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सूरज और ब्रह्मांड

उदय सूरज का पूरब से
आशा विश्वास की मुस्कान लिए।।
रौशन करता त्रिभुवन को
खुशियों का भान लिए।।
अस्ताचल पश्चिम में सागर की
गहराई आसमान का अभिमान लिए।।
अस्ताचल कहते सूरज
आऊँगा मैं घने आंधेरो की रात के
बाद नई सुबह की नई खुशी में
हँसतचल की प्यार परछाई बन
ऊंचाई अरमान लिये ।।
कहती अवनि अपना तो
सूरज से युगों युगों से पल प्रहर का
साथ मेरा सौभाग्य प्रकृति प्रबृत्ति
का संग साथ लिये।।
ना हो सूरज तो नही बनेगी
ब्रह्मा की सृष्टि जीव जगत का
प्यारा संसार रह जायेगा महाप्रलय
का अंधेरा हाहाकार लिये।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखर उत्तर प्रदेश




सूरज और ब्रह्मांड

उदय सूरज का पूरब से
आशा विश्वास की मुस्कान लिए।।
रौशन करता त्रिभुवन को
खुशियों का भान लिए।।
अस्ताचल पश्चिम में सागर की
गहराई आसमान का अभिमान लिए।।
अस्ताचल कहते सूरज
आऊँगा मैं घने आंधेरो की रात के
बाद नई सुबह की नई खुशी में
हँसतचल की प्यार परछाई बन
ऊंचाई अरमान लिये ।।
कहती अवनि अपना तो
सूरज से युगों युगों से पल प्रहर का
साथ मेरा सौभाग्य प्रकृति प्रबृत्ति
का संग साथ लिये।।
ना हो सूरज तो नही बनेगी
ब्रह्मा की सृष्टि जीव जगत का
प्यारा संसार रह जायेगा महाप्रलय
का अंधेरा हाहाकार लिये।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखर उत्तर प्रदेश




युग का प्रथम आराध्य सूरज

अवसान दिवस का सूर्योदय का
परिणाम प्रवाह नए सुबह आने
की जागृत करता भाव भावना ।।
आएगा सूरज नए काल कलेवर में
जीव जगत की खुशियाँ उमंग उत्साह
मंजिल मकसद की शक्ति का भान
विश्वास संभावना का मान।।
अवसान उदय का अंतर शौर्य सूर्य
जीव जगत के पल प्रहर का प्रहरी
भागीदार कर्म श्रम प्यार आत्म का
अंतर्नाद।।
जीव जगत का दाता सूरज
प्रशांत हृदय आचार व्यवहार
सूरज की आभा किरणे जगत
जीव मुस्कान।।
यौवन सूरज का उत्कर्ष
बैभव विकास की पहचान
अभिमान।।
जीवन जगत की खुशहाली
गौरव सूरज अंधेरो से की
निद्रा से जागे प्राणी का
परम प्रकाश का गुण ज्ञान
और गान।।
सन्मार्ग संवृद्धि की राह दिखाता
प्रकृति का रहस्य बताता ब्रह्म
ब्रह्मांड का मान त्रिभुवन का
भाष्य सूरज प्रथम भगवान।।