1

नारी शक्ति

 नारी से मिलता है जीवन यह भूल भला क्यों जाते हैं।
उसके हक का उसको हम सब क्यों सम्मान नहीं दे पाते है।
संपूर्ण निर्भर है उस पर फिर भी हम अकड़ दिखाते हैं।
खाना-पीना चलना हंसना गाना रोना सब उसके हाव-भाव से सीख पाते है
नारी में त्याग समर्पण है वह तो तेरा ही दर्पण है।
जो समझ गए वह समझदार जो ना समझे वह अनपढ़ कहलाते
नारी है नदिया प्रेम भरी जिसमें सारे रिश्ते बेहतर हो जाते है
नारी को अबला मत समझो वह शक्ति स्वरूपा होती है।
कभी दुर्गा कभी काली कभी चंडी उसमें सारे रूप
समाते है।
नारी का सम्मान करो अब तुम न अपमान करो हर क्षेत्र में जा कर देख लो उसके परचम भी लहराते हैं।
                                                  ~ प्रभा सिंह                                   शाहजहांपुर ,उत्तर प्रदेश




महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता

( 1 )

नवगीत……

आओ हम विश्वास जगाएं
नारी का सम्मान बढ़ाएं
नारी गुण की खान बनी है
नारी जग की शान बनी है
सीमा पर प्रहरी बन उसने
दुश्मन का संहार किया है
आओ उसके मन आँगन में
खुशियों का विस्तार कराएं
नारी का सम्मान बढ़ाएं ।

गुड़ियों की शादी से लेकर
सखियों के संग शाला जाकर
मात पिता के साए में ही
बिटिया का बचपन बीता है
अल्हड़ वय में उड़नपरी ने
अपने सपनो को सींचा है
खेल खिलोने घर मे रखकर
मुश्किल को आसान किया है
कोमल मन की उस देवी में
साहस का नव भाव जगाएं
नारी का सम्मान बढ़ाएं ।

हिम चोटी पर वह पहुंची है
अंतरिक्ष में जा लोटी है
इंदिरा बनकर बंग्लादेश का
उसने नव निर्माण किया है
कान्हा भजन सुना मीरा ने
जन जन का उद्धार किया है
उस दुर्गा और सावित्री में
साहस का उन्वान जगाएं
नारी का सम्मान बढ़ाएं ।

घर की चौखट से जब निकली
जीवन भर संग्राम किया है
खड़ग उठाकर उस देवी ने
मातृभूमि संग न्याय किया है
पूर्वाचल से अस्ताचल तक
शोषित को अधिकार दिलाएं
महिला दिवस पर उसके शौर्य की
रक्तिम श्वेत ध्वजा लहराएं
नारी का सामान बढ़ाएं ।
…………..
अनिल गुप्ता
8, कोतवाली रोड़ उज्जैन

…..
रचना पूर्णतः मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित

नाम- अनिल गुप्ता
पदनाम – प्रधान संपादक
संगठन – महाकाल भ्रमण
पता – 8, कोतवाली रोड़ उज्जैन
मोबाइल – 9039917912

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( 2 )

कविता ….

