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“प्रेम-काव्य प्रतियोगिता”

प्रेम
— — — —
प्रीत पुरातन रीत रही मन मीत नही जग है दुखदाई।
खोल कहे मन की जिस बात को प्रेम बिना नजदीक न आई।।
प्रेमविहीन जिको उर जानहुँ बंजर खेत समान कहाई।।।
प्रेमबिना जग में कछु नाहिन वो दिल पत्त्थर रूप अंगाई।।1।।

जानहुँ वेश आभूषण धारहुं भाल न जा लग काढत टीका।
नैन न फाबत काजल के बिन बैन न मृदुल भाव सलीका।।
नेह बिना निज गेह जंचे किमि स्वाद न देवहि भोज न तीखा।।।
प्रेम बिना सब शून्य बराबर मानुस जीवन लागत फीका।।2।।

तात स्वभाव उग्र दिखही मन भीतर प्यार उबाल भरे हो।
मात सदा ममता दरसावत ले सुध सार-संभाल करे हो।
भ्रात कहे भगिनी बतलावत भ्रात को भ्रात हि ख्याल करे हो
प्यार पितामह बेहद राखत प्रेम प्रिया को बेहाल करे हो।।3।।

प्रेम रूलावत प्रेम हंसावत प्रेम दिखावत रूप जु नाना।
प्रेम बुलावत औ अकुलावत प्रेम सदा बुनवै मन ताना।।
प्रेम हिये सुर तान अलापत गावत है मन ही मन गाना।।।
प्रेम बिना सब नीरस लागत प्रेम ही भक्ति रूप रिझाना।।4।।

नौकर-चाकर औ सुविधा सब देख नही मन को हर्षावै।
कार मकान दुकान सबै लख-कोटिन संपत्ति धूल कहावै।।
प्राण प्रिया बिन ये जियरा तड़पे पल एक न चैन न पावै।।।
जोहत बाटन आंख तकी रह घेर वियोग की पीड़ सतावै।।5।।

संगत की उखड़े सब रंगत यो मनडो फिर कै विधि लागै।
बात-चर्चा कछु और करे पर प्रेम नही मन दूरहि भागै।।
आदर के बिन हाथ बढ़ेय न भोज बत्तीस रखे भल आगै।।।
प्रेमहि है अनमोल सबै कहि प्रेम यकायक प्रेम हि मांगै।।6।।

प्रेम बिना असरंग जंचे न धमाल संगीत न ताल-तरानों।
बेसुर लागत गायक- पायक मंच-पंडाल सबैहि बिरानों।।
औपत-सौपत नाहिं नजारन नृतक को नव नृत दिखानो।।।
प्रेम बयार चलै न जहाँ उस ठौर न भूल करैय न जानो।।7।।

प्रेम लुटे धन प्रेम लुटे मन प्रेम लुटे तन संपति सारी।
प्रेम बंसी सुन मोहि सबै ब्रज-गोकुल गांवन की नर-नारी।।
प्रेम अगाध सपूत वियोग उच्चारत राम को प्राण गंवारी।।।
प्रेमन के वस वा चकवी रह जाग्रत रैन बिताय बिखारी।।8।।

बारन बार न मानुस जीवन है अनमोल जु प्रेम-खजाना।
संत भक्त बिरला बस प्रेम की कीमत प्रेयसि-प्रेमिहि जाना।।
प्रेम कराय सर्वस्व अर्पण पराजय होत महाबलवाना।
प्रेम निगाह डिगाय हियो बस मार प्रभावहि भान भुलाना।।9।।

प्रेम अगाध सदा हर को अमिया बिन ना पल एक रहाई।
गोपिन के बिन कृष्ण रह्यो कद याद करी मुरली धुन गाई।।
विष्णु रह्यो न रमा बिन देखहुँ है चित्र पाँव पखारति पाई।।
नाम नरायन की रट टेरत नारद के मन प्रेम समाई।।10।।

प्रेम वही मन पाक सदा अरु वंचकता रति अंश नहीं हो।
भ्रात,पिता,पुत्र मातुल कोउक आदत को बस कंस नही हो।।
काक स्वभाव लगार न भावहि हो गुणवान तो हंस कही हो।।
मीत वही दिल मानवता बस दानववृति का वंश नही हो।।11।।

नैन लुभावन बैन सुहावन चैन नहीं जियरा कलपावै है।
प्राण प्रिया हर प्राण गयी गत मीन समी जल हीन कहावै।।
याद सतावत नींद न आवत मोहनि मंत्र विधा गई बावै।।।
खान न पान न अंग न लागत प्राण प्रिया बिन नाहि सुहावै।।12।।

