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बेटी बिटिया

बेटी है दुनियां का नाज
बेटी करती हर काज आज
बेटी अरमानों का अवनि
आकाश।।

शिक्षित बेटी नैतिक समाज
बेटी संरक्षण संरक्षित समाज
बेटी बुढापे का सहारा
बेटी माँ बाप के लिये
ज्यादा संवेदन साज।।

बेटी बेटा एक सामान
बेटी गर कोख में मारी
जाती दांवन दरिद्रता
दुःख क्लेश का आवाहन
साम्राज्।।

बेटी लक्ष्मी है बेटी है
वरदान

लिंग भेद का पतन पतित
समाज।
बढती बेटी बढ़ाता गौरव मान
बेटी का सम्मान सशक्त राष्ट
समाज की बुनियाद।।

बेटी गुण ज्ञान धन धान्य
की पहचान खान
बेटी से मर्यादा का मान
बेटी निश्चिन्त निर्भय विकास
न्याय का पर्याय।।

बेटी नगर हाट चौराहे पर
दानवता का गर हुई शिकार
पीढ़ी का घुट घुट कर प्राश्चित
दमघुटता शर्मशार समाज।।

बेटी प्यारी न्यारी
जीवन का आभार
बेटी का रीती ,निति राजनीती
ध्यान, ज्ञान ,बैराग्य ,विज्ञानं
यत्र तंत्र सर्वत्र अधिकार।।

बेटी गौरव गूँज गर्जना
बेटी स्वर ,संगीत ,व्यंजना
बेटी अक्षय ,अक्षुण, पुण्य ,कर्म
बेटी संस्कृति संस्कार।।

बेटी का ना तिरस्कार
बेटी संग ना भेद भाव
बेटी शिवा शिवाला ईश्वर
रचना की बाला बला नहीं
सृष्टि की ज्योति ज्वाला।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर




सवा लाख से एक लड़ाऊं तौ गुरु गोविंद सिंह नाम कहाऊँ

आहत होता युग संसय
अन्धकार के अंधेरो में
दम  घुटता।।
न्याय धर्म की सत्ता डगमग होता
ईश्वर का न्याय भरोसा
युग जीवन में आशा का
संचार झोंका आता जाता।।
निर्जीव हो चुके सोते युग समाज
चेतना को झकझोरता।।
असमंजस की बेला में
युग में ईश्वर सत्ता का सारथि
 गुरु गोविन्द सिंह आता।।
भारत की अक्षय अक्षुण
संस्कृति वाणी गुरुओ की
त्याग तपस्या बलिदानी लहू का
प्रवाह पुरुषार्थ युग चेतना जाग्रत
संस्कार गुरु गोविन्द कहलाता।।
धर्म कर्म मर्यादा मर्म का मान
सवा लाख से एक लड़ाऊ तौ
गुरु गोविन्द सिंह नाम कहाऊं
सम्मान स्व की पहचान का
मार्ग संचार गुरु गोविन्द सिंह बताता।।
मानव मानवता सत्कार
मानव मूल्य धर्म कर्म स्वतंत्रता
संकल्प मर्मज्ञ
गोविन्द गुरुओ की परम्परा
परम् प्रकाश ।।
जीवेत जाग्रतं का सत्यार्थ
गुरु गोविन्द गर्व है तमस में
रौशन रौशनी भाव भावना
प्रधान।।
सिंह की गर्जना मानवता
की सृजना भारत की
युग समाज की नैतिकता
स्वर साम्राज्य ।।

नंद लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




बेटियां केवल भाव की भूखी होती हैं

बेटियां केवल भाव की भूखी होती हैं!

उन्हें कहां धन दौलत की होती है परवाह
उनके लिए ये सब सूखी रूखी होती हैं,
वो तो बस अपनों की हिफाजत चाहे
बेटियां सिर्फ भाव की भूखी होती है!
पराई नहीं होती उसकी भावनाएं
अपने मां- बाप और भाई- बहनों के लिए,
वही प्यार वही करुणा
आंखो में डूबी होती है
बेटियां केवल भाव की भूखी होती हैं!
बलाएं लेती हैं, लाखों दुआएं देती हैं
रहे फलता फूलता उसका पीहर,
खुशहाल देखकर उन्हें सुखी होती हैं
बेटियां केवल भाव की भूखी होती हैं!
बस मान ही तो चाहती हैं वो
अपने लिए सम्मान चाहती हैं,
पीहर हो या ससुराल दोनों से ही
तन, मन ,धन से जुड़ी होती हैं
बेटियां केवल भाव की भूखी होती हैं!

अर्चना रॉय




सती शंकर भारतीय नाग संतो का बलिदान

कौन कहता है माँ भारती के
सत्य सनातन का साधु संत
धर्म कर्म साधना आराधना शास्त्र
आचरण का सिर्फ प्रवचन सुनाते।।
जब- जब राष्ट्र समाज पर क्रुरता आक्रांता आता।।

जागृत हो साधु संतों का समाज
मंदिर से क्रांति चेतना के अंगारों में खुद की आहूति करते भेंट चढ़ाते।।

घंटे और घड़ियालों की आवाजों से
राष्ट्र समाज को नित्य झकझोरता सावधान करता।।
कुरूक्षेत्र के युद्ध भूमि से योगेश्वर कृष्ण के गीता ज्ञान का हो प्रत्यक्ष प्रमाण धर्म युद्ध में पांचजन्य की
शंख नाद है करता।।
भारत ने भुला दिया सत्य सनातन के
साधु संतों सन्यासियों की देश भक्ति।।
बलिदान का गौरवशाली इतिहास
सर्वश्व न्यवछावर कर बचा लिया
जिसने भारत की लाज।।
भारत की आजादी गणतन्त्र के शुभ
पर्व माँ भारती की रक्षा अस्मत पर मिट जाने वाले संतो की हम याद दिलाते ।।

मिट गए
हज़ारो जल नदी की रक्त सी हो गयी
लाल।।
अफगानी आक्रांता के नियत और
इरादे रौंदना भारत भूमि पे था करना मौत का था नंगा नाच ।।

विकृत विचारों का
दानव दुष्ट निकल पड़ा भारत को करने
शर्म सार भारत भूमि की मर्यादा का करने तार तार।।

नागा साधु संतों ने किया प्रतिकार
एक हाथ मे वेद पुराण दूजे हाथ तलवार।।

दुश्मन से करने दो दो हाथ हर हर महादेव जय भवानी की गूंज गान।।
नागा साधु संतों ने भारत की मर्यादा
रक्षा में सर्वश्व किया बलिदान
नापाक इरादों के दुशमन कर दिया धूल धुसित भगा लेकर जान।।
बचा लिया होने से भारतीयों का
कत्लेआम ना जाने कितने भारत वासी दानवता की चढ़ते भेट मंदिर तोड़े जाते होती वहाँ आज़ान।।

आज
वर्तमान में भारत की पीढ़ी गुलामी
की एक अलग काला अध्याय सुनते
और सुनाते।।
ना जाने क्यों भुल गया भारत का इतिहास भारत के सत्य सनातन के नाग साधु संतो के सौर्य पराक्रम का बलिदान।।
गनतंत्र दिवस पर नागा साधु संतों के बलिदान बीरता का इतिहास हम भारत वासी है गाते श्रद्धा से
शीश झुकाते।।

भारत की आज़ादी अस्मत पर ना जाने कितने ही इतिहास
अनजाने -जाने हम याद दिलाते ।।

भारत की आज़ादी अस्मत के बलिदानों को कृतज्ञ राष्ट्र के माथे का चंदन गौरव गरिमा मान अभिमान सुनते ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




नारी हूँ मैं…

महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु कविता

“नारी हूँ मैं…” 

एक मूक अभिव्यक्ति हूं मैं,
खुद में सम्पूर्ण शक्ति हूं मैं,
विश्वास का दूसरा नाम हूं,
चलती-फिरती भक्ति हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…

स्रष्टा हूँ मैं, द्रष्टा हूँ मैं,
अपनों की दुखहर्ता हूँ मैं,
जज़्बातों का ज्वालामुखी हूँ मैं,
भीतर से कोमल कली हूँ मैं।

मुझको अबला कहने वालो,
सबला की परिभाषा हूँ मैं,
टिमटिमाते दिए का तेल हूँ मैं,
निराशा की भी आशा हूँ मैं।
हां,
नारी हूं मैं…

अपने आंसू पीती हूं मैं,
अपनों के लिए जीती हूं मैं,
सबका दर्द सीने पर लिए,
अपने लब सीती हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…

मैं बंधी हूं सपनों के संसार से,
अपनों के प्यार से, दुलार से,
पति की मनुहार से,
बच्चों की मुस्कान से,
मकान से
घर बन जाने वाली दीवारों से,
रग-रग में बसे
अपने घर संसार से
बंधी हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…

कभी पति कभी बच्चों के लिए,
अपने अरमान दिल में दबा लेती हूं,
हंसती हूं सबके साथ,
आंसू अकेले में बहा लेती हूं,
छुपा कर अपने दु:ख-दर्द
बन्द पलकों के पीछे,
अपनी हिम्मत समेट
हंस-हंसा लेती हूं मैं…
हां,
नारी हूं मैं…

ख़्वाब देखती हूं खुली आंखों से,
खुशियों के महल सजा लेती हूं,
तिनका-तिनका जोड़ अरमानों का,
आशियाना अपना बना लेती हूं…
हां,
नारी हूं मैं…

सुलगते हैं मेरे भी जज़्बात,
सिसकते हैं मेरे भी अरमान,
कसक उठती है मेरे भी दिल में,
महकते हैं मेरे भी ख्यालात…

क्यूं न हों
आखिर इक इंसान हूं मैं,
हाड़-मांस का पुतला नहीं,
जीता-जागता, चलता-फिरता,
ईश्वर का इक चमत्कार हूं मैं,
कायनात का इक वरदान हूं मैं…

स्वाभिमान की इक मिसाल हूं मैं
हिम्मत की इक मिसाल हूं मैं,
उम्र के हर दौर को चुनौती देती,
आत्मविश्वास की इक मिसाल हूं मैं…

हां, नारी हूं मैं,
हां, नारी हूं मैं…..

****

नेहा शर्मा ‘नेह’

(स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित)




राष्ट्रीय बालिका दिवस पर समर्पित कविता – “बेटी”

बेटी

मैं भी बेटी हूँ किसी की 
हर बेटी का सम्मान करती हूँ
बेटी है स्वाभिमान किसी का
जो जाकर पराये घर,
उस घर को, परिवार कोो अपनाती है
जन्म देती, जीवन को,संस्कारों को
धन-धान्य से परिपूर्ण घर परिवार सजाती है
बेटी लक्ष्मी है घर की
बेटी पाना,बेटी होना सौभाग्य मेरा
बेटियाँ कलंक नहीं जीवन का
ये तो काला टिका है घर का
जो बुरी नजर से बचाती है
                                                                                        बेटियाँ हर घर की थाती है                                                                                                                                                                                   तू कब समझेगा, नादान                                                                                                   यही रुप देवी का यही तेरा वितान

पिंकी ‘हरि’ भार्गव

कराला

उत्तर पश्चिम, दिल्ली




राष्ट्रीय बालिका दिवस पर समर्पित कविता – “बेटी”

बेटी

बेटी है घर की फुलवारी
बेटी है माँ पिता की दुलारी
महके घर का कोना कोना
वह घर स्वर्ग जहाँ बेटी का होना

बेटियाँ घर को महकाती है
सुन्दर गुलशन सा बनाती है
बेटियाँ खुशी है रोशन संसार है
बेटियाँ आदर्श है स्नेह प्यार है

बेटियाँ संस्कार है संस्कृति है
बेटियाँ धर्म की धुरी वृति है
बेटियाँ रमा शारदा सविता है
बेटियाँ निर्मल पावन कविता है

बेटी स्वयं लक्ष्मी का स्वरुप है
बेटी संस्कार भरा सुमधुप है
बेटी उद्यान है गुलशन सुगंध भरा
बेटी खुशी है श्यामल सुखद धरा

हरघर बेटी के नए नूतन नाम
मुख पर आते ही सुखद छाये
भाइयों की दुलारी माँ की लाडली
पिता की गुड़िया परी कहलाये

कहीं सुमन पुष्पा सविता कविता
कहीं चंदा मीनाक्षी मनीषा पूजा
हर नाम बसै स्वयं ब्रह्म के रूप
अनन्य सभी नाम में बसे ईश्वर दूजा

बेटी खुशी है सुखद है उमंग है
बेटी इन्द्रधनुष के सभी रंग है
बेटी भाग्य से घर में आती है
बेटी स्वयं शारदे की थाती है

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत
Mail Id
[email protected]

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रमुख प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,रिमझिम रिमझिम, मोबाइल देवता, नया सवेरा (हाइकु), बादल, बारिश की बूंदे, शब्द संसार, मजदूरों की मजबूरी, सीढ़ी, धागा, स्त्रियों के बाल, रेखाओं में मजदूर, वीर राणा प्रताप, भारत के पूत, नव जीवन वरदान, कोरोना काल, गढ़वाल राइफल का वीर, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ, बेटी ।
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार




राष्ट्रीय बालिका दिवस पर समर्पित कविता – “कहो मुझे भगवान”

कहो मुझे भगवान

जब जन्मीं ममता के आँचल
हँसकर माँ ने गले लगाया
सबने बता कर भार घर का
खुशियों से मुझको ठुकराया
तूं ही बता मेरी जग में, है कैसी पहचान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

शिशुपन का रोना मेरा
सब के गानों को कहराता था
पिता के पैरों की में बेड़ियां
हर कोई यही बताता था
तूं बता ईश्वर मुझको, कहां मिलेगा सम्मान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहै मुझे भगवान

टपकते आँसू वह सा बचपन
मुझे कोई समझ नहीं पाया
सबके बाद की पात्र कहकर
बेटों से मुझे अलग बताया
घुटती रही इच्छाएं मेरी रहे टूटते अरमान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

सदा पराया मुझे कहकर
भाई जितना मान न पाया
अबला मानकर वंचित किया
कहीं पूरा सम्मान न पाया
प्राण मुझमें, प्रतिवेदना भी, मुझ में भी जान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

नहीं पढ़ाया मुझको उतना
नहीं मिल पाई सुविधाएं
लड़की होने की अपराधिन
बनी जीवन भर की बाधाएं
सदा उलाहना में बीता,समय बन वर्तमान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

हंँसी खुशी खेल ठिठोली
खुलकर खेलना पाई
जिस माँ ने जन्म दिया
वह भी कहती मुझे पराई
धन पराया साबित थी, होकर सनाथ संतान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

मेहंदी रची हाथों पर मेरे
जब हुई मेरी विदाई
पराए घर जा रही थी मैं
होकर और भी पराई
धन्य हुए माता पिता, मेरे करके कन्यादान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

बेटी थी तब भी पराई
बहू बन कर भी रही पराई
काट रही हूँ अपना जीवन
हे ईश्वर होकर तेरी परछाई
सब मौन इस प्रश्न पर, मैं किसका अभिमान
मैं कैसी रचना तेरी हूँ, कहो मुझे भगवान

हेतराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”
शिक्षा – MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार
सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय करसान, शिक्षा विभाग केन्द्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़
9829960882 [email protected]

माता-पिता – श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
प्रकाशित रचनाएं –
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता-खण्डकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
मैं हिन्दी हूँ – राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य-महाकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत
कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य –
वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ – महाकाव्य )
उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।
साहित्य सम्मान –
स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश l
साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र l
ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक l
सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड।
कला शिरोमणी साहित्य सम्मान 2020- ब्रजलोक साहित्य शोध संस्थान, आगरा उत्तर प्रदेश l




राष्ट्रीय बालिका दिवस पर समर्पित कविता – “शिक्षित बेटी”

शिक्षित बेटी

मैं बेटी, पत्नी और माँ बन
आज बनी सशक्त नारी हूँ
एक जीत की कोशिश में
हजारों बार बार मैं हारी हूँ

संघर्ष मेरे बचपन के
याद जब – जब आते हैं
बीते जीवन के दर्पण में
बेटा-बेटी के भेद दिखाते हैं

बहुत मुश्किल था उस दौर में
बेटी का लिखना पढ़ना
सामाजिक परंपराएं थी विरुद्ध
मुश्किल था शिक्षित होकर बढ़ना

समय साथ देता रहा मेरा
मैं समय के साथ चलती गई
शिक्षा के जीवन पथ पर
सब सहते आगे बढ़ती गई

किन शब्दों में, कहूंँ आज मैं
कितनी ही कुप्रथाएं मिटाई है
कितने भेद भाव सहे हैं मैंने
कितने भेदी दीवारें हटाई है

सच में एक घर में एक बेटी
जब पढ़ लिख जाती है
दो घर के आँगन में वो
प्रकाश का दीप जलाती है

हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”
शिक्षा – MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय पूठकलां, शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली
9829960782 [email protected]
माता-पिता – श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
प्रकाशित रचनाएं –
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता-खण्डकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
मैं हिन्दी हूँ – राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य-महाकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत
कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य –
वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ – महाकाव्य )
उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।
साहित्य सम्मान –
स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश l
साहित्य श्री सम्मान 2020- साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र l
ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020- ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक l
सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड।
कला शिरोमणी साहित्य सम्मान 2020- ब्रजलोक साहित्य शोध संस्थान, आगरा उत्तर प्रदेश l




मृत्यु

जन्म और मृत्यु,
जीवन के दो छोर
एक है प्रारंभ तो दूजा अंत
इस मध्य ही है जीवन का सार।

क्या खोया क्या पाया
क्या छोड़ा क्या अपनाया
क्या भोगा क्या त्याग दिया
बस यही है जीवन की माया।

जब जीवन बीत जाती है
मौत का साया जब मंडराती है
जीवन की सांझ जब ढलने को आती है
तब गुजरा वक्त यादें बनकर आती है।

दो पल खातिर जब सासें रुकने को आती है
जीवन भर की कमाई भी
एक क्षण की सांस भी खरीद नही पाती है
जीवन की सारी घटनाएं जब
क्षण भर में नजरो से गुजर जाती है
जीवन का मोल तब समझ में आती है।

तब कर्मो का सारा लेखा जोखा
खुद ही समझ मे आने लगती है
क्या करना था और क्या किया
मन मस्तिष्क में घुमड़ने लगती है
क्या सही था और क्या गलत
सारी बाते बिल्कुल साफ नजर आने लगती है।

तब लगता है थोड़ा और समय मिल जाता
सारी गलती और भूल सुधार देता
पर तब तक बहुत देर हो जाता है
मृत्यु का पाश बस बंधने को रहता है

मस्तिष्क की क्षमता बिखरने को रहती है
काया की ऊर्जा भी खत्म होने को आती है
तब केवल पश्चाताप और संताप ही रह जाता है
और देखते देखते मौत अपने आगोश में समा लेता है।