” हाँ में नारी हूँ “

हाँ में नारी हूँ
मगर मैने
यह कभीं नही कहा
कि मैं सब पर भारी हूँ
हां मुझे गर्व है में नारी हूँ
मेरा बचपन
माता पिता के साए में बिता है
सभी मुझसे जब तब
कहते थे यह मत करो
वह मत करो
मगर मेरे मन ने कहा
बेकार मत डरो सब करो
मुझे जो संस्कार घर से मिले
उसी अमूल्य निधि को
आँचल में संजोए
ससुराल की देहरी पर कदम रखा
सास ससुर और पति ने
कभी कुछ नही कहा
किन्तु
इशारों में सब कुछ समझा दिया
मेरे पैरों में मर्यादा की
जंजीर सदैव बंधी रही
तब भी जब में माँ बनी
और तब भी
जब बेटी की माँ बनी
मुझे बचपन से
यह बताया गया था कि
महिलाओं में अलौकिक
शक्ति होती है
जो दिखती नही
मगर होती जरूर है
मैने भी मान लिया
क्योंकि दिन रात बिना थके
बिना रुके हमसे
काम जो लेना होता है
हाँ यह जरूर हुआ
कि जब जब पुरुष ने
अपने अहंकार के कारण
नारी को अबला समझा
तब तब नारी ने
दुर्गा का रूप दिखाकर
उसे नारी शक्ति से
परिचित करा दिया
क्योंकि
भारतीय नारी
किसी भी परिस्थिति में
हथियार नही डालती
तब भी जब उसे
अधिकारों से लड़ना पड़े
और तब भी
जब उसकी
अस्मिता पर बेजा प्रश्न उठे
मगर तब
वह अपने पैरों में बंधी
जंजीर को तोड़कर
रणचंडी बन जाती है
माँ दुर्गा और काली की तरह ।
और गर्व से कहती है
हाँ में आत्म निर्भर
भारतीय नारी हूँ ।
……..
अनिल गुप्ता
8, कोतवाली रोड़ उज्जैन
……………………………..

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प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता

अंतराष्ट्रीय प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता ।
( 1 )

” देखो मेरे नाम सखी “

प्रियतम की चिट्ठी आई है देखो मेरे नाम सखी
विरह वेदना अगन प्रेम की लिक्खी मेरे नाम सखी ।
आसमान में काले बादल कैसे उमड़ घुमड़ आए
अंधकार में एक बदरिया लिक्खी मेरे नाम सखी ।
कुंकूम बिंदिया चूड़ी कंगना पायल की झंकार बजी
हर धड़कन में उनकी खुशबू लिक्खी मेरे नज़्म सखी 
कर्तव्यों की पगडंडी पर मन की गागर मचल गई
पनघट की सब चुहल बाजियां लिक्खी मेरे नाम सखी ।
हाथों में मेंहदी साजन की सुर्ख महावर पैरों में
साँसो में संदल की खुशबू लिक्खी मेरे नाम सखी ।
चन्द्र किरण बनकर तुम मेरे चंचल मन उपवन में आई
चंदा की सारी शितलता लिक्खी मेरे नाम सखी ।
अंग अंग में तपन लगे है अनुबंधों की गांठ खुली
भीतर बाहर की सब मस्ती लिक्खी मेरे नज़्म सखी ।

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( 2 )

” प्यार के दीपक जलेगें “

प्यार के दीपक जलेगें फिर कभी
रोशनी में हम जिएंगे फिर कभी ।।                       फूल की खुशबू से मधुबन खिल गया
लाज के घुंघट उठेगें फिर कभी।
भा गई आँखों को रसवंती अदा
रूप के प्याले पिएगें फिर कभी।
झांक ले आँखों मे आँखे डालकर
शब्द को रास में गुथेगें फिर कभी।
हम तेरे आँचल से लिपट जाएगें
साज की सरगम सुनेंगे फिर कभी।
आओ आपस मे बहारें बाँट ले
प्यार की बारिश करेगें फिर कभी।
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( 3 )

” आप क्यूं खामोश है “

जल रही जालिम जवानी आप क्यूं खामोश है
उठ रही दिल मे रवानी आप क्यूं खामोश है ।

शोख चंचल सी अदाएं आपको दिखती नही
लुट रही मेरी जवानी आप क्यूं खामोश है ।

आपकी सूरत के सिवा कुछ नही भाता मुझे
हो गई हूं में दिवानी आप क्यूं खामोश है ।

दिल के दर्दों को भुलाना मेरे बस में अब नही
सब यही कहते है जानी आप क्यूं खामोश है ।

अपने दामन पर लिखी है आंसुओं से सींचकर
प्यार की अनुपम कहानी आप क्यूं खामोश है ।

आँख न फेरो सनम अब रंग में रंग लो मुझे
हो गई हूं में सयानी आप क्यूं खामोश है ।
………….

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शापित अभिवादन

शापित अभिवादन 

 

गुरु मैं सामने खड़ा हूँ

ठीक आपके आँखों के बीच                              

आईने के अश्क में

चेहरे के भीतर चेहरों को देखता हुआ                       

हाथों से छीन लिया आपने                      

मेरा आने वाला भविष्य और                         

मैं अभी भी भीग रहा हूँ उसी                                        

एकलव्य पथ पर   

आखिर कब तक बिना बारिश के

ऐसे ही भीगता रहूँगा ……… ?

                                                            —  डॉ. बृजेश कुमार




पहली बार

 पहली बार  

   छूकर उसे अनछुवा कर दिया                          

       और अब मैं लिख रहा हूँ

             अपनी भाषा

                धीरे –धीरे उसके चेहरे पर

                    कल फिर से उसकी खामोशी को

                           पढ़ने के लिए |         

                                 ——– डॉ बृजेश कुमार   




अंतराष्ट्रीय महिला दिवस रचना भाग दो

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना
भाग दो

स्वर साधना की आत्मा
ममता ममत्व का आँचल
कला काल भाव नारी
दुर्गा ज्वाला।।
इंदिरा लक्ष्मीबाई सरोजनी
कल्पना मरियम यशोदा
सती शीतल अंगार।।
चंचल चितवन शोख
अदा अंदाज़ प्रेम घृणा
कोमल कठोर खुशबू
खूबसूरत श्रृंगार।।
त्याग तपस्या राग रागिनी
विद्या वादिनी वीणा की झंकार।।
जन्म दायनी वात्सल्य
बैभव विशाल
कामिनी ग़ज़ गामिनी
काल कराल विकट विकराल।।
पृथ्वी पतित पावनी
सृष्टि युग समाज का स्वाभिमान।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश




सैनिक दिवस पर कविता

*सैनिक दिवस पर विशेष*

*सीमाओं पर डटें, जो देश की रखवाली करतें हैं*
*बिना स्वार्थ हित लाभ के जो पहरेदारी करतें हैं*
*सर्दी शीत धूप ताप से लड़ते जो प्रतिक्षण हैं*
*उनकें त्याग वीरता की तो सब कहानी कहतें हैं ,*

*जिनकी इच्छा तृष्णा तो मन में ही दब जाती हैं*
*जिनकी सतर्कता से होली दीवाली सब आती हैं*
*जिनकी पहरेदारी से ईंद क्रिसमस भी आता हैं*
*वरना सबकी ख़ुशी नज़ारें पल में ही दब जाती हैं ,*

*अपना शीश कटा कर हम पर आंच नहीं आने देता*
*बात कितनी भी कठिन हो,बात नहीं आने देता*
*ओ रक्षक भक्षक बन जाता हैं दुश्मनों के टोलों पर*
*एक एक को मारता हैं, बच कर नहीं जाने देता ,*

*घर से दूर,क़भी किसी से मग़र नहीं शिकायत करता*
*किसी पद प्रलोभन ख़ातिर क़भी नहीं ज़ियारत करता*
*हरदम कर्तब्य निभाता हैं डट कर जी जान से*
*ख़ुद की ख़ातिर क़भी किसी से कोई नहीं सिफारश करता ,*

*उनके बल से ही देश में आज़ादी की आहट हैं*
*उनके वीर बल से क़भी आती नही मुसीबत हैं*
*उनकें रूह खून में हरदम सूर्य सी गरमाहट हैं*
*फिर भी देखों मुखड़े पर दिखती तो मुस्कुराहट हैं ,*

*सज़ग सर्तक हरदम रहतें हैं दुश्मनों की चाल से*
*सिर उच्छेदन कर देते हैं इरादों के अपने भाल से*
*उनका मज़हब भारत भारती और देश की माटी हैं*
*जिसकी रक्षा करतें हैं समझकर अपने परिवार से ,*

