परिवर्तन ही नियति का सनातन नियम है,
जल प्रवाहित होना ही नदी का संयम है,
निश्चल खडा पर्वत ही दृढता का सूचक है,
चलता काल चक्र ही लयता का द्योतक है,
हवा के दिशा साथ बदले वही समझदार है,
व्यवहार को बदलना, अब वक्त की पुकार है।1।
चिलचिलाती गर्मी में, ज्यों ढूढते छाया,
कंपकपाती सर्दी में ज्यों बचाते काया,
वर्षा के हास से इस धरा का अट्टहास है,
बसंत के विकास में सुगंध का आभास है,
इन मुसीबतों से बच गये तो फिर सदाबहार है,
व्यवहार को बदलना अब वक्त की पुकार है।2।
जाति धर्म छोडकर मानवता धर्म जोड लें,
संवेदनाएँ ओढकर विरोध से नाता तोड लें,
दिल मिलाकर जुबां हर एक के उत्कर्ष में,
नहीं किसी की भलाई है आपसी संघर्ष में,
पंछी को करो प्रेम तो वो भी लुटाता प्यार है,
व्यवहार को बदलना वक्त की पुकार है।3।
नम्रता ही मानव जाति का महा मूलमंत्र है,
अतिरेक में अकडने से बिगडते परितंत्र है,
मुसीबत की आंधी में जो झुका वो बचा,
सब्र किया जो कभी वक्त ने भी उसे रचा,
पतझड़ में जो जुडे वक्त ने किया श्रृंगार है,
व्यवहार को बदलना वक्त की पुकार है ।4।