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मोह

मोह
़़़़़़़़़़़़
सांसों से मोह कभी छूटता नहीं ,
बंधनों में बंध कर भी दम घुटता नहीं!!

शाम निराश तो करती है, पर सुबह की किरणें देख आस का धागा टूटता नहीं!

तिरस्कार, अपमान सब सहना कठिन होता है,
पर मन से जीने का हौसला छूटता नहीं!!

मुस्कानों से भरे चेहरे का एक भी कोना झुर्रियों से बचा नहीं ,
ये आईना भी अब झूठ बोलता नहीं !!!

तुम्हारी आंखों में प्यार वही ढूंढती हूं…
पर कमज़ोर नजरों से साफ कुछ दिखता नहीं !!

उम्मीद करती हूं तुम पुकार लो मुझे प्यार से ,
घुटती ही सही अपने आवाज़ से संवार लो फिर से…
तेरे प्यार की कहानी से मन उबता नहीं!!!

उम्र इतनी बेरहम होगी
नहीं जानती थी ,
जिंदगी इतना रुलाएगी पता नहीं था !!

सभी परेशानियों के बावजूद आश्चर्य है!!
जीने का हौसला बिखरता नहीं!

मोह सांसो से इतना गहरा जाने क्यों है ??
उखडती सांसें हर बार डराती है ..
क्या करुं!!!
सांसो से मोह अब भी छूटता नहीं……..

क्रांति श्रीवास्तव
#अभिव्यक्ति




मोह

मोह
़़़़़़़़़़़़
सांसों से मोह कभी छूटता नहीं ,
बंधनों में बंध कर भी दम घुटता नहीं!!

शाम निराश तो करती है, पर सुबह की किरणें देख आस का धागा टूटता नहीं!

तिरस्कार, अपमान सब सहना कठिन होता है,
पर मन से जीने का हौसला छूटता नहीं!!

मुस्कानों से भरे चेहरे का एक भी कोना झुर्रियों से बचा नहीं ,
ये आईना भी अब झूठ बोलता नहीं !!!

तुम्हारी आंखों में प्यार वही ढूंढती हूं…
पर कमज़ोर नजरों से साफ कुछ दिखता नहीं !!

उम्मीद करती हूं तुम पुकार लो मुझे प्यार से ,
घुटती ही सही अपने आवाज़ से संवार लो फिर से…
तेरे प्यार की कहानी से मन उबता नहीं!!!

उम्र इतनी बेरहम होगी
नहीं जानती थी ,
जिंदगी इतना रुलाएगी पता नहीं था !!

सभी परेशानियों के बावजूद आश्चर्य है!!
जीने का हौसला बिखरता नहीं!

मोह सांसो से इतना गहरा जाने क्यों है ??
उखडती सांसें हर बार डराती है ..
क्या करुं!!!
सांसो से मोह अब भी छूटता नहीं……..

क्रांति श्रीवास्तव
#अभिव्यक्ति




सूर्य और देव

पवन पुत्र शिष्य पुत्र शनि
दुःख भय भंजक न्याय दंड
के दाता सारे सूरज संग
भाग्य दुर्भाग्य के दाता।।
धर्म शास्त्रों में देवता
विज्ञान वैज्ञानिक की
शोध कल्पना परिकल्पना
अविनि परिक्रमा करती
दिवस माह वर्ष युग काल
की गति चाल का निर्माता।।
युग ब्रह्मांड त्रिभुवन का
परम् प्रकाश व्यवहार विनम्र
प्रकृति प्रबृत्ति का निर्धाता।।
कहते सूरज पृथ्वी से
प्रातः तेरे कण कण को
नव उद्देश्य चेतना से जगाता।।
नमस्कार करता प्राणी
जल का अर्घ्य चढ़ाता
मेरे ही स्पर्श सानिध्य में
योगी मुनि युगों युगों की
साध्य साधना से इष्ट देव
को पाता।।
मेरे आने पर पंक्षी 
कोलाहल कर स्वागत करते
कृषक मेरी किरणों संग
हरियाली खुशहाली का
विश्वास जगाता।।
श्रम श्रमिक को आवाज़
मैँ देता आओ मिलकर
श्रम से सृंगार करे
कर्मनेवाधिकारस्य को
आत्म साथ किये नए
सुबह के संदेशों का हो
जय जयकार अंगीकार।।




सूर्य और सत्य

युग के हर प्राणी की निद्रा
शौर्य सूर्य के सुबह शाम की
प्रतिद्वंनि आकर्षक ।।
नई सुबह आशा विश्वाश
संबाद संचार गति चाल काल
सूरज का युग ब्रह्मांड व्यवहार
ना जाने कितने ही है पर्याय नाम।।
सूरज दिनकर दिवाकर प्रभाकर
आदित्य भुवन भास्कर प्रशान्त
हृदय तल से आना जाना
संस्कृति संस्कार ।।
सप्त अश्व रथ सवार नित्य
प्रतिदिन आता जाता युग
सृष्टी जीव जीवन जगत 
मूल्यों रहस्य महत्व महिमा
धरा का सत्य सत्यर्थ सूर्य संसार।।
शौर्य सूर्य रथ के सप्त अश्व
सृष्टी के मूल तत्व छिति जल
पावक गगन समीर सूर्य के संग
अंश छठा ज्ञान कर्म सूर्य आराधन
के मूल मंत्र आधार।।
सातवां पराक्रम पुरुषार्थ
जीवन मूल्यों के शौर्य सूर्य
कर्तव्य दायित्व बोध का
जीवन मूल्य संग्राम सार।।
सप्त अश्वो का रथ सौर्य
सूर्य का सप्त महाद्विप सप्त
महासागर सप्तर्षि मंडल ध्रुव
गोलार्ध सारे ब्रह्मांड राग रागिनी
राग दिनकर का आचार।।