— जबरा राम कंडारा




प्रेम काव्य अंर्तराष्ट्रीय प्रतियोगिता

तुम—
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
सुन रहे हो न तुम,
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
क्योंकि मैं
तुम में ही तो हूँ,
तुम से ही तो हूँ,
तुम में ही तो मैं विलीन हूँ।
क्योंकि,
मैं हूँ ही नहीं, तुम ही तुम हो,
मेरे ख्यालों में, मेरे सवालों में,
मेरी नींदों में , मेरे ख्वाबों में,
मेरी जागृति में, मेरे फैसलों में,
मेरे अस्तित्व में, मेरे रोम- रोम में।
तुम ही तुम हो, मैं कहीं नहीं।
मेरे मानस पटल की हर दीवार और कौने में,
हो सके तो झांक कर देख लो,
क्या मालूम तुम फिर कभी आईना न देखो।
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।
क्योंकि मैं तुम में ही हूँ, तुम से ही हूँ।
क्या तुम्हें कुछ अच्छा नहीं लगता?
लग भी कैसे सकता है,
क्योंकि तुम तो तुम हो।
एक दिन जब तुम, तुम नहीं रहोगे,
तब,
तुम्हें भी कुछ अच्छा लगेगा।
मुझे अच्छा लगता है जब कोई मुझे तुम कहता है।




कृषि कानून और नेताजी की चिंता

कृषि कानून और नेताजी की चिंता …….

सर आपके चुनाव क्षेत्र से कुछ लोग आपसे मिलने आए है, आप से बात करने आए हैं ।
तुमने उनसे पूछा कि उनकी समस्या क्या है वे हमसे किस विषय पर बात करना चाहते है । पूछा था सर ” पानी पिलाने के बाद सबसे यही पूछा था ” कहने लगे नए कृषि कानून को लेकर बात करनी है , तो इस विषय पर उन्हें हमसे क्या बात करनी है यह तो हमारा मंत्रालय भी नही है फिर मान लो उन्होंने हमारे सामने अपनी समस्या रख दी तो उसे समझेंगे कैसे हम तो अभी तक “अपने मंत्रालय को भी ठीक से समझ नही पाएं है ।”
तुम ऐसा करो उनसे कहा दो की मंत्रीजी अपने मतदाताओं की समस्या दूर करने अपने चुनाव क्षेत्र में गए हुए है, सर आप बात को समझिए वे आपके चुनाव क्षेत्र से प्रोटोकाल के तहत ही आ रहे है, मेने उन्हें समझाने की कोशिश भी की थी कि मंत्रीजी मीटिंग होने के कारण दूसरे शहर गए हुए हैं तब सभी एक सुर में कहने लगे “ठीक है अब वोट डालने के समय हम भी अपने परिवार को लेकर दूसरे शहर चले चले जाएंगे ” चुनाव के समय तो कहते थे में तुम्हारे लिए आधी रात को खड़ा हूँ और आज यहां दिन में भी नही मिल रहे है बड़ी मुश्किल से कोल्ड्रिंक पिला कर उनका गुस्सा शांत किया, अच्छा कहीं से ये पता करो कि यह “कृषि बिल है क्या और इसे लेकर किसान इतना इतना विरोध, इतना परेशान क्यों हो रहे है ।”
सर उस दिन तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप कह रहे थे कि मैने इस बिल का एक एक शब्द पढ़ा है और इसमें सिर्फ किसानों के हित की बात कही गई है नए कृषि कानून में जो भी नियम बनाए गए हैं उससे सिर्फ और सिर्फ किसानों का ही भला होने वाला है ।
यह आपकी सरकार है आपके मत से चुनी हुई सरकार है जो केवल किसानों के हित की बात करती है , इसलिए आप लोग किसी के बहकावे में न आए और हमारी नियत पर भरोसा करे ।
हाँ, हाँ कहा था ! मगर तुम तो जानते हो कथनी और करनी में अंतर होता है ! हम तो पिछले पचास वर्ष से कह रहे है देश मे गरीबी खत्म करेंगे अब तुम्ही बताओ हुई क्या ,नही हुई सर उल्टे गरीब खत्म हो गए मगर इनका क्या करे सर जो बाहर बगीचे में आपका इंतजार कर रहे है में भी वही सोंच रहा हूँ कहीं ऐसा न हो कि में कुछ ऐसा कह दूँ जो पब्लिक में जाकर बड़ा इश्यू बन जाए अच्छा यह बताओ उस बिल में ऐसा क्या लिखा है जिससे किसान आग बबूला होकर गाँव से शहर आ गए ।
सर उन्हें लग रहा है कि इस नए कानून की वजह से कृषि का क्षेत्र भी पूँजीपतियों व कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा मगर सरकार तो साफ साफ कह रही है कि किसान अब अपनी फसल किसी भी बाजार में मनचाही कीमत पर बेच सकेगा यह बात तो हम सालों से कह रहे हैं मगर आज भी किसान को अपनी फसल का लागत मूल्य भी नही मिल रहा है सर असल बात यह है कि खेती में बड़ा मुनाफा सिर्फ सरकारी योजनाओं में दर्शाया जाता है मिलता कभी नही है अगर इतना ही मुनाफा मिलता तो” रामदीन अपनी पचास एकड़ जमीन आपको क्यों बेचता जिस पर आप बगैर खेती किए टैक्स की छूट का लाभ ले रहे है।”
सच आप भी जानते है हम जिसे अन्नदाता कहते हैं, जो देश वासियों का पेट भरता है वह आज अपने पेट की ख़ातिर सड़क पर उतरा है संवाद के अभाव में उसे लग रहा है कि उसके हक़ को , अधिकार को छीना जा रहा है।
अच्छा चलो उनसे बात करते है उन्हें नए कानून से, सरकार से क्या तकलीफ है यह उन्ही से समझते है ।
राम राम काका सभी को नमस्कार आप का यह सेवक आपकी क्या सेवा कर सकता है। हुजूर हम बहुत मुश्किल में है बड़ी आस लेकर आपके पास आए है हमारी मदद करो।
हाँ, हाँ लेकिन हुआ क्या है सरकार तो आपके भले की ही सोंचती है आप बिल्कुल चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा अरे ऐसे कैसे ठीक हो जाएगा हमारे वोट से सरकार बनाकर हम से ही आँख मिचौली खेली खेली जा रही है किसानों का रुन्दन सुनकर ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी नेताजी की तिजोरी से निकलकर बाहर आ गई उनसे नेता के सामने गिरियाते किसानों के आँसू देखे नही गए वे लक्ष्मी से दुर्गा के रूप में अवतरित हो कर नेताजी की और कुदृष्टि कर बोली जनता के सामने इन्हें अन्नदाता कहते हो व इन्ही के खिलाफ संसद में नए कानून बनाते हो पिछले पंद्रह साल से कह रहे हो कि किसान की आय में वृद्धि करेंगे उनकी मेहनत का उचित मुआवजा दिलवाएंगे ओर कुर्सी पर बैठते ही अपना वादा भूल कर गिरगिट से भी तेजी से रंग बदलने लगते हो नही देवी नही यह सच नही है ,पंद्रह साल पहले हमारी सरकार थी ही नही, हो सकता है लेकिन विरोध में तो तब भी थे न फिर सरकार में आते ही किसानों की गरीबी, बदहाली क्यों दूर नही हुई ।
मै तुम्हारे यहां एक क्षण भी नही रुकूँगी कान खोल कर सुन लो में इन भोले भाले किसानों का दुर्भाग्य अपने हाथों दूर करूंगी, तुम इन्हें बहुत छल चुके अब में स्वयं अपने हाथों आर्थिक पैकेज देकर इन्हें सुख सम्पन्न आत्मनिर्भर कर बना कर दिखा दूंगी ।
………………….


  1. प्रमाणीकरण-
    रचना पूर्णतः मौलिक  है ।

    अनिल गुप्ता
    कोतवाली रोड़ उज्जैन



फिर आई सर्दी

लघुकथा….

फिर आई सर्दीO
सर्द ऋतु आते ही रजाई की याद आती है एक वो ही है जो
ठंड में भी गर्मी का अहसास दिलाती है ।
कभी कभी लगता है कि
जिन लोगो के पाससिर छुपाने को छत नही हैजिनके पास पहनने को कपड़े नही है कड़ाके की ठंड में ओढ़ने को रजाई नही है
वो अपना गुजर बसर कैसे करते होंगे यह सोचकर ही
ठंडी आह निकलने लगती है ।
एक दिन ठंड शुरू होते ही
पिताजी कहने लगे आज गजक लाएंगे ठंड में गजक खाने का
अलग ही मजा है मेने कहा पिताजी आप से कुछ कहना है
वे बोले हाँ कहो क्या बात है
पिताजी आज आपगजक की जगह कुछ और ला सकते है
हाँ हाँ कहो ,क्या लाना है
पिताजी यहां से थोड़ी दूर एक झोपड़ी है वहां पर एक अम्मा ठंड से ठिठुर रही है उनके लिए एक रजाई ला दो मुझे गजक नही चाहिए मेरी बात सुनकर
माँ की आँखों से आँसू निकल आए पिताजी ने कहा अरे वाह !
अब तो आप समझने भी लगे हो
आज रजाई भी आएगी और गजक भी चलो तुम्हारे हाथों से
अम्माजी को देनाझोपड़ी के सामने गाड़ी रुकी वह बाहर आ गई यह लो अम्मा रजाई और मिठाई अम्मा ने अतिथि के आगे
झोली फैला दी मेरे बेटों ने मुझे घर से निकाल दिया और इस छोटी सीबेटी ने मुझे ठंड से बचा लिया ।
……