*उनके पांवों की धुली माथें पर लगाने लायक हैं*
*उनका खून पसीना तो गंगा जल से पावन हैं*
*जो उनका चारण गाता हैं,ओ ही असली गायक हैं*
*उनके पथ जो चलता है, बनता एक दिन नायक हैं ।।*
*©बिमल तिवारी “आत्मबोध”*
   *देवरिया उत्तर प्रदेश*




अंतराष्ट्रीय महिला दिवस रचना भाग तीन

 

नारी आज खोजती
खुद को राष्ट्र समाज के
हर पल प्रहर में
करती सवाल
कौन हूँ मैं ?
क्या अस्तित्व है मेरा
क्यों हूँ मैं बेहाल
सभ्य समाज की
सभ्यता से गली
चौराहों हाट बाज़ारों
पर सवाल?
मैँ माँ भी हूँ
बहन बेटी रिश्तो के
समाज मे फिर क्यो
डरी सहमी?
सम्मान अस्मत को
करती चीत्कार पुकार।।
कहती है नारी जन्म
से पूर्व कोख में मेरा
क्यो करते हो नाश।।
गर जन्म ले लिया हमने
जीवन भर अस्मत अस्तित्व
की खातिर लड़तीं संग्राम।।
शिक्षा दीक्षा अधिकार
की खातिर लड़ते रहना ही
मेरा संसार।।
घर सड़क गली बाज़ार
चौराहों पर डरी सहमी
भागती दौड़ती मांगती
अपना सामान अधिकार।।
कभी स्वयं की अस्मत
बचाने में मीट जाती
कभी दहेज की बलि
बेदी पर जिंदा ही जल
जाती या जला दी जाती
दहसत दासता नियत का
जीवन भार।।
मानव मानवता के विकसित
समाज मे भी बेबस हूं मैं
नारी परम् शक्ति सत्ता की
स्वीकार।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश




अंतराष्ट्रीय महिला दिवस रचना भाग प्रथम

 

सृष्टि युग की गौरव
प्रकृति प्रवृति की अनिवार्यता
परम् शक्ति की सत्ता
नारी शक्ति आधार।।
ब्रह्म ,विष्णु ,शंकर
शिवा ,वैष्णवी ,सरस्वती
परम् शक्ति सत्ता ईश्वर
की भागीदार।।
सृष्टि पूर्ण तभी होती
जब नारी लेती प्रथम
अवतार।।
नर नारायण की
शक्ति में नारी
समान हिस्सेदार।।
देश काल परिस्थिति
चाहे जो भी हो
नारी शक्ति से होता
अविनि आकाश निर्माण।।
नारी अनिवार्य तथ्य
तत्व सृष्टि की दृष्टी
दिशा संस्कृति संस्कार।।
देव नारी से नारी से राष्ट्र समाज
अर्ध नारीश्वर देव परम्
शक्ति सत्ता का अंगीकार।।
नारी स्वरूप है परम् शक्ति
सत्ता भरत भारत भारती दर्शन
संस्कृति प्रमाण।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता,, बसंत उत्सव हेतु

बसंत को  समर्पित,,,रचना,,दोहे,,,,

अधरों पर टेसू खिले,महुआ महके नैन।।

देह हुई कामायनी,यह बसंत की दैन।।

 

उनको यह मधुमास है,जिनके  साजन पास।।

जिनके साजन दूर हैं,देखे गए उदास।।

 

धरती भी धारण करे, पीताम्बर परिवेश।।

सिर पर ओढ़े चूनरी ,रख मन मोहक भेष।।

 

बूढा बरगद चाहता,छूना अधर पलास।।

ऐसे ही प्रेरित करे, हम सबको मधुमास।।

 

ऋतुओं का राजा कहें,सब बसंत को आज।।

ग्रंथों में उल्लेख है, माने यही समाज।।

 

प्रेम बिना यह जिंदगी, सच में है बेकार।।

प्रेम अगर सच्चा मिले, जीवन हो छतनार।।

 

मधुर मिलन अभिसार से,चलता है संसार।।

निर्मल निष्छल नेह ही, है जीवन का सार।।

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बृंदावन राय सरल सागर एमपी

मोब,,,7869218525