सूर्य और जीवन

ना कोई लाचारी ना कोई
दुःख व्याधि कायनात में
खुशियों खुशबू का हर मन
आँगन घर आँगन से नाता
शौर्य सूर्य कहलाता।।
युग मे नित्य निरंतर काल
की गति अविराम काल कदाचित
सूरज  गति का सापेक्ष काल
निरन्तर चलता जाता।।
युग की फुलवारी का भूत                                       भविष्य वर्तमान का ताना बाना आना
जाना आदित्य अर्थ बतलाता जाता।।
ब्रह्मांड के आदि अंत मे
युग काल के आगमन गमन में
प्रातः प्रशांत हृदय से उदय उदित
त्रिभुवन में सूरज काल कर्म
व्यख्याता।।
उदय वात्सल्य चंचल शीतल
कोमल नित धरा के स्वागत
का सृंगार बनाता।।
युवा प्रखर निखर प्रगति
प्रतिष्ठा का परम स्रोत पथ
प्रदर्शक उपलब्धि महिमा का
महत्व पुरुषार्थ का दाता।।
सांध्य अवसान युग को
चंद्र की शीतलता देकर
घड़ी पल प्रहर विश्राम
को जाता आंधेरो की
अनुभूति से युग को
सूरज  चैतन्य चेतना
प्रकाश का एहसास
कराता।।
प्रातः संध्या भुवन भास्कर
आते जाते रक्त लाल सी
किरणों से आत्म बोध की
प्रेरणा जगाता।।
सांध्य अवसान की बेला में
चाँद अमावस से कहता जाता
अक्षुण्ण रखना युग ब्रह्मण्ड को
निद्रा में भय भाव
मत लाना।।
सूरज के मुस्कानों से हर प्रातः
युग ब्रह्मांड निद्रा का त्याग
कर नव जीवन का आद्यपान्त
आनंद की अनुभूति करता
आशीष है पाता।।




सूर्य और संसार

ब्रह्म मुहूर्त की बेला में
मंदिर में घन्टे घड़ियाले
बजते गुरु बानी सबद
कीर्तन गुरुद्वारों में
मस्जिदों में आजाने होती।।
सबकी उम्मीदे चाहत
नई सुबह के आने वाले
सूरज से होती।।
आएगा अपनी किरणों
संग सृष्टि की दृष्टी युग
चेतना नई कर्म क्रांति की
ऊर्जा का वर्तमान भविष्य
लाएगा।।
मर्यादाओं की किलकारी
भावो में कृष्ण कर्म योग
ज्ञान योग जीवन के कुरुक्षेत्र
में प्रभा प्रभाकर लाएगा।।
अहिंशा परमो धर्मह के बुद्ध
महाबीर प्रेम दया क्षमा करूणा
संदेश जीजस का दिवाकर लाएगा।।
लूथर नेल्सन नेता महात्मा
रूपो में चैतन्य चेतना के
परिवर्तन का पाञ्चजन्य
बजाता भुवन भाष्कर
कहलाता।।
किरणों का आदि मध्य अंत
दिवस कहलाता युग सृष्टि
का प्राणी नव चेतन की उर्जा
उत्साह से संचारित हो जाता।।




प्रेम परक कविता – प्रिय छवि

प्रिय छवि 

कवि अपने नैसर्गिक वितान में अपना प्रिय ढूंढता है उसी में कवि की खुशियाँ व काव्य-धारा के शब्द की महक बिखरती हैं। मेरे इसी नैसर्गिक प्रियतम जहाँ ऊपर अम्बर में उड़ते खग, रंग बिरंगे बादल और धरा पर बासंती समीर, रंग बिरंगी गुलशन की महक इन्हीं प्रिय छवि को यह कविता समर्पित है

प्रिय छवि

प्रिय छवि, देखूं चहुँ ओर

जादूगर, वो तो चित चोर।

दिवस भले हो रजनी श्याम

मन उचरे प्रिय का ही नाम।

सोवत जागत नैनन समाए

वही छवि मेरे मन को भाए।

मनस पटल बना प्रिय धाम

प्रिय भजन ही इसका काम।

भूख न लागे, न लागे प्यास

चित्त को है, प्रिय की आस।

ओष्ठ न कुछ भी कहना चाहें

प्रिय नाम की ही धुन  गाहें।

समीर स्पर्श मोहे ऐसे सताए

प्रिय मिलन की चाह जगाए।

देखूँ जब सुमन भ्रमर गुंजार

पाऊँ प्रिय से मिलन संसार।

श्वास श्वास संग जीना संग

मोह हृदय रंगा प्रिय के रंग।

चाँद करे अब ऐसी ठिठौली

तू तो है बस, प्रिय की गौरी।

महक रहा मन महके तन

कहो प्रिय! आओगे कब।

दर्पण में भी प्रिय छवि पाऊँ

देखूँ मैं, प्रिय रूप बन जाऊँ

प्रिय ही जीवन, प्रिय ही सार

मुक्ति  पथ का वही आधार।

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”

प्रवक्ता (हिन्दी)

राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत 

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं –  घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे,  मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ 

उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार