1

नंगे पाँव

आजकल शहरों में लोग 

नंगे पाँव नहीं चलते 

कुछ तो घर में भी 

नंगे पाँव नहीं रहते 

बिस्तर से उठने से लेकर 

खाने की टेबल तक 

पाँव ज़मीन को नहीं छूते 

फ़र्श पर कालीन बिछा होता है तब भी 

पाँव के तले चप्पल ही होती है 

पता नहीं क्या हो गया है कि

नंगे पाँव चलने वाला असभ्य समझा जाने लगा है 

बड़ा अजीब लगता है 

शरीर की नग्नता से प्रसिद्धि मिलने लगी है 

वैचारिक नग्नता बुद्धिमत्ता बन गई है 

व्यवहारिक नग्नता को कुछ लोग ऐटीट्यूड बताते हैं 

लेकिन नंगे पाँव रहनेवाला आदमी 

छोटा बन जाता है …

 

गीता टंडन 

 




एक पागल भिखारी

 

जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने के लिए छोड़ दे ।

क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर।

मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।

जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।
👇
हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।

अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े।
कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।

फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।

उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई :
“उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,
वो बूढा तो पागल है । “

लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।

मैं उनसे बोला : “बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? “

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : “Good afternoon doctor…… I think I may have some eye problem in my right eye …. “

इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं।
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में ।
मैंने कहा : ” मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। “

बुजुर्ग बोले : “Oh, cataract ?
I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital.”

मैंने पूछा : ” बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? “

बुजुर्ग : ” मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ सर” ।

मैं : ” ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। “

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : “पढ़े लिखे ?? “

मैंने कहा : “आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। “

बाबा : ” Oh no doc… Why would I ?… Sorry if I hurt you ! “

मैं : ” हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। “

बुजुर्ग : ” समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? “
अच्छा “ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। “(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।

” Well Doctor, I am Mechanical Engineer….”— बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की— ”
मैं, * कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।
एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? “
“फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। “

मैं चकराया, बोला : ” बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? “

बुजुर्ग : ” मैं…?
किस्मत का शिकार हूँ ….”
” बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। “
ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : ” लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। “

अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : ” लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे ? “

बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : “आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। “

बुजुर्ग : ” Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। “

मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला :
“तो फिर आप यहाँ कैसे ? “

बुजुर्ग : “डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। “
” मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। “

आश्चर्य से मैंने पूछा : ” बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? “

बुजुर्ग : ” डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। “

मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं,
जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।
कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : ” बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? “

बुजुर्ग : ” No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? “

” लेकिन बाबा “— मैं बोला “लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। “
” अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। “

बुजुर्ग : ” No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती । “
” मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। “

मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।

भरे गले से मैंने फिर कहा : “बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? “

बुजुर्ग : ” दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। “

मैं मुस्कुराया और बोला : ” और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? “

बुजुर्ग : ” अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी…. हा….हा… हा….”

बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : ” बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। “

बुजुर्ग : ” No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। “
” OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। “

मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : ” बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। “

अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : ” डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर….”
” आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही….”

ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : “अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे…”

शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।

उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।

*हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में* *जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।*
*हो सकता है इन्हें देख हमें* *हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले….*

हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे…

कहानी से कुछ प्रेरणा मिले तो जीव मात्र पर दया करना ओर परोपकार की भावना बच्चों में जरूर दें।

                       विजय 




उम्मीद

अधमरी सी उम्मीदें कभी सो न सकी इंतज़ार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में

दूर से ही तो चाहा था तुमको
बस पास तुम्हारे ये दिल था
हम नदी के किनारे जैसे थे
मिलना भी हमारा मुश्किल था

राह भी हमारी अलग थी कभी टकराते ना बाजार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में

रोज़ नेह की पाती लिखी तुझे
और रोज़ फाड़ कर फेंकते हैं
बच्चे सा दिल जिद करता है
बड़े यत्न से खुद को रोकते हैं

पहले ही छोड़ दिया होता , दूर तक आये बेकार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में

ख्यालो में ऐसे बसाया तुमको
चाह के भी ना कुछ सोच सके
बांध ली आंखों पर प्रेम की पट्टी
तुम्हारे सिवा ना कुछ देख सके

इतना चाहा जिसको ,वही छोड़ गए मझधार में
बिलख- बिलख कर रोया है मन साथी तेरे प्यार में

विजय नारायण दूबे




और इंतजार

 

यह तेरी आंखों का जादू
कुछ इस तरह कर गया है असर
सिर्फ तेरे सिवा दुनिया में
नहीं आता कुछ नजर

ना जाने किस वजह से
मेरी मोहब्बत को कर रही इनकार
दिल मेरा कर रहा है
बेसब्री से तेरी हां का इंतजार

क्या तू मेरे इश्क को समझी नहीं
या डर है इस जमाने का
आरजू रखता हूं बस इतनी सी
एक मौका तो दे तू मनाने का

किस कदर डूबा हूं तेरे प्यार में
मुश्किल है तेरे लिए मानना
पर मेरी मोहब्बत तो एक इबादत है
जरूरी है तेरे लिए यह जानना

तेरी हां का इंतजार करूंगा मैं
मिट्टी में मिल जाने तक
सच्चा है मेरे इश्क समझ ले तू
मेरे मरने के बाद तुझे होगा फक्र

  1.  



कहो, कौन हो तुम?

