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प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता (प्रेम आज-कल)

प्रेम!
आजकल प्रभावित है…
उपभोक्तावादी बाजारी संस्कृति
और फिल्मी देह बाजारी से।
फलिभूत कर्ज और उधारी से।
रोज नए फूल खिलते,
तन से तन मिलते,
कौड़ियों के भाव पर
अवसरवादी स्थापित-विस्थापित
भावनात्मक जुड़ाव है।
मादा की क्षणिक काया,
नर के पाकेट की माया,
दिल-कबड्डी बस रास आया।
नकलची ऐसा है दौर लाया,
समलिंगी-रिश्ते फैशन चले।
घर-परिवार,रिश्ते-नाते!
असुरक्षित-असहज,
असंतुलित,
काल्पनिक होकर
बन रही बीते दिनों की बातें।
चकाचौंध-महत्त्वाकांक्षाओं की
बलि वेदी पर बलवती घातें।
कचड़े की तरह फेंकने को आतुर
कहीं भी कोई स्थान नहीं,
बचपना और बुढ़ापा पाते।
गुजरती भटकाव में,
अस्त-व्यस्त दिनचर्या वाली
दिन और रातें।
पाण्डेय सरिता




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता ( स्त्रीत्व)

डर कर,थक,ऊब कर
वह प्रत्येक स्त्री!
जो आत्महत्या करके मर गई;
कमल और कुमुदिनी थी।

और जो जिंदा रह गई
फिक्र में घर-गृहस्थी,
बाल-बच्चों के।

वह औरत मुझे,
पोखर की हेहर/थेथर
(नहर, तालाब के किनारे
उगने वाले हरे पौधे)
की डालियाँ लगी।

जिन्हें लाख उखाड़ कर फेंको,
पुनः फफक कर बेतहाशा
चली आती हैं।
जीवन की संभावना में,
पोखर के उरस जाने के बाद भी
मौजूदगी उनकी,
अचंभित कर जाती मुझे।

जिंदा कब्रगाह हैं,
उस पोखर के याद की,
संघर्षशील अस्तित्व बर्बाद सी।
    पाण्डेय सरिता




कामना

मेरी हार्दिक इच्छा है
कि लोग भूल जाएंँ,
पपड़ियों की तरह उधड़ते,
पंखुड़ियों की बिखरते,
उद्वेलित नश्वरता की क्षणभंगुरता
में झड़ता मेरा चेहरा
और रूप-रंग!
पर सदियों तक
उनके मन-मस्तिष्क में,
मेरे शब्द और कविताएँ
कुछ इस तरह सदानीरा
बन कर बस जाएंँ,
जैसे सभ्यता-संस्कृति के विकास में
चट्टानों को फोड़ कर,
सरिता प्रवाहित होती है।




जय भारती

 

जय भारती

 

जय हो आज दिन है भारत के गणतंत्र.

रह पाए हैं हम, अब सर्व-स्वतंत्र,

लहराकर आज अपना तिरंगा प्यारे,

रहे सदा पुलकित भारतवासी न्यारे।

 

जलाकर राष्ट्र प्रेम की नित ज्योत,

संवहन हो जन-जन के मन में संप्रीत।

लेकर भावैक्यता का सदा प्रण,

चलें, चुकाये अपनी मातृभूमि का ऋण।

 

स्वीकारें माँ की ममकार की सारी भाषा,

सौहार्दता ही भारत माँ की सदभिलाशा।

रक्षा करें सदा माँ, बहन, बेटी की,

माँ की गोद की नित हरियाली की।

 

हम सब हैं इस गणतंत्र में स्वयं प्रभु,

प्रभुता दर्शाने में खोए न कभी अपना काबू।

राष्ट्र प्रगति का प्रण लिए सर्वदा,

न आने दें माँ पर कभी कोई आपदा।

 

रहें गर्व सदा माँ भारती की आबरू पर,

आँच न आने दें कभी तृण मात्र उस पर।

रहें सदा माँ भारती नित दिन स्वतंत्र।

अनुरणित रहें सदा ये जय भारती मंत्र।

 

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***मेरी मौलिक रचना है। सर्वाधिकार सुरक्षित***

-अनुराधा के,

वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी,

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,

क्षेत्रीय कार्यालय,मंगलूरु,कर्नाटक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 




बेटी

बिटियाँ

रूप तुम्हारा रानी बेटी लगता है प्यारा-प्यारा
घर की रौनक तुम सबकी आँखों का तारा।

श्वेत लाल रंगों की फ्रॉक जैसे लटके बलून
छोटे-छोटे पैर तुम्हारे लगें मुलायम प्रसून।

उस पर सौहे रंग-बिरंगी सीटी बजाती चप्पल
माँ के कानों को मिला रस घोलता सिग्नल।

ठुमक ठुमक चलती जब ख़ुश हो घर हमारा
पायल की आवाज से उमड़े स्नेह सारा।

रूप तुम्हारा रानी बेटी लगता प्यारा-प्यारा
घर की रौनक तुम सबकी आँखों का तारा।

काले-काले और घुँघराले रानी बाल तुम्हारे
उस पर बनी सुन्दर चोटी फीता में रंग सारे।

तितली जैसी आँखों में लगा काजल प्यारा
माथे में शोभित डिठोना जैसे नजर उतारा।

सुन्दर सुडौल मनमोहक तनुजा मुँख तुम्हारा
गोल-कपोल,रंग है श्वेत गुलाब सा गोरा।

रूप तुम्हारा रानी बेटी लगता है प्यारा-प्यारा
घर की रौनक तुम सबकी आँखों का तारा।

तीखी नुकीली तोते जैसी बेटी नाक तुम्हारी
छोटे-छोटे कानों में पहन रखी हो बाली।

तितली जैसी पलके हिरणी सा नेत्र तुम्हारा
दिव्य सा चमकता माथा लगता है प्यारा।

नाजुक-नाजुक,छोटे-छोटे हैं हाथ प्यारे
नये पर्ण से हस्तों में रजत के कंगन न्यारे।

रुप तुम्हारा रानी बेटी लगता है प्यारा-प्यारा
घर की रौनक तुम सबकी आँखों का तारा।

त्रिवेणी मिश्रा “जया”
जिला डिंडौरी म.प्र.

  1. राष्ट्रीय बालिका दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ 🙏🙏




ए भारत माँ…..

            ए भारत माँ फिर से एक एहसान कर दे
वही सोने की चिड़िया वाला मेरा हिंदूस्तान कर दे,
                           *****
         मुझे चुभती हैं नस्तर सी ये ख़ार की नस्लें
मिटा दे नक़्शे-पटल से इनका काम तमाम कर दे,
                           *****
कर कोख़ से पैदा फिर राजगुरु,सुखदेव,भगतसिंह
 ये गुलशन हो चला वीरां फिर से गुलिस्तान कर दे,
                            *****
बहुत सह चुके अब अखरते हैं दिल को दगाबाज़ ये
ले-ले हाथों में मशाल, जंग का ऐलान कर दे,
                            *****
खरपतवार नफ़रतों की ना ये फिर से पनप जाये
माँ ऐसे मेरे चमन के तू बागबाँ कर दे ,
                            *****
कल-2 करते झरने,नदियाँ महके पीले सरसों के फूल
गाते-गुनगुनाते किसान लहलहाते खेत-खलिहान कर दे,
                             ****
   जलते रहें “दीप” खुशियों के सदाआँगन में यूँ ही
चाँद-सितारों से चमकता ये अंबर, आसमान कर दे !!
                             *****
               कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”
                हिसार ( हरियाणा ) भारत
                



