निर्भया…! तुझे जीना होगा…!!!
निर्भया..! तुझे जीना होगा…!
हैं घूंट भले कड़वे इस जग के,
घूंट घूट कर के ही पीना होगा,
निर्भया..! तुझे जीना होगा…!
है मिला कहां इंसाफ तुझे,
तू तो अब भी बस शोषित है,
जो लूट रहे वाहवाही जग की,
मन उनके नाग भी पोषित है।
अस्तित्व तेरा है तार तार…
हैं वस्त्र तेरे क्यु जार जार…
बेबस तू अब भी उन आंखो से…
करते प्रहार क्यों बार बार…
जब तक हर मां हम बेटों के,
आंखो में पानी ना डाल सके,
क्या सफल तेरा मरना होगा…???
निर्भया..! तुझे जीना होगा…!
हा धिक..! तुझ पर राजनीति क्यूं??
है देवी सदृश तो रूप तेरा,
हा धिक..! फिर ये सब अनिती क्यूं??
क्यूं बेबस हो…?? लाचार हो…??
जीवन के हर इक धागे का…
तुम ही तो इक आधार हो..!
हे मां…
शर्म भरी परिपाटी का,
हम ही बस क्यूं आभास करें??
है पुरुष अगर शर्माता जो,
अपने ही क्यूं परिहास करें??
बहुत हुआ अन्याय…
अब सहने का ये वक़्त नहीं…
हत्यारों को मौत मिले…
वरना तुममें अब रक्त नहीं…
बेबस ना कोई बेटी हो…
हम सब को सजग होना होगा…
निर्भया..! तुझे जीना होगा…!
निर्भया..! तुझे जीना होगा…!
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