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महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

हर रूप में ढलकर संवर जाती है औरत।

प्रेम, आस्था, विश्वास की सूरत होती है औरत।

नफ़रत की दुनिया में प्यार की मूरत होती है औरत।

रिश्तो की डोर से, अस्तित्व को संभालती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

 

पुरुषों का माध्यम बन फिर क्यों सताई जाती है औरत।

फूल जैसी कोमल काँटों जितनी कठोर होती है औरत।

सभी ज़िम्मेदारियों को हँस कर निभा लेती है औरत।

दुःख की साथी और सुख का अमृत बरसाती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

 

दुष्टों का संहार और ईश्वर का उपहार होती है औरत।

मानव ही नहीं देवों में भी पूज्यमान होती है औरत।

ममतामयी, करुनामयी, शक्ति संपन्न होती है औरत।

मन ही मन में रोती, फिर भी बाहर से हँसती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

 

प्रेम की शुरुआत, जीवन का आगाज़ होती है औरत।

दर्द-त्याग और ममता की पहचान होती है औरत।

चाँद की चादनी, सूरज की किरण होती है औरत।

आन-बान, शान, संस्कारों की खान होती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

 

सरस्वती का ज्ञान घर की लक्ष्मी होती है औरत।

अपराध बढ़े जगत में, तो काली-दुर्गा बनती है औरत।  

नारी के रूप में नारायणी का अवतार होती है औरत।

हर घर के आंगन की तुलसी होती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

 

भगवान भी झुक जाये आगे जिसके ऐसी होती है औरत।

सब कुछ न्यौछावर कर घर स्वर्ग बनाती है औरत।

अधिकारों से वंचित, कर्तव्यों को निभाती है औरत।

नारी की तीनों शक्तियों से परिचय कराती है औरत।

फिर भी हर बार छली जाती है औरत …..

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PRERANA ARIANAICK

CLASS : 12/ COLLEGE: MGI MOKA, Mauritius

18 YEARS

Address: Royal Road La Rosa, New-Grove, Mauritius

+23059119263 / +23059238444

[email protected]

Title : फिर भी हर बार छली जाती है औरत




प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

इक अरसा हो गया तुम मुझसे मिले भी नहीं

इक अरसा हो गया तुम मुझसे मिले भी नहीं,
इस बार मिले भी तो तुम कुछ घुले-मिले नहीं,
न जाने ऐसा क्यों लगा कि तुम मुझसे कभी मिले ही नहीं।2
इक अरसा हो गया तुम मुझसे मिले भी नहीं,
इस बार मिले भी तो तुमने दरम्यान चिन रखी थी,
एक सख्त दीवार,
तुम्हारी आवाज़ भी कुछ फीकी सी लगी,
गले में घुल आयी शक्कर भी कुछ तीखी-सी लगी,
तुम पहली बार बैठे-बैठे थक से गए,
तुम इस बार मिले भी तो अधिक हिले-डुले भी नहीं,
न जाने ऐसा क्यों लगा कि तुम मुझसे कभी मिले ही नहीं।2
इक अरसा हो गया तुम मुझसे कभी मिले भी नहीं,
इस बार मिले भी तो तुमने जब्त कर रखीं थीं,
हल्क में ख्वाहिशें,
तुम्हारे पास ज़ज्बातों की भी कुछ कमी सी लगी,
आँखों में जज़्ब हो आए ख्वाबों में भी कुछ नमी-सी लगी,
तुम पहली बार भूल गए थे जिद्द करना,
तुम इस बार मिले भी तो अधिक मिले-जुले भी नहीं,
न जाने ऐसा क्यों लगा कि तुम मुझसे कभी मिले ही नहीं।2
इक अरसा हो गया तुम मुझसे मिले भी नहीं,
इस बार मिले भी तो तुमने पहली बार बाँध रखी थी,
कलाइ पर घड़ी,
तुम्हारे पास वक्त की भी कुछ कमी सी लगी,
दिल की जमीं पर उग आए अरमानों की सांसें भी कुछ थमीं-सी लगीं,
तुम पहली बार भूल गए थे मुझसे उलझना,
तुम इस बार मिले भी तो मुझसे किए शिकवे-गिले भी नहीं,
न जाने ऐसा क्यों लगा कि तुम मुझसे कभी मिले ही नहीं।2
इक अरसा हो गया तुम मुझसे मिले भी नहीं,
इस बार मिले भी तो तुम कुछ घुले-मिले नहीं।




नेता जी सुभाष चंद्र बोष

नेताजी पर लेख

 

लेखक का परिचय
नाम= नन्दलाल मणि त्रिपाठी (पीताम्बर )
पता =C-159 दिव्य नगर मदन मोहन तकनिकी विश्व विद्यालय के पास श्री हॉस्पिटल लेन नहर पार करते हुए दिव्य नगर कॉलोनी गोरखपुर उत्तर प्रदेश -273010
पिनकोड—
संपर्क-मोबाइल नंबर—09889621993
ई-मेल–[email protected]<mailto:[email protected]>

विषय-नेताजी सुभाष चंद्र बोस -जीवन और प्रभाव
1-साहित्य के आलोक में नेता जी-नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 1897 में कटक में जानकी नाथ बोस की 14 संन्तानो में नवी संतान के रूप में हुआ1-साहित्य के आलोक में नेता जी-नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 1897 में कटक में जानकी नाथ बोस की 14 संन्तानो में नवी संतान के रूप में हुआ था जब भारत अंग्रेजो का गुलाम था!! नेता जी संभ्रांत बंगाली विरासत वाले बंगाली समाज के कायस्थ परिवार में जानकी नाथ बोस और माँ प्रभावती दत्त की संतान थे जो भरतीय भारतीयता के परिपेक्ष्य में सम्पन्न बंगाल संस्कृति संस्कार की धन्य धरोहरों से संस्कारित था और धार्मिक सामाजिक रूप से भारत अविभाज्य सनातन की निरंतर प्रभा प्रवाह का परिवार था!!नेता जी स्वामी राम कृष्ण परमहंस की आभा से प्रभावित थे जिसके कारण सुभाष का वात्सल्य भारतीय धार्मिक विश्वास की अवधारणा की विरासत के मजबूत आधार पर हुआ जिसके कारण सुभाष बचपन से ही आत्म और आत्मा की वास्तविकता से परिचित दृढ़ मजबूत इरादों का युवा ओज व्यक्ति व्यक्तित्व बनकर भारत को चमत्कृत किया!!ऐसी मान्यता है कि नेता की बाल्यकाल में बंगाल की आत्मा अतिष्ठात्री माँ काली ने स्वयं अपने आशीर्वाद से भारत को उसके तत्कालीन भविष्य से परिचित करवाया थ जो आज की पीढ़ी युग के लिये प्रेरणा स्रोत है !!साहित्य के लिए नेता जी का जन्म जीवन भरतीय साहित्य दर्शन में आकर्षण और आकर्षक विषय वस्तु है जो साहित्य की वास्तविक अवधारणा के अंतर्गत सहित्य और साहित्यकारों को एक युग दृष्टि दृष्ट्या के दृष्टिकोण का दर्पण देता हैं जो भरतीय समाज भारतीयता और भारतीयों के लिये प्रेरक प्रेरणा का मार्गदर्शन देता है अतः नेता जी सहित्य को जीवन दर्शन ख़ास कर युवाओं के लिये साहित्य का आलोकित आलोक है यह नेता जी का आज के परिपेक्ष्य का सत्य सत्यार्थ है!!
2 -कवियों के काव्य में नेता जी-साहित्य साधकों कवियों लेखकों के लिए नेता जी एक नायक और महानायक की भूमिका के पात्र हैं भारत ही नही वल्कि अन्य राष्ट्रों के साहित्य साहित्यकारों के लिए आदर्श चरित्र है!!देश प्रेम में भरतीय लोक सेवा जैसे प्रतिष्ठा परक पद का त्याग और राष्ट्र की अस्मिता के लिए संघर्ष का रास्ता चुनना साथ ही साथ महात्मा गांधी से सहमत न होते हुये भी भरतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने के बावजूद गांधी जी के सम्मान में पद त्याग करना नेता जी के तेजस्वी व्यकित्त्व में निहित विराटता कवि की कविताओं को लेखकों की चिन्तनशील विचारों को ओज धार बना प्रासंगिक और प्रेरक बनाता है !!अतः नेता जी निर्विवाद रूप से कवि के काव्य लेखकों की चिंतनशीलता के प्रेरक प्रसंग के निर्विवाद महानायक है जो सहित्य को नई दिशा प्रदान करने में प्रमाणित सत्य हैं!!
3-नाटकों में नेता जी-भारतीय वर्तमान के परिपेक्ष्य मे नेता जी का व्यक्तित्व एक यैसा पात्र है जो हर भारतीय की भाव भावनाओं की संवेदना को प्रभावित करता अपना प्रभाव रखता है!!जब सामाजिक माध्यमों के दौर नही था और संचार संवाद के सिमित संसाधन थे तब ग्राम स्तर पर स्थानीय स्तर पर नाटको का प्रचलन था जो भारत की महान संवृद्धि सांस्कृतिक ऐतिहसिक विरासतों को जन जन तक पहुसहने का सशक्त माध्यम था उस दौर में भी नेता जी के जीवन पर नाटकों का मंचन सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त करता और समाज में नव जागृत उत्साह ऊर्जा देशभक्ति का संचार और संवर्धन करता था !! जब भारत मे नाट्य मंचों और नाट्य थियटर का विकास हुआ और नाटको का मंचन होना प्रारभ हुआ तब भी नेता जी के जीवन संघर्ष उनके जीवन दर्शन पर नाटकों का मंचन सर्व स्वीकार ग्राही और अनुकरणीय प्रेरक हुआ!!आज भी नुक्कड़ नाटको मैं नेता जी के जीवन दर्शन पर नाटकों का मंचन समाज को खास संदेश के लिये प्रेरित कर परिणाम परक स्वीकारता और प्रेरक परिवर्तन के लिए किया जाता हैं जो वास्तव मे भारत मे भारतीयों के लिए आदर्श है!!
4-: फिल्मों में नेता जी-विश्व मे ज्यो ज्यो संचार माध्यमों का विकास हुआ विश्व के सभी राष्ट्रो ने अपनी संवृद्धि सांस्कृतिक विरासत धरोहरों इतिहास इतिहास पुरुषों को अपनी जनता से परिचित कराने करने के लिये सार्थक प्रयास किया !!भारत मे नेता जी के अभ्युदय और उनके जीवन काल मे ही संचार माध्यमों में क्रन्तिकारी सुरूआत हो चुकी थी नेता जी ने स्वयं आज़ाद हिंद रेडियो की स्थापना की थी!!सिनेमा का भी विस्तार हो रहा था !!नेता जी की जीवनी पर आधारित अनेको चलचित्रों का निर्माण हुआ नेता जी जब आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे उनके जीवन को उनके द्वारा इन माध्यम का महत्व भविष्य के परिपेक्ष्य में परिभाषित किया !!वास्तव मे नेता की नीति नियति नेतृत्व आजादी में उनकी सहभागिता की वास्तविक समझ का माध्यम सिनेमा है!!नेता जी स्वयं एक बहुत अच्छे चिंतक विचारक लेखक थे साथ ही साथ अच्छे अभिनय के अभिनेता की आत्म सत्य था पस्तु भाषा न आने के कारण गूंगे बहरा बन निकल जाना हिन्दू और हिंदुत्व की आस्था का व्यक्तित्व होने के बावजूद पठान वेश भूषा में विल्कुल पठान दिखना नेता जी के व्यक्तित्व में जीवन्त कलाकार का ऐतिहसिक व्यक्तित्व को संदर्भित करता निरूपित करता ससक्त माध्यम सिनेमा को परिष्कृत परिमार्जित पुरुषार्थ पराक्रम का नायक प्रदान करता हैं जो अपने जीवन शैली और प्रत्येक पग कदम से एक नई संभावना को जन्म देता विजयी भाव का नायक राष्ट्र के हर युवा में संचारित करता हैं निःसंदेह नेता जी सिनेमा के साहसी सशक्त प्रेरणा के हस्ताक्षर है!!
5-लोकगीतों में नेता जी-लोक गायकों के कथानकों के मुख्य चरित्र पात्र नेता जी है !!आज देश के विभिन्न कोनो क्षेत्रों मे माताए दादी नानी नेता जी के जीवन पर आधारित कहानियों को क्षेत्रीय परंपरा की चासनी मिलाकर सुनाती हैं इस विश्वास आस्था के साथ कि उनका भी बालक अपने जीवन मे नेता जी के कृतित्त्व व्यक्तित्व को आत्मसाथ कर उनके माता पिता होने को गर्व मान देगा!!राष्ट्र के बिभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में नेता जी की जीवन को कथानक का मुख्य पात्र बना कर गाये जाते हैं जो लोकप्रियता के शिखर पर तो होते ही है तमाम विविधताओ को समेटे समाज को नेता जी के व्यक्तित्व का व्यवहारिक संचार कर समाज मे पीढ़ियों में जागरूकता जागृति जागरण का सार्थक वैचारिक क्रान्ति का मशाल रोशन करते है जो राष्ट्र को सही दिशा प्रदान करने में सहायक है!! नेताजी निर्विवाद रूप से लोक गीतों के कथानक पात्र हैं!!
6-नेता जी का युवाओं पर प्रभाव-भारत के दो महान ऐतिहासिक धन्य धरोहर में रामकृष्ण परमहंस परंपरा की पराकाष्ठा के मशाल मिशाल स्वामी विवेकानंद नंद जी ने भारतीयों को सम्मान दिलाने के लिये भारत के सनातन धर्म के धर्म दर्शन को पश्यात की गौरवशाली धरती शिकागों में पूरे विश्व जन मानस को भारत के संवृद्ध परंपरा के धर्म दर्शन से परिचित कराकर गुलाम राष्ट्र भारत को आजादी के आधार के सांस्कृतिक संस्कारिक विरासतों से परिचय करवाया हो तत्कालीन युवाओँ में आत्म सम्मान का आवाहन किया तो नेता जी ने अपने विलक्षण कार्य शैली प्रतिभा की कार्यशैली से युवाओं में आत्म सम्मान की जागृति का शंखनाद किया !! अध्ययन में गुलाम राष्ट्र के युवा होने और अति सीमित संसाधनों के बावजूद 1919 में इंग्लैंड के विलियम कॉलेज से स्नातक कर भरतीय सिविल सेवा में पहले टॉपर चौथे स्थान के साथ बनकर भरतीय युवाओं में व्याप्त गुलामी की निराशा के समक्ष चुनौतियों के समक्ष स्वयं के उद्देश्य के लिये ऊर्जा का संचार करता हैं !!पुनः प्रतिष्ठा परक स्थान से त्यागपत्र देकर देश की आज़ादी के लिये संघर्ष में उतरना युवा ओज का के। आत्म विश्वास की पराकाष्ठा पराक्रम युवा शक्ति के समक्ष प्रतिस्पर्धी संघर्ष शील व्यक्तित्व की प्रेरक पृष्टभूमि देता है !!1923 में भरतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मात्र 26 वर्ष की उम्र में ही दोहरी गुरूतर जिम्मेदारी का बखूबी निर्वाह तत्कालीन युवाओं में नेता जी का नेतृत्व उनको युवा का महानायक स्थापित करता हैं !!जीवन के युवा काल मे ही 1925 जेल जाना जक्षमा जेसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित होना जो उस समय लाइलाज़ थी इन विषम परिस्थितियों में भी न भटकना फौलादी इरादों के महानायक के तौर पर नेता जी को युवाओं के दिलो में स्थापित करता हैं!!पुनः मात्र 33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता का मेयर चुनाजना नेतृत्व की विराटता को नेता के व्यक्तित्व की व्यवहारिक विशिष्टता युवाओं में राष्ट्रीय सामाजिक प्रक्रियाओं में युवाओं की भूमिका का सत्यार्थ प्रकाश है जो युवाओं की शक्ति का आवाहन कर उनकी सार्थकता का बोध कराती हैं निश्चित तौर पर नेता जी युवाओं के आदर्श है औऱ रहेंगें!!
7-राजनीति औऱ नेता जी – नेता जी के राजनीतिक मार्ग दर्शक चितरंजन दास गांधी जी थे !! जो तीन गांधी चितरंजन दास गांधी,महात्मा गांधी,सीमांत गांधी में से एक थे !!राजनीतिक रूप नेता जी के विचार समाज वाद और साम्यवाद की रास्ट्रीय अवधारणा के बुनियादी चिंतन के आधार पर थी!!चुकी नेता जी ने बुनियादी स्तर से पत्रकारिता और राजनीतिक अभियान साथ साथ आरम्भ कीये थे उनके द्वारा विदेशों में दौरा कर विदेशों में अध्ययनरत और विदेशी छात्रो से विभिन्न विषयों और राजनीतिक विषयो पर एक बहस के बाद उनके विचार व्यक्तिव में राजनीतिक जीवन और उद्देश्य के सिद्धांत स्पस्ट थे !!चुकि नेता जी का जन्म गुलाम मुल्क की विविधता की विवशता में हुआ था और अध्ययन विलासिता के वैभव के शासन जिसके राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था के मध्य की सांस्कृतिक सांस्कारिक वर्जनाओं की गर्जना का अंतर मन था!!तत्कालीन भरतीय राजनीति और स्वन्त्रता आंदोलन में उन्हें युवा गर्म दल का नेतृत्व माना जाता था जिसके कारण उनके मतभेद भी थे इनका स्पस्ट राजनीति मत था कि आजादी किसी कीमत और रास्ते को अख्तियार कर प्राप्त की जानी चाहिए इसीलिए प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के लिए भरतीय सेना के लड़ने का विरोध किया था!!विरोध मतभेद के बावजूद उन्होंने अपने विचारों को स्वीकार करने के लिए कोई राजनीतिक रास्ता नही अपनाया वल्कि अपने सिद्धांतों को प्रतिपादित करने के लिये स्वयम निकल पड़े यदि द्वितीय विश्व युद्घ में जापान पराजित नही हुआ होता तो शायद आज नेता जी जी क्रांतिकारी विचार धारा गाँधी जी के अहिंसा सिद्धांत की तरह राजनीतिक प्रत्यक्ष सिद्धान्त होता जो आज अप्रत्यक्ष है !!जहां अहिंसा का अवमूल्यन हो जाता है वहाँ नेता जी के नेतृत्व का सिद्धांत ही सार्थकता है!!राजनीतिक विरोध मतभेद को नेता जी ने कभी राष्ट्र समाज के आड़े नही आने दिया ना ही समझौता किया नेता जी के राजनीतिक सिद्धान्त सदैव छोटी शक्ति के समक्ष बड़ी शक्ति के संगठनात्मक सिद्धान्त को अंगीकार किया जो आज भी प्रश्नगिक है!!
8-नारी और नेता जी-नेता जी का जन्म भी संभ्रांत बँगाली समाज मे हुआ था जहाँ नारी शक्ति की उपासना के साथ साथ धर्म समाज राष्ट्र में नारी शक्ति को महत्व पूर्ण स्थान प्राप्त है !!युग मे आधी हिस्सेदारी रखने वाली नारी शक्ति के लिए नेता जी सैद्धान्तिक प्रायोगिक रूप से संकल्पित थे!! पूरे विश्व मे पहली बार उन्होने जब आजाद हिंद फौज की कमान संभाली रबी उन्होने महिला ब्रिगेड की स्थापना की जिसकी कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन थी!! इसके साथ ही अपने वेतनमान में ही महिलाओं के शक्तिशाली विकास की अवधारणा का सफलता पूर्वक प्रयोग कर भविष्य को महिलाओं की महत्ता महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया!!
9-विदेशी योद्धाओं पर नेता जी का प्रभाव-नेता जी के बहुआयामी व्यक्तित्व के प्रभाव से कोई अछूता राह जाए सम्भव नही था !!नेता जी का आकर्षक व्यक्तित्व ,ओजस्वी वक्ता ,सार्थक पहल और सकारात्मक दृष्टिकोण उनके व्यक्तित्व की खासियत थी जो भी उनके सम्पर्क में एक बार आ जाता उनका ही होकर रह जाता !!तत्कालीन जर्मन शासक अडोल्फ हिटलर जो एक अच्छा सीपही जाबांज योद्धा और कुशल नीति निपुण सेनापति था और तत्कालीन विश्व का शसक्त मजबूत शक्तिशाली नेता नेतृत्व था नेता जी का कायल था!! वह नेता जी के नेतृत्व क्षमता और उनकी विशेष विशिष्टता के कारण ही नेता जी को जर्मनी में विशेष स्थान दे रखा था और नेता जी को उनके उद्देश्य में सहयोग भी प्रदान करता उस समय नेता जी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में अडोल्फ हिटलर की महत्वपूर्ण भूमिका थी!!
10- सेना और नेता जी -नेता जी की जीवन शैली प्रारंभ से ही अनुशाषित सिपाही की थी !!जीवन मे अनुशासन उनके लिये महत्वपूर्ण था!! नेता जी किसी स्थापित सेना के सेनापति नही थे बल्कि उन सीपहीयो की सेना आज़ाद हिंद फौज के मुखिया थे जिसके सीपही समय के साथ हौसला और विश्वास दोनों खो चुके थे उनकी सेना के अधिकतर सीपही या तो प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के साथ लड़ने के बाद उत्साह हींन थे या तो ब्रिटिश हुकूमत से प्रताड़ित भरतीय सेना के आत्म विश्वास खो चुके सिपाही थे जिनमें जीवन उदेश्यों और आशाओ का नव संचार कर आज़ाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्व तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा के नेतृत्व किया!!नेता जी के सैन्य जीवन शैली और सेना के जनरल कमांडर के लिये निम्न सत्य है-
“भारत के स्वाभिमान का जाबांज़ आज़ाद मुल्क भारत का पहला मुबारख कदम शान !!
खून और आज़ादी के इंसानी रिश्ते की पुकार ललकार !!
नेता नियति निति पथ प्रदर्शक कराल काल की धारा को देता नयी पहचान !!
विनम्रता शौम्याता की विरासत का व्यक्तित्व महान चुनौतियों की चुनौती का युवा चेतना की हुंकार !!आज़ादी के महासंग्राम का महायोद्ध्य अंदाज़ पांचजन्य का शंख नाद !!
सत्य अहिंसा के महात्मा के सम्मान का अंगार अस्तित्व के निर्माण का अहम् अदम्य साहस बेमिशाल !!
भारत की माटी के कण कण की सुगंध का सुवाष वात्सल्य माँ भारती की आँचल का अरमान लाज !!
युवा संस्कार संस्कृति आचरण की प्रेरक प्रेरणा का परिणाम !!
भारत भूमि की युवा चेतना चमत्कार का शौर्य सूर्य क्षितिज पर उदय उदित उदयमान !!
नौजवान आज़ाद हौसलों की उड़ान उड़ान माँ काली का वरदहस्त वरदान !!
आज़ादी का चिराग प्रज्वलित मशाल भारत की गौरव का मान विश्व में भारत की आज़ादी की खास अंदाज़ पहचान!!
जोश उमंग उत्साह ऊर्जा का परम पुरुष राष्ट्र चेतना की टंकार !!
कर्म धर्म के कृष्णा के कुरुक्षेत्र की महिमा स्वाभिमान !!मर्यादा मूल्यों का युवा शक्ति का राम !!
अन्याय अत्याचार का काल परशुराम !!
सरस्वती की साध्य साधना का प्रभा प्रवाह !!
युग की परिभाषा को बदलता सत्य सर्थार्कता का युग प्रमाण !!
सुभाष नेतृत्व का सारथी युद्ध का योद्धा आज़ादी का पुरोद्दा काल का भाल !!
अंधेरों के साम्रा्ज्य में चीखती चीत्कार की आशा विश्वाश का प्रकाश नेता सुभाष “!!
11- देश की आजादी में नेता जी का योगदान-भारत की आज़ादी के प्रथम संग्राम 1857 की बिखरे नेतृत्व क्रंत्ति की असफलता के बाद राष्ट्र के विभिन्न छोटे छोटे राज्यो जातियों धर्मों सम्प्रदाय में बाटे भारत मे एक समझ अवश्य आ गयी थी कि बिना सांगठनिक ढाँचे के बहुआयामी बहुरंगी भारत को स्वन्त्रता के लिये संगठित नहीं किया जा सकता हैं!!जिसके चलते 1885 में भरतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने भारत वासियों को अपनी स्वतंत्रता आंदोलन के लिये संगठन प्रदान किया अनंत 90 वर्षों के अनवरत संघर्ष के उपरांत 1947 में आजादी मिली!!इन 90वर्षों में भारत वासियों ने संगठित नेतृत्व के अंतर्गत तीन स्तरों पर अनेकों त्याग बलिदानो के साथ कोंग्रेस के बैनर के नीचे अपने आजादी की
लडाई लड़ी!!1-महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में अहिंसा आंदोलन सत्याग्रह के माध्यम से विदेशी वस्तु का वहिष्कार वस्त्रों की होली नमक सत्याग्रह आदी के द्वारा विदेशी हुकूमत की अर्थव्यवस्था पाए प्रहार!!छुआ छूत अस्पृश्यता के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन छेड़ बंटे भरतीय समाज को एकीकृत गांधी जी ने किया!!2-गुलामी के दंश से आक्रोशितदेश के युवा वर्ग द्वारा रक्त रंजित क्रांति का शंखनाद राज गुरु,शुकदेव ,भगत सिंह ,बटुकेश्वर दत्त ,चंद्रशेखर आज़ाद, हेमु कलानी आदि नौजवानों ने ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में बम फेंक कर ,सेंडर को दिन दहाड़े मार कर यह सन्देश दे दिया कि भारत की युवा पीढ़ी गुलाबी किसी कीमत पर स्वीकार नही करेंगी !!3-भारत की आजादी की लड़ाई का अहम पड़ाव भारत के आज़ादी की लड़ाई में नेता जी का अभ्युदय नेता जी ने अपने अकेले प्रयास से ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सहमति बनाई जर्मनी, जापान, इटली जैसे अनेकों राष्ट्रों का नेता जी को खुला समर्थन सहयोग था जिससे ब्रिटिश हुकूमत सकते में आ गया !!साथ ही साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन और नेता जी द्वारा विस्तार किया गया जिसमें वे ही सैनिक थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में ब्रिटिश हुकूमत के लिए युद्ध किया था आज़ाद हिन्द फ़ौज में आकर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध लड़ कर लगभग गुलाम भारत का 200 वर्ग मिल भू भाग आज़ाद कराकर ब्रिटिश हुकूमत को सेना और सुरक्षा को चुनौती दी जिसने ब्रिटिश हुकूमत को थर्रा दिया नेता जी के नेतृत्व नीति कुशलता को भरतीय सवंत्रता की क्रांति सदैव सलाम प्रणाम नमन करेगी क्योंकि भारत के सवंत्रता संग्राम की आत्मा का नाम है नेता !!