सैनिक

सैनिक

देश के रक्षक देश की शान ,
है अपने ये सैनिक महान ।
इनके बल पर अपनी चैन,
इनके ही भरोसे है दिन रैन ।
कोई कितना ऊँचा होजाये ,
इनतक कोई पहुँच न पाये ।
मन्दिर मस्जिद या गुरूद्वारे,
सबकी रक्षा में जान ये वारे।
इनका धर्म बस केवल एक,
मातृभूमि की रक्षा का नेक।
वीर सपूत ये महान है माता ,
तुलना है न कोई कर पाता ।
धन्य धरा के तुम धन्य सपूत,
तुम पर बलिहारी लाखों पूत।

डॉ.सरला सिंह स्निग्धा

दिल्ली  ।




गणतंत्र दिवस

*गणतंत्र दिवस मनायें*

गणतंत्र दिवस मनायें,
ये गणराज्य मुस्कुराये।
पावन धरा ये है हमारी,
इसको और जगमगायें।
नदियां गाती कल-कल,
चलो निर्मल इसे बनायें।
पर्वत कहते सिर उठाके,
सबसे ऊंचा इसे बनायें।
नवजागरण लेकर चलें,
हमारा  देश जगमगाये।
गणतंत्र दिवस मनायें,
ये गणराज्य मुस्कुराये।
ज्ञान औ विज्ञान पूरित ,
इसे जग का गुरु बनायें।
वीरों की भूमि ये पावन,
सर्वोच्चतम इसे बनायें।
गणतंत्र दिवस मनायें,
ये गणराज्य मुस्कुराये।
राम व कृष्ण की धरती,
पावनतम इसे बनायें।
विविध वेशभूषा वाली,
चलो अनुपम इसे बनायें।
कांटों को हम चुनके फेंकें,
बस फूलों से ये मुस्कुराये।
छोड़ दें सब भेद दिल से,
मानवता को अपनायें।
गणतंत्र दिवस मनायें,
ये गणराज्य मुस्कुराये।

*डॉ सरला सिंह स्निग्धा*
*दिल्ली*




गणतंत्र दिवस पर स्वर्णिम अध्याय लिखने की तैयारी में शांति-संयम का गठजोड़…

सुशील कुमार ‘नवीन’

‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति!’ अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा। आप भी सोच रहे होंगे कि इतनी बड़ी बात आज किस सन्दर्भ में लिखी जा रही है। नहीं समझे। अरे, भलेमानुषों। 26 जनवरी को स्वर्णिम इतिहास रचने जा रहा है। जो पहले कभी न हुआ वो होने जा रहा है। विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र इस बार अपना 72वां गणतंत्र दिवस मनाएग। इस दौरान देश के राजपथ पर एक तरफ जहां तीनों सशस्त्र सेनाओं के जवान अपनी ताकत प्रदर्शित करेंगे तो दूसरी तरह उनके पितृव्य कृषिपुत्र दिल्ली की सड़कों पर अपनी एकजुटता का दर्शन कराएंगे। देश के इतिहास में यह किसी स्वर्णिम अध्याय से कम नहीं होगा। 

इस बार का गणतंत्र दिवस वैसे भी अनूठा ही है। कोविड-19 के बुरे दौर से देश निकल चुका है। वैक्सीन लगने की शुरुआत हो चुकी है। शनिवार तक इस दिवस के और भी ऐतिहासिक बनने के आसार बन रहे थे। कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए दो माह से आंदोलित किसान इस दिन दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने पर अड़े थे। दिल्ली पुलिस प्रशासन इसकी मंजूरी न देने पर अड़ा था। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले में रोक से इनकार कर चुका है। ऐसे में अब तक शांतिपूर्वक चल रहे किसान आंदोलन में 26 जनवरी को दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच टकराव के हालात बन रहे थे। शनिवार को वार्ता के बाद किसानों को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की मंजूरी मिल ही गई। नियमावली में बंधी इस मंजूरी से दोनों पक्षों की इज्जत बनी रह गई। दिल्ली प्रशासन टकराव को टालने में कामयाब हो गया और किसान अपने शक्ति प्रदर्शन की मांग मनवाने में।