अनिल गुप्ता
कोतवाली रोड़ उज्जैन




तुम ये मत समझों

कविता

तुम ये मत समझो चीन
कि राफेल के आने से
हम एकाएक
ताकतवर हो गए है
हमने सिर्फ तकनीक
और आयुध में इजाफा किया है तुम्हे ज्ञात ही होगा
हमारा इतिहास और
नही पता हो तो
जाकर अपने नए एशियाई
साथी से पता कर लो
ये वो भारत है
जहाँ के जर्रे जर्रे में
कायनात है
जिस धरती पर
प्रभु राम, कृष्ण और गौतम बुद्ध
ने जन्म लिया हो
वह अब भला ,
ड्रेगन से क्या डरेगा
गलवान घाटी से भी
ज्यादा खौफनाक
हमारे यहाँ
चंबल की घाटी थी
जो हर समय
आग उगलती थी
हमने उस आग को
साहस से शांत किया है
क्योंकि हममे
हिमालय सा पुरूषार्थ
और हिंद महासागर सा धैर्य है अभी हमने सिर्फ व्यापार
और
ऐप ही बंद की है
हमारे सब्र का
और इम्तिहान मत लो ड्रेगन क्योंकि हममे
भाखड़ा नंगल जैसी विशालता और
बैलाडिला जैसी मजबूती भी है ।
………
रचना मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित है ।
……..
अनिल गुप्ता
कोतवाली रोड़ उज्जैन




वैक्सीन प्रोसेस पर एक संवाद- कॉफी विथ बॉस

वैक्सीन प्रोसेस पर एक संवाद
…………….
मे आई कमीन सर । यस
आओ शर्मा कुछ खास सर , गाँव मे वेक्सीनेशन का क्या प्रोसेस रहेगा इस पर डिस्कस करना था यदि सेक्रेट्रिएट से कोई लेटर आ गया तब उसका तत्काल जवाब देना होगा इस हेतु आपसे बात करनी थी। देखो शर्मा अभी हमारा फोकस अर्बन एरिए पर है वह फुलफिल हो जाए तब देखेंगे लेकिन सर गाँव मे भी अभी से प्लान करना होगा पिछली बार प्लस पोलियो में कुछ गाँव छूट गए थे तब विधानसभा में प्रश्न उठ गया साल भर तक सवाल जवाब चलते रहे । हाँ वह तो है । वैसे विधायक जी का क्या रुख है सर ओपनली तो उन्होंने अभी तक कुछ नही कहा है की वैक्सीन पर उनका क्या स्टैंड रहेगा मगर अपने समर्थकों से जरूर कह रहे थे कि गाँव का यदि एक भी आदमी वैक्सीन लगने से छूट गया तो वे “ईंट से ईंट बजा देंगे ” अरे यह तो बड़ा पुराना जुमला है उनका । तुमने पढ़ा नही,पिछली बार विधानसभा में भी जोश में आकर वे ऐसा ही बोल रहे थे तुम्ही बताओ आर्म्स एक्ट के चलते विधानसभा में उनको ईंट कोन ले जाने देगा ।
वेपन्स है वह भी ! खैर छोड़ो ।
अच्छा यह बताओ वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन की क्या व्यवस्था रहेगी उनकी कुछ डिटेल्स आई क्या । हेल्थ वालो ने क्या प्लान किया हे ,कोल्ड चेन कैसे मेंटेन करेंगे सर हेल्थ वालों का एक्यूरेट प्लान तो अभी नही आया है मगर वर्बली जरूर बता रहे थे कि हमे बहुत प्रेक्टिस है वेक्सीनेशन की
” बचपन से पचपन तक ” जैसे अदर वैक्सीन हैंडल करते है वैसे ही इसे भी मैनेज कर लेंगे।
नही नही बी केयर फुल। उनसे कहना इसमें जरा सी भी चूक नही चलेगी “कोल्ड मिन्स कोल्ड ” बहुत फूँक फूँक कर कदम रखना है भाई , हम कुछ नही कर पाएंगे ऊपर से ही सारी मॉनिटरिंग हो रही है। वैक्सीन और आदमी दोनो का टेम्परेचर मेंटेन होना चाहिए ओके सर में आज ही सारी इंस्ट्रक्शन का लेटर तैयार कर ईश्यू करवा देता हूँ ।
सर एक प्वाइंट और। हाँ कहो ।सर ओव्हर वेट वालों के लिए कोई नई गाइड लाइन आई क्या कि, उन्हें एक वैक्सीन लगेंगे या दो “तुम भी कमाल करते हो शर्मा ” यहाँ अभी एक की पूर्ति नही हो रही है और तुम दो पर पहुँच गए बाहर किसी से मत कह देना बेकार, लफड़े में फंस जाओगे सी आर बिगड़ेगी सो अलग।
सॉरी सर आई एम व्हेरी सॉरी, ओके आल राइट, फिर रूरल एरिए के लोगो की तो इम्युनिटी वैसे ही हाई लेवल की रहती है यह हमने लॉक डाउन के दौरान भी देखा ही है इसीलिए गाँव मे कोरोना का असर माईन्युटली ही रहा उन्हें कुछ समय बाद भी प्लान किया जा सकता है ।
अरे हाँ , ग्राम पंचायत से कोई लेटर आया है क्या ? कहाँ सर वे तो आखरी समय मे ही जागते है और फिर यहाँ आकर प्रेशर बनाते है पिछली बार ही गाँव मे वर्षा कम हुई तो यहां आकर हमारा घेराव कर दिया । फिर वे तो वैसे भी अभी किसान आंदोलन में लगे है वैक्सीन की और उनका ध्यान ही कहां है ।
क्या अच्छा हो कि वहीं के लोग यह प्रश्न करने लगे कि जब तक ” यह कृषि बिल वापस नही लिया जाता तब तक हम वैक्सीन नही लगवाएंगे । ”
और तब तक हम लोग वैक्सीन का भी इंतजाम कर लेंगे देख लीजिए सर कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए ।
………………………
रचना पूर्णतः मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित ।
सादर प्रकाशनार्थ ।
…….
अनिल गुप्ता
8, कोतवाली रोड़ उज्जैन
संपर्क- 9039917912




हमारा भारत देश ,जीवन की यात्रा, विश्वास,आत्म-निर्भरता ,काश! तुम, अधूरी चाहत ।

हमारा भारत देश
…………………..

मानचित्र में देखो अंकित भारत देश ही न्यारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें हिन्दुस्तान हमारा है ।

एक धर्म व संप्रदाय है,कोई जातिवाद नहीं,
भाईचारे की मिसाल दें,कोई भी प्रतिवाद नहीं,
हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई,हर ज़ुबान पे नारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें,हिन्दुस्तान हमारा है ।

नेताओं की तानाशाही के विरूद्ध एक मुहिम लिये,
बेईमानी और रिश्वतख़ोरी,जितने भी सब जुर्म किये,
जला दिये उनके मंसूबे,बनकर एक अंगारा है ,
अभिमान से सब मिल बोलें,हिन्दुस्तान हमारा है ।

अमन शांति में रहकर के जो सच्चाई के साथ चले,
देश की ख़ातिर मर मिटने का मन में एक अरमान पले,
उनके माथे तिलक लगाते जो जनता को प्यारा है,
गर्व करें इस वतन के वासी ,हिन्दुस्तान हमारा है ।

धन्य वो माँ के लाल , जिन्होंने अपना खून बहाया है,
नमन वो वीर जवान युद्ध में,रण कौशल दिखलाया है,
गौरवान्वित जिनपर अब है ये देश नहीं जग सारा है,
अभिमान से सब मिल बोलें, हिन्दुस्तान हमारा है ।

स्वरचित 
चंदा प्रहलादका 

जीवन की यात्रा
………………
ये यात्रा जीवन की एक खोज में परिणत है,
ख़्वाब नहीं हक़ीक़त की पहचान ही जन्नत है।
यथार्थ में जीने की तमन्ना की कोशिश ,
प्रात की उजली किरण श्वासों में बसे ख्वाहिश ।

मनमोहक सफ़र भाव के सूक्ष्म मर्म को जाने ,
दृष्टि की बात ,बदल गई तो असीम सुख माने ।
आनंद, भौतिक साधनों का मोहताज नहीं फिर,
शाश्वत सत्य जो कल था रहेगा आज वही फिर।

