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नरसिंह यादव की कविता – ‘रेप की सजा फांसी’

लहरों को देखा आज यूं ही लहराते हुए,
हवाओं को भी देखा गुलछर्रे उड़ाते हुए,
बादल घूम रहा अकेले इधर उधर आज,
मिट्टी में मिली खुद जीवन सभालते हुए।

खूब घोट लो सत्य का गला घोंटने वाले,
किसी बात पे अपनी बात जोतने वाले,
क्या हो रहा आज छुपकर कहा सो रहे,
कहां खोए समाधि पे फुल चढ़ाने वाले।

अहिंसा के पुजारी दांत दिखाते हुए,
अपने ही कामों को मुंह चिढ़ाते हुए,
बोल रहे बढ़ चढ़ के उन्हीं के हत्यारे,
फिर आ जाओ हमें ये सिखाते हुए,

जिंदा हैं बहू बेटियों को यूं डराते हुए,
घूम रहे इज्जत को तार तार करते हुए,
भूल गए वहीं आज नारा लगाया जो,
जी रहे सरकार का मौज उड़ाते हुए।

आ गया वहीं दो अक्टूबर फिर आज,
आए दो फुल चढ़ा वो समाधि पे आज,
पूरा करके दिखा दिया सरकारी कोरम,
मिले जो सच को सच से ही छुपाते हुए।

सब मौन हैं पर कह रहे मिलकर आपसे,
सुना जो नहीं वहीं गुजर गया जो पास से,
बने एक विधान नियम हो जाए फांसी जो,
वो भूल जाए बाला का रेप करना आज से।




मनोरंजन तिवारी की कहानी – ‘एहसास’

एक रात जब मैं घर पहुँचा  तो मेरी पत्नी ने मेरे लिए खाना परोसा।  मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा कि मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। वह बैठ गई और चुप-चाप खाना खाने लगी। लेकिन मुझे उसके चेहरे पर दर्द की  झलक दिखी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उससे कैसे कहूँ की मुझे उससे तलाक चाहिए। लेकिन मुझे तो कहना ही था।  मैंने ठंडे दिमाग से बात शुरू की और अपनी इच्छा बता दी।  उसके चेहरे पर कोई नाराज़गी के भाव तो नहीं आए, मगर उसने वैसे ही शांतचित रहते हुए पूछा क्यों?

मैंने उसके प्रश्न को कोई तवज्जो नहीं दिया।  इस पर वह भड़क उठी और वहाँ पड़े बर्तन को उठा कर मेरी तरफ दे मारा,और बड़बड़ाते हुए बोली ” तुम मर्द नहीं हो”। 

फिर उस रात हम दोनों में कोई बात नहीं हुई।  वह बिस्तर पर पड़ी रोती रही।  मैं जानता था कि वह जानना चाहती थी की आखिर हुआ क्या है, मगर मैं कोई सही कारण बता सकने में असमर्थ था।  वास्तव में कारण यह था कि  मैं किसी और स्त्री से प्रेम करने लगा था और मेरे दिल में मेरी पत्नी के लिए कोई जगह नहीं बची थी। मैं सिर्फ उसे बेवकूफ़ बना रहा था और हाँ उसके साथ धोखा भी कर रहा था।

अगले दिन अपराधबोध महसूस करते हुए भी मैंने तलाक के कागज़ात तैयार करवा दिए जिसमें मैंने अपनी पत्नी को एक घर, एक कार और अपनी  कंपनी में 30 %  की हिस्सेदारी देने की बात थी, मगर जब मैंने तलाक के वो कागज़ात को अपनी पत्नी को दिए तो उसने वो कागजात फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए और फिर बिल्कुल अजनबी की तरह खड़ी  रोती रही। 

मैं जानता था कि उसने मुझे अपने दस साल दिए थे। अपना समय, सम्पदा और ऊर्जा सब कुछ दिया, मगर उसके इस बर्बाद हुए समय को तो मैं लौटा नहीं सकता था। मैं अपनी महिला मित्र से बहुत गहरा प्रेम करने लगा था और  मैं जनता था कि उसके आँसू एक तरह से मुझे आज़ाद कर रहे थे उन उलझनों से जिनमें मैं पिछले कई सप्ताह से उलझा हुआ था। उसके आँसुओं ने हमारे तलाक के बारे में मेरे विचार को और अधिक स्पष्ट एवं और अधिक मजबूत कर दिया था।

अगली रात को मैं बहुत देर से घर आया। बहुत थके होने के कारण सीधे बिस्तर में चला गया।  मैंने देखा कि मेरी पत्नी टेबल पर बैठी कुछ लिख रही है।  मगर मैंने उसकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया और सो गया।

काफ़ी रात गुजरने के बाद मेरी नींद खुली तो देखा वह तब भी टेबल पर बैठी लिख रही है। मैंने करवट बदलकर अपना चेहरा दूसरी तरफ किया फिर से सो गया।

अगली सुबह वह तलाक के लिए अपनी शर्तों के साथ मेरे सामने प्रस्तुत हुई। उसने उसमें लिखा था कि उसे मुझसे कुछ भी नहीं चाहिए। सिर्फ एक महीने का नोटिस चाहिए। और इस एक महीने में हम दोनों बिल्कुल सामान्य बने रहने की कोशिश करेंगे। 

ऐसा करने के पीछे कारण यह था कि हमारे बेटे की परीक्षा अगले एक महीने में संपन्न होने वाली थी और वह नहीं चाहती थी कि हमारे टूटते हुए या ये कहें कि टूटे हुए रिश्ते का कोई असर हमारे बेटे पर हो। यह तो बहुत अच्छी बात थी। मैंने उसकी  उस शर्त को  स्वीकार कर लिया।

तलाक के लिए उसकी कुछ और भी शर्ते थीं। उनमें से एक था कि जिस तरह मैं  उसे शादी के दिन अपने बाँहों में लिए हुए बाहर से अंदर और फिर बेड रूम में ले गया था, ठीक उसी तरह अगले एक महीने तक मुझे उसे वैसे ही बाँहों में लेकर अंदर बेड रूम से बाहर बैठक तक और फिर घर के बहार तक छोड़ना था। ये शर्त सुन कर पहले तो मुझे लगा की यह पागल हो गई है मगर किसी तरह एक महीना तक मैनेज करने के लिए मैं राज़ी हो ही गया।

जब मैंने तलाक के लिए अपनी पत्नी की शर्तों को अपनी महिला मित्र को बताया तो वह ठहाका लगा कर हँसने लगी, और बोली कि वह अब कुछ भी जतन कर ले लेकिन उसका तलाक तो अब होकर ही रहेगा।

मेरा अपनी पत्नी के साथ काफी अर्से से कोई शारीरिक संपर्क नहीं था।  अगली सुबह जब शर्त के अनुसार मैं उसे अपनी बाँहों में लेकर बाहर गया तो हम दोनों को बहुत संकोच हुआ। मेरा बेटा, हमारे पीछे से खड़ा होकर हँसता हुआ ताली बजा रहा था ये सोच कर कि उसके पापा उसकी माँ को बाँहों में लेकर चल रहे हैं। ये सोच कर मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। मेरी पत्नी ने बहुत प्यार से मुझे कहा कि हमारे टूटे हुए रिश्ते के बारे में मैं अपने बेटे को कभी भी न  बताऊँ। मैंने उसे दरवाज़े के बाहर छोड़ दिया। वहाँ से वह अपने ऑफिस चली गई और मैं अपनी गाड़ी लेकर अपने ऑफिस चला गया।

दूसरे दिन जब मैं अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर बाहर जाने लगा तो मुझे उसके ब्लाउज से खुशबू आई और मुझे महसूस हुआ कि एक लम्बे समय से मैं उस पर ध्यान ही नहीं दे रहा था।  वह अब जवान नहीं रह गई थी। कुछ झुर्रियों जैसे निशान और सफ़ेद बाल दिखने लगे थे उसके।  उसने जो अपने दस साल मुझे दिए, उसके लिए मुझे दुःख हो रहा था।

चौथे दिन मुझे महसूस हुआ कि हमारे बीच अपनापन और नजदीकियाँ वापस आने लगी हैं  लेकिन मैंने कुछ भी नहीं कहा और उसे दरवाजे के बाहर छोड़ कर ऑफिस के लिए निकल गया।

इसी तरह हर रोज-रोज यह क्रिया हम करते-करते मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वह दिन-प्रतिदिन कमजोर और हल्की होते जा रही है वहीं दूसरी ओर इस लगातार व्यायाम से मैं ताकतवर होता  जा रहा था।

एक सुबह मेरी पत्नी ने पहनने के लिए ड्रेस चुनने को कहा।  वह एक-एक करके हर ड्रेस को पहन कर देखती जा रही थी मगर उसके कमज़ोर और दुबली-पतली होने के कारण उसी के ड्रेस उस पर फिट नहीं हो रहे थे।  मैं यह सोच कर बहुत व्यथित हुआ कि मेरी पत्नी ने अपने दर्द और तकलीफों को इस तरह अपने अंदर छुपा लिया है कि  इसका असर उसके सेहत पर हो रहा है, वह हर रोज दुबली और हल्की होते जा रही है, तभी तो मैं उसे आसानी से उठा पाता हूँ। तभी मेरा बेटा आकर बोला ” पापा, मम्मी को बाँहों में उठा कर बाहर छोड़ने का समय हो गया।मेरी पत्नी ने बेटे के तरफ प्यार से देखा और अपने पास बुला कर अपने बाँहों में ले लिया। मैंने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया, क्योंकि मुझे महसूस हुआ की इस क्षण मैं इतना कमज़ोर हो रहा था की, शायद अपना फ़ैसला बदल देता।

आख़री दिन जब मैं, अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर चला तो मेरे पैर ही नहीं उठ रहे थे, मुझे उस दिन उसका इतना हल्का होना,मुझे इस कदर दुःखी कर दिया की मेरे आँसू बहने लगे, मैंने उसे और जोर से अपनी बाँहों में पकड़ते हुए सिर्फ इतना कहा ” मुझे अब समझ आ रहा है की, हमारे रिश्ते में नजदीकी (intimasy ) की बहुत कमी हो गई थी, फिर मैंने उसे दरवाज़े के बाहर छोड़ कर तेज़ी से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया, मैं बहुत तेज़ जा रहा था, ऐसा लग रहा था की कहीं देर न हो जाए।

मैं लगभग दौड़ते हुए अपनी महिला मित्र के घर गया और जाते ही कहा, मुझे माफ़ कर दो, मैं अपनी पत्नी से तलाक नहीं ले सकता। मेरी महिला मित्र ने थोड़ा चिंतित होकर मेरे ललाट पर हाथ रखते हुए बोली ” तुम्हे बुख़ार तो नहीं न आ रहा? क्या तुम ठीक हो?

मगर मैंने उसके हाथ को दूर हटा कर कहा, हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ अब, लेकिन मैं अपनी पत्नी से तलाक नहीं लेना चाहता, और ये मेरा फ़ैसला है, क्योंकि मुझे अब समझ में आ गया है की,मैं अपनी पत्नी से इसलिए तलाक नहीं रहा था, क्योंकि मैं उससे प्यार नहीं करता, बल्कि इसलिए तलाक ले रहा था, क्योंकि हम दोनों ने एक-दूसरे के बारे में छोटी-छोटी बातों को देखना भूल गए थे, मैं अभी भी अपनी पत्नी से ही प्यार करता हूँ, तुमसे सिर्फ मेरा शारीरिक आकर्षण है, जो प्यार जैसा लग रहा है। यह सुन कर मेरी महिला मित्र ने मुझे एक जोर का थप्पड़ मारा और रोते हुए मुझे बाहर निकाल कर मेरे मुँह पर धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर दिया।

मैं दौड़ते हुए फूल और बुके की दुकान पर गया और अपनी पत्नी के लिए खूबसूरत फूलों का एक बुके बनाने को कहा। वहाँ खड़ी सेल्स गर्ल ने पुछा की इस पर क्या लिखना है सर? तो मैंने अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए लिखा ” मैं तुम्हे हर सुबह इसी तरह बाँहों में लेकर बाहर छोडूगा जब तक की मौत हम दोनों को अलग ना कर दे”

उस सायं को जब मैं घर पहुँचा तो हाथों में फूलों के ग़ुलदश्ता लिए, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए दौड़ते हुए सीढ़ियाँ चढ़ कर बेडरूम में गया तो देखा, मेरी पत्नी वहाँ मरी पड़ी है। मेरी पत्नी को कैंसर आखरी स्टेज पर था, और मैं अपनी महिला मित्र के साथ इसकदर मौज़-मस्ती में उलझा रहा की, अपनी पत्नी के ख़राब होते सेहत पर ध्यान भी ना दे सका। मेरी पत्नी जानती थी की, वह सिर्फ कुछ दिनों तक जीवित रहने वाली है है, इसी लिए उसने मेरे साथ तलाक का इस तरह का शर्त रखा था, जिससे हमारे बेटे को लगे की हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है। वह चाहती थी की उसके मौत के बाद मेरा बेटा एक अच्छा पति और पिता के रूप में जाने ना की कोई नकारात्मक बात उसके मन में आए।