कहो तुम कौन हो

प्रकृति ही मेरी संगिनी है, मेरे अह्सास है, मेरी कलम के शब्द हैैं अतः उसी प्रकृति के आँचल में मेरी काव्य धारा प्रवाहित होती है। प्रकृति के अन्यतम नैसर्गिक प्रेम को संबोधित करते हुए ”कहो, तुम कौन हो” कविता प्रस्तुत है –

हृदय मंदिर में बसने वाले
नित क्षण मुझको रचने वाले
कहो, कौन हो तुम?

दीपक जैसे जलने वाले
बन बाती साथ निभाने वाले
कहो,कौन हो तुम।

बादल रूप धर गरजने वाले
बन बरखा मुझे भिगोने वाले
कहो,कौन हो तुम?

बन रजनी जग में सोने वाले
दिवस हुए कर्म करने वाले
कहो,कौन हो तुम?

पुष्प गुच्छ में रहने वाले
सुगंध रूप मन हरने वाले
कहो,कौन हो तुम?

तारागण से जगने वाले
चंद्र बन नित घटने वाले
कहो,कौन हो तुम?

नदी रूप में बहने वाले
जग की प्यास बुझाने वाले
कहो,कौन हो तुम?

शिशु उमंग भर देने वाले
स्पर्श मधु से उड़ने वाले
कहो,कौन हो तुम?

पक्षीगण से कलरव करते
पंख पसार नभ छूने वाले
कहो,कौन हो तुम?

बन हवा बसंती नृत्य करने वाले
कण कण में बसने वाले
कहो,कौन हो तुम?

फसलों संग लहराने वाले
मिट्टी से प्राण जुड़ाने वाले
कहो,कौन हो तुम?

हृदय मंदिर में बसने वाले
नित क्षण मुझको रचने वाले
कहो, कौन हो तुम……

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार 




नन्ही सी जान

 

नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई
सपनों के देश में जहां बसे परि रानी
चाँद तारों संग खेले छुपन छुपाई
अपनी ही मस्ती में रहे गुड़िया रानी
जादुई हँसी से अपनी करे दुनिया दीवानी
नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई
माँ का आँचल पकड़ झूमें घर आँगन
पापा का हाथ पकड़ दौड़े बिटियां रानी
घर की रौनक है राजदुलारी
नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई

 

 




अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता वर्तमान की खुशहाल बेटी भविष्य की सक्षम नारी

बेटी की किलकारी
मन आँगन घर आँगन की
खुशियों का प्यार परिवार।।
पढ़ती बेटी बढ़ती बेटी
उम्मीदों की नारी का आशीर्वाद
संसार।।
कली किसलय फूल
गुलशन की चमन बाहर
खुशी खास खासियत खुशबू
मुस्कान।।
बेटी आवारा भौरों के
पुरुष प्रधान समाज मे
जोखिम खतरों से अंजान।।
युवा नही उमंग नहीं कायर होते जो
करते नही बेटी बहनों का
मान सम्मान मर्द महान के
मान मर्दक दर्द दंश अभिशाप।।
जिस घर मे मिलता प्यार परवरिश
भाई बेटों का बहनों को लाड दुलार
घर मंदिर सा घर मे देवो का वास।।
बेटा बेटी एक समान
गली मोहल्ला सड़क चौराहा हो
सफर हवाई जहाज सड़क रेल का
या हो मेला हाट पल पल काल
खंड की गति बेटी नारी औरत
महिला मां बहन का गर होता
सत्कार हर सूर्योदय नया उमंग
चाहत की खुशियो की चाँद
चॉदनी उल्लास।।
बेटी कर्म कोख की महिमा
मर्यादा मर्म धर्म का भान।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




कर्म बोध की कन्या नारी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

कर्म बोध की कन्या
दुष्ट दमन की दुर्गा
ब्रह्म ब्रह्मांड।।
कर्म धर्म की संस्कृति
युग समाज राष्ट्र विश्व
समाज की संस्कृति
संस्कार सत्यार्थ प्रकाश।।
भाग्य भविष्य की प्रेरणा
नैतिक नैतिकता रिश्तों का
आधार।।
पुषार्थ प्रेरणा की गहना बहना
उत्कर्ष उत्थान की सम्मान।।
नारी अबला कमजोर नहीं
युग विश्व समाज राष्ट्र की
प्रेरणा प्रतिष्ठा जीवन मूल्यों की
गौरव महिमा मशाल।।
शांत शौम्य काल काली
अमृत विष मान आरजू अरमान।।
योग्य योग्यतम नारी
सभ्य समाज की आधार।।
अपमान नही तिरस्कार नही
अस्तित्व इज़्ज़त मानव
मानवता का अंगीकार।।
शिक्षित सशक्त नारी
दृष्टि दिशा सृष्टि की नारी
मानव मानवता विश्व समाज में
वर्तमान शानदार रचती स्वर्णिम
इतिहास।।    

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता नारी और मर्यादा

मर्यादाओं महत्व का
करना है समाज विश्व
राष्ट्र निर्माण।।
साहस शक्ति की नारी
विश्व समाज राष्ट्र का
अभिमान।।
बेटी हो नाजों की
खुले पंख अंदाज़ों की
समाज विश्व राष्ट्र चेतना की
जागृती जांबाज़ इरादों की
नाज़।।
जननी है शौर्य पराक्रम की
तारणी धारणी सद्भावों का
प्रभा प्रवाह।।
निर्मल निर्झर गंगा की
धारा धन्य धरा का
साम्राज्य।।
क्रांति कीर्ति की हाला बाला
मधुशाला ज्वाला क्षमा करूणा की
सागर क्रोध रौद्र रुद्रांश।।




लोक दर्शन की अवधारणा

हिन्दी ललित निबंध मे लोक दर्शन