भीतर की खोज अनमोल मोती नज़र आयेंगे ,
बस बंद मुट्ठी में सारा अक्षय धन ही पायेंगे ।
जीवन देता है अवसर सहज श्रेष्ठ बनने का,
जीत लें हर पलों को ,साथ -साथ चलने का।

फूल काँटों से ऊपर उठे मन ,कर सामांज्यस,
सम भाव निहित ह्रदय ,नव चेतनता का रस ।
हर क्षण में परिवर्तित जग रहता अभिमान कहाँ
मिट्टी मिट्टी में मिले रहे नहीं गुमान यहाँ ।
हर इंसा में एक नूर, जुदा नहीं प्राण यहाँ ,
आडंबर से घिरे हुए, ढूँढ रहे भगवान कहाँ ।

स्वरचित 

चंदा प्रहलादका 

विश्वास
………….
सघन तम के बादलों से ,घिर गई काली निशा है,
किरण स्वर्णिम का उजाला,साधती मन की दिशा है
बीतते पल-पल समाहित,नयन में नव आस लेकर ,
प्रात जागेगी सलोनी ,अब लगा विश्वास के “पर”।

बीज धीरज का डले जो, वृक्ष भावों से सींचते ,
फूल फल विश्वास के लग,स्वत:मंज़िल को खींचते
नयी कोंपलें दिन-प्रतिदिन,सेतु नभ तल से बँधा नित
चाहतों की डोर गूँथी, भावना विश्वास के हित ।

ओस की बूँदें धरा की , घास पर मोती चमकती,
तृप्त श्वासों की महक से,प्यार मधुमय ले चहकती।
धूप ताप से यूँ तपती,ग्रीष्म में अवनि का कण-कण,
रिमझिम बारिश की बूँदें, राहतों में हो सभी जन ।

दीपक जले विश्वास का, टूटते सारे भ्रम जाल ,
ओढ़े उजास की चादर ,अंतर संकल्प दृढ़ पाल ,
नहीं असंभव जग में फिर,मंज़िल है सामने खड़ी,
चाँद पर पहुँचा जहां है ,विश्वास बढ़ता हर घड़ी ।

ह्रदय अमृत रस बहा है।
विश्वास पर जीता जहां है।
स्वरचित
चंदा प्रहलादकाशीर्षक-
आत्म निर्भरता
……….. ….

भाग्य के भरोसे हमें अब नहीं रहना है,
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।
आत्म विश्वास अपना टूटने न पाये,
खुद की परेशानी खुद दूर करते जाये।
विवेक से ले काम बना रखे निज मान,
गौरव से सिर ऊँचा ऐसा हो सम्मान ।
सही राह पे चले मंज़िल तक पहुँचना है।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।

आत्मबल जीवंत करें मेहनत मज़दूरी,
ग़लत कार्यों से रहें हमेशा ही दूरी।
कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता है,
खुद का परिवार का पेट भरना भी ज़रूरी ।
आत्म निर्भरता से अब आगे ही बढ़ना है ।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है।

महामारी से बढ़ी सब तरफ़ बेरोज़गारी,
मंहगाई ने पहले ही कमर तोड़ी हमारी।
आधार लेके किसी का कब जी पायें हम,
आत्म निर्भर होकर ही कर्म कर पायें हम।
जीवन है अनमोल क़ीमत हमेशा करना है ।
कर्तव्य पथ पर चले कर्मवीर बनना है ।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका

काश ! तुम
……..     …

काश तुम साथ होते अलग बात थी,
झूम जाता गगन ,नाचती फिर जमीं ।
उलझने भरके दामन में चल दिये,
जो तुम संग नहीं अश्क बहते गये।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी।

बह गये ख़्वाब के शामियाने कई,
चाँद को ढूँढते हैं सितारे कई ।
सूखकर आस के फूल मुरझा गये,
दीप नयनों के सारे बुझते गये ।
पास जन्नत हो सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

वेदना पलक से यूँ छलकती रही,
टूटे दर्पण में सज सँवरती रही ।
काश मिलते ना तुम तो ग़म क्या ख़ुशी,
अब सजा बन गई है चुभती हँसीं ।
पास जन्नत हो, सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

कैसे नादान बन गुम तुम हो गये,
ढूँढती तुममें खुद को तुम खो गये।
सेज काँटों की मन को रहे साधते,
कदम दर कदम प्यार के वास्ते ।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