हमारे जीवन में धन-सम्पति, कार , बंगला ये सब जीवन को आसान तो बना देते है, मगर एक खुशहाल जीवन नहीं बना सकते, खुशहाल जीवन के लिए हम सबको एक-दूसरे की छोटी-छोटी बातों, छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखना चाहिए।




आत्मविश्वास

घनघोर बरसातों के बाद तृप्त धरा ही,

मनोहर हरियाली की चादर चढती है,

चिलचिलाती धूप से खलिहान में रखी,

फसल ही लोगों  की थाल परोसती है,

युगों से लिखा इतिहास दिलाता हर

अहसास पनपते घटना परिणामों पर,

जीत हमेशा होगी हर भीषण संघर्षों में, 

अडिग बना रहे, हाॅ विश्वास है खुद पर।1।

हर घुप अंधेरी रात के बाद झुटपुटे भोर के

दिवस का उल्लास लिए आगाज होता है,

शान्त खडे पेडो में बैठे परिंदों के घोसले में, 

हर नये उन्मुक्त जीवन का अंदाज होता है।

हर वनवास बदा होता,अधर्म के नाश पर,

अडिग बना रहे हाँ विश्वास खुद पर ।2।

वह सीधी लहर होती जो पर्वत से टकराती, 

और निरन्तर टकराकर उसे चूर चूर कर जाती,

हर निद्रा में ही होता नव रक्त शक्ति संचार 

महामना बनाकर देता नवयुग का निर्माण 

बिजली बनती है सदैव जल के अवरूद्ध पर,

अडिग बना रहे,हाँ विश्वास खुद पर ।3।

वर्तमान के संकट ने जरूर बडा कहर बरपाया है,

अपने अडिग विश्वास से ही इसे जरा रोक पाया है

अब बुद्धि जागरूकता धैर्य का लेना संज्ञान, 

जाति भेद और अज्ञानता का करना है वलिदान,

नया सवेरा आयेगा,खुद अपने अंदाज पर 

अडिग बना रहे, हाॅ मुझे विश्वास खुद पर ।4।

 

 




नववर्ष २०२१ अभिनंदन

🌺नव वर्ष २०२१अभिनंदन🌺

नव वर्ष हम करते अभिनंदन तुम्हारा हैं,
नव चेतना व आशा में झूमे जग सारा है,
प्रगति पथ पर सतत् आगे बढ़ते रहे हम,
चेहरों पे मुस्कान हो ये उद्येशय हमारा है,
नववर्ष हम ……

कोई छोटा नही ,न कोई अहंकार में तना हो,
दीन -हीन की रक्षा में जन गण मन जुटा हो,
खुशियों की चादर फैला हम सब साथ बैठे,
हम दे मान सबको ,हर दिल में प्यार भरा हो,
नव वर्ष हम …..

माँ सरस्वती,लेखनी के हम सब आराधक हैं,
हाथों से लिखते हम दुनिया की नई इबारत हैं,
मन के भावों को गंगाजल सा पावन रखकर,
जग को देनी नई दिशा,नव प्रवाह की धारा है,
नववर्ष हम ……

खूब रचा रचियेता ने जग का ये तो विधान है,
इसके वेग-आवेग में बहते हम लहर समान है,
ऊचाई तक जाने के बाद , आना फिर धरातल,
गढ़ नूतन सोपान,समय भी कब कहाँ ठहरा है,
नववर्ष हम ……

  • मनीषा सुमन
    स्वरचित

 




देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता कविता: आजादी की सुबह

आजादी की पहली सुबह
नवोन्मेष से पुर्ण थी
मुक्त हुई थी भारत भुमि
जंजीरें तोड़ गुलामी की
नव सपनें लेकर के आयी
आजादी की सुबह सुहानी
पर उससे पहले लिखी
विभाजन की कहानी
नवभारत के निर्माण को लेकर
आशाओं का नवसंचार हुआ
देखे थे जो सपने
वीरों ने आजादी के
आजादी की नव सुबह पर
वो सपने साकार हुए
नवभारत उल्लास नया
नयी सोच लेकर आयी
आजादी की नयी सुबह
मिलकर के आगे बढ़ना था
भारत को आगे ले जाने को
स्वप्न जो देखा था वीरों ने
वक्त था पूरा करने का
आसमान में गर्व से अपना
लहरा रहा था तिरंगा
वो भारत जो चाहा था
नहीं हम बना पाये
अफसोस यही है आज भी
वीरों का कर्ज न चुका पाये
एक बार फिर से अब ठानो
नवभारत का निर्माण करें
भ्रष्टाचार और दुराचार को
भारत से मिल बाहर करें
आजादी की पहली सुबह पर
सपना जो देखा था सबने
आओ एक बार फिर मिलकर
हम उसको साकार करें

