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और इंतजार

 

यह तेरी आंखों का जादू
कुछ इस तरह कर गया है असर
सिर्फ तेरे सिवा दुनिया में
नहीं आता कुछ नजर

ना जाने किस वजह से
मेरी मोहब्बत को कर रही इनकार
दिल मेरा कर रहा है
बेसब्री से तेरी हां का इंतजार

क्या तू मेरे इश्क को समझी नहीं
या डर है इस जमाने का
आरजू रखता हूं बस इतनी सी
एक मौका तो दे तू मनाने का

किस कदर डूबा हूं तेरे प्यार में
मुश्किल है तेरे लिए मानना
पर मेरी मोहब्बत तो एक इबादत है
जरूरी है तेरे लिए यह जानना

तेरी हां का इंतजार करूंगा मैं
मिट्टी में मिल जाने तक
सच्चा है मेरे इश्क समझ ले तू
मेरे मरने के बाद तुझे होगा फक्र

  1.  



कहो, कौन हो तुम?

कहो तुम कौन हो

प्रकृति ही मेरी संगिनी है, मेरे अह्सास है, मेरी कलम के शब्द हैैं अतः उसी प्रकृति के आँचल में मेरी काव्य धारा प्रवाहित होती है। प्रकृति के अन्यतम नैसर्गिक प्रेम को संबोधित करते हुए ”कहो, तुम कौन हो” कविता प्रस्तुत है –

हृदय मंदिर में बसने वाले
नित क्षण मुझको रचने वाले
कहो, कौन हो तुम?

दीपक जैसे जलने वाले
बन बाती साथ निभाने वाले
कहो,कौन हो तुम।

बादल रूप धर गरजने वाले
बन बरखा मुझे भिगोने वाले
कहो,कौन हो तुम?

बन रजनी जग में सोने वाले
दिवस हुए कर्म करने वाले
कहो,कौन हो तुम?

पुष्प गुच्छ में रहने वाले
सुगंध रूप मन हरने वाले
कहो,कौन हो तुम?

तारागण से जगने वाले
चंद्र बन नित घटने वाले
कहो,कौन हो तुम?

नदी रूप में बहने वाले
जग की प्यास बुझाने वाले
कहो,कौन हो तुम?

शिशु उमंग भर देने वाले
स्पर्श मधु से उड़ने वाले
कहो,कौन हो तुम?

पक्षीगण से कलरव करते
पंख पसार नभ छूने वाले
कहो,कौन हो तुम?

बन हवा बसंती नृत्य करने वाले
कण कण में बसने वाले
कहो,कौन हो तुम?

फसलों संग लहराने वाले
मिट्टी से प्राण जुड़ाने वाले
कहो,कौन हो तुम?

हृदय मंदिर में बसने वाले
नित क्षण मुझको रचने वाले
कहो, कौन हो तुम……

कवयित्री परिचय –

मीनाक्षी डबास “मन”
प्रवक्ता (हिन्दी)
राजकीय सह शिक्षा विद्यालय पश्चिम विहार शिक्षा निदेशालय दिल्ली भारत

माता -पिता – श्रीमती राजबाला श्री कृष्ण कुमार

प्रकाशित रचनाएं – घना कोहरा,बादल, बारिश की बूंदे, मेरी सहेलियां, मन का दरिया, खो रही पगडण्डियाँ l
उद्देश्य – हिन्दी भाषा का प्रशासनिक कार्यालयों की प्राथमिक कार्यकारी भाषा बनाने हेतु प्रचार – प्रसार 




नन्ही सी जान

 

नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई
सपनों के देश में जहां बसे परि रानी
चाँद तारों संग खेले छुपन छुपाई
अपनी ही मस्ती में रहे गुड़िया रानी
जादुई हँसी से अपनी करे दुनिया दीवानी
नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई
माँ का आँचल पकड़ झूमें घर आँगन
पापा का हाथ पकड़ दौड़े बिटियां रानी
घर की रौनक है राजदुलारी
नन्हीं सी जान उड़े बनके पुरवाई

 

 




अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता वर्तमान की खुशहाल बेटी भविष्य की सक्षम नारी

बेटी की किलकारी
मन आँगन घर आँगन की
खुशियों का प्यार परिवार।।
पढ़ती बेटी बढ़ती बेटी
उम्मीदों की नारी का आशीर्वाद
संसार।।
कली किसलय फूल
गुलशन की चमन बाहर
खुशी खास खासियत खुशबू
मुस्कान।।
बेटी आवारा भौरों के
पुरुष प्रधान समाज मे
जोखिम खतरों से अंजान।।
युवा नही उमंग नहीं कायर होते जो
करते नही बेटी बहनों का
मान सम्मान मर्द महान के
मान मर्दक दर्द दंश अभिशाप।।
जिस घर मे मिलता प्यार परवरिश
भाई बेटों का बहनों को लाड दुलार
घर मंदिर सा घर मे देवो का वास।।
बेटा बेटी एक समान
गली मोहल्ला सड़क चौराहा हो
सफर हवाई जहाज सड़क रेल का
या हो मेला हाट पल पल काल
खंड की गति बेटी नारी औरत
महिला मां बहन का गर होता
सत्कार हर सूर्योदय नया उमंग
चाहत की खुशियो की चाँद
चॉदनी उल्लास।।
बेटी कर्म कोख की महिमा
मर्यादा मर्म धर्म का भान।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




कर्म बोध की कन्या नारी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

कर्म बोध की कन्या
दुष्ट दमन की दुर्गा
ब्रह्म ब्रह्मांड।।
कर्म धर्म की संस्कृति
युग समाज राष्ट्र विश्व
समाज की संस्कृति
संस्कार सत्यार्थ प्रकाश।।
भाग्य भविष्य की प्रेरणा
नैतिक नैतिकता रिश्तों का
आधार।।
पुषार्थ प्रेरणा की गहना बहना
उत्कर्ष उत्थान की सम्मान।।
नारी अबला कमजोर नहीं
युग विश्व समाज राष्ट्र की
प्रेरणा प्रतिष्ठा जीवन मूल्यों की
गौरव महिमा मशाल।।
शांत शौम्य काल काली
अमृत विष मान आरजू अरमान।।
योग्य योग्यतम नारी
सभ्य समाज की आधार।।
अपमान नही तिरस्कार नही
अस्तित्व इज़्ज़त मानव
मानवता का अंगीकार।।
शिक्षित सशक्त नारी
दृष्टि दिशा सृष्टि की नारी
मानव मानवता विश्व समाज में
वर्तमान शानदार रचती स्वर्णिम
इतिहास।।    

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता नारी और मर्यादा

मर्यादाओं महत्व का
करना है समाज विश्व
राष्ट्र निर्माण।।
साहस शक्ति की नारी
विश्व समाज राष्ट्र का
अभिमान।।
बेटी हो नाजों की
खुले पंख अंदाज़ों की
समाज विश्व राष्ट्र चेतना की
जागृती जांबाज़ इरादों की
नाज़।।
जननी है शौर्य पराक्रम की
तारणी धारणी सद्भावों का
प्रभा प्रवाह।।
निर्मल निर्झर गंगा की
धारा धन्य धरा का
साम्राज्य।।
क्रांति कीर्ति की हाला बाला
मधुशाला ज्वाला क्षमा करूणा की
सागर क्रोध रौद्र रुद्रांश।।