बैठ आहों की चादर सिलती गयी,
बर्फ़ सी ज़िंदगी यूँ पिघलती गयी।
बाद मुद्दत के पहचान खुद से हुई ,
अपनी परछाई जब दगा दे गई ।
पास जन्नत हो , सजते जज़्बात भी ।
काश तुम साथ होते अलग बात थी ।

स्वरचित

चंदा प्रहलादका

 
अधूरी चाहत
……………
अवगुंठित उर वेदना ,ख़्वाहिशों का कर समर्पण ,
उनींदी पलक बोझिल ,हो संवेदना का अर्पण ।
मैं अधूरी चाहत के बंधन को बिसराऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी आज फिर निभाऊँगी ।

राह पथरीली छिलन का हो मगर अहसास कैसे,
काँटे दामन में चुभे ,आहों का विश्वास कैसे।
विकल होती श्वासों में अरमानों को बहाऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी , आज फिर निभाऊँगी ।

बसुंधरा गर्भ में अग्नि कणों के मोती बिखरे ,
पलक के कोमल तट को आँसू से धोती गहरे।
आस पिघली बर्फ़ सी,अवशेष को छितराऊँगी ,
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

चाँदनी की शुभ्र किरणों से धरा होती तरंगित,
वक़्त की धारा पलटती,विषम पल-पल में निहित।
सोच को मिलती दिशा नव अब कहाँ पा जाऊँगी।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

बीता युग यूँ स्वप्न सा , क्या लौट मुझमें पायेगा,
दर्द से जड़ती हूँ सुध को , सुप्त हो भरमायेगा ।
नेह बाती सा जले दृग , राख को बिखराऊँगी ।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।

ज़िंदगी के पन्नों पर ,स्याही व्यथा बनके उमगी,
गूँथी माला टूट बिखरी ,उलझी- उलझी मैं जगी।
समेटती रिसती हथेली को कहाँ छिपाऊँगी ।
मुस्कान से प्रीत पुरानी, आज फिर निभाऊँगी ।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका

 




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता- सिर्फ औरत ही नहीं मरती/ औरतें ही नहीं निकलती

(1)

 

सिर्फ औरत ही नहीं मरती

मरती हैं औरतें ही न कई बार!

होता है कइयों और का बलात्कार।

सिल-

पथरकट्टों के छेनियों के

कुंद धार का ठक-ठक

तीव्र प्रहार,

जो उसके जन्म के साल भर बाद हुए थे,

पहली बार वाला है

सिल का बलात्कार,

वैसे आगे..

उसकी आँखों के सामने ही

कई बार नोचेंगे पथरकट्ट उसकी देह।

घर के नए 

दो-तीन अँगनाओं के वास्ते,

जो पिता के रहते ही

उग आए हैं,

कर देते हैं जब

सिल के टुकड़े,

मरती है तब शिला दूसरी दफा।

जन्म पर उबटन पीसने के बाद

जब पीसा जाता 

आखिरी शरीर का अंगराग,

तब फिर होता 

सिल का अंतिम संस्कार। 

खिड़की

अँगुली फँस जाए

कदाचित्

तो सौ टेढ़ व लात सहती,

मरती,

कब्जे पर टिकी, 

दादा के समय की लकड़ी की मूक खिड़की।

एक बंद करता, दूसरा खोलता

गुस्से में

जब बोलचाल पति-पत्नी में

बंद रहता, 

मरती खिड़की तब भी।

बरसात में बंद न हो पाती

तब बसुले के कइयों चोट से,

चीर हरण सहती,

गर्मियों में कड़ी धूप से कुम्हलाकर

जब बचना चाहती 

तो पर्दे सिकोड़ लिए जाते

और सर्दियों में कुनकुनी धूप की 

जब तलब जगती 

तो परदे मढ़ जाते।

कदम-कदम पर

खिड़िकियाँ भी झेलतीं हैं अत्याचार।

चूल्हा-

हाँड़ तोड़ मेहनत के बाद भी 

जब तड़के 

डोल-मैदान से लौटते समय

मुखिया के बाग से 

बहू लाती गीली लकड़ियाँ

तो टूटे छप्पर से

धुँआ बन सुलग उठता है,

दो दिन के ठंडे चूल्हे का हृदय, 

चूल्हा मरता है तब पहली बार।

भूखों/गरीब को न बाँटकर

देगचा उड़ेल दिया जाता घूर पर

लकड़ियों के तीव्र दहन की आड़ में

चटक-चटक कर,

तब

फिर रोता है चूल्हा, फिर मरता है वह।

जरा सी नमक की अधिकता में

ताबड़तोड़ वाक्/ लात प्रहार 

किन्तु 

अत्यंत स्वादिष्ट होने पर भी

प्रशंसा के दो शब्द तक

न निकलता मुँह से, तो

चूल्हे का पुनः होता है शीलहरण,

चूल्हा फिर मरता है तब।

 

(2)

औरतें ही नहीं निकलती

 

निकालते हैं कभी जब

केवल औरतें ही नहीं निकलती घर से!

निकलती है

दरवाजे पर पहली

और आखिरी बार

उसके लिए सजी

आरती के थाल की लाख-लाख दुआएँ,

उसके कथित भाग्यशाली पैरों के साथ 

लाई गई सिन्दूरी खुशियों की छाप,

हर्षोत्सुक उसे निहारती दीवारें

छत, आँगन और ड्योढ़ियों की रौनकें,

सुहाग सेज पर सजी मखमली चादरों की सिलवटें,

रंग-बिरंगी फूलों की भीनी सुवास,

मुँह दिखाई के कर्णफूल की डिबिया,

और सिन्दूर की पुड़िया।

निकल जाती हैं

सास के बक्से से,

एक माँ की

एक माँ को दी गई,

बेटी के खुशियों की गारंटी, बिछिया,

एक माँ का कलेजा-रूप,

बेटी की गलतियाँ ढकने की साड़ियाँ।

ननद-भौजाई की मीठी नोक-झोंक

भाभी-देवर का वात्सल्य, दुलार।

पति-पत्नी का मनुहार।

निकलती हैं

चूड़ियों की खनक,

पायलों की झनक

और खनकती हँसी,

बटुलोई से होकर थालियों का प्यार

ससुर के सुबह की चाय के साथ का अखबार।

और..

निकल जाता है 

घर से घर,

होली, दीवाली का त्योहार।

तब केवल एक औरत का ही तिरस्कार नहीं होता,

होता है तिरस्कार

वर्तमान और भविष्य की

आने वाली बहुओं की आशाओं का,

उजड़ते हैं सपने

खूबसूरत प्यार भरे संसार के,

होता है

अपनी लाडली को दूसरे घर बहू बना

गंगा नहाने की

बेझिझक सनातन संस्कृति

और बाप के भरोसे का बलात्कार,

घर आई लक्ष्मी की उपेक्षा,

ईंट की दीवारों से घिरे स्थान पर

घर नामक विश्वास की हत्या,

आँगन की उम्मीदों का अपहरण।

सुख और शान्ति का होता है 

तब…

मरण,

जब कभी किसी औरत को निकालते हैं घर से।

(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)

  ✍ रोहिणी नन्दन मिश्र

पत्राचार:-

नाम- रोहिणी नन्दन मिश्र

गाँव- गजाधरपुर 

पोस्ट- अयाह, इटियाथोक 

जनपद- गोण्डा, उत्तर प्रदेश

पिन कोड- 271202

मो॰/व्हाट्स एप न॰- 9415105425

ई-मेल- [email protected] 




प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

तुम साथ मेरे तो हो जाओ |

हम दुनिया नई बसा लेंगे ,

जीवन की हर बगिया में ,

प्रीत के फूल खिला लेंगे |

तुम साथ मेरे तो हो जाओ |

हम दुनिया नई बसा लेंगे ,

नदिया चाहे गहरी हो जितनी

हम तेरे मांझी बन जाएंगे ,

प्यार के पंख लगा कर फिर 

हम नीले नभ पर छा जाएंगे,

तुम साथ मेरे तो हो जाओ।

हम दुनिया नई बसा लेंगे ,

डॉ कविता यादव  




प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता

      एहसास .. 

थी उम्मीद कि तुमसे मिलके, जिंदगी-जिंदगी होगी  |

फक्त ना उम्मीदी  ने ना  छोड़ा पीछा   मेरा बरसों   तक ||

मेरे शायराना अंदाज टूट कर बिखर-बिखर के जुडते रहे |

फिर न जुड़ सके तेरे टुकड़े-टुकड़े किए हुए वो खत ||

ये मालूम है कि बदनसीबी, तुमसे और दूर -दूर ले जाएगी|

मगर जिद्द अपनी भी ये है देखे बेबसी रुलाती है कहाँ तक ||

ऐ दोस्तों भूल कर भी मेरा हाल  न पूछ बैठना |

बहुत रोई हूँ उसकी चाहत में ,रात भर,उम्र भर ||  

अब अंधेरा है ज़रा , मेरे छोटी सी जिंदगानी में |

देखे खटखटाती है  रोशनी, तकदीर का  दरवाज़ा  कब तक ||

डॉ कविता यादव