नाम- धीरज कुमार शुक्ला “दर्श”

पद- जिलाध्यक्ष, झालावाड़ स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया, राजस्थान

पता- ग्राम व पोस्ट पिपलाज, तह. खानपुर ,जिला झालावाड़, राजस्थान, (326038) भारत

मोबाइल अंक/वाट्सएप अंक- 7688823730

Email- [email protected]




भारत को नए साल में नए सिद्धांत और क्षमता की आवश्यकता है।

(चीन एक बढ़ती और आक्रामक महाशक्ति भारत के लिए बड़ा रणनीतिक खतरा है और पाकिस्तान के साथ चीन के कंटेनर भारत की रणनीति के लिए खतरा है। इसे देखते हुए, भारत के लिए दो-मोर्चे के खतरे के लिए तैयार रहना समझदारी होगी। )

वर्ष 2020 तक चल रहे कोरोनावायरस महामारी के कारण कई मोर्चों पर एक चुनौतीपूर्ण रहा है।  महामारी के बावजूद, कई महत्वपूर्ण शिखर आयोजित किए गए, इन शिखर सम्मेलनों में, भारत ने समस्या के संभावित समाधानों पर चर्चा करने में अग्रणी भूमिका निभाई। न केवल महामारी के मोर्चे पर, बल्कि चीन ने भारत के लिए और यहां तक कि हिंद महासागर में कई चुनौतियों का सामना किया।  भारत ने  खड़े होकर कुछ साहसिक कदम उठाए। नई दिल्ली को कई समान विचारधारा वाले देशों ने चीन से दूर जाने की कोशिश में शामिल किया। क्वाड को मजबूत किया गया है और ऑस्ट्रेलिया मालाबार अभ्यास में शामिल हुआ। और भी बहुत कुछ था जो वर्ष के साथ-साथ प्रसारित हुआ।

महामारी के कारण भारत ने आत्मानिर्भर होने में ध्यान केंद्रित किया है। जैसे-आरसीईपी से बाहर चलना और सरकार द्वारा घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने की कोशिश। हम कई वर्षों के बाद चीन के साथ ब्रेकिंग तक पहुंच गए हैं। वर्तमान ध्यान आर्थिक पतन और चीन की आक्रामकता का सामना करने पर है। भारतीय सेना ने चीन को “हम आपका सामना करने के लिए तैयार हैं”  का जज्जबा दिखाते हुए लद्दाख में ऊंचाइयों पर रणनीतिक पदों पर कब्जा कर लिया है।
मेडिकल डिप्लोमेसी से वैक्सीन का उत्पादन, दवाओं की आपूर्ति, पीपीई किट और वेंटिलेटर द्वारा भारत की विदेश नीति के लिए नया अतिरिक्त फायदा हुआ है। चीन से ध्यान हटाने के लिए, स्थायी, लचीला और भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखलाओं से हमारे सहयोगी देशों से सम्बन्ध स्थापित किया जा रहा है। पाकिस्तान ने गैर-राज्य अभिनेताओं का उपयोग करके छद्म युद्ध छेड़ने के लिए भारत के खिलाफ अपनी विदेश नीति की आधारशिला के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल किया है। हमने पाक के अंदर आतंकी लॉन्च पैड्स का जवाब दिया है। अब भारत को लगातार चीन और पाक के द्वंद्व से निपटने की जरूरत है। भारत ने हमारी वैश्विक भूमिका को रेखांकित करने के लिए ब्रिक्स, सार्क, आसियान, एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों का उपयोग किया है।  भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का मुकाबला करने के लिए क्वाड एक मजबूत निकाय के रूप में उभरा है।