सीधे तौर पर देखा जाए तो यह किसानों की नैतिक जीत ही है। प्रबंधनीय गुणों से लबरेज अपनी तरह का यह पहला आंदोलन है। जो अभी तक किसी भी रूप में कमजोर नहीं पड़ा है। न एकजुटता में और न ही व्यवस्था प्रबंधन में। एक चीज की जरूरत महसूस होने पर दस हाजिर हो रही है। राजनीति की सबसे पुरानी नीति है ‘साम, दाम, दंड, भेद’। ‘साम’ अर्थात् ‘समता’ से या ‘सम्मान देकर’, ‘समझाकर’, ‘दाम’ अर्थात् ‘मूल्य देकर’ या आज की भाषा में ‘खरीदकर’, ‘दंड’ अर्थात् ‘सजा देकर’ और ‘भेद’ से तात्पर्य ‘तोड़ना’ या ‘फूट डालना’ है। इसे यूं समझें। किसी से अपनी बातें मनवाने के चार तरीके हो सकते हैं । पहले शांतिपूर्वक समझाकर, सम्मान देकर अपनी बातें मनवाने का प्रयास करो। मान जाए अच्छा है, आपकी भी लाज रहे, मानने वाले की भी। न माने तो मानने का मूल्य दो। फिर भी बात न बने, तो उसे इसके लिए दंडित करो अर्थात डराओ धमकाओ। फिर भी बात न बने तो  ‘राजनीति का ब्रह्मास्त्र’ ‘भेद’ का प्रयोग करो। चाणक्य की यह नीति राजनीति शास्त्र की मूल नीतियों में है। इसका प्रयोग सार्वभौमिक है। विश्व का ऐसा कोई जन आंदोलन नहीं होगा जहां इस नीति के तत्वों का प्रयोग न किया गया हो। पर किसान आंदोलन में यह नीति कारगर नहीं रही है। यही वजह है कि किसानों की जिद पर सरकार और तंत्र को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ रहा है। वहीं आंदोलनकारी भी अपनी तरफ से कोई कमी का मौका नहीं दे रहे। शांतिपूर्ण और संयमित तरीके से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालना इनके आंदोलन का प्रमुख हिस्सा है। इसके माध्यम से वो अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कराना चाहते हैं। सब कुछ सामान्य रहा तो अपनी तरह का यह अनूठा प्रदर्शन इतिहास के पन्नों पर दर्ज होगा।   

 

लेखक: 

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237




गणतंत्र दिवस पर सभी देशवासियों समर्पित “मेरा भारत”

मेरा भारत

सब देशों से न्यारा भारत
सबसे प्यारा हमारा भारत
जन्म लिया देवों ने भारत में
इतना मनमोहक सुंदर हमारा भारत
विविधता में एकता की पहचान
यही है मेरे भारत की शान

इस धरती की मिट्टी ऐसी
मां की गोद का सुकून पाते
इस धरती के पूत है ऐसे
दुश्मन को जो धूल चटा दे
शिवाजी प्रताप लक्ष्मी नाम है ऐसे
दुश्मन सुन थर थर काँपे

अगणित नाम है ऐसे वीरों के
इस धरती पर जो जान लुटा दे
भारत में माता का वास
भारत माता कह कर बुलाते
भारत की धरती स्वर्ग से सुंदर
सुख को तरसे देव गंधर्व किन्नर

भारत देश की जो महिमा गाता
हर भारतवासी गर्व से भर जाता
शौर्य की गाथाएं या वीरों का बलिदान
शब्दों में ना कर सकते, भारत का बखान
सब देशों से न्यारा भारत
सबसे प्यारा हमारा भारत

पिंकी “हरि” भार्गव
हिंदी भवन
गाँव कराला
उत्तर पश्चिम – ब,
नई दिल्ली, भारत