अद्वैत

 

अद्वैत

एक स्त्री चाहिए

मन  को समझने के लिए

जिसके समा जाऊ

जार जार रो सकूँ

पोर पोर हँस सकुँ

बता सकूँ हर वो बात

जज्बात जो मन 

में उठते हो

मैं सिर्फ़ तन से नहीं

मन से भी नग्न हो सकूँ

उतार फेंकूँ सारे मुखौटे

भूला सकूँ।

माँ की तरह

तुम फेर दो हाथ बालों पर गालों पर

पुरूष होते हुए भी

सहारा  

चाहिए कभी कभी मुझे भी

बडी बहन की तरह

जो मार्ग दिखाये

एक  ऐसी स्त्री चाहिए

जिसे प्रेम करते हुए

पूजा भी कर सकूं

श्रद्धा से

जिसके नयनों को चूम सकूँ

बेटी सा

जिसके स्पर्श मात्र से

पुलकित हो उठे रोम रोम मेरा

कर दूं पूर्ण समर्पण

विगलित हो अस्तित्व मेरा

प्रकृति सा निखर जाऊ

मैं नारी सा बन जाऊं

वो विराट पुरुष बन जाएं

उसमें मैं समा आऊँ

वो मुझमें नज़र आएं

हम शंकर का अद्वैत हो जाए

एक स्त्री चाहिए

जिसे मैं उस तरह प्रेम कर सकूँ।

—————––

© समि




प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

  कविता 

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तुम कैसे हो?

अब नहीं कह पाती हूँ, 

जीवन की आपा -थापी में 

निश्चल अनुराग के इस बंधन में 

संग पीरों कर तुझ संग,

अपने मन के तारों से 

अक्सर उलझ-उलझ कर मैं, 

आस की तस्वीर लिए ,

यादों के तट से तटिनी बन कर, 

कह न सकी तुमसे ये 

“मेरे जीवन हो”

या जीवन जैसे हो |

प्रीत की धारा में बह कर 

कल्पना के सागर में ,

सर्द हवाओ में, 

ठिठुरती आँगन में पड़ती धूप हो !

या वक्त की क्यारी में सिमटे हुए 

तन्हाईयों के दामन से लिपटे 

मेरी आँखों में बसे स्वप्न जैसे 

जाने कैसे हो ? 

अब नहीं कह  पाती हूँ 

कि तुम कैसे हो?

तुम कैसे हो ?

डॉ कविता यादव 




महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता में शामिल करने हेतु।।

‌                     “उलाहना”

 

अनायास ही..

बड़े ही सहजता से कह दिया मैंने

कि तुमने मुझे दिया क्या है..

जबकि..

चेतन मन को खबर है

कि मेरे उपर तुमने

न्योछावर कर दिया है 

संचित निर्मल प्रेम और स्नेह

समर्पित कर दिया अपना देह

मेरे उफनते जज़्बातों को..

समा लिया तुमने

अपने अपनत्व के असीम सागर में

ना तुफानों की परवाह की तुम

और ना ही साहिलों का फ़िक्र

संग चल दिए राह – ए – सफ़र में

हर्फ़ – दर – हर्फ़ में है इसका ज़िक्र

राह – ए – उलफ़्त में जगह दिया 

मेरे ख्यालों को अपने ख्यालों में..

सुनो.. लौटा दो मुझे

नश्वर चीज के लिए दिए गए 

उलाहने के एक एक शब्द 

क्योंकि हमारे तुम्हारे बीच की

रूहानी संबंध ही तो चिरंतन है।।

 




“महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता- रेड लाइट एरिया”

#रेड लाईट एरिया#

 

हम अपनी जमात में अगर बात कर दें रेड लाईट एरिया की तो
कई जोड़ी आँखों के साथ 
घर की दीवारें भी ऐसी घूरती हैं 
जैसे,
जवान होती बहन से किसी भाई ने पूछ दिया हो पीरियड की बात……….,
नैतिकता के पैमाने पर यहाँ बात करना वर्जित है
लेकिन रात के अँधेरे में 
उन गलियों के चक्कर लगाना नहीं


हम बगल में सोती लड़की का चेहरा देखने से भी कतराते हैं लेकिन,
जो देखना है उसे जी भर के देखते हैं 

मोक्ष प्राप्ति के बाद नोटों की गड्डी फेंक देते हैं
कालर ऊँची करते हैं
और कभी न कटने वाली नाक ऐसे ऊँची करके चलते हैं 
जैसे,
किसी महत्वपूर्ण शिखर वार्ता से वापस लौट रहे हों…………………..
लेकिन,
दिन के उजाले में वो गलियाँ बेहद उदास नज़र आती हैं
वहाँ हर रोज मर रही औरतों की तरह
रात के अंधेरे में यहाँ थोड़ी चहल-पहल होती है
खरीदे-बेचे जाने की कुछ बात
रंडी है औरत जात कुछ ऐसे श्लोक भी बोले जाते हैं


दूर से आती है किसी लड़की की कुंवारी हँसी
आज वो खूब हँस रही है
कोई उसे दिखा रहा है कुछ सपनें जिसके 
टूटने की आवाज़ कर देगी उसके शोर मन को शांत,
यहीं कहीं कोई दूसरी लड़की खूब रो रही है
खुद को कोस रही है की उसने क्यों किया मजनू पर विश्वास
यह जानते हुए कि,
इस एरिया की माँग में सिंदूर नहीँ होता…………….,
एक छोटी लड़की को सिखा रही हैं उसकी बहनें 
की अब दुपट्टा थोड़ा सरका कर लो
वह दिखना चाहिये जो सब देखना पसंद करते हैं
और
वो पागल समझ नसीहत पा रही यह नासीहत
एक और लड़की…..नहीं औरत कर रही है अपने जाहिल निर्माता को याद कि,
पैदा होने वाली नस्ल लड़की ना हो


यहाँ सबक़ुछ जल रहा है
गलियाँ 
सड़कें
दीवारें 
औरत 
लड़की 
बच्चे 
बचपन 
जवानी 
सपनें……और
एक पूरा का पूरा जीवन
जो मरने से भी बदतर है
फिर भी जल रहें हैं कुछ दीप
इस उम्मीद से कि,
कहीं दूर ही सही लेकिन होगा कल्किका अवतार
रातें बदलेंगी 
लेकिन,
मुझे नज़र नहीँ आते कोई आसार बस 
कानों में गूंज रहा है वह अट्टहास जो
कह रहा है
यह एरिया एक शरीर है 
और,
औरत एक योनिजिसे 
मैं हर रोज कुचलूँगा……………………”

 

 




“अंतराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता” शीर्षक”मां”

माँ
:::::::::
माँ ही शिक्षक महान जगत में अच्छा पाठ पढाती है।
हिम्मत और होंसला दे कर,आगे सदा बढाती है।।1।।
माँ दुनिया की महान विभूति,त्याग तपस्या की मूरत है।
मनुज सृष्टि की रचयिता,माँ ईश्वर की सूरत है।।2।।
माँ में सकल गुण समाहित,सकल गुणों की खान है।
कोई नही है माँ से बढ कर,माँ तो सदा महान है।।3।।
धैर्य ममता सहनशीलता,दया करूणा का सागर है।
प्यार की गंगा माँ के दिल में,कोई न तोर बराबर है।।4।।
सारक तारक पालक पोषक,सहायक नायक माता है।
हमको लायक करने का बस,श्रेय तुम्ही को जाता है।।5।।
तेरे बिन सारा जग सूना,सूना जीवन सारा है।
मत जाना माँ हमें छोड कर,कोई नही हमारा है।।6।।
हर दम ध्यान सभी का रखती,कितनी भोली भाली माँ।
पास बैठ कर हमें जिमाती,तूं भोजन की थाली माँ।।7।।
जब कभी बीमार पडे हम,तूं मन ही मन रोती है।
गऊं की भांति तडपने लगती,नही रात भर सोती है।।8।।
हमे सुलाती थी सूखे में ,खुद गीले में सो जाती थी।
हमरी खुशियो में ही सारी,अपनी खुशियां पाती थी।।9।।
पास हुआ कोई जब तूं सुनती,तूं झूमने लगती माँ।
पूजा कर टीका लगवाती,और चूमने लगती माँ।।10।।
कोई नही है मां से बढ कर,माँ गुरू ईश्वर सारी है।
तेरी महिमा हद से ज्यादा,सबसे ज्यादा प्यारी है।।11।।
तूं पापा के बीच आ जाती,भला बूरा सुन लेती है।
खुद कहती पर ओरों को,कुछ नही कहने देती है।।12।।
निज बच्चों के लिए तूं दिल में,लाखों स्वप्न संजोती है।
रात-दिन बच्चो की रहती,खुद की चिंता ना होती है।।13।।
दादी मां ने खूब बखानी,तारीफ दादा जी ने की थी।
बहुत ही मस्त हमारी भाभी,पक्ष भुआ ने हरदम ली थी।।14।।
दिया न मौका शिकवा कभी,कितने काम तूं कर लेती है।
सबके दिल में तूं खशियों का,बाग खडा कर देती है।।15।।
हम जहां कहां भी होते,ज्यादा चिंता करती है।
लिये सभी के जीती है तूं,जान छिडकती मरती है।।16।।
मां चरणो में अडसठ तीरथ,तव चरणों में चारों धाम।
आशीर्वाद तुम्हारा चाहिये,हे!पूजनीय माँ प्रणाम।।17।।

*** जबरा राम कण्डारा ***
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महिला दिवस काव्य लेखन प्रतियोगिता

सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका
(महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता लेखन)
(प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो)

प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो
बाधाओं को लांघ उसे बाहर आने दो
(1)
हर युग में रावण सीता को हरता आया है
चीर हरण दुशासन उसका करता आया है
दाँव पे रखकर नारी को नर छलता आया है
अग्नि परीक्षा लेकर लज्जित करता आया है
राम भरोसे नारी को अब मत रह जाने दो
बाधाओं को लांघ…
(2)
देख अकेली महिला को जो हवस मिटाते हैं
इंसानी रिश्तों को पल में बिसरा जाते हैं
मौक़ा पाकर इज्जत को नीलाम कराते हैं
साक्ष्य मिटाने ख़ातिर हत्या तक कर जाते हैं
ऐसे नर भक्षियो को अब शूली चढ़वाने दो
बाधाओं को लांघ…
(3)
धन के लोभी नारी को जो रोज़ सताते हैं
क्रूर यातनाएँ देकर हत्या करवाते हैं
चाँदी के सिक्कों में बेटों को तुलवाते हैं
पशुओं की मानिंद उनकी बिक्री करवाते हैं
उनके चंगुल से नारी को मुक्त कराने दो
बाधाओं को लांघ..
(4)
जिस नारी को कुल्टा कहकर पुरुष सताता है
बेबश अबला पर अपना पौरुष दिखलाता है
पैर की जूती कहकर मन ही मन मुस्काता है
व्यंग बाणो की बौछारों से उसे रुलाता है
उस नारी को अब तो रणचंडी बन जाने दो
बाधाओं को लांघ…
(5)
जिस नारी ने गर्भ में अपने नर को पाला है
संकट की हर घड़ी में उसको सदा संभाला है
उस नर ने ही नारी को उलझन में डाला है
अहम् भावना ने नर को दम्भी कर डाला है
पुरुष दंभ से नारी को अब मुक्त कराने दो
बाधाओं को लांघ ..
(6)
गर्भ में ही गर्भस्थ शिशु को जो मरवाते हैं
बेटा-बेटी के अंतर को समझ ना पाते हैं
बेटों से बेटी सी सेवा कभी ना पाते हैं
वृद्धावस्था में जाकर फिर वो पछताते हैं
लिंग भेद की प्रथा को अब तो मिट जाने दो
प्रतिभा नारी को भी अपनी दिखलाने दो
बाधाओं को लांघ उसे बाहर आने दो !!
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम,स्पेज सेक्टर-93(9717531426)

-मेरी नियति-

कब तक यूँ ही-
तिल-तिल कर
मरती रहूँगी मैं
हर दिन हर पल
ज़िंदा जलती रहूँगी मैं ?
कभी जली हूँ-
दहेज की ख़ातिर
कभी मिटी हूँ-
हवस की ख़ातिर
कभी होती हूँ-
घरेलू हिंसा की शिकार
तो कभी होता है मेरा
लव जेहाद के नाम पर व्यापार
आख़िर क्यों कर रहा है मुझसे
मेरी ही कोख से जन्मा मानव
दानव सरीखा व्यवहार ?

कब तक लड़ती रहूँगी मैं जंग
ज़िंदगी की-
जलती आग से
वहशी जल्लाद से
लव जेहाद से
दहेज लोलुप समाज से ?

क्या यही है मेरी नियति
तिल-तिल कर मरना और
ज़िंदा जलना..?
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम(हरियाणा)

(स्त्रीनामा)
बहुत मुश्किल काम है स्त्री होना
स्त्री होकर दूसरों की भावनाओं को समझना-समझाना
स्त्री एक है रुप अनेक
कहीं माँ बन परिवार पालती है
कहीं पत्नी बन घर संभालती है
कहीं बहन बन भाई को दुलारती है
तो कभी बेटी बन घर-आँगन सँवारती है
कब वह चिड़िया बन आसमान में उड़ने लगेगी
कब धरती पर परिश्रम की चाशनी में गोते लगाएगी
पता नहीं चलता

लोग कहते हैं-
महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा
दया ममता करुणा ज़्यादा होती है
मैं कहता हूँ-
किसने कहा पुरुषों में दया ममता करुणा होती नहीं
दरअसल दया ममता करुणा मात्र महिलाओं की बपौती नहीं
कुछ पुरुष महिलाओं से भी अधिक
कोमल करुण संवेदनशील होते हैं
उनकी छाती में फूट-फूट कर
रोया भी जा सकता है और
निश्चिंत हो पहलू में सोया भी जा सकता है
सच तो यह है कि-
स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं
स्त्री अर्धांगिनी तो पुरुष उसकी ज़रूरत है !!
स्वरचित मौलिक
राजपाल यादव,गुरुग्राम(हरियाणा)