पिछली शताब्दी के दौरान, भारतीय रणनीतिक सोच पाकिस्तान और वहां से निकलने वाले सुरक्षा विचारों पर अत्यधिक केंद्रित थी। हालांकि, हाल के दशकों में भारत की सैन्य समझदारी इस दृष्टिकोण पर दृढ़ है कि चीन-पाकिस्तान सैन्य खतरा एक वास्तविक संभावना है। मई 2020 में लद्दाख में चीनी घुसपैठ और बातचीत में गतिरोध ने अब चीनी सैन्य खतरे को और अधिक स्पष्ट और वास्तविक बना दिया है। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया था कि पूर्वी लद्दाख में चीन की तैनाती से मेल खाते हुए पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान में 20,000 सैनिकों को स्थानांतरित कर दिया था। इसे देखते हुए, भारत के लिए दो-मोर्चे के खतरे के लिए तैयार रहना समझदारी होगी। चीन-पाकिस्तान सैन्य संपर्क बढ़ रहा है चीन-पाकिस्तान संबंध कोई नई बात नहीं है, लेकिन इसके पहले से कहीं अधिक गंभीर प्रभाव आज भी हैं। चीन ने हमेशा पाकिस्तान को दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव के लिए एक काउंटर के रूप में देखा है। चीन अपनी चेकबुक कूटनीति के माध्यम से, दक्षिण-एशियाई पड़ोसियों पर इस आधिपत्य का प्रयोग करना चाहता है। इस खोज में, चीन सीमा टकराव पर भारत के आर्थिक संसाधनों को खत्म करना चाहेगा। इस प्रकार चीन द्वारा अपने पड़ोस में भारत की भूमिका को कम करने के लिए एक रणनीति हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों में, चीन और पाकिस्तान देशों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं और उनकी रणनीतिक सोच में बहुत बड़ा तालमेल है। इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के माध्यम से पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। इसके अलावा, सैन्य सहयोग बढ़ रहा है, चीन के साथ 2015-2019 के बीच पाकिस्तान के कुल हथियारों के आयात का 73% हिस्सा है।

ऐसे में भारत को सुरक्षा सिद्धांत  विकसित करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व के साथ घनिष्ठ संपर्क की आवश्यकता होगी। हमारा ध्यान  विमान, जहाज और टैंक जैसे प्रमुख प्लेटफार्मों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित है और भविष्य की तकनीकों जैसे कि रोबोटिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध आदि पर पर्याप्त नहीं है। हमें चीन और पाकिस्तान की युद्ध-लड़ने की रणनीतियों के विस्तृत आकलन के आधार पर सही संतुलन बनाना होगा। दक्षिण एशियाई पड़ोसियों में संबंधों में सुधार: भारत के साथ शुरू करने के लिए, अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अच्छा काम करेगा, ताकि चीन और पाकिस्तान इस क्षेत्र में भारत को शामिल करने और विवश करने का प्रयास न करें। ईरान सहित पश्चिम एशिया में प्रमुख शक्तियों की सरकार की वर्तमान व्यस्तता को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो, समुद्री सहयोग बढ़े और विस्तारित पड़ोस में सद्भावना बढ़े। रूस के साथ संबंध में सुधार सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों के पक्ष में रूस के साथ अपने संबंधों का बलिदान नहीं हो, ताकि रूस भारत के खिलाफ एक क्षेत्रीय गिरोह की गंभीरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। कश्मीर के लिए एक राजनीतिक आउटरीच पीड़ित नागरिकों को शांत करने के उद्देश्य से उस छोर की ओर एक लंबा रास्ता तय करने की योजना पर काम करना होगा।

हमें विश्व व्यवस्था में सुधार वाले बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक संस्थानों में एक सोच वाले देशों की तरह संलग्न रहते हुए पाक और चीन से लड़ने की जरूरत है। भारत ने अपनी चिकित्सा कूटनीति द्वारा दुनिया के लिए अपनी परोपकारिता दिखाई है। इसके अलावा, चीन, भारत और प्रशांत क्षेत्र के साथ शांतिपूर्ण सीमाओं को बनाए रखने के लिए चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए भारत औस, जापान और यूएसए जैसे बड़े देशों के करीब आया है। चीन एक बढ़ती और आक्रामक महाशक्ति भारत के लिए बड़ा रणनीतिक खतरा है और पाकिस्तान के साथ चीन के कंटेनर भारत की रणनीति के लिए खतरा है।  इस संदर्भ में, यह निश्चित है कि युद्ध के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और इसलिए हमें इस आकस्मिकता से निपटने के लिए सिद्धांत और क्षमता दोनों विकसित करने की आवश्यकता है।

(मो.) 01255-281381 (वार्ता)
(मो.) 94665-26148 (वार्ता+वाट्स एप)




कम से कम प्रकृति से सीखें और शपथ लें

      जिस विश्व व ब्रम्हाण्ड के अन्तर्गत हमारा अस्तित्व विद्यमान है ,उसके संरचना, उसमें सतत् परिवर्तनव गति पर यदि अपना ध्यान केन्द्रित करें तो उसमें एक नियम या सिद्धान्त महसूस होता है ,जैसे कि हमारी धरती समयानुसार एक निश्चित रफतार से निर्धारित पथ पर अनादिकाल से निरन्तर गति कर रही है और धारणा है कि अनन्त काल तक करती रहेगी ।

    प्रकृति प्रदत्त हमारे शरीर के सभी अंग कुछ मर्यादा /नियम/सिद्धान्त पर अपना कार्य सम्पादित करते हैं । हालांकि ये सार्वभौमिक नियम इतने गूढ और महीन होते हैं कि प्रकृति पर सारा विज्ञान जगत निरन्तर अध्ययन और खोज के बावजूद अभी तक अधूरे बने हुए हैं ।हमारा जगननियंता इतना विलक्षण तकनीशियन है कि उसकी हर कारगुजारियों का सटीक विश्लेषण किसी के वश का नहीं ।

     इस विश्व से हमारा मानव समाज और उसके साथ पर्यावरण जुडा हुआ है ।हमारा,अपने समाज  से और समाज का हमसे क्रिया प्रतिक्रिया करता रहता है।इस क्रम में मर्यादा है,वर्जना है जो समस्त मानव जगत के लिए अत्यंत सोचने का विषय है।इसकी अनदेखी या उपेक्षा, निश्चित रूप से विकार का प्रसार और अन्त में आत्माहन का कारण बनता है। यह दुख की बात है कि हम अपनी भोगवादी प्रवृत्ति के कारण मनमाना कार्य करते है यहाँ तक कि सारी वर्जनाओं नियमों, मर्यादाओं और सिद्धांतो का उल्लंघन या उपेक्षा करते है, प्रकृति इस बात पर समय समय पर चेतावनी भी देता रहा है । वर्तमान परिस्थिति के परिप्रेक्ष्य पर यदि ध्यान दें तो ,यह भी सार्वभौमिक सिद्धांतो के गम्भीर उल्लंघन का परिणाम है। अब भी समय है,सुधरने का, आत्म मंथन का। कम से कम अपने अस्तित्व को बचाने खातिर शपथ तो लें ।




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता- शक्ति स्वरूपा नारी

पुरुषों से समानता की चाह में, 

नारी महानता क्यों भूल रही? 

आधुनिकता की होड़ में, 

अपनी मर्यादाएँ क्यों तोड़ रही? 

प्रभु ने जन्मजात पृथक् गुण दिए, 

फिर कैसे मानूं कि भेद नहीं! 

गुणों में अग्रणी सन्नारी  , 

वेदों में भी मतभेद नहीं |

नारी तो स्वयं शक्तिस्वरूपा, 

किसी दृष्टि से अबला नहीं |

सुसंस्कारों को विस्मृत करने में, 

किसी दृष्टि से उसका भला नहीं |

समानता की मृगमरीचिका में, 

शक्ति का ह्रास कर रहीं |

प्रेम के प्रति पूर्ण समर्पण में, 

दासता का आभास कर रहीं |

न्याय-अन्याय के धरातल पर, 

लिंग का सर्वथा कोई भेद नहीं |

नारी पर हुए अत्याचार पर, 

नारी भी सम्मिलित मात्र पुरुष नहीं |

अन्याय के पूर्ण विरोध के लिए, 

आत्मशक्ति संग्रह आवश्यक, पौरुष नहीं|

कोमल देहयष्टि सहायक सृष्टि में, 

संप्रभुता हेतु आवश्यक मति, देह नहीं|

 – डॉ. उपासना पाण्डेय

 




चंद्र मोहन किस्कू  की कविता – ‘शायद तुम्हारे लिए आनंद हैं’

 
स्ताह भर से
भूखे पेट हूँ
पेट की गड्ढे में
आग जल रहा है
धू-धू कर
हुंह और बर्दास्त नहीं हो रहा है
सर के ऊपर तक
आग की लपटें उठ रहा है .
पेट की गड्ढे को भरने
जलती आग को
बुझाने के लिए
तुमसे कितना प्रार्थना किया
एक मुट्ठी भोजन के लिए
बार -बार गया तुम्हारे पास
पर तुम
बचा हुआ भोजन को
अधखाया और जूठन को
मुझे देने में
तुम्हे नागवार लगा
गन्दी नाली में बहा दिया
कच्ची दूध को
पत्थर की देवता की माथे पर
डाल दिया
मीठी -मीठी पकवाने
देवताओं को सौंप दिया
शायद मन में विचार किया
मैं तुम्हारे बराबर का नहीं हूँ
दो पैरवाला जानवर हूँ
इसलिए मेरा भूख से मुरझाना
भूख से मर जाना
तुम्हे आनंद दे रही है .




गजेंद्र कुमावत ‘मारोठिया’ की लघु कथा – जिम्मेदार कौन?

लॉकडाउन होने के कुछ दिन पहले की बात है, मैं दुकान पर ग्राहकों में व्यस्त था तब एक मधुर ध्वनि सुनाई दी | मैंने सोनू से कहा बाहर देख कौन इतना मधुर गीत बजा रहा है | कहते ही सोनू दुकान से बाहर निकला और बाहर से ही बोला, “खेल दिखा रहे है भाईसाहब” और यह कहते हुए दुकान में वापस आ गया)

मैं ग्राहक को सामान दे रहा था तब मेरा मन उस मधुर ध्वनि की ओर आकर्षित हो रहा था, जैसे ही मैं फ्री हुआ मैं दुकान से बाहर आया और जो दृश्य देखा मन द्रवित हो गया | एक 5-6 वर्ष की लड़की जो सड़क किनारे दो बाँसों पर बँधी एक रस्सी पर हाथ में लकड़ी का डंडा लिए हुए करतब दिखा रही है | कभी साईकिल की रिंग को रस्सी पर चलाती है तो कभी सिर पर मटकी रखकर रस्सी पर चलती है | और भी खतरनाक करतब दिखाती है | और उसके साथ उसका पिता जो की हाथ से बनाया हुआ स्वर यन्त्र बजा रहा था और लोगों का मनोरंजन करने का पूरा प्रयत्न कर रहे थे | लोगों की अच्छी-खासी भीड़ भी जमा हो गयी थी | जिसे देख लड़की का पिता भी निश्चिंत हो गया था कि एक -दो दिन के खाने का इंतजाम तो हो जायेगा |

लेकिन मेरा मन तो कुछ और ही गहरी सोच में डूब रहा था | पांच साल की यह प्यारी सी लड़की जिसकी खेलने-कूदने और मनोरंजन देखने की है, वो ही लोगों का मनोरंजन कर रही है वो भी जान पर खेलकर | दिखने में परी सी गुड़िया, आँखों में तेज पर विवशता, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए और मन में ढ़ेर सारा बोझ लिए जिसे वो जानती भी नहीं है, सबका मनोरंजन कर रही है और और अपने और परिवार की जिम्मेदारी को निभा रही है |

यह सब देख मन में उसके लिए अनेक भाव उठ रहे थे, मन भाव-विभोर हो गया | एक तरफ तो उस लड़की के जीवन मन द्रवित हो रहा था और दूसरी ओर उनके पिता पर क्रोध करने का मन हो रहा था |पढ़ने -लिखने और खेलने की उम्र में उससे ऐसे खतरनाक करतब करवा रहा है,अगर उस लड़की को शिक्षा मिले तथा साथ ही उसकी रूचि के अनुसार उसका सहयोग करें तो वह अपने परिवार और देश का नाम रोशन कर सकती है | जिसकी उम्र अभी पाँच वर्ष है और जो अभी दुनिया के बारे में बिल्कुल भी अनभिज्ञ है, वो इतने खतरनाक करतब दिखा रही है तो जब उसे पता चले तथा उसे और सिखाया जाये तब वो अपने देश का नाम रोशन जरूर कर सकेगी |

मेरे मन में अभी भी उस लड़की के लिए अनेक भाव उठ रहे थे, वो लड़की अपना खेल दिखा चुकी थी अब वह आश्रित नजरों से एक-एक कर सभी के पास जा रही थी, सभी उसे 5, 2, 10 रूपये दे रहे थे वो मेरे पास भी आई मैंने उसके लिए एक जोड़ी कपड़े दिए, मन को थोड़ी शांति मिली, लेकिन फिर भी मन उसके लिए आज भी हिलोरे लेता रहता है |

मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है  कि ऐसी परिस्थितियों के लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है, कौन जिम्मेदार है, और क्यों❓️