अम्बर की दास्ताँ 

करने लगे हैं ज़ाहिर

न मालूम ये परिंदे

कभी कुछ सोचते भी होंगे 

या बस इतना कि जमीन 

पर रहते हैं काहिर 

जो बेचतें हैं ईमान

गैरों के हाथों अपना 

वे दुनिया भी बेच देंगे 

हैं इतने बड़े ताजिर

क्या जाने  ये परिंदे  

जानते होंगे उसे भी 

आसमान में रहता है 

जो सबसे बड़ा साहिर 

 

गीता टंडन 

6.2.21

 




मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना

 

मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना

 

मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना
छोटी सी बात नहीं है
जीवन का सार है उन शब्दों में
जिनमें तेरी उमंग, तेरे साहस,
तेरी सहनशीलता, तेरे अह्सास,
तेरी चेतना, तेरे सपनों की दुनिया
बसी होती है मेरी कविता में
जो मृत को चेतन, चिंतन को विमुक्त
अवरोधक तो चलायमान,
निष्ठुर को निष्ठावान बनाने की
प्रेरणा देती है मेरी कविता
यूँ ही नहीं कोई चंदा,
कोई हरि होता है, शब्दों के जादू में
शोणित नाद की गूँज होती है
वही गूँज प्रेरक बनकर पाठक
को झकझोर देती है मेरी कविता
तेरे इसी दैदीप्य स्वरुप को
पढ़ा जाता है मेरी कविता में
तुझे, अनवरत संघर्ष की वाहक
बनाकर पढ़ा जाता है मेरी कविता में

हरिराम भार्गव “हिंदी जुड़वां”

सर्वोदय बाल विद्यालय पूठ कला्ं,

शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली